desiaks
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पिछले भाग में आप लोगों ने पढ़ा कि मैं किस तरह अपने नादान पुत्र की नादानी भरी आसक्ति के सम्मुख नतमस्तक हो गयी। मुझ पर उसकी आसक्ति धीरे धीरे मेरे नारी शरीर के आकर्षण में बदल गई। इस आकर्षण ने उत्कंठा को जन्म दिया। उसकी उत्कंठा ने उसे उकसाया कुछ और, कुछ और मुझमें तलाशने के लिए, कुछ और खुशी, कुछ और आनंद पाने की लालसा में उसके नादान प्रयासों ने मुझे मजबूर किया अपनी नारी देह को उसके आगे समर्पण के लिए। समाज की नजरों में यह एक अति निकृष्ट, घृणित कार्य था, किंतु उन सबसे बेपरवाह हम मां बेटे बह गए ऐसे वासना के सैलाब में, जहां से निकलना हमारे लिए कठिन ही नहीं नामुमकिन था। स्त्री शरीर के साथ मैथुन का वह प्रथम अनुभव उसके लिए स्वर्गीय आनंद से कम नहीं था। खुशी के मारे वह तो पागल ही हो गया था मुझसे शारीरिक संबंध का सुख पाकर। मैं कितनी भी गई गुजरी छिनाल हूं, किंतु अपने खुद के पुत्र के साथ संभोग की कल्पना भी कभी मेरे जेहन में नहीं आया था। लेकिन परिस्थितियों नें कुछ ऐसा मोड़ लिया कि मैं उसके सम्मुख पसरने को बेबस हो गयी थी। वासना की आग में धधकती मुझ जैसी छिनाल के नाजुक अंगों के साथ उस नादान बच्चे की हरकतों ने मानो आग में घी का काम किया और मैं अपने को रोक नहीं पाई और नतीजा हम मां बेटे के बीच इस अंतरंग संबंध का जन्म। एक बार जब हम फिसले तो फिर हमने पीछे मुड़ कर देखने की जहमत भी नहीं की और सारी मर्यादाओं को तोड़ कर बेखौफ फिसलते ही चले गये। सिर्फ एक ही रात में हमारे बीच के संबंध में सबकुछ बदल गया था। वह तो बेचारा नादान था, लेकिन मैं एक पूर्ण व्यस्क स्त्री होते हूए भी सबकुछ समझते बूझते रिश्ते को शर्मसार करने में कहां पीछे रही। डूबती गयी, उस गंदे खेल के आनंद में।
रात भर हमारे बीच वासना का जो नंगा नाच हुआ, उसकी खुमारी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि दिन के उजाले में भी क्षितिज के कमरे में हमने फिर उसी कुकृत्य को दुहराया। काफी देर तक मेरे दरवाजे को भड़भड़ाने से मेरी निद्रा भंग हुई। मैंने देखा एक बज रहा था। हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोला तो दरवाजे पर चिंतित मुद्रा में हरिया को पाया। “तबीयत कैसी है तुम्हारी अब?”
“ठीक हूं।” संक्षिप्त सा जवाब दिया मैंने।
“फिर ठीक है, आ जाओ खाने की मेज पर, खाना तैयार है”
“ठीक है, आती हूं”, कहकर मैं खाने की मेज पर आ गई। अभी तक थकान पूरी तरह उतरी नहीं थी, किंतु मैं सामान्य होने की कोशिश कर रही थी। जब मैं डाईनिंग हॉल में पहुंची तो देखा, क्षितिज पहले से वहां मौजूद था।
“कैसी है तबीयत मॉम?” अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए पूछा क्षितिज।
“ठीक हूं अब” संक्षिप्त सा उत्तर था मेरा। बनावटी रोष के साथ मैं घूर कर उसे देखी। मन ही मन बोल रही थी, “साले मादरचोद, चोद चोद कर बेहाल कर दिया, अब पूछ रहे हो कैसी हो, मां के लौड़े।” जल्दी जल्दी खाना खा कर उठते हुए बोली, “खाना खा कर थोड़ा आराम कर ले, फिर शाम को शॉपिंग चलना है ना।”
“ठीक है मॉम” कहकर वह खाना खाने लगा। मैं डाईनिंग टेबल से अपने कमरे की ओर जाने लगी तो ऐसा लग रहा था कि क्षितिज की नजरें मुझ पर ही टिकी हों। पलट कर देखी तो पाया कि वह मुझे ही घूरे जा रहा था, उसकी भेदती नजरों से ऐसा लग रहा था मानो मेरे शरीर पर अभी भी कोई वस्त्र नहीं हों। लरज कर रह गई मैं। कमीना कहीं का। अपने कमरे में आ कर धम्म से बिस्तर पर गिरी और नींद के आगोश में चली गई।
रात भर हमारे बीच वासना का जो नंगा नाच हुआ, उसकी खुमारी अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि दिन के उजाले में भी क्षितिज के कमरे में हमने फिर उसी कुकृत्य को दुहराया। काफी देर तक मेरे दरवाजे को भड़भड़ाने से मेरी निद्रा भंग हुई। मैंने देखा एक बज रहा था। हड़बड़ा कर उठी और दरवाजा खोला तो दरवाजे पर चिंतित मुद्रा में हरिया को पाया। “तबीयत कैसी है तुम्हारी अब?”
“ठीक हूं।” संक्षिप्त सा जवाब दिया मैंने।
“फिर ठीक है, आ जाओ खाने की मेज पर, खाना तैयार है”
“ठीक है, आती हूं”, कहकर मैं खाने की मेज पर आ गई। अभी तक थकान पूरी तरह उतरी नहीं थी, किंतु मैं सामान्य होने की कोशिश कर रही थी। जब मैं डाईनिंग हॉल में पहुंची तो देखा, क्षितिज पहले से वहां मौजूद था।
“कैसी है तबीयत मॉम?” अपनी मुस्कुराहट छिपाते हुए पूछा क्षितिज।
“ठीक हूं अब” संक्षिप्त सा उत्तर था मेरा। बनावटी रोष के साथ मैं घूर कर उसे देखी। मन ही मन बोल रही थी, “साले मादरचोद, चोद चोद कर बेहाल कर दिया, अब पूछ रहे हो कैसी हो, मां के लौड़े।” जल्दी जल्दी खाना खा कर उठते हुए बोली, “खाना खा कर थोड़ा आराम कर ले, फिर शाम को शॉपिंग चलना है ना।”
“ठीक है मॉम” कहकर वह खाना खाने लगा। मैं डाईनिंग टेबल से अपने कमरे की ओर जाने लगी तो ऐसा लग रहा था कि क्षितिज की नजरें मुझ पर ही टिकी हों। पलट कर देखी तो पाया कि वह मुझे ही घूरे जा रहा था, उसकी भेदती नजरों से ऐसा लग रहा था मानो मेरे शरीर पर अभी भी कोई वस्त्र नहीं हों। लरज कर रह गई मैं। कमीना कहीं का। अपने कमरे में आ कर धम्म से बिस्तर पर गिरी और नींद के आगोश में चली गई।