hotaks444
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चौधरैयन ने जब आया को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई. हस्ती हुई बोली "क्या रे कैसे रास्ता भूल गई…कहा गायब थी….थोड़ा जल्दी आती अब तो मैने नहा भी लिया"
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली "का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…"
"क्यों क्या हुआ तालाब पर…?"
"छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू.."
"आररी नही रहने दे…" पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली "मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो…."
"उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा.."
"ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…"
"नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा"
"सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है…." बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
"अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…"
"मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…" कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
"चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है"
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली "बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…"
"चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र रखे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता" (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
"पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर….." शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली "क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में"
"अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल….."
बस इतना ही काफ़ी था, उर्मिला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली ""एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…" शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा "मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…" शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई "मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…". शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर अपने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली " इधर आ ज़रा…". शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी. ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला "जी….मा क्या बात है…" मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
"क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…"
"नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…" अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली "तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है". मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला "कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…"
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली "का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…"
"क्यों क्या हुआ तालाब पर…?"
"छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू.."
"आररी नही रहने दे…" पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली "मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो…."
"उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा.."
"ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…"
"नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा"
"सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है…." बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
"अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…"
"मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…" कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
"चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है"
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली "बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…"
"चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र रखे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता" (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
"पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर….." शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली "क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में"
"अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल….."
बस इतना ही काफ़ी था, उर्मिला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली ""एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…" शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा "मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…" शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई "मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…". शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर अपने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली " इधर आ ज़रा…". शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी. ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला "जी….मा क्या बात है…" मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
"क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…"
"नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…" अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली "तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है". मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला "कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…"