desiaks
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“मेरा अंदाज ठीक निकला ।” फिर मैं सीधा होकर बोला, “ये 22 कैलीबर की ही गोली है । ऐसी ही एक गोली मरनेवाले के ऐन दिल में से गुजर कर गई है जो कि इसकी बदकिस्मती है । 22 कैलीबर की गोली इसे कहीं भी और लगी होती तो ये हरगिज न मरा होता ।”
“इसे लगी गोली चलाई गई छ: गोलियों में से आखिरी होगी ।”
“क्यों ?” मैं सकपकाकर बोला ।
“वीर मेरे, अगर इसे पैल्ली ही गोली लग गई होती तो चलाने वाले ने और गोलियां काहे को चलाई होतीं !”
“दुरुस्त, लेकिन अगर इस आखिरी गोली से पहले पांच और गोलियां इस पर चल चुकी थीं तो भी ये कुर्सी पर टिका ही क्यों बैठा रहा ? पहली गोली चलते ही इसने उठकर भागने की या कहीं ओट लेने की या अपने हमलावर पर झपटने की कोशिश क्यों नहीं की ?”
“क्यों नहीं की ?” वो उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“क्योंकि इसे ऐसा कुछ करने का मौका ही नहीं मिला । गोलियां यूं आनन-फानन चलीं कि पलक झपकते ही सब खेल खत्म हो गया । किसी ने ताककर इसका निशाना लगाया होता तो वो यूं चलाई गई अपनी पहली गोली का नतीजा देखने के लिए ठिठकता और निशाना चूक गया पाकर फिर दूसरी गोली चलाता । तब मरने वाले को अपने बचाव के लिए हरकत में आने का मौका मिल जाता और वो कुछ न कुछ करता । निशाना चूका न होता तो हमलावर और गोलियां न चलाता लेकिन यहां तो ये हुआ मालूम होता है कि किसी ने रिवॉल्वर चलानी शुरू की तो तभी बंद की जबकि गोलियां खत्म हो गई । या यूं कहो कि गोलियां खत्म हो जाने पर रिवॉल्वर चलनी खुद ही बंद हो गई । यूं रिवॉल्वर का रुख ही सिर्फ मकतूल की तरफ रहा होगा, उससे कोई निशाना साधकर गोलियां चलाने की कोशिश ही नहीं की गई होगी । निशाना साधकर गोलियां चलाई गई होतीं तो बावजूद मकतूल के दिल का निशाना चूक जाने से गोलियां यूं दायें-बायें इधर-उधर बिखरती न चली गई होतीं ।”
“फिर तो ये काम किसी अनाड़ी का हुआ ?”
“या किसी औरत का जिसने कि रिवॉल्वर का रुख मरने वाले की ओर करके आंखें बंद कर ली होगी और घोड़ा खींचना शुरू कर दिया होगा ।”
“औरत !”
“बाइस कैलीबर की रिवॉल्वर वैसे भी जनाना हथियार माना जाता है । यह एक नन्हीं-सी रिवॉल्वर होती है जो कि जनाना पर्स में बड़ी सहूलियत से समा जाती है । जनाना डिपार्टमेंट में क्या दखल था तुम्हारे भाई का ?”
“बहुत गहरा । औरतों का रसिया था । एक औरत से मन नहीं भरता था इसका । नाइट क्लब में जो खूबसूरत औरत आती थी, उसे पटाने के लिए उसके पीछे पड़ जाता था ।”
“कामयाब भी होता था ?”
“हां । अमूमन । आखिर खूबसूरत नौजवान था ।”
“मेरी तरह ?”
“ऐन तेरी तरह ।”
“हूं ।”
“अभी इतना ही नहीं, क्लब की होस्टेसों और डांसरों के भी पीछे पड़ा रहता था ।”
“औरतों के मामले में बाज लोगों का हाजमा कुछ खास ही तगड़ा होता है । कई हज्म कर जाते हैं । डकार भी नहीं लेते ।”
“ये औरतों के नहीं, औरतें भी इसके पीछे पड़ीं रहती थीं ।”
“अच्छा !”
“हां । सुनकर हैरान होवोगे, आजकल ऐसी एक लड़की बतौर हाउसकीपर सारा दिन इसकी खिदमत करती है । सिर्फ इसलिए क्योकि वो इस पर फिदा है ।”
“कौन है वो लड़की ?”
“सुजाता मेहरा नाम है । नाइट क्लब में चिट क्लर्क थी । क्लब बंद हो गई तो यहां आ गई । सारा घर संभालती है । शशि कहता था तो उसका और उसके मेहमानों का खाना तक पका देती थी ।”
“वो यहां रोज आती है?”
“फिलहाल तो आती ही है रोज ।”
“सारा दिन यहीं रहती है ?”
“हां । शशि कहे तो सारी रात भी ।”
“अगर शशि यहां न हो ?”
“तो भी । उसके पास यहीं की एक चावी पक्के तौर पर है ।”
“इस वक्त तो वो यहां नहीं है ।”
“अमूमन ग्यारह बजे तक आती है ।”
“कमाल है ! तुम्हारा भाई तो मेरे से भी बड़ा हरामी निकला । जरूर सूरतें मिलती हों तो फितरत भी मिलने लगती है ।”
“कोल्ली !” वो प्रशंसात्मक स्वर में बोला, “यानी कि तेरी भी कई गोपियां हैं !”
“हैं तो नहीं लेकिन हों, ऐसी ख्वाहिश रखता तो हूं । बहरहाल वो किस्सा फिर कभी । तुम ये बताओ कि इस लड़की सुजाता ने ही तो किसी बात पर इससे खफा होकर इसकी दुक्की नहीं पीट दी ?”
“अरे, नहीं । वो लड़की तो इस पर फिदा थी, इसके हाथों से चुग्गा चुगती थी । अठारहवीं सदी की बीवी की तरह इसकी खिदमत करती थी ।”
”सिर्फ करवा चौथ का व्रत रुखने की कसर रह जाती होगी ।” मैं व्यंग्यपूर्ण स्वर मैं बोला ।
“शायद वो भी रखती ।”
“क्या मतलब ?”
“अभी करवा चौथ का त्योहार आया जो नहीं । कुछ ही दिन तो हुए हैं अभी क्लब को ताला पड़े ।”
“हूं । बहरहाल वो नहीं तो कोई और गोपी खास ही खफा हो गई थी इससे जो इस पर गोलियों की बरसात कर बैठी ।”
“मुझे यकीन नहीं आता ।”
“किस बात का ?”
“कि किसी औरत जात की इतनी मजाल हुई हो कि इसकी जान लेने की जुर्रत कर बैठी हो । औरतें खौफ खाती थीं इससे । औरतें क्या, हर कोई खौफ खाता था इससे । लोग क्या जानते नहीं थे कि ये किसका भाई था !”
“लेकिन बाइस कैलीबर की रिवॉल्वर.....”
“होगा जनाना हथियार । जनाने हथियार के मर्द के इस्तेमाल पर कोई पाबन्दी तो नहीं ।”
“हां । पाबन्दी तो नहीं है ।”
“लेकिन सवाल ये है इसका कत्ल किसने किया ? क्यों किया ? इसका तो कोई दुश्मन नहीं था । दुश्मन तो सब मेरे थे । यूं किसी ने मुझ पर गोलियां बरसाई होतीं तो ये कतई हैरानी की बात न होती ।”
“तुमने अभी खुद कहा था कि कुछ अरसे से शशिकांत को कत्ल कर दिए जाने की धमकियां मुतवातर मिल रही थीं ।”
“कहा था लेकिन झूठ कहा था ।”
“क्या ?”
“वो झूठ मेरा ही फैलाया हुआ था ताकि पुलिस तफ्तीश करे तो बात में दम दिखाई दे । वो झूठ हमारी उस स्कीम का हिस्सा था जिस पर अमल करके हमने तुझे शशिकांत बना के तेरा कत्ल करना था और बीमे की रकम क्लेम करनी थी । असल में मेरी जरायमपेशा हरकतों से शशिकांत का कुछ लेना-देना नहीं था । इसे तो लोग ठीक से जानते तक नहीं थे । दादा मैं था, गैंगस्टर मैं था, अंडरवर्ल्ड डान मैं था, शशिकांत नहीं । वार होना था तो मुझ पर होना चाहिए था न कि इस पर ।”
“तुम पर वार बाइस कैलीबर के खिलौने से थोड़े ही होता ! तुम पर तो ए के फोर्टी सैवन राइफल की या मशीनगन की गोलियां बरसाई जातीं ।”
“इसे लगी गोली चलाई गई छ: गोलियों में से आखिरी होगी ।”
“क्यों ?” मैं सकपकाकर बोला ।
“वीर मेरे, अगर इसे पैल्ली ही गोली लग गई होती तो चलाने वाले ने और गोलियां काहे को चलाई होतीं !”
“दुरुस्त, लेकिन अगर इस आखिरी गोली से पहले पांच और गोलियां इस पर चल चुकी थीं तो भी ये कुर्सी पर टिका ही क्यों बैठा रहा ? पहली गोली चलते ही इसने उठकर भागने की या कहीं ओट लेने की या अपने हमलावर पर झपटने की कोशिश क्यों नहीं की ?”
“क्यों नहीं की ?” वो उलझनपूर्ण स्वर में बोला ।
“क्योंकि इसे ऐसा कुछ करने का मौका ही नहीं मिला । गोलियां यूं आनन-फानन चलीं कि पलक झपकते ही सब खेल खत्म हो गया । किसी ने ताककर इसका निशाना लगाया होता तो वो यूं चलाई गई अपनी पहली गोली का नतीजा देखने के लिए ठिठकता और निशाना चूक गया पाकर फिर दूसरी गोली चलाता । तब मरने वाले को अपने बचाव के लिए हरकत में आने का मौका मिल जाता और वो कुछ न कुछ करता । निशाना चूका न होता तो हमलावर और गोलियां न चलाता लेकिन यहां तो ये हुआ मालूम होता है कि किसी ने रिवॉल्वर चलानी शुरू की तो तभी बंद की जबकि गोलियां खत्म हो गई । या यूं कहो कि गोलियां खत्म हो जाने पर रिवॉल्वर चलनी खुद ही बंद हो गई । यूं रिवॉल्वर का रुख ही सिर्फ मकतूल की तरफ रहा होगा, उससे कोई निशाना साधकर गोलियां चलाने की कोशिश ही नहीं की गई होगी । निशाना साधकर गोलियां चलाई गई होतीं तो बावजूद मकतूल के दिल का निशाना चूक जाने से गोलियां यूं दायें-बायें इधर-उधर बिखरती न चली गई होतीं ।”
“फिर तो ये काम किसी अनाड़ी का हुआ ?”
“या किसी औरत का जिसने कि रिवॉल्वर का रुख मरने वाले की ओर करके आंखें बंद कर ली होगी और घोड़ा खींचना शुरू कर दिया होगा ।”
“औरत !”
“बाइस कैलीबर की रिवॉल्वर वैसे भी जनाना हथियार माना जाता है । यह एक नन्हीं-सी रिवॉल्वर होती है जो कि जनाना पर्स में बड़ी सहूलियत से समा जाती है । जनाना डिपार्टमेंट में क्या दखल था तुम्हारे भाई का ?”
“बहुत गहरा । औरतों का रसिया था । एक औरत से मन नहीं भरता था इसका । नाइट क्लब में जो खूबसूरत औरत आती थी, उसे पटाने के लिए उसके पीछे पड़ जाता था ।”
“कामयाब भी होता था ?”
“हां । अमूमन । आखिर खूबसूरत नौजवान था ।”
“मेरी तरह ?”
“ऐन तेरी तरह ।”
“हूं ।”
“अभी इतना ही नहीं, क्लब की होस्टेसों और डांसरों के भी पीछे पड़ा रहता था ।”
“औरतों के मामले में बाज लोगों का हाजमा कुछ खास ही तगड़ा होता है । कई हज्म कर जाते हैं । डकार भी नहीं लेते ।”
“ये औरतों के नहीं, औरतें भी इसके पीछे पड़ीं रहती थीं ।”
“अच्छा !”
“हां । सुनकर हैरान होवोगे, आजकल ऐसी एक लड़की बतौर हाउसकीपर सारा दिन इसकी खिदमत करती है । सिर्फ इसलिए क्योकि वो इस पर फिदा है ।”
“कौन है वो लड़की ?”
“सुजाता मेहरा नाम है । नाइट क्लब में चिट क्लर्क थी । क्लब बंद हो गई तो यहां आ गई । सारा घर संभालती है । शशि कहता था तो उसका और उसके मेहमानों का खाना तक पका देती थी ।”
“वो यहां रोज आती है?”
“फिलहाल तो आती ही है रोज ।”
“सारा दिन यहीं रहती है ?”
“हां । शशि कहे तो सारी रात भी ।”
“अगर शशि यहां न हो ?”
“तो भी । उसके पास यहीं की एक चावी पक्के तौर पर है ।”
“इस वक्त तो वो यहां नहीं है ।”
“अमूमन ग्यारह बजे तक आती है ।”
“कमाल है ! तुम्हारा भाई तो मेरे से भी बड़ा हरामी निकला । जरूर सूरतें मिलती हों तो फितरत भी मिलने लगती है ।”
“कोल्ली !” वो प्रशंसात्मक स्वर में बोला, “यानी कि तेरी भी कई गोपियां हैं !”
“हैं तो नहीं लेकिन हों, ऐसी ख्वाहिश रखता तो हूं । बहरहाल वो किस्सा फिर कभी । तुम ये बताओ कि इस लड़की सुजाता ने ही तो किसी बात पर इससे खफा होकर इसकी दुक्की नहीं पीट दी ?”
“अरे, नहीं । वो लड़की तो इस पर फिदा थी, इसके हाथों से चुग्गा चुगती थी । अठारहवीं सदी की बीवी की तरह इसकी खिदमत करती थी ।”
”सिर्फ करवा चौथ का व्रत रुखने की कसर रह जाती होगी ।” मैं व्यंग्यपूर्ण स्वर मैं बोला ।
“शायद वो भी रखती ।”
“क्या मतलब ?”
“अभी करवा चौथ का त्योहार आया जो नहीं । कुछ ही दिन तो हुए हैं अभी क्लब को ताला पड़े ।”
“हूं । बहरहाल वो नहीं तो कोई और गोपी खास ही खफा हो गई थी इससे जो इस पर गोलियों की बरसात कर बैठी ।”
“मुझे यकीन नहीं आता ।”
“किस बात का ?”
“कि किसी औरत जात की इतनी मजाल हुई हो कि इसकी जान लेने की जुर्रत कर बैठी हो । औरतें खौफ खाती थीं इससे । औरतें क्या, हर कोई खौफ खाता था इससे । लोग क्या जानते नहीं थे कि ये किसका भाई था !”
“लेकिन बाइस कैलीबर की रिवॉल्वर.....”
“होगा जनाना हथियार । जनाने हथियार के मर्द के इस्तेमाल पर कोई पाबन्दी तो नहीं ।”
“हां । पाबन्दी तो नहीं है ।”
“लेकिन सवाल ये है इसका कत्ल किसने किया ? क्यों किया ? इसका तो कोई दुश्मन नहीं था । दुश्मन तो सब मेरे थे । यूं किसी ने मुझ पर गोलियां बरसाई होतीं तो ये कतई हैरानी की बात न होती ।”
“तुमने अभी खुद कहा था कि कुछ अरसे से शशिकांत को कत्ल कर दिए जाने की धमकियां मुतवातर मिल रही थीं ।”
“कहा था लेकिन झूठ कहा था ।”
“क्या ?”
“वो झूठ मेरा ही फैलाया हुआ था ताकि पुलिस तफ्तीश करे तो बात में दम दिखाई दे । वो झूठ हमारी उस स्कीम का हिस्सा था जिस पर अमल करके हमने तुझे शशिकांत बना के तेरा कत्ल करना था और बीमे की रकम क्लेम करनी थी । असल में मेरी जरायमपेशा हरकतों से शशिकांत का कुछ लेना-देना नहीं था । इसे तो लोग ठीक से जानते तक नहीं थे । दादा मैं था, गैंगस्टर मैं था, अंडरवर्ल्ड डान मैं था, शशिकांत नहीं । वार होना था तो मुझ पर होना चाहिए था न कि इस पर ।”
“तुम पर वार बाइस कैलीबर के खिलौने से थोड़े ही होता ! तुम पर तो ए के फोर्टी सैवन राइफल की या मशीनगन की गोलियां बरसाई जातीं ।”