desiaks
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“क्या बात है? क्यों मार रहे हो आपलोग इसे?” मैं उस आठ दस लोगों की भीड़ में से एक युवक से पूछी।
“यह बच्चा चोर है। बच्चा चोरी करने आया था।”
“तो पकड़ कर पुलिस को दे दो न, पीट क्यों रहे हो?”
“आप समझती नहीं हैं, जाईए अपना काम कीजिए।” दूसरा व्यक्ति बोल उठा। उस कथित बच्चा चोर की हालत बहुत बुरी थी। नाक मुह से खून निकल रहा था। बाल बिखरे हुए थे, शरीर पर अच्छे ही कपड़े थे। उसकी दयनीय अवस्था मुझ से देखी नहीं गयी।
“रुको। छोड़ो इसे।” मैंने उनसे कहा।
“नहीं छोड़ेंगे साले को। मार के यहीं लटका देंगे साले को। बच्चा चोरी करता है मादरचोद” एक आवारा टाईप युवक बोला। उसके बात करने के लहजे और लफ्जों से मुझे भी गुस्सा आ गया।
“क्या बोला?”
“बच्चा चोर बोला, मादरचोद बोला, और तुम हो कौन हमें रोकने वाली, जा अपना काम कर सा….” ढिठाई और अकड़ से बोल रहा था किंतु उससे आगे बोल नहीं पाया, मेरा एक जन्नाटेदार झापड़ उसकी बांयी गाल पर पड़ा, दिन में तारे दिख गये उसे।
“एक औरत से बात करने की तमीज नहीं और सजा देने चले हो हराम के जने। तुमलोग होते कौन हो किसी को सजा देने वाले? मैं पुलिस बुलाती हूं अभी।” गुस्सा आ गया था मुझे।
“पुलिस बुलाएगी मां की लौड़ी। अभी बताता हूं तुझे।” कहते हुए उसका साथी युवक मेरी ओर बढ़ा। मैंने आव देखा न ताव, उसके दाएं हाथ की कलाई को सख्ती से पकड़ा और पलक झपकत घूम गयी, इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसका शरीर हवा में उड़ता हुआ जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा था। यह धोबी पाट था, मेरी पीठ और कंधे के ऊपर से होता हुआ सीधा धड़ाम से जमीन पर गिर कर कराह उठा।
बाकी सभी लोग खुद ब खुद रुक गये।
“शराफत की भाषा तुम लोगों को तो समझ ही नहीं आती है। और कोई है?” मैं क्रोध से उनको घूरती हुई बोली। रणचंडी बन चुकी थी मैं। जो लोग मुझे जानते हैं उन्हें पता है कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या कर सकती हूं। उसके बाद फिर कोई आगे नहीं बढ़ा।
“लेकिन मैडम यह बच्चा चोर है।” सहमा हुआ सा उनमें से एक बोला।
“कैसे मालूम?”
“एक बच्चे को लेकर जा रहा था।”
“कहां है बच्चा?”
“वो रहा।” एक किनारे एक सात आठ साल का बच्चा खड़ा रो रहा था।
मैं उस बच्चे के पास गयी और बड़े प्यार से पूछी, “बेटा, क्या नाम है तेरा?” मेरे काफी आश्वस्त करने के पश्चात बोला, “जी हरीश।”
“ये कौन हैं?” मैं उस घायल व्यक्ति की ओर इशारा करके पूछी।
“बड़े पापा।” उसकी बात सुनकर सन्नाटा छा गया। वह आवारा टाईप लड़का और जमीन पर पड़ा उसका दोस्त भागने की फिराक में थे।
“पकड़ो सालों को,” मैं चीखी। बाकी लोगों ने उन्हें पकड़ लिया। “इन्हें पहचानते हो?” मैंने बच्चे से पूछा।
“हां, रमेश भईया और उसका दोस्त।”
“हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं, तो ये बात है।” मैंने पांडे जी को फोन करके बुला लिया और पूरी बात बता कर उन दोनों लड़कों को उनके हवाले कर दिया। बच्चे को भी पुलिस बल अपने साथ ले गयी। ये सब कांटा टोली के रहने वाले थे। उस घायल व्यक्ति के बारे में पता चला कि उसका नाम रामलाल था, पचपन साल का था। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। शादीशुदा नहीं था, अपने पैतृक आवास पर ही छोटे भाई पर आश्रित था। पारिवारिक संपत्ति के विवाद के कारण उसके बड़े भाई और उनकी संतान उससे और छोटे भाई से बैर रखते थे। यह घटना उसी की परिणति थी।
“पांडे जी, मैं इसे हॉस्पिटल ले जा रही हूं। आप इनके घर में खबर कर दीजिएगा।” कहकर उपचार हेतु रामलाल को अपनी कार में लेकर हॉस्पिटल चली गई। हॉस्पिटल में आवश्यक जांच मे कोई गंभीर चोट नहींं पाई गयी, अतः प्राथमिक उपचार के पश्चात उसे छुट्टी मिल गयी। इतने में उसका छोटा भाई भी हॉस्पिटल पहुंच गया। उसका नाम घनश्याम लाल है। अपने भाई की कुशलता जानकर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा।
“शुक्रिया मेरा नहीं, ऊपर वाले का कीजिए, जिस कारण मैं मौके पर पहुंची, वरना वे बदमाश इनकी क्या हाल करने वाले थे यह तो ऊपरवाला ही बेहतर जानता है।” कहकर मैं वहां से चलने लगी, लेकिन घनश्याम जिद करने लगा कि मैं उनके घर चलूं। मजबूरन मुझे उनके घर जाना पड़ा। चाय पी कर मैं वहां से निकल ही रही थी कि रामलाल मेरी चुन्नी पकड़ लिया।
“यह क्या रामलाल जी, छोड़िए मेरी चुन्नी।”
“नहीं, आप मत जाईए।” रामलाल बच्चों की तरह बोलने लगा।
“रामलाल जी, मुझे अपने घर जाना है।” बच्चे की तरह समझा रही थी मैं।
“नहीं, आप यहीं रुक जाईए ना।” किसी अबोध बालक की तरह ठुनकते हुए बोल उठा वह।
“ऐसे थोड़ी न होता है। मेरे घरवाले इंतजार कर रहे हैं ना।” मैं मनुहार करने लगी।
“तो मैं भी चलूंगा आपके साथ।”
“दादा, बहनजी से ऐसे जिद न कीजिए।” घनश्याम बोल उठा।
“यह बच्चा चोर है। बच्चा चोरी करने आया था।”
“तो पकड़ कर पुलिस को दे दो न, पीट क्यों रहे हो?”
“आप समझती नहीं हैं, जाईए अपना काम कीजिए।” दूसरा व्यक्ति बोल उठा। उस कथित बच्चा चोर की हालत बहुत बुरी थी। नाक मुह से खून निकल रहा था। बाल बिखरे हुए थे, शरीर पर अच्छे ही कपड़े थे। उसकी दयनीय अवस्था मुझ से देखी नहीं गयी।
“रुको। छोड़ो इसे।” मैंने उनसे कहा।
“नहीं छोड़ेंगे साले को। मार के यहीं लटका देंगे साले को। बच्चा चोरी करता है मादरचोद” एक आवारा टाईप युवक बोला। उसके बात करने के लहजे और लफ्जों से मुझे भी गुस्सा आ गया।
“क्या बोला?”
“बच्चा चोर बोला, मादरचोद बोला, और तुम हो कौन हमें रोकने वाली, जा अपना काम कर सा….” ढिठाई और अकड़ से बोल रहा था किंतु उससे आगे बोल नहीं पाया, मेरा एक जन्नाटेदार झापड़ उसकी बांयी गाल पर पड़ा, दिन में तारे दिख गये उसे।
“एक औरत से बात करने की तमीज नहीं और सजा देने चले हो हराम के जने। तुमलोग होते कौन हो किसी को सजा देने वाले? मैं पुलिस बुलाती हूं अभी।” गुस्सा आ गया था मुझे।
“पुलिस बुलाएगी मां की लौड़ी। अभी बताता हूं तुझे।” कहते हुए उसका साथी युवक मेरी ओर बढ़ा। मैंने आव देखा न ताव, उसके दाएं हाथ की कलाई को सख्ती से पकड़ा और पलक झपकत घूम गयी, इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसका शरीर हवा में उड़ता हुआ जमीन पर चारों खाने चित्त पड़ा था। यह धोबी पाट था, मेरी पीठ और कंधे के ऊपर से होता हुआ सीधा धड़ाम से जमीन पर गिर कर कराह उठा।
बाकी सभी लोग खुद ब खुद रुक गये।
“शराफत की भाषा तुम लोगों को तो समझ ही नहीं आती है। और कोई है?” मैं क्रोध से उनको घूरती हुई बोली। रणचंडी बन चुकी थी मैं। जो लोग मुझे जानते हैं उन्हें पता है कि ऐसी परिस्थिति में मैं क्या कर सकती हूं। उसके बाद फिर कोई आगे नहीं बढ़ा।
“लेकिन मैडम यह बच्चा चोर है।” सहमा हुआ सा उनमें से एक बोला।
“कैसे मालूम?”
“एक बच्चे को लेकर जा रहा था।”
“कहां है बच्चा?”
“वो रहा।” एक किनारे एक सात आठ साल का बच्चा खड़ा रो रहा था।
मैं उस बच्चे के पास गयी और बड़े प्यार से पूछी, “बेटा, क्या नाम है तेरा?” मेरे काफी आश्वस्त करने के पश्चात बोला, “जी हरीश।”
“ये कौन हैं?” मैं उस घायल व्यक्ति की ओर इशारा करके पूछी।
“बड़े पापा।” उसकी बात सुनकर सन्नाटा छा गया। वह आवारा टाईप लड़का और जमीन पर पड़ा उसका दोस्त भागने की फिराक में थे।
“पकड़ो सालों को,” मैं चीखी। बाकी लोगों ने उन्हें पकड़ लिया। “इन्हें पहचानते हो?” मैंने बच्चे से पूछा।
“हां, रमेश भईया और उसका दोस्त।”
“हूं्हूं्हूं्हूं्ऊंऊं्ऊं्ऊं, तो ये बात है।” मैंने पांडे जी को फोन करके बुला लिया और पूरी बात बता कर उन दोनों लड़कों को उनके हवाले कर दिया। बच्चे को भी पुलिस बल अपने साथ ले गयी। ये सब कांटा टोली के रहने वाले थे। उस घायल व्यक्ति के बारे में पता चला कि उसका नाम रामलाल था, पचपन साल का था। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। शादीशुदा नहीं था, अपने पैतृक आवास पर ही छोटे भाई पर आश्रित था। पारिवारिक संपत्ति के विवाद के कारण उसके बड़े भाई और उनकी संतान उससे और छोटे भाई से बैर रखते थे। यह घटना उसी की परिणति थी।
“पांडे जी, मैं इसे हॉस्पिटल ले जा रही हूं। आप इनके घर में खबर कर दीजिएगा।” कहकर उपचार हेतु रामलाल को अपनी कार में लेकर हॉस्पिटल चली गई। हॉस्पिटल में आवश्यक जांच मे कोई गंभीर चोट नहींं पाई गयी, अतः प्राथमिक उपचार के पश्चात उसे छुट्टी मिल गयी। इतने में उसका छोटा भाई भी हॉस्पिटल पहुंच गया। उसका नाम घनश्याम लाल है। अपने भाई की कुशलता जानकर मेरा शुक्रिया अदा करने लगा।
“शुक्रिया मेरा नहीं, ऊपर वाले का कीजिए, जिस कारण मैं मौके पर पहुंची, वरना वे बदमाश इनकी क्या हाल करने वाले थे यह तो ऊपरवाला ही बेहतर जानता है।” कहकर मैं वहां से चलने लगी, लेकिन घनश्याम जिद करने लगा कि मैं उनके घर चलूं। मजबूरन मुझे उनके घर जाना पड़ा। चाय पी कर मैं वहां से निकल ही रही थी कि रामलाल मेरी चुन्नी पकड़ लिया।
“यह क्या रामलाल जी, छोड़िए मेरी चुन्नी।”
“नहीं, आप मत जाईए।” रामलाल बच्चों की तरह बोलने लगा।
“रामलाल जी, मुझे अपने घर जाना है।” बच्चे की तरह समझा रही थी मैं।
“नहीं, आप यहीं रुक जाईए ना।” किसी अबोध बालक की तरह ठुनकते हुए बोल उठा वह।
“ऐसे थोड़ी न होता है। मेरे घरवाले इंतजार कर रहे हैं ना।” मैं मनुहार करने लगी।
“तो मैं भी चलूंगा आपके साथ।”
“दादा, बहनजी से ऐसे जिद न कीजिए।” घनश्याम बोल उठा।