desiaks
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“आह्ह, आह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स, इस्स्स्स, आह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” ये सिसकियां और कामुकता से भरपूर आहें उबली जा रही थीं मेरे लबों से।
“आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, वाह वाह, अब आ रहा है, आ रहा है न मजा।” मुझे कुत्ते की तरह दबोचे, चोदने में मशगूल दास बाबू आनंदित हो कर बोले।
“हां, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, हां रज्ज्ज्जा, ओह मेरे रसिया, आह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह, आ रहा है, ओह्ह्ह्ह्ह्ह बड़ा मजा आ रहा है।” मैं अपनी असंयमित सांसों को संयमित करती बोली। दास बाबू को और भला क्या चाहिए था। मेरी चूचियों को पीछे से बड़ी ही बेदर्दी से अपने पंजों से दबोच कर गचागच चोदने लगे।
“नाईस, दैट्स लाईक अ गुड गर्ल (बढ़िया, यह एक अच्छी लड़की जैसी बात हुई), अब मजा दे और मजा ले, ले ले ले, आह, आह।” वे खुशी से बोले।
“अब नहीं आह, अब अच्छी लड़की नहीं उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, बुरी लड़की बोल बेटीचोद आह्ह्ह्ह, बुरी औरत बोल मादरचोद ओह मा्ं्मां्मां्आं्आं्आं, चोद ही डाला तो बुरचोदी बोल ओह्ह्ह्ह्ह्ह, कुत्ते की तरह चोदते समय कुत्ती बोल साले कुत्ते आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” अब मैं पूरे रंग में आ चुकी थी। दास बाबू नें शायद इसी की कल्पना की थी, जो साकार हो गया था।
“साली रंडी्ई्ई्ई्ई्ई, अब आई असली रंग में लंडखोर कुतिया, यही तो चाहता था हरामजादी। अब ले, ये ले, ये ले, हुं हुं हुं हुं हुं।” अब धमाल मच गया था।
“हां साले चोदू, चोद लौड़ू चोद, चोद चूत के चटोरे चोद, चोद झांट के झोले चोद।” मैं न जाने क्या क्या बोले जा रही थी। थपाक थपाक की आवाज आ रही थी। यह आवाज थी उसके झोले जैसे लटके बड़े बड़े अंडकोश के मेरी चूत के ऊपर पड़ने वाली थपेड़ों की। करीब आधे घंटे तक वह मुझे नोचता रहा, खसोटता रहा, झिंझोड़ता रहा, निचोड़ता रहा और मैं स्वर्गीय सुख में डूबी, नुचती रही, छिलती रही, झिंझुड़ती रही, निचुड़ती रही। उस भीषण चुदाई का अंत भी उतना ही आनंददायक था। उन्होंने मेरी चूचियों को पूरी शक्ति से भींच कर अपना मदन रस उंडेलना आरंभ किया। गरमागरम लावा का पान कर मेरी कोख निहाल हो उठी। मेरी योनि उनके विशाल लिंग को चूस रही थी। एक एक कतरा चूस कर ही मानी मेरी लंडखोर चूत।
“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” वह खलास होकर भैंस की तरह डकारने लगा।
“ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ मांआंआंआंआं।” मैं भी गयी्ई्ई्ई्ई्ई्ई। ओह्ह्ह्ह्ह्ह क्या ही आनंददायक स्खलन था वह मेरा। थक कर निढाल हो गयी। तभी दास बाबू का लिंग भीगे चूहे की तरह सिकुड़ कर ‘फच्च’ की आवाज के साथ मेरी योनि से बाहर आया। मैं अपने स्थान में खड़ी न रह पायी। वहीं पास के सोफे पर लुढ़क कर निढाल हो गयी। दास बाबू भी किसी भैंसे की तरह लुढ़क गये।
“बड़ा मजा आया।” दास बाबू बोले।
“मुझे भी।”
“ऐसी औरत जिंदगी में पहली बार मिली।”
“मुझे भी ऐसा मर्द पहली बार मिला।”
“वाह रे रानी, सच?”
“हां राजा सच्ची।”
“तो अब तू मेरी लंडरानी बन गयी ना?”
“हां मेरे राजा, मेरे चूत के लौड़े।”
“हाय, तेरी इसी अदा को तो देखना चाहता था।”
“तो देख लिया?”
“हां। पसंद आया।” कहकर मुझे बांहों में भर कर चूम लिया। मैं भला कहाँ पीछे रहती। लिपट गयी अमर बेल की तरह उधकी मोटी, भैंस जैसी नग्न देह से और चुम्बन दे बैठी, तृप्ति की, प्रसन्नता की, समर्पण की। निहाल हो उठे दास बाबू। फिर मैं अपने कपड़े पहन, मुदित मन, पुनः मिलते रहने के वादे के साथ विदा हुई।
आगे की कथा अगली कड़ी में।