Desi Sex Kahani नखरा चढती जवानी दा - Page 18 - SexBaba
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Desi Sex Kahani नखरा चढती जवानी दा

“वीर जी जरा आराम से करो, आपके ऐसे करने से पूरे शरीर में खुजली सी मच उठती है.."

पिंकी ये सुनकर थोड़ा और आगे को जाती है। फिर चोरी से देखती है तो उसे पता चलता है की ये सुखजीत चाची हैं, जो की बिटू के साथ चिपकी होती हैं। ये सब देखकर वो हैरान रह जाती है क्योंकी उसे विश्वास नहीं होता है। और तभी वो देखती है की बिटू उसके चूचियों पर हाथ फेरता है और सुखजीत चाची की कमर पिंकी की तरफ होती है।

बिटू- वाह रे... तेरे इस जिश्म का मैं कब से दीवाना हूँ।

पिंकी ये सब देख रही होती है और उधर सुखजीत के होंठ बिटू के होंठों के बीच में होते हैं, और वो दोनों पागल हो रहे होते हैं।

पिंकी मन में- “सुखजीत चाची बड़ी ही चालू चीज निकली। अपने पति को छोड़कर बाहरी बबदों से मजे लेती हैं.."

उधर अब दोनों पागल हो रहे होते हैं, दोनों एक दूसरे के जिश्म को मसल रहे होते हैं। ये सब पिंकी देख रही होती है। और तो और अब दोनों ही पागलों की तरह लगे हुए होते हैं। उसके बाद ऐसे ही पिंकी उसको देख रही होती है। ये सब देखकर वो भी पागल हो रही होती है।

बिटू अब सुखजीत की पाजामी को नीचे करता है जिससे की वो पागल हो जाती है, और कहती है की ऐसे मत करो। पर तभी सुखजीत चाची उससे कहती है की मुझे पागल मत करो और बिटू अब उसकी पाजामी को नीचे करके उसकी चूत पर हाथ रख देता है। चूत पर हाथ रखते ही वो मचल उठती है और फिर वो बिटू का लण्ड पकड़कर ऊपर-नीचे करती है।

पिंकी भी ये सब देखकर अपनी चूत पर हाथ राख देती है। क्योंकी वो बहुत ही पागल हो रही होती है। उधर बिटू का पूरा लण्ड उसके हाथों में होता है और फिर उसके बाद ऐसे ही सुखजीत उससे कहती है की डाल दो। तब वो उंगली को डालता है और वो मचल उठती है। फिर वो उसे कहता है की अभी जब ये अंदर जाएगा तब मजा आएगा।

सुखजीत- “दे दो फिर ना प्लीज़्ज़...” कहकर सुखजीत अपने दोनों हाथों से अपने चूतरों को पकड़कर खोल देती है।

फिर बिटू अपना लण्ड उसकी चूत पर सेट करके एक धक्के से अपना लण्ड उसकी चूत में डाल देता है। और ठप-ठप की आवाज से वो सुखजीत को चोदने लगता है।

उधर पिंकी सुखजीत को इस तरह से चुदते हुए देखकर पूरी गरम और पागल हो जाती है। वो अपनी चूत पर अपना हाथ रखकर जोर-जोर से अपनी चूत को मसलने लगती है। वो अपनी चूत मसलने में इतनी मगन हो जाती है, की उसे ये पता नहीं होता की वो इस टाइम है कहां।

इतने में उसके पैर के नीच एक सुखी टहनी आ जाती है। जो उसके पैर के नीचे आने की वजह से टूट जाती है। और उसकी आवाज दूर तक जाती है, ये आवाज बिटू तक जाती है। जब बिटू ये आवाज सुनकर रुक जाता है, तो पिंकी गाण्ड फट जाती है। पिंकी झट से अपनी सलवार को बाँधकर वहां से भाग जाती है।

सुखजीत तभी एकदम से टूि का लण्ड अपनी चूत से निकालकर बोली- “हाए भाईजी, लगता है किसी ने हम दोनों को देख लिया है। अब पंगा जरूर पड़ेगा..."

बिटू- भाभी कुछ नहीं होता, वो एक कुत्ता था। तू लण्ड अंदर ले जल्दी।

सुखजीत- “यहाँ पंगा होने वाला है, और तुझे अंदर डालने की पड़ी है..” कहकर सुखजीत वहां से भाग जाती है, और जाकर चरणजीत के पास बैठ जाती है।

चरणजीत सुखजीत को देखकर स्माइल करती है और बोलती है- “क्या बात है बहनजी... आपकी लिपस्टिक का रंग फीका पड़ गया है, किससे चुसवा कर आए हो?"

सुखजीत- “उसी से जिसके साथ मोटर में पूरी रात बिगाई थी...” कहकर सुखजीत फिर से अपने पर्स से लिपस्टिक निकालकर लगा लेती है।

पिंकी अब अपनी दोस्तों के पास आ जाती है।

दोस्त- क्या बात है पिंकी, तू पेशाब करने गई थी, या कुछ और करने गई थी?

पिंकी- ओहह नहीं यार पेशाब तो मैंने कभी का कर लिया था। बस मम्मी ने एक काम बता दिया था। जिस वजह से थोड़ी लेट हो गई थी।

दोस्तों- चल कोई बात नहीं चल अब डान्स करते हैं।

पिंकी- “ठीक है...” फिर वो अपनी दोस्तों के साथ डान्स करने लगती है। डान्स करते-करते भी पिंकी ये ही सोच रही थी, की उसकी सुखजीत चाची कितनी बड़ी हरामी है। अपने पति के होते हुए भी किसी दूसरे मर्द से अपनी चूत मरवा रही थी। उसके दिमाग में अब ये बात घर कर गई थी।

पर साथ ही पिंकी की चूत में अब आग लगी थी। क्योंकी उसने अब एक लाइव चुदाई देख ली थी, पर उसकी चूत में कुछ गया नहीं था। अब वो लण्ड के लिए तरस रही थी।

फिर डान्स करते-करते गगन और उसके दोस्त भी आ गये। फिर सुखजीत चरणजीत सब मिलकर डान्स कर रहे थे। गगन सुखजीत का दीवाना हो गया था, इसलिए वो बार-बार सुखजीत को छूने की कोशिश कर रहा था। फिर एक डान्स स्टेप करते-करते उसने एक बार सुखजीत के चूतरों पर हाथ फेर ही दिया।

थोड़ी देर बाद पार्टी खतम हो गई, और सब अपने-अपने घर चले गये।
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कड़ी_48

पार्टी के बाद सारे अपने-अपने घर चले जाते हैं। सुखजीत की चूत में अभी भी आग लगी होती है, क्योंकी बिट्ट ने अपना लण्ड उसकी चूत में डालकर निकल दिया था, और डान्स करते टाइम गगन ने उसके चूतरों पर हाथ भी फेर दिया था, इससे वो और गरम हो गई। पर उसकी चूत शांत नहीं हुई थी।

रात को एक बजे चुके थे और घर में सब सो चुके थे। रूम में सिर्फ रीत और सुखजीत ही होती हैं, क्योंकी हरपाल दारू पीकर नशे में बाहर ही सो रहा था। सुखजीत बेड पर लंबी लेटी हुई थी, और वो इधर-उधर करवट ले रही थी। पर उसको नींद नहीं आ रही थी, उसका एक हाथ बार-बार उसकी चूत पर जा रहा था।

सुखजीत अपनी दोनों टाँगें खोलकर अपने हाथ से अपनी चूत को मसल रही थी। पर इससे उसे कहां चैन मिलने वाला था। क्योंकी उसकी चूत तो एक लंबा और मोटा लण्ड माँग रही थी। आखीरकार सुखजीत बेचैन होकर रूम से बाहर आ जाती है, बाहर काफी अंधेरा हो रहा था। सुखजीत नीचे जाती है। दर्शल वो अपने पति हरपाल को उठाने जा रही थी।

जब रंडी को बाहर वाला लण्ड नहीं मिला, तो आज उसे अपने घर वाला याद आ रहा था। सुखजीत बाहर निकलने लगती है। तभी उसे चरणजीत के रूम में से कुछ आवाजें आती है। सुखजीत को थोड़ा सा शक होता है,

और वो आवाज की तरफ चल पड़ती है। थोड़ी आगे जाने के बाद आवाजें साफ-साफ सुनाई देने लगती हैं। तभी वो नीचे जमीन पर दो परछाई देखती है। सुखजीत थोड़ी सी आगे जाती है, और देखती है की मीता चरणजीत को दीवार से लगाकर चूस रहा होता है। ये देखकर उसकी चूत में से पानी निकल जाता है, और फिर सुखजीत आगे जाकर बोलती है।

सुखजीत- “हाए बहनजी अकेले-अकेले स्वाद ले रही हो आप तो?” सुखजीत की आवाज सुनते ही वो दोनों एकदम डर जाते हैं।

चरणजीत सुखजीत को देखकर बोली- “बहनजी आप भी ले लो स्वाद, आपको कौन सा मन नहीं करता..."

सुखजीत- “मन मेरा आपको चूसने का कर रहा है..” और सुखजीत चरणजीत को दीवार से लगाकर चूसने लगती है और अपने हाथ उसकी चूचियों पर फेरने लगती है।

मीता सुखजीत जैसे खूबसूरत रंडी को देखकर चरणजीत को भूल जाता है। मीता सुखजीत के चूतरों पर हाथ फेरने लगता है।

जैसे ही सुखजीत को अपने चूतरों पर हाथ महसूस होते हैं। तभी वो अपने चूतर पीछे करके और ज्यादा बाहर निकल लेती है। मीता समझ जाता है, की सुखजीत के अंदर पूरी आग लगी हुई है। मीता पीछे से सुखजीत को अपनी बाहों में भर लेता है। और सुखजीत की दोनों चूचियां अपने हाथों के पकड़कर जोर-जोर से मसलने लगता है। मीता का लण्ड सुखजीत के चूतरों पर लग रहा था।

लण्ड महसूस होते ही उसे शांति मिलती है, फिर वो अपना एक हाथ पीछे करके अपना पल्ला ऊपर उठा लेती है। सुखजीत आगे चरणजीत के होंठों को चूसने में लगी हई थी, और साथ ही वो उसकी चूचियों को भी मसल रही थी। पीछे से आज मीते की लाटरी लग चुकी थी। क्योंकी सुखजीत जैसी कमाल की औरत उसे खुद अपना पल्ला उठाकर अपनी चूत और गाण्ड दे रही थी।

तभी सुखजीत चरणजीत के होंठों को छोड़कर बोली- “बहनजी आपके रूम में कौन है?"

चरणजीत- “कोई भी नहीं है बहनजी...”

सुखजीत- चलो फिर आपके रूम में ही चलते हैं, आगे का काम वहीं पर करेगें।

चरणजीत- नहीं बहनजी वहां नहीं, क्या पता कब सरदार आ जाए।

सुखजीत- कुछ नहीं होता बहनजी। सरदार आपका बाहर मंजी पर शराब से राजा हुआ बेहोश लेटा हुआ है। उसे तो खुद नहीं पता की वो कहाँ लेटा हुआ है।

मीता- "कुछ नहीं होता भाभी चले अंदर... आज ये जाट दो-दो मस्त खूबसूरत जट्टियों को खुश करेगा। आज मैं ही तुम दोनों का असली सरदार हूँ.."

सुखजीत ये सुनते ही गर्मी से भरी एक लंबी सांस लेती है, और अपने चूतरों को जोर से मीते के लण्ड पर मारती हुई कहती है- “आहह... जट्टा आज तो मजा ही आ जाएगा..."

मीता सलवार के ऊपर से चूतर और चूचियां मसलकर बोला- "स्वाद तो आज मैं दूंगा तुम दोनों को मेरी जान..."

सुखजीत- चलो ना बहनजी, वर्ना इस मीते ने यहीं पर हम दोनों को ठोंक देना है।

चरणजीत- “कोई बात नहीं आज यहीं पर चलने दो। जो होगा देखा जाएगा...” कहते हुये चरणजीत ने सुखजीत का कुर्ता नीचे से पकड़ा और ऊपर की ओर खींचकर निकालकर नीचे फेंक दिया।
 
सुखजीत अब ब्लैक कलर की ब्रा में होती है। मीता सुखजीत ने नंगे गोरे चिकने जिश्म पर हाथ फेरकर निहाल हो जाता है, फिर वो एक झटके से ब्रा के हुक खोल देता है। चरणजीत ब्रा भी निकालकर फेंक देती है। अब सुखजीत पूरी नंगी हो जाती है और साथ ही वो मदहोश हो जाती है। सुखजीत के गोरी नंगी और चिकनी चूचियों को पकड़कर मीते को बहुत मजा आता है।

सुखजीत से अब और बर्दाश्त नहीं होता- “आह्ह... आज तो जट्टी अपने घर के अगन में ही चुदेगी..." और ये कहते ही सुखजीत अपनी सलवार का नाड़ा खोल देती है। सलवार का नाड़ा खुलते ही सलवार अपने आप उसके नंगे चिकने जिश्म से फिसलते हुए नीचे आ जाती है। फिर वो अपनी पैंटी को नीचे अपने घुटनों तक करके अपने हाथ चरणजीत के चूतरों पर रखकर वो घोड़ी बन जाती है।

इतनी आग मीते ने पहली बार देखी थी। उसने झट से अपनी धोती में से अपना लण्ड बाहर निकाला और पीछे से अपना लण्ड उसकी चूत में सेट करके, एक जोरदार धक्के से अपना पूरा लण्ड उसकी चूत में डाल देता है। लण्ड अंदर जाते ही सुखजीत गनगना होती है। सुखजीत अपने दोनों हाथों से चरणजीत के चूतरों को कसकर पकड़ लेती है

# लण्ड जोर-जोर से और निकाल दे इसकी सारी आग
फिर चरणजीत मस्त होकर बोली- “ओये मीते डाल इसकी आग...”

मीता ये सुनकर जोश में आ जाता है, और वो अब जोर-जोर से धक्के मारकर सुखजीत की चूत को चोदने लगता है। सुखजीत पूरी गरम हो जाती है, और वो अपने होंठ को अपने दांतों में दबाकर जोर-जोर से चरणजीत के चूतरों को मसल रही थी।

मीता- “भाभी पार्टी में अभी तू बिटू को देकर आई थी, और अब फिर तू मेरे आगे घोड़ी बन गई?"

सुखजीत- “मैंने कहां दी उसे? मैं उसे देने के लिए खेत में गई थी। पर उसी टाइम कोई बहेनचोद वहां आ गया। तभी मैं सलवार बांधकर वापिस पार्टी में आ गई थी.."

सुखजीत के मुँह से गालियां सुनकर मीता का जोश और ज्यादा बढ़ गया। अब वो उसके चूतरों को कसकर पकड़कर धक्के मारने लगा।

मीता- कोई बात नहीं तू फिकर ना कर भाभी, तेरी पार्टी वाली चुदास मैं निकल देता हूँ।

सुखजीत भी पूरे जोश में अपने चूतर पीछे मार-मारकर मीता का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी। सुखजीत लण्ड के एक-एक धक्के का पूरा मजा ले रही थी। तभी बाहर से चौकीदार की आवाज आती है।

चरणजीत- “चलो अब रूम में चलते हैं, कहीं कोई आ ना जाए..."

फिर चरणजीत सुखजीत के सारे कपड़े उठाकर कमर में चली जाती है। सुखजीत भी अपनी सलवार उठाकर ऐसे ही रूम में चली जाती है। सुखजीत अंदर जाते ही सलवार और पैंटी उतारकर बेड पर अपनी टाँगें उठाकर लेट जाती है। उठी हुई टाँगें देखकर मीता जल्दी से रूम का दरवाजा बंद कर देता है।

मीता भागकर बेड पर आता है, और सुखजीत की दोनों टाँगें उठी देखकर वो झट से उसकी दोनों टाँगें अपने कंधे पर रखता है, और अपना लण्ड उसकी चूत पर रखकर एक जोरदार धक्के से अपना लण्ड उसकी चूत में डाल देता है। चरणजीत भी अब पूरी गरम हो चुकी थी, वो सुखजीत के होंठों को चूसने लगती है।

सुखजीत- “हाए बहनजी, वहां आपका लड़का अपनी नई बहू को चोद रहा है। और यहाँ उसकी मम्मी और चाची मीते के नीचे लेटी हुई हैं.”

चरणजीत- “हाए बहनजी, ऐसा ना करो मेरा लड़का लायक है। ऐसे नहीं है जैसे हमारे घर वाले है, की घर का दूध तो उबल रहा है, और साले खुद बाहर चाय पी रहे हैं...”

सुखजीत- “सही कह रही हैं बहनजी..."

सुखजीत फिर चरणजीत को एकदम खींचकर चूसने लग जाती है। दूसरी तरफ मीते का लण्ड अब जवाब देने लगता है, उसके लण्ड का सारा पानी सुखजीत की चूत में निकल जाता है। सुखजीत मीते के लण्ड के पानी की गरमी की वजह से गरम हो जाती है, और वो चरणजीत को कसकर अपनी बाहों में भर लेती है। सुखजीत की चूत की गरमी लण्ड के पानी से शांत हो जाती है।

फिर मीता उठकर पानी पीने के लिए चला जाता है, और सुखजीत अपने कपड़े डालकर अपने रूम में सोने के लिए चली जाती है। फिर मीता पानी पीकर वापिस रूम में आता है और चरणजीत को पूरा नंगी करके वो उसे 4 बार जमकर चोदता है। फिर उसकी चूत चुदाई के बाद वो वहां से चला जाता है, और चरणजीत भी आराम की नींद में सो जाती है।

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कड़ी_49

सुबह हो जाती है, और आज के दिन सुखजीत का अपने घर वापिस पटियाला जाने का होता है। रीत और सुखजीत दोनों ही अंदर ही अंदर उदास होती हैं। क्योंकी उन दोनों गाँव में जितने मजे और स्वाद लिए थे, उतने मजे उन्होंने अभी तक अपने शहर में भी नहीं लिए थे। लेकिन अब उन्हें जाना तो पड़ेगा ही। तभी रीत के यार मलिक का मेसेज आता है।

मलिक- “गुड मार्निंग मेरी जान, अब तबीयत कैसी है?

रीत- तबीयत तो ठीक है यार मेरी, पर आज हम वापिस घर जा रहे हैं।

मलिक को ये सुनकर टेन्शन हो जाती है, क्योंकी उसने अभी तक अपना लण्ड अच्छे से नहीं डाला था उसकी चूत में- :यार प्लीज़्ज़... एक या दो दिन के लिए रुक जाओ प्लीज़्ज़.."

रीत- नहीं यार मम्मी पापा नहीं मानेगें।

मलिक- जान एक बार, एक बार प्लीज़्ज़... जाते-जाते कमाद में मिलने के लिए आ जा।

रीत- नहीं यार मुश्किल है बाहर निकलना।

मलिक- "तू पिंकी को लेकर आ जा यार, कोई बहाना मारकर प्लीज़्ज़..."

रीत- चलो ठीक है, मैं आती हूँ तैयार होकर।

रीत फिर नहा धोकर तैयार हो जाती है। रीत ने काले रंग का सूट डाला हुआ था। टाइट कमीज और नीचे धोती वाली सलवार रीत ने डाली हुई थी। सिर पर उसने बालों की पोनीटेल बनाई थी। रीत पूरी कमाल की टीन पंजाबन लग रही थी। फिर वो पूरी तरह से तैयार होकर रीत के पास जाती है। वो रीत को सारी बात बता देती है। फिर वो दोनों घर से बाहर निकल गई।

दूसरी तरफ सुखजीत भी तैयार हो जाती है, उसने ब्लू कलर का सूट डाला हुआ था। कमीज एकदम उसके पेट से चिपकी हुई थी, जिसमें उसकी चूचियां एकदम साफ-साफ नजर आ रही थीं। सुखजीत के फूले हुए चूतरों ने उसके सूट के पल्ले को उठा रखा था। सुखजीत अभी-अभी तैयार हुई थी, तभी उसके यार बिटू का फोन उसके पास आ जाता है।

सुखजीत- हेलो।

बिटू- मैंने सुना है, आज तू घर वापिस जा रही है।

सुखजीत- हाँ एकदम ठीक सुना है।

बिटू- “हरपाल को एक बार कह तो सही, की ये जट्टी जाट के मुँह में मुँह डालकर रहना चाहती है। तू चली जा अपनी बेटी को साथ लेकर..."

सुखजीत- “हाए मैं मर जाऊँ, ये जट्टी तो खुद चाहती है की अपने असली जाट के मुँह में मुँह डालकर रहूं। पर क्या करूँ उस सरदार ने भी तो मेरी लेनी है..."

बिटू- “तभी तो तेरा सरदार तेरी चूत मारता नहीं। तेरी जैसी कमाल की औरत को तो मेरे जैसा लंबा मोटा लण्ड चाहिये। ताकी तुझे कभी उंगलियों से टाइम ना पास करना पड़े। अच्छा चल अब आखिरी बार मिल ले यार..."

सुखजीत- “नहीं नहीं बिटू, अब नहीं आया जाएगा..."

बिटू- आ जा भाभी जहाँ पर भैंसें बँधी हुई हैं। वहां पर परली पड़ी हुई है, उसके पीछे आ जा जल्दी से।

सुखजीत- अब क्या करना है मिलकर?

बिटू- जाते-जाते एक बार मिल तो जा, फिर पता नहीं तूने कब आना है गाँव में।

सुखजीत- ठीक है, मैं आती हूँ।

सुखजीत रूम से बाहर निकलती है और देखती है की हरपाल कार में सामान रख रहा होता है। और सुखजीत मोका देखकर वहां से खिसक जाती है। वो वहीं पर जाती है यहाँ उसके यार बिटू ने उसे बुलाया था। सुखजीत को डर लग रहा था, की कहीं कोई बिहारी उसे ना देख ले। क्योंकी सारे काम करने वाले बिहारी ही वहां पर रहते थे। फिर उसे वो जगह दिख जाती है, जहाँ उसे बिटू ने आने को कहा था।

वो वहां जाती है, और देखती है की वहां बिटू पहले से खड़ा उसका इंतेजार कर रहा था। बिटू सुखजीत को देखते ही उसको कसकर अपनी बाहों में भर लेता है, और अपने हाथों से उसके चूतरों को कसकर मसल देता है। सुखजीत की आँखें एकदम से बंद हो जाती हैं, सुखजीत अपने दिल का डर दूर करने के लिए बोली।

सुखजीत- “यहाँ पर कोई बिहारी तो नहीं है ना, कहीं एक और स्यापा ना पड़ जाए.."

बिटू- नहीं यार, वो बहनचोद सारे गये हुए हैं।

सुखजीत- ठीक है, अब मुझे जाने दो भाईजी।

बिटू सुखजीत को उठाकर परली पर फेंक देता है, और खुद उसके ऊपर आकर वो बोला- “बहनचोद अकेले में भी भाई-भाई कहती है तू मुझे, अकेले में तो मैं अब तेरा यार हूँ। मैं तो कहता हूँ, तू यहीं पर रह मैं तेरी दिन रात गाण्ड भी मारूँगा."

सुखजीत- “भाईजी मुझे तो आज अपने परिवार के साथ जाना ही होगा, और वैसे भी मैं कौन सा आपको छोड़कर जा रही हूँ। जब भी आपका दिल करे आ जाना पटियाला। और अब तो मुझे जाने दो, आज मेरा सरदार पूरे होश में है...”

बिटू तभी सुखजीत के कमीज के बड़े से गले में हाथ डालकर उसकी चूचियां बाहर निकाल लेता है, और उसकी चूचियों के निपल पर जीभ रगड़कर बोला- "तेरा सरदार होश में है, पर तेरा यार तो अभी भी तेरे नशे में है.."

बिटू की बातें सुखजीत को गरम होने पर मजबूर कर रही थी। पर सुखजीत चाहते हुये भी कुछ नहीं कर सकती थी। हरपाल कभी भी उसे बुलाने के लिए उसके रूम में आ सकता था। इसलिए वो अपने ऊपर बहुत मुश्किल से कंट्रोल करती है, और फिर उसका मुँह अपनी चूचियों से अलग करके अपनी चूचियां वापिस से अंदर डालकर बोली।

सुखजीत- “बस भाईजी अब मुझे जाने दो प्लीज़्ज...”

बिटू भी समझ जाता है, की जट्टी ने आज कुछ नहीं करना। इसलिए वो जाते-जाते सुखजीत के होंठों को अच्छे से चूसकर, उसकी गाण्ड में दो उंगलियां डालकर सुखजीत को विदा करता है। सुखजीत भी अपने सूट को साफ करके और अपनी चूचियों को अच्छे से सेट करके वहां से निकल पड़ती है।
 
दूसरी तरफ रीत मलिक की बाहों में बाहें डालकर भरे से दिल से कहती है- “जाने का जरा सा भी दिल नहीं करता आपको छोड़कर, पर जान मुझे अब जाना ही होगा..”

मलिक- जान मेरा भी दिल नहीं लगेगा तेरे बिना।

रीत- लगना तो मेरा भी नहीं है, पर ये मेरी मजबूरी है।

मलिक रीत के होंठों में होंठ डालकर चूसता है, और दोनों आशिक एक दूसरे को अलविदा कहकर चले जाते हैं। पिंकी और रीत घर आकर देखती हैं, की हरपाल और सुखजीत कार में बैठकर रीत का ही इंतेजार कर रहे थे।

सुखजीत- तू कहां चली गई थी?

रीत- “ओहह... मम्मी मैं दर्शल.......” रीत से कोई बहाना नहीं लगता, इसलिए पिंकी झट से बीच में बोली।

पिंकी- “चाची मेरी एक सहेली अब रीत की भी अच्छी दोस्त बन चुकी है। बस जाते-जाते एक बार उससे मिलने के लिए गई थी।

सुखजीत- ठीक है, अब चलें?

सुखजीत कार से बाहर निकलकर नई-नई बह को प्यार देती है, और फिर वो चरणजीत को कसकर अपनी बाहों में लेकर उसके कान में धीरे से बोली- “बहनजी मेरे पीछे अब आपने पूरे मजे लेने है, बिटू और मीते के.."

सुखजीत की ये बात सुनकर चरणजीत शर्मा जाती है, और फिर सुखजीत बलविंदर को सत श्री अकाल कहती है। फिर वो पिंकी के गले से लगाकर उसके कान में बोली- “बेटी जीती रह..."

पिंकी धीरे से सुखजीत के कान में बोली- “चाची तू बहुत जाती है रात को पार्टी के पास कल तो मैंने उसे रात में तुझे देख लिया था..”

पिंकी की ये बात सुनते ही सुखजीत के पैरों के नीचे की जमीन निकल जाती है। वो अपने मन में सोचती है, की ये थी वो आखीरकार, जिसने मुझे उस रात देखा था। पर सुखजीत अपने दिल का डर जरा सा भी अपने चेहरे पर नहीं आने देती, और फिर हल्का सा हँसकर वो कार में बैठ जाती है।

फिर हरपाल कार स्टार्ट करता है, और घर से बाहर निकल लेता है। रास्ते में बिटू और मीता खड़े होते हैं, वो हरपाल को सत श्री अकाल कहते हैं, और साथ ही दोनों सुखजीत को सेक्सी सी स्माइल करते हैं। जिसे देखकर सुखजीत को मोटर वाली रात याद आ जाती है। फिर कुछ ही देर में वो अपने घर पटियाला आ जाते हैं।

सुखजीत को इतने दिन बाद घर आकर काफी अच्छा लग रहा था। पर उसके दिल में कहीं ना कहीं बिटू से दूर होने का दर्द भी था। रीत भी अब अपनी पुरानी दुनियां में वापिस आ चुकी थी। सुखजीत और रीत ने तो गाँव में पूरी ऐश करी ही थी।

पर यहाँ घर पर सोनू ने अपनी कामवाली शीला को खुद जमकर चोदा और अपने दोस्त रिंकू और दीप को भी शीला के खूब मजे दिलाए। क्योंकी उन दोनों ने शीला को रीत बना-बनाकर चोदा था। सोनू बाहर आता है, और सबसे मिलता है।

सुखजीत शीला को आवाज देती है, और कुछ नाने को बनाने को कहती है। रीत भी अपने रूम में जाती है और फ्रेश होकर कपड़े चेंज करके पाजामा और टाप डाल लेती है। फिर वो अपने यार मलिक से व्हाटसप पर चैटिंग करने लगती है।

सुखजीत बाथरूम में जाकर नहाने लगती है। शरीर के एक-एक अंग को साबुन लगाकर रगड़ रही होती है। सुखजीत अपनी पैंटी उतार देती है, और अपनी चूत को उंगलियां डाल डालकर साफ करती है। सुखजीत ने काफी दिनों से अपनी चूत के बाल साफ नहीं किए थे। इसलिए अब वो ब्लेड लेकर अपने बाल भी साफ करने लगती है।

जैसे ही उसकी चूत के बाल साफ होते हैं, तो वो देखती है की उसकी चूत अब आगे से पहले से काफी ज्यादा खुल चुकी है। ये देखते ही उसे बिटू की याद आती है, और वो शर्मा जाती है। थोड़ी देर बाद ही सुखजीत अपनी चूत को एकदम साफ करके एकदम चिकनी कर देती है। नहाने के बाद सुखजीत करती और सलवार डाल लेती है, और किचेन में जाती है। वहां शीला सबके लिए चाय बना रही थी।

शीला- मेमसाहब, कैसी रही फिर आपकी परोग्राम?

सुखजीत- बहुत अच्छा रहा।

शीला- मेमसाहब, अब मुझे अपने घर बिहार जाना है, एक महीने के लिए।

सुखजीत- क्यों अब क्या हुआ?

शीला- वो हमारे घर वाले की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए।

सुखजीत- ठीक है, पर मैं यहाँ काम कैसे करूँगी?

शीला- मेमसाहब, काम के लिए मैं अपने भाई रघु को यहाँ आपके पास छोड़कर जाऊँगी।

सुखजीत- वो कर लेता है घर के काम?

शीला- हाँ मेमसाहब। वो सारे काम कर लेता है। वो आज शाम को आ जाएगा, और मैं कल सुबह की गाड़ी से घर चली जाऊँगी।

सुखजीत- ठीक है।

सुखजीत फिर बाहर जाकर सोफे पर बैठ जाती है, और हरपाल भी वहीं पर बैठा होता है।

इतने में सोनू आकर कहता है- “मैं आता हूँ अभी थोड़ी देर में.."

सुखजीत- इस लड़के ने घर में तो टिकना ही नहीं।

सोनू घर से चला जाता और इतने में प्यारेलाल घर में आ जाता है। हरपाल उसको देखकर खुश हो जाता और कहता है- "और कैसे हो प्यारेलाल?"

प्यारेलाल- मैं ठीक हूँ, बहुत दिनों बाद दर्शन हुए आपके।

प्यारेलाल सुखजीत को नीचे से ऊपर तक देखकर मुश्कुराता हुआ बोला- “सत श्री अकाल भाभीजी, आपके बिना तो पूरी कालोनी ही सूनी हो गई थी.."

सुखजीत शर्माकर बोली- “अच्छा भाईजी, मैं ऐसा क्या करती हूँ। जो मेरे जाने के बाद कालोनी सूनी हो गई?"

प्यारेलाल- भाभीजी आप ही तो हमारी कालोनी की रौनक हो।

सुखजीत ये सुनकर अपनी आँखें नीचे कर लेती है। हरपाल को ये बातें सुनकर ऐसा लग रहा था, की वो मजाक कर रहा है। पर अंदर की बात कुछ और ही थी।

प्यारेलाल सोफे पर आकर बैठ जाता है और बोला- "और फिर शादी कैसी रही?

हरपाल- हाँ सब ठीक हो गया, और आप बताओ यहाँ सब ठीक था?

प्यारेलाल- हाँ जी भाईजी यहाँ सब एकदम ठीक था, आप सुनाओ।

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कड़ी_50

प्यारेलाल एक अच्छे मोके की तलाश में होता है, की कब वो सुखजीत के कोमल और चिकने जिश्म पर हाथ फेरे, और अपने दिमाग पर चढ़ी इतने दिनों की हवस को वो शांत करे। वो बैठा टीवी देख रहा था, इतने में सुखजीत का फोन आता है। वो फोन उसकी सहेली जगरूप का होता है।

सुखजीत झट से उसका फोन उठाकर बोली- हेलो।

जगरूप- कैसी है सुख, आ गई गाँव की शादी से?

सुखजीत- “हाँ यार आ गई..” और बात करते-करते वहाँ से निकलकर बाहर आगन में खड़ी हो जाती है।

जगरूप- बात सुन यार, मैंने एक बहुत जरूरी बात करनी है।

सुखजीत- हाँ बोल।

जगरूप- मैं और मेरी 5-7 सहेलियां एक सोशल वर्क के लिए एक क्लब बना चाहती हैं। और हम सबने ये निश्चय किया है, की हम तुझे भी उस क्लब का मेंबर बनायेंगे और साथ ही उसका हेड भी।

सुखजीत- यार मेंबर तक तो ठीक है, पर हेड मैं क्यों बनूं?

जगरूप- “यार मुझे तेरे बारे में कालेज टाइम से ही पता है। एक तो तू किसी से भी बात करते हुए डरती नहीं है।

और तुझे बहुत ज्यादा अच्छे से पता है, की किस बंदे से कैसे काम निकलवाना है। इसलिए तुझे हेड बनाने की सोची है.."

सुखजीत ये सुनकर हँसते हुए बोली- “चल ठीक है, पर यार डोनेशन का बहुत बड़ा पंगा पड़ता है.."

जगरूप- “कोई बात नहीं डोनेशन का भी जुगाड़ हो जाएगा। कल सुबह एक मीटिंग करनी है सबने। बस तू वहां टाइम पर आ जइओ ओके...”

सुखजीत- ठीक है मैं आ जाती है, पर मैं एक बार अपने पति से बात कर लेती हूँ।

जगरूप- भाईजी ने क्या कहना है, मुझे पता है उनकी डोर तेरे हाथ में है। तूने उन्हें मना ही लेना है।

सुखजीत- हीहीहीही... पागल है, चल मैं आती हूँ अब सुबह।

सुखजीत ये कहकर फोन कट कर देती है। इतने में सुखजीत को अपने चूतरों पर किसी का हाथ महसूस होता है। जब सुखजीत पलटकर देखती है, तो प्यारेलाल उसके चूतरों पर हाथ लगाकर आगे जा रहा था।

प्यारेलाल- “भाभीजी बहुत दिन हो गये हैं, आप पार्क में नहीं आए। आज आ जाना."

सुखजीत ये सुनकर शर्मा जाती है और अंदर चली जाती है। अंदर जाकर वो हरपाल से क्लब वाली सारी बात करती है। और हरपाल सारी बात मान जाता है। इतने में बाहर बेल बजाती है।

सुखजीत- “हे शीला... दरवाजा खोल...”

शीला जाकर दरवाजा खोलती है, बाहर दरवाजे पर रीत की सहेली ज्योति खड़ी होती है। ज्योति ने एक टाइट जीन्स और टाप डाला हुआ था, जिसमें उसका पूरा फिगर बहुत ही मस्त लग रहा था।

ज्योति शीला से कहती है- "रीत घर पर है?"

शीला- हाँ जी।

ज्योति अंदर आती है और सुखजीत और हरपाल दोनों को सत श्री अकाल कहती है, और रीत के बारे में उनसे पूछती है।

सुखजीत- बेटा वो अपने रूम में है।

ज्योति रीत के रूम में चली जाती है, ज्योति के दिमाग में एक शरारत सूझती है, और वो बिना नाक ककये एकदम रीत के रूम में चली जाती है। जब वो अंदर जाती है, तो अंदर का नजारा देखकर हैरान हो जाती है।

रीत सिर्फ पैंटी में होती है, और अपनी पैंटी को साइड करके वो अपनी चूत को रगड़ रही थी। और एक हाथ से वो वीडियो बना रही थी। उसकी आँखें बंद होती हैं, और उसकी चूचियां टाप में से बाहर निकली होती हैं।

दरवाजे के खुलने की आवाज सुनकर रीत की आँखें एकदम खुल जाती है। और वो जल्दी से अपनी पैंटी और टाप ठीक करके बोली- “मलिक मैं बाद में बात करती हँ..."

ज्योति ये देखकर रीत की तरफ देखती है और बोली- “महारानी कम से कम दरवाजा तो बंद कर लिया कर, अगर अपने यार को अपना जुगाड़ दिखना होता है तो..."

रीत ये सुनकर शर्म से पानी-पानी हो जाती है, और उसके मुँह से एक शब्द तक नहीं निकलता।

ज्योति फिर से बोली- “किसके साथ लगी हुई थी, देख अब तेरी चोरी तो पकड़ी गई है। अब जल्दी से सब कुछ बता दे...”

रीत धीरे से बोली- “मलिक के साथ..."

ज्योति- कौन मलिक? मुझे कभी इसके बारे में नहीं बताया तूने और तू उसे अपना सारा जुगाड़ दिखा रही थी।

रीत- शटप ज्योति मलिक यार है मेरा।
 
ज्योति हैरान हो जाती है और कहती है- “वाओ... यार तूने कब अपना यार बना लिया?"

रीत थोड़ी सी मुश्कुराकर बोली- “क्यों तू यार बना सकती है, मैं नहीं बना सकती क्या?"

ज्योति- कब हुआ ये सब? और अब तो मुझे एक और बात का शक हो रहा है।

रीत- कौन सा शक?

ज्योति रीत की दोनों टाँगें खोलती है, और फिर उसकी पैंटी को साइड में करके उसकी चूत में दो उंगलियां डालकर बोली- “ये शक की तूने अपनी सील तुड़वा ली है.."

रीत की चूत में जैसे ही दो उंगलियां जाती हैं, तभी उसकी आँखें बंद हो जाती हैं, और वो समझ जाती है, की अब ज्योति सब कुछ जान गई है।

ज्योति- “हाए रीत तू तो अपना जुगाड़ करवा के आ ही गई है...”

रीत- “आss यार मलिक ने लगा दिया..."

ज्योति- “ हाए रब्बा... अब लड़की बड़ी हो गई है, और मजे लेने लगी है। चलो अच्छी बात है। अच्छा अब ये बता मजा आया या नहीं?" और ज्योति ने अपनी दो उंगलियां उसकी चूत में फिर से डाल दी।

रीत- “आह्ह... आss आता है मजा प्लीज़्ज़... ज्योति बाहर निकाल अपनी उंगलियां..."

ज्योति- “अच्छा मलिक डाले तो मजा आता है, और मैं डालूं तो बाहर निकाल? हाँ हाँ वैसे भी अब तुझे उंगलियों से कैसे मजा आएगा, अब तो तुझे लंबा मोटा लण्ड चाहिये। तभी तुझे और तेरी चूत को मजा आएगा...”

रीत अब तड़प जाती है, और ज्योति का हाथ पकड़कर उंगली बाहर निकाल देती है। रीत को पता था, की अगर उसने एक बार अपना कंट्रोल खो दिया, तो बहुत मुश्किल हो जाएगा। फिर रीत नार्मल हो जाती है और ज्योति को पूरी बात बता देती है।

दूसरी तरफ सुखजीत बैठी-बैठी बोर हो रही होती है। असल में प्यारेलाल का हाथ उसके चूतरों पर लगने के कारण सुखजीत को फिर से आग लगती है, और अब वो अपने जिश्म पर अच्छे से हाथ फेरवाना चाहती थी। फिर वो टाइम देखती है, की पार्क में जाने का टाइम हो गया है।

सुखजीत अपने रूम को लाक करती है और कुरती निकाल देती है और दोनों हाथ पीछे करके अपनी ब्रा का हुक खोल देती है। और फिर वो एक टी-शर्ट निकालकर डाल लेती है। नीचे वो अपनी पटियाला शाही सलवार ही । डालती है। सुखजीत टी-शर्ट और सलवार में बहुत ही कमाल की लग रही थी। सुखजीत जाते-जाते शीशे में एक बार खुद को देखकर अपनी चूचियां थोड़ी ऊपर उठती है, और शीला को कहकर वो पार्क में निकल जाती है। सुखजीत अपने चूतरों को मटकते हुए पार्क में 7:00 बजे पहुँच जाती है।

इस टाइम थोड़ा-थोड़ा अंधेरा होने लगता है। सुखजीत अंदर जाती है और दौड़ना स्टार्ट करती है। दौड़ते हुए सुखजीत की चूचियां ब्रा में ना होने के कारण कुछ ज्यादा ही उछल रही थीं। जट्टी की दौड़ देखकर अच्छे से अच्छे बंदे अपना लण्ड मसलने लगते हैं।

सुखजीत दौड़ते-करते पार्क के उस हिस्से में आ जाती है, जहाँ पर बहुत अंधेरा और बड़े-बड़े पेड़ होते हैं। जैसे ही वो वहां पर आती है, तभी कोई उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लेता है, और पेड़ की दूसरी तरफ ले जाता है। सुखजीत देखती है, की वो प्यारेलाल होता है। सुखजीत उसे देखकर सेक्सी अदा से शर्मा जाती है।

प्यारेलाल- "आखीरकार, भाभी तू आ ही गई..."

सुखजीत- मेरे देवर ने इतने प्यार से बुलाया था, तो मुझे तो आना ही था ना।

प्यारेलाल इधर-उधर देखकर उसका टाप गले तक ऊपर उठा देता है। सुखजीत की चूचियां एकदम नंगी होती हैं,
जो प्यारेलाल के सामने आ जाती हैं।

सुखजीत- भाई आज ऊपर से कर लो।

प्यारेलाल- “भाभी जो मजा नीचे है, वो मजा ऊपर कहां?” कहते हुये प्यारेलाल सुखजीत की चूचियों को चूसने लगता है, और सुखजीत चूचियां चुसवाकर पागल होने लगती है।

फिर प्यारेलाल जल्दी से सुखजीत के होंठों को चूसकर उसकी सलवार का नाड़ा खोल देता है। जिससे उसकी सलवार एकदम उसके पैरों में गिर जाती है। फिर वो सुखजीत को घोड़ी बनाकर उसकी पैंटी भी नीचे कर देता है। जैसे ही प्यारेलाल अपना लण्ड निकालकर उसकी चूत में डालने लगता है। तभी वहां किसी के आने की आवाज आती है, और सखजीत अपने कपड़े ठीक करके वहां से निकल जाती है।

आज एक बार फिर से किसी बहनचोद ने प्यारेलाल के खड़े लण्ड पर जोर से लात मार दी थी।
*****
*****
 
कड़ी_51
अगले दिन की सुबह हो जाती है। अब रोज की तरह रीत पहले अपनी स्कूल की यूनिफार्म डालती है। उसने सफेद कलर का सूट डाला होता है। जिसमें उसका जिश्म बहुत ही कमाल का लगता है। और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों को उसके लाल दुपट्टे ने छपा दिया होता है। अब ऐसे ही वो अक्टिवा बाहर निकालती है और खाना खाकर अपना बैग हाथ में ले लेती है, और अपना फोन भी लेकर जाना नहीं भूलती है। क्योंकी उसने अब मलिक से बात जो करनी होती है।

अब रीत अच्छे से तैयार होकर अक्टिवा पर बैठकर ज्योति के घर की और चल पड़ती है। उधर ज्योति भी स्कर्ट डालकर खड़ी होती है। उसकी स्कर्ट टाइट ओर शार्ट होती है। जिसकी वजह से उसकी पतली गोरी टाँगें साफ दिखाई देती हैं। ज्योति वहां खड़ी इंतेजार कर रही होती है और उधर रीत भी पहुँच जाती है। रीत अक्टिवा रोक कर उतर जाती है और चाबी ज्योति को दे देती है।

ज्योति- यार ये क्या बात बनी?

रीत- प्लीज़्ज़... आज तू अक्टिवा चला ले।

ज्योति- क्यों तू आज क्यों नहीं चलाएगी?

रीत- यार मैंने मलिक से फोन पर बात करनी है।

ज्योति- आए हाए अब तुझे पीछे बैठकर आशिकी मारनी है?

रीत- तू चुप कर और अक्टिवा चला।

ज्योति- हाँ हाँ मैं ही चुप करूं।

रीत- हाँ तू ही चुप कर।

रीत अब मलिक को फोन मिलाती है और बात करने लगती है और उधर ज्योति अपनी दोनों टांगों को खोलकर अच्छे से बैठकर अक्टिवा चला रही होती है और पीछे रीत बैठी फोन पर लगी होती है।

रीत- हेलो मलिक।

मलिक- हाँ जी जान।

रीत- क्या कर रहे हो?

मलिक- कुछ नहीं बस तुझसे बात कर रहा हूँ।

रीत- ओह्ह... अच्छा और बताओ फिर?

मलिक- पहले तू बता की अब ठीक है वो।

रीत ये सुनकर शर्मा जाती है और धीरे से बोलती है- “हाँ ठीक है, मैंने क्रीम लगा ली थी...”

मलिक- अच्छा फिर ठीक है।

रीत- अच्छा और बताओ।

मलिक- अब बता तू कब मिलना है?

रीत- जब आप कहोगे।

ज्योति- हाँ हाँ अब मिलना भी शुरू हो गया?

मलिक- ये कौन है?

रीत- मेरी दोस्त है, पागल है।

ज्योति- हाँ हाँ पागल हो गये।

रीत- तू चुप कर मुझे बात करने दे।

मलिक- ऐसा करो तुम लड़ाई करो मैं फोन कट कर देता हूँ।

रीत- नहीं नहीं बात करो।

मलिक- अच्छा, अब अगर आया बीच में तो मिलेगी और चूत देगी फिर से।

रीत ये बात सुनकर वो शर्मा जाती है और फिर कहती है- “हाँ बंक करूंगी स्कूल का..."

ज्योति- हाँ हाँ अब तो स्कूल भी बंक करे जाएंगे।

रीत- यार तू बात करने दे ना क्यों तू बीच में आ रही है?

ज्योति- हाँ हाँ मैं अब बीच में आ गई हूँ?

मलिक- अच्छा रीत तुम स्कूल पहुँचो। मैं बाद में बात करता हूँ। ओके आई लोव यू।

रीत- “ओके जी आई लोव यू टू..." और फोन काट देती है।

ज्योति- हाँ हाँ मैं अब हड्डी हूँ।

रीत- हाँ तू तो बहुत बड़ी हड्डी है।

ज्योति- अच्छा और बता फिर कब लेना है बंक। कब की डेट दी है उसने चुदने के लिए?

रीत- तू ये क्या कह रही है?

ज्योति- अब शर्माने की बात नहीं है ओके। अब बता दियो जब भी बंक लेना होगा ओके। ले लेंगे और फिर मजा ही अलग आता है बंक का तो।

रीत- हाँ हाँ मैं बता दूंगी।

अब वो स्कूल पहुँच जाते हैं और फिर दोनों अक्टिवा पार्किंग में लगाकर चले जाते हैं।
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*****
 
दूसरी तरफ अब सुखजीत घर पर तैयार हो रही होती है। उसने एक मीटिंग में जाना होता है जिसके लिए वो काफी खुश भी होती है। क्योंकी वो उस मीटिंग मेंबर की हेड जो होती है। अब ऐसे ही वो तैयार हो रही होती है। पहले सुखजीत दूसरा सूट निकालती है पर उसे वो पसंद नहीं आता है तो वो अब ग्रीन कलर का सूट निकालती है। फिर नहाकर वो सूट डाल लेती है और फिर शीशे के आगे खड़ी होकर तैयार होने लगती है।।

उसने ग्रीन कलर का सूट डाला होता है, जिसमें वो पूरी कयामत लग रही होती है। उसकी ब्रा ने उसकी टाइट चूचियों को बाँध रखा होता है और फिर ऐसे ही उसका मस्त जिश्म और ऊपर से ऐसे मखमली बदन और उसपर लगी लिपस्टिक, पैरों में हील, सिर पर पोनी जिसमें वो मस्त लग रही होती है। अब वो जैसे ही निकालने वाली होती है तो, तभी वहां पर उसके फोन पर जगरूप का फोन आ जाता है।

सुखजीत- हेलो हाँ जी।

जगरूप- हाँ जी हो गये हो आप तैयार?

सुखजीत- हाँजी हाँजी हो गई बस अब निकलने लगी थी बस।

जगरूप- हाँ जी आप आ जाओ और मेरे घर पर ही आ जाना क्योंकी यहीं पर ही मीटिंग है।

सुखजीत- “ठीक है आ रही हूँ बस..” और वो फोन कट कर देती है और फिर उसके बाद शीला को आवाज देती है- "शीला..”

शीला सुखजीत की आवाज सुनकर भागकर आती है- “हाँ जी मेडम..."

सुखजीत- तुम तो जाने लगी थी तुम्हारा भाई नहीं आया क्या?

शीला- नहीं मेडम वो अब नहीं आएगा।

सुखजीत- ठीक है। तुम फिर पीछे से सर को खाना दे देना ओके? मैं आ रही हूँ थोड़ी देर में।

अब सुखजीत गागल्स लगाकर कार में बैठकर चल पड़ती है और फिर उसके बाद ऐसे ही आधे घंटे बाद वो पहुँच जाती है। बाहर काफी कारें खड़ी होती हैं, और फिर जब वो अंदर जाती है तो एक बेंच पर काफी लेडीस बैठी होती हैं, और सुखजीत को देखकर वो खड़ी हो जाती हैं। क्योंकी सुखजीत अब इसकी हेड होती है और फिर जगरूप सबसे मिलती है। सारी लेडीस सुखजीत के फिगर और उसके बात करने के स्टाइल को देखकर हैरान रह जाती हैं। क्योंकी सुखजीत के फिगर और चेहरे को देखकर हेड वाला रोब पड़ रहा था। फिर सुखजीत के बैठने के बाद सब बैठ जाती हैं।

जगरूप- "बहनों जैसा की आप सबको पता है, की आज की इस मीटिंग में हम अपना एक सोशल क्लब बना रहे हैं, जिससे अब गरीब लोगों और गरीब के बच्चों की स्टडी करवाने में हेल्प करेगें..."

सुखजीत- “इसलिए हमने अपनी इनकम में से कुछ हिस्सा इस क्लब को देना होगा। ताकी हम गरीब लोगों की हेल्प कर सकें...”

इतने में औरत बोली- “पर बहनजी, सबसे पहले हमें अपने क्लब की प्रमोशन करनी पड़ेगी, ताकी लोगों को पता चले की हमारा ऐसा कोई क्लब भी है..."

जगरूप- इसलिए हम अपनी कालोनी में इस बार दशहरे का एक फंक्सन करने वाले हैं।

फिर एक और औरत बोली- “पर मेडम सबके लिए इतने पैसे नहीं होंगे..."

सुखजीत अपना दिमाग चलाकर बोली- “देखो बहनजी, मेरे पास इसका भी हाल है। हम ऐसा करते हैं, की बैंक से फंक्सन करवाने के लिए लोन लेते हैं, और अपने मोहल्ले में बड़ा फंक्सन करवाते हैं। जिसमें हम अपने क्षेत्र के एम.एल.ए. संधू जी को इन्वाइट करेंगे। वो जाते-जाते हमें कुछ पैसे भी देंगे। और उस पैसे से हम अपना बैंक का लोन उतार देगें, और हमारी फ्री में प्रोमोशन भी हो जाएगी.."

सुखजीत की ये बात सुनकर सब औरतें तालियां मारने लगती है। सब उसके दिमाग की दाद देने लगती हैं।

जगरूप- आप ठीक कह रही हो, और एम.एल.ए. संधू जी मेरे पति के अच्छे दोस्त हैं। वो उनसे आने के लिए बात कर लेंगे।

सुखजीत- ठीक है बहनजी, और लोन का जुगाड़ मैं कर लेती हूँ। बैंक में री एक दोस्त लगी हुई है।

सब सुखजीत के इस फैसले से खुश और सहमत हो जाती हैं। सब कहती है, की हमसे जितना हो सकता है, हम सब कर लेंगी। और अब वो सब मिलकर क्लब का नाम 'अपना क्लब' रखती हैं। इसके बाद मीटिंग खतम हो जाती है, और सब अपने-अपने घर की ओर निकल जाती है। अब सिर्फ वहां जगरूप और सुखजीत ही रह जाती हैं।

सुखजीत- अब मैं भी चलती हूँ।

जगरूप- रुको बहनजी, मैं चाय मँगवाती हूँ, आप प्लीज़्ज़... पीकर जाना।

सुखजीत जगरूप को छेड़ते हुए बोली- “बहनजी अब आप इस क्लब की मेंबर हो गई हो। अब आराम से आप जवान लड़कों के नीचे लेट सकती हो...”

जगरूप- ओहहो... बहनजी वो सब तो चलता रहता है।

सुखजीत- हाँ आपने सुधारना थोड़ी है।

जगरूप को ये पता था, की सुखजीत इस काम में उसकी भी माँ है। फिर सुखजीत वहां चाय पीने के बाद बैंक की तरफ निकल जाती है।
***** *****
 
कड़ी_52
सुखजीत जगरूप के घर से निकलकर सीधी बैंक में जाती है। वहां पर उसकी एक सहेली प्रिया लगी हुई थी। प्रिया सुखजीत के साथ कालेज में पढ़ी होती है। प्रिया की उमर 44 साल होती है, और वो दिखने में आज भी काफी खूबसूरत होती है। प्रिया बैंक की यूनिफार्म डालकर बैठी हुई थी। सुखजीत उसके पास जाती है, और वो सुखजीत को देखकर खुश हो जाती है।

प्रिया- ओहह... वाउ वाट आ सीइज यार कैसी हो सुख?

सुखजीत- मैं बहुत अच्छी हूँ, क्या करूँ अब तू तो आती नहीं मिलने, मैंने सोचा मैं ही आ जाऊँ।

प्रिया- यार तुझे पता ही है, मेरी जाब का, टाइम निकलना कितना मुश्किल है।

सुखजीत- अच्छा जी चल फिर अपनी जाब का थोड़ा सा फायदा हमें भी दे दे।

प्रिया- हाँ क्यों नहीं यार। बस तू मुझे काम बता, एक मिनट में कर दूंगी।

सुखजीत- यार हमने एक 'अपना क्लब' नाम का एक क्लब बनाया है। इसी नाम का अकाउंट तेरे बैंक में खोलना है। और एक लोन भी चाहिये।

प्रिया- यार ये थोड़ा सा टेढ़ा काम है। क्योंकी एक नये अकाउंट पर लोन मिलना बहुत मुश्किल है। इसके लिए तो मुझे हमारे मैनेजर से बात करनी पड़ेगी।

सुखजीत- ठीक है, कहां है तेरा मैनेजर? मैं उससे भी बात कर लेती हैं।

प्रिया- कोई बात नहीं, चल मेरे साथ।

सुखजीत- ठीक है।

प्रिया अपने टेबल की दराज में से एक मिरर निकालती है। और अपनी लिपस्टिक को ठीक करके अपने गले का पल्ला थोड़ा सा नीचे कर लेती है। जिससे अब उसकी चूचियों के बीच की लाइन साफ-साफ दिख रही होती है। फिर प्रिया खड़ी होकर बोली।
प्रिया- चल चलते हैं सुख।

सुखजीत को ये सब सोचते हुए एक सेकेंड नहीं लगता की इसका मैनेजर एक नंबर का टरकी बंदा है, जो जवानी के मजे लेता है। फिर वो दोनों मैनेजर के आफिस पर पहुँच जाती है और प्रिया दरवाजा खोलकर बोली।
प्रिया- सर, मे आई कम इन?

अंदर से एक भारी आवाज आती है- “एस..."

दर्शल मैनेजर अपनी चेयर दूसरी तरफ घुमाकर बैठा होता है। सुखजीत और प्रिया दोनों आकर उसके सामने चेयर पर बैठ जाती हैं। पर उन दोनों को मैनेजर नजर नहीं आ रहा था।

प्रिया- सर, एक आपसे काम था।

मैनेजर अपनी चेयर घुमाता है, और सुखजीत उसको देखकर हैरान हो जाती है। क्योंकी मैनेजर और कोई नहीं गगन होता है। गगन वो ही है, जो शादी में सुखजीत और उसकी जवानी पर पूरा लटू बना घूम रहा था। सुखजीत को अपने पास और सामने देखकर गगन की आँखें चमक जाती हैं। गगन को देखकर सुखजीत अपनी आँखें नीचे कर लेती है, और सुखजीत को वो टाइम याद आ जाता है, जब उसने गरमी-गरमी में गगन से अपने चूतर मसलवा लिए थे।

प्रिया- सर, मेरी ये दोस्त है सुख, और सुखजीत ये हैं हमारे बैंक के मैनेजर गगन सर।

मोका देखकर गगन अपना हाथ आगे करके कहता है- “सत श्री अकाल जी..."

सुखजीत भी ये देखकर उससे अपना हाथ मिला लेती है। गगन सुखजीत का हाथ थोड़ा सा दबा देता है और उसकी आँखों में देखता है। सुखजीत झट से अपना हाथ उससे छुड़वा लेती है और अपनी आँखें नीचे कर लेती है।

प्रिया- सर, मेरी दोस्त को आपकी थोड़ी सी हेल्प चाहिये।

गगन- हाँ जी जरूर, बोलो हम तो यहां हेल्प करने के लिए ही बैठे हुए हैं।

सुखजीत ये सुनकर शर्मा जाती है, और सोचने लगती है की उसकी किश्मत ने उसके साथ ये कैसा खेल खेल दिया। जो लड़का उसके पीछे पागल हो रहा था, आज उससे उसे ही काम पड़ गया।

प्रिया गगन को सारी बात बता देती है, और फिर गगन सारी बात को अच्छे से समझकर बोला- "ठीक है प्रिया

जी आप एक रेजिस्ट्रेशन फार्म ले आओ प्लीज़्ज़..."

प्रिया उठकर फार्म लेने के लिए चली जाती है।

अब गगन और सुखजीत दोनों अकेले होते हैं उसके आफिस में। गगन सुखजीत का हाथ फिर से पकड़ लेता है,

और उससे बोलता है- “देखा फिर ऊपर वाला एक सच्चे प्यारे करने वाले की सुन ही लेता है..."
 
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