Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा - Page 37 - SexBaba
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Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा


“हाय, हम कहां फंस गये।” मैं बेबसी का दिखावा करती हुई बोली। मेरी बातें सुनकर सभी हंस पड़े। अबतक रफीक नंगा हो चुका था। दिन की रोशनी में उस काले टकले दढ़ियल, लिक्कड़ पहलवान का शरीर बड़ा अजीब लग रहा था। उसकी जांघों के बीच उसका साढ़े छ: इंच लंबा काला, खतना किया हुआ लिंग उठक बैठक कर रहा था।

“अब का हुकुम है?” रफीक बोला।

“अब ई भी बताना होगा हरामी, उतार हमारे कपड़े और करले जो करना है।” पैर पटकती हुई कांता बोली। कहने की देर थी कि रफीक ने कांता पर ऐसा झपट्टा मारा जैसे बाज किसी चिड़िया पर। पलक झपकते कांता नंगी हो गयी। साली छटंकी सी दिखने वाली कांता कम सेक्सी नहीं थी। चेहरे से ज्यादा आकर्षक तो उसके तन का गठन था। सख्त उन्नत उरोज, पतली कमर, उभरे हुए नितंब और और और नाभी से नीचे, सामने काले काले झांट और नीचे चमचमाती चिकनी योनि। योनि चीख चीख कर उसके लंडखोर होने की चुगली कर रही थी। मैं अंदर ही अंदर गनगना उठी। उफ्फ, मेरा नंबर कब आएगा, इंतजार कुछ अधिक ही लंबा हो रहा था। मेरी योनि पनिया उठी थी अबतक।

“अब काहे चाट रहा है मादरचोद। ठूंस अपना लौड़ा मेरी गांड़ में। चोद हरामी चोद।” उधर उत्तेजित मुंडू के मुख से निकला। हमारा ध्यान उधर गया तो क्या देखते हैं, मंगरू, जिसे मुंडू की गांड़ चोदने का लाईसेंस मिल गया था, मुंडू की गुदा और अपने तनतनाए लिंग पर थूक लसेड़ कर अच्छी तरह से मुंडू की कमर धर के एक ही धक्के में सरसरा कर पूरा का पूरा लिंग धांस दिया।

“आ्आ्आ्आ्ह” मुंडू की आह निकल गयी। मुंडू गांडू, गांड़ मरवाने का अभ्यस्त, आराम से अपनी गांड़ में खा गया मंगरू का विशाल लिंग, आनंद से उसकी आंखें बंद थीं।

“ले स्स्स्स्स्आल्ल्ल्ले गांडू, हुम्म्म्म्आ्आ्आ्।” उसकी स्त्रियों समान उभरे सीने के उभारों को मसलते हुए मंगरू ठूंस दिया जड़ तक अपना लिंग उसकी गुदा में।

“चोद मेरे गांड़ के रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आह साले चोद।” मुंडू आनंदित हो कर बोला।

“हां महाराज, चोद रहे हैं, ले ले ले।” कहते हुए कुत्ते की तरह कचकचा कर चोदने लगा।

“अरे टकले दढ़ियल हलकट, उधर का देख रहा है, हमको कर ना। कब से मरे जा रहे हैं लंड खाने के लिए।” कमीनी, लंडखोर कांता कलकला कर बोली। और फिर क्या था, बिना किसी भूमिका के रफीक पिल पड़ा कांता पर। वहीं फर्श पर कांता को पटक कर चढ़ बैठा उस पर, उसके दोनों पैरों को सरका कर सट्टाक से अपना लपलपाता लिंग उसकी लसलसी योनि में उतार दिया।

“ले साली कुत्ती, ले आ्आ्आ्आ्ह।” रफीक की कमर नें जुंबिश ली और लो, हो गया कांता का उद्धार।

“आह मादरचोद, ओह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आह,” कांता मुदित हो कर अपनी अपने पैरों से रफीक की कमर को लपेट ली और संभोग के सुखद संसार में गोते खाने लगी। शुरू हो गयी उनकी छपाक छैंया।

“सबके सब हरामी, एक नंबर के हरामी हैं। हम नहीं खेलते यह गंदा खेल।” मैं बोली और उठने को हुई।

“जाती कहां है बुरचोदी अब। साली रंडी खेलने आई है, खेलना तो होगा ही। चल सलीम पत्ते फेंक।” बोदरा अब अपनी औकात पर आ चुका था, मुझे पकड़ कर जबरदस्ती बैठाते हुए बोला। अब बचे थे तीन कुली, जिनके नाम बुधुवा, हीरा, बोयो, मिस्त्री बोदरा, सलीम और रेजा सोमरी। सलीम पत्ते बांटने लगा। इस बार तीन गुलाम एक के बाद एक निकले। पता है? कौन कौन थे? बुधुवा, हीरा और मैं। तीन गुलाम।

“नहीं, हम नहीं।” मैं फिर विरोध करने लगी।

“चुप साली रंडी। एकदम चुप। चल, अब तू भाग नहीं सकती खेल के बीच में खेल छोड़कर। बुधुवा, हीरा और तू गुलाम। चल सलीम आगे बांट पत्ते, देखें तो बादशाह कौन है?” बोदरा डांट कर बोला। उत्तेजना के मारे बुरा हाल था उसका और यही हाल मेरा भी था। परिणाम निकलते ही मेरी योनि खुद ब खुद पानी छोड़ने लगी। सलीम नें पत्ता बांटा और बादशाह बना बोदरा, उसके मनोनुकूल परिणाम था। उछल ही तो पड़ा। न जाने कब से इसी ताक में था। तुरंत बोला, “चल, तीनों के तीनों अपने कपड़े उतारो।”

“नहीं, हम नहीं।” मैं बोली।

“चल रे बुधुवा और हीरा, धर साली को और उतार इस रंडी के कपड़े। कब से फड़फड़ा रही है, हम नहीं हम नहीं।” कहते हुए खुद अपने कपड़े खोलने में व्यस्त हो गया। इधर बुधुवा और हीरा मुझ पर टूट पड़े। दोनों के दोनों, काले कलूटे अठाईस तीस की उम्र के साढ़े पांच फुट कद वाले गठे मजदूर, मुझे दबोच कर पलक झपकते साड़ी ब्लाऊज से मुक्त कर दिया। पुरानी, गंदी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाऊज, जल्दबाजी और खींच तान कर खोलने के क्रम में खुलते खुलते कई जगह चरचरा कर फटती चली गयी। उफ्फ्फ। खोलते खोलते वे हरामजादे, मेरे वक्षों को और नितंबों को दबाने से भी बाज नहीं आ रहे थे।

“नहीं, छोड़ो हमें।”
 

“हां हां, नहीं छोड़ेंगे। अईसे भी ई तो महाराज का हुकुम है। छि:, बहुत गंदी है रे तू, कैसी तो महक रही है, मगर है मस्त माल।” नाक सिकोड़ता बुधुवा बड़ा खुश नजर आ रहा था। इधर बोदरा को कहां सब्र, इससे पहले कि मैं पूर्ण वस्त्रविहीन होती, वह मादरजात नंगा हो चुका था। साला चुदक्कड़ बौना। बौना बनमानुष हरामी। मेरी फटी चड्ढी, जिससे मेरी फूली हुई योनि झांक रही थी और बमुश्किल पहनी गयी फटी ब्रा, जिससे मेरे उरोज छलक कर बाहर आने को बेताब, देख कर फटी की फटी रह गयीं उन सबकी आंखें।

“वाह वाह। साली छिनाल, इतने मस्त बदन को लेकर भिखमंगी बनी पड़ी है। सलीम भाई, लॉटरी निकली है रे, देख तो जरा, मैडम से एक पैसा कम नहीं है। एक नंबर की लंडखोर लग रही है और बड़ी शरीफजादी बन रही थी हरामजादी। लंडखोर मैडम की लंडखोर बहिन।” बोदरा मुझे ऊपर से नीचे लार टपकाती नजरों से देखते हुए बोला। उसका सात इंच का मोटा मूसल मेरे सामने सलामी दे रहा था। गनगना उठी मैं। मैं बुधुवा और हीरा की पकड़ में छटपटा रही थी।

“नहींंईंईंईंईंईंईंईं, हम अईसे नहीं हैं। छोड़ दो छोड़ दो हमें। बरबाद मत करो हमें।” मैं गिड़गिड़ाने लगी, लेकिन मेरी नजरें बोदरा के लिंग पर ही गड़ी थीं।

“अब क्या बरबाद? आबाद हो जाएगी रे। देख उधर मंगरू को, मुंडू को कईसे चोद रहा है। देख उधर रफीक को, कांता को कईसे चोद रहा है। देख के मजा नहीं आ रहा है? इधर मेरा लंड देख, इसी से देंगे, ऐसा ही मजा देंगे हम भी। अरे बेटीचोद बुधुवा और हीरा, अब बोलना पड़ेगा कि तुमलोग भी नंगे हो जाओ?” बोदरा भूखे भेड़िए की तरह मेरी ओर बढ़ता हुआ बोला।

“इसका चुचकसना और चड्ढी?”

“फाड़ दे, फटी तो हईए है।” कहने की देर थी कि पलक झपकते मेरी ब्रा और पैंटी की दुर्दशा हो गयी। पल भर में मेरी ब्रा और पैंटी चरचरा कर धूल चाटने लगी।

“हाय रा्आआ््आआम”, हो गयी मैं मादरजात नंगी। गंदे शरीर के बावजूद चमक उठी मेरी कमनीय काया। मेरे उन्नत, भरे भरे उरोज अपने पूरे शबाब पर दमक उठे। मेरी पनिया उठी फूली, फुदकती योनि चमक रही थी। मेरे गुदाज नितंबों की छटा से सम्मोहित हो उठे सब के सब। संभोगरत मंगरू और रफीक भी गर्दन घुमा कर मेरे चित्ताकर्षक जिस्म को ललायित नजरों से घूर रहे थे।

“गजब, साली के बदन को देखो तो, मैडम से कुछ भी अलग है का? चूची एकदम फुटबॉल है, मां की लौड़ी बुरचोदी, तब से कैसे शरीफ बन रही थी। चूत को देखो, लगता है किसी गधे से चुदवाती रहती है, बड़ी सती सावित्री बन रही थी। इसकी चूत पर सूखी मलाई? ई का है? लगता है कल ही खूब चुदवाई है रंडी कहीं की, साली बुरचोदी। गोल गोल चिकना चर्बीदार गांड़ देख ई रंडी का।” कहते हुए मुझ पर किसी बाज की तरह झपट पड़ा साला बौना बनमानुष।

“ऊ रंडी को ही देखते रहोगे कि चोदोगे भी साले चूतखोर बेटीचोद मां के लंड।” कांता इस आनंदमय संभोग के पलों में रफीक के लिक्कड़ शरीर से गुंथी क्षणिक विराम से कलकला कर बोली। और जारी रहा उसके तन का मर्दन, नुचाई, चुदाई, घिसाई।

“और तू मादरचोद मंगरू, रुक नहीं, चोदता रह चोदता रह, आह ओह्ह्ह्ह्ह्ह।” वासना के सैलाब में बहते व्यवधान से तड़पता मुंडू तिलमिला कर बोला। और धपाधप, फचाफच होती रही उसके गांड़ की कुटाई। इधर मुझे लिए दिए बोदरा सोफे पर चढ़ बैठा।

“बस बस, अब मैडम आए न आए, फरक नहीं। ई मैडम से किसी बात में कम नहीं है। समझ लेंगे मैडम ही को चोद रहे हैं। कल मैडम की गांड़ चोदा, आज समझ लेंगे कि मैडम की बुर को चोद रहे हैं। अब मैडम आए न आए, हमारे लौड़े से, यही है आज हमारी रंडी मैडम। साली कुतिया कितनी बुरी महक रही है, लग रहा है जैसे न जाने कितने दिन से नहीं नहाई है। हमारे रेजा लोग भी इतना नहीं महकते हैं। साली भिखमंगी कहीं की, मगर चलेगा, खूब चलेगा। साली भिखमंगी की तरह गंदी, मगर बदन तो देखो हरामजादी की, खूब मस्त पायी है। मजा आ गया, अहा ओहो।” किलक रहा था।

“हट, हट, नहीं नहीं। न करो, ओह मां, ओह कहां फंस गये हम, हाय हाय, मत करो ना, छोड़ दो आह्ह।” मैं उस बौने के नीचे पिसती हुई बेबस, रोने गिड़गिड़ाने का अभिनय करने लगी।

“छोड़ दें? ऐसे कैसे छोड़ दें। अभी तो तू मेरी गुलाम है। गुलाम को ऐसे कैसे छोड़ दें। हमारी मरजी। जो चाहे करेंगे। पहले हम चोदेंगे, फिर हमारे गुलाम हीरा और बुधुवा भी चोदेंगे। हम समझ गये हैं कि तू कितनी बड़ी लौड़ाखोर है। अब रोने चिल्लाने का कोई नाटक नहीं चलेगा हरामजादी।” बोदरा मेरे यौनांगों को मसलते हुए बोला।

“ठीक, ठीक, ई एकदम मैडम ही लग रही है। मैडम की तरह रंडी। तू चोद, फिर हम भी आते हैं इनको निपटा के।” सलीम बोल उठा और पत्ते बांटने लगा बचे हुए लोगों के बीच। बोयो और सलीम बने गुलाम और सोमरी बनी बादशाह, या यों कहें बेगम।
 

“बहुत देर से नंबर आया। अब देर काहे? चल रे सलीम, शुरू हो जा। तब से ई सबका तमाशा देख देख के बदन में आग लगा हुआ है। जल्दी कर मादरचोद। साड़ी उठा के चोद हमको। और तू बोयो, हमारा दूध पियो, लो।” कहते हुए खुद ही अपना ब्लाऊज खोल बैठी। बिना ब्रा के थी वह। थलथला कर उसके किलो किलो भर के बड़े बड़े थन बेपर्दा हो गये। कहने की देर थी कि बोयो टूट पड़ा उसके स्तनों पर और बारी बारी से चीपने लगा और चपाचप चूसने लगा। बिना पैंटी की झांटों भरी चर्बीदार चूत, साड़ी उठते ही नुमायां हो उठी। और फिर क्या था, सलीम नें भी कमीज उतारने की जहमत नहीं उठाई, चड्ढी समेत तुरंत ही पैंट नीचे सरका कर चढ़ दौड़ा सोमरी के काले गोल मटोल गठीले शरीर पर। ये तीनों अबतक न जाने कैसे अपने को नियंत्रण में रखे हुए थे। गुत्थमगुत्था हो गये और जंगली जानवरों की तरह नोच खसोट पर उतर आए। उफ पूरा ड्राईंग रूम कामुकता का अखाड़ा बन चुका था। उधर मंगरू मुंडू, कांता रफीक की धींगामुश्ती, इधर सलीम, बोयो और सोमरी के बीच धकमपेल और मैं?

“आ्आ्आ्आ्ह, ननननहीं्ई्ई्ई्ई्ईं्ईं्ई़,” चीख पड़ी मैं, जब बोदरा अपना मूसल मेरी योनि को चीरता हुआ घुसाता चला गया, घप्प से। आप लोगों को बताने की आवश्यकता नहीं कि यह मेरा नाटक था। बुधुवा और हीरा मेरे तन को नोचने खसोटने, रगड़ने घसड़ने, चूमने चाटने और और अपनी दरिंदगी भरी हरकतों से मुझे हलकान करने में पीछे नहीं थे।

“चिल्ला, खूब चिल्ला, हर्र्र्र्र्र्रा्आ्आ्आ्आमजादी। आ्आ्आ्आ्ह ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह।” खूंखार भेड़िए की तरह गुर्रा उठा बोदरा और मेरी छाती में दांत गड़ा बैठा।

“आ्आ्आ्आ्आआ््आआ््आआ मां्आं्आं्आं।” मैं दर्द से बिलबिला उठी। “इस्स्स्स्स्स्स्स मर गय्य्य्य्य्यी्ई्ई्ई्ई। आ्आ्आ्आ्ह बरबाद हो गयी आ्आ्आ्आ्ह।” बोदरा के भीमकाय लिंग से बिंधी मैं रोने लगी, छटपटाने लगी।

“हो गया रे हो गया, बस बस अब तू मजा ले, देख कैसे मजा देते हैं तुम्हें।” बोदरा की आवाज में सहानुभूति कम वहशीयत ज्यादा थी। भूखे भेड़िए को अपना शिकार जो मिल गया था। उसके भीमकाय लिंग को उसकी मंजिल जो मिल गयी थी, स्वर्गीय सुख का मार्ग जो मिल गया था, समागम का, संभोग का, वासना के सुखद समुंदर में डूब डूब कर उतराने का, चुदाई का, कुटाई का। किसी मशीन की तरह मेरी चूतड़ को दबोच कर गचागच चोदने में मशगूल हो गया। दंगल शुरू हो गया और मैं हरामजादी, कमीनी, लंडखोर, गलीज, घटिया कुतिया, हर संभव अभिनय को अंजाम देती हुई मगन, मुदित, उस घृणित कृत्य के हरेक कामुक पलों का रसस्वादन कर रही थी। उसके बाद तो मेरी बेध्यानी में मेरी कमर खुद ब खुद चलने लगी थी। न चाहते हुए भी मेरी सिसकारी निकल पड़ी।

“आ आ आ आ उ उ उ इस इस इस सी्ई्ई्ई्। अम अम इस्स्स्ई्ई्ई।”

“आ रहा है हां हां हां हुम हुम हुम मजा आ रहा है ना है ना आह आह हुं हुं हुं।” धक्के पे धक्का, धकाधक कूटते हुए मेरी चूतड़ों को मसलते हुए हांफते हांफते बोला।

“न्न्न्न्न्नहीं्ईं्ईं्ईं।” मैं मचलते हुए बोली।

“झूठ।”

“नननननहींईंईंईं सच्च्च्च।”

“हट्ट्ट्ट्ट झूठी आह आह।”

“ननननहीं्ई्ई्ई्ई्ईं्ईं्ई़, सच्च्च्चीईईईई।”

“ले ले आ आ ओ ओ ले हुं हुं। झूठ चाहे सच, ले और ले साली रंडी, लौड़ा्आ्आ्आ्आ आह ओह मेरा लौड़ा ले ले ले हुं हुं हुं।”

“नई आह नई ओह नई”

“हां आह हां ओह हां।” करीब बीस मिनट तक बोदरा मुझे झिंझोड़ता रहा, निचोड़ता रहा। उस दौरान मैं हर दस मिनट में झड़ी। ओह और क्या खूब झड़ी। मेरी स्थिति को बखूबी समझ रहा था वह अनुभवी औरतखोर, ठिगना बौना, बनमानुष। मेरे शरीर का अकड़ना, फिर शिथिल होना, उसके कमर पर मेरे पैरों के बंधन का सख्त होना, फिर ढीला होना, मेरा उसके शरीर से चिपकना और निढाल होना, सब समझ रहा था वह औरतखोर। “बन गयी न बुरचोदी आह, बन गयी न रंडी, ओह बन गयी न चूतमरानी रंडी मां की चूत, साली आ्आ्आ्आ्ह आ्आ्आ्आ्ह आ्आ्आ्आ्ह,” कहते हुए मुझसे ऐसे चिपका मानो मेरी सांसें बंद करके ही दम लेगा।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” मैं उसके स्खलन से निहाल, उसके लिंग से उगलते लावे का कतरा कतरा अपनी योनि के अंदर जज्ब करती चली गयी। वह हटा मेरे निढाल शरीर पर से, लेकिन यह अंत नहीं था।

 

“अब तू का देख रहा है मादरचोद बुधुवा। चोद हरामजादी को।” बोदरा के मुंह से निकले अल्फाज अभी पूरे भी नहीं हुए थे कि या अल्ल्ल्ल्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह, बुधुवा सवार, वह चढ़ दौड़ा मुझ पर और इससे पहले कि मैं पल भर भी सुस्ता पाती, भचाक, और लो, मेरे निढाल जिस्म की चुदी चुदाई गीली चूत में दूसरा लंड। छ: इंच का लंड और औसत मोटाई का लंड घुसता चला गया मेरी चुदी चुदाई योनि में सर्र से। कुत्ते की तरह, बिल्कुल जैसे एक कुतिया के पीछे पड़े अपनी बारी का इंतजार करते कुत्ते की तरह लगा भकाभक चोदने, मूक पशु की तरह। यह कसरती चुदक्कड़ कुछ अधिक ही जोश में था। पंद्रह मिनट में ही निपट गया, छर्र छर्र झाड़ बैठा अपना वीर्य। मैं तड़प उठी, क्योंकि अभी मैं झड़ने वाली ही थी कि बुधुवा साला भड़वा, नामर्द फारिग हो गया, लेकिन अभी असली मर्द तो बाकी था।

“हीरा बेटीचोद, चढ़ जा रे चढ़ जा।” बादशाह बोदरा का हुकुम और हो गया मेरी चूत का बंटाधार। मुझे तनिक भी अंदाजा नहीं था कि हीरा सचमुच का हीरा है। काला कलूटा, कद तो करीब साढ़े पांच फुट, लेकिन लिंग? बाप रे बाप, ध्यान नहीं दिया था मैंने कि उसका लिंग करीब दस इंच तक लंबा हो चुका है, मेरी चूत को हलाल करने को।

“लीजिए महाराज, ये ये ये आया हीरा का खीरा।” कूद कर चढ़ा था मुझे भंभोड़ने। सचमुच उसके लिंग के स्थान पर एक भीमकाय खीरा लटक रहा था। किसी गधे के लिंग सरीखा। चुद तो चुकी थी रामलाल तथा अपने निग्रो बॉस के मोटे मोटे लंबे लिंग से, लेकिन आज का चुदना कुछ अलग था। इसे मैंने खुद पर बलात्कार का रुप दे दिया था। अपने ऊपर बलात्कार होते हुए चुदने का रोमांच अलग था।

“नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं्ई।” ज्योंहि हीरा के खीरे का संपर्क मेरी योनि पर हुआ, मैं भयभीत स्वर में चीख उठी।

“साली कुतिया, मेरी बारी आई तो नहीं।” हीरा डांटने लगा। वाह, यह तो कमाल हो गया। कहां तो कल तक मैडम का आदर पा रही थी, आज अचानक मेरे गरीब देहातिन जैसे परिवर्तित व्यक्तित्व को पहचान न पाने के कारण निकृष्ट व्यवहार का शिकार हो रही थी। खैर, यही तो चाहती थी मैं कि मेरे साथ वे बेखौफ, बेझिझक होकर, मनमाफिक व्यवहार करें। वही हो रहा था मेरे साथ। इधर मुझ अतृप्त लंडखोर को और क्या चाहिए था। लेती चली गयी उतना लंबा और मोटा लिंग अपनी अनबुझी वासना की अग्नि में झुलसती योनि में। थक चुकी थी मैं मगर शरीर ही थका था, मन नहीं भरा था। इधर उसका लिंग घुसा नहीं कि मैं तड़प उठी। यह तो पूरा जंगली था। नोच खसोट पर उतर आया। मेरी चूचियों का मलीदा बनाने लगा और मेरी गर्दन के नीचे जोश के मारे दांत गड़ा बैठा।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, नहींंईं्ईं्ईं्ईं्ईं” दर्द से चीख पड़ी मैं। सबकी नजरें मेरी ओर उठी और सभी मेरे तन की दुर्दशा होते हुए मजे से देख रहे थे। मंगरू और रफीक निपट चुके थे अपने अपने संगियों से। अब तक उधर सलीम और बोयो सोमरी की ऐसी की तैसी किये जा रहे थे और इधर मेरे ऊपर तीसरा चुदक्कड़ सवार था। उसके दस इंच लंबे मूसल का अंतहीन प्रहार झेलती मैं सिर्फ पांंच मिनट ही ठहर पाई। वह मुझ पर जिस ढंग से पिला हुआ था, जिस ढंग से ठापों का क्रम था उसका, भक भक भक भक भचाक, भक भक भक भक भचाक, इतना उत्तेजक था कि मैं तुरंत ही खल्लास होने को वाध्य हो गयी। रोक ही नहीं पाई खुद को, उफ्फ्फ, आनंद का पारावार न रहा। झड़ गयी, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह। मगर अभी कहाँ, वह तो डटा हुआ था, लगातार गचागच चोदना चालू था। मैं शिथिल हो रही हूं या डटी हुई हूं, क्या परवाह उसे। करीब आधे घंटे तक कूटता रहा मुझे। थका कर मुझे अर्धमूर्छित अवस्था में पहुंचा दिया उसनें मुझे। नहीं नहीं करती रही, मना करती रही, सिर्फ म़ुह से, शारीरिक भाषा कुछ और कह रही थी, मेरी कमर चल रही थी, खुद ब खुद ऊपर उछल उछल कर लंड खा रही थी। थक रही थी, निचुड़ रही थी, पिस रही थी किंतु चुदती रही, चुदती रही, चुदती चुदती निहाल हो गयी मैं। उस आधे घंटे में मैं तीन बार झड़ी और निर्जीव सी हो गयी। हीरा अंततः पसीने से लतपत, मेरे निर्जीव पड़े शरीर को कचकचा कर कसा और वीर्य का फौव्वारा छोड़ने लगा मेरी कोख में, “आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह, गय्य्य्य्या।” फिर छोड़ा, अलग हुआ मुझ से। तोड़ कर रख दिया था उसने मुझे। मेरी आंखें बंद थीं। मैं लंबी लंबी सांसें ले रही थी। तभी कोई और मुझ पर सवार होने लगा। “उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, नननननहींईंईंईं, और नहीं।” मैं कलप उठी। बमुश्किल आंखें खोल कर देखी, यह मंगरू था। साला हरामी मुंडू की गांड़ चोद कर अब मुझ पर चढ़ दौड़ा था।

 
“क्या नहीं? तुमको नहीं चोदा तो क्या चोदा।” वह मुंडू को चोदने के बाद फिर तैयार हो चुका था। वह छ: फुटा दानव, मेरी निर्जीव देह पर सवारी गांठने का मानों इंतजार ही कर रहा था। “सोचा था मैडम को चोदने का मौका मिलेगा। कोई बात नहीं, मैडम न सही मैडम की बहिन ही सही। मैडम से कम थोड़ी न हो तुम।” बड़ा गंदा था वह। उसके शरीर से बेहद गंदी बास आ रही थी। उसके लिंग पर मुंडू की गुदा से निकला मल भी लिथड़ा हुआ सूख चुका था, वैसे ही गंदा लिंग मेरी चुद चुद कर बेहाल चूत में ठूंसने लगा।

“उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, नननननहींईंईंईं, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” मैं कराह उठी। “यह तो खेल का हिस्सा नहीं है?” विरोध की शक्ति थी नहीं। कितनी गंदी बन चुकी थी मैं। अपनी हालत पर बड़ी घिन हो रही थी मुझे।

“हट रंडी्ई्ई्ई्ई्ई कुत्ती। नहीं बोलती है साली बुरचोदी, चुपचाप चोदने दे। खेल वेल भूल जा कुत्ती कहीं की। अभी तो बाकी लोग भी चोदेंगे तुमको।” कहते हुए मेरे बेजान से शरीर को नोचने खसोटने लगा। मैं बेहाल, नुचती रही चुदती रही। पूरा लिंग सर्र से मेरी योनि मेंं सरका कर सटासट लगा ससेटने। करीब पच्चीस मिनट तक नोचते खसोटते चोदता रहा और जब चोदकर अलग हुआ तो मेरी चूत का भोंसड़ा बन चुका था। मुंडू का सूखा मल अब भीग कर मेरी भोंसड़ा बन चुकी चूत के अंदर बाहर लिथड़ चुका था। छि:, मैं क्या बन चुकी थी। अब तो विरोध की कोई औपचारिकता भी नहीं कर सकती थी। अभी मंगरू हटा, कि रफीक आ चढ़ा। वह लिक्कड़ मादरचोद मेरे जिस्म को ऐसे भंभोड़ने लगा मानो किसी मरे हुए जानवर की लाश भंभोड़ भंभोड़ कर खा रहा हो। उसके निबटते निबटते बोयो आ धमका। बोयो कम कमीना नहीं था। सीधा सादा सा दिखने वाला लौंडा कम हरामी नहीं था। अभी अभी सोमरी को चोद रहा था, अब सोमरी की चूत के रस और खुद के वीर्य से सना लंड मेरे मुंह में ठूंसने लगा।

“नहीं।” मैं बुदबुदाई।

“मुंह खोल हरामजादी।” एक थप्पड़ लगा दिया मेरे गाल पर। बेबस, लाचार, मुंह खोलने में ही भलाई थी। बोयो का गंदा लिंग अब मेरे मुंह में था।

“चूस।”

“ऊं्ऊं्ऊं्ऊ।” यह मना था मेरा। एक झापड़ और पड़ा मेरे गाल पर, और मैं चूसने लगी उसका गंदा लिंग। उबकाई आ रही थी किंतु चूसने को वाध्य थी या ऐसा दिखा रही थी, लेकिन चूसने लगी। दिखा रही थी कि मैं बेबसी में चूसने को वाध्य हूं लेकिन मजा आ रहा था मुझे। वह हरामी इस गलतफहमी में था कि मुझपर जबर्दस्ती कर रहा है और इसमें खुश था वह। इधर अबतक सलीम भी आ पहुंचा था। वह बिना कुछ बोले, यंत्र चालित सा मुझ पर सवार हो कर मेरे भोंसड़ा बन चुके चूत का कचूमर निकालने में मशगूल हो गया। मेरी आंखों से अब बेबसी के आंसू बह निकले, मैं नौटंकीबाज कम थोड़ी न थी। मैं सोच रही थी कि अपनी इस जोखिम भरी अपनी कामुक यात्रा में यह मैं क्या बन गयी। रंडी से भी बदतर स्थिति थी मेरी। जानबूझकर आ बैल मुझे मार वाली कहावत चरितार्थ कर बैठी थी मैं। सिर्फ गों गों की आवाज निकल रही थी मेरे मुंह से। बीस मिनट तक सलीम नें चोदा मुझे और उसके हटते ही बोयो कूदकर चढ़ गया मुझ पर। बोयो ठीक हीरा की तरह ही था। वह भी जंगली कमीना मादरचोद, आव देखा न ताव, भक्क से भोंक बैठा अपना लंड और भकाभक भकाभक लगा चोदने। उफ्फो्ओ्ओ्ह्ह, वे करीब चार घंटे, अंतहीन चार घंटे, करीब करीब मार ही डाला था उन्होंने मुझे। बोयो जब चोद कर हटा तो मैं हिलने डुलने के काबिल भी नहीं रह गयी थी। ऐसी कुतिया की तरह हालत हो गयी थी मेरी, जिसे मुहल्ले के सारे कुत्ते लाईन लगा कर चोद कर हटे हों।

“हो गया तेरा? बड़ी आई थी खेलने” कांता मजा लेते हुए बोल रही थी। मैं बड़ी मुश्किल से आंखें खोली। देखी, सभी मेरे चारों ओर खड़े संतुष्ट, मुस्कुरा रहे थे। नुच चुद कर बेहाल थी, मगर तृप्त थी और मैं मन ही मन हंस रही थी उनको बेवकूफ बनाते हुए अपनी मनोकामना पूर्ण करने में सफलता हासिल करने पर।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” मेरी कराह निकली। बोल नहीं पायी कुछ।

“हो गया रे चांदनी। अब तू चांदनी से हो गयी हमारी चोदनी।” सलीम बोला।

“हां, हम सबकी चोदनी।” बोदरा बोला।

“लेकिन मैडम अब तक नहीं पहुंची।” रफीक बोला।

“का फरक पड़ता है। मजा तो खूब किया। एक और चोदनी जो मिल गयी। देख इसकी चूचियों को, चूत को, गांड़ को, मस्त माल मिली चोदने को।” सलीम बोला।

“अरे एक बज रहा है। खाना का क्या होगा?” यह मंगरू था।

“अबे मादरचोद, तुमको खाने की पड़ी है साले पेटू।” रफीक बोला। मैं कराहती हुई दाहिने हाथ से टेबुल की ओर इशारा किया।

“क्या है?”

 

“मोओओबा्आई्ईल।” बड़ी मुश्किल से बोल फूटे मेरे मुंह से। कांता अजीब नजरों से देखती हुई टेबल से मोबाइल ले आई। मैंने एक रेस्टोरेंट का नंबर लगाया और सबके खाने का ऑर्डर दिया। सभी बड़े चकित थे। किंकर्तव्यविमूढ़ थे। क्या मैं अबतक उन्हें बेवकूफ बना रही थी? अपने अपने स्थान में वे जम से गये थे। ऑर्डर देकर मैं फिर लुढ़क गयी। करीब एक घंटे बाद मैं थोड़ी संभली। अबतक वे पशोपेश में थे। मैंने उन्हें इत्मीनान रखने का आश्वासन दिया हाथ के इशारे से और उन्हें बैठने का इशारा करते हुए लड़खड़ाते कदमों से अपने कमरे की ओर बढ़ी। जब मैं कमरे से बाहर आई, मैं बदल चुकी थी, अब मैं चांदनी नहीं, कामिनी थी। लेकिन मेरी चाल बदली हुई थी। चुदी जो थी कुतिया की तरह। चूत की चटनी जो बन चुकी थी। बुर का भुर्ता जो बन चुका था।

. “अरे मैडम?”

“हां मैं, चांदनी।” सन्नाटा सा छा गया वहां। “क्या हुआ?”

“ककककुछ नननननहींईंईंईं।”

“अरे बेवकूफो, अगर मैं मैडम ही रहती तो तुमलोग खुलकर नहीं खेलते ना मेरे साथ।”

“हां, वो तो है।” सलीम खिसियानी हंसी हंस रहा था।

“तभी दरवाजे की घंटी बजी, खाना आ चुका था। अबतक ये लोग आधे अधूरे कपड़ों में थे, अतः मैं ही खाने के पैकेट्स को रिसीव करके अंदर आई। अब सभी खुल चुके थे। कोई झिझक शरम नहीं थी।

“कपड़े मत पहनो तो भी चलेगा।” मैं बोली। “बोलो तो मैं भी खोल देती हूं अपने कपड़े।” मैं उनके उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर नंगी हो गयी। अब मैं दमक रही थी लेकिन मेरी योनि फूल कर कुप्पा बनी हुई थी। मेरी देखा देखी वे भी नंगे हो गये।

“ठीक है, ठीक है, चलो शाम तक कोई कपड़े नहीं पहनेगा।” सलीम घोषणा कर बैठा।

“ठीक है।” सब सहमत थे। सब बेशरमों की तरह आदमजात नंगे, आपस में ठिठोली करते हुए खाने की मेज पर आए। मैं सोच रही थी, अपने हवस की आग बुझाने की नित नये प्रयोग नें मुझे कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया था। इन रेजाओं से बदतर हालत हो गयी थी मेरी। रेजाओं से क्यों, वेश्याओं से भी बदतर हो गयी थी मैं। पता नहीं क्या सोच रहे होंगे सब मेरे बारे में, लेकिन मैं बेफिक्र थी। नुचती रही, पिसती रही, चुदती रही लेकिन जानती थी कि सबकुछ मेरे नियंत्रण में ही था। मैं कोई अतिरिक्त जोखिम में थी भी नहीं, यदि मुझे लगता कि मेरे नियंत्रण से बाहर जा रहा है सबकुछ, तो खुद की असलियत प्रकट करके बचने का मार्ग तो था ही। खैर उसकी नौबत नहीं आई। अच्छी बात हुई, रोमांच का रोमांच और मजा का मजा। तकलीफदेह ही सही, अपनी क्षमता का आंकलन तो कर ही चुकी थी। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, सात सात मर्द, बारी बारी से अपने अपने तरीके से भोगा मुझे, नोचा, रगड़ा, निचोड़ा लेकिन वाह रे मैं कंबख्त रांड, झेल गयी सफलतापूर्वक। गर्व की अनुभूति हो रही थी। सोमरी और कांता के लिए यह एक अविश्वसनीय दृष्य था। जलन और ईर्ष्या से मुझे घूर रही थीं। अब भी, सबके सम्मुख बेशर्मी से नंगी बैठी मजे में बेझिझक बातें कर रही थी। हमारे बीच की सारी दूरियां, झिझक खत्म हो चुकी थी। मैं उन्हीं मजदूरों के समकक्ष खुद को पेश करने में सक्षम हो चुकी थी। ऊंच नीच का भेदभाव खत्म हो चुका था। वे स्वतंत्रता पूर्वक मुझसे चुहल कर रहे थे।

खाना खाते खाते, सलीम बोला, “तो मैडम…..”

“न न न मैडम नहीं।” मैं बीच में ही बात काट बैठी।

“अच्छा, कामिनी जी।”

“नहीं, ‘जी’ नहीं।”

“अच्छा, कामिनी।”

“नहीं, कामिनी नहीं।”

“फिर?”

“चांदनी।” मैं बोली।

“नहीं।” बोदरा बोला, शैतानी उसकी आंखों में नाच रही थी।

“फिर?” मैं सशंकित हुई।

“चोदनी।” बोदरा बोला। सभी ठठाकर हंस उठे। हंसते हुए कांता और सोमरी की चूचियां हिल रहे थे। मैं हंस पड़ी। “ठीक है, आज से मैं तुम लोगों की चोदनी।” मैं सहमत थी अपने नये नामकरण पर। “अरे तुमलोग भी कुछ बोलो ना। खुल के बोलो। जो मन में है बोल डालो।” कांता और सोमरी की ओर देखती हुई बोली।

“का बोलें? चोदनी कहीं की।” मेरी असलियत जानकर झेंपती, वाचाल कांता का अब मुह खुला।

“हां, ये हुई न बात।”

“लंडखोर।” अब सोमरी का भी मुंह खुला।

“कुत्ती, बुरचोदी।” अब कांता बिंदास हो गयी।

“और ये हरामजादे कौन हैं?” मैं मर्दों को दिखा कर हंसते हुए पूछी।

“ई सब कुत्ते हैं, औरतखोर कुत्ते। औरत देखा नहीं कि लंड खड़ा, सब के सब मादरचोद एक नंबर के।” अब सोमरी भी रंग में आ गयी।

“अच्छा यह बताओ, तुम सब एक तरह के लोग इस ठेकेदार के हाथ कैसे लगे?” मैं पूछ बैठी।

“ई हम बताएंगे, लेकिन खाना खाने के बाद।” इतनी देर से चुप गांडू मुंडू बोला।

आगे की कथा अगली कड़ी में। तबतक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए।

 
पिछली कड़ी में आपलोगों नें पढ़ा कि किस तरह मैं अपनी कामक्षुधा में अंधी हो कर एक खुराफाती फैसला ले बैठी। अपने तन की वासना पूर्ति हेतु नित नये रोमांचक, जोखिम भरे अन्वेषण के क्रम में अपने नये भवन के निर्माण कार्य में लगे कामगरों से संसर्ग की घृणित मनोकामना के वशीभूत खुद को परोस देने का मन बना बैठी। जोखिम भरे ऐसे रोमांचक तरीके इजाद करके अपनी वासना की भूख मिटाना मेरी फितरत बन चुकी थी और इसमें मुझे एक अलग तरह का आनंद प्राप्त होता था। इसे संयोग कहें या ऊपरवाले की योजना, पहले मिस्त्री सलीम के सम्मुख गोदाम में समर्पण कर बैठी, फिर उसके सहयोगी तीन मिस्त्रियों के संग पुनः उसी गोदाम के गंदे स्थल में अपने तन को निहायत ही निकृष्ट ढंग से नुचवा बैठी। इतने से ही मन न भरा हो जैसे, सलीम और उसके सहयोगी मिस्त्रियों के घृणित प्रस्ताव, कि बाकी मजदूरों संग भी रंगरेलियां मना लूं, स्वीकार बैठी। वैसे भी सब मजदूर एक से एक कसरती शरीर वाले, खासकर छ: फुटा, हट्ठा कट्ठा मंगरू, सोच कर ही रोमांंचित हो उठी। बाकी कामगरों संग भी वासना का घृणास्पद खेल खेलने की तीव्र इच्छा मन के अंदर कुलांचे भरने लगी। अंततः शैतान जीत गया। दूसरे ही दिन, रविवार, छुट्टी का दिन, सबको आमंत्रित कर बैठी। योजनाबध्द तरीके से सब व्यवस्था हो गया। घर के तीनों पुरुषों को ऊपरवाले नें खुद ही गायब करके मुझे खुली छूट दे दी। जा, जो मर्जी कर, बन जा छिनाल। बस ऊखल में सिर डाल बैठी। पहचान गुप्त रख कर सामान्य से भी निचले वर्ग की स्त्री का रूप धर कर उन वासना केे खिलाड़ी कामगरों के समूह के सम्म्मुख प्रस्तुत हुई।

आगे जो होना था उसकी कमान सलीम मिस्त्री के हाथों में थी। ताश के पत्तों की सहायता से सबको गुलाम और बादशाह में तब्दील करके वासना का नंगा नाच करने के लिए छोड़ दिया। मैं नादान बनी उस खेल में शरीक हुई और उन सबके हाथों की कठपुतली बन गयी। परिणाम यह हुआ कि विरोध का दिखावा करते करते हरेक उपस्थित कामुक भेड़ियों का शिकार बनती चली गयी। कुल मिला कर सात लोगों नें मेरे साथ बारी बारी से संभोग किया। अब वे घटिया लोग, जिनकी नजरों में स्त्री एक भोग्या के अतिरिक्त और कुछ नहीं थी, एक एक करके मेरे जिस्म का मनमाफिक ढंग से रसपान करते गये और मुझे अधमरी करके रख दिया। उन्हें क्या पता था कि जिसे एक गंदी देहातिन समझ कर अपनी कामुकता का शिकार बना रहे हैं वह दरअसल उस घर की मालकिन है। अच्छा ही था, इस तरह वे खुल कर मेरे साथ बदतमीजी से पेश आ रहे थे, खुल कर मेरे साथ मनोनुकूल व्यवहार कर रहे थे, वरना शायद मैं उस रोमांचक आनंद से वंचित रह जाती। उन अनपढ़ गंवार लोगों की वहशियाना नोच खसोट और बलात्कार सरीखे संभोग में पीड़ामय आनंद पा कर निहाल हो उठी। उस वासना के तूफान के शांत होते होते मैं अर्धमूर्छित अवस्था में पहुंच गयी थी, लेकिन किसी प्रकार खुद को संभालने में सक्षम हो गयी।

अपने को पूर्णतः लुटा कर अंत में मैंने अपनी पहचान पर से पर्दा हटा दिया। सुनकर एकाएक वे सन्न रह गये, लेकिन यह समझ कर कि यह सबकुछ मेरी खुद की मर्जी से हुआ है, प्रसन्नता के मारे खिल उठे। अब हमारे बीच कोई बड़े छोटे का दीवार नहीं था। अब देखिए, हम सब बेशरमों की तरह बिल्कुल नंगे, खाना खाने में लीन थे। खाना खाते खाते, सलीम बोला, “तो मैडम…..”

“न न न मैडम नहीं।” मैं बीच में ही बात काट बैठी।

“अच्छा, कामिनी जी।”

“नहीं, ‘जी’ नहीं।”

“अच्छा, कामिनी।”

“नहीं, कामिनी नहीं।”

“फिर?”

“चांदनी।” मैं बोली।

“नहीं।” बोदरा बोला, शैतानी उसकी आंखों में नाच रही थी।

“फिर?” मैं सशंकित हुई।
 

“चोदनी।” बोदरा बोला। सभी ठठाकर हंस उठे। हंसते हुए कांता और सोमरी की चूचियां हिल रहे थे। मैं हंस पड़ी। “ठीक है, आज से मैं तुम लोगों की चोदनी।” मैं सहमत थी अपने नये नामकरण पर। “अरे तुमलोग भी कुछ बोलो ना। खुल के बोलो। जो मन में है बोल डालो।” कांता और सोमरी की ओर देखती हुई बोली।

“का बोलें? चोदनी कहीं की।” मेरी असलियत जानकर झेंपती, वाचाल कांता का अब मुह खुला।

“हां, ये हुई न बात।”

“लंडखोर।” अब सोमरी का भी मुंह खुला।

“कुत्ती, बुरचोदी।” अब कांता बिंदास हो गयी।

“और ये हरामजादे कौन हैं?” मैं मर्दों को दिखा कर हंसते हुए पूछी।

“ई सब कुत्ते हैं, औरतखोर कुत्ते। औरत देखा नहीं कि लंड खड़ा, सब के सब मादरचोद एक नंबर के।” अब सोमरी भी रंग में आ गयी।

“अच्छा यह बताओ, तुम सब एक तरह के लोग इस ठेकेदार के हाथ कैसे लगे?” मैं पूछ बैठी।

“ई हम बताएंगे, लेकिन खाना खाने के बाद।” इतनी देर से चुप गांडू मुंडू बोला। इसी तरह चुहलबाजी करते हुए हमने खाना खाया। खाना खाने के बाद हम सब उसी तरह नंगे बैठ गये ड्राईंग रूम में। मैंने ही मना किया था कपड़े पहनने से। ऐसा लग रहा था मानों हम सब सभ्यता से कोसों दूर आदिम युग के मानव हों। पुरुषों की नजरें हम स्त्रियों की नग्न देह पर, खास कर यौनांगों पर ही चिपकी थीं। उसी प्रकार हम स्त्रियों की नजरें भी पुरुषों की नग्न देह पर, खासकर उनके यौनांगों पर जमी हुई थीं। स्पष्ट था कि कुछ विश्राम के पश्चात हम फिर गुत्थमगुत्था होने वाले थे। लेकिन अब कुछ हद तक कमान अब मेरे हाथों में थी। कुछ हद तक का मतलब यह था कि उनकी स्वतंत्रता मैं भी हनन नहीं करना चाहती थी वरना मैं अपने मकसद से शायद कुछ दूर ही रह जाती।

“हां, तो मुंडू, अब बोल, क्या बोल रहा था।” मैंने बात शुरू की।

“क्या बोल रहा था?”

“वही, तुम सब, एक जैसे कमीनों का समूह कैसे बना?”

“ओह, वह बात? तो सुनिए।”

“‘सुनिए’ नहीं, ‘सुन’।” मैं तत्काल बोली।

“अच्छा बाबा सुन। सबसे पहले हम मंगरू से मिले। यह आज से करीब दस साल पहले का बात है।”

“नहीं, एकदम शुरू से।”

“क्या मतलब?”

“मतलब, जब से तुझे गांड़ मरवाने की आदत लगी, तब से।” मैं बीच बोली और सभी हंस पड़े।

“हां हां, वहां से, वहां से।” सब एक स्वर में बोल उठे। एक पल को मुंडू रुका। फिर बोलने लगा:-

“ई सब शुरू हुआ स्कूल समय से। बीस साल पहले से। तब हम दसवीं में पढ़ते थे। हम क्लास में सबसे सुंदर थे। सब दोस्त हमको छेड़ते थे, मेरा छाती दबा देते थे, मेरा गांड़ दबा देते थे, मेरा गाल नोच लेते थे। हमको बहुत शरम लगता था लेकिन अच्छा भी लगता था। हमको लड़की लोगों के साथ खेलना अच्छा लगता था। हमारे क्लास में एक लड़का था रोहित। पढ़ने लिखने में एक नंबर का फंटूश। वह हम सबसे उमर में बड़ा था लेकिन एक नंबर का बदमाश था। नौवीं में फेल हुआ, फिर दसवीं में दो बार फेल होकर हमारे ही क्लास में था। हम उस समय पंद्रह साल के थे और रोहित करीब अठारह साल का था। वह हमेशा ही मेरे पीछे पड़ा रहता था।वह हम सबसे बहुत ज्यादा चलाक और गंदा था। गंदा गंदा किताब रखता था अपने पास।”

“गंदा किताब मतलब?” मैं पूछी।

“गंदा किताब मतलब औरत मरद का चोदा चोदी वाला कहानी किताब, फोटो वाला।”

“अच्छा, फिर?” हमारी उत्सुकता बढ़ गयी।

“हमारा घर स्कूल से ज्यादा दूर नहीं था। हम पैदल ही स्कूल जाते थे। एक दिन शाम को स्कूल से छुट्टी के बाद घर लौट रहे थे तो रोहित भी मेरे पीछे पीछे आ गया। स्कूल और घर के बीच एक बहुत पुराना बड़ा सा टूटा फूटा खंडहर था। जैसे ही हम उस खंडहर के पास से गुजरने लगे, रोहित पीछे से मेरे पास आया और बोला, “अरे कैलाश, रुक न।”

“काहे?” मैं बोला।

“चल तुझे एक चीज दिखाते हैं।” वह बोला। हम उससे पीछा छुड़ाना चाहते थे, इसलिए रुके नहीं। वह मेरी बांह पकड़ कर उस खंडहर की ओर ले चला।

“नहीं, हम घर जाएंगे।” मैं उसके हाथ से छूटने की कोशिश करने लगा। लेकिन वह हमसे दुगना ताकतवर था। हमें करीब करीब घसीट कर खंडहर में ले आया।

“चल बैठ यहां।” एक चबूतरे पर जबर्दस्ती बैठा दिया।

“नहीं हम जाएंगे।”

“अरे चले जाना, जरा बैठ तो।”

“जल्दी दिखाओ, क्या दिखाना है।” हम पीछा छुड़ाना चाहते थे।

वह अपना स्कूल बैग खोला और उसमें से एक किताब निकाला और हमें देते हुए बोला, “ले देख।” हम उसके हाथ से किताब लेकर जैसे ही पहला पन्ना खोले, देख कर शरम से पानी पानी हो गये। दो आदमी नंगे थे और एक दूसरे को चूम रहे थे।
 

“यह क्या है?” हम बोले।

“अरे आगे तो देख।” वह बोला। हम अगला पन्ना खोले। उसमें एक आदमी दूसरे आदमी का नुनु चूस रहा था।

“नुनू क्या?” मुझे और सभी को मजा आ रहा था।

“नुनू मतलब लौड़ा।” मुंडू बोला।

“ठीक है आगे बोलो।”

उस फोटो को देख कर हम बोले “छि:”, जबकि हमें देखने में मजा आ रहा था।

“छि: क्या, आगे तो देख।” कहते हुए रोहित मेरे बगल में बैठ गया। हमने अगला पन्ना खोला तो मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। इसमें उनके लौड़े बड़े बड़े और खड़े थे, दोनों एक दूसरे के लौड़ों को पकड़े हुए थे। हमारे सारे शरीर मेंं सुरसुरी होने लगी। हमें शरम भी आ रहा थी।

“आगे देख।” रोहित बोला और पन्ना पलट दिया। हे भगवान, यहां देखा तो एक आदमी एक लड़के को गोद में उठा कर उसकी गांड़ में लौड़ा डाला हुआ था। हम आंखें फाड़े देखते रह गये। वह छोटा सा, करीब हमारी उमर का ही लड़का था, जिसकी गांड़ में एक पचास साठ साल के बुड्ढे का लंड घुसा हुआ था। उस लड़के को वह बूढ़ा चूम रहा था। वह लड़का आंखें बंद किये हुए खुश दिख रहा था। इधर हमें पता नहीं क्या हो रहा था, हम समझ नहीं पा रहे थे। हमारे सारे बदन में चींटियां दौड़ रही थीं। हमनें महसूस किया कि रोहित का दाहिना हाथ मेरी कमर से लिपट गया था और उसने धीरे से मेरा बांया हाथ अपने पैंट के ऊपर से ही ठीक अपने लौड़े के ऊपर रख दिया।

“ई का कर रहे हो?” हम बोले, मगर हाथ नहीं हटाए। हम शरमा रहे थे मगर मना नहीं कर पा रहे थे। ऐसा लग रहा था रोहित नें हमपर जादू कर दिया है और हम उसके काबू में चले गये थे। अब रोहित धीरे धीरे मेरी छाती दबाने लगा। हमें बड़ा अच्छा लग रहा था। वह मेरे गाल को चूमने लगा। हमें यह भी बहुत अच्छा लग रहा था।

“कुछ नहीं पगले, प्यार कर रहे हैं।” वह बोला। हमें लगने लगा कि उसके पैंट के अंदर कोई केला डाला हुआ है जो शुरू में चिनिया केला जैसा था, अब सिंगापुरी केला जैसा हो गया था। अब रोहित धीरे से अपने पैंट का हुक खोल कर चेन खोल दिया। अपने चड्ढी को सरका कर अंदर का सिंगापुरी केला बाहर निकाल लिया। बाप रे बाप, करीब सात इंच का उसका लौड़ा था वह। काला सांप जैसा। टाईट, मोटा सांप। हमारा दिल जोर से धड़कने लगा।

“ले, पकड़ इसे।” उसने मेरा हाथ अपने लौड़े के ऊपर रख दिया। हम तो उसके वश में थे, पकड़ लिए, जैसा वह बोला। बाप रे, कितना गरम था। घबरा कर जैसे ही हाथ हटाए, बोला, “डरो मत, सहलाओ इसको।” वह हमें चूमता जा रहा था और मेरी छाती दबाता जा रहा था। हमेंं बड़ा अच्छा लग रहा था यह सब। जैसा उसने कहा, हम सहलाने लगे उसका लंड। हमपर नशा चढ़ रहा था। अब वह हमारे कपड़े खोलने लगा।

“नननननहींईंईंईं, नननननहींईंईंईं,” बस इतना ही बोले धीरे से। रोके नहीं। रोकने का मन भी नहीं कर रहा था।

“हां हां,” बोलते हुए खोलता चला गया मेरे कपड़े।

“न न न न नहीं।” हम उससे लिपटते हुए, शरमाते हुए बुदबुदाए।

“शरमाओ मत मेरी रानी। खोलने दे। नंगी हो जा। दिखा तो अपना सुंदर बदन। बहुत दिन से तरस रहे हैं तेरे लिए।” वह हमसे इस तरह बात कर रहा था, जैसे कि हम कोई लड़की हैं। वह हमें पूरा नंगा कर दिया। वह किताब न जाने कब मेरे हाथ से छूट कर गिरा नीचे, हमें पता ही नहीं चला। हम लड़कियों के समान शरमा रहे थे। फिर खुद भी एक एक करके अपने कपड़े खोलने लगा और अंत में पूरा नंगा हो गया। हम ठहरे साढ़े चार फुटिये चिकने लड़के और वह पौने छ: फुट का लंबा तगड़ा जवान लड़का। हमारी छाती लड़कियों की तरह ही दिखती थी, जो कि अब भी है। बदन पूरा चिकना, और लौड़ा सिर्फ अढ़ाई इंच का सामने झूल रहा था, बिना झांट वाला। वहीं उसका बदन लंबा तगड़ा, सात इंच लंबा और करीब अढ़ाई इंच मोटा काला लंड सामने उठक बैठक कर रहा था। नाभी और लंड के बीच, और लंड के चारों ओर काले काले बाल भरे हुए थे। बड़े बड़े अंडू लंड के जड़ से नीचे झूल रहे थे। हम देखते रह गये उसका बदन। वह धीरे धीरे हमारेरे पास आया और हमसे सट कर खड़ा हो गया। उसका लंड हमारी नाभी को छू रहा था। हमें जैसे उसनें स्टैचू बना दिया था, ऐसा स्थिर खड़े रह गये थे हम। उसने हमें अपनी बांहों में भर लिया और हमें फिर से चूमने लगा। हम किसी बच्चे की तरह उसकी छाती से चिपक गये थे। हम पिघल रहे थे उसकी बांहों में। हमारी आंखें बंद हो गयी थीं। हमारा हाथ अपने आप उसके लंड पर चला गया और हम सहलाने लगे उसके लंबे मोटे लंड को। यह हमें क्या होता जा रहा था हमें कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह धीरे से हमें अपनी बांहों में समेटे नीचे घास पर लेट गया।

“आई लव यू मेरी जान।” मेरे कान पर बड़े प्यार से बोला। हम तो अब अपने को लड़की ही समझ बैठे थे। आगे क्या होगा इसका अंदाजा भी नहीं था हमको। वह अब हमारे चिकने, गोल गोल गांड़ को सहलाने लगा। हमें बड़ा आनंद आ रहा था। होश ही नहीं था हमको। हमारे गांड़ को धीरे धीरे दबाने लगा।
 

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” हम सिसक उठे। वह मुझे लिटा कर अब मेरी छाती को चूमने लगा, चूसने लगा। हम पागल होते जा रहे थे। धीरे धीरे वह और नीचे जाने लगा, और नीचे, हमारी नाभी तक चूमता चला गया। और नीचे, और नीचे, हमारे ढाई इंच के लंड तक। हमारे लंड को आईसक्रीम की तरह चूसने लगा, “ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह,” हम अपने आवाज को रोक नहीं पा रहे थे। इसके बाद वह मुझे धीरे से पलट दिया और हम उसके गुड़िया की तरह पलट गये। अब वह हमारे पीठ पर चूमने लगा, चूमते चूमते नीचे जाने लगा, और नीचे, और नीचे। वह हमारे गांड़ तक पहुंच चुका था। हमारे गांड़ को चूमने लगा, ओह भगवान, ओह भगवान, हम तो हवा में उड़ने लगे। वह हमारे गांड़ के बीच दरार को चाटने लगा। आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, गजब, हम पागल हुए जा रहे थे। वह हमारे गांड़ के छेद में जीभ डाल चुका था और चाट रहा था।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, छि:, वहां नहीं वहां नहीं आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” हम तड़प कर बोले।

“बस बस, यहीं रे पगली, बस, यहीं।” वह चाटता रहा चाटता रहा, हमारे मना करने के बावजूद चाटता रहा और हम अपने आप अपने पैर फैला बैठे। अब वह हमें पलट कर उठा लिया अपनी गोदी में। हम किसी बच्चे की तरह उसकी गोद में थे। हमनें देखा वह मुंह से थूक निकाल कर मेरी गांड़ पर लगा रहा था। फिर और थूक लेकर अपने लंड पर लगा रहा था।

“यह यह क क क क्या कर रहे हो?” हम उसकी बांहों में सिमटे किसी प्रकार बोले।

“कुछ नहीं मेरी रानी, बस अब सबसे मजेदार खेल खेलेंगे।” हमें चूमता हुआ बोला। हमारे सोचने समझने की ताकत खतम हो गई थी। तभी उसनें हमें थोड़ा हवा में उठाया और हमें ऐसा लगा उसका लंड हमारे गांड़ के फांक के बीच फंस रहा है। हे भगवान, तो क्या, तो क्या अब यह हमारे साथ वही करने वाला है जो फोटो में हमनें देखा था। मतलब हमारे गांड़ में अपना लंड घुसाएगा क्या? घबरा गये हम।

“नहीं, नहीं ये मत करो।” हम डर के मारे बोले।

“काहे न करें।”

“ऐसा नहीं हो पाएगा हमसे।”

“काहे नहीं हो पाएगा, मेरी जान। सब हो पाएगा।” वह हमें चूमते चाटते हुए बोला। इससे पहले कि हम और कुछ बोल पाते, उसनें हमें अपने लंड पर बैठाना शुरू कर दिया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह नहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्ईं्ई,” उसके लंड का अगला हिस्सा हमारे टाईट गांड़ को चीरता हुआ घुस रहा था और हम दर्द से छटपटाने लगे और चिल्लाने लगे।

“चुप हरामजादी, चिल्लाओगी तो और लोग भी आ जाएंगे। फिर सब तेरी गांड़ चोदना शुरू कर देंगे।” एक थप्पड़ मेरे गाल पर मार कर डरावनी आवाज में बोला। हम डर गये लेकिन दर्द से हमारे आंखों से आंसू निकलने लगे थे। इधर हमारा गांड़ फटता चला गया और उसका उतना लंबा और मोटा लंड घुसता चला गया।

“आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, नननननहींईंईंईं, ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह्ह फट गया गांड़।” हम रोते हुए बोले।

“कुछ नहीं हुआ, चुप रहो मेरी रानी। अब देखो, पूरा लंड घुस गया। अब तुम्हें मजा आएगा।” हमें बहलाने लगा।

“नहीं नहीं, बहुत दर्द हो रहा है।” हमारे आंख का आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। हम छटपटा कर हटना चाहते थे लेकिन वह बहुत ताकतवर था। हमें हिलने भी नहीं दे रहा था। कुछ देर तक वैसा ही स्थिर रहा। धीरे धीरे हमारे गांड़ का दर्द भी कम होने लगा। ताज्जुब लग रहा था हमको। उसका उतना बड़ा लंड हमारे गांड़ में थंसा हुआ था लेकिन अब दर्द कम हो रहा था। वह एक हाथ से हमारा कमर पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से मेरा लंड सहला रहा था। अब हमको अच्छा लग रहा था।
 
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