desiaks
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“हाय, हम कहां फंस गये।” मैं बेबसी का दिखावा करती हुई बोली। मेरी बातें सुनकर सभी हंस पड़े। अबतक रफीक नंगा हो चुका था। दिन की रोशनी में उस काले टकले दढ़ियल, लिक्कड़ पहलवान का शरीर बड़ा अजीब लग रहा था। उसकी जांघों के बीच उसका साढ़े छ: इंच लंबा काला, खतना किया हुआ लिंग उठक बैठक कर रहा था।
“अब का हुकुम है?” रफीक बोला।
“अब ई भी बताना होगा हरामी, उतार हमारे कपड़े और करले जो करना है।” पैर पटकती हुई कांता बोली। कहने की देर थी कि रफीक ने कांता पर ऐसा झपट्टा मारा जैसे बाज किसी चिड़िया पर। पलक झपकते कांता नंगी हो गयी। साली छटंकी सी दिखने वाली कांता कम सेक्सी नहीं थी। चेहरे से ज्यादा आकर्षक तो उसके तन का गठन था। सख्त उन्नत उरोज, पतली कमर, उभरे हुए नितंब और और और नाभी से नीचे, सामने काले काले झांट और नीचे चमचमाती चिकनी योनि। योनि चीख चीख कर उसके लंडखोर होने की चुगली कर रही थी। मैं अंदर ही अंदर गनगना उठी। उफ्फ, मेरा नंबर कब आएगा, इंतजार कुछ अधिक ही लंबा हो रहा था। मेरी योनि पनिया उठी थी अबतक।
“अब काहे चाट रहा है मादरचोद। ठूंस अपना लौड़ा मेरी गांड़ में। चोद हरामी चोद।” उधर उत्तेजित मुंडू के मुख से निकला। हमारा ध्यान उधर गया तो क्या देखते हैं, मंगरू, जिसे मुंडू की गांड़ चोदने का लाईसेंस मिल गया था, मुंडू की गुदा और अपने तनतनाए लिंग पर थूक लसेड़ कर अच्छी तरह से मुंडू की कमर धर के एक ही धक्के में सरसरा कर पूरा का पूरा लिंग धांस दिया।
“आ्आ्आ्आ्ह” मुंडू की आह निकल गयी। मुंडू गांडू, गांड़ मरवाने का अभ्यस्त, आराम से अपनी गांड़ में खा गया मंगरू का विशाल लिंग, आनंद से उसकी आंखें बंद थीं।
“ले स्स्स्स्स्आल्ल्ल्ले गांडू, हुम्म्म्म्आ्आ्आ्।” उसकी स्त्रियों समान उभरे सीने के उभारों को मसलते हुए मंगरू ठूंस दिया जड़ तक अपना लिंग उसकी गुदा में।
“चोद मेरे गांड़ के रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आह साले चोद।” मुंडू आनंदित हो कर बोला।
“हां महाराज, चोद रहे हैं, ले ले ले।” कहते हुए कुत्ते की तरह कचकचा कर चोदने लगा।
“अरे टकले दढ़ियल हलकट, उधर का देख रहा है, हमको कर ना। कब से मरे जा रहे हैं लंड खाने के लिए।” कमीनी, लंडखोर कांता कलकला कर बोली। और फिर क्या था, बिना किसी भूमिका के रफीक पिल पड़ा कांता पर। वहीं फर्श पर कांता को पटक कर चढ़ बैठा उस पर, उसके दोनों पैरों को सरका कर सट्टाक से अपना लपलपाता लिंग उसकी लसलसी योनि में उतार दिया।
“ले साली कुत्ती, ले आ्आ्आ्आ्ह।” रफीक की कमर नें जुंबिश ली और लो, हो गया कांता का उद्धार।
“आह मादरचोद, ओह रज्ज्ज्ज्जा्आ्आ्आ्आह,” कांता मुदित हो कर अपनी अपने पैरों से रफीक की कमर को लपेट ली और संभोग के सुखद संसार में गोते खाने लगी। शुरू हो गयी उनकी छपाक छैंया।
“सबके सब हरामी, एक नंबर के हरामी हैं। हम नहीं खेलते यह गंदा खेल।” मैं बोली और उठने को हुई।
“जाती कहां है बुरचोदी अब। साली रंडी खेलने आई है, खेलना तो होगा ही। चल सलीम पत्ते फेंक।” बोदरा अब अपनी औकात पर आ चुका था, मुझे पकड़ कर जबरदस्ती बैठाते हुए बोला। अब बचे थे तीन कुली, जिनके नाम बुधुवा, हीरा, बोयो, मिस्त्री बोदरा, सलीम और रेजा सोमरी। सलीम पत्ते बांटने लगा। इस बार तीन गुलाम एक के बाद एक निकले। पता है? कौन कौन थे? बुधुवा, हीरा और मैं। तीन गुलाम।
“नहीं, हम नहीं।” मैं फिर विरोध करने लगी।
“चुप साली रंडी। एकदम चुप। चल, अब तू भाग नहीं सकती खेल के बीच में खेल छोड़कर। बुधुवा, हीरा और तू गुलाम। चल सलीम आगे बांट पत्ते, देखें तो बादशाह कौन है?” बोदरा डांट कर बोला। उत्तेजना के मारे बुरा हाल था उसका और यही हाल मेरा भी था। परिणाम निकलते ही मेरी योनि खुद ब खुद पानी छोड़ने लगी। सलीम नें पत्ता बांटा और बादशाह बना बोदरा, उसके मनोनुकूल परिणाम था। उछल ही तो पड़ा। न जाने कब से इसी ताक में था। तुरंत बोला, “चल, तीनों के तीनों अपने कपड़े उतारो।”
“नहीं, हम नहीं।” मैं बोली।
“चल रे बुधुवा और हीरा, धर साली को और उतार इस रंडी के कपड़े। कब से फड़फड़ा रही है, हम नहीं हम नहीं।” कहते हुए खुद अपने कपड़े खोलने में व्यस्त हो गया। इधर बुधुवा और हीरा मुझ पर टूट पड़े। दोनों के दोनों, काले कलूटे अठाईस तीस की उम्र के साढ़े पांच फुट कद वाले गठे मजदूर, मुझे दबोच कर पलक झपकते साड़ी ब्लाऊज से मुक्त कर दिया। पुरानी, गंदी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाऊज, जल्दबाजी और खींच तान कर खोलने के क्रम में खुलते खुलते कई जगह चरचरा कर फटती चली गयी। उफ्फ्फ। खोलते खोलते वे हरामजादे, मेरे वक्षों को और नितंबों को दबाने से भी बाज नहीं आ रहे थे।
“नहीं, छोड़ो हमें।”