desiaks
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अब तक आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह रेखा मेरी जाल में फंस कर क्षितिज से चुद गयी। उसकी चीख पुकार सुनकर हरिया और करीम नें हमें रंगे हाथ पकड़ लिया। हमारे नोक झोंक से हमारे बीच के अनैतिक संबंधों का पर्दाफाश क्षितिज और रेखा के सामने हो गया। आवेश में आकर मैं सब कुछ बोल बैठी, सब राज खोल बैठी। सुन कर पहले तो क्षितिज और रेखा अवाक रह गये लेकिन बाद में यह महसूस करके कि हमारे परिवार के गंदगी भरे माहौल और परिस्थितियों की मारी मैं अपने इस हाल में भी बेहद खुश हूं, उनकी भावना मेरे प्रति बदल गयी। माहौल का तनाव कुछ कम हुआ और हम सब आपस में खुल गये। अब आगे –
“तो अब?” हरिया खिल उठा, सारे गिले शिकवे दूर।
“तो अब क्या हरामियों, अब भी मैं ही बोलूं?”
“वाह, बहुत बढ़िया। हम तो चुदक्कड़ ठहरे एक नंबर के, क्षितिज को भी ले आई हो अब इस लाईन में, बढ़िया, बहुत बढ़िया। लगे हाथों रेखा भी शामिल हो गयी हमारी जमात में। क्षितिज बेटे, तूू जो चाहे कर रेखा रानी केे साथ, हम देेेखते हैैं तेेेरी मां को। बूढ़े हैं तो क्या हुआ, इतनी देर में हमारा लौड़ा भी फनफनाने लग गया है।” कहते हुए फटाफट अपने कपड़े उतार कर नंगे हो गये। सत्तर इकहत्तर साल के बूढ़े, देखने में शारीरिक रूप से स्वस्थ, लेकिन चोदने में कितने समर्थ हैं इसकी परवाह किए बगैर अपने कपड़ों से मुक्त हो कर मेरी ओर भूखे भेड़ियों की तरह बढ़े। तोंद निकले हुए थे दोनों के। उनके शरीर के सारे बाल सन की तरह सफेद हो चुके थे, यहां तक कि झांट भी। घनी झांटों के बीच बेलन की तरह झूल रहे थे उनके काले काले लंड। आश्चर्य से रेखा और क्षितिज यह नजारा देख रहे थे। मेरे पास पहुंच कर हरिया नेंं मुझे दबोच लिया और दनादन चूमने चाटने लगा। करीम कहाँ पीछे रहने वाला था। उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसलने लगा।
“हमारी प्यारी लंडखोर, देख हम अभी तेरा क्या हाल करते हैं।” कहते हुए दोनों मुझे सैंडविच बना कर पीसने लगे।। “आह्हह, ओह्ह रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, इतनी देर से आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, मरी जा रही हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं।” वासना की ज्वाला में धधकती पिसती, उन दोनों जंगली बूढ़े भेड़ियों की नोच खसोट के आनंद में मग्न, क्षितिज और रेखा की उपस्थिति से बेखबर, डूबती जा रही थी कामुकता के सैलाब में। इन बूढ़े शेरों में अभी भी बहुत जान बाकी थी। जहाँ हरिया का टन टन करते टन्नाये हुए बेलनाकार लंड का गुलाबी सुपाड़ा मेरी ज्वालामुखी की तरह भभकती चूत के दरवाजे को फाड़ डालने को बेताब दस्तक पर दस्तक दिए रहा था वहीं करीम का विकराल गदा सरीखा लंड मेरी गांड़ के रास्ते मेरे अंदर समा जाने को आतुर ठोकरे पर ठोकरें मार कर ठकठकाता हुआ बंद गुदा के द्वार को क्षत विक्षत कर प्रवेश करने पर आमादा था। मैं कसमसा रही थी, सिसक रही थी, समर्पण के संकेत के साथ। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, हां्हां्आं्आं्आं हां्हां्हां्आं्आं्आआआआह्ह्ह्ह, मेरे रसिया आह, ऐस्स्स्स्स्स्आआआआ ही्ई्ई्ई्ई, हां हां उफ्फ्फ्फ चोद डालो मुझे मेरे बूढ़े चोदुओ, निका्आ्आ्आ्आ्आल दो मेरी सारी गरमी बुझा लो अपनी भूख प्यास।” मैं पगला गयी थी उस वक्त उनके नंगे बूढ़े तन से पिसती हुई, उनकी कामुक हरकतों से हलकान होती हुई। उन दोनों बूढ़े हवस के पुजारियों के हत्थे चढ़ी मेरे पागलपन में तड़पते तन को विस्फारित नेत्रों से देखते और मेरे होंठों से निकलते उत्तेजक उद्गारों को मंत्रमुग्ध सुनते देख मैं आवेश में क्षितिज और रेखा पर चीख पड़ी, “इस तरह देख क्या रहे हो बेवकूफों, शुरू हो जाओ।” सहसा मानो उनकी तंद्रा भंग हुई। दोनों पुनः भिड़ गये एक दूसरे से विक्षिप्तों की तरह। इस बार पहले से कुछ अधिक ही खौफनाक ढंग से टूट पड़े थे एक दूसरे पर, शायद हम तीनों के द्वारा सृजित उत्तेजक माहौल का असर था।
“तो अब?” हरिया खिल उठा, सारे गिले शिकवे दूर।
“तो अब क्या हरामियों, अब भी मैं ही बोलूं?”
“वाह, बहुत बढ़िया। हम तो चुदक्कड़ ठहरे एक नंबर के, क्षितिज को भी ले आई हो अब इस लाईन में, बढ़िया, बहुत बढ़िया। लगे हाथों रेखा भी शामिल हो गयी हमारी जमात में। क्षितिज बेटे, तूू जो चाहे कर रेखा रानी केे साथ, हम देेेखते हैैं तेेेरी मां को। बूढ़े हैं तो क्या हुआ, इतनी देर में हमारा लौड़ा भी फनफनाने लग गया है।” कहते हुए फटाफट अपने कपड़े उतार कर नंगे हो गये। सत्तर इकहत्तर साल के बूढ़े, देखने में शारीरिक रूप से स्वस्थ, लेकिन चोदने में कितने समर्थ हैं इसकी परवाह किए बगैर अपने कपड़ों से मुक्त हो कर मेरी ओर भूखे भेड़ियों की तरह बढ़े। तोंद निकले हुए थे दोनों के। उनके शरीर के सारे बाल सन की तरह सफेद हो चुके थे, यहां तक कि झांट भी। घनी झांटों के बीच बेलन की तरह झूल रहे थे उनके काले काले लंड। आश्चर्य से रेखा और क्षितिज यह नजारा देख रहे थे। मेरे पास पहुंच कर हरिया नेंं मुझे दबोच लिया और दनादन चूमने चाटने लगा। करीम कहाँ पीछे रहने वाला था। उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसलने लगा।
“हमारी प्यारी लंडखोर, देख हम अभी तेरा क्या हाल करते हैं।” कहते हुए दोनों मुझे सैंडविच बना कर पीसने लगे।। “आह्हह, ओह्ह रज्ज्ज्ज्ज्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, इतनी देर से आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, मरी जा रही हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं।” वासना की ज्वाला में धधकती पिसती, उन दोनों जंगली बूढ़े भेड़ियों की नोच खसोट के आनंद में मग्न, क्षितिज और रेखा की उपस्थिति से बेखबर, डूबती जा रही थी कामुकता के सैलाब में। इन बूढ़े शेरों में अभी भी बहुत जान बाकी थी। जहाँ हरिया का टन टन करते टन्नाये हुए बेलनाकार लंड का गुलाबी सुपाड़ा मेरी ज्वालामुखी की तरह भभकती चूत के दरवाजे को फाड़ डालने को बेताब दस्तक पर दस्तक दिए रहा था वहीं करीम का विकराल गदा सरीखा लंड मेरी गांड़ के रास्ते मेरे अंदर समा जाने को आतुर ठोकरे पर ठोकरें मार कर ठकठकाता हुआ बंद गुदा के द्वार को क्षत विक्षत कर प्रवेश करने पर आमादा था। मैं कसमसा रही थी, सिसक रही थी, समर्पण के संकेत के साथ। “आ्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह, हां्हां्आं्आं्आं हां्हां्हां्आं्आं्आआआआह्ह्ह्ह, मेरे रसिया आह, ऐस्स्स्स्स्स्आआआआ ही्ई्ई्ई्ई, हां हां उफ्फ्फ्फ चोद डालो मुझे मेरे बूढ़े चोदुओ, निका्आ्आ्आ्आ्आल दो मेरी सारी गरमी बुझा लो अपनी भूख प्यास।” मैं पगला गयी थी उस वक्त उनके नंगे बूढ़े तन से पिसती हुई, उनकी कामुक हरकतों से हलकान होती हुई। उन दोनों बूढ़े हवस के पुजारियों के हत्थे चढ़ी मेरे पागलपन में तड़पते तन को विस्फारित नेत्रों से देखते और मेरे होंठों से निकलते उत्तेजक उद्गारों को मंत्रमुग्ध सुनते देख मैं आवेश में क्षितिज और रेखा पर चीख पड़ी, “इस तरह देख क्या रहे हो बेवकूफों, शुरू हो जाओ।” सहसा मानो उनकी तंद्रा भंग हुई। दोनों पुनः भिड़ गये एक दूसरे से विक्षिप्तों की तरह। इस बार पहले से कुछ अधिक ही खौफनाक ढंग से टूट पड़े थे एक दूसरे पर, शायद हम तीनों के द्वारा सृजित उत्तेजक माहौल का असर था।