hotaks444
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अब हमारा कहीं और जाने का प्लान नही था,इसलिए अरुण ने बाइक सीधे हॉस्टिल वाले रोड मे मोड़ दी थी...
"यार अरमान, दीपिका मॅम को कॉल लगाकर बुला,साली को चोदते है आज...बीसी ने बड़ा हार्ड वीवा लिया था..."बाइक चलाते हुए अरुण ने कहा...
"नंबर नही है साली का..."
"मेरे पास है...."भू ने जेब से मोबाइल निकाल कर मुझे दिया.....उस वक़्त मैं 80-90 की स्पीड मे शराब पीकर बाइक पर सवार था, ना तो मुझे वक़्त का अंदाज़ा था और ना ही किसी और चीज़ का...उस वक़्त जो मन मे आए,मेरे लिए वही सही था...जो भी अरुण और भू बोले, मैं उस वक़्त वही करता......दीपिका मॅम ,ने कॉल नही उठाया तो मैने भू को उसका मोबाइल दे दिया....जब दीपिका मॅम को कॉल नही लगा तब मैं वापस शांत होकर आँखो मे पड़ रही मस्त हवाओं का आनंद लेने लगा...लेकिन भू लगातार दीपिका मॅम को कॉल किए जा रहा था.....
"ले,ले...धर "
"क्या हुआ..."
"दीपिका चूत ने कॉल उठा ली, बुला साली को..."ये कहकर भू ने मोबाइल मेरे हाथ मे थमा दिया....
"हेलो..."
"हेलो..."
"हेलो..."मैने एक बार फिर हेलो कहा...
"कौन है..."उसने अपनी आवाज़ तेज़ करके कहा...
"चूत मरवा रही थी क्या जानेमन..."मैने भी आवाज़ तेज़ करके कहा, उस वक़्त मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नही था कि मैं किससे और किस तरह से बात कर रहा हूँ....
"कौन..."
"मैं हूँ,जिसने तुझे लॅब मे लंड चूसाया था...भूल गयी इतनी जल्दी..."
"अरमान..."उसने थोड़ा रुक कर जवाब दिया...
"यस, आजा हॉस्टिल ,चोदने का मन है किसी को...."
उसके बाद पता नही क्या हुआ, मैं उसे बोलता ही रहा आने को लेकिन इस बीच वो कुछ नही बोली, थोड़ी देर बाद मुझे मालूम चला कि उसने कॉल बहुत देर पहले ही काट दी थी, भू ने एक बार फिर उसका नंबर लगाया,लेकिन अब उसका नंबर स्विच ऑफ था....
"क्या बे ,कही वो नाराज़ तो नही हो गयी..."
" यही तो प्यार है पगले....राइट साइड वाला....ना तो मैं उसे चोद सकता हूँ, बिकॉज़ ऑफ हर चूत आंड ना ही वो मुझे चोद सकती है बिकॉज़ ऑफ माइ लंड
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उस दिन हम हॉस्टिल सुबह 4 बजे पहुँचे...हॉस्टिल आते वक़्त बीच रास्ते मे मैने जब भू के मोबाइल से दीपिका मॅम को कॉल लगाया था तब 1 बज रहे थे और वहाँ से हॉस्टिल तक आने मे हमे मुश्किल से आधा घंटा लगता ,लेकिन हम लोग आधे घंटे मे नही ,बल्कि 3 घंटे मे हॉस्टिल पहुँचे....ख़ैरियत थी कि हम तीनो मे से किसी को कुछ नही हुआ था,लेकिन हमने वो तीन घंटे कहाँ बिताए ये हमे ज़रा सा भी याद नही था...याद था तो बस सीनियर हॉस्टिल के सामने बाइक रोकना और फिर सीडार को कॉल लगाकर सीनियर हॉस्टिल का गेट खुलवाना.....क्यूंकी अपने हॉस्टिल मे जाते तो लफडा हो सकता था और यदि इसी पॉइंट को लेकर गर्ल्स हॉस्टिल की वॉर्डन ने रात वाले कांड से जोड़ दिया तो हम तीनो लंबे से फँस सकते थे, फिलहाल हमारा इस लफडे मे फँसने का कोई इरादा नही था,इसलिए हम तीनो अपने हॉस्टिल ना जाकर सीधे सीनियर हॉस्टिल पहुँचे थे.....
.
उसकी अगली सुबह मेरी नींद सीधे दोपहर को 11 बजे खुली और वो भी इसलिए क्यूंकी एक तो मुझे प्यास लगी थी और दूसरा बहुत देर से मेरा मोबाइल बज रहा था....मैने टेबल पर रखे हुई पानी की बॉटल को उठाया और आँखे मल कर एक नज़र मोबाइल स्क्रीन पर डाली....
"बीसी, 1000 मिस कॉल "
मैने तुरंत अपनी आँखो को हाथो से सहलाया और एक बार नज़र फिर मोबाइल पर डाली , मोबाइल पर 10 मिस कॉल्स थी और वो सभी मिस कॉल्स घर से थी.....मोबाइल को वापस बिस्तर पर पटक कर मैं हॉस्टिल के बाथरूम मे घुसा और नल चालू करके लगभग 5 मिनिट्स तक अपना सर ठंडे पानी से भीगोता रहा, ऐसा करने पर मुझे बहुत ठंडक महसूस हो रही थी....उसके बाद मैं वापस रूम पर आया और घर का नंबर डाइयल किया.....
"फोन क्यूँ नही उठाता, सुबह से हज़ार बार कॉल कर चुका हूँ..."
"कौन..विपिन भैया..."
"नही...रॉंग नंबर लगाया है तूने.."
"साइलेंट मे था मोबाइल कल रात से, अभी देखा तो मिस कॉल थी...."
"फाइन...घर कब आ रहा है..."
"आज ही दोपहर 12 बजे की ट्रेन है..."
"तो अभी कहाँ है...."
"अभी हॉस्टिल मे हूँ...."बोलते हुए मैने एक नज़र दीवार पर लगी घड़ी पर मारी " 11 तो यही बज गये...."
उसके बाद मैने तुरंत भैया से कहा कि मैं हॉस्टिल से रेलवे स्टेशन के लिए ही निकल रहा हूँ, बाद मे कॉल करता हूँ.....उसके बाद मैने मोबाइल सीधे अपनी जेब मे डाला और अरुण ,भू को लात मार कर उठाया.....
"अबे कुत्तो, मुझे रेलवे स्टेशन छोड़ो जल्दी..."
भू तो हिला तक नही, ले देकर मैने अरुण को उठाया और रेलवे स्टेशन चलने के लिए राज़ी किया.....उसके बाद 15 मिनट. मे मैने सब कुछ कर लिया, फ्रेश भी हो गया,बॅग भी पॅक कर लिया और बाइक पर बैठकर रेलवे स्टेशन के लिए भी निकल गया.....हॉस्टिल से निकलते वक़्त तो यही लग रहा था कि मैं कुछ नही भूला हूँ,लेकिन मुझे अपनी सीट पर बैठकर अपनी ग़लती का अहसास होने लगा था....
"ब्रश.....वो भी भूल गया "
"स्लीपर....वो भी भूल गया "
"एटीएम कार्ड...बीसी वो भी भूल गया..."
जब मुझे धीरे-धीरे याद आने लगा कि मैं क्या-क्या भूल गया हूँ तो मैने सबसे पहले बाकी काम छोड़ कर अपना वॉलेट चेक किया, और पीछे की जेब मे वॉलेट है ,ये देखकर मैने राहत की साँस ली.....मैने वॉलेट निकाला और देखने लगा कि उसमे कितना माल है,...
"कल रात तो 3000 था, एक ही रात मे ऐसा क्या कर दिया मैने...."
मैने सोचा की शायद 1000-500 की नोट दूसरे पॉकेट्स मे पड़ी होंगी,इसलिए मैने अपने दूसरे पॉकेट्स भी चेक करके देखा,...पैसे तो नही मिले..लेकिन मेरे जीन्स पैंट के जेब मे रखे हुए,पेन्सिल...एरेसर...कटर...एक पेन,जिस्लि स्याही बाहर निकल आई थी...यही सब थे...गुस्से मे मैने सारी चीज़े निकाल कर खिड़की से बाहर फेकि और इंतज़ार करने लगा ट्रेन के चलने का...
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जब घर से दूर था ,तब भी पढ़ाई की फिकर होती थी और अब घर पर हूँ तो अब भी मुझे पढ़ाई की फिकर है...कॉलेज मे मूड हर वक़्त बदलता रहता था इसलिए एक पल मे जो सोचता था वो दूसरे पल मे लाइट की वेलोसिटी से आर-पार हो जाता था, मैं स्टडी नही कर रहा हूँ ये ख़याल मुझे तब भी आया था,जब मैं कॉलेज मे था...लेकिन वहाँ का महॉल ही कुछ ऐसा था कि मैं कभी सीरीयस नही हो पाया...लेकिन इस वक़्त मैं घर पर था, जहाँ घर के अंदर एक कदम रखने से पहले ये पुछा गया कि एग्ज़ॅम कैसा गया,पांडे जी की बेटी का सब पेपर हंड्रेड टू हंड्रेड गया है...घर पर यदि कोई आता भी तो वो "कैसे हो बेटा"कहने की बजाय ये पुछ्ता की "एग्ज़ॅम कैसे गये,..."
कोई -कोई तो ये भी पुछ्ता कि कितने मार्क्स आ जाएँगे, मैं अपने ही घर मे किसी मुज़रिम की तरह क़ैद हो गया था,जिसकी वजह सिर्फ़ एक थी कि मेरे पेपर इतने खराब गये थे कि टॉप मारना तो पूरे यूनिवर्स की लंबाई मापने के बराबर था, इधर तो ये भी कन्फर्म नही था कि मैं किस-किस सब्जेक्ट मे पास हो जाउन्गा.....घर वाले मुझसे बहुत उम्मीदे जोड़े हुए थे, और इसमे उनकी ज़रा सी भी ग़लती नही थी...एलेक्ट्रान के साइज़ के बराबर भी ग़लती उनकी नही थी....उनकी ये उम्मीद मैने ही बाँधी थी..मेरे आज तक के एजुकेशन रेकॉर्ड ने ही उन्हे मुझसे इस तरह उम्मीद रखने के लिए प्रेरित किया था और जो सवाल वो आज पुच्छ रहे थे,वो सवाल वो मुझसे पहले भी करते थे...लेकिन फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि पहले मैं उनके इस तरह सवाल पुछने के पहले ही बोलता था कि "पापा, आज का पेपर पूरा बन गया,..."या फिर ये बोलता कि"1 नंबर का छूट गया है...."
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मेरे इस तरह कहने पर वो कहते कि "कोई बात नही बेटा...1 नंबर का ही तो छूटा है..."
यही उम्मीद मैं आज भी कर रहा था कि मैं जब उन्हे सब सच बताऊ तो वो पहले वाले अंदाज़ मे ही बोले कि"डॉन'ट वरी बेटा, ये तो फर्स्ट सेमेस्टर है ,बाकी के सात सेमेस्टर बाकी है..."
लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ, ना तो मैने उन्हे सच्चाई बताई और ना ही उन्होने मुझसे ऐसा कहा....जब तक ,जितने भी दिन मैं घर मे रहा मैं हर पल घुट रहा था,..हर पल,खाते,पीते ,सोते ,जागते मैं यही सोचता रहा कि मैं तब क्या कहूँगा,जब रिज़ल्ट निकलेगा...क्या बहाना मारूँगा....घर मे तो कुछ बहाना मार भी नही सकता था क्यूंकी घर मे इन सब बहानो को अच्छी तरह समझने वाला मेरा बड़ा भाई था...जो इस वक़्त मेरे सामने बैठा हुआ था....
"गर्ल फ्रेंड है कोई..."
"अयू..."
"अरे गर्ल फ्रेंड..."
"ना..."
"सिगरेट पिया..."
"पानी तक नही पीता मैं तो बिना फिल्टर किए हुए, सिगरेट तो बहुत दूर की बात है...."
"कल रात दारू कितनी पी थी..."
"एक भी नही "मैं तुरंत बोल पड़ा....
"मुझे हॉर्सराइड मत सिखा...तेरी आवाज़ सुनकर ही समझ गया था..."
"नो भाई, मैं तो उस वक़्त सो कर उठा था...."
"खा उस लड़की की कसम ,जो तुझे कॉलेज मे सबसे अच्छी लगती है ,कि तूने कल रात शराब नही पी थी..."
जैसे ही विपिन भैया ने ये बोला, मेरे जहाँ मे एश आई , अब दिक्कत ये थी कि एश की झूठी कसम खाकर खुद को ग़लत होते हुए भी सही साबित करना या फिर सब कुछ सच बता कर खुद एक नये बोझ से दूर रकखु...उस वक़्त मैने दूसरा रास्ता चुना, लेकिन क्यूँ ? ये मैं नही जानता....
"वो दोस्तो ने जबारजस्ति पिला दी थी..."
"अच्छा...तूने सच बोला इसका मतलब यही कि कॉलेज मे तेरी गर्ल फ्रेंड भी है...मना किया था ना ये सब करने के लिए...."
अभी तक मैं खुद को बहुत शातिर समझता था ,लेकिन इस वक़्त मेरी सारी होशयारी तेल लेने चली गयी थी, भैया ने बातो मे फँसा कर सब कुछ जान लिया था....अपने शब्दो के जाल मे फँसा कर विपिन भैया और भी कुछ ना जान जाए ,इसलिए मैं पानी पीने के बहाने से वहाँ से उठा और ऐसा उठा कि वापस उस तरफ गया ही नही
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वैसे तो छुट्टियाँ 7 दिन की थी,लेकिन हम सबने प्लान बनाकर ये डिसाइड किया था कि 15 दिन तक कॉलेज नही जाएँगे...और ये सही भी था,क्यूंकी यदि अभी कॉलेज से बंक नही मारेंगे तो क्या बाद मे ऑफीस से बंक मारेंगे...लेकिन मुझे उस वक़्त घर मे ऐसा महॉल क्रियेट होगा...इसका मुझे अंदाज़ा नही था, सोचा था कि घर मे रहूँगा, बढ़िया 15 दिन तक खाना खाउन्गा और बाद मे कॉलेज के लिए रवाना....लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ,क्यूंकी ये मेरा कॉलेज नही,ये मेरा घर था,जहाँ मैं अपने हिसाब से नही चल सकता था....घर मे रात को 10 या 11 बजे तक सोना पड़ता था,ताकि सुबह 6 बजे तक नींद खुल जाए.....मैं रात को 10 बजे सोने की बहुत कोशिश करता लेकिन सफल नही होता था...मैं अपने रूम के बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं कॉलेज की लड़कियो के बारे मे देर रात तक सोचता रहता...कभी-कभी मेरी ये सोच आधे घंटे तक चलती तो कभी कुछ घंटो तक...और एक दिन तो ग़ज़ब हो गया जब मैं इसी सोच मे इतना खो गया कि सुबह के 3 बजे तक मैं जागता हुआ करवटें बदलता रहा....
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मुझे अपने घर की ज़िंदगी रास नही आ रही थी...इसलिए मैने डिसाइड किया कि मैं 7 दिन बाद कुछ भी बहाना मारकर यहाँ से निकल जाउन्गा ,भले ही मुझे विदाउट रिज़र्वेशन ही क्यूँ ना जाना पड़े....और अपने इसी प्लान को कामयाब करने के लिए मैने पहला तीर तब चलाया...जब शाम को सब एक साथ हॉल मे बैठे थे, इस वक़्त हॉल मे टी.वी. चालू था और उसमे बेहद ही बकवास और बोरिंग...सीरियल चल रहा था...बकवास इसलिए क्यूंकी वो बकवास था और बोरिंग इसलिए क्यूंकी इन सीरियल वालो ने एक अच्छी ख़ासी टनटन माल को साड़ी पहना कर रखा हुआ था,सबसे पहले यकीन भैया को दिलाना था,इसलिए मैने सबसे पहले उन्ही से बोला...
" भैया....कल मुझे वापस जाना है..."
"कहाँ..."
"आइयूéयूàन..."
"अब हिन्दी मे बोल..."
"चाइनीस मे आइयूéयूàन का मतलब कॉलेज होता है...मुझे कल कॉलेज जाना है..."
"तूने तो कहा था कि 15 दिनो के लिए यहाँ आया है..."
"आक्च्युयली...भैया वो क्या है कि..मैने भी यही सोचा था ,लेकिन फिर वो मैं, मुझे खुद मालूम..या मुझे..."
"ये तेरी आन्सर शीट नही है जो शब्दो को घुमा-घुमा कर भरेगा...अब जल्दी बोल.."
"फॉर्म भरना है..."मैने झट से जवाब दिया...और ये आइडिया मुझे सामने चल रहे बकवास और बोरिंग सीरियल से ही सूझा था...जिसमे एक माल दूसरे माल को एक पेपर पकड़ा कर साइन करवा रही थी....
"फॉर्म कैसा फॉर्म.."
"सेकेंड सेमेस्टर का...मेरे एक दोस्त का फोन आया था सुबह उसी ने बताया कि कल से फॉर्म मिलना चालू हो जाएगा..."
"तो लास्ट डेट मे भर लेना...उसमे कौन सी बड़ी बात है..."
"अरे भैया आप समझ नही रहे हो,...शुरू-शुरू मे भीड़-भाड़ बहुत कम रहती है, इसलिए जितना जल्दी भर दिया जाए...उतना ही सही है...."
विपिन भैया चुप होकर कुछ सोचने लगे और फिर मेरी तरफ देखकर बोले"तो फिर कल फॉर्म भरकर वापस घर आ जाना...सिंपल..."
"ठीक है,,,"अपने प्लान की भजिया बनते देख मैं वहाँ से उठा और अंदर आकर अंदर ही अंदर दहाड़ मारने लगा....
"लेकिन भैया...कल आने मे प्राब्लम है..."मैं वापस हॉल मे गया और विपिन भैया के साइड मे बैठकर बोला"दो-तीन दिन के लिए अब मैं क्या वापस आउन्गा...वही रुक जाउन्गा..."
"एक हफ्ते मे दो-तीन दिन होते है क्या..."
"नही "
"तो फिर ऐसा क्यूँ बोला कि दो तीन दिन के लिए क्या आएगा....कल सीधे से कॉलेज जाना और सीधे से वापस आना..."
"धत्त तेरी की...."
उसके अगले दिन ठीक वैसा ही हुआ,मैं घर से फॉर्म भरने के बहाने निकला और दिन भर घूम कर रात को 9 बजे,ट्रेन के टाइम पर रेलवे स्टेशन पहुच गया.....
"हो गया काम..."मुझे पिक अप करने के लिए आए विपिन भैया ने पुछा...
"हां...हो गया.."
"स्लिप कहा है..."
"स्लिप ???" मैं कुछ देर तक सोच मे पड़ गया की भैया किस स्लिप के बारे मे बात कर रहे...
"स्लिप बे..."
"धत्त तेरी की...वो तो मैं हॉस्टिल मे ही भूल आया..."
"अगली बार से ध्यान रखना..."एक कड़क आवाज़ मेरे कानो मे गूँजी...
"जी भैया..."
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वो 15 दिन मैने जैसे-तैसे बिताए...उन 15 दिनो मे मुझे ऐसा लगने लगा था कि जैसे वो 15 दिन 15 साल के बराबर हो...लेकिन अब मैं अपने कॉलेज वापस आ गया था, यानी कि सेकेंड सेमेस्टर मे...इस सेमेस्टर मे बहुत कुछ नया होने वाला था...कुछ अच्छा था तो कुछ बेहद बुरा....दीपिका मॅम का अब कोई पीरियड क्लास मे नही था, ये मेरे लिए एक बुरी खबर थी...कुछ लौन्डो ने कहा था कि रिज़ल्ट इस बार जल्दी आएगा ..ये भी मेरे लिए बुरी खबर थी....और इस वक़्त सबसे बुरी खबर ये थी कि मैं इस वक़्त हॉस्टिल मे अपने ही रूम के बाहर कंधे पर बॅग टांगे खड़ा था...क्यूंकी अरुण रूम से कहीं फरार था...वो घर से तो आ गया था,लेकिन अभी कहीं गया हुआ था....मैं पिछले 15 मिनट. मे 3 बार उसे कॉल लगा चुका था और हर बार वो यही जवाब देता कि बस 5 मिनट.
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घर से सोचकर आया था कि इस सेमेस्टर मे कुछ भी उल्टा सीधा नही करूँगा...ना तो लौंडियबाज़ी करूँगा और ना ही लड़ाई झगड़ा और दिन मे 3 सिगरेट से ज़्यादा नही पीऊंग....ये सेमेस्टर मेरे लिए एक दम नया था,क्यूंकी बहुत सी चीज़े नयी होने वाली थी जैसे कि न्यू सब्जेक्ट्स थे...कुछ नये टीचर्स, नये लॅब...वर्कशॉप एट्सेटरा. एट्सेटरा.
लेकिन सबसे ज़्यादा नयापन तो उस दिन लगने वाला था, जिस्दिन हमारा रिज़ल्ट आता..
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सेकेंड सेमेस्टर शुरू होने के एक दिन पहले मैं रात भर यही सोचता रहा कि कैसे मैं बेकार की चीज़ो को अवाय्ड करूँ, ताकि मैं ठीक वैसी ही स्टडी कर सकूँ,जैसे पिछले कयि सालो से करता आया था...मैने बहुत सोचा, रात भर अपना सर इसी सोच मे खपा दिया तब मुझे समझ आया कि इसकी जड़ तो मेरे रूम से ही शुरू होती है और यदि मुझे सुधरना है तो इसके दो ही रास्ते है, या तो खुद मैं रूम छोड़ दूं या फिर अरुण को दूसरे रूम मे शिफ्ट होने के लिए कहूँ....सल्यूशन एक दम सिंपल था...मैं जान चुका था कि मुझे क्या करना चाहिए, लेकिन मैने ऐसा नही किया...या फिर ये कहें कि मेरी हिम्मत ही नही हुई कि अरुण को मैं दूसरे रूम मे जाने के लिए कहूँ....मैने खुद ने भी रूम नही बदला, जिसका सॉफ और सुढृढ मतलब यही था कि मैं खुद भी उसी रूम मे अरुण के साथ रहना चाहता था और अपनी ज़िंदगी की जड़े खोदकर बाहर कर देना चाहता था.....
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नींद सुबह के 5 बजे लगी और जैसा कि अक्सर होता था मेरी नींद अरुण के जगाने से खुली...
"अबे ,फर्स्ट क्लास दंमो रानी की है, मरवाएगा क्या..."
"टाइम "
"सिर्फ़ 10 मिनिट्स..."
"क्या...सिर्फ़ 10 मिनिट्स..."मैं तुरंत उठकर बैठ गया और हाथ मुँह धोकर ,बालो मे थोड़ा पानी डाला और कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गया....
वैसे तो इस सेमेस्टर मे सारे सब्जेक्ट ही न्यू थे,लेकिन कुछ टीचर्स वही थे जिन्होने फर्स्ट सेमेस्टर मे हमारा सर खाया था...दंमो रानी इस सेमेस्टर मे भी हमे बात-बात पर क्लास से बाहर भेजने के लिए तैयार थी ,कुर्रे सर और उनका"आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते"डाइलॉग भी हमारे सर पर हथौड़ा मारने के लिए हमारे साथ था....साथ नही थी तो वो थी दीपिका मॅम, दीपिका मॅम के यूँ चले जाने से मुझे दुख तो नही हुआ लेकिन थोड़ा बुरा ज़रूर लगा था,क्यूंकी मैने अच्छा ख़ासा वक़्त उनकी लॅब मे बिताया था और वो वक़्त ऐसा था कि जिसे मैं कभी भूल नही सकता था, मैं ही क्या ,मेरी जगह यदि कोई और भी होता तो वो दीपिका मॅम को नही भूल पाता...क्यूंकी उसकी जैसे एक दम बिंदास रापचिक माल ,जो रिसेस मे आपका लंड चूसे उसे भूलना मुश्किल होता है और उस पल को भी जब ये सब हुआ
"यार अरमान, दीपिका मॅम को कॉल लगाकर बुला,साली को चोदते है आज...बीसी ने बड़ा हार्ड वीवा लिया था..."बाइक चलाते हुए अरुण ने कहा...
"नंबर नही है साली का..."
"मेरे पास है...."भू ने जेब से मोबाइल निकाल कर मुझे दिया.....उस वक़्त मैं 80-90 की स्पीड मे शराब पीकर बाइक पर सवार था, ना तो मुझे वक़्त का अंदाज़ा था और ना ही किसी और चीज़ का...उस वक़्त जो मन मे आए,मेरे लिए वही सही था...जो भी अरुण और भू बोले, मैं उस वक़्त वही करता......दीपिका मॅम ,ने कॉल नही उठाया तो मैने भू को उसका मोबाइल दे दिया....जब दीपिका मॅम को कॉल नही लगा तब मैं वापस शांत होकर आँखो मे पड़ रही मस्त हवाओं का आनंद लेने लगा...लेकिन भू लगातार दीपिका मॅम को कॉल किए जा रहा था.....
"ले,ले...धर "
"क्या हुआ..."
"दीपिका चूत ने कॉल उठा ली, बुला साली को..."ये कहकर भू ने मोबाइल मेरे हाथ मे थमा दिया....
"हेलो..."
"हेलो..."
"हेलो..."मैने एक बार फिर हेलो कहा...
"कौन है..."उसने अपनी आवाज़ तेज़ करके कहा...
"चूत मरवा रही थी क्या जानेमन..."मैने भी आवाज़ तेज़ करके कहा, उस वक़्त मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नही था कि मैं किससे और किस तरह से बात कर रहा हूँ....
"कौन..."
"मैं हूँ,जिसने तुझे लॅब मे लंड चूसाया था...भूल गयी इतनी जल्दी..."
"अरमान..."उसने थोड़ा रुक कर जवाब दिया...
"यस, आजा हॉस्टिल ,चोदने का मन है किसी को...."
उसके बाद पता नही क्या हुआ, मैं उसे बोलता ही रहा आने को लेकिन इस बीच वो कुछ नही बोली, थोड़ी देर बाद मुझे मालूम चला कि उसने कॉल बहुत देर पहले ही काट दी थी, भू ने एक बार फिर उसका नंबर लगाया,लेकिन अब उसका नंबर स्विच ऑफ था....
"क्या बे ,कही वो नाराज़ तो नही हो गयी..."
" यही तो प्यार है पगले....राइट साइड वाला....ना तो मैं उसे चोद सकता हूँ, बिकॉज़ ऑफ हर चूत आंड ना ही वो मुझे चोद सकती है बिकॉज़ ऑफ माइ लंड
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उस दिन हम हॉस्टिल सुबह 4 बजे पहुँचे...हॉस्टिल आते वक़्त बीच रास्ते मे मैने जब भू के मोबाइल से दीपिका मॅम को कॉल लगाया था तब 1 बज रहे थे और वहाँ से हॉस्टिल तक आने मे हमे मुश्किल से आधा घंटा लगता ,लेकिन हम लोग आधे घंटे मे नही ,बल्कि 3 घंटे मे हॉस्टिल पहुँचे....ख़ैरियत थी कि हम तीनो मे से किसी को कुछ नही हुआ था,लेकिन हमने वो तीन घंटे कहाँ बिताए ये हमे ज़रा सा भी याद नही था...याद था तो बस सीनियर हॉस्टिल के सामने बाइक रोकना और फिर सीडार को कॉल लगाकर सीनियर हॉस्टिल का गेट खुलवाना.....क्यूंकी अपने हॉस्टिल मे जाते तो लफडा हो सकता था और यदि इसी पॉइंट को लेकर गर्ल्स हॉस्टिल की वॉर्डन ने रात वाले कांड से जोड़ दिया तो हम तीनो लंबे से फँस सकते थे, फिलहाल हमारा इस लफडे मे फँसने का कोई इरादा नही था,इसलिए हम तीनो अपने हॉस्टिल ना जाकर सीधे सीनियर हॉस्टिल पहुँचे थे.....
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उसकी अगली सुबह मेरी नींद सीधे दोपहर को 11 बजे खुली और वो भी इसलिए क्यूंकी एक तो मुझे प्यास लगी थी और दूसरा बहुत देर से मेरा मोबाइल बज रहा था....मैने टेबल पर रखे हुई पानी की बॉटल को उठाया और आँखे मल कर एक नज़र मोबाइल स्क्रीन पर डाली....
"बीसी, 1000 मिस कॉल "
मैने तुरंत अपनी आँखो को हाथो से सहलाया और एक बार नज़र फिर मोबाइल पर डाली , मोबाइल पर 10 मिस कॉल्स थी और वो सभी मिस कॉल्स घर से थी.....मोबाइल को वापस बिस्तर पर पटक कर मैं हॉस्टिल के बाथरूम मे घुसा और नल चालू करके लगभग 5 मिनिट्स तक अपना सर ठंडे पानी से भीगोता रहा, ऐसा करने पर मुझे बहुत ठंडक महसूस हो रही थी....उसके बाद मैं वापस रूम पर आया और घर का नंबर डाइयल किया.....
"फोन क्यूँ नही उठाता, सुबह से हज़ार बार कॉल कर चुका हूँ..."
"कौन..विपिन भैया..."
"नही...रॉंग नंबर लगाया है तूने.."
"साइलेंट मे था मोबाइल कल रात से, अभी देखा तो मिस कॉल थी...."
"फाइन...घर कब आ रहा है..."
"आज ही दोपहर 12 बजे की ट्रेन है..."
"तो अभी कहाँ है...."
"अभी हॉस्टिल मे हूँ...."बोलते हुए मैने एक नज़र दीवार पर लगी घड़ी पर मारी " 11 तो यही बज गये...."
उसके बाद मैने तुरंत भैया से कहा कि मैं हॉस्टिल से रेलवे स्टेशन के लिए ही निकल रहा हूँ, बाद मे कॉल करता हूँ.....उसके बाद मैने मोबाइल सीधे अपनी जेब मे डाला और अरुण ,भू को लात मार कर उठाया.....
"अबे कुत्तो, मुझे रेलवे स्टेशन छोड़ो जल्दी..."
भू तो हिला तक नही, ले देकर मैने अरुण को उठाया और रेलवे स्टेशन चलने के लिए राज़ी किया.....उसके बाद 15 मिनट. मे मैने सब कुछ कर लिया, फ्रेश भी हो गया,बॅग भी पॅक कर लिया और बाइक पर बैठकर रेलवे स्टेशन के लिए भी निकल गया.....हॉस्टिल से निकलते वक़्त तो यही लग रहा था कि मैं कुछ नही भूला हूँ,लेकिन मुझे अपनी सीट पर बैठकर अपनी ग़लती का अहसास होने लगा था....
"ब्रश.....वो भी भूल गया "
"स्लीपर....वो भी भूल गया "
"एटीएम कार्ड...बीसी वो भी भूल गया..."
जब मुझे धीरे-धीरे याद आने लगा कि मैं क्या-क्या भूल गया हूँ तो मैने सबसे पहले बाकी काम छोड़ कर अपना वॉलेट चेक किया, और पीछे की जेब मे वॉलेट है ,ये देखकर मैने राहत की साँस ली.....मैने वॉलेट निकाला और देखने लगा कि उसमे कितना माल है,...
"कल रात तो 3000 था, एक ही रात मे ऐसा क्या कर दिया मैने...."
मैने सोचा की शायद 1000-500 की नोट दूसरे पॉकेट्स मे पड़ी होंगी,इसलिए मैने अपने दूसरे पॉकेट्स भी चेक करके देखा,...पैसे तो नही मिले..लेकिन मेरे जीन्स पैंट के जेब मे रखे हुए,पेन्सिल...एरेसर...कटर...एक पेन,जिस्लि स्याही बाहर निकल आई थी...यही सब थे...गुस्से मे मैने सारी चीज़े निकाल कर खिड़की से बाहर फेकि और इंतज़ार करने लगा ट्रेन के चलने का...
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जब घर से दूर था ,तब भी पढ़ाई की फिकर होती थी और अब घर पर हूँ तो अब भी मुझे पढ़ाई की फिकर है...कॉलेज मे मूड हर वक़्त बदलता रहता था इसलिए एक पल मे जो सोचता था वो दूसरे पल मे लाइट की वेलोसिटी से आर-पार हो जाता था, मैं स्टडी नही कर रहा हूँ ये ख़याल मुझे तब भी आया था,जब मैं कॉलेज मे था...लेकिन वहाँ का महॉल ही कुछ ऐसा था कि मैं कभी सीरीयस नही हो पाया...लेकिन इस वक़्त मैं घर पर था, जहाँ घर के अंदर एक कदम रखने से पहले ये पुछा गया कि एग्ज़ॅम कैसा गया,पांडे जी की बेटी का सब पेपर हंड्रेड टू हंड्रेड गया है...घर पर यदि कोई आता भी तो वो "कैसे हो बेटा"कहने की बजाय ये पुछ्ता की "एग्ज़ॅम कैसे गये,..."
कोई -कोई तो ये भी पुछ्ता कि कितने मार्क्स आ जाएँगे, मैं अपने ही घर मे किसी मुज़रिम की तरह क़ैद हो गया था,जिसकी वजह सिर्फ़ एक थी कि मेरे पेपर इतने खराब गये थे कि टॉप मारना तो पूरे यूनिवर्स की लंबाई मापने के बराबर था, इधर तो ये भी कन्फर्म नही था कि मैं किस-किस सब्जेक्ट मे पास हो जाउन्गा.....घर वाले मुझसे बहुत उम्मीदे जोड़े हुए थे, और इसमे उनकी ज़रा सी भी ग़लती नही थी...एलेक्ट्रान के साइज़ के बराबर भी ग़लती उनकी नही थी....उनकी ये उम्मीद मैने ही बाँधी थी..मेरे आज तक के एजुकेशन रेकॉर्ड ने ही उन्हे मुझसे इस तरह उम्मीद रखने के लिए प्रेरित किया था और जो सवाल वो आज पुच्छ रहे थे,वो सवाल वो मुझसे पहले भी करते थे...लेकिन फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि पहले मैं उनके इस तरह सवाल पुछने के पहले ही बोलता था कि "पापा, आज का पेपर पूरा बन गया,..."या फिर ये बोलता कि"1 नंबर का छूट गया है...."
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मेरे इस तरह कहने पर वो कहते कि "कोई बात नही बेटा...1 नंबर का ही तो छूटा है..."
यही उम्मीद मैं आज भी कर रहा था कि मैं जब उन्हे सब सच बताऊ तो वो पहले वाले अंदाज़ मे ही बोले कि"डॉन'ट वरी बेटा, ये तो फर्स्ट सेमेस्टर है ,बाकी के सात सेमेस्टर बाकी है..."
लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ, ना तो मैने उन्हे सच्चाई बताई और ना ही उन्होने मुझसे ऐसा कहा....जब तक ,जितने भी दिन मैं घर मे रहा मैं हर पल घुट रहा था,..हर पल,खाते,पीते ,सोते ,जागते मैं यही सोचता रहा कि मैं तब क्या कहूँगा,जब रिज़ल्ट निकलेगा...क्या बहाना मारूँगा....घर मे तो कुछ बहाना मार भी नही सकता था क्यूंकी घर मे इन सब बहानो को अच्छी तरह समझने वाला मेरा बड़ा भाई था...जो इस वक़्त मेरे सामने बैठा हुआ था....
"गर्ल फ्रेंड है कोई..."
"अयू..."
"अरे गर्ल फ्रेंड..."
"ना..."
"सिगरेट पिया..."
"पानी तक नही पीता मैं तो बिना फिल्टर किए हुए, सिगरेट तो बहुत दूर की बात है...."
"कल रात दारू कितनी पी थी..."
"एक भी नही "मैं तुरंत बोल पड़ा....
"मुझे हॉर्सराइड मत सिखा...तेरी आवाज़ सुनकर ही समझ गया था..."
"नो भाई, मैं तो उस वक़्त सो कर उठा था...."
"खा उस लड़की की कसम ,जो तुझे कॉलेज मे सबसे अच्छी लगती है ,कि तूने कल रात शराब नही पी थी..."
जैसे ही विपिन भैया ने ये बोला, मेरे जहाँ मे एश आई , अब दिक्कत ये थी कि एश की झूठी कसम खाकर खुद को ग़लत होते हुए भी सही साबित करना या फिर सब कुछ सच बता कर खुद एक नये बोझ से दूर रकखु...उस वक़्त मैने दूसरा रास्ता चुना, लेकिन क्यूँ ? ये मैं नही जानता....
"वो दोस्तो ने जबारजस्ति पिला दी थी..."
"अच्छा...तूने सच बोला इसका मतलब यही कि कॉलेज मे तेरी गर्ल फ्रेंड भी है...मना किया था ना ये सब करने के लिए...."
अभी तक मैं खुद को बहुत शातिर समझता था ,लेकिन इस वक़्त मेरी सारी होशयारी तेल लेने चली गयी थी, भैया ने बातो मे फँसा कर सब कुछ जान लिया था....अपने शब्दो के जाल मे फँसा कर विपिन भैया और भी कुछ ना जान जाए ,इसलिए मैं पानी पीने के बहाने से वहाँ से उठा और ऐसा उठा कि वापस उस तरफ गया ही नही
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वैसे तो छुट्टियाँ 7 दिन की थी,लेकिन हम सबने प्लान बनाकर ये डिसाइड किया था कि 15 दिन तक कॉलेज नही जाएँगे...और ये सही भी था,क्यूंकी यदि अभी कॉलेज से बंक नही मारेंगे तो क्या बाद मे ऑफीस से बंक मारेंगे...लेकिन मुझे उस वक़्त घर मे ऐसा महॉल क्रियेट होगा...इसका मुझे अंदाज़ा नही था, सोचा था कि घर मे रहूँगा, बढ़िया 15 दिन तक खाना खाउन्गा और बाद मे कॉलेज के लिए रवाना....लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ,क्यूंकी ये मेरा कॉलेज नही,ये मेरा घर था,जहाँ मैं अपने हिसाब से नही चल सकता था....घर मे रात को 10 या 11 बजे तक सोना पड़ता था,ताकि सुबह 6 बजे तक नींद खुल जाए.....मैं रात को 10 बजे सोने की बहुत कोशिश करता लेकिन सफल नही होता था...मैं अपने रूम के बिस्तर पर पड़े-पड़े मैं कॉलेज की लड़कियो के बारे मे देर रात तक सोचता रहता...कभी-कभी मेरी ये सोच आधे घंटे तक चलती तो कभी कुछ घंटो तक...और एक दिन तो ग़ज़ब हो गया जब मैं इसी सोच मे इतना खो गया कि सुबह के 3 बजे तक मैं जागता हुआ करवटें बदलता रहा....
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मुझे अपने घर की ज़िंदगी रास नही आ रही थी...इसलिए मैने डिसाइड किया कि मैं 7 दिन बाद कुछ भी बहाना मारकर यहाँ से निकल जाउन्गा ,भले ही मुझे विदाउट रिज़र्वेशन ही क्यूँ ना जाना पड़े....और अपने इसी प्लान को कामयाब करने के लिए मैने पहला तीर तब चलाया...जब शाम को सब एक साथ हॉल मे बैठे थे, इस वक़्त हॉल मे टी.वी. चालू था और उसमे बेहद ही बकवास और बोरिंग...सीरियल चल रहा था...बकवास इसलिए क्यूंकी वो बकवास था और बोरिंग इसलिए क्यूंकी इन सीरियल वालो ने एक अच्छी ख़ासी टनटन माल को साड़ी पहना कर रखा हुआ था,सबसे पहले यकीन भैया को दिलाना था,इसलिए मैने सबसे पहले उन्ही से बोला...
" भैया....कल मुझे वापस जाना है..."
"कहाँ..."
"आइयूéयूàन..."
"अब हिन्दी मे बोल..."
"चाइनीस मे आइयूéयूàन का मतलब कॉलेज होता है...मुझे कल कॉलेज जाना है..."
"तूने तो कहा था कि 15 दिनो के लिए यहाँ आया है..."
"आक्च्युयली...भैया वो क्या है कि..मैने भी यही सोचा था ,लेकिन फिर वो मैं, मुझे खुद मालूम..या मुझे..."
"ये तेरी आन्सर शीट नही है जो शब्दो को घुमा-घुमा कर भरेगा...अब जल्दी बोल.."
"फॉर्म भरना है..."मैने झट से जवाब दिया...और ये आइडिया मुझे सामने चल रहे बकवास और बोरिंग सीरियल से ही सूझा था...जिसमे एक माल दूसरे माल को एक पेपर पकड़ा कर साइन करवा रही थी....
"फॉर्म कैसा फॉर्म.."
"सेकेंड सेमेस्टर का...मेरे एक दोस्त का फोन आया था सुबह उसी ने बताया कि कल से फॉर्म मिलना चालू हो जाएगा..."
"तो लास्ट डेट मे भर लेना...उसमे कौन सी बड़ी बात है..."
"अरे भैया आप समझ नही रहे हो,...शुरू-शुरू मे भीड़-भाड़ बहुत कम रहती है, इसलिए जितना जल्दी भर दिया जाए...उतना ही सही है...."
विपिन भैया चुप होकर कुछ सोचने लगे और फिर मेरी तरफ देखकर बोले"तो फिर कल फॉर्म भरकर वापस घर आ जाना...सिंपल..."
"ठीक है,,,"अपने प्लान की भजिया बनते देख मैं वहाँ से उठा और अंदर आकर अंदर ही अंदर दहाड़ मारने लगा....
"लेकिन भैया...कल आने मे प्राब्लम है..."मैं वापस हॉल मे गया और विपिन भैया के साइड मे बैठकर बोला"दो-तीन दिन के लिए अब मैं क्या वापस आउन्गा...वही रुक जाउन्गा..."
"एक हफ्ते मे दो-तीन दिन होते है क्या..."
"नही "
"तो फिर ऐसा क्यूँ बोला कि दो तीन दिन के लिए क्या आएगा....कल सीधे से कॉलेज जाना और सीधे से वापस आना..."
"धत्त तेरी की...."
उसके अगले दिन ठीक वैसा ही हुआ,मैं घर से फॉर्म भरने के बहाने निकला और दिन भर घूम कर रात को 9 बजे,ट्रेन के टाइम पर रेलवे स्टेशन पहुच गया.....
"हो गया काम..."मुझे पिक अप करने के लिए आए विपिन भैया ने पुछा...
"हां...हो गया.."
"स्लिप कहा है..."
"स्लिप ???" मैं कुछ देर तक सोच मे पड़ गया की भैया किस स्लिप के बारे मे बात कर रहे...
"स्लिप बे..."
"धत्त तेरी की...वो तो मैं हॉस्टिल मे ही भूल आया..."
"अगली बार से ध्यान रखना..."एक कड़क आवाज़ मेरे कानो मे गूँजी...
"जी भैया..."
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वो 15 दिन मैने जैसे-तैसे बिताए...उन 15 दिनो मे मुझे ऐसा लगने लगा था कि जैसे वो 15 दिन 15 साल के बराबर हो...लेकिन अब मैं अपने कॉलेज वापस आ गया था, यानी कि सेकेंड सेमेस्टर मे...इस सेमेस्टर मे बहुत कुछ नया होने वाला था...कुछ अच्छा था तो कुछ बेहद बुरा....दीपिका मॅम का अब कोई पीरियड क्लास मे नही था, ये मेरे लिए एक बुरी खबर थी...कुछ लौन्डो ने कहा था कि रिज़ल्ट इस बार जल्दी आएगा ..ये भी मेरे लिए बुरी खबर थी....और इस वक़्त सबसे बुरी खबर ये थी कि मैं इस वक़्त हॉस्टिल मे अपने ही रूम के बाहर कंधे पर बॅग टांगे खड़ा था...क्यूंकी अरुण रूम से कहीं फरार था...वो घर से तो आ गया था,लेकिन अभी कहीं गया हुआ था....मैं पिछले 15 मिनट. मे 3 बार उसे कॉल लगा चुका था और हर बार वो यही जवाब देता कि बस 5 मिनट.
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घर से सोचकर आया था कि इस सेमेस्टर मे कुछ भी उल्टा सीधा नही करूँगा...ना तो लौंडियबाज़ी करूँगा और ना ही लड़ाई झगड़ा और दिन मे 3 सिगरेट से ज़्यादा नही पीऊंग....ये सेमेस्टर मेरे लिए एक दम नया था,क्यूंकी बहुत सी चीज़े नयी होने वाली थी जैसे कि न्यू सब्जेक्ट्स थे...कुछ नये टीचर्स, नये लॅब...वर्कशॉप एट्सेटरा. एट्सेटरा.
लेकिन सबसे ज़्यादा नयापन तो उस दिन लगने वाला था, जिस्दिन हमारा रिज़ल्ट आता..
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सेकेंड सेमेस्टर शुरू होने के एक दिन पहले मैं रात भर यही सोचता रहा कि कैसे मैं बेकार की चीज़ो को अवाय्ड करूँ, ताकि मैं ठीक वैसी ही स्टडी कर सकूँ,जैसे पिछले कयि सालो से करता आया था...मैने बहुत सोचा, रात भर अपना सर इसी सोच मे खपा दिया तब मुझे समझ आया कि इसकी जड़ तो मेरे रूम से ही शुरू होती है और यदि मुझे सुधरना है तो इसके दो ही रास्ते है, या तो खुद मैं रूम छोड़ दूं या फिर अरुण को दूसरे रूम मे शिफ्ट होने के लिए कहूँ....सल्यूशन एक दम सिंपल था...मैं जान चुका था कि मुझे क्या करना चाहिए, लेकिन मैने ऐसा नही किया...या फिर ये कहें कि मेरी हिम्मत ही नही हुई कि अरुण को मैं दूसरे रूम मे जाने के लिए कहूँ....मैने खुद ने भी रूम नही बदला, जिसका सॉफ और सुढृढ मतलब यही था कि मैं खुद भी उसी रूम मे अरुण के साथ रहना चाहता था और अपनी ज़िंदगी की जड़े खोदकर बाहर कर देना चाहता था.....
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नींद सुबह के 5 बजे लगी और जैसा कि अक्सर होता था मेरी नींद अरुण के जगाने से खुली...
"अबे ,फर्स्ट क्लास दंमो रानी की है, मरवाएगा क्या..."
"टाइम "
"सिर्फ़ 10 मिनिट्स..."
"क्या...सिर्फ़ 10 मिनिट्स..."मैं तुरंत उठकर बैठ गया और हाथ मुँह धोकर ,बालो मे थोड़ा पानी डाला और कॉलेज जाने के लिए तैयार हो गया....
वैसे तो इस सेमेस्टर मे सारे सब्जेक्ट ही न्यू थे,लेकिन कुछ टीचर्स वही थे जिन्होने फर्स्ट सेमेस्टर मे हमारा सर खाया था...दंमो रानी इस सेमेस्टर मे भी हमे बात-बात पर क्लास से बाहर भेजने के लिए तैयार थी ,कुर्रे सर और उनका"आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते"डाइलॉग भी हमारे सर पर हथौड़ा मारने के लिए हमारे साथ था....साथ नही थी तो वो थी दीपिका मॅम, दीपिका मॅम के यूँ चले जाने से मुझे दुख तो नही हुआ लेकिन थोड़ा बुरा ज़रूर लगा था,क्यूंकी मैने अच्छा ख़ासा वक़्त उनकी लॅब मे बिताया था और वो वक़्त ऐसा था कि जिसे मैं कभी भूल नही सकता था, मैं ही क्या ,मेरी जगह यदि कोई और भी होता तो वो दीपिका मॅम को नही भूल पाता...क्यूंकी उसकी जैसे एक दम बिंदास रापचिक माल ,जो रिसेस मे आपका लंड चूसे उसे भूलना मुश्किल होता है और उस पल को भी जब ये सब हुआ