desiaks
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पिछली कड़ी में अपने पढ़ा कि नानाजी का नौकर हरि,
न सिर्फ उनका नौकर था बल्कि मेरा जैविक पिता भी था.
मेरी मां और हरि के शारीरिक संबंधों का नतीजा थी मैं.
नौकर हरि अर्थात मेरे वास्तविक पिता ने जानते बूझते,
कि मैं उनकी अपनी सगी बेटी हूं,
मुझे अपनी हवस का शिकार बनाया.
मैं खुद पर भी चकित थी कि इतनी बड़ी बात पता लगने के बावजूद मेरे अंदर कोई खास अपराधबोध नहीं था,
बल्कि इसके उलट मुझे एक नये रोमांच का अहसास हो रहा था.
अपने बाप के विशाल व अद्भुत लंड से आरंभिक पीड़ा के पश्चात संभोग का जो आनंद मैं ने प्राप्त किया वह अवर्णनीय था.
मेरे बाप द्वारा बेशर्मी भरी कामलीला के बाद इस रहस्योद्घाटन के दौरान,
कि मैं उनकी सगी बेटी हूं,
उनके चेहरे पर लेशमात्र भी अपराधबोध नहीं था और न ही लज्जा
, बल्कि इसके विपरीत एक खेले खाए वासना के पुजारी औरतखोर की तरह चोद कर तृप्त मुस्कान खेल रही थी.
फिर उनकी जिंदगी में अबतक किस तरह एक एक करके नारियां उनकी कामुकतापूर्ण रासलीला में स्वेच्छा अथवा जोर जबरदस्ती से भगीदार होती गईं,
इसका खुलासा उन्होंने मेरे सामने करना शुरू किया. मेरी मां, नानी, कामवाली बाई और सब्जी वाली औरत,
इन सबसे किस तरह उनका शारीरिक संबंध स्थापित हुआ,
इसका वर्णन उन्होंने किया और साथ ही ड्राईवर करीम किस तरह उनके इस खेल में शामिल हुआ इसका भी खुलासा किया.
जितनी देर उन्होंने उपरोक्त चार स्त्रियों के साथ की गयी विभिन्न मुद्राओं में की गई उत्तेजक कामलीला का विस्तृत वर्णन किया,
उस दौरान धधक उठती उत्तेजना के आवेग में हर घटनाओं के बीच विराम ले ले कर हम कलयुगी बाप बेटी ने
रिश्तों की मर्यादा को शर्मशार करते हुए तीन बार और वासना के समुद्र में डुबकी लगा लगा कर नंगा खेल खेला.
अब आगे की घटनाओं का वर्णन सुनिए.
रात करीब 8:30 बजे नानाजी,
दादाजी और बड़े दादाजी बाजार से वापस आए.
उस समय तक मैंने और मेरे बाप ने अपना अपना हुलिया ठीक कर चुके थे.
दोनों ही अपने अपने हवस की प्यास अच्छी तरह बुझा चुके थे.
हालांकि इस दौरान की धमाचौकड़ी,
गुत्थमगुत्थी और धींगामुश्ती में हम बुरी तरह थक गये थे मगर नहा धो कर काफी हद तक सामान्य दिख रहे थे.
“कैसी हो बिटिया? ठीक से आराम की ना?” नानाजी ने पूछा.
“हां नानाजी, खूब बढ़िया से आराम की” अपने चोदू बाप को आंख मारते हुए मुस्कुरा कर बोली.
पापा भी मुस्कुराहट छिपाते हुए किचन के अंदर गये. इतने में मेरा मोबाइल बज उठा. यह मम्मी का कॉल था.
वह पूछ रही थी कि हम ठीक ठाक पहुंचे कि नहीं.
मैं ने बताया कि हम ठीक ठाक पहुंच गए हैं.
मेरे और मम्मी के बीच हो रही इस वार्तालाप को सभी सुन रहे थे
और सबके चेहरे काले पड़ गये थे,
मगर मैं सहज भाव से बातें कर रही थी.
अब मैं क्या बताती कि बस में उनकी बेटी के साथ पांच पांच बूढ़ों ने क्या क्या कुकर्म किया,
और अभी अभी तीन घंटों के अंदर उनके आशिक हरिया ने (मेरे बाप ने) उनकी बेटी के साथ नाजायज संबंध बनाते
हुए तीन तीन बार वासना का नंगा खेल खेलकर
मनमाने ढंग से अपनी हवस मिटाई और
मुझे छिनाल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा.
यह अलग बात है कि मैं भी इस खेल में स्वेच्छा और पूर्ण समर्पण के साथ बराबर की हिस्सेदार रही
और हर एक पल का लुत्फ लेती हुई अपने ही बाप के अद्भुत लंड और उनकी चुदाई की दीवानी हो गई.
अभी मैं मम्मी से बात कर ही रही थी कि और किसी का कॉल आने लगा.
मैं ने मम्मी को बाय किया और देखा कि यह सरदारजी का कॉल था.
मैं धक् से रह गई. समय देखा तो रात के 9 बज रहे थे.
“हैलो” मैं ने कॉल उठाया.
“हैल्लो मेरी छमिया, क्या हाल है?” उधर से सरदारजी की आवाज आई.
“क्या हुआ बोलिए सरदारजी, कैसे याद किया?” मैं खीझ कर बोली
“बस तेरी मदमस्त चूत की याद आ रही थी इसलिए याद किया मेरी जान,
अभी आ सकती हो तो मेरे घर में आ जाओ,
तेरी बहुत याद आ रही है रानी.”
बड़े घटिया तरीके से बात कर रहा था.
मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था मगर गुस्से को बमुश्किल काबू में कर के बोली, “नही, मैं अभी इतनी रात में नहीं आ सकती सरदारजी”
“क्या कहा, मुझे ना कहती है कुतिया.
तेरा वीडियो अपलोड करूं क्या?” सरदार जी फुंफकार उठे.
मेरा भेजा घूम गया. बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू में कर के बोली, “ठीक है सरदारजी आती हूं, मगर जल्दी छोड़ दीजियेगा,”
“अरे मेरी रानी, एक घंटे में छोड़ दूंगा.”
“फिर ठीक है, अपने घर का पता बताईए.” मैं बोली.
“तू लालपुर चौक आ जा, मैं वहीं मिलूंगा.”
“ठीक है, आ रही हूं,” कहकर मैंने फोन काट दिया.
फिर मैंने उन बूढ़े आशिकों से कहा “मैं एक घंटे में उस सरदारजी को निपटा कर आती हूं” फिर मैंने हरी पापा को आवाज दी,
“चाचा जी चलिए जरा सरदारजी को निपटा कर आते हैं.”
न सिर्फ उनका नौकर था बल्कि मेरा जैविक पिता भी था.
मेरी मां और हरि के शारीरिक संबंधों का नतीजा थी मैं.
नौकर हरि अर्थात मेरे वास्तविक पिता ने जानते बूझते,
कि मैं उनकी अपनी सगी बेटी हूं,
मुझे अपनी हवस का शिकार बनाया.
मैं खुद पर भी चकित थी कि इतनी बड़ी बात पता लगने के बावजूद मेरे अंदर कोई खास अपराधबोध नहीं था,
बल्कि इसके उलट मुझे एक नये रोमांच का अहसास हो रहा था.
अपने बाप के विशाल व अद्भुत लंड से आरंभिक पीड़ा के पश्चात संभोग का जो आनंद मैं ने प्राप्त किया वह अवर्णनीय था.
मेरे बाप द्वारा बेशर्मी भरी कामलीला के बाद इस रहस्योद्घाटन के दौरान,
कि मैं उनकी सगी बेटी हूं,
उनके चेहरे पर लेशमात्र भी अपराधबोध नहीं था और न ही लज्जा
, बल्कि इसके विपरीत एक खेले खाए वासना के पुजारी औरतखोर की तरह चोद कर तृप्त मुस्कान खेल रही थी.
फिर उनकी जिंदगी में अबतक किस तरह एक एक करके नारियां उनकी कामुकतापूर्ण रासलीला में स्वेच्छा अथवा जोर जबरदस्ती से भगीदार होती गईं,
इसका खुलासा उन्होंने मेरे सामने करना शुरू किया. मेरी मां, नानी, कामवाली बाई और सब्जी वाली औरत,
इन सबसे किस तरह उनका शारीरिक संबंध स्थापित हुआ,
इसका वर्णन उन्होंने किया और साथ ही ड्राईवर करीम किस तरह उनके इस खेल में शामिल हुआ इसका भी खुलासा किया.
जितनी देर उन्होंने उपरोक्त चार स्त्रियों के साथ की गयी विभिन्न मुद्राओं में की गई उत्तेजक कामलीला का विस्तृत वर्णन किया,
उस दौरान धधक उठती उत्तेजना के आवेग में हर घटनाओं के बीच विराम ले ले कर हम कलयुगी बाप बेटी ने
रिश्तों की मर्यादा को शर्मशार करते हुए तीन बार और वासना के समुद्र में डुबकी लगा लगा कर नंगा खेल खेला.
अब आगे की घटनाओं का वर्णन सुनिए.
रात करीब 8:30 बजे नानाजी,
दादाजी और बड़े दादाजी बाजार से वापस आए.
उस समय तक मैंने और मेरे बाप ने अपना अपना हुलिया ठीक कर चुके थे.
दोनों ही अपने अपने हवस की प्यास अच्छी तरह बुझा चुके थे.
हालांकि इस दौरान की धमाचौकड़ी,
गुत्थमगुत्थी और धींगामुश्ती में हम बुरी तरह थक गये थे मगर नहा धो कर काफी हद तक सामान्य दिख रहे थे.
“कैसी हो बिटिया? ठीक से आराम की ना?” नानाजी ने पूछा.
“हां नानाजी, खूब बढ़िया से आराम की” अपने चोदू बाप को आंख मारते हुए मुस्कुरा कर बोली.
पापा भी मुस्कुराहट छिपाते हुए किचन के अंदर गये. इतने में मेरा मोबाइल बज उठा. यह मम्मी का कॉल था.
वह पूछ रही थी कि हम ठीक ठाक पहुंचे कि नहीं.
मैं ने बताया कि हम ठीक ठाक पहुंच गए हैं.
मेरे और मम्मी के बीच हो रही इस वार्तालाप को सभी सुन रहे थे
और सबके चेहरे काले पड़ गये थे,
मगर मैं सहज भाव से बातें कर रही थी.
अब मैं क्या बताती कि बस में उनकी बेटी के साथ पांच पांच बूढ़ों ने क्या क्या कुकर्म किया,
और अभी अभी तीन घंटों के अंदर उनके आशिक हरिया ने (मेरे बाप ने) उनकी बेटी के साथ नाजायज संबंध बनाते
हुए तीन तीन बार वासना का नंगा खेल खेलकर
मनमाने ढंग से अपनी हवस मिटाई और
मुझे छिनाल बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा.
यह अलग बात है कि मैं भी इस खेल में स्वेच्छा और पूर्ण समर्पण के साथ बराबर की हिस्सेदार रही
और हर एक पल का लुत्फ लेती हुई अपने ही बाप के अद्भुत लंड और उनकी चुदाई की दीवानी हो गई.
अभी मैं मम्मी से बात कर ही रही थी कि और किसी का कॉल आने लगा.
मैं ने मम्मी को बाय किया और देखा कि यह सरदारजी का कॉल था.
मैं धक् से रह गई. समय देखा तो रात के 9 बज रहे थे.
“हैलो” मैं ने कॉल उठाया.
“हैल्लो मेरी छमिया, क्या हाल है?” उधर से सरदारजी की आवाज आई.
“क्या हुआ बोलिए सरदारजी, कैसे याद किया?” मैं खीझ कर बोली
“बस तेरी मदमस्त चूत की याद आ रही थी इसलिए याद किया मेरी जान,
अभी आ सकती हो तो मेरे घर में आ जाओ,
तेरी बहुत याद आ रही है रानी.”
बड़े घटिया तरीके से बात कर रहा था.
मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था मगर गुस्से को बमुश्किल काबू में कर के बोली, “नही, मैं अभी इतनी रात में नहीं आ सकती सरदारजी”
“क्या कहा, मुझे ना कहती है कुतिया.
तेरा वीडियो अपलोड करूं क्या?” सरदार जी फुंफकार उठे.
मेरा भेजा घूम गया. बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू में कर के बोली, “ठीक है सरदारजी आती हूं, मगर जल्दी छोड़ दीजियेगा,”
“अरे मेरी रानी, एक घंटे में छोड़ दूंगा.”
“फिर ठीक है, अपने घर का पता बताईए.” मैं बोली.
“तू लालपुर चौक आ जा, मैं वहीं मिलूंगा.”
“ठीक है, आ रही हूं,” कहकर मैंने फोन काट दिया.
फिर मैंने उन बूढ़े आशिकों से कहा “मैं एक घंटे में उस सरदारजी को निपटा कर आती हूं” फिर मैंने हरी पापा को आवाज दी,
“चाचा जी चलिए जरा सरदारजी को निपटा कर आते हैं.”