desiaks
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“ओह तो यह बात है, बहुत खूब। सच कहा तुमने हम सब ऐसे ही हैं। आपसी संबंधों में कोई लाग लपेट नहीं। ढंका छुपा कुछ नहीं। हमारे बीच जो शारीरिक संबंध है, उसमें शारीरिक भूख मिटाने की ललक के साथ ही साथ एक भावनात्मक जुड़ाव है, हम सब एक दूसरे की भावनाओं की, इच्छा आकांक्षाओं की कद्र करते है। भावनात्मक लगाव है लेकिन कोई बंधन नहीं है। हम सब स्वतंत्र हैं, अपनी मर्जी के मालिक। हम अपने अंदर की बात छुपाते नहीं। मुझे खुशी हुई हमारे बारे में तुम्हारे विचार जान कर।”
“हां यह मेरे दिल की गहराई से कहे गये इमानदार उद्गार हैं और यह निश्चय ही प्रशंसनीय है।”
“तो हम इसका मतलब क्या समझें?” करीम उतावला हो रहा था।
“क्या मतलब?” रश्मि जानबूझकर अनजान बनते हुए बोली।
“वही जो अभी अभी मैं कह रहा था।”
“क्या कह रहे थे?”
“हमें भी मौका देने की बात।” बेसब्र बुड्ढा, साला हरामी बेटीचोद। इतनी खूबसूरत औरत पास में बैठी खुले सेक्स पर खुल कर विचार दे रही थी और प्रशंसा कर रही थी, सुनकर तो दोनों बूढ़ों की बांछें खिल रही थी। सब समझ रही थी मैं उनकी हालत, खड़ूस चूतखोरों के लंड निश्चित तौर पर सिर्फ सिग्नल का इंतजार कर रहे थे, उधर हां हुआ नहीं कि बस एकदम से हल्ला बोल वाली स्थिति थी। तनिक पशोपेश में थी रश्मि, क्या हां बोलूं? क्या इन बूढ़ों से भी चुद कर देख लूं? इतनी देर में जिस तरह की बातें हो रही थीं, तन में वासना की आग तो सुलग ही चुकी थी। वैसे भी वह देख चुकी थी हरिया ने किस मर्दानगी का परिचय दिया था मुझे चोदते हुए। बूढ़े का दम देख चुकी थी। दमदार बूढ़ा। करीम को देखकर साफ साफ पता चल रहा था कि वह भी हरिया से किसी भी मायने में कम नहीं है। करीम के साथ साथ हरिया भी कितनी आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा था। दोनों के दोनों की भूखी नजरें रश्मि के खूबसूरत देह पर टिकी हुई थीं। मैं और क्षितिज भी रश्मि के उत्तर की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्षितिज को चिंता नहीं थी कि रश्मि का उत्तर क्या होगा। अगर सहमत हुई बूढ़ों से चुदने के लिए, तो मैं तो थी ही उसकी चुदासी कामुक मां, अनुभवी, मस्त, चुदने हेतु सुलभ, उसकी अदम्य कामपिपाशा को बखूबी शांत करने में पूर्णतया सक्षम। और अगर ना हुई तो रश्मि की कमनीय देह का रसास्वादन करने का एक और अवसर मिलना तय था। मेरी हालत भी ठीक वैसी ही थी। उत्तेजित, चुदने को बेताब, लंड चाहे किसी का भी हो, बूूढ़ों का या जवान क्षितिज का।
“हां।” सन्नाटे को भंग करती हुई रश्मि की सहमति थी।
“वाह।” करीम तुरंत बोल उठा।
“यह हुई बात।” हरिया खुशी के मारे उछल पड़ा।
“दोनों?” रश्मि अकचका उठी।
“हां दोनों।” दोनों एकसाथ बोल उठे।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक ही जन।” रश्मि हड़बड़ा उठी।
“नहीं, दोनों।” हरिया बोला।
“हां हां दोनों।” करीम बोला।
“यह क्या्आ्आ्आ्आ? प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज एक जन।”
“नहीं, दोनों। वह भी एक साथ।” हरिया बोला।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक साथ नहीं।” तनिक घबरा उठी थी रश्मि।
“हम दोनों एक साथ खाना पसंद करते हैं।”
“नहीं प्लीज, एक एक करके।”
“हम दोनों साथ रहते हैं तो एक साथ ही करते हैं।” करीम बोला।
“पर मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।”
“पहले नहीं हुआ तो अब होगा।” वहशियाना अंदाज में बोला हरिया।
“कैसे?” घबराहट स्पष्ट दिख रहा था रश्मि के चेहरे पर।
“ऐसे।” दोनों बूढ़े टूट पड़े रश्मि पर।
“हाय राम, प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज छोड़िए मुझे।” उनकी सम्मिलित पकड़ से छटपटाती रश्मि घिघिया उठी।
“हाथ आई चिडिय़ा को ऐसे कैसे छोड़ दें रानी। हां बोली न।” करीम उसकी चूचियों को दबोच कर बोला।
“प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज ऐसे नहीं।” रश्मि उनके चंगुल में फड़फड़ा उठी।
“ऐसे नहीं तो और कैसे? ऐसे?” हरिया उसे चूमता हुआ बोला। दोनों के बीच रश्मि पिस रही थी।
“हाय मैं कहां फंस गयी।” रश्मि बेबस थी।
“फंसी नहीं पगली, स्वर्णिम अवसर मिला तुम्हें।” मैं उसकी हालत पर मुस्कुराते हुए बोली।
“हाय, यह कैसा अवसर? मार डालेंगे ये बूढ़े।” रश्मि रोनी सी आवाज में बोली।
“मरोगी नहीं बेवकूफ, बड़ा मजा आएगा।”
“ये कैसा मजा हरामजादी।” चिढ़ गयी वह।
“ये ऐसे नहीं मानेगी। जो करना है करो हरामी बूढ़ों। जबरदस्ती करो। दिखा दो इसे अपनी मरदानगी, और वह मजा दो कि यह खुद बोले, चोदो राजा चोदो।” मैं खीझ कर बोली। चुदने को मैं खुद मरी जा रही थी और इधर यह ड्रामा।
“हां यह मेरे दिल की गहराई से कहे गये इमानदार उद्गार हैं और यह निश्चय ही प्रशंसनीय है।”
“तो हम इसका मतलब क्या समझें?” करीम उतावला हो रहा था।
“क्या मतलब?” रश्मि जानबूझकर अनजान बनते हुए बोली।
“वही जो अभी अभी मैं कह रहा था।”
“क्या कह रहे थे?”
“हमें भी मौका देने की बात।” बेसब्र बुड्ढा, साला हरामी बेटीचोद। इतनी खूबसूरत औरत पास में बैठी खुले सेक्स पर खुल कर विचार दे रही थी और प्रशंसा कर रही थी, सुनकर तो दोनों बूढ़ों की बांछें खिल रही थी। सब समझ रही थी मैं उनकी हालत, खड़ूस चूतखोरों के लंड निश्चित तौर पर सिर्फ सिग्नल का इंतजार कर रहे थे, उधर हां हुआ नहीं कि बस एकदम से हल्ला बोल वाली स्थिति थी। तनिक पशोपेश में थी रश्मि, क्या हां बोलूं? क्या इन बूढ़ों से भी चुद कर देख लूं? इतनी देर में जिस तरह की बातें हो रही थीं, तन में वासना की आग तो सुलग ही चुकी थी। वैसे भी वह देख चुकी थी हरिया ने किस मर्दानगी का परिचय दिया था मुझे चोदते हुए। बूढ़े का दम देख चुकी थी। दमदार बूढ़ा। करीम को देखकर साफ साफ पता चल रहा था कि वह भी हरिया से किसी भी मायने में कम नहीं है। करीम के साथ साथ हरिया भी कितनी आशापूर्ण दृष्टि से देख रहा था। दोनों के दोनों की भूखी नजरें रश्मि के खूबसूरत देह पर टिकी हुई थीं। मैं और क्षितिज भी रश्मि के उत्तर की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। क्षितिज को चिंता नहीं थी कि रश्मि का उत्तर क्या होगा। अगर सहमत हुई बूढ़ों से चुदने के लिए, तो मैं तो थी ही उसकी चुदासी कामुक मां, अनुभवी, मस्त, चुदने हेतु सुलभ, उसकी अदम्य कामपिपाशा को बखूबी शांत करने में पूर्णतया सक्षम। और अगर ना हुई तो रश्मि की कमनीय देह का रसास्वादन करने का एक और अवसर मिलना तय था। मेरी हालत भी ठीक वैसी ही थी। उत्तेजित, चुदने को बेताब, लंड चाहे किसी का भी हो, बूूढ़ों का या जवान क्षितिज का।
“हां।” सन्नाटे को भंग करती हुई रश्मि की सहमति थी।
“वाह।” करीम तुरंत बोल उठा।
“यह हुई बात।” हरिया खुशी के मारे उछल पड़ा।
“दोनों?” रश्मि अकचका उठी।
“हां दोनों।” दोनों एकसाथ बोल उठे।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक ही जन।” रश्मि हड़बड़ा उठी।
“नहीं, दोनों।” हरिया बोला।
“हां हां दोनों।” करीम बोला।
“यह क्या्आ्आ्आ्आ? प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज एक जन।”
“नहीं, दोनों। वह भी एक साथ।” हरिया बोला।
“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं, एक साथ नहीं।” तनिक घबरा उठी थी रश्मि।
“हम दोनों एक साथ खाना पसंद करते हैं।”
“नहीं प्लीज, एक एक करके।”
“हम दोनों साथ रहते हैं तो एक साथ ही करते हैं।” करीम बोला।
“पर मेरे साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।”
“पहले नहीं हुआ तो अब होगा।” वहशियाना अंदाज में बोला हरिया।
“कैसे?” घबराहट स्पष्ट दिख रहा था रश्मि के चेहरे पर।
“ऐसे।” दोनों बूढ़े टूट पड़े रश्मि पर।
“हाय राम, प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज छोड़िए मुझे।” उनकी सम्मिलित पकड़ से छटपटाती रश्मि घिघिया उठी।
“हाथ आई चिडिय़ा को ऐसे कैसे छोड़ दें रानी। हां बोली न।” करीम उसकी चूचियों को दबोच कर बोला।

“प्लीईईईईईईईज्ज्ज्ज ऐसे नहीं।” रश्मि उनके चंगुल में फड़फड़ा उठी।
“ऐसे नहीं तो और कैसे? ऐसे?” हरिया उसे चूमता हुआ बोला। दोनों के बीच रश्मि पिस रही थी।
“हाय मैं कहां फंस गयी।” रश्मि बेबस थी।
“फंसी नहीं पगली, स्वर्णिम अवसर मिला तुम्हें।” मैं उसकी हालत पर मुस्कुराते हुए बोली।
“हाय, यह कैसा अवसर? मार डालेंगे ये बूढ़े।” रश्मि रोनी सी आवाज में बोली।
“मरोगी नहीं बेवकूफ, बड़ा मजा आएगा।”
“ये कैसा मजा हरामजादी।” चिढ़ गयी वह।
“ये ऐसे नहीं मानेगी। जो करना है करो हरामी बूढ़ों। जबरदस्ती करो। दिखा दो इसे अपनी मरदानगी, और वह मजा दो कि यह खुद बोले, चोदो राजा चोदो।” मैं खीझ कर बोली। चुदने को मैं खुद मरी जा रही थी और इधर यह ड्रामा।