hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
रूपसा अपने काम में लगी गुरु जी के लिंग को छेड़ती हुई गुरु जी के आदेश को अपने अंदर समेट-ती जा रही थी
रूपसा ----जैसी आपकी मर्ज़ी गुरु जी आप चिंता मत कीजिए ऐसा ही होगा आप देखना आज से ही में और मंदिरा अपने काम में लग जाएँगे आपको कोई शिकयात का मौका नहीं मिलेगा पर गुरु जी हमें तो जिस चीज की आवश्यकता है वो तो दीजिए और हँसती हुई फिर से गुरु जी के लिंग को अपने होंठों पर दबाए हुए उनकी ओर देखती रही
उसे अपनी इच्छा पूरी होती नजर आ रही थी वो लगातार गुरु जी के लिंग को जितना हो सके उतना जीब से और होंठों से चुबलते हुए अपने गले के अंदर तक ले जा रही थी तभी गुरु जी का हाथ उसके सिर पर थोड़ा कस गया था रूपसा जान गई थी की बस अब कुछ ही देर की बात है
गुरु जी के अंदर एक इंसान जाग उठा था जो कि एक नारी शरीर से हार मन गया था रूपसा का अंदाज इतना मोहक और मादक था कि गुरु जी और नहीं रुक पाए एक झटके से उसे खींचकर अपने ऊपर लिटा लिया था
गुरु जी- बस अब अपने अंदर जाने दो बहुत मेहनत कर ली तुमने चलो तुम्हें आज खुश करते है
कहते हुए गुरु जी अपने ऊपर बैठी हुई रूपसा की योनि के अंदर धीरे-धीरे अपने लिंग को सामने लगे थे वो क्या सामने लगे थे वो तो रूपसा ही उतावली हो गई थी और गुरु जी को बिना मेहनत अपने अंदर तक उतारती चली गई थी रूपसा का अंदाज बहुत निराला था बैठने का अंदाज़ा से लेकर देखने का अंदाज़ा एक दम जान लेवा कहते है कि सेक्स के समय औरत जितना शरीर से मर्द का साथ देती है अगर उतना ही वो अपने होंठों और आखों से भी साथ दे तो मर्द के अंदर के शैतान को कोई नहीं रोक सकता और मर्द को बिना मेहनत के ही वो सब मिल जाता है जिसकी की चाह उसे होती है वोही हाल था रूपसा का बिना बोले वो गुरु जी के ऊपर उछलती जा रही थी और उसकी कमर का भाव इस तरह का था कि समुंदर की लहरे भी जबाब दे उठी थी
गुरु जी नीचे लेटे हुए अपने आपको एक असीम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए पा रहे थे और रूपसा अपने पूरे तन मन से गुरु जी के साथ संभोग का पूरा आनंद ले रही थी गुरु जी आज उसे बहुत दिनों बाद मिले थे और वो यह पल खोना नहीं चाहती थी हर पल वो जीना चाहती थी वही वो कर रही थी रूपसा अपनी कमर को हिलाते हुए धीरे-धीरे कभी ऊपर भी हो जाती थी गुरु जी के चहरे पर आनंद की लहरे देखकर जान गई थी कि गुरु जी परम आनंद को प्राप्त करने वाले है उसकी कमर की लहर अब धीरे बढ़ने लगी थी और गुरु जी का हाथ उसकी कमर के चारो ओर कसने लगी थी गुरु जी अपने आप में नहीं थे आखें बंद किए हुए अपनी कमर को भी धीरे से ऊपर उठाकर रूपसा के बहाव में बहने लगे थे रूपसा ने झुक कर गुरु जी के होंठों पर फिर से आक्रमण कर दिया था लगता था कि वो भी अपने शिखर की ओर बढ़ने लगी थी गुरु जी का कसाव उसकी पीठ पर अब कस गया था
और उनके होंठों भी अब रूपसा के होंठों से लड़ने लगे थे जीब और होंठो का मिलन वो वो पल और योनि की और लिंग का समर्पण का वो खेल अब धीरे-धीरे अपने मुकाम को हासिल करने ही वाला था और धीरे-धीरे रूपसा और गुरु जी की मिली जुली आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी
रूपसा और जोर से कसो गुरु जी मज़ा आ रहा है
गुरु जी- हाँ… रूपसा बहुत आनंद आया आज उूउउफफफफफफफफ्फ़ की आकाला है तुममे
रूसा- आपका आसिर्वाद है गुरु जी बस अपना आशीर्वाद बनाए रखे हम पर
गुरु जी क्यों नहीं रूपसा तुम और मंदिरा ही हमें समझ पाती हो बस करती रहो रूको मत हमम्म्मममममम आआआआआआह्ह
रूपसा- आआआआआआह्ह म्म्म्मममममममममममममममममममममम और जोर से गुरु जी
गुरु जी ने एक बार उसे कसते हुए अपने नीचे लिटा लिया था और अपने आपको अड्जस्ट करते हुए रूपसा की जाँघो के बीच में बैठ गये थे अब वो एक साधारण इंसान जैसे बर्ताव कर रहे थे उसके अंदर के उफ्फान को खुद ही शिखर पर पहुँचाने की कोशिश गुरु जी ने शुरू करदी थी
रूपसा की दोनों चुचियों को कसकर पकड़कर वो लगातार धक्के देने लगे थे रुपसा नीचे लेटी हुई अपनी कमर को उठा कर हर चोट का जबाब देती जा रही थी
रूपसा - और तेजी से गुरु जी और तेज हमम्म्म उूुउउफफफ्फ़
गुरु जी की रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी और लगातार रूपसा की चुचियों को आटे की तरह मसलते जा रहे थे लगता था की वो अपना गुस्सा उसकी चुचियों पर ही उतारना चाहते थे निचोड़ते समय उन्हें रूपसा की चीख का भी कोई ध्यान नहीं था बस मसलते हुए अपने आपको शांत करके कोशिश करते जा रहे थे
रूपसा ऽ उूउउम्म्म्म धीरे गुरु जी आआआआआआअह्ह, म्म्म्ममममममममममममममममममममममम
और जोर से गुरु जी को अपनी बाहों में भरती हुई गुरु जी के झटको के साथ ऊपर-नीचे होने लगी थी रूपसा किसी बेल की भाँति गुरु जी चिपकी हुई थी और गुरु जी अपनी हथेलियों को अब उसके पीठ पर कसते हुए लगातार धक्के देते रहे जब तक अपनी शिखर पर नहीं पहुँच गये थे धीरे धीरे उस कमरे में आया तूफान थम गया था और दो शरीर पसीने से भीगे हुए उस आसन पर पड़े हुए थे
रूपसा ----जैसी आपकी मर्ज़ी गुरु जी आप चिंता मत कीजिए ऐसा ही होगा आप देखना आज से ही में और मंदिरा अपने काम में लग जाएँगे आपको कोई शिकयात का मौका नहीं मिलेगा पर गुरु जी हमें तो जिस चीज की आवश्यकता है वो तो दीजिए और हँसती हुई फिर से गुरु जी के लिंग को अपने होंठों पर दबाए हुए उनकी ओर देखती रही
उसे अपनी इच्छा पूरी होती नजर आ रही थी वो लगातार गुरु जी के लिंग को जितना हो सके उतना जीब से और होंठों से चुबलते हुए अपने गले के अंदर तक ले जा रही थी तभी गुरु जी का हाथ उसके सिर पर थोड़ा कस गया था रूपसा जान गई थी की बस अब कुछ ही देर की बात है
गुरु जी के अंदर एक इंसान जाग उठा था जो कि एक नारी शरीर से हार मन गया था रूपसा का अंदाज इतना मोहक और मादक था कि गुरु जी और नहीं रुक पाए एक झटके से उसे खींचकर अपने ऊपर लिटा लिया था
गुरु जी- बस अब अपने अंदर जाने दो बहुत मेहनत कर ली तुमने चलो तुम्हें आज खुश करते है
कहते हुए गुरु जी अपने ऊपर बैठी हुई रूपसा की योनि के अंदर धीरे-धीरे अपने लिंग को सामने लगे थे वो क्या सामने लगे थे वो तो रूपसा ही उतावली हो गई थी और गुरु जी को बिना मेहनत अपने अंदर तक उतारती चली गई थी रूपसा का अंदाज बहुत निराला था बैठने का अंदाज़ा से लेकर देखने का अंदाज़ा एक दम जान लेवा कहते है कि सेक्स के समय औरत जितना शरीर से मर्द का साथ देती है अगर उतना ही वो अपने होंठों और आखों से भी साथ दे तो मर्द के अंदर के शैतान को कोई नहीं रोक सकता और मर्द को बिना मेहनत के ही वो सब मिल जाता है जिसकी की चाह उसे होती है वोही हाल था रूपसा का बिना बोले वो गुरु जी के ऊपर उछलती जा रही थी और उसकी कमर का भाव इस तरह का था कि समुंदर की लहरे भी जबाब दे उठी थी
गुरु जी नीचे लेटे हुए अपने आपको एक असीम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए पा रहे थे और रूपसा अपने पूरे तन मन से गुरु जी के साथ संभोग का पूरा आनंद ले रही थी गुरु जी आज उसे बहुत दिनों बाद मिले थे और वो यह पल खोना नहीं चाहती थी हर पल वो जीना चाहती थी वही वो कर रही थी रूपसा अपनी कमर को हिलाते हुए धीरे-धीरे कभी ऊपर भी हो जाती थी गुरु जी के चहरे पर आनंद की लहरे देखकर जान गई थी कि गुरु जी परम आनंद को प्राप्त करने वाले है उसकी कमर की लहर अब धीरे बढ़ने लगी थी और गुरु जी का हाथ उसकी कमर के चारो ओर कसने लगी थी गुरु जी अपने आप में नहीं थे आखें बंद किए हुए अपनी कमर को भी धीरे से ऊपर उठाकर रूपसा के बहाव में बहने लगे थे रूपसा ने झुक कर गुरु जी के होंठों पर फिर से आक्रमण कर दिया था लगता था कि वो भी अपने शिखर की ओर बढ़ने लगी थी गुरु जी का कसाव उसकी पीठ पर अब कस गया था
और उनके होंठों भी अब रूपसा के होंठों से लड़ने लगे थे जीब और होंठो का मिलन वो वो पल और योनि की और लिंग का समर्पण का वो खेल अब धीरे-धीरे अपने मुकाम को हासिल करने ही वाला था और धीरे-धीरे रूपसा और गुरु जी की मिली जुली आवाज उस कमरे में गूंजने लगी थी
रूपसा और जोर से कसो गुरु जी मज़ा आ रहा है
गुरु जी- हाँ… रूपसा बहुत आनंद आया आज उूउउफफफफफफफफ्फ़ की आकाला है तुममे
रूसा- आपका आसिर्वाद है गुरु जी बस अपना आशीर्वाद बनाए रखे हम पर
गुरु जी क्यों नहीं रूपसा तुम और मंदिरा ही हमें समझ पाती हो बस करती रहो रूको मत हमम्म्मममममम आआआआआआह्ह
रूपसा- आआआआआआह्ह म्म्म्मममममममममममममममममममममम और जोर से गुरु जी
गुरु जी ने एक बार उसे कसते हुए अपने नीचे लिटा लिया था और अपने आपको अड्जस्ट करते हुए रूपसा की जाँघो के बीच में बैठ गये थे अब वो एक साधारण इंसान जैसे बर्ताव कर रहे थे उसके अंदर के उफ्फान को खुद ही शिखर पर पहुँचाने की कोशिश गुरु जी ने शुरू करदी थी
रूपसा की दोनों चुचियों को कसकर पकड़कर वो लगातार धक्के देने लगे थे रुपसा नीचे लेटी हुई अपनी कमर को उठा कर हर चोट का जबाब देती जा रही थी
रूपसा - और तेजी से गुरु जी और तेज हमम्म्म उूुउउफफफ्फ़
गुरु जी की रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी और लगातार रूपसा की चुचियों को आटे की तरह मसलते जा रहे थे लगता था की वो अपना गुस्सा उसकी चुचियों पर ही उतारना चाहते थे निचोड़ते समय उन्हें रूपसा की चीख का भी कोई ध्यान नहीं था बस मसलते हुए अपने आपको शांत करके कोशिश करते जा रहे थे
रूपसा ऽ उूउउम्म्म्म धीरे गुरु जी आआआआआआअह्ह, म्म्म्ममममममममममममममममममममममम
और जोर से गुरु जी को अपनी बाहों में भरती हुई गुरु जी के झटको के साथ ऊपर-नीचे होने लगी थी रूपसा किसी बेल की भाँति गुरु जी चिपकी हुई थी और गुरु जी अपनी हथेलियों को अब उसके पीठ पर कसते हुए लगातार धक्के देते रहे जब तक अपनी शिखर पर नहीं पहुँच गये थे धीरे धीरे उस कमरे में आया तूफान थम गया था और दो शरीर पसीने से भीगे हुए उस आसन पर पड़े हुए थे