desiaks
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“चीख रही है साली रंडी, चोद पंडित इस कुतिया की चूत फाड़ दे। बुरचोदी बहुत स्मार्ट बन रही थी।” चाची दोनों पहलवानों के बीच सैंडविच बनी चीख पड़ी।
“हां हां, ठीक कह रही हो रमा, मेरी बेटी होकर मुझे रंडी की तरह चुदते हुए देख कर कितनी खुश हो रही थी कुतिया। अब पाला पड़ा है ठीक चुदक्कड़ से। पंडित जी, इसे आज ऐसा चोदो कि होश ठिकाने आ जाए। रगड़ रगड़ के चोदो साली को, ठीक कुतिया की तरह।” मेरी मां को अपने दिल की भंड़ास निकालने का अवसर मिल गया। मगर उसे क्या पता था कि मैं क्या अनुभव कर रही थी।
प्रारम्भ मेंं मैं असहाय भाव से इधर उधर सिर झटकने लगी। तभी एक और करारे ठाप से पंडित जी ने अपने 9″ का पूरा लिंग मेरी योनी में उतार दिया। दर्दनाक था वह हमला। ऐसा लगा मानो मेरी योनी में मूसल डाल दिया हो। उफ्फ। कुछ पलों की असह्य पीड़ा को झेल लेने के पश्चात मुझे अद्भुत आनंद की अनुभूति होने लगी। ऐसा लग रहा था कि उनका लिंग मेरे गर्भाशय में समाने को बेताब हो। अगले ही पल उन्होंने सर्र से करीब पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और सटाक से फिर घोंप दिया। उफ्फ, मेरी योनी की दीवारों पर उनके मोटे लिंग का घर्षण मुझे पागल किए जा रहा था। पहले धीरे धीरे, फिर धक्कों की रफ्तार बढ़ाने लगा वह कमीना। हालांकि यह मेरे साथ दूसरी बार था लेकिन शायद पंडित जी अधिक जोश में थे और उनकी अदम्य जंगली कामुक नोच खसोट से मैं थोड़ी असहज हो गई थी, किंतु उनकी हर हरकतों से मुझे अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी। अबतक मैं भी पूरी तरह उनके लिंग पूरी तरह आराम से ले सकने में सक्षम हो चुकी थी। मैं अपने पैरों को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार फैला कर उनके भैंस जैसे मोटे कमर के ईर्द गीर्द लपेट कर किसी छिपकिली की तरह चिपकी उनके हर ठाप का जवाब देने की भरसक कोशिश कर रही थी। आनंद के अतिरेक मेंं मेरी आंखें बन्द हो गयीं थीं। आह वह अकथनीय आनंद, अवर्णनीय सुखद अहसास। मैं सुथ बुध खो कर भैंस जैसे पंडित जी के हर वहशियाना हरकत से विभोर होती जा रही थी।
“आह पंडित जी, ओह राजा, हाय ओह्ह्ह्ह चोदिए आह उफ इस्सस,” मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल रहे थे।
“आह मेरी चूत मरानी कुतिया, ओह्ह्ह्ह क्या मस्त बुर है रे बुरचोदी, आह चोदने मेंं इतना मजा आ रहा है, आह्ह्ह्ह्ह साली रंडी की चूत,” बोलते हुए मुझे रौंदते हुए चोदे जा रहा था। इस सामुहिक चुदाई में सबके मुह से एक से एक अश्लीलता भरे अल्फाज, चुदाई की फच फच, चट चट की आवाजों सी पूरा कमरा भर गया था। बाकी लोग क्या कर रहे हैं और हमारे आस पास क्या हो रहा है इन सबसे बेखबर मैं दूसरी दुनिया में पहुंच गई थी। करीब एक घंटे की कमरतोड़ घमासान चुदाई के बाद एकाएक पंडित जी ने मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया मानो मेरी जान ही निकाल देगा और उसी के साथ उनका अंतहीन स्खलन शुरू हुआ। ऐसा लग रहा था मानो मेरी कोख में गरमागरम लावा भरता जा रहा हो। मैं भी उसी वक्त खलास होने लगी। ओह्ह्ह्ह वह अद्भुत अनुभव, बयान से बाहर। पंडित जी ने इस एक चुदाई में ही मुझे चार बार झड़ने को मजबूर कर दिया। करीब एक मिनट तक पंडित जी का वीर्य मेरी कोख में भरता गया और उनके वीर्य के एक एक कतरे को अनमोल धरोहर की तरह मेरी योनी ने अपने अंदर समाहित कर लिया। तत्पश्चात पंडित जी किसी तृप्त भैंस की तरह डकारते हुए लुढ़क गए। मैं नुच चुद कर निढाल आंखें मूंदे तृप्ति की लंबी लंबी सांसें लेने लगी। फिर सारी शक्ति बटोर कर “आह्ह्ह्ह्ह राजा खुश कर दिया” कहते हुए मैं करवट ले कर पंडित जी के काले तोंदियल भैंस सरीखे बेढब शरीर से लिपट गई और उनके कुरूप चेहरे और थूथन पर चुम्बनों की बौछार कर बैठी, आखिर इतने अकथनीय सुख से मुझे लबरेज जो कर दिया इस कमीने ने। पंडित जी के चेहरे पर तृप्ति की मुस्कान खेल रही थी। फिर मैं ने चारों ओर दृष्टि फेरी तो यह देख कर मुस्कुरा उठी कि सभी लोग नंग धड़ंग बेतरतीब छितराए हुए बेखबर आंखें बंद किए लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। मां और चाची की बड़ी बड़ी चूचियां लाल हो चुकी थीं। उनकी योनियों के ईर्द गीर्द मर्दों के वीर्य लिथड़े हुए थे। खास कर चाची की योनी की हालत बता रही थी कि किस बुरी तरह से हरिया और करीम नें भंभोड़ा था। पावरोटी की तरह फूल गई थी और लाल भी कर दिया था कमीनों ने। मेरी खुद की हालत भी क्या कम बुरी थी। मेरी चूचियों का इतनी बुरी तरह से मर्दन हुआ था कि लाल हो कर सूज गई थी। मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। मेरी योनी की इतनी भयानक चुदाई आज पहली बार हुई थी, फुला दिया था कमीने पंडित जी ने। पंडित जी ने मुझ पर पूरी तरह जोर आजमाईश कर ली थी और मेरा शरीर निचोड़ कर रख दिया था। मेरे शरीर का एक एक पुर्जा ढीला कर दिया था हरामी ने। मेरा पूरा शरीर टूट रहा था। पूरे शरीर में मीठा मीठा दर्द तारी हो चुका था। इतनी बुरी तरह से मुझे नोचा खसोटा था किंतु अपने अदम्य संभोग क्षमता से संभोग के अद्वितीय आनंद से रूबरू करा दिया। मैं पूर्णरूपेण संतुष्ट हो गई थी और दीवानी बना दिया था मुझे अपनी चुदाई का। थक कर चूर मैं ने अपना सिर फिर से पंडित जी के बालों से भरे चौड़े चकले सीने पर रख दिया और पंडित जी ने मुझे अपनी बनमानुषी बांह से समेट लिया। मैं अनंत सुख के अहसास के साथ पल भर में गहरी निद्रा के आगोश में चली गई।
इसके बाद की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे इजाजत दीजिए।
“हां हां, ठीक कह रही हो रमा, मेरी बेटी होकर मुझे रंडी की तरह चुदते हुए देख कर कितनी खुश हो रही थी कुतिया। अब पाला पड़ा है ठीक चुदक्कड़ से। पंडित जी, इसे आज ऐसा चोदो कि होश ठिकाने आ जाए। रगड़ रगड़ के चोदो साली को, ठीक कुतिया की तरह।” मेरी मां को अपने दिल की भंड़ास निकालने का अवसर मिल गया। मगर उसे क्या पता था कि मैं क्या अनुभव कर रही थी।
प्रारम्भ मेंं मैं असहाय भाव से इधर उधर सिर झटकने लगी। तभी एक और करारे ठाप से पंडित जी ने अपने 9″ का पूरा लिंग मेरी योनी में उतार दिया। दर्दनाक था वह हमला। ऐसा लगा मानो मेरी योनी में मूसल डाल दिया हो। उफ्फ। कुछ पलों की असह्य पीड़ा को झेल लेने के पश्चात मुझे अद्भुत आनंद की अनुभूति होने लगी। ऐसा लग रहा था कि उनका लिंग मेरे गर्भाशय में समाने को बेताब हो। अगले ही पल उन्होंने सर्र से करीब पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और सटाक से फिर घोंप दिया। उफ्फ, मेरी योनी की दीवारों पर उनके मोटे लिंग का घर्षण मुझे पागल किए जा रहा था। पहले धीरे धीरे, फिर धक्कों की रफ्तार बढ़ाने लगा वह कमीना। हालांकि यह मेरे साथ दूसरी बार था लेकिन शायद पंडित जी अधिक जोश में थे और उनकी अदम्य जंगली कामुक नोच खसोट से मैं थोड़ी असहज हो गई थी, किंतु उनकी हर हरकतों से मुझे अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी। अबतक मैं भी पूरी तरह उनके लिंग पूरी तरह आराम से ले सकने में सक्षम हो चुकी थी। मैं अपने पैरों को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार फैला कर उनके भैंस जैसे मोटे कमर के ईर्द गीर्द लपेट कर किसी छिपकिली की तरह चिपकी उनके हर ठाप का जवाब देने की भरसक कोशिश कर रही थी। आनंद के अतिरेक मेंं मेरी आंखें बन्द हो गयीं थीं। आह वह अकथनीय आनंद, अवर्णनीय सुखद अहसास। मैं सुथ बुध खो कर भैंस जैसे पंडित जी के हर वहशियाना हरकत से विभोर होती जा रही थी।
“आह पंडित जी, ओह राजा, हाय ओह्ह्ह्ह चोदिए आह उफ इस्सस,” मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल रहे थे।
“आह मेरी चूत मरानी कुतिया, ओह्ह्ह्ह क्या मस्त बुर है रे बुरचोदी, आह चोदने मेंं इतना मजा आ रहा है, आह्ह्ह्ह्ह साली रंडी की चूत,” बोलते हुए मुझे रौंदते हुए चोदे जा रहा था। इस सामुहिक चुदाई में सबके मुह से एक से एक अश्लीलता भरे अल्फाज, चुदाई की फच फच, चट चट की आवाजों सी पूरा कमरा भर गया था। बाकी लोग क्या कर रहे हैं और हमारे आस पास क्या हो रहा है इन सबसे बेखबर मैं दूसरी दुनिया में पहुंच गई थी। करीब एक घंटे की कमरतोड़ घमासान चुदाई के बाद एकाएक पंडित जी ने मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया मानो मेरी जान ही निकाल देगा और उसी के साथ उनका अंतहीन स्खलन शुरू हुआ। ऐसा लग रहा था मानो मेरी कोख में गरमागरम लावा भरता जा रहा हो। मैं भी उसी वक्त खलास होने लगी। ओह्ह्ह्ह वह अद्भुत अनुभव, बयान से बाहर। पंडित जी ने इस एक चुदाई में ही मुझे चार बार झड़ने को मजबूर कर दिया। करीब एक मिनट तक पंडित जी का वीर्य मेरी कोख में भरता गया और उनके वीर्य के एक एक कतरे को अनमोल धरोहर की तरह मेरी योनी ने अपने अंदर समाहित कर लिया। तत्पश्चात पंडित जी किसी तृप्त भैंस की तरह डकारते हुए लुढ़क गए। मैं नुच चुद कर निढाल आंखें मूंदे तृप्ति की लंबी लंबी सांसें लेने लगी। फिर सारी शक्ति बटोर कर “आह्ह्ह्ह्ह राजा खुश कर दिया” कहते हुए मैं करवट ले कर पंडित जी के काले तोंदियल भैंस सरीखे बेढब शरीर से लिपट गई और उनके कुरूप चेहरे और थूथन पर चुम्बनों की बौछार कर बैठी, आखिर इतने अकथनीय सुख से मुझे लबरेज जो कर दिया इस कमीने ने। पंडित जी के चेहरे पर तृप्ति की मुस्कान खेल रही थी। फिर मैं ने चारों ओर दृष्टि फेरी तो यह देख कर मुस्कुरा उठी कि सभी लोग नंग धड़ंग बेतरतीब छितराए हुए बेखबर आंखें बंद किए लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। मां और चाची की बड़ी बड़ी चूचियां लाल हो चुकी थीं। उनकी योनियों के ईर्द गीर्द मर्दों के वीर्य लिथड़े हुए थे। खास कर चाची की योनी की हालत बता रही थी कि किस बुरी तरह से हरिया और करीम नें भंभोड़ा था। पावरोटी की तरह फूल गई थी और लाल भी कर दिया था कमीनों ने। मेरी खुद की हालत भी क्या कम बुरी थी। मेरी चूचियों का इतनी बुरी तरह से मर्दन हुआ था कि लाल हो कर सूज गई थी। मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। मेरी योनी की इतनी भयानक चुदाई आज पहली बार हुई थी, फुला दिया था कमीने पंडित जी ने। पंडित जी ने मुझ पर पूरी तरह जोर आजमाईश कर ली थी और मेरा शरीर निचोड़ कर रख दिया था। मेरे शरीर का एक एक पुर्जा ढीला कर दिया था हरामी ने। मेरा पूरा शरीर टूट रहा था। पूरे शरीर में मीठा मीठा दर्द तारी हो चुका था। इतनी बुरी तरह से मुझे नोचा खसोटा था किंतु अपने अदम्य संभोग क्षमता से संभोग के अद्वितीय आनंद से रूबरू करा दिया। मैं पूर्णरूपेण संतुष्ट हो गई थी और दीवानी बना दिया था मुझे अपनी चुदाई का। थक कर चूर मैं ने अपना सिर फिर से पंडित जी के बालों से भरे चौड़े चकले सीने पर रख दिया और पंडित जी ने मुझे अपनी बनमानुषी बांह से समेट लिया। मैं अनंत सुख के अहसास के साथ पल भर में गहरी निद्रा के आगोश में चली गई।
इसके बाद की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे इजाजत दीजिए।