Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 30 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“ओह तो यह बात है, बहुत खूब। सच कहा तुमने हम सब ऐसे ही हैं। आपसी संबंधों में कोई लाग लपेट नहीं। ढंका छुपा कुछ नहीं। हमारे बीच जो शारीरिक संबंध है, उसमें शारीरिक भूख मिटाने की ललक के साथ ही साथ एक भावनात्मक जुड़ाव है, हम सब एक दूसरे की भावनाओं की, इच्छा आकांक्षाओं की कद्र करते है। भावनात्मक लगाव है लेकिन कोई बंधन नहीं है। हम सब स्वतंत्र हैं, अपनी मर्जी के मालिक। हम अपने अंदर की बात छुपाते नहीं। मुझे खुशी हुई हमारे बारे में तुम्हारे विचार जान कर।”

“हां यह मेरे दिल की गहराई से कहे गये इमानदार उद्गार हैं और यह निश्चय ही प्रशंसनीय है।”

“तो हम इसका मतलब क्या समझें?” करीम उतावला हो रहा था।

“क्या मतलब?” रश्मि जानबूझकर अनजान बनते हुए बोली।

“वही जो अभी अभी मैं कह रहा था।”

“क्या कह रहे थे?”

“हमें भी मौका देने की बात।” बेसब्र बुड्ढा, साला हरामी बेटीचोद। इतनी खूबसूरत औरत पास में बैठी खुले सेक्स पर खुल कर विचार दे रही थी और प्रशंसा कर रही थी, सुनकर तो दोनों बूढ़ों की बांछें खिल रही थी। सब समझ रही थी मैं उनकी हालत, खड़ूस चूतखोरों के लंड निश्चित तौर पर सिर्फ सिग्नल का इंतजार कर रहे थे, उधर हां हुआ नहीं कि बस एकदम से हल्ला बोल वाली स्थिति थी। तनिक पशोपेश में थी रश्मि, क्या हां बोलूं? क्या इन बूढ़ों से भी चुद कर देख लूं? इतनी देर में जिस तरह की बातें हो रही थीं, तन में वासना की आग तो सुलग ही चुकी थी। वैसे भी वह देख चुकी थी हरिया ने किस मर्दानगी का परिचय दिया था मुझे चोदते हुए। बूढ़े का दम देख चुकी थी। दमदार बूढ़ा। करीम को देखकर साफ साफ पता चल रहा था कि वह भी हरिया से किसी भी मायने में कम नहीं है। करीम के साथ साथ हरिया भी कितनी आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा था। दोनों के दोनों की भूखी नजरें रश्मि के खूबसूरत देह पर टिकी हुई थीं। मैं और क्षितिज भी रश्मि के उत्तर की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्षितिज को चिंता नहीं थी कि रश्मि का उत्तर क्या होगा। अगर सहमत हुई बूढ़ों से चुदने के लिए, तो मैं तो थी ही उसकी चुदासी कामुक मां, अनुभवी, मस्त, चुदने हेतु सुलभ, उसकी अदम्य कामपिपाशा को बखूबी शांत करने में पूर्णतया सक्षम। और अगर ना हुई तो रश्मि की कमनीय देह का रसास्वादन करने का एक और अवसर मिलना तय था। मेरी हालत भी ठीक वैसी ही थी। उत्तेजित, चुदने को बेताब, लंड चाहे किसी का भी हो, बूूढ़ों का या जवान क्षितिज का।

“हां।” सन्नाटे को भंग करती हुई रश्मि की सहमति थी।

“वाह।” करीम तुरंत बोल उठा।

“यह हुई बात।” हरिया खुशी के मारे उछल पड़ा।

“दोनों?” रश्मि अकचका उठी।

“हां दोनों।” दोनों एकसाथ बोल उठे।

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक ही जन।” रश्मि हड़बड़ा उठी।

“नहीं, दोनों।” हरिया बोला।

“हां हां दोनों।” करीम बोला।

“यह क्या्आ्आ्आ्आ? प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज एक जन।”

“नहीं, दोनों। वह भी एक साथ।” हरिया बोला।

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक साथ नहीं।” तनिक घबरा उठी थी रश्मि।

“हम दोनों एक साथ खाना पसंद करते हैं।”

“नहीं प्लीज, एक एक करके।”

“हम दोनों साथ रहते हैं तो एक साथ ही करते हैं।” करीम बोला।

“पर मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।”

“पहले नहीं हुआ तो अब होगा।” वहशियाना अंदाज में बोला हरिया।

“कैसे?” घबराहट स्पष्ट दिख रहा था रश्मि के चेहरे पर।

“ऐसे।” दोनों बूढ़े टूट पड़े रश्मि पर।

“हाय राम, प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज छोड़िए मुझे।” उनकी सम्मिलित पकड़ से छटपटाती रश्मि घिघिया उठी।

“हाथ आई चिडिय़ा को ऐसे कैसे छोड़ दें रानी। हां बोली न।” करीम उसकी चूचियों को दबोच कर बोला।

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“प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज ऐसे नहीं।” रश्मि उनके चंगुल में फड़फड़ा उठी।

“ऐसे नहीं तो और कैसे? ऐसे?” हरिया उसे चूमता हुआ बोला। दोनों के बीच रश्मि पिस रही थी।

“हाय मैं कहां फंस गयी।” रश्मि बेबस थी।

“फंसी नहीं पगली, स्वर्णिम अवसर मिला तुम्हें।” मैं उसकी हालत पर मुस्कुराते हुए बोली।

“हाय, यह कैसा अवसर? मार डालेंगे ये बूढ़े।” रश्मि रोनी सी आवाज में बोली।

“मरोगी नहीं बेवकूफ, बड़ा मजा आएगा।”

“ये कैसा मजा हरामजादी।” चिढ़ गयी वह।

“ये ऐसे नहीं मानेगी। जो करना है करो हरामी बूढ़ों। जबरदस्ती करो। दिखा दो इसे अपनी मरदानगी, और वह मजा दो कि यह खुद बोले, चोदो राजा चोदो।” मैं खीझ कर बोली। चुदने को मैं खुद मरी जा रही थी और इधर यह ड्रामा।
 
“क्षितिज बेटा, आ अपनी मां से खेल। उस रश्मि की बच्ची को उसके हाल पर छोड़।”

“वाऊ मॉम, आया, लो आ गया तेरा चोदू बेटा।” कहते कहते पूर्णतया निर्वस्त्र हो गया, गर्व से सर उठाए, विशालकाय, अकड़े, फनफनाते लिंग का प्रदर्शन करते हुए मेरे करीब आया और आनन फानन मुझे भी निर्वस्त्र कर दिया, मादरजात।

“उफ्फ्फ्फ, इतनी बेताबी!”

“हां्हां्आं्आं्आं मॉम, बहुत देर से मेरा पपलू बेकरार था।” मेरी नग्न देह को अपनी बांहों में समेट कर मेरी भरी भरी उन्नत चूचियों को बेरहमी से दबाता हुआ चूमने लगा वह। अबतक हरिया और करीम ने रश्मि की ना ना और छटपटाहट को नजरअंदाज करते हुए नग्न करने में तनिक भी समय नहीं गंवाया। अब रश्मि पूर्ण रूप से नंगी, बेबस, उन दो कामपिपाशु बूढ़ों के हाथों मसली जा रही थी। एक एक करके हरिया और करीम भी निर्वस्त्र आदीमानव बन गये। दोनों के तनतनाए लिंग, विभिन्न आकार प्रकार और बनावट के बावजूद आकर्षक थे। लंबाई और मोटाई ताकरीबन एक ही थे किंतु करीम का खतना किया लिंग, टेनिस बॉल सरीखे गुलाबी सुपाड़े का बेपर्दा स्वरूप दिखा रहा था। दोनों कामुक बूढ़ों के भीमकाय, तोंदियल, सलवटों की तरह झुर्रियों और सफेद बालों से भरे शरीर के मध्य रश्मि की कमनीय देह का बेदर्द मर्दन, लोमहर्षक दृष्य प्रस्तुत कर रहा था। करीम उसके पीछे था, उसके मजबूत हाथ उसकी सख्त चूचियों को बेरहमी से मसलने में व्यस्त थे। हरिया सामने से उसके चेहरे को चुंबनों से नहलाए दे रहा था, उसका एक हाथ उसकी चिकनी चूत पर अठखेलियाँ कर रहा था।

“उफ्फ्फ्फ, ओह्ह्ह्ह्, ननननहींईंईंईंईं।” रश्मि की आंखें बंद हो रही थीं। उसकी योनि रसीली हो उठी थी।

“नहीं क्या, हां्हां्आं्आं्आं बोल हां।” हरिया बोला।

“ओ मां्मां्आ्आ्आ्आ।”

“मां नहीं, बाप बोल।”

“ओओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह बाबा।”

“हां्हां्आं्आं्आं बेटी।” हरिया अपनी उंगली रश्मि की चूत में डालने लगा।

“उई्ई्ई्ई्ई्ई बाबा।” चिहुँक उठी वह।

“उई क्या बिटिया? पनिया उठी न तेरी चूत? चल अब ले ले मेरा लौड़ा, बिटिया रानी।” बड़े प्यार से फुसला रहा था हरिया।

“ओह्ह्ह्ह् बाबा। हाय हाय।” वह अभी भी कसमसा रही थी उनकी बांहों में। चेहरा लाल हो गया था उसका। गैर मर्दों से चुदा जाना, वह भी एक मर्द से नहीं, दो दो मर्दों से, उसपर तुर्रा यह कि दोनों बूढ़े। बिल्कुल नयी बात थी उसके लिए। घबराहट थी, झिझक थी। अकेले किसी एक मर्द से ढंके छुपे तौर पर चुदना अलग बात थी, लेकिन इस तरह खुल्लमखुल्ला इतने लोगों के सामने बेशरमों की तरह इस तरह चुदे जाने की तो उसने शायद कल्पना भी नहीं की थी होगी। फंस तो चुकी ही थी, चुदा जाना तय था। तो क्या, तो क्या वह कामुकता के वशीभूत बेशर्म रंडी बनती जा रही थी? शायद, शायद नहीं, निश्चय ही। अबतक दोनों बूढ़े मिलकर उसे इस हाल में पहुंचा चुके थे जहाँ से वापस होना उसके वश में नहीं रह गया था। हरिया उसकी चिकनी चूत में उंगली डालकर रुका नहीं, दनादन उंगली से ही चोदने लगा। खेला खाया चुदक्कड़ बूढ़ा था, एक औरत को गरम करके कैसे वश में करना है, बखूबी जानता था।

“ओह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह् आह्ह्ह्ह्ह् मां।” सीत्कार निकालने को वाध्य हो गयी वह। बेसाख्ता चिपकी जा रही थी उनके तन से। एक तरह से अपने विरोध और शर्म को तिलांजलि दे कर खुद को उन वहशी, कामुक दरिंदों के हवाले कर बैठी थी। उसे आभास भी नहीं था कि करीम का लिंग उसकी गुदा द्वार पर दस्तक देने ही वाला था। तभी “ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई रे अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” कहती हुई थरथराने लगी और उसका स्खलन आरंभ हो गया।

“अभी कहां गयी, अभी तो शुरु हुई।” कहते कहते उसने बड़ी चालाकी से उसके दोनों पैरों को फैला कर अपने अनुकूल अवस्था में लाया और आव देखा न ताव, उससे छिपकली की तरह चिपकी रश्मि की चूत के मुहाने पर अपना मूसलाकार लंड टिका कर एक करारा प्रहार कर दिया और एक ही झटके में पूरा का पूरा लंड उसकी चिकनी चूत की संकरी गुफा को चीरता हुआ उतार दिया।

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“आ्आ्आ्आ” घुटी घुटी चीख निकल गयी उसकी। दर्द से नहीं, शायद कल्पनातीत आक्रमण से। उम्मीद नहीं थी उसे कि एक बूढ़ा आदमी इस तरह एकदम से हमला करेगा और अपने जोश का प्रदर्शन करेगा। उत्तेजित जरूर थी वह किंतु ऐसे भीषण प्रहार की उम्मीद नहीं थी उसे। तनिक पीड़ा तो होनी ही थी, पूरा जड़ तक एक ही प्रहार से अपना लंड जो उतार दिया था उस हवस के पुजारी नें। अपनी मजबूत भुजाओं से जकड़े, अपने भीमकाय लंड को उसकी चूत में फंसाए हरिया ने उसे उठा लिया हवा में। गजब की ताकत थी अब भी उस चुदक्कड़ बूढ़े में। करीम न जाने कब से इस मौके की तलाश में था। पीछे से आकर पुनः उसने रश्मि को दबोच लिया, इस बार पूरी तैयारी के साथ, अपने लिंग में थूक लसेड़े, उसकी मस्त गुदाज गांड़ के दरवाजे में अपने लंड ठोकने को। रश्मि की ललचाती गुदा के द्वार पर अपने लिंग का चमचमाता विशाल सुपाड़ा ज्यों ही सटाया, चिहुंक उठी रश्मि। घबरा ही तो गयी। समझ गयी उसका इरादा।

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, पीछे से नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, पपप्ल्ल्ली्ई्ई्ई्ईज्ज्ज।” चीख उठी घबराहट में। लेकिन करीम कम खेला खाया खिलाड़ी नहीं था। उसकी सख्त चूचियों को अपने मजबूत पंजों से दबोच कर एक करारा धक्का जो मारा, आधा लंड अंदर पैबस्त हो गया। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह मर्र्र्र्र्र्र्र गय्य्य्यी्ई्ई्ई्ई्ई अम्म्म्म्आ्आ्आ्आ्आ।” पीड़ा के अतिरेक से चीख उबल पड़ी उसके मुंह से। आंखें फटी की फटी रह गयीं उसकी।

“चिल्ला, खूब चिल्ला, इतनी मस्त गांड़ का मजा जब तक न ले लूं, तबतक चिल्ला, मैं छोड़ने वाला नहीं हूं मां की लौड़ी।” कसाई बन चुका था वह, एक और करारा प्रहार, “हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,” और लो, पूरा का पूरा लंड उसकी गांड़ के अंदर।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, छोड़ मादरचोद, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह, फा्आ्आ्आ्आड़ दिया आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” दर्दनाक चीख से गूंज उठा पूरा कमरा।

“हो गया काम। बस मेरी गांड़मरानी, हो गया तेरी गांड़ का काम। अब बस तू मजे में चुदती रह, हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्, हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,

हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्,

हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्” दनादन तीन चार बार अंदर बाहर हुमच हुमच के अपने लंड को करके बेरहमी से उसकी गांड़ को फैला कर सुगम मार्ग बना दिया।

“आह मां ओह मां्मां्आ्आ्आ्आ इस्स्स्स्स्स इस्स्स्स्स्स, हा्हा्हा्आ्आ्आ्आ्य हा्हा्हा्आ्आ्आ्आ्य,” चीखती चीखती धीरे धीरे शांत पड़ गयी वह। अब शुरू हुई उसकी चूत और गांड़ की सम्मिलित कुटाई। दोनों बूढ़े रश्मि की नग्न देह को हवा में उछाल उछाल कर किसी डबल सिलेंडर इंजन की तरह अपने लंड रुपी पिस्टन से कूटते रहे, उसकी चूत और गांड़ का मलीदा बनाते रहे। जो रश्मि कुछ देर पहले तक दहशत में भर कर पीड़ामय चीखें निकाल रही थी, वही रश्मि अब आनंदभरी सिसकारियां निकाल रही थी, “आह आह आह ओह ओह ओह इतना मजा ओह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ, चो्ओ्ओ्ओ्ओदि्ई
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ईःई्ई्ए्ए्ए्ए्ए ओह ओह।” बेसाख्ता चिपकी जा रही थी, पिसती जा रही थी उन चुदक्कड़ भेड़ियों के मध्य और आंखें बंद किए आनंद के सागर में गोते खा रही थी। इधर क्षितिज कहां पीछे रहने वाला था। इसी दौरान उसने मुझे भी अपने लंड का जलवा दिखाना आरंभ कर दिया था। मुझे कमर से पकड़ कर उठाया और भच्चाक से अपने फुंफकार मारते लंड में ऐसा बैठाया कि उसका लंड सीधे मेरी चूत में जड़ तक समा गया। उसने भी खड़े खड़े मुझे हवा में उठा लिया और गचागच चोदते हुए हवा में ही झूला झुलाने लगा। उफ्फ्फ्फ, यह उन बूढ़ों और रश्मि के बीच की कामकेली का ही असर था शायद, क्षितिज पूरे जोश में था। उत्तेजना के मारे उसके लंड का आकार भी पहले से विकराल और खुंखार हो उठा था। मैं, मैं तो निहाल हो उठी, उसकी गोद में चिपकी चुदी जा रही थी, चुदी जा रही थी, मस्ती की तरंगें मेरे तन में हिलोरें मार रही थीं।

“मेरी प्यारी मॉम।”

“मेरे प्यारे चोदू बेटे।”

“मेरी बुरचोदी मॉम।”

“मेरे प्यारे मादरचोद।”

“ओह मेरी रंडी मॉम।”

“ओह मेरे चूत के रसिया, चोद, चोद मां के लौड़े।”
 
“ओह मेरी चूतमरानी मां, मेरे लंड की रानी।” इन्हीं उद्गारों के साथ हम मां बेटे जुटे हुए थे एक दूसरे के तन में समा जाने की जद्दोजहद में। यह दौर अन्य दिनों के बनिस्बत कुछ अधिक ही चला। क्या हो गया था हम सभी को उस वक्त, समझ नहीं आ रहा था। हम सभी पागलों की तरह एक दूसरे से गुथे जा रहे थे। जहां रश्मि के गालों और गर्दन पर हरिया अपने दांतों का निशान छोड़ता जा रहा था वहीं करीम उसकी चूचियों का मलीदा बनाता जा रहा था। अखाड़ा बन चुका था वह कमरा।

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कभी उठा कर, कभी लिटा कर, कभी कुतिया बना कर, धमाधम, गचागच, घमासान धकमपेल मचाए हुए थे तीनों मर्द। आह ओह हाय हाय इस्स्स्स्स्स उस्स्स्स् हुम हुम की आवाज के साथ साथ फच फच चट चट की सम्मिलित आवाज से पूरा कमरा गुंजायमान था। वासना का सैलाब आया हुआ था जो करीब एक घंटे तक निरंतर बहता रहा। फिर शुरू हुआ एक एक करके मर्दों का स्खलन, अंतहीन स्खलन। इस दौरान मैं तो तीन बार झड़ चुकी थी, वहीं रश्मि का तो पता नहीं। कितनी बार उसके झड़ने का आभास उसकी आहों से हमें होता रहा। सर्वप्रथम हरिया नें अपने वीर्य से रश्मि की चूत को सराबोर किया फिर करीम ने अपना मदन रस उसकी गांड़ के अंदर भरना चालू किया। इस दौरान उन्होंने रश्मि की नग्न देह को इस सख्ती से दबोचा था मानो उसकी पसलियों का चूरमा बना कर ही दम लेंगे, मगर वाह री बुरचोदी रश्मि, कमाल थी, मगन थी, मस्ती में डूबी हुई, आंखें बंद किए सिसकारियां निकाल रही थी। इधर क्षितिज मेरे तन का सारा कस बल निचोड़े जा रहा था। अंततः जब उसने भी अपने लंड का फौव्वारा मेरी चूत में छोड़ा, आह, मैं तो निहाल हो उठी। मर्द, जबरदस्त मर्द, मुकम्मल सांढ़ बन चुका था वह।अपने मदन रस का पान कराता मुझे इतनी जोर से जकड़ा मानो मेरी सांसें ही रुक गयी हों। कड़कड़ा उठी मेरी पसलियां और मैं उसके सुगठित तन से चिपकी आनंदित होती रही।

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“ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह््ह्ह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आ।”

“हां्हां्आं्आं्आं रानी।”

“गयी रे गयी मैं, झड़ी रे झड़ी मैं।”

“ले मम्मी मेरे लंड का रस्स्स्स्स्, अपनी दूध का कर्ज। आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” और फिर हम सब पसीने से लतपत, संतुष्ट, निढाल पड़ कर लंबी लंबी सांसें ले रहे थे।

जब हम थोड़े संभले, मेरा पहला सवाल रश्मि से, “कैसा रहा?”

“ओह्ह्ह्ह् कामिनी, पूछ मत।”

“कैसा लगा?”

“गजब, ऐसी हालत कर दी मेरी इन बूढ़े जालिमों ने कि पूछो मत।”

“मजा आया?”

“बहूऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊत।” कहते हुए शरमा गयी बेचारी।

“हाय मेरी लाजो रानी। शरमा तो ऐसे रही है जैसे पहली बार चुदी है।”

“हां तो। पहली बार ही तो इन बूढ़ों से, वह भी एक साथ।” लाल भभूका हो उठी।

“और तुम बूढ़े चुदकड़ो?”

“बूढ़ा बोलती है बुरचोदी, रश्मि बिटिया से पूछ मां की लौड़ी।” हरिया बोला।

“उससे तो पूछ लिया, अपनी बता चूतखोरों।”

“वाह, यह भी पूछने की बात है री रंडी। ऐसी मस्त लौंडिया को चोदना किस्मत की बात है। मन ही नहीं भरा। देख फिर से मेरा लौड़ा सर उठाने लगा।” करीम बोला।

“तो देख क्या रहे हो कुत्तों, शुरु हो जाओ फिर से।”

“ना बाबा ना। अभी और नहीं। हालत खराब कर दिया इन हरामियों ने।” थकी थकी सी रश्मि बोली।

“ओके ओके, अभी का हो गया। अब बेचारी को घर भी जाने दो। कल देखते हैं। वैसे भी अभी तो दो चार दिन यह रहेगी ही। हमारे लौड़े का मजा लेने फिर आना इसकी मजबूरी है। है कि नहीं रे बुरचोदी?” हरिया बोल उठा।

“हां्हां्आं्आं्आं बाबा हां्हां्आं्आं्आं। चस्का जो लगा दिया हरामियों।” बोलने को तो बोल गयी, फिर शरम से दोहरी हो उठी। अबतक सांझ का पांच बज चुका था। अब रश्मि को छोड़ आने के लिए मैं क्षितिज से बोली। हम सब अपने अपने कपड़े पहनने लगे। रश्मि खड़े होते होते लड़खड़ा रही थी। हंसी आ गयी मुझे।

“हंस रही है कुतिया। तेरे कुत्तों ने इतनी बुरी तरह नोचा खसोटा कि बदन का एक एक जोड़ ढीला कर दिया।” हम सभी ठठाकर हंस उठे। उसकी आवाज में सिर्फ थकान थी, झोभ या पश्चाताप नहीं। फिर क्षितिज उसे सिन्हा जी के घर छोड़ आया।

कहानी जारी रहेगी
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि किस तरह रश्मि, जो रेखा की ननद थी, संयोग से हमारे चंगुल में आ फंसी थी। मैंने उसकी कामुक भावनाओं को भड़का कर पहले मैंने उससे समलैंगिक संबंध बनाया, फिर क्षितिथ ने उस पर हाथ साफ किया। इतना ही नहीं, हरिया और करीम ने भी उसे बख्शा नहीं और अपनी हवस का शिकार बना बैठे। यह सब हुआ खुद रश्मि की रजामंदी से। आरंभिक ना नुकुर और नखरे के बाद, रश्मि, हरिया और करीम के साथ सामुहिक संभोग में शामिल होकर संभोग का अद्भुत सुखद अनुभव से दो चार हुई। लेकिन इस दौरान दोनों ठरकी बूढ़ों ने रश्मि की जो हालत की, देखने लायक थी। चूत और गांड़ को तो गुफा ही बना दिया था। योनि फूल कर गोलगप्पा बन गयी थी। उसकी गुदा का उद्घाटन हुआ भी तो करीम के विकराल लिंग से और क्या खूब लिंग था, खतना किया हुआ लिंग। मलद्वार का छल्ला लाल होकर कुछ बाहर निकल आया था। गालों पर, गर्दन पर और सीने पर हरिया के दांतों के लाल निशान उभर आए थे। चल भी नहीं पा रही थी ठीक से। पांव फैला कर चल रही थी बेचारी। इतना सब कुछ होने पर भी रश्मि खुश थी, संतुष्ट थी, दो दो बूढ़े हवस के पुजारियों की दरिंदगी को बखूबी झेल जो पायी। सिर्फ झेली नहीं, मजे ले ले कर झेली।इन सबके बाद क्षितिज उसे उसके भाई सिन्हा जी के घर छोड़ आया। जाते जाते दोनों बूढ़ों पर प्रशंसात्मक दृष्टि फेरती गयी, मतलब साफ था, इन दोनों बूढ़ों की तो निकल पड़ी। जब तक रहेगी, इन्हें और मौका मिलने वाला था उसे चोदने का। वैसे भी कल तो क्षितिज को वापस भी जाना था।

“तो क्षितिज बेटा, कल की तैयारी हो चुकी है ना?” जैसे ही क्षितिज रश्मि को छोड़कर वापस आया, मैंने पूछ लिया।

“ओह मॉम, जाने का मन ही नहीं कर रहा है।”

“धत पगले, जाओगे क्यों नहीं?”

“आदत खराब हो गयी है।”

“कैसी आदत?”

“औरतों की आदत।”

“मिलेगी पागल, बहुत मिलेंगी। पहले अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, कैरियर बना। तेरा वादा याद है ना? औरतें तो मिलती ही रहेंगी। नहीं मिली तो मैं तो हूं ही तेरी बुरचोदी मां। आ जाना, इसी तरह बीच बीच में।”

“ओके मॉम, ओके। मैं भूला नहीं हूं अपना वादा। देख लेना मेरी पढ़ाई और कैरियर। आपका बेटा आपको कभी शर्मिंदा नहीं होने देगा। बस तुम इसी तरह मेरा साथ देते रहना।”

“इसी तरह मतलब?”

“मतलब क्या? हौसला अफजाई और चुदाई।”

“हौसला अफजाई तो ठीक है, मगर चुदाई के लिए इधर उधर भी नजर घुमा लिया कर मेरे बच्चे। मैं हमेशा थोड़ी न उपलब्ध रहूंगी। सीख तो गया है सबकुछ, खुद पटा कर मिटा लिया कर अपने लंड की भूख।” कोई सुनता तो कहता कितनी बड़ी छिनाल मां है जो अपने बेटे को ऐसी शिक्षा दे रही है। मगर मैं तो ऐसी ही थी उस वक्त और ऐसी ही हूं अब भी।

“वो तो ठीक है मेरी प्यारी बुरचोदी मां, लेकिन जाने के पहले आज की आखिरी रात तो जी भर के प्यार करने दोगी न।” क्षितिज बोला।

“हां रे पागल हां्हां्आं्आं्आं मेरे रसिया बेटे। जी भरके प्यार कर और प्यार दे मुझे।” कहने को तो कह गयी मैं, लेकिन नतीजा इतना भयानक होगा इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी। कयामत की रात थी वह। खाना खाने के बाद करीब दस बजे से लेकर सुबह पांच बजे तक क्या क्या नहीं किया वह मेरे साथ।

खाना खाकर हरिया और करीम तो अपने कमरों में चले गये, बूढ़े थे, एक जवान स्त्री को संतुष्ट करने की चुनौती स्वीकार करके अपनी औकात से बाहर शक्ति का प्रदर्शन कर बैठे थे। थके थके से लग रहे थे दोनों, नींद से बोझल आंखों के साथ जा दुबके अपने अपने बिस्तरों पर, लेकिन क्षितिज की आंखें तो मुझी पर ही गड़ी थीं, नींद से कोसों दूर। जानती थी अंततः नंगी होना ही है, सारे कपड़े खोलकर सिर्फ चादर ओढ़े बिस्तर पर लेटी थी। क्षितिज किसी भूखे शेर की तरह यथासमय मेरे कमरे में दाखिल हुआ, सिर्फ एक बरमूडा पहने। बरमूडा उसका विशाल तंबू की शक्ल अख्तियार किया हुआ था। बताने की जरूरत नहीं कि अंदर कुछ नहीं पहना था मेरा चोदू बेटा। आते न आते बरमूडा ऐसे निकाल फेंका उसने मानो शरीर पर कोई गंदी चीज पड़ी हो। उफ्फ्फ्फ मां, अन्य दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक ही खूंखार और भयावह आकार था उसके लंड का। एक झटके में मेरे ऊपर की चादर को ऐसे फेंका मानो कोई घृणित वस्तु मेरे शरीर पर पड़ी हो, और लो, मादरजात नंगा मेरा बदन, कमरे की दूधिया रोशनी में चमक उठा। क्षितिज की दृष्टि में मैं किसी भूखे भेड़िए सी चमक देखकर अंदर ही अंदर हिल उठी।
 
“वाह, मेरी चूतमरानी मां, वाह। यह हुई न बात।” बावला बेटा, मुझ पर टूट पड़ने को उतावलापन स्पष्ट दिख रहा था उसकी आवाज में और हावभाव में। बिना एक पल गंवाए कूद पड़ा मुझ पर और छा गया मेरी नग्न देह पर। उसके उतावलेपन से मैं घबरा ही गयी।

“ओह्ह्ह्ह्, इतनी उतावली?”

“निकाल लूंगा आज सारी कसर, उसी की उतावली है मेरी जान।”

“उफ्फ्फ्फ भगवान, सारी रात तो पड़ी है।”

“छुट्टी की आखिरी रात भी तो है मेरी प्यारी बुरचोदी मां। इसके बाद फिर अगली छुट्टी तक इंतजार करना पड़ेगा।” अपनी बांहों में मेरी नग्न देह को जकड़े चूमने लगा पागलों की तरह मुझे।

“आह आह पागल कहीं के, ओह्ह्ह्ह् आराम से।”

“आराम से? समय निकलता जा रहा है। एक एक पल कीमती है। हर पल का भरपूर इस्तेमाल करूंगा।” वहशियत उसकी आंखों में नाच रही थी। ऐसा तो नहीं था यह, अचानक इसे क्या हो गया?

“ओह्ह्ह्ह् भगवान, आज यह क्या हो गया है तुम्हें हरामी, जान निकाल दोगे क्या?” उसकी मजबूत पकड़ में पिसती हुई बमुश्किल बोल पाई। मैं दहशत में आ गयी थी उसकी पाशविकता देख कर। मेरी दोनों उरोजों को इतनी बेरहमी से मसल रहा था कि मैं बमुश्किल अपनी चीखें रोक पा रही थी। उसे धकेल कर अलग करना और उसकी दानवी पकड़ से छूटना मेरे लिए असंभव हो गया था। उसे चोट पहुंचा कर छूट सकती थी, लेकिन उसे चोट भी पहुंचाना नहीं चाहती थी। सिर्फ छटपटा कर रह गयी।

“मेरी जान की जान कैसे निकाल सकता हूँ”

“फिर यह क्या कर रहे हो आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह?”

“प्यार कर रहा हूं।”

“जानवरों की तरह? हाय ओ्ओ्ह्ह्ह्ह?”

“मैं जानवर लग रहा हूं मेरी लंडखोर मॉम?”

“हां्हां्आं्आं्आं, तू जानवर बन गया है साले मां के लौड़े।” मेरे उरोजों की बेरहमी से निचोड़े जाने की पीड़ा से गाली निकाल बैठी।

“हां मैं मां का लौड़ा हूं साली कुतिया।” वह अब और खूंखार हो उठा। गालियों पर वह भी उतर आया। मेरी चूचियों को चूसने लगा और दांतों से काटने लगा।

“ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ इस्स्स्स्स्स आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह। साले जंगली कुत्ते।” अपनी बेबसी पर सिसक पड़ी।

“हां मैं जंगली कुत्ता हूं।” मेरी चूचियों को नोच नोच कर लाल कर दिया। अभी मैं उस दहशतनाक परिस्थिति से गुजर ही रही थी कि उसने अचानक बड़ी बेरहमी से मेरी योनि में भक्क से उंगली भोंक दिया।

“उई्ई्ई्ई्ई्ई मां्मां्आ्आ्आ्आ।” चिहुंक उठी मैं। अचानक हुए इस हमले से मेरी चुदी चुदाई योनि भी त्राहिमाम कर उठी। “आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह कसाई, बेरहम, जानवर।”

“जो बोलना है बोल मेरी मां। मुझे बस खेलने दे बुरचोदी मॉम।” गुर्रा उठा वह। उसने सिर्फ उंगली घुसा कर ही बस नहीं किया, लगा भचाभच उंगली से ही चोदने।

“उफ्फ्फ्फ दरिंदे बन गये हो तुम।” तड़प कर बोली।

“हां्हां्आं्आं्आं हां्हां्आं्आं्आं, बन गया दरिंदा। सारी कसर निकालूंगा आज रात।” सुनकर कांप उठी। क्या क्या करना चाह रहा था मेरे साथ? कोई और होता तो उसकी ऐसी जालिमाना हरकत के लिए ऐसी सजा देती, जो उसे जिंदगी भर याद रहता। लेकिन यह तो मेरा बेटा था, प्रतिक्रिया में उसे तकलीफ भी नहीं दे सकती थी। सहती जा रही थी, सिर्फ मुह से बोलकर ही पीड़ा और विरोध जता रही थी, जिसका उस पर तनिक भी असर नहीं हो रहा था।

“आह ओह इतने कसाई मत बनो आह।”

“चुप, एकदम चुप, मां की चूत, कसाई लग रहा हूं?” कहते हुए सीधे अपने गधे सरीखे लिंग को मेरे मुह में ठूंस दिया और पलट कर खुद मेरी योनि से निकलते लसलसे द्रव्य को चपाचप चाटने लगा। चाटते चाटते मेरे भगनासे को दांतों से हल्के हल्के चबा भी रहा था। पीड़ा थी मगर उत्तेजना के मारे थरथरा उठी और उसी वक्त मेरा स्खलन आरंभ हो गया।
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“ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह।” गजब का दीर्घ स्खलन था वह। पीड़ा भरे आनंद से मेरी आंखें बंद होने लगी। वह समझ रहा था सबकुछ, लेकिन छोड़ा नहीं मुझे। चाटता रहा, चाटने की इस क्रिया में उसकी जीभ मेरी गुदा द्वार को भी स्पर्श करने लगी। मेरे मुंह से गों गों की आवाज निकल रही थी। उसका लंड जो घुसा हुआ था मेरे मुह में। चोद रहा था मेरे मुह को अपनी कमर चलाते हुए, गपागप, सटासट और मैं सप्रयास उसके विशाल लिंग को मुंह में समाए चूसने को वाध्य थी। तभी उसके लिंग का आकार और बड़ा होने लगा। कठोर होने लगा, मेरा दम निकलने निकलने को हो रहा था लेकिन तभी फचफचा कर उसका लिंग वीर्य उगलने लगा। गटकती चली गयी उसके वीर्य का एक एक कतरा। जैसे ही उसका लिंग नरम पड़ा, मेरी जान में जान आई। “इस्स्स्स्स्स्स्स्स्, इस्स्स्स्स्स्स्स्स्।” राहत की लंबी लंबी सांसें लेने लगी मैं।
 
“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, पी जा, पी जा मेरे लंड का प्यार भरा रस मेरी रंडी मां्मां्आ्आ्आ्आ। दूथ का्आ्आ्आ्आ्आ कर्ज अदा कर रहा हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं।” कैसा हरामी बेटा है, मैं सोच रही थी। दूध का कर्ज, साला मादरचोद इसे दूध का कर्ज कह रहा है।

यह तो शुरुआत थी। चाटता रहा मेरी चूत और गांड़, भूखे कुत्ते की तरह। मैं मचलती रही, कुचली जाती रही उसके दानवी शरीर के नीचे। मैंने महसूस किया कि अब करीब दो तीन मिनट में ही पुनः उसका लिंग पूर्ववत सख्त हो रहा था। एक झटके में मुझे पलट दिया। उसके प्रयासों के परिणामस्वरूप मैं भी पुनः उत्तेजित हो उठी। वह जो कुछ भी कर रहा था उसमें साफ साफ पता चल रहा था कि उसे मेरी मर्जी या इनकार की तनिक भी परवाह नहीं है। सिर्फ उसे अपनी मर्जी चलानी थी, अपनी हवस की पूर्ति ही एकमात्र उद्देश्य था।

“तुझे सिर्फ अपनी मर्जी चलानी है हरामी?” मैं बोल ही पड़ी।

“हां, आज सिर्फ मेरी मर्जी चलेगी। कल तो मुझे जाना है, फिर अगली छुट्टी तक तेरे खूबसूरत तन से वंचित रहूंगा न।चुपचाप चुदती रह। करने दे मुझे अपनी मर्जी मेरी रानी मां।” कहते हुए मुझे कुतिया की पोजीशन में करके पीछे से सवारी गांठ ली उसने। मैं समझ गयी कुछ बोलना व्यर्थ है। जैसा कर रहा था वैसी होती जा रही थी। मां का प्यार भी कितना अजीब होता है। संतान की इच्छा को ठुकरा पाना कितना कठिन होता है। वैसे भी जो कुछ मेरे साथ हो रहा था, मेरे ही कर्म का फल था। झेलना ही था। रात भर कयामत की रात होनी थी। पीछे से अपने तने हुए लिंग को मेरी योनि छिद्र के द्वार पर साध कर मेरी चूचियों इतनी सख्ती से दबोचा कि मेरी चीख निकलते निकलते रह गयी और उसी पीड़ामय स्थिति में उसके तनतनाए लिंग का हौलनाक प्रहार हुआ मेरी योनि में। भक्क, और उस कसाई ने उसी झटके में सरसरा कर पूरा का पूरा लिंग मेरी योनि को ककड़ी की तरह चीरता हुआ जड़ तक उतार दिया।

“ओह्ह्ह्ह् माद्द्द्द्दर्र्र्र्र्रचोओ्ओ्ओ्ओ्ओद हर्र्र्र्र्रा्आ्आ्आ्आमजा्आ्आ्दे, कुत्ते्ए्ए्ए्ए। मर गयी रे््एए््एए््एए।” चुदी तो थी, कई बार चुदी थी, अलग लोगों से, अलग अलग तरीकों से, लेकिन ऐसी बेरहम चुदाई? बाप रे बाप, आज की बात तो कुछ और ही थी। अकस्मात लिंग के एक ही करारे वार को झेलना मानो कम था, उसके बाद के कहर बरपाते मशीनी अंदाज में भकाभक प्रहारों ने तो मुझे हलकान ही कर दिया। पागल कुत्ते की तरह लगा भंभोड़ने मुझे। लगा झिंझोड़ने मुझे। मेरी चूचियों को बेरहमी से निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह तूफानी रफ्तार से लगा चोदने।
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“मादरचोद बोलतीहै रंडी मां? हां मादरचोद हूं। हरामजादा बोलती है मां की चूत? हां हूं मैं हरामी, पता नहीं किस बाप की औलाद हूं। कुत्ता बोलती है साली कुतिया मॉम? हां मैं कुत्ता हूं, तुझ कुतिया मां की औलाद। अब ले, ओह ले, आह ले, मुझ कुत्ते का लंड ले, ओह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्।” बोलते हुए और क्रूर हो उठा। दे दनादन दे दनादन, नोचते खसोटते चोदता रहा, चोदता रहा, अंतहीन चुदाई में लीन। उसकी पाशविकता से मैं दहशतजदा थी, भयाक्रांत थी, लेकिन साथ ही साथ एक अलग ही रोमांच से भर उठी थी। एक अलग अनुभव, मानो किसी पागल बनमानुष से चुदी जा रही थी।

“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, ओ्ओफ्फ्फ्फ्फ्फ, आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ्फ्फ्फ मां्मां्आ्आ्आ्आ।” पीड़ा और आनंद के मिश्रित उद्गार निकल रहे थे मेरे मुह से। यह अंतहीन चुदाई करीब पैंतालीस मिनट तक चलता रहा। इस दौरान चाहे अनचाहे मैं तीन बार झड़ी, ओह मां, और क्या खूब झड़ी। पसीने से सराबोर हो गयी थी। जब वह खल्लास हुआ, कहर ही ढा दिया था मुझ पर। मेरी मलीदा बन चुकी चूचियों को ऐसे निचोड़ते हुए खल्लास हुआ मानो चूचियों का सारा रस बाहर निकाल देगा। “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह मां्मां्आ्आ्आ्आ।” न चाहते हुए भी मेरी लंबी चीख निकल गयी।
 
“चीख मां की लौड़ी, चिल्ला हरामजादी बुरचोदी कुतिया मां्मां्आ्आ्आ्आ।” गुर्राता हुआ झड़ कर निढाल हो गया। मैं उसके बनमानुषी शरीर के नीचे दबी, कुचली, बेजान पड़ी रही। मगर यह कुछ ही मिनटों की राहत थी मेरे लिए। करीब दस मिनट बाद पुनः उसके निढाल शरीर में जान आने लगा। वह एक तरफ पलट जरूर गया था लेकिन मेरे थक कर चूर शरीर को अपनी बांहों की कैद से मुक्त नहीं होने दिया था। पुनः चूमने लगा मुझे।

“वाह रानी, जितना चोदो मन ही नहीं भरता।”

“चाहे इसमें मेरी जान ही चली जाय।” खीझ रही थी मैं।।

“जान जाए तेरे दुश्मनों की। तू मर नहीं सकती, हर हाल में मजा ले सकती हो और मजा दे सकती हो।” हवस की अबूझ प्यास अब भी उसकी आंखों में तैर रही थी।

“हट जंगली जानवर, ऐसा भी कोई नोचता है अपनी मां को?”

“नोचता है, कुत्ता किसी भी मादा कुतिया, चाहे उसकी मां ही क्यों न हो, नोचता है, सभी जानवर अपनी मां को भी इसी तरह नोचते खसोटते चोदते हैं, मैं कहां अपवाद हूं।”

“वाह हरामी, बहुत सीख गया है। सीख कर मुझी को सिखा रहा है कमीना।” कलपती हुई बोली।

“सिखाया किसने?” शरारत से बोला।

“ठीक है, ठीक है, अब छोड़ मुझे, हो गयी न तेरी इच्छा पूरी।”

“अभी कहां? अभी तो बाकी है, तेरी गुदा का गूदा निकालना बाकी है मेरी रांड मॉम। सबसे खूबसूरत तो तेरी गांड़ ही है। बिना चोदे कैसे छोड़ दूं?”

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, बहुत हो गया।” कांप उठी उसकी अदम्य कामुकता को देख कर।

“हां्हां्आं्आं्आं, हां्हां्आं्आं्आं। चोदुंगा चोदुंगा, तेरी गांड़ चोदुंगा।”

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं।”

“चू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊप्प्प्प्प् छिना्आ्आ्आ्आ्आल, दे दे गांड़।”

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं।”

“बोला न दे दे गांड़ चोदने।”

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं।”

“साली तू ऐसे नहीं मानेगी।” बिल्कुल भूल गया था वह कि मैं उसकी मां हूं। अब तो मां भी नहीं बोल रहा था, सिर्फ, एक औरत, चुदने के लिए चूचियां और चूत लिए पैदा एक लंडखोर औरत। खीझ कर मुझे बेदर्दी से पलट दिया और दुबारा कुतिया बनने के लिए मजबूर कर दिया। मेरे पास और चारा भी क्या था, उसकी हर कुत्सित कामेच्छा को पूर्ण करने को मजबूर एक बेबस औरत बन चुकी थी।

“ओह्ह्ह्ह् बेदर्दी।”

“जो बोलना है बोल रंडी। गांड़ तो चोद कर रहूंगा।” अपने लंड के सुपाड़े को ज्यों ही मेरी गुदा द्वार से सटाया, आने वाली हौलनाक मुसीबत की आशंका से मेरा दिल बैठा जा रहा था। दम साध कर मन को कड़ा करने का प्रयास कर ही रही थी कि भच्चाक, आव देखा न ताव, बेताबी से पेल ही तो दिया अपना खंजर मेरी गुदा में। “ये ले्ए्ए्ए्ए्ए्ए्ए मेरा्आ्आ्आ्आ्आ पपलू्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ्ऊ अपनी गांआंआंआंआंआंड़ में हुम्म्म्म्म्म्म्मा्आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह्।”
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“आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह,” पीड़ा, “उफ्फ्फ्फ्फ्फ,” अकथनीय पीड़ा, चीख निकालने को वाध्य हो गयी। सूखा सूखा जो ठूंस दिया था अपना लिंग उस कमीने नें। जहां मेरी दर्दनाक चीख निकली वहीं क्षितिज की खुशी भरी किलकारी गूंज उठी।

“हा हा हा हा, ओह ओह मेरी मां, मस्त मस्त गांड़, ओह्ह्ह्ह् मेरी मदमस्त गांड़ की मालकिन मॉम, स्वर्ग है स्वर्ग है तेरी गांड़ में। घुस गया घुस गया, चीखो मत मां, अब आएगा मजा गांड़ चुदाई का।”
 
“ओह्ह्ह्ह् राक्षस, मरी जा रही हूं मैं।”

“न न न, ऐसी अशुभ बात नहीं बोलते लंडखोर। देख मुझे कितना मजा आ रहा है, तेरी गांड़ मेरा लौड़ा चूस रही है, वाह।”

“तेरा लंड मेरा्आ्आ्आ्आ्आ गांड़ फाड़ रहा है मादरचोद।” अबतक पीड़ा से बेहाल थी।

“हट हरामजादी, फाड़ रहा है, ड्रामा कर रही है गांड़ की गुनिया। न जाने कितने लंड खा चुकी है इसी गांड़ में साली गांड़ चोदी।” दरिंदगी की पराकाष्ठा थी यह मेरे लिए। मेरी कमर को वहशी जानवर ने इतनी सख्ती से जकड़ा था कि मानो उसके पंजे मेरी चमड़ी के अंदर धंसे जा रहे हों। उसी पाशविक पकड़ के साथ उसने जो एक बार मेरी गांड़ की कुटाई शुरू की तो एकबारगी मैं दहल उठी।

“धीरे, धीरे रे कसाई। ओह्ह्ह्ह् ओह्ह्ह्ह्।” मै सचमुच परेशानी में थी। लेकिन वह तो जंगली जानवर बन चुका था। एक बार शुरू हुआ तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रोबोट की तरह गचागच ठोके जा रहा था, कूटे जा रहा था मेरी गुदा का गूदा निकालने पर अमादा था वह।

“न न न न, अब कहां धीरे। ऐसे में बड़ा्आ्आ्आ्आ मजा्आ्आ्आ्आ आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह रहा है। ले ले ले ले ले मेरा्आ्आ्आ्आ्आ लौड़ा खा अपनी गांड़ मे। ओह ओह आह आह आह। तू भी मजा ले।”

“मजा? आह्ह्ह्ह्ह् साले मजा? दर्द दे कर मजा?”

“अब चुप रह।” ओह अब कुछ ही मिनटों पश्चात मैं भी संभोग का लुत्फ उठाने में सक्षम हो गयी। दर्द काफूर हो गया। मीठा मीठा दर्द जरूर था, शायद मेरी गांड़ का अंदरूनी हिस्सा छिल गया था, इतने मोटे और लंबे सूखे सूखे लिंग को ग्रहण करने के प्रयास में। खैर जो भी हो, थोड़ी जलन के साथ लंड के घर्षण का अद्भुत आनंद आ रहा था।

“आह्ह्ह्ह्ह्, ओह्ह्ह्ह्, चोद मां के चोदू बेटे चोद, मेरी गांड़ का भुर्ता बना आह्ह्ह्ह्ह् मां के लौड़े।” अब आ रहा था मजा। ओह्ह्ह्ह्, पीड़ा के पश्चात स्वर्गीय सुख की अनुभूति। उत्तेजना के आवेश में मैं भी अपनी गांड़ उछालने लगी।

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“देख, देख मेरी गांड़मरानी मां को भी आया जोश। वाह वाह, ये हुई चुदासी मां की असलीयत। हां हां हां, ऐसे ही चुदती रह मेरी कुतिया मां।” खुशी के मारे चहक उठा वह। और जोश खरोश के साथ मेरी गांड़ का तिया पांचा करने में लीन हो गया। बीच बीच में मेरी चूत में उंगली भी करता जा रहा था। आनंद देना सीख गया था मेरा चोदू बेटा। मैं अब निहाल थी, सुख के सागर में डुबी चुदी जा रही थी। यह चुदाई कुछ अधिक ही लंबा चला। कभी उल्टा करके, कभी सीधा करके, कभी गोद में उठा कर, चोदे जा रहा था मुझे। यह चुदाई विशेष कर मेरी गुदा पर ही केंद्रित थी, किंतु रह रह कर तीन बार झड़ चुकी थी इस दौरान। समय का हमें पता ही नहीं चला। मेरी गांड़ का फालूदा बनाने के बाद फचफचा कर अपने वीर्य से सराबोर कर दिया। उफ्फ्फ्फ्फ्फ वह रात, रात भर में मेरे जिस्म को निचोड़ कर रख दिया क्षितिज ने। सवेरे तक इसी तरह कामक्रीड़ा का दौर रुक रुक कर पांच बार चला। वह तो पता नहीं कहां से इतनी शक्ति पाया था, छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था मुझे। हर संभव तरीके से मेरे जिस्म का उपभोग करता रहा, करता रहा, अंततः मेरा शरीर अर्धबेहोशी की अवस्था में पहुंच गया। ऐसा लग रहा था कि तीन चार चुदाई के बाद मेरे निर्जीव शरीर को चोद कर अपनी कसर निकालने पर आमादा हो। थक कर चूर, नुची चुदी, निचुड़ी, मसली, बेजान सी, हिलने डुलने से भी लाचार वाली अवस्था थी मेरी। क्षितिज, उसकी चुदाई तो अंतहीन चलती ही चली सुबह तक। सांढ़ था सांढ़, पूरा चुदक्कड़ मशीन।

खैर, सवेरा हुआ, चुदाई बंद हुई, मेरी जान में जान आई। वह तो मुझे नोच खसोट कर, चोद चाद कर मदमस्त चाल में चल दिया। जाने के पहले मुझे चूम कर बोला, “आह्ह्ह्ह्ह् मॉम, यू आर रीयली ग्रेट। जाने का मन नहीं कर रहा है।”

“जाओगे क्यों नहीं?”

“हां जाना तो है ही।” मायूसी से बोला।

“हां, दैट्स लाईक अ गुड बॉय।”

फिर वह चला अपने कमरे में जाने की तैयारी करने के लिए। इधर मैं किसी प्रकार उठी, लड़खड़ाते कदमों से बाथरूम तक गयी और शॉवर चला कर उसके नीचे पसर गयी। पांच मिनट तक शॉवर के नीचे उसी तरह बेजान सी पसरी रही। फिर किसी प्रकार सारी शक्ति जोड़कर उठी और क्षितिज के जाने की तैयारी में व्यस्त हो गयी। नाश्ते के बाद वह जाने के पहले मुझे अपनी बांहों में कस कर जकड़ लिया और एक प्रगाढ़ चुम्बन मेरे होंठों पर अंकित कर दिया, हरिया और करीम के सम्मुख ही। बेशरम कहीं का। जितने दिन था, तूफान मचाता रहा और कल रात तो मानो पागल ही हो गया था। बिल्कुल निचोड़ कर रख दिया था मुझे।
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इसके बाद फिर उसे किसी सहायता या निर्देश की आवश्यकता नहीं रही। पढ़ाई पूरी करने के पश्चात एक बड़ी गैर सरकारी इंजीनियरिंग संस्थान में सहायक अभियंता के पद पर पदस्थापित होने के दो साल बाद ही तरक्की पा कर वरीय अभियंता के पद पर आसीन हो गया। कई लड़कियां और औरतें उसकी जिंदगी में आई और गयीं, लेकिन शादी व्याह के लफड़े से दूर ही रहना पसंद था उसे, इसलिए आजतक वह आजाद पंछी बनारहा। अब भी जब जी चाहता, मेरी देह में डुबकी लगा लेता था, जो कि अबतक बदस्तूर जारी है।
 
पिछली कड़ी में आप लोगों ने पढ़ा कि रश्मि को उसके भाई के यहां छोड़ आने के बाद दूसरे दिन क्षितिज अपने कॉलेज वापस जाने की बात सोच कर तनिक विचलित था। उसे स्त्री संसर्ग का चस्का लग गया था। पहले मेरे शरीर के माध्यम से उसके कौमार्य का भंग होना, फिर रेखा के तन का उपभोग और तीसरी, खूबसूरत रेखा की ननद रश्मि, तीन तीन औरतों के तन का स्वाद चख कर पूरा औरतखोर बन चुका था। नया नया चुदक्कड़ और उस पर भी किस्मत का इतना धनी कि तीन दिनों में तीन अलग अलग औरतों से संभोग का सौभाग्य। पिछली रात की तो बात ही मत कीजिए। छुट्टी की आखरी रात मेरे लिए कयामत की रात बना गया। रात भर पागलों की तरह नोचता खसोटता, झिंझोड़ता, निचोड़ता, भंभोड़ता, क्या क्या नहीं किया मेरे तन के साथ, बस प्राण निकालने की कसर छोड़ गया मेरा चोदू बेटा। उफ्फ्फ्फ्फ्फ भगवान, यादगार रात बना गया। अब आगे –

उसके जाने के बाद मुझे दफ्तर भी जाना था। उसकी छुट्टी के कारण उसके साथ समय बिताने हेतु मैं भी छुट्टी में थी। निश्चित था कि काफी सारा काम मुह बाए मेरा इंतजार कर रहा होगा, उस पर रात भर के घमासान चुदाई से थक कर चूर, अनिद्रा के कारण लाल लाल आंखें लिए हुए, अलसाए शरीर के साथ मजबूरी में दफ्तर जाने को वाध्य थी। गयी मैं, और किसी तरह अपने को संभाल कर छुट्टी के दौरान जमा कार्यों को निबटाने हेतु भिड़ गयी। काफी सारे क्लाईंट्स के प्रोजेक्ट्स से संबंधित कागजातों का निरीक्षण करने के पश्चात उनमें से जिन प्रोजेक्ट्स का अंतिम स्वरूप सामने आया, उनके अनुबंध हेतु प्रारूप के कागजात तैयार करने हेतु निर्देश देने का काम संपन्न कर तनिक विश्राम की अवस्था में बैठी रही आंखें बंद किए हुए। पता ही नहीं चला कि कब मेरी आंख लग गयी। अचानक किसी की आवाज से मेरी आंख खुली। सामने कमलेश खड़ा था, मेरा सहयोगी, जो मेरे अंतर्गत मेरा कार्य देखता था। उपप्रबंधक शेखर सिन्हा जी आज नहीं थे, जो दफ्तर के कार्य से बाहर गये हुए थे, इसलिए कमलेश सीधे मेरे पास आया था। वह पैंतीस साल का सामान्य सा युवक था लेकिन अपनी प्रखर बुद्धिमत्ता की मैं कायल थी। व्यवहार कुशल और हर प्रकार के कार्यों (दफ्तर या दफ्तर के बाहर) में दक्ष था।

“क्या हुआ मैडम? तबीयत आपकी ठीक नहीं लग रही है?” पूछा वह।

“नहीं, बस रात को ठीक से सो नहीं पायी, इस कारण थोड़ी आलस सी लग रही है।”

“कोई समस्या?”

“नहीं, कोई समस्या नहीं है। आज मेरे बेटे क्षितिज को वापस जाना था, उसी की तैयारी में व्यस्त थी।” कैसे बताती उसे कि क्षितिज की पाशविक कामपिपाशा को झेलती रही रात भर।

“ओके, चाय मंगा लेता हूं।”

“हां यह ठीक है।”

कमलेश ने पैंट्री में चाय का आर्डर दिया और बोला, “हां तो मैं यह कह रहा था कि चेन्नई वाला प्रोजेक्ट आपकी छुट्टी के कारण रुका हुआ है। आप बोलिए तो उनसे मीटिंग फिक्स करूँ?”

“ओह श्योर। लेकिन नायर साहब कब आ पाएंगे वह देख लो फिर बताना।” शिवालिंगम नायर, एक इंजीनियर प्रतिनिधि था उस फर्म का। सिर्फ मेल के द्वारा ही उनके प्रोजेक्ट का प्रस्ताव आया था। व्यक्तिगत तौर पर वे कभी हमारे दफ्तर नहीं आए थे।

“बताना क्या है, वे तो कब से आने की सोच रहे थे, सिर्फ आप के ज्वॉईन करने का इंतजार कर रहे थे।”

“ओह ऐसा? ठीक है फिर देख लो तुम, जैसा होता है मुझे इत्तिला कर देना।” चाहती तो थी आराम करना, लेकिन मजबूरी थी। मोटा आसामी था। बड़ा प्रोजेक्ट था। एक इजीनियरिंग फर्म की नयी शाखा खड़ी करने का प्लान था। इतनी देर में चाय आ गयी। चाय पी कर मैं थोड़ी तरोताजा महसूस कर रही थी। कमलेश भी मेरे साथ चाय पी कर नायर साहब से मीटिंग फिक्स करने अपनी कुर्सी पर चला गया। करीब बारह बजे के करीब कमलेश पुनः मेरे पास आया।

. “मैडम, कल सुबह की मीटिंग फिक्स हुई है। वैसे तो वे आज ही शाम फ्लाईट से आ जाएंगे। कल सुबह दस बजे का समय ठीक है?”

“हां हां यह ठीक है।” मैंने राहत की सांस ली। सोच रही थी कि आज जल्दी ही दफ्तर से रुखसत हो जाऊं। अगर आते ही नायर साहब मीटिंग के लिए हामी भरते तो मुझे थोड़ी परेशानी हो जाती। ऐसी मीटिंग में काफी समय निकल जाता है, क्योंकि कई सारी नयी नयी बातें निकल कर आती हैं और मीटिंग खिंचती ही चली जाती है। हमें हर पहलुओं पर गौर करना होता है और उससे संबंधित काफी सारी जानकारियों को रेकॉर्ड करना होता है, ताकि फूलप्रूफ प्लान तैयार हो सके। खैर शाम चार बजे तक मैं काफी हद तक पेंडिंग कार्यों को निबटा चुकी थी। दफ्तर से रुखसत हो कर जब मैं घर लौट रही थी तो लोआडीह चौक के पास मैंने देखा एक पागल जैसे दिखने वाले अधेड़ व्यक्ति को कुछ लोग बेरहमी से पीट रहे थे। उस पागल जैसे दिखने वाले व्यक्ति की तरफ से कोई विरोध नहीं था, चुपचाप मार खा रहा था। मैं सड़क के किनारे कार खड़ी की और उनके पास पहुंची।
 
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