desiaks
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अपने ससुराल से तो मैं अलग थी लेकिन अपने पुत्र क्षितिज को मैंने एक अच्छे विद्यालय के हॉस्टेल में डाल दिया था ताकि मैं अपना कैरियर संवार सकूं। इधर मैं नौकरी ज्वॉईन करने के बाद तरक्की की सीढियां फलांगती हुई शाखा प्रबंधक के पद पर पहुंच गई और उधर क्षितिज, हॉस्टेल में रह कर प्लस टू तक की पढा़ई समाप्त कर एन आई टी दुर्गापुर में प्रवेश के लिए चुन लिया गया। अच्छी रैंकिंग की बदौलत उसे विषय मिला आई टी। मेरे और क्षितिज के बीच बहुत अच्छा संबंध था। मेरे संघर्ष से बखूबी परिचित था इसलिए मेरी बड़ी इज्जत करता था। वह मेरा बड़ा अच्छा दोस्त भी था। अपनी सारी बातें मुझसे साझा करता रहता और सलाह लेता रहता था। छुट्टियों में जब भी आता, अपने दादा दादी से जरूर मिलने जाता था किंतु अधिकतर समय मेरे पास ही बिताना पसंद करता था। मैं पूरी कोशिश करती थी कि मेरे ऑफिस के कार्यों के कारण उसकी छुट्टियों का बहुमूल्य समय बरबाद न होने दूं। इसके अलावा मेरे परपुरुषों से अंतरंग संबंधों की भनक तक मैं ने उसे लगने नहीं दी। वैसे तो 19 साल तक में ही वह पूर्ण रूप निखर चुका था, छ: फुटा, गोरा रंग, घुंघराले बाल और अच्छी खासी सेहत वाला युवक, लेकिन 21 साल की उम्र होते होते पूरा विकसित व्यक्ति में तब्दील हो चुका था। पता नहीं मेरे पांचों पांडवों और पंडित जी में से किसके वीर्य की उपज था वह, या फिर मेरी कोख में उन लोगों के मिश्रित वीर्य का फल था।
एक बार यूं ही पूजा की छुट्टियों में जब वह घर आया तो मैं उसकी खूबसूरती देख कर दंग रह गई। संध्या करीब साढ़े चार बजे उसके आने के पहले ही मैं उस दिन घर पहुंच गयी। उसे स्टेशन से लाने के लिए मैंने राजेश को नानाजी की कार से भेजा था। उसके कार से उतरते ही अपलक देखती रह गई थी मैं। लंबोतरा चेहरा, सुतवां नाक, गहरी भूरी आंखें और घनी भौंहें, अपने स्थान पर जड़ रह गई थी मैं, उसकी खूबसूरती देख कर। नीली टाईट जींस और काले टाईट टी शर्ट में उसकी खूबसूरती गजब ढा रही थी। टी शर्ट की बांहें उसके बाजूओं की मछलियों पर कसी हुई थीं। मेरे अंतरतम के कपाट पर कामुकता का शैतान दस्तक दे रहा था। छि:, यह कुत्सित सोच मेरे मन में आ कैसे रहा था। झटक कर दूर कर दिया इस शैतानी सोच को।
“हाय मॉम, कहाँ खो गयीं आप?” उसकी आवाज सुनकर चौंक उठी और जैसे गहरी नींद से जागी मैं।
“ओह माई लव, बहुत हैंडसम हो गए हो। कहीं मेरी नजर न लग जाए मेरे बेटे को।” ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा उस पर। उसने लपक कर मुझे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया और बेसाख्ता मेरे गालों को चूम लिया।
एक बार यूं ही पूजा की छुट्टियों में जब वह घर आया तो मैं उसकी खूबसूरती देख कर दंग रह गई। संध्या करीब साढ़े चार बजे उसके आने के पहले ही मैं उस दिन घर पहुंच गयी। उसे स्टेशन से लाने के लिए मैंने राजेश को नानाजी की कार से भेजा था। उसके कार से उतरते ही अपलक देखती रह गई थी मैं। लंबोतरा चेहरा, सुतवां नाक, गहरी भूरी आंखें और घनी भौंहें, अपने स्थान पर जड़ रह गई थी मैं, उसकी खूबसूरती देख कर। नीली टाईट जींस और काले टाईट टी शर्ट में उसकी खूबसूरती गजब ढा रही थी। टी शर्ट की बांहें उसके बाजूओं की मछलियों पर कसी हुई थीं। मेरे अंतरतम के कपाट पर कामुकता का शैतान दस्तक दे रहा था। छि:, यह कुत्सित सोच मेरे मन में आ कैसे रहा था। झटक कर दूर कर दिया इस शैतानी सोच को।
“हाय मॉम, कहाँ खो गयीं आप?” उसकी आवाज सुनकर चौंक उठी और जैसे गहरी नींद से जागी मैं।
“ओह माई लव, बहुत हैंडसम हो गए हो। कहीं मेरी नजर न लग जाए मेरे बेटे को।” ढेर सारा प्यार उमड़ पड़ा उस पर। उसने लपक कर मुझे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया और बेसाख्ता मेरे गालों को चूम लिया।