hotaks444
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बहन की इच्छा—3
गतान्क से आगे…………………………………..
में उत्साह से उसे बताने लगा,
"सोचो! हम परसो सुबह मुंबई जा रहे है अप'ने घर, बराबर? हम यहाँ से थोड़ा जल्दी निकलेंगे और खंडाला पहुँचते ही वहाँ उतर जाएँगे. फिर वो दिन भर हम खंडाला घूमेंगे और फिर दूसरे दिन सुबह की बस से हम हमारे घर जाएँगे."
"वो तो ठीक है. लेकिन रात को हम खंडाला में कहाँ रहेंगे?" ऊर्मि दीदी ने आगे पुछा.
"कहाँ यानी? होटल में, दीदी!"
मेने झट से जवाब दिया.
"होटल में??"
ऊर्मि दीदी सोच में पड गयी,
"लेकिन में क्या कहती हूँ. हम उसी दिन रात को मुंबई नही जा सकते क्या?"
"जा सकते है ना, दीदी! लेकिन उस'से कुच्छ नही होगा सिर्फ़ हमारी भागदौड ज़्यादा होगी. क्योंकी हम पूरा खंडाला घूमेंगे जिस'से रात तो होगी ही. और फिर तुम तो पहली बार खंडाला देखोगी और घुमोगी तो उस में सम'य तो जाने ही वाला है. और घूम के तुम ज़रूर थक जाओगी और तुम्हे फिर आराम की ज़रूरत पडेगी. इस'लिए रात को होटल में रुकना ही ठीक रहेगा
"वैसे तुम्हारी बात तो ठीक है, सागर!"
ऊर्मि दीदी को मेरी बात ठीक लगी और वो बोली,
"लेकिन सिर्फ़ इतना ही के रात को होटल में भाई के साथ रहना थोड़ा अजीब सा लगता है."
"ओहा, कम आन, दीदी! हम अजनबी तो नही है. और हम भाई-बहेन है तो क्या हुआ, हम दोस्त भी तो है. तुम्हे ज़रा भी अजीब नही लगेगा वहाँ. तुम सिर्फ़ देखो, तुम्हे बहुत मज़ा आएगा वहाँ."
"हां! हां! मुझे मालूम है वो. मेरे प्यारे भाई!!"
ऐसा कहके उस'ने मज़ाक में मेरा गाल पकड़'कर खींच लिया और मुझे ऐसे उस'का गाल खींचना अच्छा नही लगता.
"ईई. दीदी!! तुम्हे मालूम है ना मुझे ऐसे कर'ना पसंद नही. में क्या छोटा हूँ अभी? अब में काफ़ी बड़ा हो गया हूँ."
"ओ.हो, हो, हो!! तुम बड़े हो गये हो? तुम सिर्फ़ बदन से बढ़ गये हो, सागर! लेकिन अप'नी इस दीदी के लिए तुम छोटे भाई ही रहोगे." ऐसा कह'कर उस'ने मुझे बाँहों में ले लिया,
"नन्हा सा. छोटा. भाई! एकदम मेरे बच्चे जैसा!"
"ओहा, दीदी! तुम मुझे बहुत बहुत अच्छी लगती हो. तुम हमेशा खूस रहो ऐसा मुझे लगता है. और उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ"
ऐसा कह'कर मेने भी उसे ज़ोर से आलिंगन दिया.
गतान्क से आगे…………………………………..
में उत्साह से उसे बताने लगा,
"सोचो! हम परसो सुबह मुंबई जा रहे है अप'ने घर, बराबर? हम यहाँ से थोड़ा जल्दी निकलेंगे और खंडाला पहुँचते ही वहाँ उतर जाएँगे. फिर वो दिन भर हम खंडाला घूमेंगे और फिर दूसरे दिन सुबह की बस से हम हमारे घर जाएँगे."
"वो तो ठीक है. लेकिन रात को हम खंडाला में कहाँ रहेंगे?" ऊर्मि दीदी ने आगे पुछा.
"कहाँ यानी? होटल में, दीदी!"
मेने झट से जवाब दिया.
"होटल में??"
ऊर्मि दीदी सोच में पड गयी,
"लेकिन में क्या कहती हूँ. हम उसी दिन रात को मुंबई नही जा सकते क्या?"
"जा सकते है ना, दीदी! लेकिन उस'से कुच्छ नही होगा सिर्फ़ हमारी भागदौड ज़्यादा होगी. क्योंकी हम पूरा खंडाला घूमेंगे जिस'से रात तो होगी ही. और फिर तुम तो पहली बार खंडाला देखोगी और घुमोगी तो उस में सम'य तो जाने ही वाला है. और घूम के तुम ज़रूर थक जाओगी और तुम्हे फिर आराम की ज़रूरत पडेगी. इस'लिए रात को होटल में रुकना ही ठीक रहेगा
"वैसे तुम्हारी बात तो ठीक है, सागर!"
ऊर्मि दीदी को मेरी बात ठीक लगी और वो बोली,
"लेकिन सिर्फ़ इतना ही के रात को होटल में भाई के साथ रहना थोड़ा अजीब सा लगता है."
"ओहा, कम आन, दीदी! हम अजनबी तो नही है. और हम भाई-बहेन है तो क्या हुआ, हम दोस्त भी तो है. तुम्हे ज़रा भी अजीब नही लगेगा वहाँ. तुम सिर्फ़ देखो, तुम्हे बहुत मज़ा आएगा वहाँ."
"हां! हां! मुझे मालूम है वो. मेरे प्यारे भाई!!"
ऐसा कहके उस'ने मज़ाक में मेरा गाल पकड़'कर खींच लिया और मुझे ऐसे उस'का गाल खींचना अच्छा नही लगता.
"ईई. दीदी!! तुम्हे मालूम है ना मुझे ऐसे कर'ना पसंद नही. में क्या छोटा हूँ अभी? अब में काफ़ी बड़ा हो गया हूँ."
"ओ.हो, हो, हो!! तुम बड़े हो गये हो? तुम सिर्फ़ बदन से बढ़ गये हो, सागर! लेकिन अप'नी इस दीदी के लिए तुम छोटे भाई ही रहोगे." ऐसा कह'कर उस'ने मुझे बाँहों में ले लिया,
"नन्हा सा. छोटा. भाई! एकदम मेरे बच्चे जैसा!"
"ओहा, दीदी! तुम मुझे बहुत बहुत अच्छी लगती हो. तुम हमेशा खूस रहो ऐसा मुझे लगता है. और उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ"
ऐसा कह'कर मेने भी उसे ज़ोर से आलिंगन दिया.