Desi Sex Kahani नखरा चढती जवानी दा - Page 20 - SexBaba
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Desi Sex Kahani नखरा चढती जवानी दा

कड़ी_57

दूसरी तरफ घर पर सुखजीत को जगरूप का फोन आ जाता है। और जगरूप सुखजीत को बताती है की आज उसने क्लब के लिए मीटिंग रखी है।

सुखजीत नहा धोकर तैयार हो जाती है। एकदम कमाल की खूबसूरत औरत अपने कमाल के हश्न को टाइट सूट में फँसाकर, अपनी चूचियों को खड़ी कर लेती है। टाइट कमीज का पल्ला भी उसके चूतरों से उठ रहा होता है। साइड में से उसके मोटे-मोटे चूतड़ पटियाला शाही सलवार में आग लगा रहे होते हैं। जो भी उसे देखता है, वो उसका दीवाना बन जाता है। सुखजीत एकदम कमाल का पटोला बनकर जगरूप की तरफ अपनी कार में बैठकर निकल जाती है।

उधर बाकी सारी औरतें पहले से बैठी होती हैं, जो क्लब की मेंबर होती हैं। सुखजीत बारी-बारी से सबको मिलती है, और वो बताती है की बैंक का लगभग हो ही गया है। ये सुनकर सब औरतें खुश हो जाती हैं। कालोनी में अब होने वाले फंक्सन की तैयारियां शुरू होती हैं, क्योंकी फंक्सन में एम.एल.ए. रंधावा साहब को आना था।

रंधावा साहब जगरूप के मोहल्ले के लीडर होते हैं। जगरूप का पति रंधावा को काफी अच्छे से जानता था। इसलिए वो फंक्सन में चीफ गेस्ट की तरह आने वाले थे, और उनकी तरफ से सुखजीत के क्लब को थोड़ी डोनेशन भी मिलने वाली थी।

सुखजीत सब के साथ चेयर पर बैठी होती है और बैठे-बैठे सबसे बोलती है- "देखो नागरिको बहनजी, रंधावा साहब से डोनेशन भी आनी चाहिए, वर्ना इस फंक्सन का कोई फायदा नहीं होने वाला.."

जगरूप- "आप फिकर ना करो बहनजी मैं अपने पति से बात कर लूँगी, वो आगे इस बारे में खुद उनसे बात कर लेंगे। पर जो हम बैंक से लोन ले रहे हैं, वो हमें उससे ज्यादा लेना पड़ेगा, कम से कम 5 लाख रूपए ऊपर.."

सुखजीत- बहनजी 5 लाख की कौन सी बात है।

जगरूप- "देखो बहनजी, हमने सिर्फ फंक्सन ही नहीं उसके साथ-साथ आए हुए लोगों के चाय नाश्ते का भी इंतेजाम करना है। और उसके साथ गरीब लोगों के लिए लँगर भी लगाना है। आप तो ये सब आराम से कर सकती हो। क्योंकी बहनजी आपकी बहुत जान पहचान है."
 
सुखजीत जगरूप की बात सुनकर थोड़ी देर सोचकर बोलती है- “ठीक है बहनजी, मैं कोशिश करूँगी."

फिर सुखजीत बाकी औरतों को कहती है- “सब औरतें अपने-अपने लिंक की हिसाब से ज्यादा से ज्यादा बंदे फंक्सन में लाएं। ताकी हमारे पास ज्यादा से ज्यादा डोनेशन मिल सके..."

इतने में मीटिंग खतम हो जाती है, और सब औरतें अपने-अपने घर चली जाती हैं। सुखजीत के ऊपर अब बैंक का और लोन चुकाने की जानकारी बढ़ गई थी। पर बैंक मैनेजर सुखजीत का आशिक था, और सुखजीत को काफी अच्छे से पता था की गगन को उसने कैसे काबू करना था। सुखजीत अब जगरूप के घर से निकल जाती है, और अपनी कार में बैठकर गगन को फोन करती है।

गगन अपने फोन पर सुखजीत जैसी सेक्सी औरत का नंबर देखकर खुश हो जाता है। वो फोन उठते ही बोल “हाए ओये आज तो इस गबरू की लाटरी लगी है। जो इतनी शोणी कमाल के पटोले ने इस जाट को खुद फोन कर लिया है..."

गगन की बातें तो पहले से ही सुखजीत के सीधे दिल पर जाकर लगती थी। आज भी उसके मुँह से ये बात सुनकर खुश हो जाती है, और हँसते हए बोली- “लाटरी तो आपकी उस दिन लग गई थी, जिस दिन मैं आपके कार के बोनट पर मैं आपके नीचे लेट गई थी...”

सुखजीत की ये बात सुनकर गगन का लण्ड खड़ा हो गया, और वो अपना लण्ड मसलने लगा और फिर वो बोला- "आए हाए अगर ऐसी लाटरी मेरी रोज लगे, तो मजा ही आ जाएगा..."

सुखजीत हँसते हुए बोली- “हाए आए आप बस मेरा एक छोटा सा काम कर दो, इस लाटरी की टिकेट भी मैं ही दूँगी..”

गगन- आए हाए बोलो मेरे हुजूर क्या काम है?

सुखजीत- जो अभी हम बैंक से लोन लेने वाले हैं, उस रकम के इलावा 5 लाख का एक और लोन मुझे चाहिए..."

गगन- ये कैसे हो सकता है भला? कोई सेक्योरिटी है?

सुखजीत- मेरी जान को रख लो सेक्योरिटी आप।

गगन- “हाए तू तो मेरी जान है मेरी जान। तेरा काम हो जाएगा, मैं एक और लोन पास कर दूंगा। बस तू मुझे ये बता तू.."

सुखजीत- मेरा काम कल आपने कर तो लिया था पार्किंग में।

गगन- ले वो भी कोई काम था, सब कुछ ऊपर-ऊपर से ही किया था उस दिन तो।

सुखजीत- अच्छा फिर तुझे और क्या चाहिए?

गगन- मैं वो ही चाहता हूँ, जो तू अपने मोटे-मोटे चूतरों के बीच में लेकर घूमती फिरती है।

गगन के मुँह से ये सुनकर सुखजीत गरम हो जाती है। क्योंकी गगन सुखजीत की चूत के बारे में बात कर रहा था। जिसे सुनते ही उसकी चूत में आग सी लगाने लगती है।

सुखजीत- तू पहले मेरा काम कर, फिर हम दूसरे काम के बारे में सोचते हैं समझा।

गगन- तेरा पहला काम तो एक मिनट में हो जाएगा। बस तू अब दूसरे काम के लिए तैयार रह समझी।

सुखजीत- ठीक है अब मैं फोन रखती हूँ।
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गगन का लण्ड पूरा खड़ा हो चुका था। गगन अब किसी भी कीमत पर सुखजीत की जवानी को जमकर खाने के लिए पागल हो चुका था। हालत ही ऐसी थी, की गगन सुखजीत को चोदने के लिए अब कुछ भी बिना सोचे समझे करने को तैयार था। ये बात सुखजीत को पहली मीटिंग में ही पता चल गई थी। इसलिए अब वो गगन का जमकर पूरा फायदा उठाना चाहती थी। क्योंकी अब उसको गैर मर्दो से चुदने का शौक तो लग ही गया था। इसलिए अब गगन से चुदने में उसे कोई दिक्कत नहीं थी।

दूसरी तरफ रीत स्कूल में बैठी ये सोच रही थी, की ये उसके साथ क्या हो गया है? एक तरफ तो वो मलिक को अपनी जान से ज्यादा सच्चा प्यार करती है। पर दूसरी तरफ आज उसने रिंकू के साथ डेट पर जाने के लिए हाँ कर दी थी। पर ये सब वो मजबूरी में कर रही थी। क्योंकी उसके पास अब कोई और रास्ता ही नहीं था। इसलिए वो चुपचाप उसके साथ जाने को तैयार हो गई थी। अब उसने ये सोचा की अब वो रिंकू के साथ डेट पर तो जाएगी ही, पर इस बात का किसी को पता नहीं लगने देगी।

इतने में स्कूल की बेल बज जाती है, और रीत अपनी अक्टिवा उठाकर सीधा घर की ओर निकल जाती है।
* * * * * * * * * *
 
कड़ी_58
घर पर जाकर रीत वही सब सोच रही होती है जिसकी वजह से वो परेशान हो रही होती है। बैठी सोच रही होती है की अब उसके साथ ये क्या हो रहा है। तभी रिंकू का फोन आ जाता है और उसे ना चाहते हुए भी मजबूरी में फोन उठाना पड़ता है और वो फोन उठा लेती है।

रीत- हेलो।

रिंकू- हाँ जी क्या हाल है मेरी मेडम के?

रीत- ठीक हूँ। पर तू मेरे पीछे क्यों पड़ा हुआ है?

रिंकू- बस क्या कहूँ।

रीत- देख रिंकू मैं तेरे साथ डेट पर नहीं जाना चाहती हूँ पर तू किसी को सब ना बता दे इसलिये जा रही हूँ।

रिंकू- तू कल बस मिल ले। चल ले मेरे साथ।

रीत- हाँ ठीक है। मैं कल मिल लूँगी, पर तू ये बात हमेशा के लिए याद रख ले की मेरा पहला और आखिरी प्यार मलिक है। और मेरी एक शर्त भी है।

रिंकू- क्या शर्त है?

रीत- मैं बस तेरे से कल पहली और आखिरी बार मिलूंगी और उसके बाद कभी नहीं मिलूंगी क्योंकी मैं तुझसे मजबूरी में मिल रही हूँ और मैं बस यही चाहती हूँ की तू बस भैया को कुछ ना बता दे।

रिंकू- ठीक है। पर तू मिल तो सही और रही बात तुझे डेट पर ले जाने की तो उसके लिए ही मैंने तेरे भाई के साथ दोस्ती करी थी ताकी तुझे देख पाऊँ। और अगर तू ना मिली तो मैं सब कुछ सोनू को बताऊँगा।

रीत- चल ठीक है। कल मिलूंगी पर मेरी शर्त भी याद रख।

रिंकू- “हाँ हाँ याद है...” और फिर वो फोन कट कर देता है। और बाद वो मूछों को ताव देते हुए कहता है- “ऐसे कैसे आखिरी बार होगा, अभी तो शुरुवात हुई है."

दूसरी तरफ सुखजीत गगन साथ बहुत सी सेक्सी बातें करती है जिससे की उसका निपल खड़ा हो जाता है। और फिर ऐसे ही उसकी चूत भी सलवार में से गीली हो जाती है और उसे लण्ड की तड़प होने लगती है। तभी शाम का मौसम और टाइम देखकर उसको ख्याल आता है की वो पार्क में चली जाए और फिर वो पार्क के लिए घर से निकलती है और उधर शीला को भी कह देती है।

अब जैसे ही वो बाहर आती है तो सामने प्यारेलाल अपने घर के बाहर खड़ी कार में से निकल रहा होता है और सुखजीत को देखकर बहुत ही अच्छी वाली स्माइल पास करता है।

प्यारेलाल- कहां चले हो?

सुखजीत भी उसको सेक्सी स्माइल देते हुए कहती है- “बस पार्क में जा रहे हैं, बहुत टाइम हो गया कसरत किये को तो सोचा जाकर कर ही लूं..”

प्यारेलाल- “हाँ हाँ सही है...” प्यारेलाल भी ये मोका ऐसे कैसे गवांने देता तो बोल दिया- “तुम चलो मैं भी आ रहा

सुखजीत- “हाँ हाँ आ जाओ। मैं तो कब से तैयार खड़ी हूँ। ढीले तो आप पड़ते हो..” और अपनी गाण्ड को मटकाती हई पार्क की ओर चल पड़ती है।

प्यारेलाल उसकी हिलती मस्त गाण्ड को देखकर पागल हो जाता है और फिर अपने लण्ड को हाथ में लेकर मसलने लगता है, और खुद से ही कहता है- “आज तो कसरत करनी ही पड़ेगी."

अब सुखजीत पार्क पहुँच जाती है और वहां पर वो ट्रैक पर आकर अपनी वाक कर रही होती है। उसने अब तक एक चक्कर लगा लिया होता है की तभी उसे प्यारेलाल आता हुआ दिखाई देता है। सुखजीत उसकी आँखों को देखकर खुश हो जाती है। क्योंकी उसकी आँखों में भी सुखजीत की तलाश होती है।

प्यारेलाल उसको देखता है और वो दिख ही जाती है, और फिर उस तक पहुँचने के लिए तेज-तेज चलता है और उस तक पहुँच ही जाता है। सर्दिया आने की वजह से अब अंधेरा भी जल्दी पड़ जाता है और अब दोनों वाक कर रहे होते हैं। सुखजीत तेज-तेज चल रही होती है, जिससे की उसकी गाण्ड बहुत ही ज्यादा हिल रही होती है, और ये देखकर प्यारेलाल का मूड खराब हो रहा हो जाता है।
 
प्यारेलाल- “भाभी आप जरा प्यार से चला करो..."

सुखजीत- क्यों, आप ऐसा क्यों कह रहे हो?

प्यारेलाल- भाभी आप अपनी गाण्ड को इतनी तेज मटका-मटकाकर चलती हो की पीछे अगर लड़के देखें तो उनका दिमाग खराब हो जाए।

सुखजीत प्यारेलाल की बात सुनकर कहती है- "इसी की वजह से तो वाक करने आती हूँ ताकी ये कम हो जाए..."

प्यारेलाल- इसका ये इलाज नहीं है।

सुखजीत- तो क्या इलाज है?

प्यारेलाल अब उसकी सलवार पर हाथ रखते हुए उसकी सलवार में से ही उंगली अंदर को डाल देता है। उसके ऐसे करने से वो पागल हो जाती है। और उसके मुँह से आह्ह... निकल जाती है।

अब प्यारेलाल उससे कहता है- “ये तो कसरत करने से होगा..."

सुखजीत- अच्छा तो वो कसरत कर लो। पर वहीं जहां पहले की थी।

सुखजीत और प्यारेलाल वहीं पीछे की ओर चले जाते हैं। वहां पर हर जगह खेत ही खेत होते हैं, और बड़े-बड़े पेड़ होते हैं। प्यारेलाल सुखजीत को पेड़ पर सटाकर उसके होंठों में अपने होंठ डाल देता है। उधर दूसरी तरफ अपना एक हाथ लाकर उसकी चूचियों पर रखकर उसकी चूचियों को दबाना शुरू कर देता है।

उधर सुखजीत भी पेड़ से चिपकी हुई उसकी चूचियों के दबाने का मजा लेती है और उसके साथ होंठों को चुसवाती है। होंठों को चूसते हुए साथ में प्यारेलाल उसकी सलवार का नाड़ा खोल देता है जिससे की वो अब पागल हो जाती है और तभी होंठों को निकालते हुए कहती है।

सुखजीत- “प्यारेलाल, मुझे यहां डर सा लग रहा है...” दो दिन की प्यासी सुखजीत भी लण्ड लेने को बेताब थी और वो पेड़ से चिपकी हुई थी।

तभी प्यारेलाल कहता है- “भाभी तू यहां डर मत, क्योंकी यहां कोई नहीं आता है..."

इतने में अब सलवार का नाड़ा ढीला हो जाता है और फिर सलवार नीचे को गिर जाती है। प्यारेलाल उसके होंठों को चूसता रहता है और ऐसे ही फिर बाद में वो सुखजीत की पैंटी में हाथ दे देता है और उसकी चूत में उंगली डाल देता है। सुखजीत उसके ऐसे करने पर पागल हो जाती है और पागलों की तरह चुदवाने लगती है।

प्यारेलाल उसकी चूत में उंगली पेककर जोर-जोर से ऊपर नीचे करता है और थोड़ी देर करने के बाद अब उंगली को निकाल देता है। अब वो लण्ड को बाहर निकालता है और त के हाथों में देकर कहता है- “ले भाभी इसे चूस..."
 
सुखजीत भी लण्ड को देखकर नीचे बैठ जाती है और उसके लंबे और मोटे लण्ड को देखकर पागल हो जाती है। सुखजीत अब प्यारेलाल की तरफ देखती हुई कहती है- “की गाल है, इस बार तो ये बहुत बड़ा और टाइट है...”

प्यारेलाल- इसमें क्या होना ये सब आपके फिगर का कमाल है।

सुखजीत- “अच्छा.." और सुखजीत उसको हाथों में लेकर ऊपर-नीचे करती है और लण्ड पर एक किस भी कर देती है।

प्यारेलाल- “भाभी अब इसे मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दे...”

सुखजीत ने पहले उसको अपने चेहरे पर घुमाया और फिर उसके बाद ऐसे ही मुँह में ले लिया और बड़े ही मजे से चूसने लगी। प्यारेलाल को भी बहुत मजा आ रहा था और वो मजे से लण्ड को चुसवा रहा था। सुखजीत बड़े ही मजे से लोलीपोप की तरह लण्ड को चूस रही थी और उसपर अपनी थूक लगाकर उसे पूरा गीला कर रही थी।

और फिर ऐसे ही बीच-बीच में गले में लेकर वो लण्ड को और पागल कर रही थी।

प्यारेलाल को भी इतनी सुंदर भाभी के मुँह में लण्ड को चुसवाने का खूब मजा आ रहा था। फिर ऐसे ही अब प्यारेलाल उसको मुँह से लण्ड निकालने को कहता है और सुखजीत को पेड़ के साथ लगाकर झुकने को कहता है

और वो धीरे-धीरे झुक जाती है।

अब वो उसको घोड़ी बनाकर उसकी सलवार और पैंटी नीचे कर देता है और अपनी लोवर भी नीचे करके अपना लण्ड उसकी चूत पर रख देता है। अब सुखजीत थोड़ा पीछे होकर लण्ड को चूत में लेने के लिए कहती है।
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प्यारेलाल- "तो अब कसरत के लिए तैयार है भाभी तू?"

सुखजीत- हाँ हाँ मैं तैयार हूँ।

प्यारेलाल अब लण्ड को चूत में डालता है तो आधा जाने से वो चीख पड़ती है और फिर ऐसे ही प्यारेलाल उसकी चूत में आधे से ज्यादा लण्ड डालकर चोदने लगता है।

अब सुखजीत भी चुदाई का खूब मजा ले रही होती है। वो तो जैसे पागल हो रही होती है। प्यारेलाल उसकी चूत को अब जोर-जोर चोदने लगता है। सुखजीत भी अहह... करती हुई पूरे मजे लेती है और पेड़ को पकड़कर खूब चुदवाती है।

उन दोनों की वहां जो सिचुयेशन होती है उसमें उनका फँसने का भी डर होता है। पर उसी डर में चुदाई का अपना ही मजा होता है। अब प्यारेलाल उसकी कमीज में हाथ देकर उसकी चूचियों को दबाते हुए चोदने लगता है। उनको ऐसे करते हुए अब तक 30 मिनट हो जाते है, और उधर सुखजीत का एक बार हो जाता है।

अब जब ऐसे ही काफी देर तक करने के बाद प्यारेलाल को लगता है की अब उसका होने वाला है तो वो भी मजे से चोदने लगता है, उसका मन होता है की वो अंदर ही निकाल दे पर वो ऐसा नहीं कर सकता। फिर वो लण्ड को जोर-जोर से चोदकर बाहर निकालता है और फिर सुखजीत की गाण्ड पर निकाल देता है। सुखजीत भी बिना माल को साफ किए पैंटी डालकर सलवार ऊपर करके नाड़ा बाँधती है और फिर उसके बाद वहां से जाने लगती है। तभी प्यारेलाल उसकी बाजू पकड़कर अपनी ओर खींचा है तो वो उसकी छाती से लग जाती है।

प्यारेलाल कहता है- “एक बार हो जाए दुबारा..."

सुखजीत पीछे होती हुई कहती है- “नहीं जी, अब अगली बार का प्रोग्राम बनाना ओके... अब मैं जा रही हूँ..” और ये कहकर वो घर आ जाती है।

घर पर शीला खाना बनाकर रखी होती है और फिर हरपाल के आने पर सब खाना खाते हैं और फिर सब सो जाते हैं।
***** *****
 
कड़ी_59

अगले दिन चढ़ जाता है, और आज सोच में पड़ी रीत को आज रिंकू के साथ डेट पर जाना पड़ रहा था। पर अपने यार मलिक को धोखा नहीं दे रही थी, सिर्फ अपने प्यार को बचा रही थी। रीत सुबह उठकर स्कूल जाने के लिए तैयार होती है। स्कूल की ड्रेस में रीत की चूचियों को सांस नहीं आ रही थी। रीत ने अपने बालों का पोनी स्टाइल किया हुआ था, जिसमें वो बहुत ही सुंदर लग रही थी। उसकी सलवार में उसके बाहर निकले मोटे-मोटे चूतर बहुत ही कमाल के लग रहे थे। उसकी कमीज का पल्ला उसके चूतरों से उठा हुआ था। ये पल्ला अब बता रहा था, की रीत अब जवान हो गई है। तभी रीत का फोन रिंग करने लगता है।

रीत देखती है, की ये नंबर रिंकू का था। वो फोन उठाकर बोली- “हेलो..."

रिंकू- गुड मार्निंग जी, तैयार हो फिर आज के लिए?

रीत- "रिंकू मेरी हिम्मत नहीं हो रही है, प्लीज़्ज़... ऐसा ना कर प्लीज़्ज़.."

रिंकू- देख रीत, तेरा भाई सोनू मेरा बहुत अच्छा और खास दोस्त है। उसे मेरी बात पर यकीन करते एक मिनट भी नहीं लगना। देख ले फिर मैं तेरे भाई को सब कुछ बता देता हूँ।

रीत डर जाती है और बोली- “ठीक है ठीक है, बोल कहां मिलना है?"

रिंकू- माल की पार्किंग में अपनी अक्टिवा पार्क कर ले, फिर मैं तुझे वहीं से पिकप कर लूँगा।

रीत- "ठीक है..” कहकर रीत फोन कट कर देती है, और फिर वो ज्योति को फोन मिलाती है।

ज्योति- हेलो।

रीत- “हेलो ज्योति, यार मैं आज स्कूल नहीं आऊँगी। ऐसा करियो तू खुद ही निकल जइओ ओके.."

ज्योति- “क्यों क्या हुआ, क्यों स्कूल नहीं आ रही है तू? लगता है आज फिर अपने यार के साथ जा रही है तू.."

रीत- नहीं यार, मेरी तबीयत ठीक नहीं है।

ज्योति- “रहने दे रीत, तू किसे बेवकूफ बना रही है। मुझे सब पता है, आज से पहले तो तूने कभी तबीयत खराब होने पर भी छुट्टी नहीं मारी। और आज तू छुट्टी मार रही है...”

रीत- सच में बीमार हूँ यार।

ज्योति- “पता है मुझे कितनी बीमार है तू, आज अपने यार के आगे जब तू सलवार खोलेगी। तब तेरी सारी की सारी बीमारी दूर हो जाएगी..."

रीत हँसते हए बोली- “ओह्ह... यार शटप यार, अब तूने जो समझना है वो समझ। पर मैं आज स्कूल नहीं आ रही हूँ ओके बाइ...”

रीत घर से अक्टिवा लेकर सीधी माल की तरफ निकल जाती है। वो पार्किंग में अपनी अक्टिवा लगा देती है। वो देखती है की रिंकू अपनी कार में बैठा उसे देखकर स्माइल कर रहा था, और उसे अंदर बैठने का इशारा करता है। रीत उसके पास जाती है और उसकी कार में जाकर बैठ जाती है। आज रिंकू की खुशी का ठिकाना नहीं होता। रीत जैसी एकदम खूबसूरत लड़की जो एक नंबर की पटोला है। वो आज उसके साथ कार की फ्रंट सीट पर बैठी हुई थी। रीत के पर्दूम की खुश्बू के पूरी कार महक जाती है।
 
रिंकू- “देख रीत यार, मैं सच में तुझे बहुत ही पसंद करता हूँ। मैं तेरा दोस्त बनना चाहता हूँ। अगर तुझे ऐसा लगता है, की मैं तेरा एक अच्छा दोस्त भी बनने के काबिल नहीं हैं। तो तू अभी के अभी कार से निकल सकती

रीत थोड़ी देर सोचती है, की वैसे रिंकू इतना खराब बंदा भी नहीं है। इसे मैं अपना दोस्त तो बना ही सकती हूँ।

और अब उसे रिंकू से दोस्ती कर ही लेनी चाहिये क्योंकी अब उसका स्कूल का बंक तो लग ही गया है।

रीत ये सब सोचकर बोली- “ठीक है रिंकू, तू आज से मेरा दोस्त है.."

रिंकू ये सुनकर खिल उठता है और खुशी के मारे थोड़ा से जोर से बोला- “हाए ओई रब्बा... मैं मर जावां... इतनी सुंदर लड़की मेरी सहेली है। खुशी के मारे कहीं मुझे कुछ हो ना जाए..."

रीत रिंकू की ये पागलपंथी देखकर हँसने लगती है। रिंकू रीत का दिल जीतने में कामयाब हो जाता है, और वो फिर वहां से कार निकल लेता है। रास्ते में रिंकू बहुत मजाक वाली बातें करके रीत को खूब हँसाता है। उसका असर ये हो रहा था, की अब रीत रिंकू ले साथ काफी अच्छा महसूस कर रही थी, और अब वो भी उससे बातें कर रही थी।

रिंकू रीत को फिर मूवी दिखाने के लिए ले जाता है। वहां एक हारर मूवी लगी हुई थी।

बाहर उस मूवी का पोस्टर देखकर ही रीत डर जाती है, और वो बोली- “रिंकू ये मूवी प्लीज़्ज... ना देखो मुझे हारर मूवी से बहुत डर लगता है."

रिंकू- फिकर ना कर रीत, में हूँ ना तेरे साथ। अगर ऐसा वैसा कुछ हुआ तो, तू मुझे कसकर पकड़ लियो।

रीत रिंकू के कंधे पर थप्पड़ मारकर बोली- “ओ चुप कर रिंकू। सीरियस्ली मुझे बहुत डर लगता है.."

रिंकू- कुछ नहीं होता रीत। चल ना देखते हैं ये हारर मूवी।

रिंकू के लाख बार कहने पर रीत उसके साथ जाने को मान जाती है। फिर वो दोनों मूवी देखने के लिए मूवी हाल में चले जाते हैं। मूवी देखने के लिए काफी सारे लोग आए हुए थे। कुछ ही देर में मूवी शुरू हो जाती है। फिल्म के बीच में ही एक बहुत डरवाना सीन आता है, जिसे देखकर रीत काफी डर जाती है, और वो कसकर रिंकू का हाथ पकड़ लेती है।

जब रीत को पता चलता है, की उसने डर के मारे रिंकू का हाथ पकड़ लिया है, तो वो शर्माकर उसका हाथ छोड़ दी। रिंकू भी ये देखकर खुश हो जाता है, क्योंकी रिंकू ने रीत को जानबूझ कर ये हारर मूवी दिखाई थी। थोड़ी ही देर में एक हाट सीन भी आ जाता है। जिसमें हीरो लड़की को पूरा नंगी करके बेड पर लेटा देता है, और एक चादर लेकर उसके ऊपर आ जाता है। फिर वो उसे जमकर चूसता है, और नीचे उसकी दोनों टाँगें खोलकर उसे ठोंक देता है।

रीत की चूत ये सीन देखते ही पानी निकालने लगती है। मोका देखकर रिंकू रीत के चूतड़ों पर हाथ फेरने लगता है। अपने चूतड़ों पर हाथ महसूस होते ही रीत ने रिंकू का हाथ साइड में कर दिया।

पर रिंकू कहां मानने वाला था, उसने फिर से एक बार अपना हाथ रीत के चूतड़ों पर रखा दिया। और उसके चूतड़ों को सलने लगा। रीत पहले ही ऐसा गरम सीन देखकर गरम हो रही थी। ऊपर से रिंकू के हाथ उसके जिश्म में आग लगाने लगते हैं।

रीत से अब अपनी आग पर कंट्रोल नहीं हो रहा था। इसलिए अब वो रिंकू को भी कुछ नहीं कह रही थी। अब रिंकू ने अपना अगला कदम उठाया। उसने अचानक से रीत का मुंह पकड़ा और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर जोर-जोर से चूसने लगा। साथ ही उसने अपना एक हाथ रीत की चूत पर रख दिया और धीरे-धीरे उसकी चूत को मसलने लगा।

रीत पर ये इस अचानक हमले को वो समझ नहीं पाई, ऊपर से वो इतनी गरम हो चुकी थी। इसलिए अब उसे रिंकू के होंठों का भी मजा आने लगा था, वो जोर-जोर से उसके होंठों को चूसने लगी थी। तभी अचानक मूवी में एक गोली चलती है, जिसकी आवाज से रीत फिर से होश में आ जाती है, और वो रिंकू को एकदम से धक्का देकर अपने से अलग करती है, और वो उससे दूर होकर सोचने लगती है की।

रीत- “हाए रब्बा... ये क्या हो गया मेरे से..." और रीत को अपनी इस हरकत पर अब बहुत ज्यादा पछतावा हो रहा था, की उसने गर्मी गर्मी में ये क्या कर दिया था।

फिर मूवी खतम हो जाती है, और उसके स्कूल की छुट्टी का भी टाइम हो गया था। पर रीत रिंकू से कोई बात नहीं कर रही थी। फिर रिंकू उसे कार में बिठाकर रीत को माल की पार्किंग में छोड़ देता है। रीत वहां से अपनी अक्टिवा उठाकर सीधी अपने घर की ओर निकल जाती है।

अगला दिन हो जाता है और रोजाना की तरह रीत ज्योति को स्कूल लेकर आ जाती है। वो अब रिंकू के बारे सोच रही होती है। क्योंकी अब तक रिंकू से उसकी बात नहीं हुई होती है।
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कड़ी_60

सुखजीत आज पूरी अपनी तौर निकलकर तैयार होती है। आज सुखजीत ने सफेद कलर का सूट डाला होता है जिसमें उसकी चूचियां बहुत ही कमाल की लग रही होती है और तो उसपर काई लड़के भी फिदा हुए होते हैं।

सुखजीत के क्लब का आज उदघाटन होता है। उन्होंने स्पेशल गेस्ट एम.एल.ए. रंधावा को बुलाया होता है। आज जो फंक्सन होता है वो जगरूप के घर के सामने हो रहा होता है। सुखजीत बहुत ही अच्छे से तैयार होकर फंक्सन पर पहुँच जाती है। वहां पर पहले पाठ होता है जिसका टाइम 10:00 बजे होता है। और फिर 11:00 बजे फंक्सन, भाषण और लंच होता है।

सुखजीत अब काम करवाने लगती है। और तो और धीरे-धीरे संगत भी आनी शुरू हो जाती है, और सब पाठ अटेंड करने लगती है। फिर ऐसे ही पाठ के समय पर गगन भी पूरी तौर निकालकर वहां पर पहुँचता है। जैसे ही वो सुखजीत को सफेद सूट में देखता है तो वो उसे देखकर खुश हो जाता है। और फिर उसके बाद उसको देखते हुए बहुत ही अच्छी वाली स्माइल देता है।

सुखजीत भी उसको देखकर अच्छी वाली स्माइल पास करती है।

गगन- सत श्री अकाल जी।

सुखजीत भी स्माइल करके बोली- सत श्री अकाल जी।

गगन- आज तो कयामत हो रखी है, और प्रोग्राम भी काफी अच्छा कर रखा है।

सुखजीत- हाँ अब क्या करें। बस सब आपकी मेहरबानी है।

गगन- तो चलो फिर आज भाभी कोई प्रोग्राम बना लो।

सुखजीत- क्या बात कर रहे हो? यहां इतने सारे लोगों में कुछ नहीं हो सकता।

गगन अब उसके पास आता है और कहता है- “कुछ नहीं हो सकता, ऐसे थोड़ी होता है। कुछ तो होना ही चाहिए। और वैसे भी तेरे इस क्लब के लिए मैंने कितनी बार तेरी हेल्प करी है, और इसलिये अब तू मना नहीं कर सकती..."

सुखजीत गगन की ये सब बातें सुन रही होती है, और फिर बोली- “प्लीज़्ज़... इतने लोगों में ऐसी बात ना करो..."

गगन सुखजीत के पास आकर धीरे से बोला- "इतने लोगों में नहीं तो छुप कर हो जाए। मैंने तेरे लिए इतना कुछ किया है। अब इतना हक तो मेरा बनता है, मुझे तू 5 मिनट में जगरूप के घर पर मिल...” आज उसके घर पर कोई भी नहीं होता है, क्योंकी सब प्रोग्राम की तैयारियों में बिजी होते हैं।

सुखजीत भी आज मूड में होती है। गगन जैसे जवान लड़के को देखकर वो खुद अपनी सलवार उसके आगे उतारना चाहती है। साथ ही सुखजीत ने भी गगन से इतने सारे काम करवा लिए थे। और अब वो सारे के सारे एहसान सिर्फ 5 मिनट में उतार सकती थी। वो इधर-उधर देखकर जगरूप के घर में घुस जाती है। रास्ते में उसे जगरूप मिल जाती है, और वो सुखजीत को देखकर बोली।
जगरूप- “बहनजी आप कहां जा रहे हो, उधर एम.एल.ए. साहब आने वाले हैं..”

सुखजीत बहाना मारकर बोली- “बहन मेरा सिर दर्द कर रहा है, मैं अभी दवाई लेकर आ रही हूँ 5 मिनट में..."

जगरूप- “ठीक है बहन प्लीज़्ज़... जल्दी आना...” कहकर जगरूप वहां से चली जाती है।

सुखजीत अपने यार गगन के पास चली जाती है। गगन जैसे ही सुखजीत को देखता है, वो उसे पकड़कर दीवार से लगाकर उसके होंठों को जोर-जोर से चूसने लगा। गगन के हाथ झट से सुखजीत की चूचियों के ऊपर आ गये,
और वो जोर-जोर से उसकी चूचियों को मसलने लगा।

गगन उसकी चुन्नी को उतारकर साइड में फेंक देता है- “हाए मेरी जान आज मैं तेरे सारे लोन माफ कर दूंगा..."

सुखजीत- “हाए गगन प्लीज़्ज़... आराम से करो दर्द हो रहा है..."

गगन जोर से सुखजीत की चूचियां मसलकर बोला- “जान आज तो मैं तेरी कस-कसकर लूँगा...” फिर गगन काफी देर तक सुखजीत के जिश्म के मजे लेता है। उसके होंठ और चूचियों को काफी अच्छे से चूसता है। बीच में सुखजीत का फोन आ जाता है, पर वो 5 मिनट कहकर फिर से गगन के साथ लग जाती है।

सुखजीत के पास अब ज्यादा टाइम नहीं, ये बात गगन भी समझ जाता है इसलिए वो जल्दी-जल्दी करने लगता है। और वो सुखजीत की कमीज और ब्रा दोनों उतारकर उसे ऊपर से नंगी कर देता है। सुखजीत के नंगी चूचियां देखकर उनपर टूट पड़ता है। वो सुखजीत की चूचियां अपने मुँह में डालकर जोर-जोर से चूसने लगता है।

सुखजीत गगन के सिर को अपने हाथ से अपनी चूचियों में दबाकर पूरा स्वाद ले रही थी। गगन सुखजीत की चूचियों को चूसते हुए, उसकी सलवार और पैंटी दोनों उतार देता है, और उसकी टांगों से पैंटी और सलवार उतारकर साइड में फेंक देता है।
 
सुखजीत के मुंह से आss निकलती है, और वो गगन को अपनी टांगों के बीच में ले लेती है। गगन का लण्ड पूरा खड़ा हो गया था। गगन सुखजीत की टाँगें पकड़कर अपने कंधे पर रखा लेता है। गगन एक हाथ से सुखजीत के एक चूतड़ को पकड़ता है, और दूसरे हाथ से वो अपनी पैंट को खोलकर अपना 8" इंच लंबा मोटा लण्ड बाहर निकाल लेता है। फिर गगन सुखजीत की चूत पर अपना लण्ड रगड़ने लगता है, और वो एक धीरे से धक्का मारता है।

सुखजीत एकदम से काँप जाती है और बोलती है- “आहह... स्स्सीईई... हाए अब डाल भी दे ना। अंदर आग लगी पड़ी है मेरे... डाल अब.."

सुखजीत की बात सुनकर गगन एकदम से अपना पूरा लण्ड सुखजीत की चूत में डाल देता है। लण्ड सुखजीत की चूत को चीरता हुआ पूरा अंदर जाता है, और गगन का लण्ड सीधा सुखजीत की चूत में बच्चेदानी पर जाकर लगता है। सुखजीत एकदम लण्ड अंदर लगते ही मदहोश जाती है, और अपनी दोनों आँखें बंद करके बोली।
सुखजीत- “आहह... सीयी मजा ही आ गया..."

सुखजीत जैसी कमाल की सुंदर औरत को अपने नीचे नंगी लेटाकर वो पूरे जोश में आ गया था। गगन अपनी पूरी ताकत से सुखजीत की चूत को जोर-जोर से चोदने लगा था। सुखजीत भी नीचे लेटी अपनी दोनों आँखें बंद करके गगन के हर एक धक्के का पूरा मजा ले रही थी।

सुखजीत अब नीचे से अपनी गाण्ड उठाकर गगन का चुदाई में पूरा साथ दे रही थी। पर सुखजीत की चूत की गरमी के आगे गगन का लण्ड कुछ भी नहीं था, उसका लण्ड 10 मिनट भी सुखजीत की चूत को चोद नहीं पाया, और उसके लण्ड ने अपना सारा पानी सुखजीत की चूत में ही निकाल दिया।

जैसे ही सुखजीत को पता चला की, गगन का हो गया है। उसने जल्दी से गगन को अपने ऊपर हटाया और अपने कपड़े डालकर जल्दी से बाहर निकल गई, और सीधा प्रोग्राम में चली गई।

वहां का एम.एल.ए. रंधावा भी आया हुवा था। पाठ पूरा हो चुका था, और अब स्पीच की बारी आ गई थी। एम.एल.ए. के साथ जगरूप का पति और क्लब की हेड सुखजीत स्टेज पर बैठी होती है। जैसे ही सुखजीत स्टेज पर आती है, तो एम.एल.ए. की नजर सुखजीत के मस्त जिश्म पर पड़ती है। ऊपर से सुखजीत हँसते हुए सेक्सी सी स्माइल के साथ एम.एल.ए. से बोली।

सुखजीत- “सत श्री अकाल रंधावा जी। बहुत-बहुत धनवाद आपका जो आप हमारे क्लब के इस पहले फंक्सन में आए हो। किसी ने कोई कमी तो नहीं आने दी आपकी खतेदारी में..."

एम.एल.ए. हँसकर सत श्री अकाल बोलता है और सुखजीत के सेक्सी जिश्म को देखकर स्माइल करते हुए बोला “बहुत अच्छा लग रहा है, मुझे यहाँ आकर। और साथ ही आपके सोशल वर्क के लिए क्लब खोलना बहुत ही अच्छा विचार है..."

फिर सुखजीत स्टेज से नीचे जाती है, और एम.एल.ए. रंधावा की नजर सीधे सुखजीत के मोटे-मोटे गोल-गोल हिलते चूतरों पर जाती है। फिर जगरूप स्टेज के ऊपर आकर अपने क्लब के बारे में सबको बताती है। और सुखजीत नीचे से कुछ इनाम लेकर ऊपर आती है, जो उसने गरीब बच्चों को देने होते हैं।

प्रोग्राम में आए हुए सब लोग बहुत खुश होते हैं। क्योंकी क्लब गरीब लोगों के भले के लिए इतना काम कर रहा था। एम.एल.ए. भी खुश होता है, वो सुखजीत को देख-देखकर इनाम बच्चों को दे रहा होता है। सुखजीत भी एम.एल.ए. को देख-देखकर बार-बार स्माइल पास कर रही होती है।

प्रोग्राम बहुत ही अच्छी तरह से खतम हो जाता है। सुखजीत और क्लब को काफी सारी डोनेशन भी इकट्ठी हो जाती है। जिससे वो बैंक का लोन काफी आसानी से चुका सकती थे। एम.एल.ए. को भी सुखजीत काफी पसंद आ जाती है, और वो जाते-जाते एक बार फिर से अच्छे से सुखजीत की जवानी को अपनी आँखों से स्कैन कर लेता

सुखजीत ने भी काफी बार रंधावा को पकड़ा था, जब वो अपनी नजरों से उसके जिश्म को देख रहा था। फिर रंधावा सुखजीत के पास आता है और अपनी हवस से भरी आँखों से सुखजीत के जिश्म को देखते हुए अपनी मूछों को ताव देते हुए वो सुखजीत को अपना नंबर देता है।

रंधावा- “बहनजी कभी हमारे लिए कोई सेवा हो तो इस नंबर पर फोन कर लेना कभी भी.."

सुखजीत ने कई लण्ड का पानी पिया हआ था, वो रंधावा की बात का मतलब एक सेकेंड में समझ जाती है। की वो कौन सी सेवा की बात कर रहा है। फिर सुखजीत उसके हाथ से नंबर लेकर स्माइल करते हुए बोली- “हाँ जी भाईजी जरूर, आपकी सेवा तो चाहिए ही है बस हमें..."

फिर रंधावा वहां से चला जाता है, और प्रोग्राम पूरा खतम करने के बाद सब अपने-अपने घर चले जाते हैं।
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कड़ी_61

रीत और रिंकू के साथ हुए उस हादसे के बाद रिंकू आज रीत को मेसेज करता है, और उस दिन के लिए माफी माँगता है। रीत भी अब उसे अपना दोस्त मानने लगती है, इसलिए वो उसे माफ कर देती है। दूसरी तरफ रीत की अब मलिक के साथ बात भी काफी कम होती है। रीत मलिक को मेसेज करती है, पर मलिक उसे रिप्लाइ भी नहीं करता।

शाम का टाइम होता है, रीत का मन आज माल में शापिंग करने का हो रहा था। वो ज्योति को फोन करती है पर उसका नंबर बिजी आ रहा होता है। पर एक दो बार फिर से फोन करने पर ज्योति उसका फोन उठा लेती है।

ज्योति- हाँ डारलिंग बोल कैसे याद किया?

रीत- हर टाइम चस्का ही पड़ा रहता है तुझे।

ज्योति- हेहेहेहे... अच्छा बता कैसे याद किया?

रीत- यार माल में सेल लगी हुई है, चल चलते हैं कुछ लेने के लिए।

ज्योति- अच्छा सच में सेल लगी हुई है। रुक फिर मैं तैयार होती हूँ, तू भी आ जा।

रीत- "ठीक है मैं आती हूँ बस 5 मिनट में..” कहकर रीत फोन रखती है और शीशे के आगे खड़ी होकर अपनी कमीज उतार देती है। फिर अपनी चूचियों को देखकर अपने आपसे बातें करती है- “हाए रीत, देख तूने अपनी चूचियां इतने बड़ी-बड़ी कर लिए हैं..."

रीत शर्मा जाती है, और फिर वो अलमारी में से काला सूट निकलकर डाल लेती है। रीत अपने बालों की पोनी बना लेती है, और फिर सलवार डालकर रीत अपनी बाहर निकली गाण्ड को और बाहर निकाल लेती है। फिर वो अपनी चूचियां थोड़ी ऊपर करके उठाकर खड़ी कर लेती है और चुन्नी लेकर नीचे जाती है।

सुखजीत- बेटी कहां की तैयारी है?

रीत- ओहह... मम्मी मैं माल में जा रही हूँ, ज्योति के साथ।

सुखजीत- ठीक है ध्यान से जाना, और टाइम से घर वापिस आ जइओ बेटा।

रीत- ठीक है मम्मी।

रीत अपनी अक्टिवा निकालकर घर से सीधी ज्योति के घर चली जाती है, और उसके घर के बाहर आकर वो हार्न बजाती है। अंदर से ज्योति एकदम टाइट जीन्स और टाप डालकर बाहर आती है। जिसमें उसकी चूचियां और बड़ी-बड़ी गाण्ड एकदम मस्त लग रही होती है।

ज्योति लात उठाकर अपनी मोटी गाण्ड अक्टिवा की सीट पर रखा लेती है, और फिर वो दोनों माल की तरफ चल पड़ते हैं। रीत थोड़ी देर चुप चुप सी होती है। उसे देखकर ज्योति उससे पूछती हुई बोलती है।

ज्योति- “क्या हुआ, आज मेडम को? क्या बात आज साइलेंट मोड पर लगी हुई है क्या?"

रीत- कुछ नहीं यार मैं कुछ सोच रही हूँ।

ज्योति- क्या सोच रही है?

रीत- यार मलिक के बारे में सोच रही हूँ। काफी दिनों से उससे मेरी कोई बात नहीं हो रही है। अगर मैं मेसेज भी करूँ तो वो मुझे कहता है की मैं बिजी हूँ।

ज्योति- कोई बात नहीं, क्या पता वो कहां बिजी होगा। अच्छा तू ये बता की तूने माल में से क्या लेना है?

रीत- यार मैंने एक जीन्स लेनी है।

ज्योति- ओहह... अब मेडम ने लोगों को अपनी गाण्ड दिखानी है?

रीत- शटप यार, तू जीन्स डालती ही सिर्फ इसलिए है ना?

ज्योति- हाँ मैं तो डालती ही हूँ, सिर्फ अपनी गाण्ड लोगों को दिखाने के लिए।

रीत- तू एक नंबर की बेशर्म है।
 
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