Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 11 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“चीख रही है साली रंडी, चोद पंडित इस कुतिया की चूत फाड़ दे। बुरचोदी बहुत स्मार्ट बन रही थी।” चाची दोनों पहलवानों के बीच सैंडविच बनी चीख पड़ी।

“हां हां, ठीक कह रही हो रमा, मेरी बेटी होकर मुझे रंडी की तरह चुदते हुए देख कर कितनी खुश हो रही थी कुतिया। अब पाला पड़ा है ठीक चुदक्कड़ से। पंडित जी, इसे आज ऐसा चोदो कि होश ठिकाने आ जाए। रगड़ रगड़ के चोदो साली को, ठीक कुतिया की तरह।” मेरी मां को अपने दिल की भंड़ास निकालने का अवसर मिल गया। मगर उसे क्या पता था कि मैं क्या अनुभव कर रही थी।

प्रारम्भ मेंं मैं असहाय भाव से इधर उधर सिर झटकने लगी। तभी एक और करारे ठाप से पंडित जी ने अपने 9″ का पूरा लिंग मेरी योनी में उतार दिया। दर्दनाक था वह हमला। ऐसा लगा मानो मेरी योनी में मूसल डाल दिया हो। उफ्फ। कुछ पलों की असह्य पीड़ा को झेल लेने के पश्चात मुझे अद्भुत आनंद की अनुभूति होने लगी। ऐसा लग रहा था कि उनका लिंग मेरे गर्भाशय में समाने को बेताब हो। अगले ही पल उन्होंने सर्र से करीब पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और सटाक से फिर घोंप दिया। उफ्फ, मेरी योनी की दीवारों पर उनके मोटे लिंग का घर्षण मुझे पागल किए जा रहा था। पहले धीरे धीरे, फिर धक्कों की रफ्तार बढ़ाने लगा वह कमीना। हालांकि यह मेरे साथ दूसरी बार था लेकिन शायद पंडित जी अधिक जोश में थे और उनकी अदम्य जंगली कामुक नोच खसोट से मैं थोड़ी असहज हो गई थी, किंतु उनकी हर हरकतों से मुझे अलग ही आनंद की अनुभूति हो रही थी। अबतक मैं भी पूरी तरह उनके लिंग पूरी तरह आराम से ले सकने में सक्षम हो चुकी थी। मैं अपने पैरों को अपनी पूरी क्षमता के अनुसार फैला कर उनके भैंस जैसे मोटे कमर के ईर्द गीर्द लपेट कर किसी छिपकिली की तरह चिपकी उनके हर ठाप का जवाब देने की भरसक कोशिश कर रही थी। आनंद के अतिरेक मेंं मेरी आंखें बन्द हो गयीं थीं। आह वह अकथनीय आनंद, अवर्णनीय सुखद अहसास। मैं सुथ बुध खो कर भैंस जैसे पंडित जी के हर वहशियाना हरकत से विभोर होती जा रही थी।

“आह पंडित जी, ओह राजा, हाय ओह्ह्ह्ह चोदिए आह उफ इस्सस,” मेरे मुंह से बेसाख्ता निकल रहे थे।

“आह मेरी चूत मरानी कुतिया, ओह्ह्ह्ह क्या मस्त बुर है रे बुरचोदी, आह चोदने मेंं इतना मजा आ रहा है, आह्ह्ह्ह्ह साली रंडी की चूत,” बोलते हुए मुझे रौंदते हुए चोदे जा रहा था। इस सामुहिक चुदाई में सबके मुह से एक से एक अश्लीलता भरे अल्फाज, चुदाई की फच फच, चट चट की आवाजों सी पूरा कमरा भर गया था। बाकी लोग क्या कर रहे हैं और हमारे आस पास क्या हो रहा है इन सबसे बेखबर मैं दूसरी दुनिया में पहुंच गई थी। करीब एक घंटे की कमरतोड़ घमासान चुदाई के बाद एकाएक पंडित जी ने मुझे इतनी जोर से जकड़ लिया मानो मेरी जान ही निकाल देगा और उसी के साथ उनका अंतहीन स्खलन शुरू हुआ। ऐसा लग रहा था मानो मेरी कोख में गरमागरम लावा भरता जा रहा हो। मैं भी उसी वक्त खलास होने लगी। ओह्ह्ह्ह वह अद्भुत अनुभव, बयान से बाहर। पंडित जी ने इस एक चुदाई में ही मुझे चार बार झड़ने को मजबूर कर दिया। करीब एक मिनट तक पंडित जी का वीर्य मेरी कोख में भरता गया और उनके वीर्य के एक एक कतरे को अनमोल धरोहर की तरह मेरी योनी ने अपने अंदर समाहित कर लिया। तत्पश्चात पंडित जी किसी तृप्त भैंस की तरह डकारते हुए लुढ़क गए। मैं नुच चुद कर निढाल आंखें मूंदे तृप्ति की लंबी लंबी सांसें लेने लगी। फिर सारी शक्ति बटोर कर “आह्ह्ह्ह्ह राजा खुश कर दिया” कहते हुए मैं करवट ले कर पंडित जी के काले तोंदियल भैंस सरीखे बेढब शरीर से लिपट गई और उनके कुरूप चेहरे और थूथन पर चुम्बनों की बौछार कर बैठी, आखिर इतने अकथनीय सुख से मुझे लबरेज जो कर दिया इस कमीने ने। पंडित जी के चेहरे पर तृप्ति की मुस्कान खेल रही थी। फिर मैं ने चारों ओर दृष्टि फेरी तो यह देख कर मुस्कुरा उठी कि सभी लोग नंग धड़ंग बेतरतीब छितराए हुए बेखबर आंखें बंद किए लंबी लंबी सांसें ले रहे थे। मां और चाची की बड़ी बड़ी चूचियां लाल हो चुकी थीं। उनकी योनियों के ईर्द गीर्द मर्दों के वीर्य लिथड़े हुए थे। खास कर चाची की योनी की हालत बता रही थी कि किस बुरी तरह से हरिया और करीम नें भंभोड़ा था। पावरोटी की तरह फूल गई थी और लाल भी कर दिया था कमीनों ने। मेरी खुद की हालत भी क्या कम बुरी थी। मेरी चूचियों का इतनी बुरी तरह से मर्दन हुआ था कि लाल हो कर सूज गई थी। मीठा मीठा दर्द उठ रहा था। मेरी योनी की इतनी भयानक चुदाई आज पहली बार हुई थी, फुला दिया था कमीने पंडित जी ने। पंडित जी ने मुझ पर पूरी तरह जोर आजमाईश कर ली थी और मेरा शरीर निचोड़ कर रख दिया था। मेरे शरीर का एक एक पुर्जा ढीला कर दिया था हरामी ने। मेरा पूरा शरीर टूट रहा था। पूरे शरीर में मीठा मीठा दर्द तारी हो चुका था। इतनी बुरी तरह से मुझे नोचा खसोटा था किंतु अपने अदम्य संभोग क्षमता से संभोग के अद्वितीय आनंद से रूबरू करा दिया। मैं पूर्णरूपेण संतुष्ट हो गई थी और दीवानी बना दिया था मुझे अपनी चुदाई का। थक कर चूर मैं ने अपना सिर फिर से पंडित जी के बालों से भरे चौड़े चकले सीने पर रख दिया और पंडित जी ने मुझे अपनी बनमानुषी बांह से समेट लिया। मैं अनंत सुख के अहसास के साथ पल भर में गहरी निद्रा के आगोश में चली गई।

इसके बाद की घटना अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे इजाजत दीजिए।

 
सवेरे सर्वप्रथम 5 बजे मेरी आंखें खुलीं और कमरे का मंजर देख कर रात की सारी घटनाएँ चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने घूमने लगीं। अभी भी सारे लोग रात की वासना के तांडव की थकान से चूर, दीन दुनिया से बेखबर अस्त व्यस्त मादरजात नंगे इधर उधर पड़े हूए थे। गजब का नजारा था। मैं अलसाई सी उठ कर खड़ी हुई तो मेरे पैर कांपने लगे। पंडित जी ने रात में मुझे इतनी बुरी तरह रौंदा था, असर अब पता चल रहा था। रात में वासना के तूफान और कामुकता के अतिरेक में मुझे होश ही कहाँ था। अभी मैं ठीक से खड़े होने की कोशिश कर ही रही थी कि मेरी कमर पकड़ कर पंडित जी ने अपने ऊपर खींच लिया। मैं भरभरा कर उनके ऊपर गिर पड़ी।

“क्या करते हो, रात में तो निचोड़ डाला, मन नहीं भरा क्या?” मैं घबरा कर छटपटाते हुए फुसफुसाई।

“किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, एक बार फिर से गुड मॉर्निंग चुदाई हो जाए।” मेरे कानों में फुसफुसाते हुए मुझे किसी गुड़िया की तरह उठा लिया और दूसरे कमरे की ओर ले चला।

मैं उनकी बनमानुषी बांहों में छटपटाती रह गई। अभी वह दरवाजे तक पहुंचा ही था कि पीछे से दादाजी की आवाज सुनाई पड़ी, “कहाँ ले जा रहा है बे साले चोदू पंडित हमारी बीवी को। चोदना है तो यहीं चोद मादरचोद, सवेरे सवेरे तू ही अकेले नाश्ता करने चला है? हमारी बीवी हमें भी तो नाश्ता कराएगी ना।”

पंडित जी वहीं खड़े रह गए। दादाजी की आवाज सुन कर सभी जग गए और हमारी ओर देखने लगे। सभी नंग धड़ंग अवस्था में थे लेकिन इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं थी। जब सारी स्थिति सबको पता चली तो सारे मर्द एक स्वर में बोल उठे, “हमें भी नाश्ता चाहिए।” मैं कांप उठी, यह अहसास करके कि अब सारे मर्दों की एकमात्र निशाना मैं हूँ।

“कल रात हमें इन भेड़ियों के हवाले करके खुद पंडित जी के साथ ऐश कर रही थी ना साली कुतिया। चलो अब सारे मर्दों को झेलो। देख क्या रहे हो हरामजादो, सब मिलकर हमारे सामने ही इसकी गुडमॉर्निंग कर दो।” चाची जोर से बोली और फिर क्या था, सभी मर्द एक साथ मुझ पर टूट पड़े। इससे पहले कि मैं संभल पाती, सबने मिलकर मुझे वहीं फर्श पर पटक दिया और मेरे शरीर का जो भाग जिसके हिस्से आया, उसी पर लगे हाथ साफ करने।

“हाय राम, मार ही डालिएगा क्या आप लोग। रात मे पंडित जी ने मुझे जी भर के भंभोड़ दिया और अब आप सब लोग एक साथ ओह्ह्ह्ह मां हाय उफ्फ्फ,” मैं विरोध करने की असफल कोशिश करती रही मगर उन जंगली जानवरों की वहशियाना ताकत के आगे बेबस थी।

“चुप कर हरामजादी, हमें सब समझ आ गया, तू पंडित जी से चुदवाने के लिए मरी जा रही थी ना। ले अब पंडित जी के साथ साथ हम सब भी तेरी गरमी उतारते हैं।” नानाजी खूंखार लहजे में गुर्राए। मैं समझ गई कि अब मेरी खैर नहीं। सभी मर्द मादरजात नंगे थे और सबके फनफनाते लिंग अपने पूरे शबाब पर मुझे सलामी दे रहे थे। सब के सब वहशी जानवरों की तरह लार टपकाते हुए मेरी तिक्का बोटी करने को बेताब दिख रहे थे।

“ठीक ठीक, अब इस कुतिया के साथ सही होने जा रहा है। खूब गरमी चढ़ी थी ना। सब मिल कर इस छिनाल की गरमी उतार दो। हम भी इस रांड की रंडीपनई का दीदार करने को मरी जा रही थीं। नोच डालो, निचोड़ डालो इस कमीनी को, हमें चुदवाते हुए देखने का बहुत शौक चढ़ा था हरामजादी को।” मेरी मां भी चाची का समर्थन कर रही थी। मेरे बचने की रही सही आस भी खतम हो गयी। मैं ने अपने मन को कड़ा किया और अपने आप को परिस्थिति के हवाले कर दिया। बलात्कार का यह स्वरूप अपने आप में अनूठा था। घबराहट मे मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करूँ। अभी सवेरे सवेरे फ्रेश भी नहीं हो पाई थी कि यह मुसीबत। पेशाब लग रहा था और शौच का प्रेशर भी। छूटने के लिए थोड़ा संघर्ष कर रही थी किंतु शरीर साथ नहीं दे रहा था। मैं समझ गई कि विरोध बेमानी है। समर्पण मेंं ही भलाई है।
 
“आह मुझे फ्रेश तो हो जाने दो प्लीज।” मैं गिड़गिड़ाने लगी। मगर उनपर तो जैसे भूत सवार था,

“अब कहाँ जाओगी फ्रेश होने, हम ही फ्रेश कर देते हैं।” बड़े दादाजी बोले।

“देख कुतिया, मेरे, तेरे नाना और रघु के लंड में तेरी मां के चूत की मलाई अभी भी लगी हुई सूख गयी है। उसके चूत की गंध अभी भी हमारे लौड़े पर मौजूद है, इन्हीं जूठे लौड़ों से हम अभी तेरी पंडित जी के लंड से कुटाई हुई जूठी चूत का नाश्ता करेंगे।” बड़े दादाजी अपनी खींसे निपोरते हुए बड़े ही भद्दी आवाज़ में बोले।

“और हमारे लौड़ों पर तेरी चाची की बुर का रस लिथड़ कर सूख गया है। हम ऐसे ही तुम्हें चोदने वाले हैं।” हरिया बोल उठा।

“बहुत बढ़िया, अब हम सही मायने में एक ही थैले के चट्टे बट्टे बन जाएंगे।” करीम की बातें सुनकर सभी खिलखिला कर हंस पड़े, मुझे छोड़कर। मैं तो अपने ऊपर हो रहे आक्रमण से ही हलकान थी।

“पंडित, तूने दो दिन हमारी बीवी की चूत की चुदाई की है। आज तू इसकी गांड़ चोद कर संतोष कर। हम सब अभी बारी बारी से इसके चूत में डुबकी लगाएंगे।” दादाजी ने घोषणा की और सारे मर्दों ने एक स्वर से उनका समर्थन किया। मैं कांप उठी, यह सोच कर नहीं कि पांच लोग पंडित जी के विकराल लिंग से चुद चुद कर फूली हुई मेरी योनी में बारी बारी से डुबकी लगाएंगे, बल्कि यह सोच कर कि पंडित जी के विकराल लिंग से मेरी गुदा की दुर्गति हो जाएगी।

“नहीं््ईईंं््ईईंं, मेरी गुदा में पंडित जी का लिंग! ओह्ह्ह्ह मा्म्म्मा, मर जाऊंगी, प्लीज नहीं।” मैं घिघियाते हूए बोली।

“चुप साली कुतिया, हमसे धोखा और बेवफाई की सजा तो मिलेगी ही तुझे।” नानाजी गुर्राए।

पंडित जी को क्या फर्क पड़ना था। उनके लिए तो जैसी मेरी योनी वैसी ही मेरी गुदा थी। योनी मैथुन मेंं उन्होंने जो मजा लिया उससे कम मजा नहीं मिलने वाला था क्योंकि मेरे चिकने गोल गोल भरे हुए नितंबों में अलग ही आकर्षण था। उन्हें ठीक पता था कि मेरी कसी हुई गुदा से मैथुन का कैसा आनंद मिलने वाला था। वह सहर्ष राजी हो गया और पता नहीं सभी मर्दों ने आंखों ही आंखों में क्या इशारा किया कि सर्वप्रथम पंडित जी ही मुझ पर टूट पड़े किसी जंगली भालू की तरह और सीधे मुझे पीछे से अपने फौलादी बाजुओं में जकड़ लिया। मुझे झटके से कुतिया की तरह सामने झुका दिया और पलक झपकते अपने गधे जैसे लिंग पर ढेर सारा थूक लसेड़ा और मेरे मलद्वार पर टिका कर एक प्रलयंकारी आघात कर दिया। मैं इस आकस्ममिक आघात के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी, यह सब इतनी जल्दी हुआ कि जब तक मैं मसझ पाती, पंडित जी का आधा लिंग मेरी संकीर्ण गुदा मार्ग को चीरता हुआमेरी गुदा में प्रविष्ट हो चुका था। मेरी दर्दनाक चीख पूरे कमरे में गूंज उठी। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह्……ओ्ओ्ओ्ओ्ओ्ह्ह्ह्ह्ह…..मर गई मैं अम्म्म्म्म्आ्आ्आ्आ आह” मगर किसे मेरी चीख पुकार की परवाह थी। सभी दरिंदे बन चुके थे। यहां तक कि मेरी मां और चाची भी दर्शक बनी दृष्य का आनंद लेते हुए तालियां बजा रही थीं। मैं कातर निगाहों से कभी मम्मी की ओर और कभी चाची की ओर देख रही थी, किंतु उनकी आंखों में मेरे लिए कोई सहानुभूति नहीं थी, उल्टे मेरी बेबसी पर वे हंस रही थीं ओर तालियां बजा रही थीं, तालियां बजाते हुए उनकी बड़ी बड़ी थल थल करती चूचियां हिचकोले खा रही थीं।
 
“आह्ह्ह्ह्ह तेरी गांड़ कितनी मस्त है रे। तेरी चूत से भी ज्यादा मजेदार।” कहते कहते “हुम्म्म्म्मा्ह्ह्ह्ह” और एक भीषण प्रहार कर दिया जालिम ने।

“आह्ह्ह्ह्ह म्म्म्म्म्आ्आ्आ्आ” मेरी मर्मांतक चीख भी किसी के दिल मेंं दया नहीं उपजा पाई। पंडित जी को तो मानो मुहमांगी मुराद मिल गई थी। पंडित जी का नौ इंच का गरमागरम विकराल लिंग पूरा का पूरा मेरी गुदा में समा गया था और इतनी सख्ती से धंस गया था कि मैं हिलने में भी असमर्थ हो गई थी। एक तो रात्रि की कमरतोड़ थकान भरी चुदाई से टूटता मेरा तन, ऊपर से पंडित जी की दानवी सख्त पकड़, परकटी पंछी की मानिंद अपने ऊपर हो रही निर्दयता का विरोध मेरे लिए संभव भी नहीं था। दर्द की अधिकता से मेरी सांसें मानो रुक गई थीं और मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं।

“शाबाश पंडित, अब तू इस कुतिया की गांड़ में लौड़ा फंसाए रख और पलट जा, ताकि हम बारी बारी से इस बुरचोदी की बुर का नाश्ता कर सकें।” दादाजी के मुख से वासना भरी खरखराहट निकली। पंडित जी ने बिल्कुल वैसा ही किया और ऐसा करते करते अपनी कमर की चार पांच बार घपाघप जुंबिशें भी दे डाली। पीड़ा की लहर मेरे सारे शरीर में दौड़ पड़ी और मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली। अब शुरू हुआ मेरे साथ वासना का तांडव। सर्वप्रथम उम्र के लिहाज से सबसे उम्रदराज बड़े दादाजी ऊंचे कद के आड़े टेढ़े शरीर वाले, मेरे पैरों को फैला कर बिना एक पल गंवाए अपने फन फन करते लिंग को एक ही करारे धक्के से मेरी योनी में जड़ तक ठोक दिया, “ले मेरी रानी मेरा लौड़ा अपनी बुर मे,” ऊं्ऊं्ऊं्ऊह्ह्ह्ह” और बिल्कुल मशीनी अंदाज में धकाधक चोदने मेंं मशगूल हो गए। मेरे मुह से आह्ह्ह्ह्ह निकल गई। एक तो नीचे से मेरी गुदा में समाए पंडित जी के लिंग की पीड़ा और ऊपर से मेरी चुद चुद कर फूली हुई योनी पर बर्बर हमला, मैं हलकान थी।

“आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह धीरे बाबा, हाय मार ही डालोगे क्या ओह” इतना ही कह सकी थी मैं। चोदने का अंदाज ऐसा था कि मैं कहीं भागी जा रही हूं। बेतहाशा, बेताबी के साथ, मेरी चूचियां को बेदर्दी से मसलते हुए और अपने बिना मुह धोए बदबूदार मुह से मेरे होंठों को चूसते हुए धाड़ धाड़ धक्के पे धक्का लगाने लगे। कुछ ही पलों बाद जैसे ही मैं थोड़ी अभ्यस्त हुई, मुझे भी आनंद की अनुभूति होने लगी और शनैः शनैः मैं और भी उत्तेजित होने लगी। अब तक जो हो रहा था वह मेरे लिए एक दु:स्वप्न था, सचमुच का बलात्कार था जिसके अनुभव के लिए मैं ललायित थी, लेकिन अब जो कुछ हो रहा था, वह देखने में तो मुझ पर अत्याचार था किंतु मुझे अत्यंत आनंद से सराबोर कर रहा था। गुदा का दर्द छू मंतर हो गया था और इस दोतरफे संभोग के सुख में मैं डूबने उतराने लगी।
 
“आह्ह्ह्ह्ह राजा, ओह भगवान, उफ्फ्फ इतना सुखद, चोद सालों हरामजादों, आज मुझे रंडी बना दो कुत्तों, कुतिया बना दो, अपनी रानी को रांड बना दो डियर,” और न जाने क्या क्या अनाप शनाप बके जा रही थी बावली की तरह। करीब पंद्रह मिनट बाद बड़े दादाजी ने मुझे कस के दबोच लिया और फचफचा कर अपना वीर्य से मेरी कोख को सींचने लगे। आह्ह्ह्ह्ह और लो, मैं भी उसी वक्त खलास होने लगी, उफ्फ्फ। बड़े दादाजी जैसे ही मुझे चोद कर निवृत्त हुए दादाजी ने मोर्चा संभाला। आव देखा न ताव, सीधे अपने लिंग को मेरी चुदी लसलसाई योनी में भक्क से पेल दिया और ठीक बड़े दादाजी के अंदाज मेंं ही संभोगरत हो गये। करीब बीस मिनट बाद उन्होंने भी मेरी योनी में अपना वीर्य छोड़ा और किसी भैंसे की तरह हांफते हुए पसीने से सराबोर मुझ पर से हटे। मैं भी इस दौरान दो बार स्खलित हुई और पसीने से नहा गई थी। आश्चर्य था कि पंडित जी अभी भी डटे हुए थे। वे भी रुक रुक कर नीचे से कमर उचका उचका कर चोदे जा रहे थे।अब बारी थी हरिया की। नानाजी को सबसे अंत में मौका मिलने वाला था क्योंकि उनकी कुत्तों वाली खासियत के बारे में सबको पता था। हरिया ने ज्यों ही मेरी योनी में लिंग प्रवेश कराया, अबतक बमुश्किल रोका गया पेशाब छरछराकर मेरी योनी से बाहर निकलने लगा और फर्श पर गिरने लगा। हरिया की बेसब्री का आलम यह था कि उसी हालत मे वह छपाछप मुझे चोदने लगा। उफ, मैं बता नहीं सकती कि उस वक्त मुझे कैसा लग रहा था। एक अलग ही तरह का मजा मुझे मिल रहा था। हरिया भी करीब बीस मिनट बाद खलास हुआ और करीम ने धावा बोला। अबतक मेरी योनी का सारा कस बल निकल चुका था और करीम बड़े आराम से मुझे सटासट चोदने लगा। करीब पच्चीस मिनट तक करीम मुझे चोदता रहा। जब उसके खलास होने का समय आया तो उसने इतनी जोर से मुझे जकड़ा, जैसे मेरी पसलियों का चूरमा बना डालेगा। “आह आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्ह्,” काफी लंबा स्खलन था उसका। मेरी योनी में जैसे बाढ़ आ गया हो। वैसे भी अबतक की चुदाई के दौरान मेरी योनी वीर्य से लबालब हो चुकी थी। अब वीर्य मेरी योनी से नीचे बह कर मेरी गुदा से होते हुए पंडित जी के लिंग को भिंगा रही थी। उनका थैलानुमा अंडकोश भी गीला हो चुका था। करीम के फारिग होने पर मुझे कुछ पलों के लिए सांस लेने का समय मिला था। इन चार लोगों ने कुल मिलाकर करीब डेढ़ घंटे तक मुझे जी भर के नोचा खसोटा था और इस दौरान मैं कम से कम पांच बार स्खलन के सुखद दौर से गुजर चुकी थी, हालांकि चार मुस्टंडों को झेलते झेलते मेरी हालत खस्ता हो चुकी थी। मेरे पांव अकड़ने लग गये थे, लेकिन अभी नानाजी की श्वान चुदाई बाकी थी जिसे झेलना बाकी था। नानाजी से चुदने के लिए मुझे कुतिया बनने की जरूरत थी किंतु पंडित जी अभी भी नीचे से मेरी गुदा की कुटाई किए जा रहे थे।
 
“पंडित, तू जल्दी चोद कर हट, मुझे अभी इसे कुतिया बना कर चोदना है” नानाजी के सब्र का पैमाना छलक उठा था। उनके ऐसा कहने मात्र की देर थी, पंडित जी मुझे लिए दिए पलट गए और बिना लिंग निकाले पीछे से मेरे ऊपर चढ़ गए दनादन मेरी गुदा की ठुकाई करने में जुट गए। उनकी भीषण चुदाई और मेरे मलाशय के अंदर के दबाव के कारण मलद्वार से पीले पीले रंग मेंं मल पतले द्रव के रूप में बाहर निकलने लगा जिसे चाह कर भी रोकना मुश्किल था। यह देख कर नानाजी ने पंडित जी से कहा, “इसे जल्दी टॉयलेट में ले जा, नहीं तो यहीं हग देगी साली कुतिया।”

“हा हा हा हा” सभी ठहाके मार कर हंसने लगे।

पंडित जी मेरी गुदा से बिना लंड निकाले मुझे उठा कर टॉयलेट ले गये। वहां घुस कर भी पंडित जी मुझे कुतिया की तरह करीब और पांच मिनट तक छपाछप चोदते रहे। मल निकलता रहा, और मेरे मल से लिथड़े लिंग से ही पंडित जी ने गुदा मैथुन द्वारा अपने हवस की पूर्ति की। अंत में छरछराकर अंतहीन स्खलन। बाप रे बाप, वह सामान्य आदमी तो बिल्कुल ही नहीं था। इतना सारा वीर्य उसके लिंग से निकलने में करीब दो मिनट लगा होगा। फिर टॉयलेट के फर्श में फैले मेरी गुदा से निकलते वीर्य और मल के मिस्रित दुर्गंधयुक्त तरल पर ही धड़ाम से लुढ़क कर किसी जंगली भैंस की तरह डकारते हुए लंबी लंबी सांसे लेने लगे मानो मीलों दौड़ कर आए हों। गजब का चुदक्कड़ था पंडित। गजब की स्तंभन क्षमता और अथक मैथुन का दम। उनका लिंग तो खैर अद्वितीय था ही। तभी तो उसके शरीर की बेढबता और तमाम कुरूपता के बावजूद मैं उस पंडित पर फिदा थी। इधर पंडित जी लुढ़के और उधर मैं थकान से बेदम दूसरी ओर लुढ़क गयी। मेरे पैर कांप रहे थे। सारा शरीर निचुड़ चुका था। मैं यह सोच सोच कर हलकान हो रही थी कि अब नानाजी की कुतिया बन कर उनकी हवस मिटाने की जिम्मेदारी भी पूरी करनी है।

“क्या रे मादरचोद पंडित, हमारी बीवी को मार कर ही छोड़ेगा क्या। जल्दी ला साली कुतिया को। मेरे लौड़े का बहुत देर से भूख के मारे बुरा हाल है।” तभी नानाजी की बेसब्र आवाज मुझे सुनाई पड़ी। किसी तरह लड़खड़ाते हुए मैं उठी और पानी ढाल ढाल कर खुद को साफ किया और पंडित जी को उसी हालत में छोड़ कर लड़खड़ाते कदमों से फिर उसी कमरे मेंं जा घुसी। मेरे घुसते ही नानाजी किसी बाज की तरह मुझ पर झपटे “आजा मेरी कुतिया” और आनन फानन में मुझे कुतिया की तरह झुका दिया। “मेरी प्यारी कुतिया, ले अब मेरे लौड़े का भी स्वाद चख” कहते हुए चुद कर भोंसड़ा बन चुकी योनी मेंं किसी कुत्ते की तरह पिल पड़े। मेरे हलक से हल्की सी आह्ह्ह्ह्ह निकल पड़ी। नानाजी भी मुझ पर भूखे भेड़िये की तरह बर्बरता दिखाने में पीछे नहीं थे। उत्तेजना के आवेग में पीछे से मेरे उन्नत उरोजों को इतनी जोर से दबोचा कि मेरी दर्दनाक चीख निकल पड़ी।

“चोप्प्प कुतिया, इतने लोगों से चुद गई और हमीं से चिल्ला रही है बुरचोदी रंडी। चुपचाप चुदती रह मेरी अच्छी कुतिया की तरह।” नानाजी खूंखार लहजे में बोले।
 
“आह आहिस्ता नानाजी, ओह सॉरी, पतिदेव जी। प्लीज आराम से, ओह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह,” मैं मरी मरी सी आवाज में घिघियाती रह गई, किंतु नानाजी तो बावले हो चुके थे, उतावलेपन में मेरी आहों की आवाज को दरकिनार कर एक ही करारे प्रहार से अपना पूरा का पूरा लिंग मेरी योनी में उतार दिया और लग गये किसी जंगली कुत्ते की तरह मुझे चोदने।

“आह्ह्ह्ह्ह मेरी कुतिया बहुत इंतजार करवाई हो। ओह्ह्ह्ह मेरी प्यारी बुरचोदी रानी, ले मेरा लौड़ा, ओह हुम्म्म्म्मा्ह्ह्ह्ह हुम्म्म,” और न जाने पागलों की तरह क्या क्या बके जा रहे थे और मुझे झिंझोड़ झिंझोड़ कर चोदते जा रहे थे। उनकी कामुक बातों और जंगली हरकतों का परिणाम यह हुआ कि थकान से चूर होने के बावजूद मेरे अंदर जैसे नवजीवन का संचार होने लगा। कुछ ही मिनटों में मेरे अंदर कामुकता की अग्नि भड़क उठी और मैं जो अब तक ढीली ढाली चुदाई को सिर्फ झेल रही थी, सक्रिय हो गयी।

“आह्ह्ह्ह्ह राजा, ओह्ह्ह्ह राजा, ओह मेरे स्वामी, चोद अपनी रानी को, मेरे कुत्ते, चोद अपनी कुतिया को, चोद मादरचोद, मेरे लंडराजा,” मैं भी जोश में आ गयी थी और अश्लील शब्दावली का इस्तेमाल करते हुए नानाजी की चुदाई का भरपूर लुत्फ उठाने लगी। मैं भी कमर उचका उचका कर नानाजी के ठापों का जवाब देने लगी। नानाजी मेरे इस अंदाज से निहाल हो गए और दुगुने जोश से जुट गए चोदने।। “ओह मेरी कुतिया, ओह मेरी रानी, खूब मजा आ रहा है आह, तू तो पूरी रंडी बन गई रे, हमारी रंडी बीवी,” खुश हो गए थे नानाजी। करीब बीस मिनट चुदने के पश्चात मुझे महसूस होने लगा कि मेरी योनी के अंदर विशाल गांठ आकार ले रहा है। इस वक्त नानाजी पूरी शक्ति से मेरी कमर अपनी गिरफ्त में लिए हुए थे। उस वक्त मैं हिल भी नहीं पा रही थी। जबतक नानाजी ने मुझे छोडते, तबतक उनके लिंग का गांठ पूरा आकार ले चुका था, एक टेनिस बॉल से भी काफी बड़ा। मैं फंस चुकी थी। अब हम दोनों कुत्ते कुतिया की तरह एक दूसरे से जुड़ गए थे। नानाजी कुत्ते की तरह पलट गए और हांफने लगे। मैं भी थक कर चूर सर फर्श पर रख कर सुस्ताने लगी। इस करीब दस मिनट बाद नानाजी के लिंग से मदन रस का पतन होने लगा जिसका कतरा कतरा मेरी योनी के अंदर ही जज्ब होने लगा। मैं आनंदातिरेक से विभोर हो उठी। इसके कुछ ही पलों के पश्चात नानाजी का लिंग फट्ट की आवाज से मेरी योनी के बाहर निकल आया और मैं ने राहत की लंबी सांस ली। थकान के मारे मैं अपने स्थान से उठ भी नहीं पा रही थी। वहीं पर लस्त पस्त पसीने से सराबोर लुढ़क गयी। नानाजी के आठ इंच लंबे लिंग से अभी भी टप टप मदन रस चू रहा था। वे भी थक कर चूर वहीं पर लुढ़क गए।अविश्वसनीय, किंतु इतनी थकी होने के बावजूद मैं इस दौरान दो बार स्खलित हुई। मैं इस पूरी सामुहिक चुदाई में छ: मर्दों की अकेली भोग्या थी और सबको सफलतापूर्वक झेलकर विजयी भाव से मम्मी और चाची को देख रही थी। कोई विश्वास करे या न करे, लेकिन यह सच था कि इस थकान भरी चुदाई में भी मैंने भरपूर स्वर्गीय सुख का स्वाद चखा। मेरी मां और चाची भी ईर्श्या भरी निगाहों से मुझे देखती रह गयीं।
 
“बहुत बड़ी छिनाल बन गई है तेरी बेटी तो,” चाची मेरी मां से कह रही थी।

“हां, पता नहीं इस लड़की की किस्मत में क्या लिखा है” मेरी मां ने सिर्फ इतना ही कहा।

“चलो कोई बात नहीं, अब जो होना है वह तो भविष्य ही बताएगा। फिलहाल तो यह मान लो कि यह भी हमारी जमात में शामिल हो चुकी है। अब हमारे बीच कोई पर्दा भी तो नहीं रह गया है।” चाची बोली। इतने में पंडित भी आ गया। अब तक सभी मादरजात नंगे ही थे।

“आईए पंडित जी। आप भी आ जाईए।” दादाजी ने पंडित जी से कहा। पंडित जी का नग्न शरीर इस वक्त किसी बनमानुष से कम नहीं लग रहा था। वे भी आकर हमारे बीच बैठ गए। किसी को अपने कपड़ों की कोई चिंता नहीं थी। हम सभी आदि मानवों की तरह नंग धडंग बेशर्मी के साथ एक दूसरे से बातें कर रहे थे। मां को आज ही वापस लौटना था। वह चाहती थी कि मैं भी उनके साथ वापस चलूं किंतु नानाजी ने साफ मना कर दिया।

“हमारी पत्नी अब हमारे साथ ही रहेगी।” उन्होंने घोषणा की।

“पापा, कल इसे कॉलेज में अडमीशन लेना है। इसे तो चलना ही पड़ेगा।” मम्मी बोली।

“कॉलेज यह यहां पर ही रह कर करेगी। कोई जरूरत नहीं है वहां जाने की।” नानाजी ने अंतिम फैसला दिया। मम्मी को कुछ कहते नहीं बना।

वह मेरी ओर मुखातिब हो कर बोली, “तुम क्या बोलती हो?” मैं नानाजी की बातों से सहमत थी, अतः मैंने घर लौटने से मना कर दिया। दादाजी और बड़े दादाजी को भी हजारीबाग लौटना था। वहां का काम भी रुका हुआ था। अंततः यह तय हुआ कि मम्मी और दादाजी, बड़े दादाजी आज ही अपने अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करेंगे।

आगे की घटना अगली कड़ी में

तबतक के लिए इजाजत दीजिए
 


पिछली कड़ी में आपलोगों ने पढ़ा कि किस तरह मेरे नाना के घर में मेरे दादाजी, बड़े दादाजी, हरिया, करीम, नानाजी, पंडितजी, मेरी मां, चाची और मुझे मिलाकर कुल नौ लोगों के बीच किस तरह वासना का नंगा खेल चला। उसके बाद आगे:-

जैसा कि तय हुआ था, नहा धो कर नाश्ता करने के पश्चात मां घर लौट गयी। दादाजी और बड़े दादाजी हजारीबाग चले गए। पंडित जी भी अपने घर चले गये, लेकिन जाते वक्त आंखों ही आंखों में पंडित जी मुझ से काफी कुछ कह गए। मेरा दिल बाग बाग हो उठा, यह जान कर कि हमारी मुलाकातें जारी रहेंगी। बाकी सारे लोग अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। चाची भी अपने घर चली गयी। वह यहां से ज्यादा दूर नहीं थी, सो पैदल ही जाने को तत्पर हो गई थी, लेकिन नानाजी ने करीम से कहा कि उसे घर छोड़ दे। करीम ने गाड़ी निकाली और चाची को उनके घर छोड़ आए। यहां तक की कहानी सुनाने के बाद कामिनी रुक कर मेरे चेहरे की ओर गौर से देखने लगी। दर असल कामिनी जब अपनी जीवनी के पन्ने मेरे सामने पलट रही थी उस वक्त उसने जिस तरह पंडित जी का जिक्र किया था उसे सुन कर मैं भी रोमांचित हो उठी थी। हालांकि मैं, , एक पारिवारिक, पतिव्रता, शादीशुदा, दो बच्चों की मां हूं, किंतु हूं तो एक इंसान ही। इंसानी कमजोरियों से युक्त, जिसके मन के चाह की कोई सीमा नहीं होती। सामाजिक बंधनों से बंधे होने के बावजूद सभी के मन में काफी कुछ अनैतिक चलता रहता है, जिसे हर इंसान को दबा कर जीना पड़ता है वरना यह समाज रुपी संस्था कब का छिन्न भिन्न हो गया होता। मैं कितनी कामुक हूं यह सिर्फ मेरे पतिदेव जी को ही पता है। मेरी वासना की आग को मेरे पति कभी कभी अनबुझा छोड़ देते थे, लेकिन फिर भी मुझे कोई शिकायत नहीं थी क्योंकि कम से कम मुझ जैसी स्त्री के लिए एक पति और परिवार रुपी सुरक्षा तो थी। अपनी तमाम कमजोरियों और यौनेच्छा के बावजूद मैं कामिनी की तरह इतनी आजाद खयाल भी नहीं हूं (समाज का भय, जिसकी जंजीर में जकड़ी 95% भारतीय स्त्रियां जी रही हैं) कि किसी भी मर्द के सम्मुख अपनी काम पिपाशा शांत करने हेतु बिछ जाऊं, किंतु पंडित जी के बारे में कामिनी के मुख से जो कुछ सुना, उसके विस्तृत चित्रण ने मेरी योनी को गीला होने मेंं मजबूर कर दिया। मैं तन्मयता से कामिनी की कामगाथा सुनते हुए सोफे पर बैठी बैठी कसमसाने लगी। मैं खुद पर चकित थी कि पर पुरुष के बारे में सुन कर मुझ जैसी सीधी सादी 40 वर्षीय गृहिणी को यह क्या हो रहा है। मेरे शरीर पर मानो चींटियां रेंग रही हों। मेरा चेहरा लाल भभूका हो गया और मेरी सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थी। अनायास और बेध्यानी मेंं मेरा हाथ सलवार के ऊपर से ही मेरे गुप्तांग के स्थान पर चला गया। कामिनी की अनुभवी आंखों से मेरी हालत छिपी न रह सकी और उसके होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान थिरकने लगी। इस वक्त हम कामिनी के वृद्धाश्रम में बैठे बातें कर रहे थे। (दरअसल आज की तारीख में कामिनी एक वृद्धाश्रम चला रही थी और उसके नाना, दादा, बड़े दादा गुजर चुके थे। माता पिता भी बूढ़े हो चले थे। एकमात्र भाई अपने आवारा दोस्तों की सोहबत में पड़कर अपराध की दुनिया में कदम रख चुका था और दो बार जेल की हवा भी खा चुका था। हरिया और करीम भी काफी बूढ़े हो चुके थे और यहीं वृद्धाश्रम की देख भाल मेंं कामिनी का हाथ बंटा रहे थे।)
 
इसके बाद की घटनाएं इस तरह थीं, कामिनी की जुबानी –

मेरा एडमीशन महिला कॉलेज रांची में हो गया। मैं कॉमर्स की पढ़ाई करने लगी। बीच बीच में दादाजी और बड़े दादाजी मुझसे मिलने आ जाते थे और अपनी वासना की भूख मिटा कर लौट जाते थे। यहां नानाजी के साथ हरिया और करीम तो थे ही मेरे साथ पति धर्म निभाने को। बीच बीच में मैं पंडित जी से भी रंगरेलियां मना लेती थी। तभी एक अनहोनी हो गई जिसने मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ ले आया। अभी दो ही महीने हुए थे यहां रहते हुए कि मेरी माहवारी बंद हो गई। शंका के समाधान के लिए मेरा चेकअप हुआ तो पता चला कि मैं गर्भवती हो चुकी हूं। हालांकि मैं नानाजी के यहां सामुहिक पत्नी के रुप में रह रही थी किंतु समाज इस शादी को अनैतिक मान कर खारिज कर देता। फलस्वरूप बदनामी के डर से नानाजी ने सबसे सलाह मश्वरा करके भरे मन से मुझे एक सरकारी क्लर्क के पल्ले बांध दिया। मात्र सात महीने बाद ही मैं ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसे डाक्टर ने प्री मैच्योर बेबी कह कर मुझे कलंकिनी कहलाने से बचा लिया। इसके बाद की कहानी आप लोग कहानी की शुरुआत में पढ़ चुके हैं। पति की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात सास की प्रताड़ना से आजिज आ कर मैं ने ससुराल छोड़ दिया और नानाजी के यहां आ कर रहने लगी और अपनी पढा़ई लिखाई पूरी की। नानाजी के घर से वैसे भी मेरा नाता पहले से था। अब मैं कहीं नौकरी ज्वॉईन करके अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी साथ ही साथ मेरी कामुकता को यथाशक्ति नियंत्रण मेंं रखना चाहती थी जो समय के साथ साथ और भी धधकती जा रही थी। मेरी वासना की भूख पहले से और बढ़ गई थी जिसे बूढ़े होते जा रहे मेरे तथाकथित पतियों और पंडित जी से मिटाती आ रही थी।

फिर एक और संयोग ने मेरी जिंदगी में एक और नया मोड़ ला दिया। मेरी कॉलेज की पढा़ई खत्म होने के तुरंत बाद ही एक दिन बाजार में उसी हब्शी से मुलाकात हो गई जिसकी अंकशायिनी बनने के लिए एक कमीने सरदार ने मुझे ब्लैकमेल करके मजबूर किया था।

मैं बच कर निकलना चाहती थी कि उन्होंने मुझे टोक दिया, “Hi, how are you baby?” (हाय कैसी हो बेबी)

“I’m fine sir.” (मैं अच्छी हूं श्रीमान) मैं झिझकते हुए बोली।
 
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