desiaks
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पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि किस तरह मैं ने क्षितिज को परस्त्रीगामी होने के लिए न केवल प्रेरित किया बल्कि उसके लिए रेखा नामक, पति से उपेक्षित, 41 वर्षीय, काली किंतु खूबसूरत एक स्त्री का चयन करके अपने जाल में फंसाकर परोस दिया। रेखा बेचारी वर्षों से दमित वासना की भूखी, एक 21 वर्षीय गबरू जवान से चुद तो गयी मगर उसके अंदर संकोच अब भी था। जहां मैं क्षितिज के लिए चिंतित थी, जो कि अब करीब करीब दूर हो चुकी थी, वहीं रेखा की परपुरुषों के प्रति झिझक को देख कर चिंतित हो उठी। उसकी यह झिझक जब तक दूर नहीं होगी, तबतक यह खुल कर परपुरुषों से संभोग सुख कैसे प्राप्त करेगी? फिर रेखा की हालत समझ कर उसकी झिझक दूर करने हेतु उसके तन को हरिया और करीम के द्वारा खुल कर नुचवाने की योजना बना बैठी और उसमें सफल भी हो गयी। उस दिन, संध्या को जहां क्षितिज, रेखा की नग्न देह का रसपान कर नये स्वाद से परिचित हुआ वहीं बूढ़े हरिया और करीम के मध्य पिसती हुई मैं भी कामुकता के समुंदर में डुबकी लगा कर सराबोर हो उठी। रात्रि के समय भोजन के उपरांत, पूर्वनियोजित योजना के अनुसार पहले मैंने रेखा की कामुक भावनाओं को पुनः भड़का कर ज्वालामुखी में परिवर्तित कर दिया। इधर हरिया और करीम उपयुक्त अवसर के इंतजार में भूखे भेड़ियों की तरह घात लगाए बैठे थे। लोहा गरम देख कर मौके पर चौका जड़ने झपट पड़े रेखा के दहकते तन पर। इन बूढ़ों द्वारा नोचा जाना रेखा की कल्पना से परे था, अत: विरोध पर उतर आई, किंतु मेरे जोर और उन दोनों बूढ़ों की जबर्दस्ती के आगे उसकी एक न चली। पहली ही बार में रेखा जबर्दस्ती हरिया का लिंग चूसने को वाध्य हो गयी, तत्पश्चात जहां उसकी क्षितिज द्वारा चुद चुद कर फूली हुई योनि पर हरिया के आठ इंच लंबे और करीब करीब तीन इंच मोटे लिंग का हमला हुआ वहीं उसकी क्षितिज द्वारा चुदी चुदाई गुदा पर करीम के गदास्वरूप गधे लिंग का आक्रमण हुआ। रेखा प्रथमतः प्राणांतक चीखों और छटपटाहट के साथ अपनी पीड़ा प्रदर्शित रही मगर अंततः उन काम कला के सिद्धहस्त बूढ़ों ने अपनी संभोग क्षमता और संभोग कला से रेखा की पीड़ा भरी चीखों को आनंदमय सीत्कारों में तब्दील कर दिया। खूब मजे से, खुल कर उस संभोग क्रिया में बराबर की हिस्सेदार बनी आनंद लेती रही। इसी दौरान मेरे बेटे क्षितिज का आगमन हुआ और मैं विस्मित, हतप्रभ क्षितिज की ईर्ष्या, दुश्चिंताओं को दूर करके अपनी कामुकता की अग्नि में जलती नग्न देह को उसके सम्मुख परोस बैठी। करीब आधे घंटी की घमासान चुदाई के पश्चात हम निवृत हो निढाल पड़ गये थे। यहीं अंत नहीं हुआ। उस रात तीन बार, बारी बारी से हरिया, करीम और क्षितिज ने मिलकर मुझे और रेखा को ऐसे रौंद रौंद कर बेदम कर दिया, मानो यही चुदाई की आखिरी रात हो। सवेरे देखा तो बुरी तरह नुच चुद कर रेखा की चूचियां लाल हो गयी थीं, चूत फूल कर गोलगप्पा बन गयी थी और गुदा द्वार का छल्ला फूल भी गया था और लाल भी हो गया था। कुल मिलाकर रेखा के तन का सारा कस बल निकल चुका था, मन की सारी झिझक, लाज लिहाज, शर्म, हया तार तार हो चुकी थी और अब इस दुनिया में एक नयी रेखा का अवतरण हो चुका था, बिंदास रेखा का। सवेरा एक नया सवेरा था। एक तीर से दो शिकार। क्षितिज का परस्त्रीगामी होने की ओर अग्रसर होना और रेखा का परपुरूषों से शारीरिक सुख प्राप्त करने की कामना को जागृत करना। मैं इन दोनों प्रयासों में सफल रही। अब आगे –