Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 28 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि किस तरह मैं ने क्षितिज को परस्त्रीगामी होने के लिए न केवल प्रेरित किया बल्कि उसके लिए रेखा नामक, पति से उपेक्षित, 41 वर्षीय, काली किंतु खूबसूरत एक स्त्री का चयन करके अपने जाल में फंसाकर परोस दिया। रेखा बेचारी वर्षों से दमित वासना की भूखी, एक 21 वर्षीय गबरू जवान से चुद तो गयी मगर उसके अंदर संकोच अब भी था। जहां मैं क्षितिज के लिए चिंतित थी, जो कि अब करीब करीब दूर हो चुकी थी, वहीं रेखा की परपुरुषों के प्रति झिझक को देख कर चिंतित हो उठी। उसकी यह झिझक जब तक दूर नहीं होगी, तबतक यह खुल कर परपुरुषों से संभोग सुख कैसे प्राप्त करेगी? फिर रेखा की हालत समझ कर उसकी झिझक दूर करने हेतु उसके तन को हरिया और करीम के द्वारा खुल कर नुचवाने की योजना बना बैठी और उसमें सफल भी हो गयी। उस दिन, संध्या को जहां क्षितिज, रेखा की नग्न देह का रसपान कर नये स्वाद से परिचित हुआ वहीं बूढ़े हरिया और करीम के मध्य पिसती हुई मैं भी कामुकता के समुंदर में डुबकी लगा कर सराबोर हो उठी। रात्रि के समय भोजन के उपरांत, पूर्वनियोजित योजना के अनुसार पहले मैंने रेखा की कामुक भावनाओं को पुनः भड़का कर ज्वालामुखी में परिवर्तित कर दिया। इधर हरिया और करीम उपयुक्त अवसर के इंतजार में भूखे भेड़ियों की तरह घात लगाए बैठे थे। लोहा गरम देख कर मौके पर चौका जड़ने झपट पड़े रेखा के दहकते तन पर। इन बूढ़ों द्वारा नोचा जाना रेखा की कल्पना से परे था, अत: विरोध पर उतर आई, किंतु मेरे जोर और उन दोनों बूढ़ों की जबर्दस्ती के आगे उसकी एक न चली। पहली ही बार में रेखा जबर्दस्ती हरिया का लिंग चूसने को वाध्य हो गयी, तत्पश्चात जहां उसकी क्षितिज द्वारा चुद चुद कर फूली हुई योनि पर हरिया के आठ इंच लंबे और करीब करीब तीन इंच मोटे लिंग का हमला हुआ वहीं उसकी क्षितिज द्वारा चुदी चुदाई गुदा पर करीम के गदास्वरूप गधे लिंग का आक्रमण हुआ। रेखा प्रथमतः प्राणांतक चीखों और छटपटाहट के साथ अपनी पीड़ा प्रदर्शित रही मगर अंततः उन काम कला के सिद्धहस्त बूढ़ों ने अपनी संभोग क्षमता और संभोग कला से रेखा की पीड़ा भरी चीखों को आनंदमय सीत्कारों में तब्दील कर दिया। खूब मजे से, खुल कर उस संभोग क्रिया में बराबर की हिस्सेदार बनी आनंद लेती रही। इसी दौरान मेरे बेटे क्षितिज का आगमन हुआ और मैं विस्मित, हतप्रभ क्षितिज की ईर्ष्या, दुश्चिंताओं को दूर करके अपनी कामुकता की अग्नि में जलती नग्न देह को उसके सम्मुख परोस बैठी। करीब आधे घंटी की घमासान चुदाई के पश्चात हम निवृत हो निढाल पड़ गये थे। यहीं अंत नहीं हुआ। उस रात तीन बार, बारी बारी से हरिया, करीम और क्षितिज ने मिलकर मुझे और रेखा को ऐसे रौंद रौंद कर बेदम कर दिया, मानो यही चुदाई की आखिरी रात हो। सवेरे देखा तो बुरी तरह नुच चुद कर रेखा की चूचियां लाल हो गयी थीं, चूत फूल कर गोलगप्पा बन गयी थी और गुदा द्वार का छल्ला फूल भी गया था और लाल भी हो गया था। कुल मिलाकर रेखा के तन का सारा कस बल निकल चुका था, मन की सारी झिझक, लाज लिहाज, शर्म, हया तार तार हो चुकी थी और अब इस दुनिया में एक नयी रेखा का अवतरण हो चुका था, बिंदास रेखा का। सवेरा एक नया सवेरा था। एक तीर से दो शिकार। क्षितिज का परस्त्रीगामी होने की ओर अग्रसर होना और रेखा का परपुरूषों से शारीरिक सुख प्राप्त करने की कामना को जागृत करना। मैं इन दोनों प्रयासों में सफल रही। अब आगे –
 
सवेरे जब मेरी नींद खुली तो अपनी स्थिति देख कर बड़ी कोफ्त हुई खुद पर। मैं और रेखा सिर्फ नुची चुदी हालत में नंग धड़ंग बिस्तर पर फैली हुई थीं। तीनों मर्द रात भर हम दोनों स्त्रियों की नग्न देह को नोच चोद कर गायब थे। घड़ी के कांटे एक सीध में आठ बजकर बारह मिनट दिखाते हुए हमें मुंह चिढ़ा रहे थे। अलसाई सी टूटते बदन लेकर किसी प्रकार उठी और रेखा को उठाने लगी। “अरी रेखा, उठ।”

“सोने दे ना।”

“उठ जा रेखा, देख सवा आठ बज रहा है।”

“उफ्फ्फ्फ, रात भर रगड़ घसड़ कर कचूमर निकालते रहे कुत्ते, और अब तू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ। थोड़ा और सोने दे ना््आआ््आआह्ह्ह।” एक कराह थी उसकी आवाज में। आंखें अभी भी बंद थी उसकी। पैर फैला कर सोई पड़ी थी। मैंने देखा, उसकी चूचियां लाल हो चुकी थीं। चूचियों पर, गर्दन पर और गालों पर कहीं कहीं दांतों के निशान उभर आये थे। चूत पूरी तरह खोल कर रख दिया था कमीनों ने। फुला कर कुप्पा कर दिया था। वहशियों की तरह भंभोड़ डाला था उसे। मैं तो चुदक्कड़ छिनाल, ठहरी इन सब की आदी। मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा, सिर्फ रात भर की चुदाई और अनिद्रा से उपजा आलस मुझ पर तारी था। तरस आ रहा था रेखा की अवस्था पर लेकिन यह उसके हित में ही था। ऐसी परिस्थिति से गुजर कर ही उसे सीख मिलनी थी, जो मिली और क्या खूब मिली। कितने मुदित मन से चुदवाती जा रही थी साली कुतिया। इसी के लिए इतना ड्रामा। मैं उसे उसी हाल में छोड़ कर बाथरूम में घुस गयी। जब मैं तरोताजा होकर बाथरूम से निकरी, तबतक वह उसी तरह पड़ी थी।

“अरी अब तो उठ जा।”

“नहीं थोड़ा और सोने दे।”

“उठ जा हरामजादी, नहीं तो तुझे इस हाल में देखकर उन चुदक्कड़ों के सुबह का नाश्ता तेरा यह शरीर ही होगा।”

“कैसी जालिम है तू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ।” नींद कफूर हो गया मेरी बात सुनकर। झुंझला कर उठ ही रही थी कि लड़खड़ा कर गिरते गिरते बची, अगर मैंने उसे संभाल नहीं लिया होता तो वह औंधे मुह गिर ही पड़ी होती। उसके पांव थरथरा रहे थे। “उफ्फ्फ्फ, मेरे पांव जवाब दे रहे हैं। तोड़ कर रख दिया सारे शरीर को उन गधों नें।”

“तू चल मेरे साथ।” मैं उसे सहारा देकर दो कदम चली ही थी कि अपने को संभाल कर बोली, “नहीं नहीं, ठीक हूं मैं।” मैंने देखा, थोड़ा लड़खड़ा कर चल रही थी लेकिन थोड़ी बेहतर थी। जब हम फ्रेश होकर कमरे से निकले तो उस वक्त दस बज रहा था। थकान के बावजूद हमने अपना हुलिया काफी हद तक दुरुस्त कर लिया था लेकिन रेखा की चाल कुछ बदली बदली सी थी। थोड़ा पैर फैला कर चल रही थी। हमने डाईनिंग टेबल पर देखा, क्षितिज, हरिया और करीम बैठे गप्पें मारते हुए हमारा ही इंतजार कर रहे थे। रेखा की चाल देख कर अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से छुपा पा रहे थे।

“आओ बिटिया, हम तुम लोगों का ही इंतजार कर रहे थे। जानबूझकर हमने तुमलोगों को नहीं उठाया, सोचा नींद पूरी हो जाए तो खुद उठ जाओगी, नींद में बाधा क्यों पहुंचाएं।” हरिया बोला। एक विजेता का भाव था उसके चेहरे पर। तृप्ति की मुस्कान थी होंठों पर। दृष्टि में हवस अब भी थी। यही हाल करीम का भी था। क्षितिज, नया नया नारी शरीर के स्वाद से परिचित पागल, अभी भी हमें ऐसे देख रहा था मानो, हमारे शरीर पर कपड़े ही न हों। उसका वश चलता तो अभी ही पटक कर चोद डालता, बेकली उसकी शक्ल पर छपी हुई थी और हरिया हरामी हमें बिटिया कह रहा था, साला बेटीचोद, रात को तो रंडी नजर आ रही थींं रेखा और मैं, साले औरतखोर, मन ही मन बोली मैं। स्पष्ट बोलती तो उनकी सारी खुशी, सारा उत्साह काफूर हो जाता। चुप ही रही।

“वाऊ मॉम और आंटी, बोथ आर लुकिंग गॉर्जियस।” प्रशंसात्मक शब्दों में बोल उठा। मैं उसके गाल नोचती हुई बोली, “बदमाश कहीं का।” फिर हम नाश्ता करने बैठे। हरिया फटाफट नाश्ता लगाकर खुद भी बैठ गया।
 
“तो? क्या प्रोग्राम है आज का?” क्षितिज बोला।

“मैं नाश्ता करके घर जाऊंगी। बहुत काम पड़ा है।” रेखा बोली।

“इसका तो घर ही भागा जा रहा है।” मैं बोली। “सवेरे इससे उठा नहीं जा रहा था, बड़ी आई काम करने वाली, काम करेगी अभी घर में।”

“अब ठीक हूं।” झेंपती हुई बोली रेखा, “जाकर घर को थोड़ा दुरुस्त कर लूं। सिन्हा जी की बहन आने वाली है, शायद शाम तक आएगी और कल सिन्हा जी भी आ रहे हैं ना।”

“जा बाबा जा, तू जा।”

“मैं आंटी को घर छोड़ आता हूं।” तुरंत क्षितिज बोला।

“ठीक है ठीक है, तू जा इसे छोड़ आ।” नाश्ता करके क्षितिज रेखा को घर छोड़ने चला गया।

@ मैं जानती थी कि रेखा को छोड़ने के बहाने क्षितिज रेखा की एक सवारी तो अवश्य कर आएगा। मैं खुद भी तो यही चाहती थी। मैं यूं ही टहलती हुई बाहर गेट तक आई। तभी सड़क पर चोर चोर, पकड़ो पकड़ो की आवाज सुनाई पड़ी। मैं फौरन गेट खोल कर बाहर निकली तो देखा एक उचक्का टाईप शख्स अपने हाथ में एक लेडीज वैनिटी बैग थामे सड़क पर तेजी से भागा चला आ रहा था। उसके पीछे एक तीस पैंतीस साल की खूबसूरत महिला चोर चोर चिल्लाती हुई दौड़ रही थी। मैं समझ गयी कि यह उचक्का उस स्त्री का वैनिटी बैग ले कर रफूचक्कर होने वाला है। ज्यों ही वह उचक्का मेरे सामने से गुजरने लगा, प्रत्युत्पन्न्मतीत्व का परिचय देते हुए मेरा बांया पांव चल गया। वह उचक्का मेरे पांव से उलझ कर अपनी ही झोंक में सड़क पर चारों खाने चित हो गया। इससे पहले कि वह संभल पाता, मैं उसके सर पर सवार थी। अगले ही पल वैनिटी बैग मेरे हाथ में था। वह उठने की कोशिश कर ही रहा था कि मेरे दायें पैर की ठोकर से पुनः धराशायी हो गया। इतनी देर में वह महिला वहां पहुंच गयी। उसके ठीक पीछे पीछे एक और व्यक्ति दौड़ा चला आया। मैं पहचान गयी। यह श्यामलाल था, वही ऑटो वाला, जिसकी मैं कई बार हमबिस्तर बन चुकी थी और उसके साथ साथ उसके मित्र बलराम और बलराम के तीन ड्राईवरों के साथ संसर्ग का लुत्फ उठाया था।

मैंने उस महिला का वैनिटी बैग उसके हवाले कर दिया। “थैंक्स बहन जी,” कृतज्ञ भाव से वह बोली।

“मैडम, इस कमीने को मेरे हवाले कीजिए, मैं देखता हूं इसे।” श्यामलाल बोला।

वह उचक्का पुनः उठ खड़ा हुआ और भागने ही वाला था कि मैंने उसका कॉलर पकड़कर अपनी ओर घसीटा और एक करारा मुक्का उसकी ठुड्ढी पर रसीद कर दिया, “साले, छिनतई करता है?” तक कुछ और लोग भी वहां एकत्रित हो गये थे।

“सॉरी बहन जी,” मेरी मार से पस्त हो हाथ जोड़ कर घिघियाते हुए वह उचक्का बोला।

“माफ कर दूं साले? श्यामलाल, पकड़ इस कमीने को। मैं पुलिस बुलाती हूं।” कहकर उसे श्यामलाल और भीड़ के हवाले कर दिया और पुलिस बुला लिया। अब मेरा ध्यान उस महिला की ओर गया। निहायत ही खूबसूरत औरत थी वह। तीस पैंतीस साल की गोरी चिट्टी, कमनीय काया की स्वामिनी।

“थैंक्यू वेरी मच बहनजी। आप नहीं होती तो न जाने क्या होता।” वह महिला मुझसे बोली।

“इट्स ओके बहन। यह श्यामलाल क्या कर रहा था वहां?” मैं श्यामलाल की ओर देखते हुए बोली।

“मैं इसी के ऑटो से तो आई हूं। पैसे देने के लिए बैग खोली, तभी यह लफंगा मेरा बैग छीनकर भागने लगा।”

“जैसे ही मैंने मैडम का चिल्लाना सुना, मैं भी इसके पीछे भागा। अच्छा हुआ आपने पकड़ लिया इसे।” श्यामलाल बोला। साला हरामी, चोर तो पकड़ नहीं पाया और अपनी सफाई देते हुए मुझे और उस स्त्री को ऐसे देख रहा था मानो मौका मिले तो अभी ही हमें पटक कल चोद डाले।

उसकी ओर घूर कर देखा और उसकी आंखों की हवस भरी नजरों को नजरअंदाज करती हुई बोली, “ठीक है ठीक है।” फिर उस स्त्री की ओर मुखातिब हो कर बोली, “हां तो आप बताईए, यहां किसके यहां आई हैं?”

“जी मैं सिन्हा जी के यहां आई हूं।”

“ओह्ह्ह्ह्, ये तो यहीं पास में हैं। आप उनकी रिश्तेदार हैं?”

“जी हां, मैं उनकी बहन हूं। कोलकाता से आई हूं।”

“ओह, मैं उन्हें बड़ी अच्छी तरह से जानती हूं। अभी तो वे ऑफिशियल टूर पर हैं। उनकी पत्नी रेखा है घर में।” तभी मुझे ध्यान आया कि क्षितिज भी तो अभी वहीं है। यह तो निश्चित था कि वहां रेखा के साथ कांड कर रहा होगा। मैं उनकी रंगरेली में व्यवधान नहीं पड़ने देना चाहती थी। “आप अंदर तो आईए।” मैंने उसे घर के अंदर आने का आमंत्रण दिया।
 
“नहीं नहीं, मैं वहीं जाती हूँ।” वह जल्दी से बोली।

“अरे ऐसे कैसे जाईएगा। आईए न, कमसे कम एक कप चाय तो पीकर जाईए। तबतक मेरा बेटा आ जाएगा, वह आपको रेखाजी के यहां छोड़ देगा।” मैं उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती घर के अंदर ले आई। वह इनकार नहीं कर सकी। वह नीली जींस और पीले टॉप्स में बेहद आकर्षक दिख रही थी। करीब साढ़े पांच फुट कद था उसका। टाईट जींस में उसके गोल गोल नितंब गजब ढा रहे थे। गर्दन से काफी नीचे तक खुले हुए टॉप से झांकते उसके उन्नत गठे हुए उरोज किसी भी मर्द के मुह में पानी लाने के लिए काफी थे। कुल मिला कर काफी उत्तेजक शरीर की स्वामिनी थी वह।

“आईए, बैठिए।” मैं सोफे की ओर इशारा करके बोली। “हरिया!” हरिया को आवाज देकर बुलाया। वह किचन से ज्यों ही आया, मैंने चाय के लिए बोला। हरिया की दृष्टि जैसे ही उस महिला पर पड़ी, उसकी दपदप करती खूबसूरती को ठगा सा देखता रह गया। मैंने ज्यों ही उसे घूर कर देखा, उसने संभल कर किचन का रुख किया।

“हां तो बताईए, क्या नाम है आपका? क्या करती हैं? फैमिली?”

“बाप रे बाप, एक साथ इतने सवाल? मेरा नाम रश्मि सिन्हा है। मैं बैंक में जूनियर मैनेजर हूं। मैं कोलकाता में अकेली रहती हूं। तलाकशुदा हूं।”

“ओह, आप तलाकशुदा हो?” आश्चर्य हुआ मुझे। इतनी खूबसूरत स्त्री को कोई मर्द तलाक कैसे दे सकता है भला।

“जी हां।” बेझिझक बोली वह।

“एक बात पूछूं?”

“पूछिए न”

“बुरा मत मानिएगा”

“पूछिए न, बुरा क्यों मानूंगी।”

“आप इतनी खूबसूरत हो, फिर यह तलाक?”

“दरअसल तलाक मैंने ही लिया है। मेरा पति पहले से ही शादीशुदा था। झूठ की बिना पर हमारी शादी हुई थी।”

“ओह। आप तो इतनी खूबसूरत हो, दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेतीं?”

“दूसरी शादी? ना बाबा ना। एक शादी करके देख लिया। मैं ऐसे ही ठीक हूं। ऐसे ही खुश हूं।” तभी हरिया चाय ले कर आ गया। वह बार बार ललचाई नजरों से रश्मि को घूरता जा रहा था। रश्मि हरिया की नजरों में छिपे हुए भाव को समझ रही थी लेकिन उसके हाव भाव में कोई असहजता नहीं थी। मैंने फिर घूर कर हरिया को देखा तो वह हड़बड़ा कर झेंपता हुआ वहां से खिसक लिया, साला बुड्ढा चोदू ठरकी। मैंने देखा रश्मि मुस्कुरा रही थी। मैं समझ नहीं पा रही थी कि रश्मि किस तरह की स्त्री है, आधुनिक तो अवश्य है लेकिन कितनी आधुनिक, कितने खुले विचारों वाली है, यह स्पष्ट नहीं था। हरिया की दृष्टि को पढ़ पाना मुश्किल नहीं था, फिर भी रश्मि की मुस्कान से मैं असमंजस में थी। तभी मेरे दिमाग में वही पुराना शैतानी कीड़ा सर उठाने लगा। फंसा लूं इसे भी? फंसेगी क्या आसानी से? अगर फंसी तो क्षितिज के लिए यह दूसरा शिकार। चलो कोशिश करने में हर्ज ही क्या है। चाय पीते पीते मैंने काफी कुछ जान लिया उसके बारे में।

“आप बहुत खूबसूरत हो।” मैं बोली।

“आप मुझे आप आप मत बोलिए।”

“क्यों?”

“मैं आपसे उम्र में काफी कम हूं।”

“कैसे मालूम? तुम्हारी उम्र क्या है?”

“34, और आपकी?”

“41”

“लीजिए, हुआ ना, मैं आपसे सात साल छोटी हूं। लेकिन फिर भी मानना होगा, आप इस उम्र में भी कम खूबसूरत नहीं हैं।” प्रशंसात्मक शब्दों में वह बोली।

“अब चढ़ाओ मत मुझे।”

“इसमें चढ़ाना क्या, जो सच है तो सच है।”

“अच्छा बाबा ठीक है। लेकिन अब तुम भी मुझे आप आप मत बोलो। तुम ही बोलो। अच्छा लगता है। अपनेपन का अहसास होता है।”

“ओके, जैसी आपकी मर्जी।” बातें करते करते कैसे एक घंटा बीत गया पता ही नहीं चला। अबतक हम दोनों आपस में काफी घुलमिल गई थीं। काफी कुछ जान गयी थी उसके बारे में। वह अपने शारीरिक सौष्ठव को बनाये रखने के लिए हर रविवार को जिम जाती थी। रोजाना योगासन करती थी। कपालभाति, प्राणायाम इत्यादि। सुनकर अच्छा लगा।

“ओह तभी”

“क्या मतलब?”

“तभी तो तुम इतनी खूबसूरत काया की मालकिन हो।”

“समय है इसलिए कर लेती हूं।”

“करना ही चाहिए। आजकल अपने स्वास्थ्य के साथ साथ कैरियर में तरक्की के लिए भी खुद को स्मार्ट रखने की बड़ी आवश्यकता है।”

“हां, वो तो है।”

“उम्र भी तुम्हारी 24 – 25 से अधिक नहीं लगती है।”

“तुम भी तो 41 की कहां लगती हो। 30 – 32 से ऊपर की तो बिल्कुल नहीं। तुम क्या करती हो खुद को फिट रखने के लिए?”
 
“कुछ नहीं, बस थोड़ी वर्जिश और मॉर्निंग वॉक।” अबतक क्षितिज नहीं लौटा था। समझ गयी, लग गया चस्का उसको भी, परस्त्रियों की चुदाई का चस्का, और रेखा? रेखा भी तो सीख गयी परपुरुषों से मजा लेना। क्षितिज के साथ साथ इन दो बुड्ढों से भी चुद गयी, चुद क्या गयी, खूब मजे ले लेकर चुदी साली कुतिया, बड़ी शरीफजादी बनी फिरती थी। परपुरुषों के लंड का स्वाद पाकर कितनी प्रसन्न थी छिनाल कहीं की। अभी भी, एक घंटा होने को है, किंतु क्षितिज का अता पता तक नहीं है। शतप्रतिशत रेखा के अंगमर्दन में व्यस्त होगा। तभी क्षितिज नामुदार हुआ। रश्मि जैसी खूबसूरत स्त्री को देख कर पल भर के लिए ठगा सा देखता रह गया।

“कहां रह गये थे इतनी देर?”

“कहीं नहीं मॉम, बस रेखा ऑंटी से थोड़ी गपशप की और चला आया।” मेरे सवाल पर उसकी तंद्रा भंग हूई और हड़बड़ा कर बोला वह। इतना बड़ा मादरचोद बन गया मगर झूठ बोलना भी नहीं आया।

“गपशप?”

“हां। उनका घर भी देख रहा था।” सब समझ रहा था वह भी। मैं भी जान रही थी कि घर तो क्या खाक देखा होगा बेडरूम को छोड़कर। बेडरूम की दुर्गति करने में कोई कसर छोड़ा होगा मेरा चोदू बेटा? इस दौरान मैंने देखा कि रश्मि भी अपलक देखे जा रही थी क्षितिज को। तंदुरुस्त, सुगठित, खूबसूरत, तरोताजा, आकर्षक युवा उसके सामने खड़ा था। प्रशंसा मिश्रित मोहभरी चमक थी उसकी आंखों में। उसकी आंखों में थी वही जानीमानी, पुरुषों के प्रति लोलुपता भरी, चाहत भरी, हवस भरी चमक।

“अरे मैं तो बताना ही भूल गयी, यह है मेरा बेटा क्षितिज और बेटे, यह रश्मि है, तेरे सिन्हा अंकल की बहन।” मैंने उसकी तंद्रा में विघ्न डाला। हकबका गयी वह मेरी बात सुनकर, तनिक झेंप भी गयी।

“ओह, नमस्ते आंटी।” क्षितिज बोला।

“आंटी? आंटी किसको बोला?” झट से रश्मि बोली।

“ओह सॉरी, रश्मि जी।” क्षितिज झेंपता हुआ बोला।

“वाह कामिनी, तुम्हारा बेटा तो शरमाता भी है।”

“ज्यादा हवा मत दे इसको नहीं तो”

“नहीं तो क्या?”

“नहीं तो आगे जो होगा उसकी जिम्मेदार तू खुद होगी।”

“आगे? आगे क्या होगा?” वह बोली। मैं सोचने लगी, इसके मन में चल क्या रहा है?

“अरे शैतान है एक नंबर का।”

“अच्छा तो है, बेचारा लड़का है, शैतानी ही तो करेगा ना, खा तो नहीं जाएगा।”

“इसके चेहरे की मासूमियत पर मत जा।”

“तो फिर किस पर जाऊं?” उसके लंड पर जा, मन ही मन बोली मैं। मुझे धीरे धीरे समझ आ रहा था रश्मि की बात करने के तरीके से कि वह क्षितिज को बढ़ावा देना चाह रही थी, लेकिन किस तरह का बढ़ावा, स्पष्ट नहीं था।

“उंगली पकड़ने दोगी तो पहुंचा पकड़ लेगा।”

“तो पकड़ने दे, मैं कहां डरती हूं।” क्या इरादा है इसका? इसके कहने का तात्पर्य क्या है? मन ही मन बोली, चोद डालेगा हरामजादी, नया नया चुदाई का चस्का लगा है, रगड़ के रख देगा। वैसे मुझे अच्छा ही लग रहा था उसके बात करने के तरीके से। क्षितिज इसे भी चोद ही डाले, पहले फंस तो जाय चिड़िया जाल में। क्षितिज का प्रशिक्षण भी होगा और अनुभव भी बढ़ेगा। वैसे मैं भी उसकी सुंदरता पर रीझ गयी थी। उसकी कमनीय काया का आकर्षण मुझे भी खींच रहा था। उसकी नग्न देह का दर्शन मैं भी करना चाह रही थी, उसकी देह को अनुभव करने की इच्छा बलवती होती जा रही थी। लेकिन कैसे होगा यह सब? पहले उसके मन की थाह तो ले लूं। कैसे फांसू इसे? एक विवाहेच्छु स्त्री, जिसकी उम्र निकली जा रही है, परित्यक्ता स्त्री, विधवा स्त्री तथा तलाकशुदा स्त्री के मन की व्यथा करीब करीब समान ही होती है। पुरुष संसर्ग की भूखी ऐसी स्त्रियों को फांसना अधिक कठिन नहीं होता है। तो क्या करूं? उसके मन को पढ़ने का प्रयास करूँ? उसकी मन:स्थिति समझूँ? अगर अनुकूल न हो तो योजना बना कर आक्रमण करूं? अगर अनुकूल हो तो उसकी कामुक भावनाओं को हवा दूं? फिर मनमानी कर गुजरूं और क्षितिज के सम्मुख परोस दूं जैसे रेखा के साथ हमने किया? हां हां, यही करती हूं, देखती हूं क्या होता है।
 
“सोच समझ कर बोल।”

“इसमें सोचना क्या? लड़का ही तो है।”

“तू नहीं जानती आजकल के लड़कों को।”

“मुझसे अच्छा भला और कौन जान सकता है इन लड़कों को।”

“जान बूझ कर आग से मत खेल।”

“ओह तो आग है आपका बेटा?”

“और नहीं तो क्या।”

“क्या मॉम आप भी? लगी मुझे खींचने इनके सामने।” क्षितिज तनिक रुष्ट हुआ।

“ओ मेरा बच्चा रुष्ट हो गया? इत्ता सा मजाक भी नहीं समझता? बुद्धू कहीं का। जाओ मैं मजाक भी नहीं करती तुझसे।” मैं बनावटी लाड़ भरी नाराजगी से बोली।

“ओ माई स्वीट मॉम, सॉरी।” आकर लिपट गया मुझसे।

“हट शैतान, इत्ता बड़ा हो गया और बचपना अब भी वैसा का वैसा ही है। बस बस हो गया, चल हट मुझे छोड़ अब।” बोली मैं। लेकिन मैं जानती थी यह उसका बचपना नहीं था। वह भी जानता था कि यह क्या था। बेचारी रश्मि को क्या पता कि हम मां बेटे एक दूसरे के लिए क्या थे। वह तो हम मां बेटे के बीच का वात्सल्य भरा प्यार समझ रही थी। उसके इस तरह लिपटने मात्र से ही मेरी योनि गीली हो गयी, तन तरंगित हो उठा, उरोज फड़फड़ा उठे।

“तू एक काम क्यों नहीं करती? रुक जा यहीं कुछ देर और, खाना खा कर चली जाना। क्षितिज छोड़ देगा तुम्हें।” मैं रश्मि से बोली। मेरे दिमाग में तो कुछ और चल रहा था।

“अरे लेकिन मैं तो भाई के यहां न आई हूं। भाभी क्या सोचेंगी?” उसकी आवाज में इनकार का भाव नहीं था।

“वह कुछ नहीं सोचेगी। रेखा मेरी सहेली है, बहन जैसी। तू चिंता न कर। अपने भाई का ही घर समझ इसे भी।”

“लेकिन……”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं, अब मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी। तू चल थोड़ा फ्रेश हो ले, तबतक खाना तैयार हो जाएगा, फिर खाना खा कर क्षितिज तुम्हें छोड़ आएगा।” कहकर उसे खींचती हुई अपने कमरे में ले आई। क्षितिज रश्मि के थिरकते नितंबों को हसरत भरी निगाहों से देखता रह गया। “जा, हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जा।” मैं ने बाथरूम दिखा दिया उसे। फिर हरिया से रश्मि के लिए भी खाना बनाने को कहकर किचन से बाहर निकली तो देखा, क्षितिज अबतक ड्रॉइंग रूम में बैठा याचना भरी दृष्टि से मुझे देख रहा था। मैं मुस्कुरा उठी।

“इस तरह क्या देख रहा है मुझे? रेखा के घर जा कर पेट नहीं भरा?” छेड़ रही थी मैं।

“ओ मॉम, आप तो बस….”

“क्या आप तो बस? जानती हूं, सब समझती हूं।”

“फिर भी?”

“तेरे मन में क्या चल रहा है, वह भी समझती हूं।”

“ओह मेरी अंतर्यामी मॉम, क्या चल रहा है बोलो?” उठ कर सीधे मेरे पास आया और मुझे अपनी बांहों में ले कर पूछा।

“बोलूं?”

“हां।”

“रश्मि को चोदने का ख्याल।” उसकी बांहों में बंधी, उसके कान में बोली।

“वाह मेरी लक्ष्मीबाई, लंडरानी माता श्री, तुम तो सचमुच अंतर्यामी हो।” मुझे चूमकर बोल उठा मेरा चोदू बेटा। मेरी योनि पर उसके तने हुए लिंग का दबाव स्पष्ट अनुभव कर रही थी।

“हो गया तुम्हारा? अब छोड़ मुझे, संभाल अपने पपलू को, शैतान मेरी मुनिया को ही ठोक डालने को फड़फड़ा रहा है।” मैं उसकी मजबूत बांहों की पकड़ से छूटने की कोशिश करती हुई बोली।

“तो क्या हुआ? दे ही दो न ठोकने।” ढिठाई पर उतर आया था वह।

“अरे कमीने, घर में ही नयी नयी शिकार हाजिर है और मुझ पर ही सवारी गांठने के पीछे मरे जा रहे हो?”

“ककककौन? रश्मि?”

“और नहीं तो कौन?

“तैयार हो जाएगी?”

“क्यों नहीं होगी? कोशिश तो कर।”
 
“पहले तुम जान लो ना मॉम, वह इस तरह की है क्या?”

“इसमें जानना क्या है? पटाना है फिर डुबकी लगा लेना है।”

“फिर भी।”

“अरे बेवकूफ, हर बार मैं ही रहूंगी क्या तेरे साथ? मुझे चोद लिया, रेखा को चोद लिया, अब भी मेरी जरूरत है क्या? भगवान की मेहरबानी देख, अब रश्मि हमारी गोद में आ गिरी।”

“प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज मॉम, बस यह आखिरी बार, फिर नहीं बोलूंगा।”

“ठीक है, ठीक है बाबा ठीक है, यह आखिरी बार है, इसके बाद तुझे खुद शिकार करना है।”

“ठीक है मॉम ठीक है, ओह माई स्वीट मॉम, आई लव यू।” मुझे बांहों में कस कर भींच लिया और प्रगाढ़ चुम्बन अंकित कर दिया मेरे होठों पर। खुशी न सिर्फ उसके चेहरे पर थी बल्कि उसका पपलू भी मानो खुशी के मारे उछल पड़ा था। ऐसा लगा मानो उसके चड्ढी और पजामे के साथ साथ मेरी कमीज, सलवार और पैंटी को भी फाड़ डालेगा।

“चल हट मां के लौड़े, मस्का मार रहा है। ठीक है मैं जाती हूं उसके पास, पच्चीस तीस मिनट बाद पहुंच जाना, बुड्ढे हरिया को लेकर।” कहते हुए मैं अपने कमरे में दाखिल हुई। रश्मि हाथ मुह धो कर तरोताजा दिख रही थी। खूबसूरती और निखर गयी थी।

“वाऊ, ब्यूटीफुल। गजब की खूबसूरत हो तुम तो।” प्रशंसात्मक स्वर में बोली मैं।

“हटो, तुम भी ना।”

“कसम से, मर्द होती तो टूट पड़ती तुम पर।”

“क्या मतलब?”

“तुम बहुत सेक्सी हो।” आगे बढ़ कर अपनी बांहों में भर कर बोल उठी मैं।

“अरे अरे ककक्या करती हो?” अकचका कर बोली वह।

“प्यार कर रही हूं पगली।” चूम उठी उसके मक्खन जैसे चिकने गाल को। दरअसल रेखा की नग्न देह के साथ खेलकर समलैंगिक संबंध का जो लुत्फ मैंने उठाया था उससे मेरे अंदर भी समलैंगिक संबंध में रुचि जाग गयी थी। इससे पहले मैंने किसी स्त्री की नग्न देह के साथ संपर्क करने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। किसी दूसरी स्त्री की खूबसूरती मुझे आकर्षित अवश्य करती थी, किंतु इस तरह अंतरंग संबंध बनाने के बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था। क्षितिज के लिए रेखा को पटाने के दौरान मैं रेखा के जिस्म से खेलते हुए जिस आनंदमय पलों से गुजरी वह अकथनीय था। अब रश्मि जैसी खूबसूरत स्त्री हाथ लगी तो मुझ से रहा नहीं जा रहा था। मेरे अंदर उसी कामक्रीड़ा की पुनरावृत्ति करने और यौनसुख प्राप्त करने की चाहत पुनः जागृत हो उठी थी।

“चल हट बदमाश।” वह मुझसे छूटने की असफल कोशिश करती हुई बोली। उसकी बोली में कुछ खास दम नहीं था और न ही उसके शारीरक विरोध में। पिघल रही थी मेरी बांहों में।

“कुछ न बोल, पगली तू नहीं जानती कितनी खूबसूरत और सेक्सी है तू।” मैंने उसके कमजोर पड़ते विरोध को ताड़ कर उसके चेहरे पर बेहताशा चुम्बनों की झड़ी लगा बैठी। उसे लिए दिए बिस्तर पर गिर पड़ी मैं। उसकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी। “उफ्फ्फ्फ मेरी जान, तूने तो मुझे ही इतनी दीवानी बना दिया तो बाकी मर्दों का क्या होता होगा।” चूमती जा रही थी और उसकी कामुक भावनाओं को भड़काती जा रही थी। धीरे धीरे उसका वह कमजोर विरोध, जो शायद, शायद क्या, अवश्य दिखावटी विरोध भी खत्म हो गया।

“आह, आह, ओह ओह्ह्ह्ह्, यह तूने क्या कर दिया आह।” वह बेहद कमजोर स्वर में बोली। फिर पता नहीं क्या हुआ उसे, अकस्मात ही मुझसे बेसाख्ता लिपट गयी और मेरे चुम्बनों का प्रतिदान अपने चुम्बनों से देने लगी। अचंभित हो उठी मैं। उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दिया और चुभलाने लगी। कहां मैं उसे उत्तेजित करना चाहती थी और अब मैं खुद उत्तेजना के मारे बेहाल होने लगी। उसकी पकड़ मेरे तन पर बेहद सख्त हो उठी। उसके सख्त उरोजों से मेरे उन्नत उरोज पिसे जा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो सारा नियंत्रण अब उसके हाथों में है और मैं उसके अधीन हूं। वह मेरे ऊपर सवार थी और मैं उसके नीचे। अब आगे जो कुछ करना था, वह खुद कर रही थी। कमान अब उसने खुद संभाल लिया था, अतः मैंने खुद को उसके रहमोकरम पर छोड़ कर उसके हर कृत्य में सहयोग करना ही मेरे लिए उचित जान पड़ रहा था। जितनी वह खुल कर खेले, मेरे लिए उतना ही सहूलियत भरा, आनंददायक होता। मैं खुद भी चाहती थी कि उसकी कामुक भावनाएं इतनी भड़क जाएं कि वह सारी वर्जनाओं और शर्म लिहाज को ताक पर रख कर अपनी कामुकता का खुल कर प्रदर्शन करे और मैं इस खेल का भरपूर आनंद उठा सकूं। वासना की ज्वाला इतनी धधक उठे कि न सिर्फ मैं, बल्कि क्षितिज भी इसकी कमनीय देह का खुल कर रसास्वादन कर सके। जितनी कमसिन, नाजुक मैं उसे समझ रही थी उतनी थी नहीं। उसने मेरे उरोजों को मेरी कमीज के ऊपर से ही दबोच लिया।
 
“उई मांं््आआ््आआ।” चिहुंक उठी मैं। इतने पर ही कहाँ रुकी वह, बड़ी बदहवासी के आलम में मेरे कमीज को उतार फेंका उसने। मैं कहां पीछे रहने वाली थी, उसके ढीले ढाले टॉप को पलक झपकते उसके तन से अलग कर दिया। अब हम दोनों के कमर से ऊपर का हिस्सा अर्धनग्न हो चुका था। हम दोनों सिर्फ ब्रा में थे। गजब की खूबसूरत काया थी उसकी। मैं ब्रा के ऊपर से ही उसके सख्त उरोजों को पकड़ कर दबाने लगी।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स्स्स मां्मां्आ्आ्आ्आ।” उसकी आनंदभरी सीत्कारों से कमरा गुंजायमान हो उठा। “जादूगरनी कहीं की, पागल कर दिया मुझे आआआआआह्ह्ह्ह्ह।” अब और रहा नहीं जा रहा था, शरीर तप रहा था। एक एक करके हमारे तन से कपड़े केले के छिलके की तरह उतरते चले गये और लो, हम दोनों मादरजात नंगे हो गये। इधर मैं उसके सुगठित कमनीय दपदपाती काया की छटा निहारती रह गयी, क्या शरीर था उसका। करीब पांच फुट पांच इंच लंबी छरहरी काया, जिस पर करीब 34″ साईज की फड़फड़ाती चमकती चूचियां गर्व से सर उठाये आमंत्रित कर रही थीं और उन पर खड़े निप्पल्स, वाह, करीब 26″ की चर्बी रहित चिकनी पतली कमर गजब की खूबसूरत और कमर से नीचे ताकरीबन 37″ की चूतड़, जांघें संगमरमर की तरह तराशी हुई, उफ्फ्फ्फ, जांघों के मध्य चकाचक, बाल रहित चिकनी योनि, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, कुल मिलाकर सुंदरता की जीती जागती प्रतिमूर्ति थी वह। इधर मैं चमत्कृत दीदार कर रही थी उसकी सुंदरता का, वहीं वह मेरी काया की खूबसूरती में मानो खो सी गयी थी। अगले ही पल जैसे ही हमारी तंद्रा भंग हुई, बदहवास, भूखी शेरनियों की तरह टूट पड़ीं हम दोनों एक दूसरे पर। मैं उसे अपनी बांहों में दबोचे उसकी बड़ी बड़ी चूचियों पर टूट पड़ी। सहलाने लगी, दबाने लगी और मुह में भर कर चूसने का असफल प्रयास करने लगी। वह भी मेरे सर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी चूचियों से सटा कर सिसक उठी।

“आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह मेरी जान, उफ्फ्फ्फ, पी जा, चूस ले, आह” वह बोलती जा रही थी। अब इधर मेरा दायां हाथ उसके गोल गोल नितंबों पर नृत्य करने लगा था। मैं सहला रही थी, दबा रही थी उसके चिकने गोल गोल नितंबों को। बीच बीच में मैं उसकी योनी को सहलाती जा रही थी। उसकी योनि में रसलसापन आ चुका था। अब और इंतजार नहीं हो सका हमसे। हमने पैंतरा बदल कर 69 की पोजीशन ले लीं। मैं उसकी चिकनी योनि पर जीभ फिराने लगी। चाटने लगी, चूसने लगी उसके भगनासे को।

“ओह्ह्ह्ह्ह्ह मां्मां्आ्आ्आ्आ।” सिसिया उठी वह। साथ ही वह भी मेरी फकफकाती योनि के भगांकुर को जीभ से चपाचप चाटने में मशगूल हो गयी।

“आह आआआआआह्ह्ह्ह्ह,” आनंदातिरेक में थरथर कांपने लगी मैं और तत्काल ही मेरा स्खलन होने लगा। उफ्फ्फ्फ बखान नहीं कर सकती उन पलों के आनंद के बारे में। मैं अपनी जांघों से उसके सर को दबोच कर स्खलन के सुख में डूब गयी। यही हाल रश्मि का भी था। वह भी उसी समय झड़ने लगी। उस प्रथम स्खलन से निवृत हो कर कुछ मिनट हम निढाल हो गये।

“इतना सुखद, इतना आनंद, आह्ह्ह् जादुगरनी चुड़ैल।” वह लंबी लंबी सांसें लेती हुई बोली। “औरत होकर इतना आनंद दे सकती हो, काश, काश तुम मर्द होती।”

“मर्द होती तो?” मैं उसके चिकनी चूत को सहलाते हुए बोली।

“चुद गयी होती, कमीनी।” वह मुझसे पुनः लिपट गयी और चूमते हुए बोली। उसके हाथ भी मेरी योनि को सहला रहे थे और लीजिए जनाब, कुछ ही देर में हम दोनों पुनः उत्तेजित हो उठे। उत्तेजना के मारे उसका शरीर अकड़ने लगा। मेरा शरीर के अंदर भी उत्तेजना का दावानल धधक उठा।
 
“लंड चाहिए, लंड चाहिए मुझे, ओह्ह्ह्ह्ह्ह,” बिस्तर से उठ गयी वह।

“कहां चली?” मैं वासना की अग्नि में झुलसती बोली।

“डिल्डो, मेरा डिल्डो, बैग से निकाल लूं।” वह बोली।

“बेजान लंड? साली जीवित लंड ले ले।”

“कहां है? कहां है जीवित लंड?”

“कैसा लंड चाहिए? जवान कि बूढ़ा।”

“हरामजादी, मुझे लंड चाहिए, जवान, बूढ़ा, कैसा भी, आई नीड कॉक, द फकिंग कॉक ईडियट।” तड़प कर बोली वह। मैं उसकी भड़क उठी वासना की तपिश महसूस कर विस्मित थी। इतनी भूख? इतना पागलपन? मानो जल रही हो कामोत्तेजना की धधकती ज्वाला में।

“लो आ गया लंड।” मेरे ताली बजाने की देर थी, जिन्न की तरह प्रकट हो गया क्षितिज और ठीक उसके पीछे पीछे हरिया।

रश्मि ने स्वप्न में भी इस बात की कल्पना नहीं की थी होगी। मन की मुराद इस तरह से इतनी जल्दी और तत्काल पूरी होगी, कल्पनातीत सा प्रतीत हो रहा था उसे। अचंभित रह गयी, अवाक्, अविश्वसनीय दृष्टि से देखती रह गयी। अचंभा तो उसे इस बात पर ही बहुत हो रहा था कि अपनी नंगी मां के सामने क्षितिज इतनी बेबाकी से खड़ा था। उसे क्या पता था कि हम मां बेटे के बीच, मां बेटे के तथाकथित पवित्र संबंध की पवित्रता को हम तार तार करके आम स्त्री पुरुष की तरह एक दूसरे के तन का रसास्वादन कर चुके हैं।

मैं रश्मि की दृष्टि का अर्थ समझती हुई बोली बेशरमी से बोल उठी, “चौंको मत, चकित भी मत हो, लंड चाहिए ना?”

“हां री हां, मगर तू इस तरह अपने बेटे के सामने?” आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोली।

“तुझे इससे क्या? बोल किसका लंड चाहिए? क्षितिज का या हरिया का।” मैं सामान्य स्वर में बोली।

वह अब भी अविश्वास से कभी मुझे, कभी क्षितिज को देख रही थी। “लेकिन, लेकिन क्षितिज तो तुम्हारा कोखजाया बेटा है ना! अपनी मां को इस तरह नंगी अवस्था में देखकर भी? और तू? छिनाल कहीं की।”

“चुप हरामजादी, अभी लंड लंड चिल्ला रही थी, और अब मां बेटे का पचड़ा लेकर बैठ गयी।” खीझ कर मैं बोली। “मुझे छिनाल मत कह। शारीरिक भूख को लेकर मेरा दर्शन है, ‘लंड न चीन्हे मां, बेटी, बहन, साली, भाभी, चाची, मामी और भी रिश्ते नाते वाली स्त्रियों की चूत और उसी तरह चूत न चीन्हे बेटा, बाप, भाई, जीजा, देवर, चाचा, मामा, और भी रिश्ते नातों वाले पुरुषों के लंड। स्त्री सिर्फ स्त्री होती है चुदने के लिए, चाहे मर्द कोई भी हो और मर्द सिर्फ मर्द होता है चोदने के लिए, चाहे स्त्री कोई भी हो।’ जिंदगी का मजा लेना है तो रिश्ते नाते अपनी चूत में डाल।”

“डाल दिया।” अबतक मंत्रमुग्ध मेरा दर्शन सुनते अनायास उसके मुह से निकला, लेकिन तत्काल ही उसने जीभ निकाल कर दांतों से काट लिया। क्या उसकी जुबान फिसल गयी थी? शायद हां। शायद क्यों, अवश्य।अविश्वसनीय था मेरा कथन उसके लिए लेकिन अंदर ही अंदर खुश भी हो रही थी, क्यों? यह बाद में हमें पता चला।

“क्या?”

“कुछ नहीं, कुछ नहीं।” जल्दी से बोल उठी वह।

“कुछ तो है।”

“बाद में बताऊंगी।”

“तुम्हारी मर्जी। अब इतना जान गई हो तो यह भी जान लो कि क्षितिज न सिर्फ मेरा बेटा है, बल्कि मेरा बेड पार्टनर भी है और यह जो बूढ़ा हरिया, साला ठरकी, कम बड़ा चुदक्कड़ नहीं है। न जाने कितनी बार मुझे चोद चुका है, कितनी औरतों पर मुह मारता फिरता रहता है, फिर भी इस हरामी का पेट ही नहीं भरता है। अब आगे तेरी मर्जी।”

“मेरी मर्जी? साली मुझे इस हाल में पहुंचा कर मर्जी पूछती है? इस तरह गरम करने के बाद मर्जी पूछती है? अब मैं अपनी मर्जी बताने लायक हूं क्या?”

“तो चुन ले इनमें से।”

खिल उठी थी वह, किंतु अनिश्चय का भाव था चेहरे पर। उन दोनों के बीच चुनाव की दुविधा। निश्चित तौर पर प्राथमिकता क्षितिज को ही मिलनी थी, स्वस्थ, सुगठित, शारीरिक सौष्ठव की मिसाल था क्षितिज। हम दोनों की नग्न देह क्षितिज और हरिया को आमंत्रित कर रही थी। खास करके रश्मि की खूबसूरती, जिसे वे दोनों लार टपकाती नजरों से अपलक देखे जा रहे थे। मेरी दिली तमन्ना थी कि पहले क्षितिज को ही अवसर मिले रश्मि के तन से खेलने का, भोगने का। रश्मि को भी निर्णय लेने में देर नहीं लगी।
 
“क्षितिज। क्षितिज का लंड। देखूं तो मैं भी इस मां के लौड़े के लंड का दम।” व्यग्र हो रही थी, चुदने के लिए।

“आजा मेरे बच्चे, आजा। दिखा दे रश्मि की बच्ची को अपना जलवा।”

“आया मॉम, आया। जब से रश्मि जी की खूबसूरती को देखा है, मेरा लौड़ा टनटनाए खड़ा है, मान ही नहीं रहा है यह चूत का रसिया। गजब की खूबसूरत हो रश्मि जी। जैसा चेहरा, वैसा तन। वाह, मजा आ गया।” कैसे ललचाई नजरों से देखता हुआ बोल रहा था मेरा प्यारा हरामी मादरचोद। हवस का पुजारी बनता जा रहा था मेरा बेटा। फटाफट अपने कपड़े उतार कर तैयार पूरा कामदेव का अवतार लग रहा था। रश्मि उसकी सुंदर सुगठित देह को हसरत भरी नजरों से निहारती रह गयी। मुख्य आकर्षण था उसका आठ इंच लंबा, जो इस वक्त रश्मि की चित्ताकर्षक, कामोत्तेजक नग्न देह के दर्शन के असर से करीब नौ इंच लंबा और तीन की जगह चार इंच मोटा फनफनाता भीमकाय लिंग। एकबारगी तो रश्मि की घिग्घी बंध गयी। कहीं वासना की ज्वाला में धधकती उसने किसी मुसीबत को आमंत्रण तो नहीं दे डाला था? घबराहट उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी, किंतु आ बैल मुझे मार वाली कहावत को साक्षात चरितार्थ होते देखने के सिवाय उसके पास और कोई चारा भी तो नहीं था। क्षितिज अपने भीमकाय, लंबे तने हुए लिंग के साथ रश्मि की ओर बढ़ रहा था।

“ओ मांआ्आ्आ्आ, इतना बड़ा्आ्आ्आ्आ।” विस्फारित नेत्रों एकटक क्षितिज के तने हुए भीमकाय लिंग को देखती रह गयी।

“क्या हुआ?” क्षितिज बोला।

“ओ बाबा, मर जाऊंगी मैं। आगे न आना।” भयाक्रांत स्वर से रश्मि बोली।

“चुप कर, अभी लंड लंड बोल रही थी अभी और लंड मिला तो डर रही है।” मैं बोली।

“लंड मतलब आदमी का लंड, किसी गधे का लंड नहीं बोली थी।” रश्मि बोली।

“क्या कहा? गधे का लंड? क्षितिज, रुक मत, चोद डाल हरामजादी को। कभी हां, कभी ना। मजाक समझ रही है?” खीझ कर बोली मैं।

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज।”

“अब क्या नहीं। मेरा पपलू आपकी मुनिया से प्यार किए बिना थोड़ी न मानेगा?” क्षितिज बोल उठा।

“फट जाएगी मेरी।”

“फटने दे, उसके बाद मजा आएगा।”

“बहुत दर्द होगा।”

“होने दे, उसके बाद मजा आएगा।”

“मर जाऊंगी।”

“मरने नहीं दूंगा, मजा दूंगा।”

“डायलॉग बाजी बंद कर, चोद डाल मां की लौड़ी को।” चीखी मैं।

……. मैं खुद भी चुदने के लिए मरी जा रही, मैं हरिया को ललकार बैठी। “उधर कहां देख रहा है बुड्ढे, इधर आ मेरी तरफ बेटीचोद, साले ठरकी बुढ़ऊ। कब से मरी जा रही हूं लंड खाने के लिए बूढ़े कुत्ते।” मैं जानबूझ कर उसकी वृद्धावस्था पर ताना कसते हुए और गाली देते हुए चिढ़ा रही थी, ताकि मुझ पर पूरे आक्रोश के साथ, पूरी बेदर्दी और जोश खरोश के साथ अपनी दरिंदगी भरी नोच खसोट पर उतर आए। निकाल दे अपने दिल की सारी भंड़ास।
 
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