Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 9 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

किंतु मैं ने उससे अलग होते हुए कहा, “अरे बेटा मैं खुद भी तेरा दीवाना हो गया हूं। जबतक यहां हूं, कसम से तेरी गांड़ मारता रहूंगा। जब भी तेरे यहां आऊंगा, बिना तेरी गांड़ चोदे नहीं जाऊंगा। फिलहाल हमें यहां से चलना चाहिए, वरना कोई आ जायेगा तो हम मुश्किल में पड़ सकते हैं।” इतना कहकर हमने अपने कपड़े पहने और फिर शादी की महफ़िल में आ गए। उसी समय फिर किसी की आवाज मेरे कानों में टकराई, “खा लिया हमारा माल साला बूढ़ा।” मैं ने नजर घुमा कर आवाज की दिशा में देखा तो एक 25 – 30 साल का नौजवान हमारी ओर देख कर मुस्कुरा रहा था। मैं भी उसकी ओर देख कर मुस्कुरा उठा। बाद में पता चला कि वह भी अशोक की अॉफिस में काम करने वाला उसका सहकर्मी रमेश था। उस समय करीब ग्यारह बज रहे थे। शादी की रस्म पूरी होते होते एक बज गया।

एक बजे अशोक फिर मेरे पास आया और मुझ से सट कर मेरे लौड़े को धोती के ऊपर से ही सहलाते हुए बोला, “चलिए ना फिर एक बार और हो जाय, अभी तो बहुत देर है बिदाई में।” उसके हाथ लगाते ही मेरा लौड़ा फिर तन कर मेरी धोती फाड़ कर बाहर निकलने को मचलने लगा। मैं और बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसके साथ फिर उसी स्थान पर चला गया जहां हमने चुदाई का खेल खेला था। इस वक्त हम दोनों बिना एक पल गंवाए सीधे नंगे हो कर एक दूसरे से गुंथ गये और फिर एक बार वही चुदाई का दौर चालू हुआ। इस बार तो हम बेहद गंदे तरीके से खुल कर चुदाई में डूब गए थे। एक दूसरे में समा जाने की जी तोड़ धकमपेल में मग्न।

“ओह साली कुतिया, ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे लंड की रानी, गांडू साले मां के लौड़े तेरी गांड़ का गूदा निकालूं ओह ओ्ओ्ओ्ओह” मैं गंदी गंदी गालियों की बौछार कर रहा था और वह मस्ती में चुदते हुए बोल रहा था, “हाय हाय हरामी मादरचोद पापा, साले कुत्ते, मेरी गांड़ के राज्ज्ज्जा, चोद हरामजादे मेरी गांड़ का भुर्ता बना दीजिए, मझे अपनी रंडी बना लीजिए, कुतिया बना लीजिए, ओह ओ्ओ्ओ्ओह आह मजा दे दे स्वर्ग दिखा दे, ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा।”

इधर हम इतने बेखबर हो गये थे कि वही व्यक्ति, जिसने हम पर कमेंट पास किया था, कब वहां आ पहुंचा हमें पता ही नहीं चला। “ओह तो साले बुढ़ऊ अकेले अकेले मज़ा लूट रहे हो? साले मादरचोद अशोक, हमारा ख्याल नहीं आया?” उसकी आवाज सुनकर हम चौंक पड़े।

अशोक तुरंत बोला, “अभी नहीं, प्लीज अभी नहीं, पहले पापा को चोदने दे फिर तुम चोद लेना।”

“ठीक है साले बुढ़ौ चोद ले चोद ले, इसके बाद मेरा नंबर है।” कहता हुआ फटाफट कपड़े खोल कर नंगा हो कर अपनी बारी का इंतजार करने लगा। करीब साढ़े पांच फुट ऊंचा गठीले बदन का युवक था वह। उसका लंड मुश्किल से साढ़े छः इंच लम्बा और दो इंच मोटा रहा होगा। जैसे ही मैं झड़ कर हांफते हुए अलग हुआ झट से रमेश मेरी जगह ले लिया और फिर उनके बीच घमासान छिड़ गया।

“साले हरामजादे मादरचोद, मुझे छोड़ कर बुड्ढे का लौड़ा खाने अकेले अकेले आ गया, ले साले मेरा लौड़ा खा” कहते हुए चोदने लगा और ताज्जुब तो मुझे यह देखकर हो रहा था कि मुझसे चुदने के बाद भी अशोक बड़े आनन्द से रमेश से भी चुदवाने में मग्न था। लेकिन रमेश सिर्फ दस मिनट में ही झड़ गया और लुढ़क गया।

“साला चोद चोद के तेरा गांड़ भी ढीला कर दिया तेरे पापा ने, सॉरी पापा जी, फिर भी मज़ा आ गया। तेरी गांड़ चोदने से मन ही नहीं भरता है। लगता है जैसे लंड डाल कर पड़े रहें।” कहते हुए वह उठा और अपने कपड़े पहनने लगा।फिर हम तीनों वापस शादी की भीड़ में आ गए। मुझे अशोक ने बताया कि यह रमेश है, उसकी अॉफिस का सहकर्मी। रमेश के अलावा और भी तीन लोग उसके अॉफिस में थे जिनके साथ उसका समलैंगिक संबंध था। उनमें एक उसके अॉफिस का पचपन साल का बॉस भी था।उस वक्त दो बज रहा था। मैं ने उससे पूछा, “तुझे गांड़ मरवाने का शौक कब से है?”

वह बोला, “जी मुझे यह शौक स्कूल के समय से है।”

मैं आश्चर्यचकित हो गया। पूछ बैठा, “कैसे शुरू हुआ यह सब?”

“ठीक है, बताऊंगा, शादी तो हो चुकी है, विदाई सवेरे है। चलिए कमरे में तब तक हम एक नींद मार लेते हैं, फिर विदाई के बाद, इत्मिनान से मैं पूरी बात बताऊंगा।” इतना कहकर उस कमरे की ओर बढ़ा जहां हम ठहरे हुए थे। हमारे साथ रमेश भी चला आया। सवेरे जब विदाई होने लगी तब किसी ने हमें उठा दिया। विदाई के बाद फिर हम अपने कमरे में आ गए। फ्रेश होकर जब हम बैठे तो मैंने कहा, “हां, अब बताओ”।

“ठीक है तो सुनिए” वह बोलना शुरू किया। हमारे साथ रमेश भी था।

इसकेे बाद की कहानी मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी।
 
मेरे प्रिय सुधी पाठकों,

पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे बड़े दादाजी ने मेरे पिताजी के साथ समलैंगिक संबंध स्थापित किया। मेरे पापा समलैंगिक संभोग (गुदा मैथुन) के अभ्यस्त थे और इस तरह की कामुक गतिविधियों में शामिल हो कर खूब आनंद उठा रहे थे। उनकी इसी कमजोरी का लाभ उठा कर बड़े दादाजी ने जमशेदपुर में एक विवाह समारोह में भाग लेने के दौरान बड़ी सहजता से उन्हें अपनी वासना का शिकार बना डाला और उनकी कमनीय देह का लुत्फ उठाया। मेरे पापा ने भी बड़े दादाजी के पौरुष और पुष्ट लिंग के संपर्क से जो आनंद प्राप्त किया, वह उनके लिए अभूतपूर्व था। वे बड़े दादाजी के दीवाने हो गए। पुरुष होने के बावजूद मेरे पापा के अंदर स्त्रियों की भांति पुरुषों के साथ संसर्ग का सुख उठाने की प्रवृति स्कूली जीवन से ही आ गई थी। वे काफी कम उम्र से ही गुदा मैथुन के आदी हो चुके थे। अब आगे दादाजी बोलने लगे, “मैं ने जब अशोक से पूछा कि उसके अंदर यह प्रवृत्ति कब से और कैसे आया, तो जिस कमरे में वे ठहरे थे, उसी कमरे में मेरे और अपने मित्र रमेश, जो खुद भी काफी समय से अशोक की गांड़ चुदाई का मज़ा लेता आ रहा था, के सामने अशोक ने बताना शुरू किया : –

“मैं बचपन से ही काफी खूबसूरत था, इसलिए स्कूल के सभी शिक्षक मुझे बहुत प्यार करते थे। कुछ मेरे गाल को नोचते थे तो कुछ मेरे गाल को चूम लेते थे। मैं बहुत शर्मीला किस्म का लड़का था। लड़के भी मुझे लड़कियों की तरह छेड़ते रहते थे इसलिए मैं लड़कों से दूर ही रहना पसंद करता था और लड़कियों के साथ ही रहना पसंद करता था। यह उस समय की बात है जब मैं नौवीं क्लास में पढ़ता था। मेरी उम्र उस समय पंद्रह साल थी। मेरे पापा ने कहा था कि अगर वार्षिक परीक्षा में मैं 85% से कम नंबर लाया तो उनसे बुरा कोई नहीं होगा। मुझे बदकिस्मती से सिर्फ 84% नंबर मिला। मैं पिताजी के डर से छिप कर घर में घुसा और स्कूल बैग घर में रख कर अपने गुल्लक में जो भी पैसे थे, ले कर चुपचाप बाहर निकल आया और सीधे स्टेशन पहुंच गया और ट्रेन से हावड़ा चला गया। हावड़ा पहुंचते-पहुंचते मुझे जोरों की भूख लगी तो मैं सड़क पार करके सामने जो होटल मिला, उसके सामने खड़ा हो कर सोच रहा था कि क्या खाऊं। उस समय रात हो चुकी थी और करीब आठ बज रहा था। मैं वहां खड़ा सोो ही रहा था कि इतने में मेरी ही उम्र का एक लड़का, जो शायद उसी होटल में काम करता था, मेरे पास आया और बोला, “ओय, तू यहां क्या देख रहा है? चल तुझे मालिक बुला रहा है।” मैं ने नजर उठा कर सामने देखा, मिठाईयों के शोकेस के ठीक पीछे कुछ ही दूर अंदर में टेबल के पीछे एक कुर्सी में एक करीब पचास साल का काला कलूटा मोटा आदमी बैठा हुआ था और इशारे से मुझे बुला रहा था। टकला, खुरदुुुुरी दाढ़ी, पकोड़े जैसी नाक, गुब्बारे जैसे फूले हुए गाल, कानों पर लंबे लंबे बाल, पान खा खा कर लाल मोटे मोटे होंठ और आड़े टेढ़े पीले पीले दांत, कुछ मिला कर निहायत ही कुरूप और अनाकर्षक।

मैं डरते डरते उनके सामने गया तो बड़े प्यार से पूछा, “बेटे कहां से आए हो?”

“जी मैं घाटशिला से आया हूं”, मैं बोला।

“अकेले हो?” उन्होंने पूछा।

“जी,” मैं बोला।

“क्या नाम है बेटा?” उन्होंने पूछा।

“जी अशोक”, मैं बोला।

“कहां जाना है?” वह पूछा, जिसपर मैं चुप रहा। वह शायद समझ गया कि मैं घर से भाग कर यहां आया हूं। फिर बड़े प्यार से पूछा, “भूख लगी है?”

“जी,” मैं बोला।

“क्या खाओगे?” उसने पूछा जिस पर मैं फिर चुप रहा।

फिर वह उसी लड़के की ओर मुखातिब हुआ जो मुझे बुलाया था और बोला, “अरे मुन्ना, अशोक को ले जा कर गरमागरम रोटी और तड़का खिलाओ। जाओ बेटा मुन्ना के साथ,” ऐसा कहते हुए उसकी आंखें चमक रही थीं।

मुन्ना मुझे लेकर एक कोने वाले खाली टेबल पर आया और मुझे वहां बैठा कर गरमागरम रोटी और तड़का ला कर मेरे सामने देते हुए कहा, “क्या बात है भाई, मालिक तुम पर बहुत मेहरबान है? क्या वे तुम्हें पहले से जानते हैं?”

मैं ने उसकी ओर देखा और बोला, “नहीं तो।”

“फिर क्या बात है भाई?” वह अब मुस्करा रहा था।

“पता नहीं।” मैं बोला और खाने पर टूट पड़ा, मुझे भूख ही इतनी लगी थी।

जब मैं पेट भर कर खा चुका तो होटल का मालिक उठ कर मेरे पास आया और बोला, “अब तुम कहां जाओगे बेटे?”
 
मैं असमंजस में था कि क्या बोलूं, तभी वह बोल उठा, “कोई बात नहीं, तुम यहीं रह जाओ, तुम्हारे रहने की व्यवस्था मैं यहीं कर देता हूं। मेरा नाम छगनलाल है। तुम मुझे छगन अंकल बोल सकते हो। मुन्ना, कल्लू और रामू यहां इसी होटल में रहते हैं, तुम भी यहां रह सकते हो। अरे मुन्ना, जरा कल्लू को बोलो, अशोक के सोने की व्यवस्था ऊपर वाले तल्ले में कर दे, मेरे बिस्तर के बगल में ही एक बिस्तर और लगा देना इसके लिए।” मुन्ना तुरंत वहां से चला गया और कुछ ही देर में अपने नाम के अनुरूप काला सा छरहरे बदन का मेरी ही उम्र का लड़का कल्लू आ कर बोला, “मालिक, बिस्तर तैयार है।”

“ठीक है, तुम अशोक को ऊपर ले जा कर उसका बिस्तर दिखा दो, जाओ बेटा कल्लू के साथ।” वह मुझसे बोला। मैं कल्लू के पीछे पीछे चल पड़ा और लकड़ी की सीढ़ियों से होता हुआ ऊपर वाले तल्ले पर पहुचा तो देखा, ऊपर वाला तल्ला कोई कमरा नहीं बल्कि पूरा का पूरा तल्ला बड़ा सा हॉल की तरह था जिसके उत्तर की ओर दो चौकियां आस पास पूरब पश्चिम दिशा में लगी हुई थीं जिन पर साफ चादर बिछे हुए थे। सिरहाना पूरब की ओर था। उत्तर पूर्व कोने में एक टेबल और कुर्सी था।

सबसे किनारे वाले बिस्तर की ओर इशारा करके वह बोला, “यह मालिक का बिस्तर है और बगल वाला बिस्तर तुम्हारा है। तुम उस पर सो जाओ, मालिक इस बिस्तर पर सो जाएंगे” इतना कहकर वह नीचे चला गया। जाते वक्त मुझे ऐसा लगा मानो वह अपनी मुस्कराहट छिपाने की कोशिश कर रहा हो। । खैर मैं ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने बिस्तर पर लेट गया। थका हुआ तो था ही, लेटने के तुरंत बाद ही मुझे गहरी नींद आ गई। रात को करीब दस बजे अचानक मुझे ऐसा लगा मानो किसी ने मेेे गांड़ में चाकू घुसेड़ दिया हो। दर्द के मारे मैं तड़प उठा और मेरी नींद खुल गई। मैं दर्द के मारे चीखने के लिए मुंह खोला लेकिन चीख मेेे मुंह में ही दबी रह गई, क्यों कि मेेंरा मुंह किसी के मजबूत हाथों से बंद था। मुझे इस बात का भी आश्चर्य हो रहा था कि मेरे बदन में कोई कपड़ा नहीं था और मैं बिल्कुल नंगा था। मैं पेट के बल लेटा हुआ था और मेरे ऊपर कोई चढ़ा हुआ था जिसने एक हाथ से मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे हाथ से मेरी कमर को जकड़ रखा था। मैं अपने हाथों से मेरे मुंह में सख्ती से कसे हुए हाथ को हटाने की कोशिश करने लगा लेकिन वह हाथ जैसे किसी दानव का हाथ था, टस से मस नहीं हुआ। मैं बेबसी में पैर पटकने लगा और मेरी गांड़ से उठते हुए अकथनीय पीड़ा से मेरी आंखों में आंसू आ गए।

उसी समय मेरे कानों में आवाज आई, “शांत रहो बेटा, छटपटाओ मत, कुछ ही देर में तेरा दर्द खत्म हो जाएगा।” यह होटल के मालिक की आवाज थी। मैं कांप उठा। तो इसका मतलब मेरे ऊपर छगन अंकल चढ़ा हुआ था। मैं एक हाथ मेरी गांड़ की तरफ ले गया तो मेरा दिल धक्क से रह गया। उस भैंस जैसे छगन अंकल का करीब तीन ढाई इंच मोटा लंड मेरी गांड़ में आधा घुसा हुआ था। मुझे कुछ चिपचिपा सा महसूस हुआ, शायद वैसलीन जैसा कुछ तैलीय पदार्थ का इस्तेमाल उसने मेरी कसी हुई कुंवारी गांड़ में अपना मोटा लंड डालने के लिए किया था। वह पूरा नंगा मुझ पर इस तरह सवार था कि मैं हिल भी नहीं पा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई भैंस किसी बकरी को चोद रहा हो। मैं अपनी बेबसी पर सिर्फ आंसू बहा सकता था। गनीमत यह था कि उसने अपने बदन का पूरा बोझ मुझ पर नहीं डाला था, वरना उसके राक्षस जैसे शरीर के बोझ से मैं तो मर ही जाता। कुछ देर वह उसी तरह स्थिर रहा तो मुझे थोड़ी राहत मिली लेकिन अभी भी मेरी गांड़ फटने फटने को हो रही थी।

“देखो बेटे, मैं अपना हाथ तेरे मुंह से हटा रहा हूं लेकिन तुम चिल्लाना मत वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।” उसने कहा और अपना हाथ मेरे मुंह से हटा लिया। मैं पूरी तरह दहशत में आ गया और अपना हाथ पैर ढीला छोड़ दिया। “ओह मां, आह्ह्ह प्लीज अपना लंड मेरी गांड़ से निकाल लीजिए, मैं मर जाऊंगा।” मैं कराहता हुआ बोला।

“तू शांत रहेगा तो तुझे कुछ नहीं होगा। थोड़ा दर्द बर्दाश्त कर ले फिर तुझे बहुत मजा आएगा बेटा।” कहते हुए वह मेरी गांड़ में लंड फंसाए हुए मेरी कमर पकड़ कर मुझे थोड़ा ऊपर उठा लिया और हाथों और घुटनों के बल चौपाए की तरह करके मेरे पीछे से आपने लंड का दबाव बढ़ाने लगा।
 
जैसे जैसे उसका लंड घुसता जा रहा था मेरी गांड़ का सुराख फैलता जा रहा था और मैं दर्द की अधिकता से रोने और गिड़गिड़ाने लगा, “और नहीं डालिए ओह ओ्ओ्ओ्ओह मां मर जाऊंगा, आह मेरी गांड़ फट रही है, छोड़ दीजिए ना प्लीज।” मेरे रोने गिड़गिड़ाने का उस जालिम पर कोई असर नहीं हुआ और पूरा लंड मेरी गांड़ में घुसा ही दिया। ऐसा लग रहा था मानो उनका लंड मेरे गुदा द्वार से लेकर अंतड़ियों तक ठोंक दिया गया हो। “देख बेटा, मेरा पूरा लौड़ा तेरी गांड़ में घुस गया है, तेरी गांड़ फटी क्या? नहीं ना? थोड़ा सब्र कर, सब ठीक हो जाएगा।” वह मुझे सांत्वना देते और पुचकारते हुए बोला। मुझे तो अभी भी मेरी जान निकली सी महसूस हो रही थी, मेरी आंखों से अभी भी आंसुओं की धारा बह रही थी। पूरा लंड घुसा कर वह कुछ पलों के लिए रुक गया, फिर धीरे धीरे बाहर करने लगा। जैसे जैसे बाहर निकल रहा था ऐसा लग रहा था मानो मेरी गांड़ के अंदर खालीपन (शून्यता) आ गई हो और मैं ने राहत की लंबी सांस लेने लगा किंतु यह अहसास क्षणभंगुर था। पुनः उस कसाई ने वही क्रिया दोहराई और पूरा लंड दुबारा डाल कर रुक गया। इस बार उसने मुझे एक हाथ से संभाला हुआ था और दूसरे हाथ से पहले मेरे सीने के उभारों को सहलाने लगा और फिर धीरे धीरे दबाने लगा। फिर वहां से हाथ हटा कर मेरे लंड को सहलाने लगा और मुट्ठी में लेकर मूठ मारने लगा। मुझे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था और मैं धीरे धीरे मस्ती में भर गया और भूल गया कि उनका लौड़ा मेरी गांड़ में घुसा हुआ है।

“आह ओह ओ्ओ्ओ्ओह उफ्फ” मैं मस्त हो कर आहें भरने लगा। उस कमीने की समझ में आ गया कि अब मैं दर्द को भूल कर मूठ मरवाने के आनंद में डूब गया हूं तो फिर एक बार लौड़ा निकाल कर घप्प से लंड का प्रहार कर दिया। “आह्ह्ह्ह्ह्” इस बार मैं ने थोड़ा सा ही दर्द महसूस किया। फिर वही क्रिया बार बार दुहराने लगा, पहले धीरे धीरे, फिर वह धक्कों की रफ़्तार बढ़ाता चला गया। अब मैं सारा दर्द भूल गया था। मैं मूठ मरवाने के आनंद में इतना खो गया कि कब मेरी गांड़ चुदते चुदते ढीली हो गई मुझे पता ही नहीं चला। करीब पांच मिनट में ही थरथराने लगा और आंखें बंद कर आनंद के सागर में गोते खाने लगा और “आ्मैंआ्आ्आ्ह्ह्ह्ह” चरमोत्कर्ष के अकथनीय आनंद में सराबोर होकर झड़ने लगा, फिर खल्लास हो कर ढीला पड़ गया। मेरे जीवन का वह पहले स्खलन का अद्भुत चिरस्मरणीय आनंदमय अहसास। अब तक तो वह कसाई मुझे आराम से भंभोड़ना चालू कर दिया था। मेरे सीने के उभारों को मसलने लगा, दबाने लगा ओह, और मेरी गांड़ को चोद चोद कर मुझे दूसरी ही दुनिया में पहुंचा दिया।

अजीब अजीब शब्दों के साथ अपने उद्गार प्रकट करता रहा, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरी जान, आह्ह्ह्ह मेरे प्यारे चिकनी गांड़ वाले गांडू, मस्त गांड़ है रे हरामी, तेरी तरह गांड़ जिंदगी में नहीं चोदा मेरी रंडी कुतिया, उफ़ उफ़ आह आह।” करीब बीस मिनट तक मुझे बुरी तरह चोदा और फिर जब खलास होने का समय आया तो मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया कि ऐसा लगा मानो मेरी सांस ही रुक जाएगी। करीब एक मिनट तक मेरी गांड़ में अपना वीर्य फचफचा के डालता रहा फिर किसी भैंसे की डकारते हुए मुझे लिए दिए लुढ़क गया। मैं चकित था कि शुरू शुरू में इतना भयानक दर्द अंत अंत में कैसे छूमंतर हो गया मुझे पता ही नहीं चला। उनका लंड करीब करीब साढ़े छः इंच लम्बा था, जिससे पहली ही बार में चुदने में सक्षम हो गया था।
 
“ओह बेटा मजा आ गया। बहुत सुन्दर गांड़ है रे तेरा। तुझे मजा आया ना?” उसने कहा।

“ओह अंकल” मैं शरमा गया और उनके काले कलूटे तोंदियल शरीर से लिपट कर उनके सीने पर सिर रख कर सिर्फ इतना ही बोल पाया, “हां अंकल”।

“आज से मैं तुम्हें अपनी रानी बना कर रखूंगा मेरी जान। आज से पहले तेरे जैसा इतना सुंदर और मस्त लौंडा मुझे कभी नहीं मिला। कल से तू भी इस होटल का मालिक है। तुझे जो चाहिए बोल देना मेरी छमिया, तेरे कदमों में लाकर डाल दूंगा। अब से तू मेरी रानी और मैं तेरा राजा। मुझे छोड़ कर कहीं और जाने की सोचना भी मत मेरी जान। मुझे तुमसे प्यार हो गया है मेरे लंड की रानी।” वह भावनाओं में बहकर बोला और मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर मेरे होंठों पर अपने मोटे-मोटे होंठों को रख कर भरपूर चुम्बन दिया। इधर मैं सोच रहा था कि हर्ज ही क्या है यहां इनके साथ रहने में। मुझे रानी बना कर रखेगा, मेरी सारी सुख सुविधा का ख्याल रखेगा, आराम ही आराम, राज ही राज। जिस मासूमियत और इमानदारी से उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, मैं उसका कायल हो गया। मैं उनके कुरूप चेहरे की सारी कुरूपता भूल कर उनके होंठों पर अपने होंठों को चिपका दिया और उनके प्रेमरस में सराबोर होता रहा।

फिर मैं किसी लौंडिया की तरह शरमाते हुए उनके नंगे शरीर से चपके चिपके बोला, “मैं कहां जाऊंगा भला आपके जैसे प्यारे प्यारे महबूब को छोड़कर। आज आपने मुझे एक नये सुख से परिचित कराया। नयी दुनिया का दर्शन कराया। मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला हूं। आज से आप मेरे राजा हो और मैं आप का वही हूं, जिस भी संबोधन से मुझे पुकारिए, रानी, प्यारी, चिकना, लौंडा या कुछ भी।” मैं भी भावनाओं में बहकर कच्ची उम्र की नादानी में बोल उठा। फिर उसी सुखद अहसास के साथ एक दूसरे के नंगे तन से लिपटे नींद की आगोश में चले गए।

इसके आगे की घटना मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी।
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे पापा समलैंगिक बने। उस दिन के बाद उस होटल के मालिक द्वारा रोज मेरे साथ यही क्रम दुहराया जाने लगा, नतीजा यह हुआ कि धीरे धीरे गुदा मैथुन मेरी आदत बन गई। करीब दस दिनों बाद एक दिन मेरे मामा ने मुझे वहां देख लिया और अपने साथ ले जाने लगे। होटल के मालिक ने जबरन रोकने की कोशिश की तो मेरे मामा ने पुलिस की सहायता ली और मुझे अपने साथ घर ले आए। हावड़ा में दस दिन की अवधि में मैं गुदामैथुन का अभ्यस्त हो गया और आज तक जारी है। मैं शादी करने का भी इच्छुक नहीं था, किंतु घर वालों की इच्छा को टालना मेरे वश में नहीं था, मजबूरी में मुझे शादी करनी पड़ी। मुझे इस बात का दुख है कि मैं लक्ष्मी को पूरी तरह पत्नी सुख नहीं दे सकता हूं। पर-पुरुषों से उसके अंतरंग संबंधों के बारे में भी मुझे पता है लेकिन अपनी कमजोरी के कारण मैं चुप रहता हूं। वह अब भी सोचती है कि मुझे उसकी इन कारगुज़ारियों की जानकारी नहीं है। अपनी वासना की भूख शांत करने के लिए उसने कई पुरुषों से अंतरंग सम्बन्ध कायम कर लिया है, इससे वह खुश है और हमारे परिवार में भी बिखराव का कोई खतरा नहीं है, इसलिए मैंने अपना मुंह बंद रखना ही बेहतर समझा।” इतना कह कर वह चुप हो गया।

यही है अशोक की कहानी।” बड़े दादाजी इतना कहकर चुप हो गये। सभी लोग खामोशी के साथ पूरी कहानी सुनते रहे। सभी के चेहरों पर अलग-अलग भाव थे। दादाजी के चेहरे पर ग्लानी स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी, क्योंकि उनकी कठोरता के कारण मेरे पापा को इस हादसे का शिकार होना पड़ा और मेरे पापा इस रास्ते पर बढ़ते चले गए। मेरी मां के भीतर क्या चल रहा था अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था। जहां मेरे पापा के वर्तमान स्थति के लिए सहानुभूति थी वहीं इस बात की ग्लानि भी थी कि पर-पुरुषों से गुप्त अंतरंग संबंध स्थापित करके अपनी वासना पूर्ति के बारे में, जैसा कि वह सोच रही थी कि मेरे पापा अनभिज्ञ हैं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं था, बल्कि मेरे पापा को मेरी मां के बारे में सबकुछ पता था। मैं अपने बारे में क्या कहूं। मेरे परिवार के हर एक सदस्य के बारे में एक एक करके जो रहस्योद्घाटन हो रहा था, अब मुझे कुछ भी आश्चर्य नहीं हो रहा था। मैं ने भी मन में ठान लिया कि जैसे सभी अपने अपने ढंग से जी रहे हैं और जीने का लुत्फ उठा रहे हैं, मैं भी अपने ढंग से जिऊंगी और जीवन का भरपूर आनंद उठाऊंगी। अपने पांचों बुजुर्ग पतियों के संग खुल कर रंगरेलियां मनाते हुए अपनी ही शैली में जीवन का भरपूर आनंद लूंगी।

मेरी मां के मुख से मेरे पापा की नामर्दी और बड़े दादाजी के मुख से पापा की समलैंगिकता के बारे में सुनते सुनते काफी समय हो चुका था। मैं उठकर शाम की चाय बनाने के लिए किचन की ओर बढ़ी और हरिया भी मेरे पीछे पीछे उठ कर चला आया। जैसे ही मैं किचन में घुसी, हरिया ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरी चूचियों को दबाने लगा। “ओह रानी, तेरी मक्खन जैसी मस्त चूचियां।”

“अरे क्या करते हो राजा?” मैं आहिस्ते से बोली।

“कुछ नहीं रानी, तू चाय बना, मैं अपना काम करता हूं,” कहते हुए उसने मेरा लहंगा कमर तक उठा दिया और झट से मेरी पैंटी को नीचे खिसका दिया। पता नहीं उसने कब अपने पैजामे को नीचे गिरा दिया था। अपना तना हुआ लिंग सीधे मेरी पनियाई हुई योनि में पीछे से एक ही झटके में घुसेड़ दिया।

“हाय दैया, कितने बेशरम हो जी। इतनी भी क्या बेसब्री?” मैं हकबका उठी।

“तू है ही इतनी मस्त कि बर्दाश्त ही नहीं होता है। तुझे तो पता ही नहीं कि कहानी सुनते सुनते मेरा लौड़ा कैसा अंगड़ाई ले रहा था। चल तू अपना काम कर, मेरे लंड की प्यास भी बुझ जाएगी और तुझे चाय बनाने में मज़ा भी आएगा।” हरिया बड़ी बेशर्मी से बोला और मेरी चूचियों को मसलते हुए चोदने लगा।

“ओह राजा, ठीक है तू मुझे चोदता रह, मैं चाय बनाती हूं” मैं भी मस्ती में भर कर बोल उठी। जब तक चाय तैयार हुआ, हरिया ने चुदाई का एक दौर पूरा कर लिया और मैं भी उसके साथ ही झड़ गई, “ओह ओ्ओ्ओ्ओह राजा साले चोदू मादरचोद, झड़ गई आ्आ्आह ओ्ओ्ओ्ओह रे मैं।”

“आह रानी ओह ओ्ओ्ओ्ओह मजा आ गया, मैं भी गया ओह मेरी चूतमरानी, जितना भी तुझे चोदूं मन ही नहीं भरता, इतनी मस्त है तू, क्या किस्मत पाया है हम लोगों ने, उफ़ क्या लौंडिया है तू मेरी जान” हरिया बोला।

“अब ज्यादा प्रशंसा मत कीजिए मेरे स्वामी, चलिए चाय लेकर बैठक में।” मैं बोली और फटाफट हम अपना अपना हुलिया दुरुस्त कर के चाय लेकर बैठक में आ गए, मगर मेरे चेहरे की रंगत ने किचन के अंदर की लीला का पर्दाफाश कर दिया। “साले मादरचोद, अकेले अकेले चोद लिया ना।” दादाजी मुस्कुरा कर बोले। मैं शर्म से लाल हो उठी। बैठक में उपस्थित सारे लोग हंसने लगे।

“बहुत बेशरम हो गई है कमीनी,” मेरी मां बड़बड़ाई।

“आखिर बेटी किसकी हूं” मैं ने भी पलटवार किया।
सभी खिलखिला कर हंसने लगे।

“अरे भाई हम सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। कोई किसी से कुछ कम बेशरम थोड़ी है।” नानाजी बोले।

“हां भई हां। चलो मान लिया, एक सुखी परिवार बेशरमों का। आज का क्या प्रोग्राम है?” बड़े दादाजी बोले।

“आज का प्रोग्राम मेरे अनुसार होगा।” मैं बोली।

“कैसा प्रोग्राम?” सभी प्रश्नवाचक दृष्टि से मुझे देखने लगे।

“वो आपलोग आठ बजे रात को देख लीजिएगा” मैं ने रहस्यात्मक अंदाज में उत्तर दिया।

इसकेे बाद की कहानी मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी।
बोर होता रहा।

फिर मैं किसी लौंडिया की तरह शरमाते हुए उनके नंगे शरीर से चपके चिपके बोला, “मैं कहां जाऊंगा भला आपके जैसे प्यारे प्यारे महबूब को छोड़कर। आज आपने मुझे एक नये सुख से परिचित कराया। नयी दुनिया का दर्शन कराया। मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाने वाला हूं। आज से आप मेरे राजा हो और मैं आप का वही हूं, जिस भी संबोधन से मुझे पुकारिए, रानी, प्यारी, चिकना, लौंडा या कुछ भी।” मैं भी भावनाओं में बहकर कच्ची उम्र की नादानी में बोल उठा। फिर उसी सुखद अहसास के साथ एक दूसरे के नंगे तन से लिपटे नींद की आगोश में चले गए।

इसके आगे की घटना मैं अगली कड़ी में ले कर आऊंगी। [/b][/color]
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पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि मेरी सुहागरात में मेरे पांचों पतियों और पंडित जी ने मेरी मां और चाची के साथ वासना का नंगा नाच खेला और मनमाने ढंग से उनको भोगा। मैं ने भी बड़ी चालाकी से कुरूप, गन्दे, बेढब, मगर दमदार लिंग वाले पंडित जी से अपनी वासना की आग शांत कर ली। पंडित जी की अदम्य संभोग क्षमता की मैं कायल हो गई। इसी रात में मेरे पिताजी की नामर्दी और समलैंगिकता के बारे में हमें पता चला। सवेरे सभी लोग नहा धो कर फ्रेश होकर बैठक में बैठे गप मार रहे थे, इधर नाश्ता बनाने के लिए मैं और हरिया किचन में व्यस्त थे। अचानक हरिया ने मुझे पीछे से अपनी बाहों में दबोच लिया। मैं हड़बड़ा गई और छूटने की कोशिश का नाटक करने लगी।

“छोड़ो मुझे, रात में मां और मुझे चोद कर मन नहीं भरा क्या?” मैं बनावटी गुस्से से बोली।

“तेरे जैसी बीवी पाकर तो हम धन्य हो गये रानी। इतनी मस्त लौंडिया हमारी बीवी होगी इसकी तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। तुझे एक बार चोदने के बाद मन ही नहीं भरता है, ऐसा लगता है तुझे चिपका कर रखूं। देखो अभी भी मेरा लौड़ा कैसा फनफना रहा है।” वह बोल रहा था और मेरी चूचियों को बेरहमी से मसलना शुरू कर दिया। मेरी नाईटी कमर से ऊपर तक उठा दिया और पैंटी को नीचे खिसका दिया।

मुझे भी मज़ा आ रहा था लेकिन बनावटी गुस्से में बोली, “छोड़िए ना, कैसे आदमी हैं, अभी कोई आ जायेगा तो?”

“कोई आ भी गया तो क्या? सभी तो तेरे पति हैं।” बेशर्मी से बोला।

“मां या चाची आ गई तो?” मैं बोली।

“आने दो, तेरी मां भी तो मुझ से चुद चुकी है। हां तेरी चाची को चोदने की तमन्ना मन में रह गई। मुझे और करीम को तो घास ही नहीं डालती है। मौका मिला तो साली को ऐसा चोदूंगा कि वह भी क्या याद रखेगी।” बोलते बोलते उसने मुझे किचन के स्लैब पर ही झुका दिया और बिना किसी पूर्वाभास के अपना तना हुआ लिंग एक ही करारे ठाप से मेरी योनि में पैबस्त कर दिया।

“उफ्फ” मेरे मुख से आनंद की सिसकारी निकल पड़ी। एक पल रुक कर फिर जो उसने चोदना शुरू किया तो मानो भूचाल आ गया। “आह ओह ओ्ओ्ओ्ओह उफ्फ” में मस्ती में डूबती चली गई।

“आह रानी कितनी मस्त चूत है ओह मेरी जान।” धकाधक, फचाफच कुत्ते की तरह चोदने लगा और करीब दस मिनट में ही मुझे स्वर्ग की सैर करा दिया। अपने वीर्य को मेरी योनि में उंडेल कर मुझसे अलग हुआ और हम दोनों अपने कपड़े दुरुस्त कर पुनः नाश्ता बनाने में जुट गए।

नाश्ता बनाते बनाते मैं ने हरिया से कहा, “अभी आप कह रहे थे कि चाची ने कभी आप लोगों को घास नहीं डाला। अगर चाची मान जाए तो?”

“क्या? ऐसा हो जाए तो मजा ही आ जाएगा। मैं और करीम तो कई दिनों से इस ताक में हैं। ऐसा चोदेंगे कि वह भी क्या याद रखेगी।” तपाक से हरिया ने कहा।

“ठीक है फिर आज रात को तैयार रहिए।” मैं मुस्कुरा कर बोली।

“ओह मेरी जान, अगर ऐसा हुआ तो मैं तेरा गुलाम हो जाऊंगा।” मुझे बांहों में भर कर चूम लिया।

“अब ज्यादा मस्का मारने की जरूरत नहीं है। रात का इंतज़ार कीजिए।” मैं छिटक कर अलग होते हुए बोली।

इतने में चाची और मां भी किचन में आ गयीं।

“क्या हो रहा है कामिनी?” चाची बोली।

“कुछ नहीं बस नाश्ता तैयार कर रहे हैं।” मैं बोली, लेकिन मेरा चेहरा चुगली कर चुका था।

“तुम लोगों को देख कर तो लगता है नाश्ता कर चुके हो।” चाची मुस्कुरा कर बोली। हम दोनों को तो मानो सांप सूंघ गया।

“जैसा आप सोच रही हैं वैसा कुछ नहीं है चाची।” मैं ने किसी तरह से बात को संभालने की कोशिश की किन्तु असफल रही।

“सब समझती हूं री। नयी नयी शादी है। नया नया स्वाद मिल चुका है। रात को तो बड़ी बेशर्मी से सबके सामने चुद रही थी और अब काहे की शर्म।” चाची बोली।

“छोड़ो ये सब बातें और नाश्ता जल्दी तैयार करो। इन कमीनों के मुंह लग के कोई फायदा नहीं। इसने तो अपनी जिंदगी बर्बाद कर ही ली है। पांच पांच मर्द, छि:, द्रौपदी बनने चली है। भगवान जाने इसका क्या होने वाला है। इनको इनके हाल पर छोड़ दो। नाश्ता करने के बाद शॉपिंग के लिए जाऊंगी। अगर तुझे चलना है तो तू भी मेरे साथ चल।” मेरी मां के कहने के लहजे में तल्खी मैं महसूस कर सकती थी।

“मम्मी तुम मेरी चिंता तो छोड़ ही दो। मैं अपने इस हाल में बेहद खुश हूं। मैं अपनी जिंदगी अपने तौर पर जी कर अपना कैरियर भी बना कर दिखा दूंगी। तुम अपने बेटे को संभालने की चिंता करो।” मैं भी उसी लहजे में बोली।

“तुम लोग शुरू हो गये। अब बस करो। ” कहते हुए चाची ने बात खत्म कर दिया और हम फटाफट नाश्ता तैयार कर खाने की मेज पर आ गए। सबने मिलकर नाश्ता किया और मां चाची को लेकर शॉपिंग के लिए चली गई। इधर रात के लिए मेरे दिमाग में शैतानी कीड़ा चलने लगा। दोपहर खाना खाने से पहले मां और चाची शॉपिंग करके आ गयीं। खाना खाते वक्त हमारे बीच चुहलबाज़ी होती रही लेकिन तब भी मम्मी निरपेक्ष थीं।
 
खैर मुझे क्या। मेरे दिमाग में तो आज रात का प्रोग्राम घूम रहा था।

खाना खाने के बाद आराम करने के लिए मम्मी और चाची अपने अपने कमरों में चले गए लेकिन मेरे पांचों पांडव मेरे साथ मस्ती के मूड में थे। मेरे पीछे पीछे सभी मेरे कमरे में आ गए और आनन फानन में सबने मुझे नंगी कर दिया। मैं झूठ मूठ की ना नुकुर करती रही लेकिन शनै: शनै: अपने आपको उनकी कामुकता के हवाले कर दिया। कौन क्या कर रहा था इससे मुझे कोई लेना देना नहीं था। मेरे होंठों को चूमा जा रहा था, चूसा जा रहा था, मेरे उरोजों को मसला जा रहा था चूसा जा रहा था, मेरी योनि और गुदा द्वार चाटी जा रही थी और मैं आंखें बंद कर मस्ती के आलम में सिसकारियां भर रही थी। इसी क्रम में कब सभी मादरजात नंगे हो गए मुझे पता ही नहीं चला।

मेरी उत्तेजना के चरमोत्कर्ष को भांप कर दादाजी ने मेरी पनियायी योनि में अपने लिंग को सट्टाक से ठोंक दिया “ले मेरा लौड़ा मेरी रानी” और करवट ले कर बड़े दादाजी के लिए मेरी गुदा का द्वार उपलब्ध कर दिया।

बड़े दादाजी ने मौके पर चौका जड़ दिया और “अब मेरा लंड खा” कहते हुए एक ही करारे प्रहार से अपने लिंग को मेरी गुदा में पैबस्त कर दिया। फिर दोनों ओर से मुझे लगे झकझोरने और मैथुन में रम गए। हरिया अपने मूसल सरीखे लिंग को मेरे मुंह में डाल कर मुखमैथुन में लीन हो गया। मेरे दोनों उरोजों पर नानाजी और करीम टूट पड़े और चूस चूस कर लाल कर दिया। करीब पंद्रह बीस मिनट बाद ज्यों ही दादाजी और बड़े दादाजी मुझ पर अपनी पहलवानी दिखा कर फारिग हुए, नानाजी और करीम ने उनका स्थान ले लिया और शुरू हो गये अपनी जोर अजमाइश में।

“अब मेरे लंड का स्वाद चख बुरचोदी साली कुतिया,” कहते हुए करीम ने अपने मेरी योनि में हमला बोला वहीं नानाजी ने “मेरा लौड़ा भी ले मेरी गांड़ मरानी रानी” कहते हुए मेरी गुदा पर। हालांकि मैं दादाजी के लिंग से अपनी योनि कुटवा चुकी थी किंतु करीम के विशाल लिंग ने मुझे चीख निकालने पर विवश कर दिया, आखिर उन लोगों के बीच सबसे लंबा और मोटा लिंग उन्हीं का तो था। मेरे मुंह में हरिया का लिंग अब फूल कर झड़ने के कागार पर था, अतः मेरी चीख हलक से बाहर नहीं निकल सकी, घुट कर रह गई।

“ले पी मेरे लंड का रस आ्मैंआ्आ्आह्ह्ह्” कहते हुए हरिया मेरे मुंह में ही झड़ने लगा और मैं उसी अवस्था में हरिया के वीर्य का एक एक कतरे को हलक से उतारती चली गई। हरिया के फारिग होते ही नानाजी और करीम पूरी स्वतंत्रता के साथ मेरे तन पर पिल पड़े थे ऐसा लग रहा था मानो दोनों के बीच घमासान संग्राम छिड़ गया हो, जिनके बीच मैं पिसती जा रही थी। करीब पच्चीस मिनट बाद करीम ने मुझे छोड़ा और निढाल हो गया। इधर नानाजी मुझे कुतिया बना कर अपने लिंग गांठ को मेरी गुदा के अंदर फंसा कर पलट गये और कहने लगे, “आह मेरी कुतिया, ओह मेरी लंड रानी,” उसी स्थिति में हम एक दूसरे से करीब दस मिनट और लटके रहे। आहिस्ता आहिस्ता नानाजी का लिंग गांठ संकुचित हो हुआ और फच्चाक की जोरदार आवाज के साथ बाहर निकल आया।

“ओह अम्म्म्म्म्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह” मैं पसीने से पूरी तरह तर बतर हो चुकी थी। इस दौरान मैं कम से कम चार बार खल्लास हुई। उतेजना के आलम में कितनी बेहिसाब गन्दी गन्दी गालियों का प्रयोग हुआ पता नहीं। इन पांचों ने तो मिलकर मुझे पूरी तरह निचोड़ डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। मैं तो जैसे दूसरी दुनिया में ही पहुंच चुकी थी। नुच चुद कर निढाल आंखें बंद किए मैं लंबी लंबी सांसें ले रही थी। यह सब कुछ मेरे लिए बेहद सुखद था, स्वर्गीय, अवर्णनीय।

“ओह ओह ओ्ओ्ओ्ओह मेरे स्वामियों, कितना आनन्द, उफ़, धन्य कर दिया आप लोगों ने मुझे।” मैं बड़ बड़ कर रही थी। मेरे चारों ओर मेरे पति तृप्त हो कर पसरे हुए थे। मेरी कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। शाम को करीब पांच बजे मेरी नींद खुली तो देखा हम सब अभी तक उसी तरह नंग धड़ंग अवस्था में बेतरतीब ढंग से पसरे हुए थे। मैं हड़बड़ा कर उठी और टूटते शरीर के बावजूद बाथरूम में जाकर फ्रेश हो गई और रात के कार्यक्रम के लिए तैयारी करने लग गयी।

इसके बाद क्या हुआ?

अगली कड़ी में।
 
आशा करती हूं कि आप लोगों ने “कामिनी की कामुक गाथा के पिछले भाग जरूर पढ़ें होंगे जिसमे मेरे पापा के बारे में बताया था पर मेरे पापा के साथ और भी काफी कुछ हुआ था उसी होटल में, जिसके बारे में मैं बताना भूल गयी थी। उस कड़ी में आप ने पढ़ा कि मेरे पापा अपने स्कूली जीवन में ही किस तरह समलैंगिक संबंध से परिचित हुए। दादाजी के डर से घर से भाग कर किस तरह हावड़ा के एक होटल के मालिक के चंगुल में जा फंसे जिसने मेरे पापा की सुंदरता पर मोहित हो कर उन्हें अपने होटल में पनाह दी और उनका कौमार्य भंग किया या यों कहें कि उनकी कुंवारी गुदा का उद्घाटन कर दिया। यह मेरे पापा के जीवन में समलैंगिकता का प्रथम अनुभव था और आश्चर्यजनक रूप से उन्हें इसमें अद्भुत आनंद भी प्राप्त हुआ। प्रथम रात्रि में ही संभोग सुख से परिचित हो कर वे होटल मालिक के दीवाने हो गए। इसके आगे की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनिए: –

“सुबह जब मेरी नींद खुली तो देखा कि मैं अभी भी नंगे, पूरी बेहयाई के साथ उस मोटे भैंसे के शरीर से चिपका और उनके मजबूत बांहों में सिमटा हुआ था। अब मैं ध्यान से उनके पूरे शरीर का मुआयना करने लगा। पूरा शरीर काले भैंस की तरह था और उसके सारे शरीर पर बाल ही बाल भरा हुआ था। बड़ा सा तोंद उनके सांसों के साथ फूल पिचक रहा था। बांहें मेरी जांघों की तरह मोटे मोटे थे। उनकी जांघें मेरी कमर की मोटाई के बराबर थे। उनका कद करीब करीब छः फुट के करीब रहा होगा। उनका लंड इस वक्त सोई हुई अवस्था में भी पांच इंच के करीब लंबा रहा होगा। मैं कल्पना करने लगा कि तनाव की स्थिति में यही लंड कम से कम छः से साढ़े छः इंच तो अवश्य रहा होगा या फिर सात इंच रहा होगा। लंबाई के हिसाब से भी उसकी मोटाई भी रही होगी जिसके प्रहार को मैं ने अपनी संकीर्ण गुदा मार्ग में झेला और उस प्रथम गुदा मैथुन के द्वारा मेरी गांड़ का कुंवारापन छिन गया था। मैं इस बात पर भी चकित था कि इस भैंसे सरीखे मर्द की काम पिपासा को किस तरह शांत कर सका। मेरे साथ जो भी हुआ वह आकस्मिक था, दर्दनाक था, किंतु अंततः इस घटना ने मुझे अत्यंत सुखद अनुभव भी प्रदान किया। मेरी गांड़ में अभी भी मीठा मीठा दर्द हो रहा था और मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था कि मेरी गुदा का द्वार फूल गया है। मेरा हाथ अनायास ही मेरी गांड़ पर चला गया और मैं यह महसूस कर चौंक पड़ा, हाय राम, सचमुच में मेरी गुदा का द्वार काफी फूल गया था। खैर जो भी हो, मैं गुदा मैथुन के अनिर्वचनीय आनंद से परिचित हो गया था और इसके लिए मैं इस जंगली भैंसे का अहसानमंद था। मेरे लिए इस सुबह का सूरज एक नया दिन और नये सुखद अध्याय को लेकर उदय हुआ था। मैं कृतज्ञ था इस भैंसे का और अपनी कृतज्ञता जताने के लिए उस होटल के मालिक के नग्न देह से चिपक कर उनके बदशक्ल चेहरे पर बेसाख्ता चुंबनों की बौछार कर बैठा।
 
वह भैंसा भी मुझे अपनी बाहों में भर कर मेरे होंठों को चूम लिया और बोला, “मेरी जान, मेरी रानी, रात में तूने मुझे इतनी खुशी दी कि मैं तेरा गुलाम बन गया। आज से यहां के जितने नौकर हैं, सब तेरे नौकर हैं। तू इस होटल की मालकिन है। जा ऐश कर।” मैं उठ कर ज्यों ही बाथरूम की ओर जाने के लिए कदम बढ़ाया, गांड़ के दर्द से बेहाल हो उठा। बड़ी मुश्किल से एक एक कदम उठाते हुए बाथरूम गया और ज्यों ही टॉयलेट में बैठा, मेरे फैले हुए मलद्वार से होटल मालिक के वीर्य से लिथड़ा मल भरभरा कर निकलने लगा और पूरा पेट साफ़ हो गया। मैं फ्रेश होकर किसी प्रकार ऊपर तल्ले से जैसे ही नीचे आया, मेरी बदली हुई चाल के कारण मुन्ना और कल्लू गहरी नजरों से मुझे देखने लगे और मुस्कुराने लगे। मेरी हालत देख कर छगन अंकल ने मुझे कल्लू के साथ फिर वापस ऊपर तल्ले में भेज दिया और कल्लू को हिदायत दी कि वह पूरे दिन मेरे साथ रहे और मेरे आराम का पूरा ख्याल रखे।

कल्लू जब मेरे साथ ऊपर तल्ले पर आया तो मुझ से पूछा, “क्या हुआ भाई कल रात?”

“कुछ भी तो नहीं” मैं शरमाते हुए बोला।

“अरे हमसे क्या छिपाना। हमें सब पता है कल रात तेरे साथ क्या हुआ। तेरी चाल ही सबकुछ बता रही है। हमें पता है ऊपर वाले तल्ले में मालिक किसी को क्यों सुलाता है। हमारे साथ भी यह हो चुका है। तू तो हमसे कई गुना खूबसूरत है। तुझ पर तो लगता है लगता है मालिक पूरा फिदा हो गया है। जिस तरह वह तेरा पूरा ख्याल रख रहा है, ऐसा लगता है तू यहां पर राज करेगा।” वह बोला। मैं मारे शरम के पानी पानी हो गया।

फिर कालू मुझे आराम से सुला कर बोला, “तू बढ़िया से आराम कर ले, मैं चलता हूं,” कहकर वह नीचे चला गया। मैं पूरे दिन आराम किया और रात के वक्त जब छगन अंकल सोने के लिए आया तो एक खास किस्म का मलहम उसके हाथ में था, मेरे कपड़ों को उतार कर उस मलहम को बड़े प्यार से मेरी गांड़ में लगाया। कुछ ही मिनटों में मेरा दर्द गायब हो गया। मैं उनसे लिपट गया और अपने नंगे बदन को उनकी बांहों में समर्पित कर दिया। “ओह मेरे स्वामी, कर रात की तरह आज मुझे फिर वही सुख दे दीजिए ना राजा।” मैं बेसब्री से उनके लुंगी को खोल कर नंगा कर दिया और उनके लंड को पकड़ लिया।

छगन अंकल ने बड़े प्यार से मुझे बांहों में लेकर चूमा और कहा, “वही मज़ा आज भी और आने वाले समय में भी देने वाला हूं मेरी रानी। आज तू पहले मेरे लौड़े से जी भर कर खेल। अपने मुंह में लेकर अच्छी तरह से चूस। फिर मैं तुझे जन्नत की सैर कराऊंगा मेरी रानी।” मैं पहले उनके फनफनाए लौड़े को हाथों में लेकर सहलाने लगा, फिर मुंह से चूमा और फिर मुंह में ले कर लॉलीपॉप की तरह चूसने लगा। उफ्फ, उस वक्त मेरे अंदर वासना की भयंकर आग धधकने लगी थी। अब उसने मुझे बड़े प्यार से लिटा दिया और मेरे दोनों पैर फैला कर अपने कंधों पर उठा लिया और अपना लौड़ा मेरी गांड़ में घुसाने लगा।
 
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