hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
"यो बेबी यो..."
"तो फिर दानवीर जी, आप मुझे अपना लंड काटकर दीजिए..."
"बालक अब तेरी मुराद पूरी नही हो सकती,क्यूंकी मैने सुबह ही किसी को कंघी दान मे दे दी है...तुम कल आना बच्चा.."
"सौरभ...बम्बू देना तो ज़रा... इस दानवीर को प्रणाम करने का मन कर रहा है..."
.
अरुण के हाथ मे हॉकी स्टिक आते ही एक हाथ से अपना बॅग उठाकर मैं वहाँ से भागा और मेरे पीछे अरुण भी भागा...पहले मैं सीढ़ियो से नीचे उतरकर खड़ा हो गया और ये सोचा कि शायद अरुण वापस रूम की तरफ चला गया है...लेकिन हाथ मे गदा लिए अरुण सीढ़ियो से नीचे उतरा और यमराज की स्टाइल मे अपने दाँत दिखाते हुए बोला
"हा...हा..हा..अब कहाँ जाएगा दानवीर.."
"दुनिया बहुत बड़ी है बेबी..."बोलते हुए मैं हॉस्टिल के दूसरे छोर की तरफ भागा,जहाँ से उपर जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई थी....मैं कयि बार सीढ़ियो से उपर चढ़ा और नीचे उतरा लेकिन मेरी परेशानी ज़रा सी भी कम नही हुई क्यूंकी अरुण अब भी अपने हाथ मे वो बम्बू लिए मुझे दौड़ा रहा...
.
"ये साला,एक कंघी के लिए रो रहा है, धत्त तेरी की..."भागते हुए मैं चिल्लाया"अबे कुत्ते, क्यूँ मार रिया है आज शाम को 10 कंघी लाकर तेरे मुँह पर फेकुंगा...और वैसे भी तेरी वो पीली कंघी एक दम बकवास थी."
"तू तो आज बचेगा नही,अरमान...आज या तो तू शहीद होगा या मैं..."
"ये लवडा ऐसे नही मानेगा..इसे इसकी वो पीली कलर वाली कंघी लाकर देनी ही पड़ेगी..."सीढ़ियो से नीचे उतरते हुए मैने सोचना शुरू किया"सबसे पहले जो लौंडा कंघी ले गया था ,वो मेरे रूम से दो रूम छोड़ कर रहता है...लेकिन उसने तो कंघी लाकर वापस कर दी थी...उसके बाद नीचे फ्लोर वाला लौंडा आया और कंघी लेकर गया और...और साले ने अभी तक कंघी वापस नही लौटाया,उसकी माँ की..."
सीढ़ियो से उपर चढ़ते हुए मैं उस लड़के के रूम की तरफ भागा, जिसके रूम मे अरुण की वो पीली कंघी थी..दौड़ते हुए मैं सीधे उस लड़के के रूम मे घुसा और मेरे पीछे अरुण भी रूम के अंदर आया.
"बोसे ड्के..जब समान लाते हो तो वापस भी कर दिया करो..."हान्फते हुए मैने उस लड़के को देखकर कहा,जो मेरे रूम से कंघी लेकर आया था.
मुझे देखकर उस लड़के के चेहरे के रंग अचानक बदल गये और उसने अपनी गीली टवल मुझे देखते हुए बिस्तर पर फेक दी...उसकी इस हरक़त से मैं समझ गया कि साले का कंघी लौटने का कोई विचार नही है और कंघी को छिपाने के लिए उसने अभी-अभी बिस्तर पर अपनी टवल फेकि है.
"साले कंघी चोर..कल्लू, तू साले जितना बाहर से काला कोयला है उतना ही अंदर से भी है...ला कंघी दे."
"मैने तो तेरी कंघी वापस कर दी थी,अरमान...याद कर"वो कल्लू झूठ बोलते हुए उस टवल के उपर बैठ गया ,जिसके नीचे अरुण की कंघी थी.
"अरुण,तेरे जूते का साइज़ क्या है.."मैने पुछा.
"क्यूँ..."
"अबे डाइलॉग मारना है.."
"तू पहले मुझे मेरी कंघी लाकर दे...वरना डाइलॉग तो मैं तुझ पर मारूँगा.."
"भाड़ मे जा..उसने अपने गान्ड के नीचे कंघी छिपा रखी है.तू उस साले कल्लू की गान्ड मारकर अपनी कंघी ले ले...मैं चला कॉलेज."वहाँ से बाहर निकलते हुए मैं बड़बड़ाया"बीसी अब तक तो ये लोग पेन,कॉपी ,तेल और साबुन चुराते थे ,अब सालो ने कंघी चोरी करना भी शुरू कर दिया "
.
बाथरूम मे जाकर मैने अपना चेहरा धोया और अरुण को गालियाँ बकते हुए सौरभ के साथ कॉलेज के लिए निकल पड़ा...
दुनिया मे यदि आप बुरे काम करोगे तो उस बुरे काम मे साथ देने के लिए सब तुरंत राज़ी हो जाएँगे लेकिन यदि आप उस बुरे काम की जगह एक अच्छा काम करने निकलोगे तो कोई साथ नही देगा उपर से दस लोग आकर टोकेंगे...ऐसा ही कुच्छ मेरे साथ इन दीनो हो रहा था.दो दिन पहले ही मैं हॉलिडे मनाकर हॉस्टिल आया था और आते ही मैने सौरभ,अरुण से कहा कि इस साल नो मस्ती,नो पंगा ओन्ली पढ़ाई....मैने इतना क्या कहा,वो दोनो साले मुझे ऐसे देखने लगे..जैसे मैने उनका खाना छीन्कर खा लिया हो.उसी दिन से या फिर कहे की उसी पल से वो दोनो मुझे चिढ़ाने लगे और अपनी हरसंभव कोशिश करने मे जुट गये जिससे मेरे सर से पढ़ाई करने का भूत उतर जाए...लेकिन मैने उन दोनो की एक ना सुनी और आज पहली बार हर सब्जेक्ट के लिए एक रफ कॉपी ना लेजा कर हर सब्जेक्ट के लिए अलग-अलग कॉपी ले जा रहा था ,वो भी बाक़ायदा कवर चढ़ा कर.
.
इस साल भी कयि टीचर्स ने हमारा साथ छोड़ा,जिसमे दंमो रानी, आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते के जन्मदाता-श्री कुर्रे सर भी शामिल थे और सच बताऊ तो इन दोनो के जाने से मैं बेहद खुश था. लेकिन एक बॉम्ब अब भी मौज़ूद था और वो बॉम्ब थी हमारी सीसी की टीचर विभा...
मैने आज सारी क्लास मे मन लगाकर पढ़ाई की,.जो-जो टीचर्स ने बोर्ड मे लिखाया उसे बाक़ायदा अच्छे तरीके से कॉपी मे उतारा.यहाँ तक की मैने लॅब के लिए भी प्रॅक्टिकल फाइल और पेजस खरीद लिए थे,बोले तो अपुन पढ़ने के फुल मूड मे था.
.
"अरमान...रोल नंबर. 11"
"प्रेज़ेंट मॅम..."हाथ खड़ा करके मैने अपनी उपस्तिथि विभा मॅम के खाते मे दर्ज कराई....
जब सबने अपनी उपस्तिति दर्ज करवा दी तो विभा अपनी जगह से उठी और 5-5 का ग्रूप बनाने को बोलकर आगे चली गयी....
"अब एक-एक करके हर ग्रूप आएगा और टर्बाइन्ज़ के मॉडेल देखेगा..."विभा मॅम ने कहा,जिसके बाद एक-एक ग्रूप बारी-बारी से जाता और टर्बाइन्ज़ के मॉडेल देखकर आता.जब सबने टर्बाइन देख लिया तो विभा ने सबको जो भी आज समझा है उसे लिखने के लिए कहा. मैने मन लगाकर समझा था इसलिए भका-भक लिखना शुरू कर दिया और नोन-स्टॉप 5 मिनिट तक लिखता रहा.
"स्टॉप राइटिंग..."बोलते हुए विभा ने सबके पेन को विराम दिया और फिर एक-एक को बुलाकर पर्सनली बत्ती देने लगी...मेरा रोल नंबर. थोड़ा पीछे था इसलिए मैं अरुण के पास गया.
"कुच्छ लिखा बे लवडे या अभी तक हिला रहा है..."
"माँ कसम यार,कुच्छ समझ ही नही आया.साली सॉलिड तरीके से इज़्ज़त को टर्बाइन मे घुमा-घुमा कर चोदेगि..."घबराते हुए अरुण बोला"कुच्छ सोच ना बे "
"एक काम कर, ये ले मेरा कॉपी तू दिखा देना और सामने वाले पेज पर जो मेरा नाम लिखा है,उसे फाड़ देना..."कुच्छ सोचते हुए मैने अपनी कॉपी अरुण के हाथ मे थमा दी.
"और तू..."
"प्यार करती है विभा मॅम मुझसे,मुझे कुच्छ नही कहेगी.तू मेरी चिंता छोड़..."
"थॅंक्स यार, आइ लव यू."
" ऐसा क्या,फिर मुँह मे लेना एक बार"
मैं अपने वॉलेट मे हमेशा एक-दो बॅंड-एड रखता ही था ,क्यूंकी क्या पता कब ज़रूरत पड़ जाए. अभी विभा मॅम रोल नंबर. 8 वाले को बत्ती दे रही थी कि मैने दो बॅंड-एड वॉलेट मे से निकाल कर लेफ्ट हॅंड मे चिपकाया और जब मेरी बारी आई तो मैं खाली हाथ विभा मॅम की तरफ बढ़ा....
"खाली हाथ क्यूँ आए, तुम्हारी कॉपी कहाँ है..."
"मॅम मैं लिख नही सकता,हाथ मे बहुत गहरा ज़ख़्म है..."लेफ्ट हॅंड विभा माँ को दिखाते हुए मैने कहा"यदि ज़रा सी भी हरकत करू तो बहुत दर्द होता है..."
विभा मॅम मेरी इस चालाकी पर पहले मुस्कुराइ और फिर चेयर मे पीछे की तरफ होकर बोली"तुम्हे बहाना बनाना बहुत आता है ,मुझे पक्का मालूम है कि तुम्हारे हाथ मे कुच्छ नही हुआ है...राइट "
"नही..नही, सच मे मेरे लेफ्ट हॅंड मे दर्द हो रहा है और यदि यकीन ना हो तो बॅंड-एड खोलकर दिखाऊ..."
"रहने दो...इसकी कोई ज़रूरत नही."
"तो फिर मैं जाउ..."
"एक शर्त पर..."चेयर पर सीधे होते हुए विभा बोली"तुम्हे दीपिका का वीडियो कहाँ से मिला..."
"दीपिका मॅम के बारे मे सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ, वो मेरे बेहद करीब थी और आप किस वीडियो की बात कर रही है..."
"देखो अरमान...मैं जानती हूँ कि वो वीडियो तुम्ही ने प्रिन्सिपल के हाथो तक पहुँचाया था और मैं क्या,सारा कॉलेज ये जानता है..."
"मुझे नही पता कि ये अफवाह किसने फैलाई है और आप तो मेरा नेचर जानती ही हो कि ना तो मैं कभी झूठ बोलता हूँ और ना ही कोई बात किसी से छुपाता हूँ...आक्च्युयली मैं एक खुली किताब की तरह हूँ जिसे कोई भी पन्ने पलट-पलट कर पढ़ सकता है ."
"ह्म..."
"मैं ये कहना चाहता हूँ कि यदि मैने वैसा कुच्छ किया होता तो मैं सीना ठोक कर बोलता कि मैने किया है...."
"ठीक है तुम जाओ, "मुझे जाने के लिए कहकर विभा ने अगले रोल नंबर वाले को बुलाया,जो कि अरुण ही था..
.
"क्या बोली वो आइटम तेरे से..."जब अरुण विभा मॅम के पास से आया तो मैने उसके आते ही पुछा.
"कुच्छ खास नही,बस मेरी बढ़ाई कर रही थी थोड़ा..."
"यानी कि मेरी बढ़ाई...अब बोल कि क्या हुआ उधर"
"अबे कहा ना कुच्छ खास नही,उसने बस इतना कहा कि अरुण, तुम्हारी राइटिंग सुपर्ब है...ध्यान से पढ़ाई करोगे तो अच्छे मार्क्स स्कोर कर सकते हो..."अपना बॅग टाँगकर अरुण बोला"चल ,हॉस्टिल चलते है...विभा से मैने पर्मिशन ले ली है..."
.
हॉस्टिल की तरफ जाते वक़्त मुझे विभा के द्वारा कही गयी वो बात याद आ रही थी ,जो उसने अरुण से कहा था और तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. #1 याद आया "रेस्पेक्ट युवर टीचर्स."
अब विभा पहले जैसी भी रही हो लेकिन टीचर बनने के बाद वो पूरी तरह से सुधर चुकी थी.मेरी वजह से वरुण के साथ जो उसका ब्रेक अप हुआ, वो तब से आज तक सिंगल ही है...क्यूंकी यदि उसका कोई नया मजनू होता तो कहीं ना कहीं से मुझे खबर मिल ही जाती और वैसे भी मुझे किसी के पर्सनल लाइफ से क्या लेना देना था.विभा चाहे बाहर जिससे भी चुदवाये, चाहे तो वो बिकनी पहनकर घूमे...वो उसकी लाइफ थी.इसलिए फिलहाल तो मैने मन ही मन मे ये तय किया कि मैं अब उसको बे-मतलब की गालियाँ नही बकुँगा.....
ये सोचते हुए मैं अरुण के साथ हॉस्टिल की तरफ बढ़ रहा था.सौरभ दूसरे ग्रूप मे था,इसलिए कॉलेज से एक साथ आना कभी-कभार ही हो पाता था.
"अरमान ,तुझे वरुण के बारे मे मालूम चला या नही..."कॉलेज से बाहर निकलते ही अरुण अचानक रुक गया
"क्यूँ मर गया क्या वो..."मैने पुछा..
"नही बे, वो उसको 7 साल हो गये थे ना तो उसे कॉलेज से निकल दिया गया है...अब वो कॉलेज नही आ सकता और इस साल उसका लास्ट चान्स है यदि वो इस साल भी पेपर क्लियर नही कर पाया तो उसपर एनएफटी लग जाएगा बोले तो नोट फॉर टेक्निकल..."
"ऐसा भी होता है क्या..."
"बिल्कुल होता है, अब कॉलेज वाले ज़िंदगी भर तो उसको यहाँ रखेंगे नही..ज़रा सोच उसकी क्या धाँसू बेज़्जती होने वाली है..."
"होने दे,अपने को क्या..."
.
थोड़ी देर बाद हम दोनो हॉस्टिल के बाहर पहुच गये और मैं इस साल के लिए नये-नये प्लॅन्स और स्ट्रॅटजी बनाने मे बिज़ी था कि अरुण की आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी...
"क्यूँ बे साले ,कल्लू...कंघी चोर बोसे ड्के...इधर आ"अरुण ने हॉस्टिल से बाहर निकलते हुए उस कंघी चोर कल्लू को अपने पास आने के लिए कहा और जब वो हमारे पास आ गया तो अरुण फिर से शुरू हो गया"एक तो साले झान्ट के जैसी शकल है तेरी और उसपर तू कंघी चोरी करता है लवडे..वो भी अपने इन मुड़े-मुड़े बालो के लिए,जो मेरे झान्ट से भी ज़्यादा मुड़े हुए है...."
"तेरे से तो हॅंडसम ही दिखता हूँ..."झुझलाते हुए कल्लू ने कहा...
"लवडा दिखता है मेरा तू. बेटा यदि मेरे लंड और तेरी शकल को एक साथ देखा जाए तो मेरा लंड ही खूबसूरत दिखेगा....चल निकल यहाँ से,कंघी चोर..."
उस कल्लू को शायद ये डर था कि कही हम दोनो उसे पेल ना दे क्यूंकी लास्ट एअर हमने जो कारनामा किया...उसे देखते हुए ये तो हमारे बाए हाथ खेल था.इसलिए कल्लू चुप-चाप जिस काम के लिए निकला था उसी काम को करने के लिए वहाँ से आगे बढ़ गया....
"सुन बे..."अबकी बार मैने उसे आवाज़ दी"आते समय सिगरेट का एक डिब्बा लेते आना वरना चोद-चोद कर गोरा कर दूँगा..."
.
हम दोनो का रौब देखते हुए कल्लू ने हां मे अपना सर हिलाया और वहाँ से हमारे पास से आगे बढ़ गया...लेकिन तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. 2 याद आ गया. मैने कल्लू को वापस बुलाया और उसे सॉरी कहकर सिगरेट लाने के मना कर दिया.मेरी इस हरकत पर जहाँ उस कल्लू की खुशी का ठिकाना नही था वही दूसरी तरफ मेरा खास दोस्त मुझे बेधड़क सुनाए जा रहा था और बार-बार मुझसे यही पुच्छ रहा था कि "जब फ्री मे सिगरेट मिल रही थी तो मैने मना क्यूँ कर दिया...."
"समझा कर,कभी कभार नेक काम भी कर लेना चाहिए...."
"तू बेटा,अब मुझसे तब तक बात मत करना,जब तक तू मेरे लिए सिगरेट का पॅकेट नही ले आता..."अपने पैर पटकते हुए अरुण वहाँ से अकेले हॉस्टिल के अंदर घुस गया....
.
मैने कल्लू को सिगरेट लाने के लिए मना इसलिए किया था क्यूंकी मुझे अचानक मेरा प्लान नंबर. #2 याद आ गया था ,जिसके अनुसार"क्विट स्मोकिंग आस अर्ली ऐज पासिबल..."
अब सिगरेट और दारू की लत तो एक दम से तो छूट नही सकती इसलिए मैने डिसाइड किया कि...धीरे-धीरे करके स्मोकिंग भी छोड़ दूँगा और दारू भी....
.
वहाँ से मैं बिना हॉस्टिल गये ,दुकान की तरफ बढ़ा और सिगरेट की एक पॅकेट लेकर ही हॉस्टिल मे आया...रूम मे पहुचा तो देखा कि वहाँ तो पूरी मंडली जमा हुई है और सब भाई लोग किसी टॉपिक पे वाद-विवाद कर रहे थे...
"ले बे थाम..."अरुण के मुँह पर सिगरेट का पॅकेट फैंकते हुए मैने पुछा"और ये महाभारत क्यूँ छेड़ रखा है..."
"अरमान भाई ,आप पहले ये बताओ कि विभा आपको कैसी लगती है..."उस मंडली मे अपना राजश्री भी शामिल था और जब उसने मुझसे ये पुछा की विभा मुझे कैसी लगती है तो मैं फ़ौरन समझ गया कि इनके वाद-विवाद का टॉपिक विभा ही है...
"माल लगती है ,क्यूँ "
"अरे माल तो वो सबको लगती है अरमान भाई...मेरे पुछने का मतलब था कि उसका नेचर किस तरह का है..."
"ह्म...ठीक-ठाक तो है,बस स्टूडेंट्स पर वर्क लोड ज़्यादा दे देती है कभी-कभी..."
"अरे अरमान भाई ,आप अभी भी नही समझे..."
"अबे तो तू ही बता दे कि सही आन्सर क्या है और लवडे तुझे कोई काम धाम नही रहता क्या जो जब देखो मेरे ही रूम मे घुसे रहता है..."
"मुझे तो विभा मॅम रंडी लगती है...अरमान भाई..."राजश्री ने अपने दाँत दिखाए ,जो राजश्री खाने के कारण लाल हो गये थे.
.
प्लान नंबर #1 -रेस्पेक्ट युवर टीचर्स....
मेरे कान मे जैसे ही ये आवाज़ गूँजी और मैने तुरंत ना मे सर हिलाकर उन सबको फ़ौरन वहाँ से जाने के लिए कहा....
"अपुन अभिच चला जाएगा...लेकिन पहले सौरभ भाई ये बताएँगे कि कौन जीता...."बोलते हुए राजश्री पांडे ने अपना रुख़ सौरभ की तरफ किया....
"तमाम सबूतों और गवाहॉ को मद्देनज़र रखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुचि है कि राजश्री के साथ ज़्यादा लड़को का समर्थन होने कारण विभा को रंडी और राजश्री और अरुण को ये अदालत विजेता घोसित करती है...जो लौन्डे इस डिबेट मे हार गये है उन्हे ये अदालत अभी तुरंत यहाँ से खिसकने का हुक़ुम देती है."
.
"विभा रंडी नही है बे,तुम लोग ना किसी के बारे मे भी कुच्छ भी बोलते रहते हो..."सबके जाने के बाद मैने अरुण से कहा..
"तू जब से घर होकर आया है,तब से मैं अब्ज़र्व कर रहा हूँ की तेरा रंग बदलता जा रहा है.."
"अबे अरुण ,अब यदि तू अपनी गर्लफ्रेंड को पटा कर ठोकेगा तो क्या तुझे सब रन्डवा कहेंगे...तो फिर तुम लोग विभा को रंडी क्यूँ बोल रहे हो,उसने तो सिर्फ़ वरुण का ही लिया है...इसमे वो रंडी कहाँ से हो गयी..."
मेरे मुँह से ये सब सुनकर सौरभ और अरुण बुरी तरह चौक गये ,उन्हे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे जैसा लौंडा विभा को रेस्पेक्ट दे रहा है....
"वो सब तो ठीक है...लेकिन क्या तू मुझे ये बताएगा कि तू आज उसकी साइड क्यूँ ले रहा है..."
अरुण के इस सवाल ने मुझे सोचने के लिए मज़बूर कर दिया ,मैं विभा की साइड क्यूँ ले रहा हूँ...क्यूंकी मेरे प्लान नंबर. #1 के मुताबिक़ मुझे सिर्फ़ क्लास मे टीचर्स को रेस्पेक्ट देना था...फिर विभा का मामला आते ही मैं इतना उत्तेजित कैसे हो गया ?
"तुम दोनो चुप रहोगे बे, मैं अभी पढ़ाई कर रहा हूँ..."
रात को 7 बजे जब पढ़ने लिखने का मूड हुआ तो मैं बुक खोलकर बैठ गया और अभी 7 से 8 बज चुके थे...लेकिन अभी तक एक घंटे मे मैं सिर्फ़ एक पॅरग्रॅफ पढ़ पाया था,जिसका कारण ये था कि अरुण और सौरभ कॉलेज की अपनी बहूदी बाते कर रहे थे...शुरू मे अरुण उसे बताने लगा कि आज लॅब मे क्या हुआ और जब वो चुप हुआ तो सौरभ शुरू हो गया....उन दोनो की जब लॅब की बाते ख़त्म हुई तो आज खाने मे क्या मिलेगा इसपर दोनो बहस करने लगे.....
"लवडो, भागो यहाँ से.."गुस्से से किताब बंद करते हुए मैं उठ खड़ा हुआ...
"अबे अरमान, तू भी क्या अभी से किताब खोलकर पढ़ने बैठ गया ,असली इंजिनीयर्स तो रात को 12 बजे के बाद पढ़ाई करते है और वैसे भी पढ़ने लिखने से किसका भला हुआ है...." ठंडे लहजे मे सौरभ ने कहा ,जिसका अरुण ने भी समर्थन देते हुए कहा"तू बेटा, किसी तांत्रिक के पास जाकर झाड़-फूक करा...तुझे पक्का किसी किताबी कीड़े की नज़र लग गयी है...इसीलिए तू आजकल सरिफो वाली हरकते करने लगा है..."
"सोच ले अरुण...क्यूंकी यदि आज मैने नही पढ़ा तो कल की लॅब मे तुझे कौन आन्सर बताएगा और कुच्छ लड़के तो ये भी बोल रहे थे कि कल शायद होड़ सर भी मौज़ूद होंगे वहाँ लॅब मे..."
"सच... "
"तुझे तो पता ही है की मैं कभी झूठ नही बोलता "
"तो फिर दानवीर जी, आप मुझे अपना लंड काटकर दीजिए..."
"बालक अब तेरी मुराद पूरी नही हो सकती,क्यूंकी मैने सुबह ही किसी को कंघी दान मे दे दी है...तुम कल आना बच्चा.."
"सौरभ...बम्बू देना तो ज़रा... इस दानवीर को प्रणाम करने का मन कर रहा है..."
.
अरुण के हाथ मे हॉकी स्टिक आते ही एक हाथ से अपना बॅग उठाकर मैं वहाँ से भागा और मेरे पीछे अरुण भी भागा...पहले मैं सीढ़ियो से नीचे उतरकर खड़ा हो गया और ये सोचा कि शायद अरुण वापस रूम की तरफ चला गया है...लेकिन हाथ मे गदा लिए अरुण सीढ़ियो से नीचे उतरा और यमराज की स्टाइल मे अपने दाँत दिखाते हुए बोला
"हा...हा..हा..अब कहाँ जाएगा दानवीर.."
"दुनिया बहुत बड़ी है बेबी..."बोलते हुए मैं हॉस्टिल के दूसरे छोर की तरफ भागा,जहाँ से उपर जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई थी....मैं कयि बार सीढ़ियो से उपर चढ़ा और नीचे उतरा लेकिन मेरी परेशानी ज़रा सी भी कम नही हुई क्यूंकी अरुण अब भी अपने हाथ मे वो बम्बू लिए मुझे दौड़ा रहा...
.
"ये साला,एक कंघी के लिए रो रहा है, धत्त तेरी की..."भागते हुए मैं चिल्लाया"अबे कुत्ते, क्यूँ मार रिया है आज शाम को 10 कंघी लाकर तेरे मुँह पर फेकुंगा...और वैसे भी तेरी वो पीली कंघी एक दम बकवास थी."
"तू तो आज बचेगा नही,अरमान...आज या तो तू शहीद होगा या मैं..."
"ये लवडा ऐसे नही मानेगा..इसे इसकी वो पीली कलर वाली कंघी लाकर देनी ही पड़ेगी..."सीढ़ियो से नीचे उतरते हुए मैने सोचना शुरू किया"सबसे पहले जो लौंडा कंघी ले गया था ,वो मेरे रूम से दो रूम छोड़ कर रहता है...लेकिन उसने तो कंघी लाकर वापस कर दी थी...उसके बाद नीचे फ्लोर वाला लौंडा आया और कंघी लेकर गया और...और साले ने अभी तक कंघी वापस नही लौटाया,उसकी माँ की..."
सीढ़ियो से उपर चढ़ते हुए मैं उस लड़के के रूम की तरफ भागा, जिसके रूम मे अरुण की वो पीली कंघी थी..दौड़ते हुए मैं सीधे उस लड़के के रूम मे घुसा और मेरे पीछे अरुण भी रूम के अंदर आया.
"बोसे ड्के..जब समान लाते हो तो वापस भी कर दिया करो..."हान्फते हुए मैने उस लड़के को देखकर कहा,जो मेरे रूम से कंघी लेकर आया था.
मुझे देखकर उस लड़के के चेहरे के रंग अचानक बदल गये और उसने अपनी गीली टवल मुझे देखते हुए बिस्तर पर फेक दी...उसकी इस हरक़त से मैं समझ गया कि साले का कंघी लौटने का कोई विचार नही है और कंघी को छिपाने के लिए उसने अभी-अभी बिस्तर पर अपनी टवल फेकि है.
"साले कंघी चोर..कल्लू, तू साले जितना बाहर से काला कोयला है उतना ही अंदर से भी है...ला कंघी दे."
"मैने तो तेरी कंघी वापस कर दी थी,अरमान...याद कर"वो कल्लू झूठ बोलते हुए उस टवल के उपर बैठ गया ,जिसके नीचे अरुण की कंघी थी.
"अरुण,तेरे जूते का साइज़ क्या है.."मैने पुछा.
"क्यूँ..."
"अबे डाइलॉग मारना है.."
"तू पहले मुझे मेरी कंघी लाकर दे...वरना डाइलॉग तो मैं तुझ पर मारूँगा.."
"भाड़ मे जा..उसने अपने गान्ड के नीचे कंघी छिपा रखी है.तू उस साले कल्लू की गान्ड मारकर अपनी कंघी ले ले...मैं चला कॉलेज."वहाँ से बाहर निकलते हुए मैं बड़बड़ाया"बीसी अब तक तो ये लोग पेन,कॉपी ,तेल और साबुन चुराते थे ,अब सालो ने कंघी चोरी करना भी शुरू कर दिया "
.
बाथरूम मे जाकर मैने अपना चेहरा धोया और अरुण को गालियाँ बकते हुए सौरभ के साथ कॉलेज के लिए निकल पड़ा...
दुनिया मे यदि आप बुरे काम करोगे तो उस बुरे काम मे साथ देने के लिए सब तुरंत राज़ी हो जाएँगे लेकिन यदि आप उस बुरे काम की जगह एक अच्छा काम करने निकलोगे तो कोई साथ नही देगा उपर से दस लोग आकर टोकेंगे...ऐसा ही कुच्छ मेरे साथ इन दीनो हो रहा था.दो दिन पहले ही मैं हॉलिडे मनाकर हॉस्टिल आया था और आते ही मैने सौरभ,अरुण से कहा कि इस साल नो मस्ती,नो पंगा ओन्ली पढ़ाई....मैने इतना क्या कहा,वो दोनो साले मुझे ऐसे देखने लगे..जैसे मैने उनका खाना छीन्कर खा लिया हो.उसी दिन से या फिर कहे की उसी पल से वो दोनो मुझे चिढ़ाने लगे और अपनी हरसंभव कोशिश करने मे जुट गये जिससे मेरे सर से पढ़ाई करने का भूत उतर जाए...लेकिन मैने उन दोनो की एक ना सुनी और आज पहली बार हर सब्जेक्ट के लिए एक रफ कॉपी ना लेजा कर हर सब्जेक्ट के लिए अलग-अलग कॉपी ले जा रहा था ,वो भी बाक़ायदा कवर चढ़ा कर.
.
इस साल भी कयि टीचर्स ने हमारा साथ छोड़ा,जिसमे दंमो रानी, आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते के जन्मदाता-श्री कुर्रे सर भी शामिल थे और सच बताऊ तो इन दोनो के जाने से मैं बेहद खुश था. लेकिन एक बॉम्ब अब भी मौज़ूद था और वो बॉम्ब थी हमारी सीसी की टीचर विभा...
मैने आज सारी क्लास मे मन लगाकर पढ़ाई की,.जो-जो टीचर्स ने बोर्ड मे लिखाया उसे बाक़ायदा अच्छे तरीके से कॉपी मे उतारा.यहाँ तक की मैने लॅब के लिए भी प्रॅक्टिकल फाइल और पेजस खरीद लिए थे,बोले तो अपुन पढ़ने के फुल मूड मे था.
.
"अरमान...रोल नंबर. 11"
"प्रेज़ेंट मॅम..."हाथ खड़ा करके मैने अपनी उपस्तिथि विभा मॅम के खाते मे दर्ज कराई....
जब सबने अपनी उपस्तिति दर्ज करवा दी तो विभा अपनी जगह से उठी और 5-5 का ग्रूप बनाने को बोलकर आगे चली गयी....
"अब एक-एक करके हर ग्रूप आएगा और टर्बाइन्ज़ के मॉडेल देखेगा..."विभा मॅम ने कहा,जिसके बाद एक-एक ग्रूप बारी-बारी से जाता और टर्बाइन्ज़ के मॉडेल देखकर आता.जब सबने टर्बाइन देख लिया तो विभा ने सबको जो भी आज समझा है उसे लिखने के लिए कहा. मैने मन लगाकर समझा था इसलिए भका-भक लिखना शुरू कर दिया और नोन-स्टॉप 5 मिनिट तक लिखता रहा.
"स्टॉप राइटिंग..."बोलते हुए विभा ने सबके पेन को विराम दिया और फिर एक-एक को बुलाकर पर्सनली बत्ती देने लगी...मेरा रोल नंबर. थोड़ा पीछे था इसलिए मैं अरुण के पास गया.
"कुच्छ लिखा बे लवडे या अभी तक हिला रहा है..."
"माँ कसम यार,कुच्छ समझ ही नही आया.साली सॉलिड तरीके से इज़्ज़त को टर्बाइन मे घुमा-घुमा कर चोदेगि..."घबराते हुए अरुण बोला"कुच्छ सोच ना बे "
"एक काम कर, ये ले मेरा कॉपी तू दिखा देना और सामने वाले पेज पर जो मेरा नाम लिखा है,उसे फाड़ देना..."कुच्छ सोचते हुए मैने अपनी कॉपी अरुण के हाथ मे थमा दी.
"और तू..."
"प्यार करती है विभा मॅम मुझसे,मुझे कुच्छ नही कहेगी.तू मेरी चिंता छोड़..."
"थॅंक्स यार, आइ लव यू."
" ऐसा क्या,फिर मुँह मे लेना एक बार"
मैं अपने वॉलेट मे हमेशा एक-दो बॅंड-एड रखता ही था ,क्यूंकी क्या पता कब ज़रूरत पड़ जाए. अभी विभा मॅम रोल नंबर. 8 वाले को बत्ती दे रही थी कि मैने दो बॅंड-एड वॉलेट मे से निकाल कर लेफ्ट हॅंड मे चिपकाया और जब मेरी बारी आई तो मैं खाली हाथ विभा मॅम की तरफ बढ़ा....
"खाली हाथ क्यूँ आए, तुम्हारी कॉपी कहाँ है..."
"मॅम मैं लिख नही सकता,हाथ मे बहुत गहरा ज़ख़्म है..."लेफ्ट हॅंड विभा माँ को दिखाते हुए मैने कहा"यदि ज़रा सी भी हरकत करू तो बहुत दर्द होता है..."
विभा मॅम मेरी इस चालाकी पर पहले मुस्कुराइ और फिर चेयर मे पीछे की तरफ होकर बोली"तुम्हे बहाना बनाना बहुत आता है ,मुझे पक्का मालूम है कि तुम्हारे हाथ मे कुच्छ नही हुआ है...राइट "
"नही..नही, सच मे मेरे लेफ्ट हॅंड मे दर्द हो रहा है और यदि यकीन ना हो तो बॅंड-एड खोलकर दिखाऊ..."
"रहने दो...इसकी कोई ज़रूरत नही."
"तो फिर मैं जाउ..."
"एक शर्त पर..."चेयर पर सीधे होते हुए विभा बोली"तुम्हे दीपिका का वीडियो कहाँ से मिला..."
"दीपिका मॅम के बारे मे सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ, वो मेरे बेहद करीब थी और आप किस वीडियो की बात कर रही है..."
"देखो अरमान...मैं जानती हूँ कि वो वीडियो तुम्ही ने प्रिन्सिपल के हाथो तक पहुँचाया था और मैं क्या,सारा कॉलेज ये जानता है..."
"मुझे नही पता कि ये अफवाह किसने फैलाई है और आप तो मेरा नेचर जानती ही हो कि ना तो मैं कभी झूठ बोलता हूँ और ना ही कोई बात किसी से छुपाता हूँ...आक्च्युयली मैं एक खुली किताब की तरह हूँ जिसे कोई भी पन्ने पलट-पलट कर पढ़ सकता है ."
"ह्म..."
"मैं ये कहना चाहता हूँ कि यदि मैने वैसा कुच्छ किया होता तो मैं सीना ठोक कर बोलता कि मैने किया है...."
"ठीक है तुम जाओ, "मुझे जाने के लिए कहकर विभा ने अगले रोल नंबर वाले को बुलाया,जो कि अरुण ही था..
.
"क्या बोली वो आइटम तेरे से..."जब अरुण विभा मॅम के पास से आया तो मैने उसके आते ही पुछा.
"कुच्छ खास नही,बस मेरी बढ़ाई कर रही थी थोड़ा..."
"यानी कि मेरी बढ़ाई...अब बोल कि क्या हुआ उधर"
"अबे कहा ना कुच्छ खास नही,उसने बस इतना कहा कि अरुण, तुम्हारी राइटिंग सुपर्ब है...ध्यान से पढ़ाई करोगे तो अच्छे मार्क्स स्कोर कर सकते हो..."अपना बॅग टाँगकर अरुण बोला"चल ,हॉस्टिल चलते है...विभा से मैने पर्मिशन ले ली है..."
.
हॉस्टिल की तरफ जाते वक़्त मुझे विभा के द्वारा कही गयी वो बात याद आ रही थी ,जो उसने अरुण से कहा था और तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. #1 याद आया "रेस्पेक्ट युवर टीचर्स."
अब विभा पहले जैसी भी रही हो लेकिन टीचर बनने के बाद वो पूरी तरह से सुधर चुकी थी.मेरी वजह से वरुण के साथ जो उसका ब्रेक अप हुआ, वो तब से आज तक सिंगल ही है...क्यूंकी यदि उसका कोई नया मजनू होता तो कहीं ना कहीं से मुझे खबर मिल ही जाती और वैसे भी मुझे किसी के पर्सनल लाइफ से क्या लेना देना था.विभा चाहे बाहर जिससे भी चुदवाये, चाहे तो वो बिकनी पहनकर घूमे...वो उसकी लाइफ थी.इसलिए फिलहाल तो मैने मन ही मन मे ये तय किया कि मैं अब उसको बे-मतलब की गालियाँ नही बकुँगा.....
ये सोचते हुए मैं अरुण के साथ हॉस्टिल की तरफ बढ़ रहा था.सौरभ दूसरे ग्रूप मे था,इसलिए कॉलेज से एक साथ आना कभी-कभार ही हो पाता था.
"अरमान ,तुझे वरुण के बारे मे मालूम चला या नही..."कॉलेज से बाहर निकलते ही अरुण अचानक रुक गया
"क्यूँ मर गया क्या वो..."मैने पुछा..
"नही बे, वो उसको 7 साल हो गये थे ना तो उसे कॉलेज से निकल दिया गया है...अब वो कॉलेज नही आ सकता और इस साल उसका लास्ट चान्स है यदि वो इस साल भी पेपर क्लियर नही कर पाया तो उसपर एनएफटी लग जाएगा बोले तो नोट फॉर टेक्निकल..."
"ऐसा भी होता है क्या..."
"बिल्कुल होता है, अब कॉलेज वाले ज़िंदगी भर तो उसको यहाँ रखेंगे नही..ज़रा सोच उसकी क्या धाँसू बेज़्जती होने वाली है..."
"होने दे,अपने को क्या..."
.
थोड़ी देर बाद हम दोनो हॉस्टिल के बाहर पहुच गये और मैं इस साल के लिए नये-नये प्लॅन्स और स्ट्रॅटजी बनाने मे बिज़ी था कि अरुण की आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी...
"क्यूँ बे साले ,कल्लू...कंघी चोर बोसे ड्के...इधर आ"अरुण ने हॉस्टिल से बाहर निकलते हुए उस कंघी चोर कल्लू को अपने पास आने के लिए कहा और जब वो हमारे पास आ गया तो अरुण फिर से शुरू हो गया"एक तो साले झान्ट के जैसी शकल है तेरी और उसपर तू कंघी चोरी करता है लवडे..वो भी अपने इन मुड़े-मुड़े बालो के लिए,जो मेरे झान्ट से भी ज़्यादा मुड़े हुए है...."
"तेरे से तो हॅंडसम ही दिखता हूँ..."झुझलाते हुए कल्लू ने कहा...
"लवडा दिखता है मेरा तू. बेटा यदि मेरे लंड और तेरी शकल को एक साथ देखा जाए तो मेरा लंड ही खूबसूरत दिखेगा....चल निकल यहाँ से,कंघी चोर..."
उस कल्लू को शायद ये डर था कि कही हम दोनो उसे पेल ना दे क्यूंकी लास्ट एअर हमने जो कारनामा किया...उसे देखते हुए ये तो हमारे बाए हाथ खेल था.इसलिए कल्लू चुप-चाप जिस काम के लिए निकला था उसी काम को करने के लिए वहाँ से आगे बढ़ गया....
"सुन बे..."अबकी बार मैने उसे आवाज़ दी"आते समय सिगरेट का एक डिब्बा लेते आना वरना चोद-चोद कर गोरा कर दूँगा..."
.
हम दोनो का रौब देखते हुए कल्लू ने हां मे अपना सर हिलाया और वहाँ से हमारे पास से आगे बढ़ गया...लेकिन तभी मुझे मेरा प्लान नंबर. 2 याद आ गया. मैने कल्लू को वापस बुलाया और उसे सॉरी कहकर सिगरेट लाने के मना कर दिया.मेरी इस हरकत पर जहाँ उस कल्लू की खुशी का ठिकाना नही था वही दूसरी तरफ मेरा खास दोस्त मुझे बेधड़क सुनाए जा रहा था और बार-बार मुझसे यही पुच्छ रहा था कि "जब फ्री मे सिगरेट मिल रही थी तो मैने मना क्यूँ कर दिया...."
"समझा कर,कभी कभार नेक काम भी कर लेना चाहिए...."
"तू बेटा,अब मुझसे तब तक बात मत करना,जब तक तू मेरे लिए सिगरेट का पॅकेट नही ले आता..."अपने पैर पटकते हुए अरुण वहाँ से अकेले हॉस्टिल के अंदर घुस गया....
.
मैने कल्लू को सिगरेट लाने के लिए मना इसलिए किया था क्यूंकी मुझे अचानक मेरा प्लान नंबर. #2 याद आ गया था ,जिसके अनुसार"क्विट स्मोकिंग आस अर्ली ऐज पासिबल..."
अब सिगरेट और दारू की लत तो एक दम से तो छूट नही सकती इसलिए मैने डिसाइड किया कि...धीरे-धीरे करके स्मोकिंग भी छोड़ दूँगा और दारू भी....
.
वहाँ से मैं बिना हॉस्टिल गये ,दुकान की तरफ बढ़ा और सिगरेट की एक पॅकेट लेकर ही हॉस्टिल मे आया...रूम मे पहुचा तो देखा कि वहाँ तो पूरी मंडली जमा हुई है और सब भाई लोग किसी टॉपिक पे वाद-विवाद कर रहे थे...
"ले बे थाम..."अरुण के मुँह पर सिगरेट का पॅकेट फैंकते हुए मैने पुछा"और ये महाभारत क्यूँ छेड़ रखा है..."
"अरमान भाई ,आप पहले ये बताओ कि विभा आपको कैसी लगती है..."उस मंडली मे अपना राजश्री भी शामिल था और जब उसने मुझसे ये पुछा की विभा मुझे कैसी लगती है तो मैं फ़ौरन समझ गया कि इनके वाद-विवाद का टॉपिक विभा ही है...
"माल लगती है ,क्यूँ "
"अरे माल तो वो सबको लगती है अरमान भाई...मेरे पुछने का मतलब था कि उसका नेचर किस तरह का है..."
"ह्म...ठीक-ठाक तो है,बस स्टूडेंट्स पर वर्क लोड ज़्यादा दे देती है कभी-कभी..."
"अरे अरमान भाई ,आप अभी भी नही समझे..."
"अबे तो तू ही बता दे कि सही आन्सर क्या है और लवडे तुझे कोई काम धाम नही रहता क्या जो जब देखो मेरे ही रूम मे घुसे रहता है..."
"मुझे तो विभा मॅम रंडी लगती है...अरमान भाई..."राजश्री ने अपने दाँत दिखाए ,जो राजश्री खाने के कारण लाल हो गये थे.
.
प्लान नंबर #1 -रेस्पेक्ट युवर टीचर्स....
मेरे कान मे जैसे ही ये आवाज़ गूँजी और मैने तुरंत ना मे सर हिलाकर उन सबको फ़ौरन वहाँ से जाने के लिए कहा....
"अपुन अभिच चला जाएगा...लेकिन पहले सौरभ भाई ये बताएँगे कि कौन जीता...."बोलते हुए राजश्री पांडे ने अपना रुख़ सौरभ की तरफ किया....
"तमाम सबूतों और गवाहॉ को मद्देनज़र रखते हुए ये अदालत इस नतीजे पर पहुचि है कि राजश्री के साथ ज़्यादा लड़को का समर्थन होने कारण विभा को रंडी और राजश्री और अरुण को ये अदालत विजेता घोसित करती है...जो लौन्डे इस डिबेट मे हार गये है उन्हे ये अदालत अभी तुरंत यहाँ से खिसकने का हुक़ुम देती है."
.
"विभा रंडी नही है बे,तुम लोग ना किसी के बारे मे भी कुच्छ भी बोलते रहते हो..."सबके जाने के बाद मैने अरुण से कहा..
"तू जब से घर होकर आया है,तब से मैं अब्ज़र्व कर रहा हूँ की तेरा रंग बदलता जा रहा है.."
"अबे अरुण ,अब यदि तू अपनी गर्लफ्रेंड को पटा कर ठोकेगा तो क्या तुझे सब रन्डवा कहेंगे...तो फिर तुम लोग विभा को रंडी क्यूँ बोल रहे हो,उसने तो सिर्फ़ वरुण का ही लिया है...इसमे वो रंडी कहाँ से हो गयी..."
मेरे मुँह से ये सब सुनकर सौरभ और अरुण बुरी तरह चौक गये ,उन्हे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे जैसा लौंडा विभा को रेस्पेक्ट दे रहा है....
"वो सब तो ठीक है...लेकिन क्या तू मुझे ये बताएगा कि तू आज उसकी साइड क्यूँ ले रहा है..."
अरुण के इस सवाल ने मुझे सोचने के लिए मज़बूर कर दिया ,मैं विभा की साइड क्यूँ ले रहा हूँ...क्यूंकी मेरे प्लान नंबर. #1 के मुताबिक़ मुझे सिर्फ़ क्लास मे टीचर्स को रेस्पेक्ट देना था...फिर विभा का मामला आते ही मैं इतना उत्तेजित कैसे हो गया ?
"तुम दोनो चुप रहोगे बे, मैं अभी पढ़ाई कर रहा हूँ..."
रात को 7 बजे जब पढ़ने लिखने का मूड हुआ तो मैं बुक खोलकर बैठ गया और अभी 7 से 8 बज चुके थे...लेकिन अभी तक एक घंटे मे मैं सिर्फ़ एक पॅरग्रॅफ पढ़ पाया था,जिसका कारण ये था कि अरुण और सौरभ कॉलेज की अपनी बहूदी बाते कर रहे थे...शुरू मे अरुण उसे बताने लगा कि आज लॅब मे क्या हुआ और जब वो चुप हुआ तो सौरभ शुरू हो गया....उन दोनो की जब लॅब की बाते ख़त्म हुई तो आज खाने मे क्या मिलेगा इसपर दोनो बहस करने लगे.....
"लवडो, भागो यहाँ से.."गुस्से से किताब बंद करते हुए मैं उठ खड़ा हुआ...
"अबे अरमान, तू भी क्या अभी से किताब खोलकर पढ़ने बैठ गया ,असली इंजिनीयर्स तो रात को 12 बजे के बाद पढ़ाई करते है और वैसे भी पढ़ने लिखने से किसका भला हुआ है...." ठंडे लहजे मे सौरभ ने कहा ,जिसका अरुण ने भी समर्थन देते हुए कहा"तू बेटा, किसी तांत्रिक के पास जाकर झाड़-फूक करा...तुझे पक्का किसी किताबी कीड़े की नज़र लग गयी है...इसीलिए तू आजकल सरिफो वाली हरकते करने लगा है..."
"सोच ले अरुण...क्यूंकी यदि आज मैने नही पढ़ा तो कल की लॅब मे तुझे कौन आन्सर बताएगा और कुच्छ लड़के तो ये भी बोल रहे थे कि कल शायद होड़ सर भी मौज़ूद होंगे वहाँ लॅब मे..."
"सच... "
"तुझे तो पता ही है की मैं कभी झूठ नही बोलता "