Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 10 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“आह राजा, ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे स्वामी, ओह मेरे गांड़ के रसिया।” मेरे मुंह से आनन्द के मारे सिसकारियां निकलने लगीं। हल्का हल्का मीठा मीठा दर्द जरूर हो रहा था किन्तु आनंद भी उतना ही मिल रहा था। धीरे उसने पूरा लौड़ा मेरी गांड़ में ठेल दिया।

“आह ओह ओ्ओ्ओ्ओह रानी, ओह मेरी जान, मेरी प्यारी रंडी कुतिया उफ़, मजा आ रहा है,” वह मस्ती में भर कर बोल उठा। आज मुझे आरंभ में हल्की पीड़ा हुई किंतु कुछ ही पलों में गायब हो गया और फिर कुछ भी तकलीफ का अनुभव नहीं हो रहा था, या तो उस मलहम का असर था या कामोत्तेजना का असर था, मैं अपनी गांड़ में उनके लंड के घर्षण से आनंद विभोर हो रहा था। वह पूरे जोश से घपाघप चोदे जा रहा था और करीब आधे घंटे बाद मुझे कस के जकड़ कर मेरी गांड़ में अपना मदन रस उगलने लगा। उसका गरमागरम लावा मेरी गांड़ में छर्र छर्र भरता गया और मुझे कर सराबोर कर दिया। इस दौरान उन्होंने मेरे लंड को भी मूठ मार कर मुझे झाड़ दिया था। हम दोनों ने आज चुदाई का भरपूर लुत्फ उठाया। फिर मैं सुखद अहसास के साथ उनके बनमानुषि नग्न देह से छिपकली की तरह चिपक कर निद्रा के आगोश में चला गया।

अगले दिन मुझे काफी राहत थी और चलने फिरने में भी कोई खास कष्ट नहीं हो रहा था। तीसरी रात को खाना खाने के बाद उन्होंने एक पैकेट ला कर मुझे दिया और कहा, “इसमें कुछ कपड़े हैं तुम्हारे लिए, यह लड़कियों के कपड़े हैं। मैं चाहता हूं कि आज तुम ये कपड़े पहनो और लड़कियों की तरह सज जाओ। तुम लड़कियों के कपड़ों में लड़कियों से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत दिखोगे। आज मैं तुम्हें इन्हीं कपड़ों में प्यार करूंगा।” फिर वे नीचे चले गए। मैं रोमांचित हो उठा। मैं फटाफट कपड़े निकाला तो देखा, लहंगा, चोली और चुन्नी था। अपने सारे कपड़े उतार कर जब मैं लहंगा चोली पहनने लगा तो मुझे ऐसा अहसास हो रहा था कि मैं सचमुच की लड़की हूं। कपड़े ठीक मेरी ही साईज के थे। चोली पहनने में थोड़ी दिक्कत हुई किंतु अंततः ठीक-ठाक पहनने में सफल हो गया। फिर जब मैं ने दर्पण में खुद को देखा तो शर्म के मारे पानी पानी हो उठा। सचमुच में मैं बहुत खूबसूरत लड़की में परिवर्तित हो चुका था। पैकेट में पाउडर और लिपस्टिक भी था, जिसे मैं ने बड़ी सावधानी से इस्तेमाल किया और मैं अब क़यामत ढा रहा था। उस समय हिप्पी कट लंबे बालों का प्रचलन था इसलिए घुंघराले बालों के बावजूद करीने से अपने लंबे बाल संवारने के बाद तो मैं पूरी तरह बिजली गिराने को तैयार हो गया। करीब साढ़े नौ बजे छगन अंकल ऊपर आए तो मुझे देख कर उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि इतनी खूबसूरत लड़की उनका इंतजार कर रही है। मैं किसी नयी नवेली दुल्हन की तरह लजा रहा था।

धीरे धीरे वे मेरे पास आए और मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर कर कुछ पल अविश्वसनीय नजरों से देखते रहे, “ओह मेरी रानी, कितनी खूबसूरत हो। मैं कितना खुशनसीब इनसान हूं कि मुझे तुझ जैसी परी मिल गई।” फिर धीरे से अपने मोटे-मोटे होंठों से मेरी गुलाब की पंखुड़ियों की तरह होठों पर अपना प्रेम चिन्ह अंकित कर दिया। मैं विभोर हो गया। मेरी पलकों पर चुम्बन अंकित किया। आहिस्ता आहिस्ता मेरी चोली को खोलने लगे और मेरी कमर के ऊपरी हिस्से को निर्वस्त्र कर दिया। फिर मेरे सीने के उभारों पर अपने होंठ रख कर चूसने लगे।
 
“ओह, ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा, उफ़ उफ़ आह मां” मैं सिसक उठा। फिर चूमते हुए मेरे पेट से हो कर नाभि की ओर चले गए। मैं बता नहीं सकता कि उस वक्त मैं किस तरह भयानक वासना की आग में जल रहा था। धीरे धीरे उन्होंने मेरा लहंगा भी उतार दिया। मैं जान बूझ कर अंदर कुछ नहीं पहना था। मैं बिल्कुल नंगा हो गया। पहले उन्होंने मेरे लंड को चूसना शुरू किया फिर धीरे धीरे मुझे पलट दिया और मेरी गांड़ की गोलाईयों को चूमने लगे। फिर मेरे पैरों को फैला कर मेरी गुदा द्वार पर होंठ रख कर चूमने लगे और धीरे धीरे अपनी जीभ गुदा मार्ग में डाल कर अंदर-बाहर करने लगे। यह सब मेरी बर्दाश्त के बाहर था, उफ्फ ओह ओ्ओ्ओ्ओह वह आनंद का सागर, जिसमें मैं डूबता जा रहा था। मैं भी उत्तेजित हो कर अपनी गांड़ ऊपर उछालने लग गया था। उसके बाद जो हुआ वह तो मेरे लिए यादगार रात बन कर रह गया। उन्होंने उस रात तीन बार मेरे साथ संभोग किया, कोई भी मुद्रा नहीं छोड़ा। करीब सवेरे तीन बजे तक जी भर कर हमने चुदाई का भरपूर मजा लिया और निढाल हो कर इतनी गहरी नींद में सोए कि सीधे दस बजे बड़ी मुश्किल से नींद खुली। ओह ओ्ओ्ओ्ओह इतनी खुशी, शब्दों में बयां करना असंभव था।

सवेरे उठते उठते जगन अंकल ने मुझे बांहों में भर कर जी भर के चूमा और बोले, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरी जान, तूने मुझे पागल कर दिया, उफ़ अब तक मुझे तू क्यों नहीं मिला मेरी छम्मकछल्लो।”

“ओह राजा, मेरे रसिया, आपने मुझे नयी दुनिया का दर्शन करा दिया, मैं तो निछावर हो गया। आप ही मेरे बलमा, आप ही मेरे स्वमी हो,” मैं भावावेश में बोल उठा।

उसके बाद मैं एक हफ्ते में ही छगन अंकल की चुदाई से पूरा माहिर गांडू बन गया। वहां रहते रहते मुझे गांड़ मरवाने की आदत हो गई। मुन्ना, कल्लू और रामू को तो पता ही था कि मेरे साथ क्या हो रहा है, मेरे हाव भाव से भी उन्हें पता चल रहा था कि मैं गांड़ मरवाने का अभ्यस्त हो चुका हूं और मेरे साथ जो कुछ हो रहा है उससे मैं अत्यंत खुश था।

दो तीन दिनों में ही मैं मुन्ना, कल्लू और रामू से काफी घुल मिल गया था। तीनों अनाथ थे जिन्हें छगन अंकल ने सड़क से उठा कर पालन पोषण किया था और अपने होटल में काम के लिए रख लिया था। वे तीनों वहीं रहते थे और होटल के निचले तल्ले में उत्तर की ओर बने एक बड़े से कमरे में सोते थे। करीब एक हफ्ते बाद छगन अंकल किसी काम से शाम के समय कलकत्ता गये और जाते जाते बोल गये कि वे दूसरे दिन सुबह वापस आएंगे। कल्लू को खास तौर से हिदायत दे कर गए कि मेरा ख्याल रखे। उनके जाते ही कल्लू मेरे पास आया और मुझसे कहा, “अशोक भाई, तू तो मालिक को खूब मज़ा दे रहा है, हमें भी कभी अपनी गांड़ चोदने दे ना। जब से तुम्हें देखा है, चोदने का बहुत मन करता है मगर मालिक के डर से हिम्मत नहीं हो रहा था।”

मैं थोड़ा शरमा गया और बोला, “तुम लोग भी ना बस?”
 
“हां अशोक भाई, तू है ही इतना सुंदर कि कोई भी तुझे एक बार देख लेगा तो देखता ही रह जाएगा। लड़कियां भी तेरे सामने फेल हैं। मालिक के सामने हमारी हिम्मत नहीं हो रही थी। आज मौका मिला है तो हम अपने मन की बात तुझे बता रहे हैं। अगर तू ना कहेगा तो कोई बात नहीं, लेकिन यह बात मालिक को मत बताना कि मैं ने तुमसे ऐसा बोला था, वरना हमें वह यहां से भगा देगा।” इतना कह कर आशापूर्ण नजरों से मुझे देखने लगा। अब तक मुन्ना और रामू भी वहां आ चुके थे। उन्हें भी पता था कि हमारे बीच क्या बातें हो रही थीं। मुझे चुप देख कर मुन्ना तपाक से बोला, “बोल ना अशोक, हां तो हां या ना तो ना।” मैं उन तीनों के चेहरों को देखा, कैसी बेकरारी भरी आशा के साथ मुझे देख रहे थे। वैसे भी हफ्ते भर में रोजाना चुदाई से जैसे मुझे चुदवाने की आदत सी पड़ गई थी और ऐसी हालत में आज रात छगन अंकल का बाहर रहना मुझे बहुत खल रहा था। मैं कुछ पल सोचा और मन ही मन बोला कि चलो आज छगन अंकल न सही, क्यों न इन्हीं के साथ मजा लिया जाए।

“हां भाई हां,” मैं शरमाते हुए इतना ही बोला और ऊपर तल्ले की ओर भागा। इतना सुनते ही उनकी खुशी का पारावार न रहा। रात को खाना खाने के लिए नीचे आया और सिर झुका कर खाना खाता रहा और खाना खत्म कर सीधे ऊपर भाग गया। ऊपर जा कर जब तक वे बर्तन वगैरह धो धा कर होटल बंद कर ऊपर आते, मैं लहंगा चोली में सज संवर कर बैठ कर उनका इंतजार करने लगा। जैसे ही वे ऊपर आए और उनकी नजर मुझ पर पड़ी, वे भौंचक रह गए कि एकाएक इतनी खूबसूरत लड़की यहां पर कैसे आ गई है। रामू उनमें सबसे बड़ा था, करीब बीस साल का लड़का, सांवला, उनकी तुलना में थोड़ा मोटा और कद करीब पांच फुट आठ इंच रहा होगा। बाकी दोनों मुन्ना और कल्लू करीब पांच पांच फुट के छरहरे बदन के लड़के थे। कल्लू अपने नाम के अनुरूप काला और मुन्ना गेहुंआ रंग का था। वे तीनों धीरे धीरे मेरे पास आए और गौर से मुझे देखने लगे, उनकी आंखों में वासना की लहरें हिलोरें मार रही थीं। वे तीनों सिर्फ छोटे छोटे हाफ पैंट और बनियान पहने हुए थे। मुन्ना और कल्लू के सीने सपाट थे लेकिन रामू का सीना मर्दों की तरह चौड़ा और उभरा हुआ था।

“अरे ये तो अपना अशोक है” मुन्ना के मुह से निकला।

“अशोक मत बोल रे, अशु बोल, देख नहीं रहा, हमारे लिए यह अशोक से अशु बनी है, ओह मेरी जान, तू इतनी खूबसूरत है हमें तो पता ही नहीं था।” रामू मेरी पारदर्शक चुन्नी को एक हाथ से ऊपर उठाता हुआ बोला। फिर आहिस्ते से मेरे बगल में बैठ गया और मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर मेरे गुलाबी होंठों को चूमने लगा। मैं भी अपने होंठों को हल्के से खोल कर उसके चुंबन का रसास्वादन करने लगा। मुन्ना और कल्लू तो इतने उत्तेजित हो गए थे कि आव देखा न ताव, पलक झपकते ही अपने पैंट बनियान खोल कर मादरजात नंगे हो गए। उन दोनों के लंड करीब पांच पांच इंच लंबे और डेढ़ इंच मोटे रहे होंगे, टनटनाए हुए खड़े मुझे सलामी दे रहे थे। वे भी अब मेरे पास आ चुके थे। मैं ने खुद को पूरी तरह उनके हवाले कर दिया और उनके हर कृत्यों के लिए अपने मन को तैयार कर लिया था। मेरे पीछे मुन्ना आया और मेरे सीने के उभारों को चूचियों की तरह सहलाने और दबाने लगा। मेरे एक हाथ में कल्लू ने अपना लौड़ा पकड़ा दिया और हस्तमैथुन करने लगा। इधर धीरे धीरे रामू मेरी चोली खोलने लगा और कुछ ही देर में मेरी चोली खोल कर अलग कर दिया। अब मैं कमर के ऊपर पूरा नंगा था। मेरे चूचियों सरीखे सीने के उभार उत्तेजना के मारे तन गये थे। इधर कल्लू मेरे हाथ में अपना लौड़ा आगे पीछे कर रहा था और मैं अपने हाथ का छल्ला बना कर उसे हस्त मैथुन का पूरा मज़ा देने की कोशिश कर रहा था। रामू अब मेरे लहंगे को उतारने लगा। धीरे धीरे उसने मुझे पूरी तरह नंगा कर दिया। अब मुन्ना मेरी चूचियों को दबाना छोड़ कर अपना लौड़ा मेरे मुंह के पास ले आया। मैं समझ गया कि उसे मुझसे मुख मैथुन की अपेक्षा है। मैं ने अपना मुंह खोल कर एक ही बार में गप्प से पूरा लंड अंदर कर दिया और लॉलीपॉप की तरह गपागप चूसने लगा।
 
“आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” एक लंबी आह मुन्ना के मुह से निकल पड़ी और उसने मेरे सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर मेरे मुंह में अपना लौड़ा अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। इधर रामू धीरे धीरे मेरी तनी हुई चूचियों को चूसने लगा और मुझे आनंद के समुंदर में गोते खाने पर मजबूर कर दिया। उफ्पफ गजब का सुखमय खेल उस वक्त वे तीनों मेरे जिस्म से खेलने में मशगूल हो गए थे और मेरा पूरा शरीर आनंदातिरेक से थरथरा रहा था। अब रामू भी अपने कपड़े खोल कर पूरा नंगा हो गया। मैं उसका लौड़ा देख कर एक बार तो घबरा ही गया। बाप रे बाप, सात इंच लंबा और वैसा ही करीब दो इंच मोटा लौड़ा किसी काले नाग की तरह फन उठाए फुंफकार रहा था। इतनी देर में माहौल इतना गरम हो गया था जिसकी तपिश से सभी जल उठे थे। रामू जो अब तक मेरे साथ बड़ी नरमी से पेश आ रहा था, अचानक ही मानो उस पर पागलपन सवार हो गया। मुझे बड़ी बेरहमी से बिस्तर पर पटक दिया और मेरे दोनों पैरों को फैला कर मेरी गांड़ के छेद में थूक लगाया और अपने लौड़े को भी थूक से लसेड़ कर सीधा मेरी गांड़ में धावा बोल दिया।

“आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह्ह, मार डाला रे आ्आ्आह” मैं मुन्ना के लंड को मुंह से निकाल कर पीड़ा के मारे चीख पड़ा। “चुप साली रंडी, इतनी मस्त चिकनी गांड़ क्या सिर्फ मालिक से चुदने के लिए है मादरचोद, ले मेरा लौड़ा खा अपनी गांड़ में साली कुतिया, आज तेरी गांड़ का भुर्ता बनाता हूं।” रामू किसी जंगली जानवर की तरह मेरी कमर को पकड़ कर दनादन चोदने लगा। इसी के साथ कल्लू और मुन्ना भी मेरे तन पर पिल पड़े। कोई मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलने लगा तो कोई मेरे मुंह में भकाभक लंड ठोकने लगा। कुछ पलों की पीड़ा के पश्चात मैं मस्ती में डूब कर पूरी तरह रंडी बन कर उन्हीं के रंग में रंग गया। करीब दस मिनट बाद मुन्ना ने मेरे सिर को कस कर पकड़ लिया और फचफचा कर अपने लौड़े का वीर्य मेरे मुंह में ही उगलने लगा। मैं उत्तेजना के वशीभूत उसके लंड से निकलने वाले कसैले और नमकीन वीर्य का कतरा कतरा अपने हलक में उतारता चला गया। जैसे ही मुन्ना झड़ कर हांफते हुए अलग हुआ झट से कल्लू ने अपना लौड़ा मेरे मुंह में ठूंस दिया और लगा धकाधक चोदने। करीब दो मिनट में ही कल्लू भी खलास होने लगा। उसके वीर्य का स्वाद थोड़ा फैंटा अॉरेंज जैसा था, शायद उसने वही पेय पिया था। उसके वीर्य को भी मैं किसी प्यासी कुतिया की तरह पी गया और उसके स्वादिष्ट वीर्य का कतरा कतरा चाट चाट कर साफ़ कर दिया। इधर रामू किसी भूखे भेड़िए की तरह मेरी गांड़ में लंड कचकचा कर पेले जा रहा था और मेरी चूचियों को मसल मसल कर मलीदा बना रहा था।

मैं किसी पगली की तरह गांड़ उछाल उछाल कर चुदवाने में मग्न हो बोले जा रहा था, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा उफ़ आह आह मेरी गांड़ के रसिया हाय हाय क्या मस्त चुदाई कर रहे हो ओ बाबा, आ्आ्आ ह चोद साले कुत्ते मादरचोद आह”। करीब पच्चीस मिनट बाद उसने मेरा लंड पकड़ कर जोर से मूठ मारना शुरू किया और अचानक उसके चोदने की रफ़्तार बहुत तेज हो गई, फच फच चट चट की आवाज जोरों से आ रही थी। फिर उसने मुझे इतनी जोर से पकड़ लिया कि कुछ पलों के लिए मुझे लगा कि मेरी सांस ही रुक जाएगी।
 
“ले आह साली हरामजादी कुतिया मेरे लौड़े का रस ओ्उओ्सीओ्ह्ह्ह्” कहते हुए उसी वक्त छरछरा कर वह मेरी गांड़ में अपना वीर्य छोड़ने लगा और इधर मेरे लंड ने भी वीर्य उगलना शुरू कर दिया। उफ़ क्या आनन्द भरा अहसास था वह। वह खलास हो कर मुझे चूमने लगा और बोला, “ओह मेरी जान, कहां थी अब तक, बहुत मस्त गांड़ पाई हो, तू इतने सुन्दर बदन की मालकिन हो हमें अब तक पता ही नहीं था। मालिक के आने के बाद हमें भूल मत जाना छमिया।”

“हाय राम कैसी बात करते हो जी, इतना आनंद तुम लोगों ने आज पहली बार दिया।। मैं कैसे भूल जाऊं। जब मौका मिले चोद लेना मेरे आशिकों।” मैं आनंद के सागर में डूब कर बोला। उसके लुढ़कते ही हम चारों उसी छोटे से बिस्तर पर एक दूसरे से चिपक कर सो गए। सवेरे जब मेरी नींद खुली तो देखा वे तीनों वहां से नदारद थे। मैं अकेला नुचा चुदा अस्त व्यस्त बिस्तर पर पसरा हुआ था। बिस्तर की सिलवटें रात की कारगुज़ारियों की चुगली कर रहे थे। एक तरफ मेरा लहंगा, दूसरी तरफ मेरी चोली पड़े हुए मुझे मुंह चिढ़ा रहे थे। जालिमों ने मेरी चूचियों को इतनी बुरी तरह मसला था कि अभी तक दर्द कर रहे थे। लाल कर दिया था कमीनों ने। रामू ने चोद चोद के मेरी गांड़ का सुराख और भी बढ़ा दिया था। उस दिन के बाद तो मैं जैसे रंडी ही बन गया। किसी को भी जब मौका मिलता मुझे चोद लेता था और मैं भी चुदाई का भरपूर लुत्फ उठाने लगा।

लेकिन यह सब ज्यादा दिन नहीं चल पाया। करीब दस दिन बाद मेरे मामा नें, जो किसी काम से कलकत्ता आए हुए थे, मुझे उस होटल में देख लिया। फिर कल्लू, मुन्ना, रामू और होटल मालिक छगन के विरोध के बावजूद स्थानीय पुलिस की सहायता से मुझे लेकर घर चले आए। आज भी उनकी बड़ी याद आती है।” इतना कहकर वह चुप हो गया।”””” बड़े दादाजी मेरे पापा के बारे में इतने विस्तार से और रोचक ढंग से बता रहे थे कि हम सब खो गये थे उस किस्से मेंं। जब किस्सा खत्म हुआ तब जाकर हमारी तंद्रा भंग हुई। इसके बाद सबके दिल में मेरे पापा के लिए भावनाएं बदल गयीं। खासकर मेरी मम्मी के दिल में। मम्मी के दिल में उनके लिए सहानुभूति थी।

दोस्तो यह कुछ किस्से मेरे से रह गये थे
इस किस्से के खत्म होने के पश्चात यहां आगे जो कुछ हुआ, उसे आपने पिछले अपडेट में पढ़ा।

कहानी जारी रहेगी
 
प्रिय पाठकों,

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि मैं किस तरह अपने पांचों बुजुर्ग कामुक पतियों के संग सामुहिक संभोग का लुत्फ उठाते हुए किसी व्यस्क कामुक स्त्री की तरह काम क्रीड़ा में निपुणता प्राप्त कर रही थी। इसी दौरान मेरी मां की जिंदगी के बीते हुए कल में घटी कामुकता भरी घटनाओं से रूबरू हुए। उसी दौरान पापा के समलैंगिकता के बारे में भी पता चला, जिसका विस्तार से वर्णन बड़े दादाजी ने किया। इसके आगे की घटना लेकर मैं पुनः प्रस्तुत हूं।

मेरी शादी को लेकर मेरी मां की असहमति और नाराजगी मुझसे छुपी नहीं थी, किंतु मुझे उसकी परवाह कतई नहीं थी। मैं अपने निर्णय से बेहद खुश थी और मैंने जो अद्भुत सुख का स्वाद चखा, उससे मैं पूणतय: संतुष्ट थी। मेरी जिंदगी में एक नया अध्याय शुरू हो चुका था। अब आगे पढ़िए:

उसी शाम जब आठ बजा तो मैंने सबको बैठक में इकट्ठा किया और एक नये खेल का आरंभ किया। इस खेल को शुरू करने के पहले मैंने दादाजी के साथ मश्वरा किया था और इसको रोचक बनाने के लिए उनसे सलाह भी ली थी। मेरे खुराफाती दिमाग की दाद देते हुए उन्होंने मेरा साथ देने और सभी को इस खेल में शरीक करने के लिए सहमत करने का जिम्मा भी लिया। मैं ने खेल के बारे में तो बताया था किन्तु उसमें मैं ने धूर्तता पूर्वक अपने ढंग से तैयारी की थी ताकि खेल से सभी उपस्थित मर्दों की इच्छा पूर्ति के साथ ही साथ मेरी खास ख्वाहिश की पूर्ति भी हो। मैं पूरी तैयारी कर चुकी थी खेल को रोमांचक, रोचक और कामुकता पूर्ण बनाने की। मम्मी और चाची के लिए तो चौंकाने वाला खेल होने वाला था। खेल मजेदार था और माहौल के हिसाब से काफी उत्तेजक भी। ठीक उसी समय दरवाजे की घंटी बजी और जब दरवाजा खुला तो दरवाजे पर झक्क सफेद कुर्ते और धोती में पंडित जी को खड़ा पाया। पंडित जी को देख कर मैं ने चकित होने का नाटक किया और दादाजी की ओर असमंजस भरी निगाहों से देखा। दरअसल मैं ने पंडित जी को फोन करके पहले ही इस कार्यक्रम के बारे में बता दिया था और यह भी कह दिया था कि इस बात की किसी को भनक भी न लगने पाए कि उन्हें इस कार्यक्रम के बारे में कुछ भी पता है।

दादाजी पंडित जी को कबाब में हड्डी की तरह देख कर चौंक उठे और बोले, “अरे पंडित जी आप अचानक यहां?”

“मैं इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न आप लोगों से मिलता चलूं, सो आ गया।” पंडित जी मुझे लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोले।

मैं सवालिया नज़रों से दादाजी को देखने लगी, “अब?”

पल भर मौन रहकर बड़े दादाजी बोले, “अरे पंडित जी आईए, आप भी इस खेल में शामिल हो जाईए, ठीक मौके पर आप आए हैं” अनजाने में बड़े दादाजी ने उन्हें निमंत्रण दे डाला। दादाजी कुछ बोल नहीं पाए। दरअसल दादाजी को और मुझे ही पता था कि इस खेल में क्या गुल खिलने वाला है। इधर दादाजी की अनभिज्ञता में मैं ने पंडित जी को राजदार बना कर खुद अपनी वासना पूर्ति के लिए पहले ही योजना बना चुकी थी।

दादाजी ने लाचारी में बड़े दादाजी की इच्छा का सम्मान करते हुए पंडित जी को भी इस खेल में शामिल करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। पंडित जी के दिल में तो लड्डू फ़ूटने लगे। मैं भी अंदर ही अंदर अत्यंत खुश थी कि आज फिर से पंडित जी जैसे बदशक्ल, बेढब ही सही मगर दानवी लिंगधारी, कामक्रीड़ा में निपुण तथा अद्भुत अदम्य स्तंभन क्षमता वाले व्यक्ति के हवस की शिकार बन कर पिछली रात वाले अभूतपूर्व अनिर्वचनीय सुख का भोग लगाने का अनमोल सुअवसर प्राप्त होने वाला है।

प्रकटतया अनिच्छा से मैं बोली, “ठीक है पंडित जी आप भी हमारे इस खेल में शामिल हो जाईए। आईए और सामने सोफे पर बैठ जाईए।” उनके बैठते ही पंडित जी का नाम भी लिख कर नाम वाले डिब्बे में डाल दिया। बैठने की व्यवस्था वृत्ताकार थी। मध्य में 8’x10′ का कालीन बिछा हुआ था। मैंने दो डिब्बे निकाले और खेल का नियम बताने लगी। “अभी जो खेल होगा वह पिछली रात की तरह ही होगा लेकिन पार्टनर पर्चियों के द्वारा निर्धारित होगा। चूंकि यहां तीन ही नारियां हैं और छः नर, अतः हो सकता है कि मजबूरी में एक नारी को एक से अधिक मर्दों की प्यास बुझानी पड़े, जैसा कि कल रात मेरे और मम्मी के साथ हुआ था। इन दो डिब्बों में से एक में हम सब के नामों की पर्ची है जिसमें से नाम निकलेंगे और उसी के अनुसार पार्टनर बनेंगे। दूसरे डिब्बे में क्रिया। जिसका नाम निकलेगा, उसके लिए दूसरे डिब्बे से उसके लिए कुछ कुछ छोटे मोटे कार्य निकाले जाएंगे और उस व्यक्ति को वही कार्य सब के सामने पूरा करना होगा। मंजूर है?”

 
सारे पुरुष एक स्वर में बोल उठे, “मंजूर है, मंजूर है” मर्दों के लिए क्या है, तीनों स्त्रियों में कोई भी चलेगी, तीनों अपने आप में कम नहीं थीं। किंतु मम्मी और चाची असमंजस में थीं। सशंकित होते हुए भी अंततः उन्होंने भी अपनी मंजूरी दे दी। मैं ने डिब्बों से पुर्जी निकालने के लिए पंडित जी को आमंत्रित किया। पहली ही पर्ची में चाची जी का नाम “रमा” निकला। सभी तालियां बजाने लगे। चाची झिझकते हुए सबके सामने आई। दूसरे डिब्बे से पर्ची निकाली। लिखा था “कपड़े उतारो”।

चाची विरोध करते हुए बोली, “यह चीटिंग है।”

“चीटिंग कैसा? हां, पर्ची में लिखा मैंने है, किन्तु पर्ची निकालने वाला तो पर्चियों को पहचानता नहीं है। वैसे भी पंडित जी तो इस खेल में संयोग से ही शामिल हुए हैं, इनको पर्चियों के बारे में क्या पता है।” मैं बोली और सभी ने एक स्वर से मेरा समर्थन किया, क्योंकि अब सभी को आभास हो चुका था कि खेल बड़ा ही मनोरंजक होने वाला है। हां चीटिंग तो मैं कर रही थी, क्योंकि पंडित जी को मैं ने पहले ही फोन पर पर्चियों की पहचान (अलग अलग रंगों के मार्कर के मार्क) के बारे में सब कुछ बता दिया था।

चाची मजबूर थी। पहले उन्होंने साड़ी उतारी। “पूरे कपड़े, पूरे कपड़े।” सभी बोल उठे। सभी पुरुषों के लिंग सिर उठाने लगे थे। फिर ब्लाऊज खुला। उफ्फ क्या नजारा था, ब्रा से बमुश्किल कसे हुए विशाल उरोज बाहर छलक पड़ने को आतुर। मर्दों के मुख से लार टपकने लगे थे। खास कर हरिया का लिंग तो तन कर पैजामा फाड़ कर बाहर निकल आने को बेताब हो रहा था। फिर नंबर आया पेटीकोट का। झिझकते हुए चाची ने पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और लो, एक झटके में पेटीकोट कालीन को चूमने लगा। ओह गजब का दृश्य था। कसी हुई पैंटी में भी चाची की फूली हुई योनि का उभार और योनि के मध्य का दरार स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। कमरे की दूधिया रोशनी में मझोले कद से तनिक कम, करीब पांच फुट की चाची की उत्तेजक काया दमक रही थी। केले के थंभ की मानिंद जंघाएं और गोल गोल अनुपात से बड़े-बड़े नितंबों की छटा देखते ही बन रही थी। पिछली रात सबके सामने पंडित जी के कामुकता की भीषणता झेल चुकने के बावजूद इस वक्त लाज से दोहरी हुई जा रही थी। अब बारी थी ब्रा और पैंटी की। सभी सांस रोके इंतजार कर रहे थे।

“बस बस और नहीं प्लीज।” चाची ना नुकुर करने लगी। “चुप साली रंडी, कल रात को सब के सामने बेशरम कुतिया की तरह पंडित जी का लौड़ा खा रही थी तब कुछ नहीं हुआ और अब नखरे कर रही है। चल उतार जल्दी।” नानाजी अब बेहद उत्तेजित हो चुके थे। चाची मजबूर थी, खेल के नियम के अनुसार उसे कार्य को पूरा करना ही था। उसने धीरे से अपनी ब्रा का हुक खोल दिया और अपनी बड़ी बड़ी कबूतरियों को बंधन से मुक्त कर दिया। चाची के बड़े बड़े उरोज बेपर्दा हो कर कमरे की रोशनी में दमक उठे। सबके मुंह खुले के खुले रह गए। कल रात को वासना की आंधी में किसी ने इतनी अच्छी तरह चाची के इन विशाल गोल गोल दर्शनीय उरोजों का दीदार नहीं किया था। वहां उपस्थित मर्दों का वश चलता तो चाची पर टूट ही पड़ते, किंतु खेल के नियम से बंधे, अपने अपने स्थान पर बैठे कसमसा कर रह गए। अब बारी थी बहुप्रतीक्षित योनि के बेपर्दा होने की। इतनी देर में शनै: शनै: चाची भी भीतर ही भीतर उत्तेजित होती जा रही थी, जिसकी चुगली उनके खड़े हो चुके चूचक और पैंटी के अग्रभाग में आ चुकी नमी कर रहे थे। चाची ने अब तक अपने को पूर्ण रूप से परिस्थिति के हवाले कर दिया था और एक ही झटके में पैंटी से मुक्त हो गई। इस्स, क्या ही रसीली योनि थी चाची की। फूली फूली योनि, योनि के ऊपर काले काले रोयें और योनि की दरार के निकट चिकना तरल स्पष्ट दिखाई दे रहा था। पूर्णतय: नग्न चाची की दपदपाती कामोत्तेजक काया मानो माहौल में आग लगा डालने को बेताब थी। माहौल में अब एक चिंगारी दिखाने की देर थी, फिर तो क़यामत ही आ जाना था।

“लो हो गया ना। अब?” चाची ने फौरन पूछा।

“अभी आप वहीं उसी तरह खड़ी रहिए। अभी हम खेल आगे बढ़ाते हैं।” मैं फौरन बोली और चाची के सारे कपड़े समेट कर और कमरे के एक कोने में रख दी।

अब मैं ने पंडित जी को पहले डिब्बे से पर्ची निकालने का निर्देश दिया जिसका पालन उन्होंने तत्काल ही किया। नाम निकला “हरिया”। हरिया के शरीर में तो मानो बिजली दौड़ गई। पल भर में उछल कर सीधे बीच में आ गया। उसकी स्थिति देख कर सभी ठठा कर हंस पड़े। हालांकि उत्तेजना के मारे सभी मर्दों की हालत ऐसी ही थी। हरिया के लिए कार्य निकला, “बुत बन कर खड़े रहो।” हरिया खिसिया गया लेकिन खेल के नियम के अनुसार उसे बुत बन जाना पड़ा। “ये हैं चाची के पहले पार्टनर” मैं बोली। चाची विरोध करने की स्थिति में नहीं थी, चुपचाप खड़ी रही। फिर नाम निकला, “रमा”।

कहानी जारी रहेगी
 
चाची तुरंत बोली, “यह क्या? मेरा नाम दुबारा कैसे निकला?”

“जितनी बार आपका नाम निकलेगा उतनी बार आपके लिए काम भी मिलेगा और आप के लिए पार्टनर का नाम भी निकाला जाएगा। पार्टनर एक से ज्यादा कितने होंगे यह लॉटरी से पता चलेगा।” मैं बोली।

चाची निरुत्तर हो गई। अब उनके लिए काम निकला, “अपने पार्टनर के कपड़े उतारो।”

“नहीं नहीं। मैं हरिया के कपड़े नहीं उतारूंगी।” चाची ने फिर विरोध किया।

“कैसे नहीं उतारेगी, चल शुरू हो जा,” दादाजी डांटे।

अनिच्छा से चाची हरिया के कपड़े उतारने लगी। जैसे ही हरिया का अंतिम वस्त्र कच्छा खुला, चाची तो एक कदम पीछे हो गयी और विस्फारित नेत्रों से देखती रह गई, कुलांचे भरता हुआ टनटनाया आठ इंच लम्बा काला मोटा लिंग नामुदार हुआ ऊपर नीचे होते हुए सलामी देने लगा। ऐसा लग रहा था मानो सिग्नल मिलते ही चाची की फूली दपदपाती योनि का तिया पांचा कर डालने को बेताब हो। छ: फुटा गठा शरीर और आठ इंच का झूमता हुआ लिंग। चाची की हालत देख कर सभी मुस्कुरा उठे। दर असल कल रात को किसी ने एक दूसरे के शरीर को इतने ध्यान से नहीं देखा था, आज सभी कमरे की दूधिया रोशनी में बड़ी फुर्सत से और इत्मिनान से एक दूसरे को बखूबी देख पा रहे थे। अब नाम निकला “लक्ष्मी”, उसे भी उठ कर सबके सामने आना पड़ा। कार्य वही, ” अपने कपड़े उतारो”। मम्मी ने बेझिझक अपने कपड़े उतार दिए। असल में माहौल धीरे धीरे गरम हो रहा था और काम वासना का नशा धीरे धीरे सभी पर चढ़ता जा रहा था, अतः सभी बेसब्री से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। मम्मी ने बिना एक पल गंवाए अपने वस्त्रों से मुक्ति पा ली और लो, उनका पूर्ण व्यस्क, विकसित और कामोत्तेजक नग्न शरीर न सिर्फ आकर्षित कर रहा था बल्कि बाकी बचे मर्दों को आमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था। उनके भाग्य में जो पहला नाम निकला वह था नानाजी, अर्थात उनके पिता जी का। नानाजी भी बिना समय गंवाए मम्मी के पास पहुंचे और फिर वही हुआ जो हरिया के साथ हुआ था। मम्मी ने स्टैचू बने हुए नानाजी के शरीर के सारे वस्त्र उतार फेंके और उनका नाटा गैंडे की तरह मोटा तोंदियल शरीर अपने अकड़े हुए फनफनाते विशाल लिंग के साथ गजब का दृश्य प्रस्तुत कर रहे था। फिर नाम निकला रमा चाची का। चाची घबराई अब यह दूसरी बार नाम निकला, पता नहीं इस बार उसका दूसरा पार्टनर कौन होगा। इस बार पूर्वनियोजित नाम करीम चाचा का नाम था। करीम चाचा उछल कर चाची के पास जा खड़े हुए। उनके साथ भी वही हुआ। उनका गठा हुआ लंबे कद का आकर्षक शरीर और उस पर उनका आठ इंच का लंबा और वैसा ही गधे सरीखे मोटा लिंग, चर्मरहित गुलाबी सुपाड़े के साथ अद्भुत नजारा प्रस्तुत कर रहा था। इसी तरह बारी बारी से सबका नाम निकलता गया और अन्ततः चाची के भाग्य में हरिया और करीम, मम्मी के भाग्य में दादाजी, नानाजी और बड़े दादाजी, मेरे भाग्य में काला भुजंग तोंदियल भालू सरीखा पंडित मिला। कहां मेरी दपदपाती सुगठित कमनीय काया और कहां पंडित जी जैसा बनमानुष, निहायत ही बेमेल जोड़ी। मेरे भाग्य पर पंडित जी को छोड़ कर सभी मर्द हंस रहे थे किन्तु मेरी मम्मी और चाची को ही पता था कि मैं ने क्या हासिल कर लिया था, वे ईर्ष्या भरी नजरों से मुझे देखे जा रहे थे। उनकी नजरें मानो कह रही थी, “साली कमीनी कुतिया की तो लॉटरी लग गई।” पंडित जी भी अपनी किस्मत पर अंदर ही अंदर बेहद खुश हो रहे थे, “नयी नकोर, इतनी कमसिन और कमनीय लौंडिया को दूसरी बार भोगने का सौभाग्य जो मिल गया था”। सभी मादरजात नंगे हो चुके थे। सभी कामातुर, बेताबी अपनी चरम पर थी। मैं अपने भाग्य पर मायूसी का नाटक कर रही थी किंतु अंदर ही अंदर बेहद खुश थी कि मेरी योजना कारगर रही। सभी मर्द बेकरारी से सिग्नल का इंतजार कर रहे थे कि कब हरी झंडी मिले और अपने शिकार पर टूट पड़ें। इस वक्त मैं बड़े गौर से स्टैचू बने पंडित जी के पूरे शरीर का मुआयना कर रही थी। उफ्फ कितना वीभत्स रूप था उनका। शारीरिक रूप से तो पूरा बनमानुष ही था। उनके विशाल लपलपाते काले मोटे लिंग के करीब आधे हिस्से पर भी काले काले घुंघराले घने बाल उगे हुए थे इसलिए उनके लिंग की निश्चित लंबाई स्पष्ट दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी। तो इसका मतलब यह हुआ कि उनके घुंघराले घने बालों से भरे लिंग का पिछला आधा भाग भी कल मेरी योनि में प्रविष्ट हुआ था जिसके घर्षण से मेरी योनि के भीतरी नाजुक संवेदनशील मार्ग में अद्भुत हलचल मच रही थी। उनके भयावह लिंग के नीचे थैले की शक्ल में वृहद अंडकोष झूल रहा था जिसमें उनका अथाह वीर्य संचित था। कल रात को इतनी अच्छी तरह से मैं पंडित जी के अंग प्रत्यंग का दर्शन नहीं कर पाई थी। मैं बेहद रोमांचित हो उठी थी। मेरी खुुुुद की योनि पनिया रही थी।इस पूरे खेल की सूत्रधार मैं ही थी और मैं अपनी मर्जी से सबको नचा रही थी।

मैंने एक मिनट बाद का अलार्म सेट किया और घोषणा की, “अलार्म बजते ही सभी मर्द अपने शिकार पर टूट पड़ेंगे, पूरी स्वतंत्रता के साथ जैसी मर्जी, पूरी छूट है।” अब तक उत्तेजना के चरम पर पहुंच चुके थे। जैसे ही अलार्म बजा, मानो कमरे में भूचाल आ गया।
 
मेरी मम्मी पर तीन बूढ़े मर्द पिल पड़े, “ओह बाबा, धीरे, हाय, आराम से कीजिए ना प्लीज़।” मम्मी लगभग चीख पड़ी।

“चुप साली हरामजादी, बुरचोदी कुतिया, चीख मत। कल रात मैंने पहली बार तेरी रंडीपनई देखी है। सारी दुनिया में अपनी चूत बांटती फिरती रही और मैं, जिसके लंड से तू पैदा हुई, वही इतने समय से तेरी चूत की भूख से अनजान रहा। चुपचाप चोदने दे। चल रघु केशू, आज हम तीनों मिलकर इस छिनाल को बताते हैं कि हम किस मर्ज की दवा हैं।” नानाजी अपनी वहशी अंदाज में बोले और तीनों बूढ़े मेरी मम्मी की नग्न देह पर शिकारी कुत्तों की तरह टूट पड़े।

“आह ओह ओ्ओ्ओ्ओह मर गई” सिर्फ इतना ही कह पाई मेरी मां। दादाजी ने अपना लिंग मेरी मम्मी के मुंह में जबरदस्ती ठूंस दिया और मम्मी की आवाज़ घुट कर रह गई। नानाजी ने मेरी मम्मी की बड़ी बड़ी दूधिया उरोजों को अपने बनमानुषी पंजों से पकड़ कर बेदर्दी से मसलना शुरू कर दिया। बड़े दादाजी ने अपनी एक हाथ की उंगली मेरी मम्मी की योनि में और दूसरे हाथ की उंगली उनकी गुदा में भच्च से घुसा कर मशीनी अंदाज में अंदर बाहर करने लगे। बेबस मम्मी तड़प उठी लेकिन तीनों बूढ़े पूरे वहशियाना तरीके से अपनी मनमानी करते रहे। यह तो क़यामत की शुरुआत थी।

कुछ ही मिनट बाद बड़े दादाजी मेरी मम्मी की पनियायी योनि में अपने लिंग से हमला बोला और एक ही करारे धक्के से पूरा का पूरा लिंग उतार दिया, “ले रानी मेरा लौड़ा अपनी बुर में, ओह साली रंडी, तेरी चूत चोदने का मजा ही कुछ और है, हुम,हुम,हुम,” और मम्मी को लिए दिए पलट गये।

नानाजी ने मौका ताड़ा और सीधे मेरी मां की गुदा में अपने लिंग का प्रहार कर दिया, “ले अब मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में कुतिया, न जाने कितने मर्दों से कुतिया की तरह चुदवाती रही बुरचोदी,” और किसी कुत्ते की तरह पीछे से गुदा मैथुन में ऐसे लिप्त हो गये मानो कई दिनों से संभोग सुख से वंचित होंगे, जबकि कल रात ही उन्होंने मेरी मम्मी के साथ प्रथम बार संभोग का लुत्फ उठाया था। उनकी वहशियाना नोच खसोट वास्तव में उनकी खीझ की अभिव्यक्ति थी, उनकी अपनी पुत्री होने के बावजूद इतने वर्षों से उसके इतने अनगिनत पुरुषों के शारीरिक संबंधों से अनभिज्ञ रहने की खीझ। ऐसा लग रहा था मानो वे कल रात की कसर पूरी करने को पूर्ण रूप से कृत-संकल्प हों।

इधर दादाजी लगे हुए थे मेरी मम्मी के मुह में लिंग अंदर बाहर करने में, “चूस हरामजादी, मेरा लौड़ा चूस साली मां की लौड़ी,” और मेरी मां के मुंह से सिर्फ गों गों की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। मैं अभी मम्मी की दुर्गति देख ही रही थी कि मेरी चाची की हौलनाक चीख ने मेरा ध्यान चाची की ओर आकृष्ट किया। हरिया और करीम, दो हट्ठे कट्ठे मर्द, एक साथ चाची की नग्न देह पर किसी शिकारी कुत्तों की तरह टूट पड़े थे और उतावलेपन में चाची की भरी पूरी मांसल देह की तिक्का बोटी करने पर उतारू थे। इतने सालों बाद इस सुनहरे मौके को पा कर लग रहा था कि आज ही पूरी कसर निकाल लेने को आमादा थे।

“ओह हरामियों, हाय हाय, मार ही डालोगे क्या मुझे?” चाची चिचिया रही थी। हरिया जहां चाची की बड़ी बड़ी चूचियों को बेरहमी से मसलते हुए उनके रसीले होंठों, गालों और गले को पागलों की तरह चूम रहा था वहीं करीम चाचा उनकी पावरोटी की तरह फूली हुई योनि में मुंह लगा कर कुत्ते की तरह चाट रहा था और उनकी उंगली मशीनी अंदाज में चाची की गुदाज गुदा के अंदर बाहर हो रही थी। दो पहलवानों के बीच चाची परकटी पक्षी की तरह छटपटा रही थी।

“आज मौका मिला है साली रंडी को चोदने का। हाय हाय मत कर बुरचोदी। बहुत तड़पे हैं हम। करीम, चल इस हरामजादी को अपने लौड़े का कमाल दिखाते हैं।” हरिया के मुख से किसी वहशी दरिंदे की तरह उद्गार निकले।
 


“ठीक कहा हरिया। आज ऐसा चोदना है कि इस कुतिया को जिंदगी भर याद रहे। आज तक इस रंडी को किसी ने ऐसा नहीं चोदा होगा।” करीम चाचा भी कामोत्तेजना के आवेश में पूरे जानवर बन चुके थे। चाची बेचारी के पास उन दरिंदों की धींगामुश्ती को झेलने के अलावा और कोई चारा नहीं था। फंस चुकी थी हमारे बिछाए जाल में, हरिया और करीम को तो हमारी पूर्वनियोजित षड़यंत्र के तहत मुंहमांगी मुराद मिल चुकी थी, अब वे जी भर के मेरी चाची के शरीर से मनमाने ढंग खिलवाड़ करने को स्वतंत्र थे, जो वे कर भी रहे थे। उनके कामुक हरकतों के फलस्वरूप चाची अपने ऊपर हुए आकस्मिक आक्रमण के आरंभिक खौफ से उबर चुकी थी और उत्तेजना के मारे उनका शरीर अकड़ने लगा, थरथराने लगी वह।

“अब चोद भी डालो हरामजादों” उत्तेजना के आवेग में अंततः चाची सके मुंह से बेसाख्ता निकल ही पड़ा।

“हां री कुतिया, आज तो पूरी कसर निकालनी है, देख हमारे लौड़े कैसे फनफना रहे हैं” कहते कहते हरिया ने आव देखा न ताव, सीधे चाची की टांगों को फैला कर उनकी पनियायी फूली हूई योनिद्वार में अपने आठ इंच लंबे बेलन सरीखे लिंग का सुपाड़ा टिकाया और एक ही भीषण प्रहार से पूरा का पूरा लिंग चाची की योनि में पैबस्त कर दिया।

“आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्” एक दर्दनाक चीत्कार चाची के मुंह से उबल पड़ी।

“ऐसे चीख मत बुरचोदी। अभी कह रही थी चोद भी डालो, अभिए से चिचिया रही है, यह तो शुरुआत है, अभी तो लौड़ा सिर्फ घुसा है, चोदना तो अब शुरू होगा साली चूतमरानी।” कहते कहते चाची की हालत को नजरंदाज करते हुए लगातार पंद्रह बीस धुआंधार ठापों की झड़ी लगा बैठा “हुं हुं हुं हुं हुं हुं, अब ठीक है, करीम अब तू भी आ जा भाई,” कहते हुए चाची को लिए दिए पलट गया और चाची की गुदा ऊपर हो गई।

इससे पहले कि चाची को सांस लेने का मौका मिलता, करीम पल भर में ही चाची के ऊपर सवार हो गया और अपने तनतनाए लिंग को एक ही झटके में चाची की गुदा द्वार में प्रविष्ट करा दिया, “ले साली कुतिया मेरा लौड़ा अपनी गांड़ में, ओह ओ्ओ्ओ्ओह कितना टाईट गांड़ है ओह ओ्ओ्ओ्ओह मजा आ गया,” कहते हुए उसने भी दनादन कई झटके मार डाला।”

“आह्ह्ह्ह्ह मार डाला रे हरामी ओह्ह्ह्ह फाड़ दिया मादरचोद हाय मेरी गांड़ फट गई हाय हाय हाय।” चाची की करुण चीत्कार से पूरा कमरा गूंज उठा, किंतु यह चीखें कुछ ही पलों में आनंद भरी सीत्कारों में परिवर्तित हो गईंं, “आह ओह चोदो हरामियों, आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह खा जाओ मुझे, रगड़ डालो मुझे, मसल डालो मुझे, आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह इस्स्स्स्स” और फिर क्या था, वासना का तूफान ही उठ खड़ा हो गया। धकमपेल, धींगामुश्ती, एक दूसरे में समा जाने की जद्दोजहद और साथ ही साथ बेहद गंदी गंदी वासना से ओत प्रोत अल्फाज उबलने लगे उनके मुंह से।

मैं वहां के माहौल को मंत्रमुग्ध निहार रही थी, उत्तेजना के मारे मेरा भी बुरा हाल हो गया था, पूरे शरीर पर चींटियां दौड़ रही थीं और तभी गजब हो गया, मेरे खुद का चुना हुआ बनमानुष नुमा मर्द, बिना एक पल गंवाए मुझ पर किसी जंगली जानवर की तरह टूट पड़ा था और मेरी नंगी देह को किसी गुड़िया की तरह अपने दैत्याकार बाजुओं में दबोच कर अपने सूअर जैसे थूथन से मेरे चेहरे पर चुम्बनों की झड़ी लगा रहा था। मैं उनके इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थी, हकबका उठी। उफ्फफ, ऐसा लग रहा था मानो मेरी पसलियां चरमरा उठी हों। मेरी सांस ऊपर की ऊपर ही रह गई किंतु अब मैं पूरी तरह पंडित जी के चंगुल में थी, परकटी पंछी की तरह छटपटाने के सिवा कुछ कर भी नहीं सकती थी। सच तो यह था कि मैं कुछ करना चाहती भी नहीं थी। उस जंगली जानवर के वहशीपन का पूरा अनुभव करना चाहती थी। उनकी हर वहशियाना हरकतों को झेलने के लिए अपने मन को कड़ा करके सिर्फ दिखावे की छटपट करते हुए, “आह्ह्ह्ह्ह छोड़िए, ओह्ह्ह्ह मार ही डालिएगा क्या, उफ्फ्फ हाय राम,” कहती कहती समर्पित होती चली गयी। पंडित जी पूरे जोश में थे। पूरी बेदर्दी से मेरी चुचियों को मसलने लगे। मेरे मुंह के अंदर अपनी लंबी मोटी जीभ डाल चुभलाने लगे। उनका भीमकाय लिंग मेरी योनी के अंदर पैबस्त हो कर फाड़ डालने को बेताब, बार बार मेरी योनी द्वार पर ठोकर मार मार कर मेरे अंतरतम को आंदोलित किए जा रहा था। मेरी उत्तेजना पूरे चरम पर थी। योनी फकफका रही थी। पनिया उठी थी। पंडित जी ने अपनी एक उंगली मेरी योनी के लसलसे पानी से भिगोकर मेरी गुदा मे ठोंक दिया। मैं चिहुँक उठी और अनायास ही झटके से बेध्यानी मे और आगे बढ़ गयी, परिणाम स्वरूप मेरी पनिया उठी योनी खुद ही उनके तनतनाये हुए लिंग का एक तिहाई हिस्सा विशाल सुपाड़े समेत अपने अंदर समाने को विवश हो उठी। पंडित जी की धूर्तता काम कर गई। एक प्रकार से उन्होंने मुझे अपने लिंग से बींध दिया था। “आह्ह्ह्ह्ह” मेरी आह निकल पड़ी। एक झटका मेरी ओर से था तो दूसरा झटका उनकी ओर से था।, जिससे उनका आधा लिंगमेरे अंदर समा गया। उफ्ईफ्फ्फ, गजब का अहसास था वह। मगर यह तो आरंभ था। पंडित जी मुझे लिए दिए फर्श पर लुढ़के और साथ ही एक और करारा ठाप जड़ दिया। “आ्आ्आ्आ्आ्आह,” बेसाख्ता मेरी लंबी चीख निकल पड़ी। सभी मेरी ओर देखने लगे।

 
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