hotaks444
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दूसरे दिन पूरे शहर में तहलका मचा हुआ था… दोनो ही शहर की बड़ी-बड़ी हस्तियों की औलादे थी…
पोस्टमॉर्टम में ड्रग की ज़्यादा मात्रा लेने से साँस अटक जाने से अटॅक आने के कारण मौत का कारण बताया गया…
क्लब में उनकी मौजूदगी के सबूत मिले… अब चूँकि क्लब भी उन जैसे ही किसी बड़ी हस्ती का था, तो उसको क्या आँच आनी थी…और वैसे भी ये हादसा क्लब के बाहर हुआ था….,
पोलीस ने मामले को ड्रग से हुई मौत का मामला बताकर केस क्लोज़ कर दिया… लेकिन कमिशनर के गले से बात नही उतर पा रही थी…!
उसका पॉलिसिया दिमाग़ कह रहा था, कि ये घटना इतनी साधारण नही है, जितना दिखाया गया है…
कुछ दिन तो वो अपने बेटे की मौत के गम में डूबा रहा लेकिन जल्दी ही वो इसकी तह तक पहुँचने के लिए हाथ पैर मारने लगा….!
लेकिन अब पोलीस डिपार्टमेंट में उसकी इज़्ज़त दो कौड़ी की भी नही थी, सो क़ानूनी तौर पर उसके हाथ कुछ लगने वाला नही था…!
अपने गॅंग के लोगों को उसने इसकी छान्बीन के लिए लगाया, लेकिन काफ़ी मसक्कत के बाद भी कोई क्लू उसके हाथ नही लगा…!
………………………………………….
इधर भाभी का सरपंच के चुनाव के लिए नॉमिनेशन फाइल कर दिया गया…एसपी भैया भी कभी-कभार आकर गाओं के लोगों से मिल लिया करते थे, जिसका अपना अलग ही प्रभाव पड़ा…
पुराना सरपंच बुरी तरह भिन्नाया हुआ था, उसने कभी सपने में भी नही सोचा था, कि उसके मुक़ाबले में भी कोई मैदान में उतर सकता है…
उसने लोगों को भरमाने की पूरी कोशिश शुरू करदी… ग़रीबों में पैसे बाँटना, दारू पिलाना, दावतें देना डेली बेसिस पर शुरू कर दिया…
दलित और ग़रीब लोग इससे प्रभावित होना शुरू हो गये, जिनकी गाओं में तादात भी बहुत थी, कुछ तो पहले से ही सरपंच के इशारों पर नाचते थे….
हम दिन भर लोगों से मिलने मिलने में व्यस्त रहते, और शाम को सब लोग इकट्ठा होकर हालातों का जायज़ा लेते थे,
कुछ गाओं मोहल्ले के खास लोग भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलकर प्रचार में जुटे हुए थे…
एक दो बार भाभी को भी हमने गाओं में रिक्शे में बिठाकर घुमा दिया, उनकी प्रेग्नेन्सी की हालत में भी लोगों से मिलने से ख़ासकर महिलाओं पर ख़ासा प्रभाव पड़ा…
आज भी हम सब एक साथ बैठे, चर्चा में लगे हुए थे, कि तभी हमारे साथ के एक रज्जु चाचा, जो मनझले चाचा के बहुत करीबी हैं, बोले –
शंकेर भैया… दलितों के वोट सारे के सारे अपने हाथ से जाते हुए दिखाई दे रहे हैं…अगर वो चले गये तो हमारा जीतना नामुमकिन सा ही हो जाएगा…
मन्झले चाचा – ये क्या बोल रहा है रज्जु ! उन सबने तो हमसे वादा किया है, कि वोट हमें ही देंगे… फिर ये कैसे हो सकता है…?
रज्जु – अरे भाई राकेश, तुम्हें पता नही है, ये क़ौम ऐसी होती है, कि इन्हें खिलाते-पिलाते रहो उसी की बजाते हैं…
तुमसे वादा ज़रूर किया है, लेकिन अंदर की खबर है कि इन्हें सरपंच ने खरीद लिया है…और ये सब मिलकर वोट उसी को देने वाले हैं…
मे – वैसे रज्जु चाचा, इनका कोई एक मुखिया तो होगा जिसकी ये बात मानते होंगे…
रज्जु – है ना ! रामदुलारी… बांके की बीवी, वही है सबकी मुखिया… और वो सरपंच की खासम खास है, उसी ने सबको एकजुट कर रखा है…वो जहाँ कहेगी सब के सब वहीं वोट देंगे…
मे – बांके तो वही है ना जो बड़े भैया के साथ स्कूल में पढ़ता था…
भैया – हां ! पर उसकी साले की अपनी बीवी के आगे एक नही चलती…बहुत चालू पुर्जा है वो औरत…दलितों के मोहल्ले में सबसे ज़्यादा पढ़ी लिखी और होशियार औरत है…
मे – चलो आप लोग सभी अपने वोटों पर नज़र बनाए रखिए, थोड़ी बहुत दावत वैगरह का इंतेज़ाम भी करते रहिए..,
ये भी ज़रूरी है अपने वोटों को बनाए रखने के लिए.., मे उस रामदुलारी का कुछ करता हूँ.
भैया – क्या करेगा तू ?, देखना कुछ ऐसा वैसा ना हो, कि चुनाव के समय कोई गड़बड़ हो जाए…??
मे – कोई क़ानूनी दाव-पेंच लगाता हूँ, आप चिंता मत करिए…कुछ ना कुछ तो रास्ता निकल ही आएगा…
दूसरे दिन सब लोग अपने-2 काम में जुट गये, हमारे गाओं की पंचायत में और दो छोटे-2 गाओं भी लगे थे,
उनमें से भी एक-एक कॅंडिडेट खड़ा था, लेकिन उनका ज़्यादा प्रभाव उनके अपने गाँव में भी नही था…!
मेने सोनू-मोनू को उसके पीछे लगा दिया अपने तरीक़े से रामदुलारी की कुंडली निकालने के लिए…
रामदुलारी 35 वर्षीया, भरे बदन और हल्के सांवला रंग, मध्यम कद काठी की, अच्छे नैन नक्श वाली महिला थी.. जो अब तक तीन बच्चे अपने भोसड़े से निकाल चुकी थी…
बूढ़े सरपंच से उसके नाजायज़ ताल्लुक़ात भी थे, सुनने में आया कि उनमें से एक दो बच्चा तो सरपंच का भी हो सकता है…
दलितों का टोला गाओं के एक तरफ जहाँ से शहर को जाने वाली सड़क गाओं से बाहर निकलती है वहीं सड़क के दोनो तरफ बसा था…
सुबह- 2 मे कार लेकर शहर की तरफ निकला, सूचना के मुताबिक रामदुलारी रोड के किनारे खड़ी बस का इंतेज़ार कर रही थी…
मेने उसके पास जाकर गाड़ी रोकी, और शीशा नीचे करके उसे पुकारा – अरे दुलारी भौजी ! कैसे खड़ी हो.. सुबह – 2 सड़क पर..?
वो मेरी गाड़ी के पास आई, और झुक कर मेरे से बात करने लगी… उसके बड़े – 2 चुचे उसकी चोली से बाहर झाँकने लगे…वाह क्या मोटे – 2 खरबूजे थे उसके.. देख कर ही लंड अंगड़ाई लेने लगा…
पोस्टमॉर्टम में ड्रग की ज़्यादा मात्रा लेने से साँस अटक जाने से अटॅक आने के कारण मौत का कारण बताया गया…
क्लब में उनकी मौजूदगी के सबूत मिले… अब चूँकि क्लब भी उन जैसे ही किसी बड़ी हस्ती का था, तो उसको क्या आँच आनी थी…और वैसे भी ये हादसा क्लब के बाहर हुआ था….,
पोलीस ने मामले को ड्रग से हुई मौत का मामला बताकर केस क्लोज़ कर दिया… लेकिन कमिशनर के गले से बात नही उतर पा रही थी…!
उसका पॉलिसिया दिमाग़ कह रहा था, कि ये घटना इतनी साधारण नही है, जितना दिखाया गया है…
कुछ दिन तो वो अपने बेटे की मौत के गम में डूबा रहा लेकिन जल्दी ही वो इसकी तह तक पहुँचने के लिए हाथ पैर मारने लगा….!
लेकिन अब पोलीस डिपार्टमेंट में उसकी इज़्ज़त दो कौड़ी की भी नही थी, सो क़ानूनी तौर पर उसके हाथ कुछ लगने वाला नही था…!
अपने गॅंग के लोगों को उसने इसकी छान्बीन के लिए लगाया, लेकिन काफ़ी मसक्कत के बाद भी कोई क्लू उसके हाथ नही लगा…!
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इधर भाभी का सरपंच के चुनाव के लिए नॉमिनेशन फाइल कर दिया गया…एसपी भैया भी कभी-कभार आकर गाओं के लोगों से मिल लिया करते थे, जिसका अपना अलग ही प्रभाव पड़ा…
पुराना सरपंच बुरी तरह भिन्नाया हुआ था, उसने कभी सपने में भी नही सोचा था, कि उसके मुक़ाबले में भी कोई मैदान में उतर सकता है…
उसने लोगों को भरमाने की पूरी कोशिश शुरू करदी… ग़रीबों में पैसे बाँटना, दारू पिलाना, दावतें देना डेली बेसिस पर शुरू कर दिया…
दलित और ग़रीब लोग इससे प्रभावित होना शुरू हो गये, जिनकी गाओं में तादात भी बहुत थी, कुछ तो पहले से ही सरपंच के इशारों पर नाचते थे….
हम दिन भर लोगों से मिलने मिलने में व्यस्त रहते, और शाम को सब लोग इकट्ठा होकर हालातों का जायज़ा लेते थे,
कुछ गाओं मोहल्ले के खास लोग भी हमारे साथ कंधे से कंधा मिलकर प्रचार में जुटे हुए थे…
एक दो बार भाभी को भी हमने गाओं में रिक्शे में बिठाकर घुमा दिया, उनकी प्रेग्नेन्सी की हालत में भी लोगों से मिलने से ख़ासकर महिलाओं पर ख़ासा प्रभाव पड़ा…
आज भी हम सब एक साथ बैठे, चर्चा में लगे हुए थे, कि तभी हमारे साथ के एक रज्जु चाचा, जो मनझले चाचा के बहुत करीबी हैं, बोले –
शंकेर भैया… दलितों के वोट सारे के सारे अपने हाथ से जाते हुए दिखाई दे रहे हैं…अगर वो चले गये तो हमारा जीतना नामुमकिन सा ही हो जाएगा…
मन्झले चाचा – ये क्या बोल रहा है रज्जु ! उन सबने तो हमसे वादा किया है, कि वोट हमें ही देंगे… फिर ये कैसे हो सकता है…?
रज्जु – अरे भाई राकेश, तुम्हें पता नही है, ये क़ौम ऐसी होती है, कि इन्हें खिलाते-पिलाते रहो उसी की बजाते हैं…
तुमसे वादा ज़रूर किया है, लेकिन अंदर की खबर है कि इन्हें सरपंच ने खरीद लिया है…और ये सब मिलकर वोट उसी को देने वाले हैं…
मे – वैसे रज्जु चाचा, इनका कोई एक मुखिया तो होगा जिसकी ये बात मानते होंगे…
रज्जु – है ना ! रामदुलारी… बांके की बीवी, वही है सबकी मुखिया… और वो सरपंच की खासम खास है, उसी ने सबको एकजुट कर रखा है…वो जहाँ कहेगी सब के सब वहीं वोट देंगे…
मे – बांके तो वही है ना जो बड़े भैया के साथ स्कूल में पढ़ता था…
भैया – हां ! पर उसकी साले की अपनी बीवी के आगे एक नही चलती…बहुत चालू पुर्जा है वो औरत…दलितों के मोहल्ले में सबसे ज़्यादा पढ़ी लिखी और होशियार औरत है…
मे – चलो आप लोग सभी अपने वोटों पर नज़र बनाए रखिए, थोड़ी बहुत दावत वैगरह का इंतेज़ाम भी करते रहिए..,
ये भी ज़रूरी है अपने वोटों को बनाए रखने के लिए.., मे उस रामदुलारी का कुछ करता हूँ.
भैया – क्या करेगा तू ?, देखना कुछ ऐसा वैसा ना हो, कि चुनाव के समय कोई गड़बड़ हो जाए…??
मे – कोई क़ानूनी दाव-पेंच लगाता हूँ, आप चिंता मत करिए…कुछ ना कुछ तो रास्ता निकल ही आएगा…
दूसरे दिन सब लोग अपने-2 काम में जुट गये, हमारे गाओं की पंचायत में और दो छोटे-2 गाओं भी लगे थे,
उनमें से भी एक-एक कॅंडिडेट खड़ा था, लेकिन उनका ज़्यादा प्रभाव उनके अपने गाँव में भी नही था…!
मेने सोनू-मोनू को उसके पीछे लगा दिया अपने तरीक़े से रामदुलारी की कुंडली निकालने के लिए…
रामदुलारी 35 वर्षीया, भरे बदन और हल्के सांवला रंग, मध्यम कद काठी की, अच्छे नैन नक्श वाली महिला थी.. जो अब तक तीन बच्चे अपने भोसड़े से निकाल चुकी थी…
बूढ़े सरपंच से उसके नाजायज़ ताल्लुक़ात भी थे, सुनने में आया कि उनमें से एक दो बच्चा तो सरपंच का भी हो सकता है…
दलितों का टोला गाओं के एक तरफ जहाँ से शहर को जाने वाली सड़क गाओं से बाहर निकलती है वहीं सड़क के दोनो तरफ बसा था…
सुबह- 2 मे कार लेकर शहर की तरफ निकला, सूचना के मुताबिक रामदुलारी रोड के किनारे खड़ी बस का इंतेज़ार कर रही थी…
मेने उसके पास जाकर गाड़ी रोकी, और शीशा नीचे करके उसे पुकारा – अरे दुलारी भौजी ! कैसे खड़ी हो.. सुबह – 2 सड़क पर..?
वो मेरी गाड़ी के पास आई, और झुक कर मेरे से बात करने लगी… उसके बड़े – 2 चुचे उसकी चोली से बाहर झाँकने लगे…वाह क्या मोटे – 2 खरबूजे थे उसके.. देख कर ही लंड अंगड़ाई लेने लगा…