hotaks444
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“साली मुझे मारेगी, मैं आज तुम दौनो की यही कबर खोद दूँगा” ---- विवेक चील्ला कर बोला.
ये कह कर उसने पिस्टल मेरी कनपटी पर रख दी और बोला, “अब मैं तुम्हे बताता हूँ कि गोली कैसे चलाई जाती है”
मैने भगवान को याद किया और मन ही मन में प्रेयर की, “हे भगवान अगर अब मुझे मेरे पापो की सज़ा मिल चुकी हो तो मुझे माफ़ कर दो, मेरे चिंटू का ख्याल रखना”
पर अगले ही पल मैने महसूस किया की मेरी कनपटी पर पिस्टल नही है.
मैने देखा कि बिल्लू विवेक के उपर है और पिस्टल मुझ से थोड़ी दूर ज़मीन पर पड़ी है. शायद बिल्लू ने विवेक पर पीछे से हमला किया था, और उसके हाथ से पिस्टल दूर जा गिरी थी.
मैं ज़मीन पर रेंगते हुवे पिस्टल के पास पहुँच गयी.
मैने पिस्टल उठाई ही थी कि विवेक किसी तरह से वाहा से भाग खड़ा हुवा. मैने तुरंत उसकी ओर फाइयर किया और वो गिर गया. इस बार गोली उसकी पीठ पर लगी थी.
बिल्लू ज़मीन पर पड़ा था, वो अपनी राइट लेग को पकड़ कर दर्द से कराह रहा था.
मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और उसकी तरफ पिस्टल तान दी.
“ऐसे नही ऋतु, ऐसे मत मारो मुझे, रूको मैं थोड़ा करीब आ जाता हूँ, तब आराम से निशाना लगा कर मारना, मैं तुम्हारे कदमो में मरना चाहता हूँ” ---- वो दर्द से कराहते हुवे बोला.
“बंद करो ये बकवास बिल्लू, मेरे करीब मत आना, मुझे अब तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, बड़ी चालाकी से बर्बाद किया है तुमने मुझे, आज मैं तुम्हे जींदा नही छ्चोड़ूँगी” ----- मैने चील्ला कर कहा.
“बिल्कुल ऋतु, मैं भी यही चाहता हूँ कि अगर मेरी मौत हो तो तुम्हारे हाथो से हो, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ” --- वो मेरी तरफ रेंगते हुवे बोला.
“रुक जाओ बिल्लू वरना मैं गोली चला दूँगी” ---- मैने फिर से उसे चील्ला कर कहा.
पर वो नही रुका और ज़मीन पर रेंगते हुवे मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने उसके उपर फाइयर किया पर गोली ना जाने कहा लगी, क्योंकि वो रुका नही और मेरे कदमो के बिल्कुल पास आ कर लेट गया.
“कहा था ना ऐसे मत मारो, मरने वाले की आखरी खावहिश का ध्यान रखा जाता है, लो अब मारो मुझे, गोली सीधी सर में मारो, मैं तुम्हारे कदमो में ही मरना चाहता हूँ” ---- बिल्लू ने मेरे कदमो पर हाथ रख कर कहा.
मैने कहा, “बंद करो ये नाटक बिल्लू, कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हारी बातो के जाल में नही फसूंगी”
बिल्लू ने मेरे पाँव पर सर रख दिया और बोला, “नाटक नही है ये, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ, मैं मानता हूँ. मुंबई मैं बस तुम्हारे लिए ही आया हूँ. पीछले हफ्ते से रोज छुप छुप कर तुम्हे देख रहा हूँ. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी मेरी. पर आज मैने जब तुम्हे विवेक की गाड़ी में बैठते देखा तो मैने तुम्हारा पीछा किया. मुझे डर था कि विवेक ज़रूर कोई ना कोई घिनोनी हरकत करेगा. पर रास्ते में मेरा एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण यहा पहुँचने में देर हो गयी. विवेक की गाड़ी मुझ से काफ़ी आगे निकल कर आँख से ओझल हो चुकी थी. मैं हर तरफ तुम्हे ढूंड रहा था. जब इस जंगल की तरफ आया तो देखा कि बाहर सड़क पर विवेक की गाड़ी खड़ी थी, उसी से मुझे लगा कि वो तुम्हे ज़रूर यहा लाया है”
“इस सब से तुम क्या साबित करना चाहते हो बिल्लू, कुछ भी करलो पर मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी, तुमने मेरे साथ बहुत गंदा खेल खेला है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
ये कह कर उसने पिस्टल मेरी कनपटी पर रख दी और बोला, “अब मैं तुम्हे बताता हूँ कि गोली कैसे चलाई जाती है”
मैने भगवान को याद किया और मन ही मन में प्रेयर की, “हे भगवान अगर अब मुझे मेरे पापो की सज़ा मिल चुकी हो तो मुझे माफ़ कर दो, मेरे चिंटू का ख्याल रखना”
पर अगले ही पल मैने महसूस किया की मेरी कनपटी पर पिस्टल नही है.
मैने देखा कि बिल्लू विवेक के उपर है और पिस्टल मुझ से थोड़ी दूर ज़मीन पर पड़ी है. शायद बिल्लू ने विवेक पर पीछे से हमला किया था, और उसके हाथ से पिस्टल दूर जा गिरी थी.
मैं ज़मीन पर रेंगते हुवे पिस्टल के पास पहुँच गयी.
मैने पिस्टल उठाई ही थी कि विवेक किसी तरह से वाहा से भाग खड़ा हुवा. मैने तुरंत उसकी ओर फाइयर किया और वो गिर गया. इस बार गोली उसकी पीठ पर लगी थी.
बिल्लू ज़मीन पर पड़ा था, वो अपनी राइट लेग को पकड़ कर दर्द से कराह रहा था.
मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और उसकी तरफ पिस्टल तान दी.
“ऐसे नही ऋतु, ऐसे मत मारो मुझे, रूको मैं थोड़ा करीब आ जाता हूँ, तब आराम से निशाना लगा कर मारना, मैं तुम्हारे कदमो में मरना चाहता हूँ” ---- वो दर्द से कराहते हुवे बोला.
“बंद करो ये बकवास बिल्लू, मेरे करीब मत आना, मुझे अब तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, बड़ी चालाकी से बर्बाद किया है तुमने मुझे, आज मैं तुम्हे जींदा नही छ्चोड़ूँगी” ----- मैने चील्ला कर कहा.
“बिल्कुल ऋतु, मैं भी यही चाहता हूँ कि अगर मेरी मौत हो तो तुम्हारे हाथो से हो, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ” --- वो मेरी तरफ रेंगते हुवे बोला.
“रुक जाओ बिल्लू वरना मैं गोली चला दूँगी” ---- मैने फिर से उसे चील्ला कर कहा.
पर वो नही रुका और ज़मीन पर रेंगते हुवे मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने उसके उपर फाइयर किया पर गोली ना जाने कहा लगी, क्योंकि वो रुका नही और मेरे कदमो के बिल्कुल पास आ कर लेट गया.
“कहा था ना ऐसे मत मारो, मरने वाले की आखरी खावहिश का ध्यान रखा जाता है, लो अब मारो मुझे, गोली सीधी सर में मारो, मैं तुम्हारे कदमो में ही मरना चाहता हूँ” ---- बिल्लू ने मेरे कदमो पर हाथ रख कर कहा.
मैने कहा, “बंद करो ये नाटक बिल्लू, कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हारी बातो के जाल में नही फसूंगी”
बिल्लू ने मेरे पाँव पर सर रख दिया और बोला, “नाटक नही है ये, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ, मैं मानता हूँ. मुंबई मैं बस तुम्हारे लिए ही आया हूँ. पीछले हफ्ते से रोज छुप छुप कर तुम्हे देख रहा हूँ. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी मेरी. पर आज मैने जब तुम्हे विवेक की गाड़ी में बैठते देखा तो मैने तुम्हारा पीछा किया. मुझे डर था कि विवेक ज़रूर कोई ना कोई घिनोनी हरकत करेगा. पर रास्ते में मेरा एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण यहा पहुँचने में देर हो गयी. विवेक की गाड़ी मुझ से काफ़ी आगे निकल कर आँख से ओझल हो चुकी थी. मैं हर तरफ तुम्हे ढूंड रहा था. जब इस जंगल की तरफ आया तो देखा कि बाहर सड़क पर विवेक की गाड़ी खड़ी थी, उसी से मुझे लगा कि वो तुम्हे ज़रूर यहा लाया है”
“इस सब से तुम क्या साबित करना चाहते हो बिल्लू, कुछ भी करलो पर मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी, तुमने मेरे साथ बहुत गंदा खेल खेला है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.