hotaks444
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मुझे नही पता कि मैं कैसे बचा, मुझे किसने बचाया,मुझे किसने हॉस्पिटल मे अड्मिट किया...जब,मुझे होश आया तो मैं नही जानता था कि मैने आज कितने दिनो बाद अपनी आँखे खोली है.....मैने तो उस दिन पक्का सोच लिया था कि जब मुझे होश आएगा तो मैं यमराज के सामने खड़ा होऊँगा और दो देवदूत मुझे स्वर्ग मे ले जाने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे...उस दिन ग्राउंड पर मैने ये भी सोच लिया था कि स्वर्ग मे जाकर सबसे पहले मैं स्वर्ग के राजा इंद्र की माल को सेट करूँगा लेकिन मेरे इन अरमानो पर पानी तब फिर गया जब मैने देखा कि मैं एक हॉस्पिटल मे हूँ और मेरे शरीर के कयि हिस्सो मे ना जाने कैसी-कैसी भयानक मशीन्स लगी हुई है ,जो मेरी हर मूव्मेंट पर अलग-अलग आवाज़ कर रही थी.....
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"सॉरी स्वर्ग वालो..."उपर देखकर मैने कहा"तुम लोगो से बाद मे मिलूँगा ,लेकिन उदास मत होना क्यूंकी मैं जल्द ही कुच्छ लोगो को स्वर्ग भेजने वाला हूँ...."
जब मुझे होश आए हुए कुच्छ वक़्त बीत गया तो मैने सबसे पहले ये चेक किया कि मेरे शरीर का कौन-कौन सा अंग काम कर रहा है....
गर्दन...बराबर दाए-बाए ,उपर-नीचे हिल रही थी...दोनो पैर भी सही सलामत थे लेकिन कयि जगह टाँके लगे थे, एक हाथ मे प्लास्टर चढ़ा हुआ था,लेकिन दूसरा हाथ बिल्कुल मस्त था,..लेकिन जब मैं अपने दूसरे हाथ की हथेलियो को हिलाता-डुलाता तो हल्का सा दर्द उभर रहा था....मेरे दोनो शोल्डर के साथ-साथ मेरी कमर को किसी चीज़ से बाँध कर रखा हुआ था,वो शायद इसलिए क्यूंकी मेरी हड्डिया बुरी तरह टूट चुकी थी जिसे वापस अपनी जगह सेट करने के लिए ये सब इंतज़ाम किया गया था....मेरे सर पर क्या-क्या करामात डॉक्टर लोगो ने की है ये मैं नही जानता था लेकिन जैसा कि मुझे अहसास हो रहा था उस हिसाब से सर पर भी काई जगह शायद टाँके लगाए होंगे...मैने अपना एक हाथ जो थोड़ा-बहुत हिल डुल सकता था उसे उठाकर अपने सर पर फिराया तो दंग रह गया क्यूंकी मेरे सर के सारे बाल ,जो कि मेरे हॅंडसम होने मे अहम भमिका निभाते थे ,उनको सॉफ कर दिया गया था...यानी कि मैं इस वक़्त एक हॉस्पिटल मे अपने हाथ-पैर, कंधे,सर और पीठ तुडवा के लेटा हुआ था....मुझे किसी चीज़ का ज़्यादा गम नही था सिवाय इसके के मेरे बाल अब मेरे सर पर नही है और मैं टकला हूँ
"साला कितना धाँसू हेअर स्टाइल था मेरा,महीनो की मेहनत एक पल मे ये साले उड़ा ले गये...इनकी तो "अंदर ही अंदर हॉस्पिटल वालो को गाली देते हुए मैने खुद से कहा...
इस सदमे से उभरने मे मुझे थोड़ा वक़्त लगा और थोड़े वक़्त के बाद मैने अपने अगल-बगल झाँका तो पाया कि वहाँ और भी कयि लोग लेटे हुए है...लेकिन सब के सब बेहोश थे या फिर सो रहे थे.
"इस समय टाइम क्या हुआ है , घड़ी भी नही टन्गी है कही..."जिस रूम मे मैं था ,उस रूम की दीवारो को मैने च्चन मारा, लेकिन इस समय टाइम क्या हुआ है,ये मालूम चल सके ,इसका वहाँ कोई इंतेज़ां नही था...जिस बेड पर मैं लेता था उससे थोड़ी डोर पर एक डॉक्टर(फीमेल) चेर पर बैठी किसी फाइल के पन्ने पलट रही थी...
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"जानेमन....."एक घुटि हुई सी आवाज़ उस लेडी डॉक्टर को देख कर मेरे मुँह से निकली,जिसे मैं खुद ही ढंग से नही सुन पाया....
मैने एक और बार उस लेडी डॉक्टर को पुकारा ,जो एप्रन पहने हुए मुझसे थोड़ी दूर पर बैठी हुई कुच्छ पढ़ रही थी..मेरी आवाज़ वो डॉक्टर तो नही सुन पाई लेकिन मेरे हिलने डुलने से ना जाने कैसी-कैसी भयानक मशीन ,जो कि मेरे मेरे बॉडी से कनेक्टेड थी,वो चू-चू..तू-तू की आवाज़ करने लगी और फाइनली उस डॉक्टर ने मेरी तरफ नज़र मारी.....
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"बोलो मत, रूको मैं तुम्हारे फॅमिली को इनफॉर्म करती हूँ कि तुम्हे होश आ गया है..."मेरे पास आते हुए वो बोली...
वैसे तो उसने मुझे ना बोलने के लिए कहा था, लेकिन मैने टाइम पुछने के लिए एक बार फिर अपना मुँह फाडा और घुटि हुई आवाज़ मे उससे टाइम पुछा...
"2 बज रहे है...और तुम कुच्छ मत बोलो..."
"तेरी दाई की चूत, प्राब्लम मुझे होगी या तुझे...ज़्यादा होशियारी मत चोद वरना सारी डॉक्टर गिरी गान्ड मे ठेल दूँगा..."उसने जब अपना डाइलॉग दोबारा रिपीट किया तो मैने उसको देखकर अंदर ही अंदर खुद से कहा और एक बार फिर से अपना मुँह फाडा" एम या पीएम..."
"ह्म...."
"2 एम या 2 पीयेम"अबकी बार मैने अपना पूरा ज़ोर लगाकर कहा और ये बोलने के बाद ही निढाल होकर बेड पर लंबी-लंबी साँसे भरने लगा...
"मैने बोला था ना,बोलने की कोशिश मत करो...नाउ रिलॅक्स, मैं तुम्हारे रिलेटिव्स को इनफॉर्म कर दूँगी..."
"साली रंडी... जा चूत मरा बीसी"
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उसके बाद जो मेरी जो आँख लगी वो मुझे नही पता कि कब खुली...और जब मेरी आँख दोबारा खुली तो मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि मैं दूसरी बार जगह हूँ...मैने कुच्छ देर तक अपने हाथ-पैर हिलाए ,जिससे मेरे बॉडी से कनेक्टेड वो भयानक मशीन्स फिर से अपना अलार्म बजने लगी और एक नर्स तुरंत मेरे पास आई....
"अपने हाथ-पैर मत हिलाओ..."मेरे पैर को पकड़ कर सीधा करते हुए उसने कहा...जिससे कि मेरा माथा एक बार फिर गरम हो गया...
"लवडा मेरा हाथ-पैर है ,मैं हिलाऊ चाहे ना हिलाऊ...तू कौन होती है मुझे टोकने वाली..."सोचते हुए मैने एक बार फिर से अपने पैर को टेढ़ा किया ,जिसे सीधा बेड पर करते हुए उस नर्स ने ना जाने मेरे पैर पर क्या बाँध दिया और एक दवाई से भरी सीरिंज मेरे पिछवाड़े मे घुसा दी....
"तू रुक, होश आने दे...फिर यही सरिंज तेरे गान्ड मे डालूँगाआअ...."जमहाई मारते हुए मैं बड़बड़ाया और फिर से सो गया....
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नेक्स्ट टाइम जब मेरी नींद खुली तो पिछली बार की तरह इस बार भी मुझे सिर्फ़ इतना ही मालूम था कि मेरी आँख पहले भी खुल चुकी है....मेरा पैर अब भी किसी चीज़ से बँधा हुआ था और वो नर्स जिसने मेरे पिछवाड़े मे सुई घुसाई थी वो इस समय किसी दूसरे पेशेंट के पिछवाड़े मे सुई डाल रही थी...
"अबे मुझे होश आ गया है,कोई जाकर मेरे घरवालो को इसकी खबर देगा या मैं खुद जाउ उन्हे ये बताने "अपनी पूरी ताक़त इकट्ठा करके मैं चीखा,लेकिन आवाज़ उतनी तेज़ नही थी ,जितनी की अक्सर मे चीखने से होती थी...लेकिन वहाँ मौज़ूद सभी लोगो को सुनाई दे...इतनी तेज़ तो थी ही...
"वेट..."उस पेशेंट के पिछवाड़े मे सरिंज डालकर उस नर्स ने वहाँ मौज़ूद दूसरी नर्स से कहा कि वो मेरे रिलेटिव्स को ये खबर दे दे....
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अब मुझे अंदाज़ा हो चला था कि अब से कुच्छ देर बाद क्या होने वाला है..जैसे मैने सोचा था उसके हिसाब से किसी हिन्दी मूवी की तरह मेरी माँ सबसे आगे दौड़ते हुए मेरे पास आएगी ,उसके आँखो मे खुशी के आँसू होंगे...देन मेरे पिता जी मेरी माँ के बाद एंट्री मारेंगे, वो खुश तो होंगे लेकिन रिएक्ट ऐसे करेंगे,जैसे उन्हे कोई फरक ही नही पड़ता उसके बाद मेरा बड़ा भाई एंट्री मारेगा और ये जानते हुए भी मैं ठीक से बात नही कर सकता वो मुझसे बहुत सारे सवाल करेगा...मेरे बड़े भाई के सवाल के बम-बारी से जब मैं घायल हो जाउन्गा तो फिर मेरी माँ जिसके आँख मे इस वक़्त भी खुशी के आँसू होंगे,वो मेरे भाई को दाँटेगी और मेरे पिता श्री से फलाना मंदिर मे फलाना भगवान के नाम पर दान-दक्षिणा करने को कहेगी....
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ऐसा मैने बेड पर पड़े-पड़े सोचा था लेकिन लगता है कि शनि और मंगल अब भी मुझसे खफा-खफा है क्यूंकी मुझसे सबसे पहले मिलने के लिए ना तो मेरी माँ आई और ना ही मेरे पापा....मुझसे सबसे पहले मिलने दो लोग आए...एक था मेरा बड़ा भाई विपेन्द्र और दूसरा था मेरा गे दोस्त-अरुण.......
विपिन भैया को देखते ही मैं समझ गया था कि अब सवाल-जवाब की जोरदार बम-बारी होने वाली है...इसलिए मैने तय कर लिया था कि अब मैं 2.2 एक्स 1 जे 0.7 एम ,साइज़ वाले बेड पर चुप-चाप लेटा हुआ सिर्फ़ सर हिलाउन्गा और ऐसे शो करूँगा जैसे कि मैं कुच्छ बोल ही नही सकता,जैसे कि मैं गूंगा ही हो गया हूँ.....अरुण और विपिन भैया मेरे सामने आए ,मैने दोनो को देखा और अरुण को देख कर मेरा कलेजा जल उठा कि उसके सर पर बाल है उसके बाद मैने एक और चीज़ ऐसी देखी जिसे देखकर मेरा कलेजा और भी जला...वो था उन दोनो की हालत, पिटाई मेरी हुई थी, सारे शरीर पर ज़ख़्म खाकर मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था ...लेकिन दर्द उन दोनो की आँखो मे मैं सॉफ देख सकता था.अरुण और बड़े भैया की आँखो मे खुशी और दुख का बड़ा अजीब कॉंबिनेशन था.जिसे समझने के लिए मुझे थोड़ा वक़्त लगा. वो दोनो बहुत खुश इसलिए थे क्यूंकी आज मैने ना जाने कितने दिनो बाद अपनी आँखे खोली थी....और मुझे मेरे ज़ख़्मो के साथ देखकर वो दोनो बहुत ज़्यादा दुखी थे, उस एक पल मे दोनो की ये हालत देखकर दिल किया कि साला अभी बिस्तर से उठु और गौतम के बाप का मर्डर कर दूं,दीपिका को नंगा सड़क पर दौड़ाऊ और नौशाद को हॉस्टिल मे ही दफ़ना दूं...वो एक पल साला पूरा फिल्मी महॉल था और ऐसे फिल्मी मोमेंट मे उबाई मारने वाला मैं खुद भी कुच्छ देर के लिए भावनाओ मे बह गया था...कुच्छ देर तक तो वहाँ ऐसी ही सिचुएशन रही और उस एक पल मे मैं ये भी भूल गया कि मुझे अपना मुँह नही खोलना है,चाहे धरती पलट जाए या फिर आसमान उलट जाए, लेकिन मैने अपना मुँह खोला,आँखो मे नमी लाते हुए अपना मुँह खोला...
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"सॉरी भैया...."
मेरे द्वारा सॉरी बोलने पर मेरा बड़ा भाई अब गुस्से मे आया लेकिन मुझसे कुच्छ नही बोला....
"मुझे नही पता था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी..."मैने दोबारा विपिन भैया की तरफ देख कर कहा...
"घरवालो को कुच्छ मत बताना और मम्मी-पापा से तुझे क्या कहना है ये अरुण तुझे बता देगा..."
इतना बोलकर मेरा बड़ा भाई वहाँ से चलता बना.मेरी हालत और मुझे होश मे देख कर मेरा बड़ा भाई कुच्छ ज़्यादा ही एमोशनल हो गया था और मैं जानता था कि यदि वो थोड़ी देर और उधर मेरे पास रुकते तो एक धांसु बोरिंग सीन बनाते...
"क्या हाल है बे टकले..."विपिन भैया के जाने के बाद अरुण बोला"अब मूठ कैसे मारेगा बेटा...तेरा एक हाथ तो कुच्छ हफ़्तो के लिए गया काम से और दूसरा हाथ इस काबिल नही है कि तू मूठ मार सके..."
"मैने सोचा था कि तू थोड़ा बहुत दुखी होगा मेरी ये हालत देखकर "
"अबे दुखी तो मैं अब हुआ हूँ,तुझे होश मे देखकर..."अपनी चेयर को मेरी तरफ और पास खिसकाते हुए अरुण बोला"जब तक तू मरे हुए की तरह लेटा था ना तो मैं बेदम खुश था,मालूम है क्यूँ..."
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"सॉरी स्वर्ग वालो..."उपर देखकर मैने कहा"तुम लोगो से बाद मे मिलूँगा ,लेकिन उदास मत होना क्यूंकी मैं जल्द ही कुच्छ लोगो को स्वर्ग भेजने वाला हूँ...."
जब मुझे होश आए हुए कुच्छ वक़्त बीत गया तो मैने सबसे पहले ये चेक किया कि मेरे शरीर का कौन-कौन सा अंग काम कर रहा है....
गर्दन...बराबर दाए-बाए ,उपर-नीचे हिल रही थी...दोनो पैर भी सही सलामत थे लेकिन कयि जगह टाँके लगे थे, एक हाथ मे प्लास्टर चढ़ा हुआ था,लेकिन दूसरा हाथ बिल्कुल मस्त था,..लेकिन जब मैं अपने दूसरे हाथ की हथेलियो को हिलाता-डुलाता तो हल्का सा दर्द उभर रहा था....मेरे दोनो शोल्डर के साथ-साथ मेरी कमर को किसी चीज़ से बाँध कर रखा हुआ था,वो शायद इसलिए क्यूंकी मेरी हड्डिया बुरी तरह टूट चुकी थी जिसे वापस अपनी जगह सेट करने के लिए ये सब इंतज़ाम किया गया था....मेरे सर पर क्या-क्या करामात डॉक्टर लोगो ने की है ये मैं नही जानता था लेकिन जैसा कि मुझे अहसास हो रहा था उस हिसाब से सर पर भी काई जगह शायद टाँके लगाए होंगे...मैने अपना एक हाथ जो थोड़ा-बहुत हिल डुल सकता था उसे उठाकर अपने सर पर फिराया तो दंग रह गया क्यूंकी मेरे सर के सारे बाल ,जो कि मेरे हॅंडसम होने मे अहम भमिका निभाते थे ,उनको सॉफ कर दिया गया था...यानी कि मैं इस वक़्त एक हॉस्पिटल मे अपने हाथ-पैर, कंधे,सर और पीठ तुडवा के लेटा हुआ था....मुझे किसी चीज़ का ज़्यादा गम नही था सिवाय इसके के मेरे बाल अब मेरे सर पर नही है और मैं टकला हूँ
"साला कितना धाँसू हेअर स्टाइल था मेरा,महीनो की मेहनत एक पल मे ये साले उड़ा ले गये...इनकी तो "अंदर ही अंदर हॉस्पिटल वालो को गाली देते हुए मैने खुद से कहा...
इस सदमे से उभरने मे मुझे थोड़ा वक़्त लगा और थोड़े वक़्त के बाद मैने अपने अगल-बगल झाँका तो पाया कि वहाँ और भी कयि लोग लेटे हुए है...लेकिन सब के सब बेहोश थे या फिर सो रहे थे.
"इस समय टाइम क्या हुआ है , घड़ी भी नही टन्गी है कही..."जिस रूम मे मैं था ,उस रूम की दीवारो को मैने च्चन मारा, लेकिन इस समय टाइम क्या हुआ है,ये मालूम चल सके ,इसका वहाँ कोई इंतेज़ां नही था...जिस बेड पर मैं लेता था उससे थोड़ी डोर पर एक डॉक्टर(फीमेल) चेर पर बैठी किसी फाइल के पन्ने पलट रही थी...
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"जानेमन....."एक घुटि हुई सी आवाज़ उस लेडी डॉक्टर को देख कर मेरे मुँह से निकली,जिसे मैं खुद ही ढंग से नही सुन पाया....
मैने एक और बार उस लेडी डॉक्टर को पुकारा ,जो एप्रन पहने हुए मुझसे थोड़ी दूर पर बैठी हुई कुच्छ पढ़ रही थी..मेरी आवाज़ वो डॉक्टर तो नही सुन पाई लेकिन मेरे हिलने डुलने से ना जाने कैसी-कैसी भयानक मशीन ,जो कि मेरे मेरे बॉडी से कनेक्टेड थी,वो चू-चू..तू-तू की आवाज़ करने लगी और फाइनली उस डॉक्टर ने मेरी तरफ नज़र मारी.....
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"बोलो मत, रूको मैं तुम्हारे फॅमिली को इनफॉर्म करती हूँ कि तुम्हे होश आ गया है..."मेरे पास आते हुए वो बोली...
वैसे तो उसने मुझे ना बोलने के लिए कहा था, लेकिन मैने टाइम पुछने के लिए एक बार फिर अपना मुँह फाडा और घुटि हुई आवाज़ मे उससे टाइम पुछा...
"2 बज रहे है...और तुम कुच्छ मत बोलो..."
"तेरी दाई की चूत, प्राब्लम मुझे होगी या तुझे...ज़्यादा होशियारी मत चोद वरना सारी डॉक्टर गिरी गान्ड मे ठेल दूँगा..."उसने जब अपना डाइलॉग दोबारा रिपीट किया तो मैने उसको देखकर अंदर ही अंदर खुद से कहा और एक बार फिर से अपना मुँह फाडा" एम या पीएम..."
"ह्म...."
"2 एम या 2 पीयेम"अबकी बार मैने अपना पूरा ज़ोर लगाकर कहा और ये बोलने के बाद ही निढाल होकर बेड पर लंबी-लंबी साँसे भरने लगा...
"मैने बोला था ना,बोलने की कोशिश मत करो...नाउ रिलॅक्स, मैं तुम्हारे रिलेटिव्स को इनफॉर्म कर दूँगी..."
"साली रंडी... जा चूत मरा बीसी"
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उसके बाद जो मेरी जो आँख लगी वो मुझे नही पता कि कब खुली...और जब मेरी आँख दोबारा खुली तो मुझे सिर्फ़ इतना पता था कि मैं दूसरी बार जगह हूँ...मैने कुच्छ देर तक अपने हाथ-पैर हिलाए ,जिससे मेरे बॉडी से कनेक्टेड वो भयानक मशीन्स फिर से अपना अलार्म बजने लगी और एक नर्स तुरंत मेरे पास आई....
"अपने हाथ-पैर मत हिलाओ..."मेरे पैर को पकड़ कर सीधा करते हुए उसने कहा...जिससे कि मेरा माथा एक बार फिर गरम हो गया...
"लवडा मेरा हाथ-पैर है ,मैं हिलाऊ चाहे ना हिलाऊ...तू कौन होती है मुझे टोकने वाली..."सोचते हुए मैने एक बार फिर से अपने पैर को टेढ़ा किया ,जिसे सीधा बेड पर करते हुए उस नर्स ने ना जाने मेरे पैर पर क्या बाँध दिया और एक दवाई से भरी सीरिंज मेरे पिछवाड़े मे घुसा दी....
"तू रुक, होश आने दे...फिर यही सरिंज तेरे गान्ड मे डालूँगाआअ...."जमहाई मारते हुए मैं बड़बड़ाया और फिर से सो गया....
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नेक्स्ट टाइम जब मेरी नींद खुली तो पिछली बार की तरह इस बार भी मुझे सिर्फ़ इतना ही मालूम था कि मेरी आँख पहले भी खुल चुकी है....मेरा पैर अब भी किसी चीज़ से बँधा हुआ था और वो नर्स जिसने मेरे पिछवाड़े मे सुई घुसाई थी वो इस समय किसी दूसरे पेशेंट के पिछवाड़े मे सुई डाल रही थी...
"अबे मुझे होश आ गया है,कोई जाकर मेरे घरवालो को इसकी खबर देगा या मैं खुद जाउ उन्हे ये बताने "अपनी पूरी ताक़त इकट्ठा करके मैं चीखा,लेकिन आवाज़ उतनी तेज़ नही थी ,जितनी की अक्सर मे चीखने से होती थी...लेकिन वहाँ मौज़ूद सभी लोगो को सुनाई दे...इतनी तेज़ तो थी ही...
"वेट..."उस पेशेंट के पिछवाड़े मे सरिंज डालकर उस नर्स ने वहाँ मौज़ूद दूसरी नर्स से कहा कि वो मेरे रिलेटिव्स को ये खबर दे दे....
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अब मुझे अंदाज़ा हो चला था कि अब से कुच्छ देर बाद क्या होने वाला है..जैसे मैने सोचा था उसके हिसाब से किसी हिन्दी मूवी की तरह मेरी माँ सबसे आगे दौड़ते हुए मेरे पास आएगी ,उसके आँखो मे खुशी के आँसू होंगे...देन मेरे पिता जी मेरी माँ के बाद एंट्री मारेंगे, वो खुश तो होंगे लेकिन रिएक्ट ऐसे करेंगे,जैसे उन्हे कोई फरक ही नही पड़ता उसके बाद मेरा बड़ा भाई एंट्री मारेगा और ये जानते हुए भी मैं ठीक से बात नही कर सकता वो मुझसे बहुत सारे सवाल करेगा...मेरे बड़े भाई के सवाल के बम-बारी से जब मैं घायल हो जाउन्गा तो फिर मेरी माँ जिसके आँख मे इस वक़्त भी खुशी के आँसू होंगे,वो मेरे भाई को दाँटेगी और मेरे पिता श्री से फलाना मंदिर मे फलाना भगवान के नाम पर दान-दक्षिणा करने को कहेगी....
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ऐसा मैने बेड पर पड़े-पड़े सोचा था लेकिन लगता है कि शनि और मंगल अब भी मुझसे खफा-खफा है क्यूंकी मुझसे सबसे पहले मिलने के लिए ना तो मेरी माँ आई और ना ही मेरे पापा....मुझसे सबसे पहले मिलने दो लोग आए...एक था मेरा बड़ा भाई विपेन्द्र और दूसरा था मेरा गे दोस्त-अरुण.......
विपिन भैया को देखते ही मैं समझ गया था कि अब सवाल-जवाब की जोरदार बम-बारी होने वाली है...इसलिए मैने तय कर लिया था कि अब मैं 2.2 एक्स 1 जे 0.7 एम ,साइज़ वाले बेड पर चुप-चाप लेटा हुआ सिर्फ़ सर हिलाउन्गा और ऐसे शो करूँगा जैसे कि मैं कुच्छ बोल ही नही सकता,जैसे कि मैं गूंगा ही हो गया हूँ.....अरुण और विपिन भैया मेरे सामने आए ,मैने दोनो को देखा और अरुण को देख कर मेरा कलेजा जल उठा कि उसके सर पर बाल है उसके बाद मैने एक और चीज़ ऐसी देखी जिसे देखकर मेरा कलेजा और भी जला...वो था उन दोनो की हालत, पिटाई मेरी हुई थी, सारे शरीर पर ज़ख़्म खाकर मैं बिस्तर पर लेटा हुआ था ...लेकिन दर्द उन दोनो की आँखो मे मैं सॉफ देख सकता था.अरुण और बड़े भैया की आँखो मे खुशी और दुख का बड़ा अजीब कॉंबिनेशन था.जिसे समझने के लिए मुझे थोड़ा वक़्त लगा. वो दोनो बहुत खुश इसलिए थे क्यूंकी आज मैने ना जाने कितने दिनो बाद अपनी आँखे खोली थी....और मुझे मेरे ज़ख़्मो के साथ देखकर वो दोनो बहुत ज़्यादा दुखी थे, उस एक पल मे दोनो की ये हालत देखकर दिल किया कि साला अभी बिस्तर से उठु और गौतम के बाप का मर्डर कर दूं,दीपिका को नंगा सड़क पर दौड़ाऊ और नौशाद को हॉस्टिल मे ही दफ़ना दूं...वो एक पल साला पूरा फिल्मी महॉल था और ऐसे फिल्मी मोमेंट मे उबाई मारने वाला मैं खुद भी कुच्छ देर के लिए भावनाओ मे बह गया था...कुच्छ देर तक तो वहाँ ऐसी ही सिचुएशन रही और उस एक पल मे मैं ये भी भूल गया कि मुझे अपना मुँह नही खोलना है,चाहे धरती पलट जाए या फिर आसमान उलट जाए, लेकिन मैने अपना मुँह खोला,आँखो मे नमी लाते हुए अपना मुँह खोला...
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"सॉरी भैया...."
मेरे द्वारा सॉरी बोलने पर मेरा बड़ा भाई अब गुस्से मे आया लेकिन मुझसे कुच्छ नही बोला....
"मुझे नही पता था कि बात इतनी आगे बढ़ जाएगी..."मैने दोबारा विपिन भैया की तरफ देख कर कहा...
"घरवालो को कुच्छ मत बताना और मम्मी-पापा से तुझे क्या कहना है ये अरुण तुझे बता देगा..."
इतना बोलकर मेरा बड़ा भाई वहाँ से चलता बना.मेरी हालत और मुझे होश मे देख कर मेरा बड़ा भाई कुच्छ ज़्यादा ही एमोशनल हो गया था और मैं जानता था कि यदि वो थोड़ी देर और उधर मेरे पास रुकते तो एक धांसु बोरिंग सीन बनाते...
"क्या हाल है बे टकले..."विपिन भैया के जाने के बाद अरुण बोला"अब मूठ कैसे मारेगा बेटा...तेरा एक हाथ तो कुच्छ हफ़्तो के लिए गया काम से और दूसरा हाथ इस काबिल नही है कि तू मूठ मार सके..."
"मैने सोचा था कि तू थोड़ा बहुत दुखी होगा मेरी ये हालत देखकर "
"अबे दुखी तो मैं अब हुआ हूँ,तुझे होश मे देखकर..."अपनी चेयर को मेरी तरफ और पास खिसकाते हुए अरुण बोला"जब तक तू मरे हुए की तरह लेटा था ना तो मैं बेदम खुश था,मालूम है क्यूँ..."