Desi Sex Kahani निदा के कारनामे - Page 5 - SexBaba
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Desi Sex Kahani निदा के कारनामे

ये वो कैफियत थी जिसके लिए मैं अपना सब कुछ कुरबान करने के लिए तैयार थी। दर्द और मजे की ये केफियत आज मुझे पहली बार महसूस हुई थी इसलिए मैं अपने आपके सातवें आसमान पर महसूस कर रही थी। मैं बाबाजी की पूरी गुलाम बन चुकी थी और अब अगर ये मुझे खुदकुशी करने को भी बोलते तो मैं खुदकुशी करने के लिए भी तैयार हो जाती। फिर बाबाजी ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड से निकाला और उठकर खड़े हो गये। मैंने शिकायती नजरों से पलटकर बाबाजी को देखा।

तो वो मेरा मतलब समझकर मुश्कुराये और बोले- “तू फिकर ना कर मेरी रानी, अभी मैंने तुझे चोदना बंद नहीं किया है, मेरा अमल अभी खतम नहीं हुवा है। अभी तो मैंने तुझे खूब मजा देना है...”

बाबाजी की बात से मेरे होंठों पर मुश्कुराहट आ गई, फिर बाबाजी ने मुझे भी उठाया और फिर उन्होंने मुझे। अपनी गोद में उठाकर अपने सीने से लगा लिया। मैंने अपनी बाहें बाबाजी के गले में डाल दी। बाबाजी ने एक हाथ से अपना लण्ड मेरी चूत में फिट किया और मुझे कमर से पकड़कर अपने लण्ड पर ऊपर नीचे करने लगे। इस तरह बाबाजी का लण्ड मेरी चूत को अंदर से चारों तरफ से रगड़ता हुवा अंदर बाहर होने लगा। बाबाजी काफी तेजी में मुझे अपने लण्ड पर इस तरह से ऊपर नीचे कर रहे थे जैसे मेरा कोई वजन ही ना हो। बाबाजी का लण्ड बहुत बुरी तरह से मेरी चूत को छील रहा था और रगड़ रहा था जिससे मैं लज़्ज़त के मारे पागल हुई जा रही थी और मैं अपनी चुदाई का पूरा पूरा मजा ले रही थी। थोड़ी देर बाद बाबाजी ने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर मेरी गाण्ड में डाला।

तो मैं मुश्कुराकर अपनी फूली हुई सांसो के बीच बोली- “बाबाजी बड़ी ताकत है आप में, इतनी देर से आप झड़ ही नहीं रहे हैं.”

मेरी बात पर बाबाजी मुश्कुराकर बोले- “अभी मेरे झड़ने में काफी वक़्त है...”

बाबाजी की बात पर मैंने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था की बाबाजी ने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में पूरा का पूरा घुसा दिया। लण्ड गाण्ड में एकदम से घुसा तो मेरे मुँह से अल्फ़ाज के बजाय तेज सिसकारी निकली और । फिर सिसकारियां निकलती ही रही क्योंकी बाबाजी खूब तेजी के साथ मुझे अपने लण्ड पर ऊपर नीचे कर रहे थे। 15 मिनट तक और बाबाजी ने मुझे इस पोजिशन में चोदा। फिर उन्होंने मुझे अपनी गोद से उतारा और मुझे वो दीवार के पास ले आये। फिर उन्होंने मुझे पूरा सटाकर दीवार से लगा करके खड़ा कर दिया। बाबाजी ने मुझे इस तरह से दीवार से लगाया था की मेरे चूचियां दीवार से लग कर पूरी तरह से दब गई थीं।
 
फिर उन्होंने पीछे से अपना लण्ड मेरी चूत में डाला और मुझे कमर से पकड़कर जमीन से उठा दिया। अब मैं दीवार से बुरी तरह से लगी हुई हवा में थी। फिर बाबाजी ने नीचे से ऊपर झटके मारने शुरू कर दिए। मैं पहले ही हवा में थी उनके झटकों से थोड़ा और ऊपर उठ जाती और फिर जब वो अपना लण्ड मेरी चूत से वापिस खींचते तो मैं थोड़ा नीचे आ जाती। मैं दीवार से पूरी की पूरी मिली हुई थी इसलिए इस तरह ऊपर नीचे होने पर मेरी चूचियां दीवार के साथ खूब रगड़ खा रही थीं जिससे मुझे और मजा आ रहा था। एक तरफ बाबाजी का । लण्ड मुझे लज़्ज़त की दुनियां में लेकर आया हुवा था दूसरी तरफ दीवार के साथ चूचियों का रगड़ना मुझे डबल मजा दे रहा था।

बाबाजी ने 15 मिनट तक इसी तरह मेरी चूत को चोदा फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर मेरी गाण्ड में घुसाया और झटकों पर झटके मारने शुरू कर दिए। बाबाजी को चोदते हुये घंटे से ऊपर हो गया था पर वो अभी तक उसी जोश के साथ मेरी चुदाई कर रहे थे। ये मेरी जिंदगी की सबसे लंबी चुदाई थी।
पता नहीं बाबाजी क्या थे... ये असल में आमिल थे या कोई ढोंगी थे... खैर जो कोई भी थे मैं तो इनकी मुरीद बन चुकी थी और पता नहीं ये बाबाजी क्या खाते थे जो इनकी टाइमिंग इतनी लंबी थी की फारिग होने को ही नहीं आ रहे थे। 15 मिनट मेरी गाण्ड मारने के बाद बाबाजी ने मुझे छोड़ दिया और मुझे डाग्गी स्टाइल में खड़ा होने को बोला। मैं फटाफट डाग्गी स्टाइल में खड़ी हो गई क्योंकी मैं अपनी चुदाई को एक सेकेंड के लिए भी रुकने नहीं देना चाहती थी।

मेरी तेजी को देखकर बाबाजी मुश्कुराकर बोले- “तुझे बहुत मजा आ रहा है जब ही तू और चुदवाने के लिए इतनी बेताबी दिखा रही है."

बाबाजी की बात पर मैं मुश्कुरा दी और बोली- “हाँ बाबाजी आप जैसा मर्द मुझे पहली बार नहीं मिला है इसलिए मैं अपनी चुदाई को एक लम्हे के लिए भी रुकने नहीं देना चाहती हूँ...”

मेरी बात पर बाबाजी मुश्कुराकर मेरे पीछे घुटनों के बल आकर बैठ गये फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में फिट किया और मेरी कमर को पकड़कर एक जोरदार झटका लगा दिया। इस पोजीशन में मेरी टाइट चूत और। ज्यादा टाइट हो चुकी थी। इसलिए बाबा जी का लण्ड बहुत ही ज्यादा फँसकर मेरी चूत में गया और मेरे मुँह से तेज लज़्ज़तभरी चीख निकल गई। अब बाबाजी तेजी के साथ मुझे कुतिया बनाकर चोद रहे थे और उनके तेज झटकों की वजह से मेरे चूचियां जो की लटकी हुयी थी बुरी तरह से हिलने लगीं। बाबाजी झटके मारते हुये मेरे ऊपर चढ़ आये और उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे चूचियां को पकड़ लिया और फिर जितनी तेज झटके मार रहे थे इतनी ही तेज उन्होंने मेरी चूचियां को दबाना शुरू कर दिया।

अब मुझे दो तरफ से मजा मिल रहा था और मैं अपनी चुदाई का बहुत ही ज्यादा मज़ा ले रही थी। 15 मिनट बाद उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत से निकालकर मेरी गाण्ड में घुसा दिया और मेरी गाण्ड मारनी शुरू कर दी। और मेरे मुँह से निकलने वाली सिसकारियां और तेज हो गई। इस पोजिशन में मुझे भी बहुत मजा आ रहा था और बाबाजी को भी, इसलिए अब बाबाजी मुझे इसी पोजीशन में चोदते रहे। फिर बारी-बारी मेरी चूत और गाण्ड की बाबाजी ने 40 मिनट और चुदाई करी।

और फिर वो बोले- “कंवल अब मैं झड़ने लगा हूँ तुम मेरी मनी को पी लो...”
 
मैं अब तक की चुदाई से बुरी तरह से हाँफ गई थी और पशीने-पशीने हो गई थी। फिर जब बाबाजी ने अपना लण्ड मेरी चूत से निकाला तो एक लम्हे के लिए मैं थक कर गिर पड़ी। पर दूसरे ही लम्हे मैं उठी और मैंने। पलटकर बाबाजी का लण्ड अपने मुँह में लेना चाहा, पर देर हो गई थी और बाबाजी के लण्ड से मनी की तेज और मोटी धार निकलकर मेरे मुँह पर पड़ी और मेरा पूरा मुँह उनके लण्ड से निकालने वाली मनी से खराब हो गया।

बाबाजी ने अपना मनी उगलता हुवा लण्ड जल्दी से मेरे मुँह में घुसा दिया और बाकी की सारी मनी मेरे मुँह में छोड़ दी। जितना बड़ा बाबाजी का लण्ड था उतनी ही ज्यादा मनी उनके लण्ड से निकली। मैंने बाबाजी की सारी मनी को पी लेने के बाद उनका लण्ड चाट-चाटकर साफ कर दिया। मेरा पूरा मुँह उनकी मनी से खराब था और अब मैंने अपने मुँह को साफ करना था। बाबाजी मेरा मतलब समझ गये और उन्होंने एक तरफ पड़ा हुवा एक कपड़ा मुझे पकड़ा दिया। मैंने कपड़े को देखा तो वो मर्दाना अंडरवेर था। यकीनन ये अंडरवेर बाबाजी का था। मैंने वो अंडरवेर पकड़कर बाबाजी को देखा।

बाबाजी मुश्कुराये और बोले- “ये मेरा है तू इससे अपना मुँह पोंछ लें, इससे मेरा अमल मुकम्मल हो जायेगा...”

बाबाजी की बात सुनकर मैं मुश्कुराई और फिर मैंने उनका अंडरवेर अपने मुँह की तरफ किया तो उससे तेज बदबू आ रही थी और ये बदबू पेशाब की थी। मैंने कुछ सोचे बगैर उस बदबूदार अंडरवेर से अपना मुँह पोंछना शुरू कर दिया, जब मैंने अच्छी तरह से बाबाजी के अंडरवेर से अपना मुँह साफ कर लिया तो बाबाजी बोले
कंवल अब मेरे इस अंडरवेर को चाटो...”

आज इतनी जबरदस्त तरीके से मुझे चोदकर बाबाजी ने मुझे खरीद लिया था, इसलिए मैं उनका हर हुकुम मान रही थी। फिर मैंने उनके कहने के मुताबिक उनका पेशाब और मनी से सना हुवा अंडरवेर चाटना शुरू कर दिया। पहले मैंने उनके अंडरवेर पर लगी हुई सारी मनी को चाटा, फिर मैंने उनके अंडरवेर को जगह-जगह से मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। उनके गंदे अंडरवेर की सारी बदबू अब मुझे अपने मुँह में महसूस हो रही थी। बाबाजी मुश्कुराते हुये ये सब देख रहे थे। फिर वो वैसे ही नंगे अपनी जगह पर वापिस जाकर बैठ गये और । उन्होंने करीब लगे हुई घिटी के बटन को दबाया तो थोड़ी देर बाद बाबाजी के कमरे का दरवाजा बाहर से खुला और उनका एक खिदमतगार अंदर आ गया। अंदर का मंजर देखकर वो मुश्कुराने लगा।

बाबाजी ने उसको देखा और मुश्कुराकर बोले- “जाओ रशीद को भी बुला लाओ और इस लड़की के साथ तुम दोनों भी मजे कर लो..."

बाबाजी की बात सुनकर वो खिदमतगार वापिस बाहर निकल गया। इतनी देर में मैंने बाबाजी का पूरा अंडरवेर चूस लिया था। बाबाजी मुझसे बोले- “अब तू मेरा ये अंडरवेर अपने साथ ले जाना। ये अंडरवेर मेरी तरफ से तेरे लिए तोहफा है."

इससे पहले मैं जवाब में कुछ बोलती बाबाजी के दोनों खिदमतगार अंदर आ गये। मैं बोलते बोलते चुप हो गई।

और बाबाजी मुझसे बोले- “तू ने अभी जिस तरह मुझे खुश किया है उसी तरह मेरे इन दोनों खिदमतगारों को भी खुश कर तब कहीं जाकर ये अमल पूरा होगा..."

मुझे इन दोनों से चुदवाने में कोई ऐतराज नहीं था फिर बाबाजी ने भी हुकुम दे दिया था इसलिए मेरी तरफ से इनकार का सवाल ही पैदा नहीं होना था। और इसीलिए मैं भी मैदान में आ गई। फिर उन दोनों खिदमतगारों ने मुझे लिटा दिया और मेरे पूरे जिश्म को चूमने और चाटने लगे। बाबाजी ने मेरी पूरी तरह से तासकीन कर दी। थी। पर उनके दोनों खिदमतगारों ने कुछ इस तरह से मेरी चूचियां और चूत को चाटा की मेरी चुदाई की भूख फिर से चमक उठी और मेरे मुँह से सिसकारियां निकलने लगीं।

बाबाजी अपने खिदमतगारों से कहने लगे- “वक़्त थोड़ा है इसलिए तुम दोनों एक साथ ही इसे चोदो...”
 
बाबाजी का हुकुम सुनकर एक खिदमतगार नीचे लेट गया और फिर उसने मुझे अपने ऊपर लिटाया और अपना लण्ड मेरी गाण्ड में घुसा दिया फिर दूसरा खिदमतगार मेरे ऊपर लेट गया और उसने अपना लण्ड मेरी चूत में घुसाकर मेरी दोनों चूचियां को भी पकड़ लिया। बाबाजी के इन दोनों खिदमतगारों के लण्ड भी कम नहीं थे, फिर दोनों ने एक साथ झटके मारने शुरू कर दिए।

अब दोनों के लण्ड तेजी के साथ मेरे दोनों सुराखों में अंदर बाहर हो रहे थे। एक साथ दो मर्दो से चुदवाने का ये मेरा पहला मोका नहीं था, इसलिए मुझे एक साथ दो मर्दो से चुदवाने में बहुत मजा आ रहा था और मैं खूब सिसकारियां ले रही थी और मजे में पूरी तरह से डूबी हुई थी। पहले उन दोनों ने थोड़ी देर तक मुझे इसी तरह चोदा फिर वो दोनों मुझे लेकर खड़े हो गये और फिर एक ने मुझे अपनी गोद में उठाकर अपना लण्ड मेरी चूत में डाला और दूसरे ने पीछे से आकर अपना लण्ड मेरी गाण्ड में घुसा दिया और फिर दोनों मुझे तेजी के साथ चोदने लगे।

मैं उन दोनों की गोद में थी और अपनी चुदाई का मजा ले रही थी। इतनी देर में बाबाजी का लण्ड भी पहले की तरह खड़ा हो चुका था और किसी गुस्सैले नाग की तरह फनकारियां मार रहा था। दोनों खिदमतगारों ने जो अपने उस्ताद का लण्ड खड़ा देखा तो उन्होंने मेरी चुदाई रोक दी और फिर उन्होंने मुझे नीचे उतार दिया। अब बाबाजी भी हमारे करीब आ गये, फिर बाबाजी नीचे लेट गये जबकी एक खिदमतगार ने मुझे बाबाजी के ऊपर लिटाया और बाबाजी ने अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दिया। फिर एक खिदमतगार मेरे पीछे आया और अपना
लण्ड मेरी गाण्ड में घुसाकर मुझपर सवार हो गया, दूसरा खिदमतगार मेरे और बाबाजी के चेहरे की तरह आकर खड़ा हो गया।

मैंने अपने दोनों हाथ जमीन पर टिकाये और थोड़ा ऊपर उठ गई, फिर दूसरे खिदमतगार ने अपना लण्ड मेरे मुँह में घुसा दिया। अब मेरी चूत, मेरी गाण्ड और मेरे मुँह में तीनों के लण्ड थे। फिर उन तीनों ने एक साथ झटके मारने शुरू कर दिए और मैं चुदाई के एक और नये मजे से आशना हो गई। अब एक साथ तीन मर्द मुझे चोद रहे थे और मेरी लज़्ज़त भरी गग्ग्घूऊऊ गग्ग्घूऊऊऊ पूरे स्थान में गूंज रही थी।

वो स्थान जो लोगों की नजरों में निहायत ही काबिल-ए-एहतेराम था, मेरे लिए रंडी खाना बन चुका था और उस स्थान में स्थान का पीर अपने दोनों खिदमतगारों के साथ मिलकर मुझे रंडी बनाकर कुत्तों की तरह चोद रहा था।

बाबाजी ने अम्मी को अपने अमल के लिए 4 घंटे का वक्त दिया था और अब 4 घंटे गुजरने वाले थे इसलिए वो तीनों तेजी के साथ मुझे चोद रहे थे और फिर एक के बाद एक वो तीनों झड़ गये। बाबाजी ने मुझे अपना हुलिया ठीक करने को बोला। क्योंकी अब अम्मी के आने का वक़्त हो चुका था। बाबाजी के दोनों खिदमतगार जल्दी से अपने-अपने कपड़े पहनकर बाबाजी के हुजरे से निकल गये। बाबाजी ने मेरी ब्रा और पैंटी अपने पास रख ली थी और अपनी अंडरवेर मुझे दे दी थी। मैंने अपनी पैंटी की जगह बाबाजी की अंडरवेर पहन ली और बिना ब्रा के ही कमीज पहन ली।

मेरा दुपट्टा काफी बड़ा नहीं था फिर भी मैंने अपने दुपट्टे से अपना सीना चुपा लिया वरना मेरी टाइट कमीज से मेरे चूचियां और उनके निपल्स साफ नजर आ रहे थे। फिर जब दिए गये वक़्त पर अम्मी बाबाजी के कमरे में बड़ी अकीदत से दाखिल हुईं, तो मैं दुपट्टे को अच्छी तरह से लपेटे हुये बड़े एहतेराम में बाबाजी के सामने डोजानों होकर बैठी हुई थी। और बाबाजी आँखें बंद किए पता नहीं क्या पढ़ने लगे थे। वहां अगरबत्तियां भी जला दी गई थी, जिसकी वजह से कोई देखकर ये नहीं कह सकता था की अभी कुछ देर पहले ये जाली पीर मेरे साथ अपने दोनों खिदमतगारों के साथ मिलकर किस तरह का अमल कर रहा था। अम्मी बड़े अकीदत और एहतेराम के साथ एक तरफ बैठ गई।

थोड़ी देर बाद बाबाजी ने अपनी पढ़ाई बंद कर दी और आँखें खोलकर अम्मी की तरफ देखा तो अम्मी ने एहतेरामन अपनी नजरें झुका ली। ये देखकर मेरे होंठों पर मुश्कुराहट आ गई।
 
थोड़ी देर बाद बाबाजी अम्मी से बोले- “तेरे बेटी पर किसी ने बहुत जबरदस्त काला जादू करवाया हुवा है."

अम्मी बाबाजी की बात सुनकर परेशान हो गई और बाबाजी की मिन्नतें करने लगी की वो कुछ करें।

बाबाजी ने हाथ उठाकर अम्मी को रोका और बोले- “तू फिकर ना कर... ये तो अच्छा हुवा जो तू इसे यहां ले आई वरना तेरी बेटी के बचने की कोई उमीद नहीं थी। ये तो मैंने इसका तोड़ ढूंढ़ लिया है...” बाबाजी ने फिर हाथ । उठाकर अम्मी को रोका और बोले- “हमने कह दिया ना की तू फिकर ना कर अब तेरी बेटी हमारी पनाह में है। और अब इसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता...”

बाबाजी की बात पर मैं फिर से मुश्कुराई की मेरा जो कुछ भी बिगाड़ना था वो तो यही बिगाड़ गया है और अब मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा?

फिर बाबाजी ने अम्मी से कहा- “अब तू अपनी बेटी को ले जा...”

अम्मी बाबाजी की बात सुनकर खुश हुई और बाबाजी का बहुत बहुत शुक्रिया अदा करने लगी।

मैं और अम्मी उठने लगे तो बाबाजी ने कहा- “जाते हुये बाहर मेरे खिदमतगार को कोई नजराना दे जाना, अपनी हेसियत के हिसाब से। हमने कुछ नजर-ओ-नियाज भी करना होता है वरना हमें रूपये पैसे की कोई जरूरत नहीं है...”

बाबाजी की बात पर अम्मी ने जी अच्छा कहा और वो जाने के लिए पलट गई। मैं भी उठी और बाबाजी को फ्लाइंग किस देती हुई पलट गई। मेरी हरकत पर बाबाजी मुश्कुरा दिए। बाहर आकर अम्मी ने बाबाजी के एक खिदमतगार के हाथ पर 3000 रूपये रखे तो मैं ये सोचकर मुश्कुरा दी की ये पैसे तो मुझे मिलने चाहिए थे।

यहां तो इन लोगों ने कुत्तों की तरह मुझे चोदा था और बाद में इन लोगों को चुदाई करने के पैसे भी अलग से मिल गये थे।

अम्मी ने पैसे उनको दिए और उनको सलाम करती हुई स्थान से बाहर आ गई। मैं थोड़ा पीछे थी और जब अम्मी स्थान से बाहर निकल गई तो एक खिदमतगार ने जल्दी से उठकर मुझे लिपटाया और किस कर लिया। मैं हँस दी, और फिर जब उसने मुझे छोड़ा तो मैं दूसरे के पास खुद पहुँच गई।

और बोली- “तुम भी जल्दी से किस कर लो वरना ये ना-इंसाफी होगी..."

मेरी बात पर वो मुश्कुराकर मुझसे लिपट गया और मुझे किस करने लगा।

अब एक तरफ अम्मी खुश थी की मैंने उनकी बात मानी और अब मेरा जादू उतार जायेगा। दूसरी तरफ मैं खुश थी की मेरी आज काफी दिनों बाद अच्छा खासी चुदाई हो गई है।

मैं जहाँ भी जाती हूँ वहीं पर छा जाती हूँ।
आपकी चुदक्कड़ सोहनी

******* समाप्त *****
 
07 पहलवान था वो

मेरी साथ ये खुशगवार इत्तेफाक़ एक हादसे के तौर पर हो गया था। मेरी एक सहेली की छोटी बहन की मंगनी की रश्म थी, जिसमें शरीक होने के लिए मैं अपने आप को बना संवार रही थी। मेरा 15 साल का एक छोटा भाई था। मैं अपने छोटे भाई के लिए किचन में जाकर कुछ बनाने लगी थी की ऊपरी शेल्फ पर रखा हवा बेलन लुढ़कता हुवा नीचे की तरफ आया और सीधा मेरी दायें घुटने पर इतनी जोर से लगा की मेरी तो चीखें निकल गईं।

मेरी इतनी बुलंद चीखें सुनकर मेरा भाई और मेरी साथ वाली हुंसाई दौड़ती हुई मेरी पास आईं। मुझे रोते हुये । देखकर मुझसे रोने की वजह पूछी, तो मैंने बतला दिया की बेलन मेरे घुटने पर लगा है, लगता है मेरी घुटने की हड्डी टूट गई है।

फंक्सन में जाने की तैयारी तो धरी की धरी रह गई। मेरी हँसाई ने मेरे घर को संभाला और मैं छोटे भाई के । साथ बाजार में बैठे हुये एक पहलवान के पास आ गए जो टूटी हड्डियों को ठीक करता है। ये भी अच्छा ही हुवा की हम समय से वहाँ पहुँच गए थे, वर्ना उनकी दुकान के वकफी का समय शुरू होनी वाला था। पहलवान की। दुकान पर उस समय सिर्फ एक बूढ़ी औरत अपने हाथ की पट्टी करवाने आई हुई थी। उसने मुझे रोते हुये देखा तो वजह पूछी। मैंने वजह बटलाई।

तो वो मेरे कपड़ों को देखकर कहने लगी- “बेटी, तुम्हारे घुटने पर चोट आई है, तो लाजमी बात है की घुटने की मालिश भी होगी, यहाँ पट्टी भी बाँधी जाएगी। मगर तुम्हारी शलवार का पायंचा इतना छोटा सा है की ये तो तुम्हारी पिंडलियों के ऊपर भी नहीं जाएगा, घुटना क्रॉस करना तो दूर की बात। बेहतर होगा की तुम पहलवान के कमरे में जाने से पहले अपनी शलवार का पायंचा उधेड़ लो, ताकी ये आसानी से ऊपर हो सके...”

मैंने अभी हाँ या ना कुछ भी नहीं कहा था।की वो खुद ही बोली- “बेटी, लेकिन अगर तुमने अपना पायंचा फाड़ लिया, तो तुम्हें बाजार से गुजरकर वापिस जाने में काफी शर्मिंदगी सी उठानी पड़ेगी। दुकान के बाहर तो रिक्सा आने की जगह भी नहीं है। रिक्सा लेने के लिए भी तुम्हें कम से कम आधा बाजार पैदल गुजरकर जाना होगा..."

उस बूढ़ी औरत ने मुझे एक नई उलझन में डाल दिया था। मैं अभी किसी नतीजे पर भी नहीं पहुँची थी की जिस केबिन पर ड्रेसिंग रूम लिखा हुवा था, पहले एक जवान लड़की बाहर निकली, उसकी हथेली पर पट्टी बँधी हुई थी। वो लड़की उस बूढ़ी औरत के साथ दुकान से चली गई। तो कुछ देर बाद उसी ड्रेसिंग रूम से एक 30-31 साल का काफी सेहतमंद जवान निकला। मेरा पहले कभी किसी पहलवान से वास्ता नहीं पड़ा था, ना मैं उसे जानती थी।
 
वो मेरी तरफ देखकर बोला- “हाँ बीबी जी, तुम्हारा क्या मसला है...”
मैंने अपनी चोट का बतलाया।

फिर वो मेरे छोटे भाई से पूछने लगा तो मैंने कहा की- “ये तो मेरे साथ है.”

उसने कहा- “अच्छा...” और फिर दुकान के ग्लास दरवाजे पर वकफी का बोर्ड लगाकर, दरवाजे को चिटखनी लगा दी। वापिस हमारी तरफ आते हुये बोला- “तुम पट्टी करवाकर उस छोटे दरवाजे से निकल जाना...” उसने एक दरवाजे की तरफ इशारा करते हुये कहा। मुझे उसने ड्रेसिंग रूम में आने को कहा। मेरे छोटी भाई ने मुझे सहारा देकर ड्रेसिंग रूम में लाकर ड्रेसिंग बेड पर बिठा दिया तो पहलवान ने मेरे भाई को बाहर जाकर बैठने को कहा। वो तो बच्चा था, वो फौरन उस कमरे से निकलकर बाहर चला गया।

तब पहलवान मेरे करीब आया और कहने लगा- “बीबी तुम्हारे घुटने पर चोट आई है। इसकी मालिश करनी होगी, फिर पट्टी भी करने होगी। अपने घुटने को कैसे नंगा करना चाहोगी। मैं तुम्हारी शलवार का पायंचा फाड़ हूँ...”

मुझे उस बूढ़ी औरत की बात याद आ गई और झट से बोली- “नहीं नहीं, फिर मैं बाजार से गुजरकर कैसे जाऊँगी। मैं तो तमाशा बन जाऊँगी...”

हन ये बात तो है, चलो फिर अपनी शलवार को नीचे की तरफ करो...”

एक गैर आदमी के सामने, मैंने अपनी चूतड़ थोड़ी सी ऊपर उठाकर अपनी शलवार का इलास्टिक नीचे की तरफ कर दिया। तब पहलवान ने मेरी शलवार को पकड़कर मेरे घुटने से भी काफी नीचे कर दिया, और हल्का हल्का हाथ फेरते हुये, मेरे घुटने की हड्डी को चेक करने लगा।

कुछ देर बाद बोला- “बीबी शुकर करो तुम्हारे घुटने की हड्डी तो महफूज है। मगर इसपर दबाव काफी पड़ा था, इसलिये मालिश करते हुये तुम्हें दर्द तो काफी होगा, मगर ये सिर्फ 1-2 मिनट के लिए होगा। अगर मैंने हड्डी को इसकी सही जगह पर अड्जस्ट ना किया, और वैसे ही पट्टी बाँध दी, तो दर्द तो तुम्हारा 1-2 दिन बाद । खतम हो जाएगा, मगर तुम सारी जिंदगी लंगड़ा कर ही चला करोगी। इसलिये तुम्हें पहले से कह रहा हूँ, की दर्द को बर्दाश्त कर लेना, ज्यादा चीखने चिल्लानी की जरूरत नहीं है...”

उसकी बातें सुनकर तो मेरी और भी जान निकल गई थी। मैं सारी जिंदगी लंगड़ी बनकर नहीं रहना चाहती थी, इसलिए अपना दिल मजबूत करते कहा- “नहीं आप जैसा बेहतर समझते हों वो करें, मैं दर्द बर्दाश्त करने की पूरी
कोशिश करूँगी।
 
फिर उसने एक तेल की शीशी से मेरी घुटने पर थोड़ा सा तेल गिराया, मेरी टाँग को सीधा करते हुये जैसे ही उसने मेरे घुटने पर हाथ रखा, दर्द की वजह से बे-इख्तियारी तौर पर मैंने अपने दोनों हाथों से बेड या किसी और चीज को पकड़ने के बजाय, पहलवान की ही दोनों टांगों को मजबूती से पकड़ लिया। वो पहले धीरे-धीरे मेरे घुटने के इर्द गिर्द मालिश करता रहा, उसका हाथ मेरी रान पर काफी ऊपर तक जा रहा था, मगर उस समय मुझे। इतना होश कहाँ था।

कुछ ही देर में उसने मेरे घुटने को एक झटका दिया, तो दर्द से मैं बिलबला उठी। मेरा दायां हाथ अचानक ही उछला और जब वापिस किसी चीज को टकराया तो मैंने उसे बहुत जोर से भींच दिया। मुझे तो तब होश आई,

जब पहलवान की चीख मुझे सुनाई दी। मैंने आँखें खोलकर देखा की मेरा दायां हाथ उसके लण्ड को काफी । मजबूती से दबोचे हुये था। मैं शर्म से पानी पानी हो गई। अपना हाथ तो मैंने उसके लण्ड से हटा लिया था, मगर उसकी शलवार में एक तंबू सा खड़ा हुवा देख रही थी।

अब तो पहलवान ने मेरे घुटने के साथ साथ मेरी पिंडली और रान की भी अच्छी तरह मालिश शुरू कर दी थी और मुझे भी मजा आने लगा था पर दर्द की वजह से मैं कुछ कर नहीं पा रही थी। पहलवान मुझे लगातार । मालिश करता रहा कुछ ही देर बाद मेरा दर्द धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया और आखिर में बिलकुल खतम हो गया। पहलवान मुसलसल अपने खुरदरे हाथों से मेरी नाजुक और बालों से पाक टांग से भरपूर इंसाफ कर रहा था। तकलीफ का असर गायब होने के बाद मैं अपने हवास में लौटी लेकिन पहलवान के इस तरह मालिश करने से मेरे अंदर की छुपी हुई सेक्सी ओरत ने सर उठाना शुरू कर दिया था। पहलवान बहुत प्यार से मालिश कर रहा था।

वो मेरे पाँव से शुरू करता और फिर पिंडली और रान को इन्वॉल्व करता हुवा अपने हाथ 0 नुकीले से कुछ दूर तक ले आता। पहलवान का अकड़ा हुवा लण्ड ऐसे दिख रहा था जैसे अभी शलवार को फाड़ते हुये बाहर निकल आएगा। मेरी निगाहों ने फौरन भाँप लिया की पहलवान का लण्ड काफी तगड़ा है। पहलवान के चेहरे पा मुख़्तलिफ रंग आ जा रहे थे और खुद मेरी हालत भी नागुफ्ता (बेचैन, बीमार) थी।

लेकिन मैं इस समय मज़ा के मूड मैं कतई ना थी। हालांकी पहलवान ने मुझे काफी गरम कर दिया था और मेरी पैंटी भी भीग गई थी। लेकिन मुझे अपने छोटे भाई की भी फिकर थी जो अपनी बहन के इंतजार में घुल रहा था। तो मैंने जल्दी से कहा की पहलवानजी मेरा दर्द खतम हो गया है आपसे ईलतजा है की पट्टी कर दें अब। पहलवान के हाथ, मेरी गोरी रान पर चलते चलते रुक गये। उसने इस बात में सर हिलाया और पट्टी करने लगा। पहले उसने मेरे घुटने के नीचे एक तख़्ती नुमा लकड़ी की बनी हुई मुराबी शकल की स्लेट रखी। फिर पट्टी उठाई और बाँधने लगा। थोड़ी देर में पट्टी हो गई। फिर उसने मुझे शलवार पहनाई।
 
जब मैंने शलवार पहन ली और उठकर बैठ गई तो पहलवान मेरे राइट साइड में आया और एक बाजू मेरी कमर में डालके मुझे धीरे से ऊपर उठाया और मुझे सिंगल बेड से नीचे उतारा और मुझे तकरीबन अपने साथ चिपटा लिया। वो मेरी राइट साइड पर था और उसने अपनी बायीं बांह मेरी कमर के गिर्द लपेटा हुवा था और उसका हाथ मेरी बायीं चूची से थोड़ा नीचे था। उसने धीरे से अपना हाथ गैर महसूस अंदाज से मेरी चूची पर रख दिया

और धीरे से मुत्वटेर दबाने लगा और मुझे दरवाजे की तरफ लेकर चल पड़ा। उसके दबाव की शिद्दत धीरे-धीरे बढ़ रही थी।

ये वो लम्हा था जो औरत के लिये बहुत सब्र-आजमा होता है। मैंने लज़्ज़त की वजह से अपने मुँह से निकलने वाली सिसकारी को अपने होंठों में दबा लिया। फिर हम धीरे-धीरे चल के दरवाजे से बाहर निकल गये। बाहर निकलते ही पहलवान ने अपना हाथ मेरे मम्मों से हटा लिया और थोड़ा नीचे की तरफ कर दिया। फिर हम बाहर
काउंटर वाली साइड पर निकल आए।

मेरा छोटा भाई परेशानी क आलम में बाहर बैठा अपने होंठ काट रहा था। क्योंकी पहलवान के पास आते हुये मेरी हालत बहुत ख़राब थी, तो इसलिये और उसका परेशानन होना फितरती बात थी। जब मेरे चेहरे पर उसने सकून और ठहराव देखा तो वो कुछ पुरसकून हुवा और आगे बढ़कर मुझे सहारा दिया और पहलवान के चुंगल से निकालके मुझे बेंच पर बिठा दिया।
फिर पहलवान ने छोटे को चन्द गोलियां और मुख्तलिफ कलर के शरबत दिए, और बताने लगा की खूब इनको इश्तेमाल करना है और कैसे, और साथ में कहा की एक हफ्ते बाद पट्टी खुलवाने दोबारा आना है। ये सब बताते हुये पहलवान मेरी तरफ कुन्न आँखों से देख रहा था।

पहलवान की फितरत को मैं बखूबी समझ रही थी। मेरा पक्का यकीन था की पहलवान अपने लण्ड को कोई कई औरतों की चूत में ढकेल चुका है और उनकी मालिश कर चुका है। मेरे जिम में पहलवान ने जो आग लगाई थी वो बुझ चुकी थी लेकिन उसकी चिंगारी अभी भी बाकी थी और एक हल्का सा हवा का झोंका उसे फिर से जला सकता था लेकिन अब ऐसा मुमकिन न था।

खैर ये मामला जल्दी खतम हुवा और हम घर पहुँच गये। घर पहुँचकर भी मेरा सारा ध्यान पहलवान के लण्ड । और उसके हाथों की अपनी टांग में की गई मालिश पर था। मेरे जेहन में बार वो सीन चल रहा था की पहलवान कभी मेरी पिंडली पर तो कभी मेरी रान पर मालिश कर रहा है। और उसका मोटा सा लण्ड शलवार में अकड़के खड़ा है। ऐसा सोचते हुये मैं बहुत लज़्ज़त महसूस कर रही थी। मैं चूंकी बेड पर थी और सहारे के बगैर उठ भी ना सकती थी की वाशरूम जाकर फिंगरिंग ही करके अपनी प्यास बुझा लें।

फिर मैंने अपना हाथ अपनी शलवार में घुसेड़ दिया और अपनी फुद्दी पर रगड़ने लगी। मेरी आँखों में लज़्ज़त के वो मंजर चल रहे थे जो थोड़ी देर पहले मैंने पहलवान की दुकान में पिक्चराइज हुये थे। मैंने तेज-तेज अपनी । फुद्दी को रगड़ना शुरू कर दिया। मैं बहुत गरम हो गई थी और तेज-तेज अपनी फुद्दी में उंगलियां चलाने लगी। मेरी आँखें बंद थीं और मुझे न पता था की मैं कहाँ हूँ। मेरा मकसद तो बस अपने जिम में लगी उस अग को बुझाना था जो अंदर हीअंदर मुझे जला रही थी। मैंने अपनी रफ़्तार बहुत तेज कर दी। मेरा जिस्म अकड़ा और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। पानी जब निकल चुका तो मुझे सकून का अहसास हुवा। मैंने खुद को ढीला छोड़ दिया और लंबी-लंबी सांसें लेने लगी। थोड़ी देर के बाद मैं नार्मल हो गई।
 
मेरा हाथ अभी तक मेरी शलवार में था। अपनी चूत की लगी आग को बुझाने में मैं इतना मगन थी की मुझे पता न चला की दरवाजे पर खड़ा कोई मुझे देख रहा था। कदमों की चाप से मैंने आँखें खोली तो मेरी हंसाई रशीदा थी जिसके चेहरे का रंग लाल था मतलब वो भी मेरे इस खेल को देख कर गरम हो गई थी। उसकी आँखों में सवालात थे। मैंने उसे देखते हुये झट से अपना पानी से भीगा हुवा हाथ अपनी चूत से बाहर निकाला। वो खामोशी से मेरे पास आई और मेरे बेड के किनारे टांगों वाली साइड पर बैठ गई।

उसने मुझे बोला- “तू क्या कर रही थी?”

मैं बोली- “देख रशीदा इंसान अपने मुँह जोर जज़्बात का गुलाम होता है और इनके आगे टिक नहीं पाता। ये मेरी जरूरत थी और मुझे कोई रास्ता न मिला तो मैं ये सब करने पर मजबूर थी...”

बाजी जमाना अकेली औरत को मुफ़्त का माल समझता है। हवस के पुजारी सिर्फ औरत को अपने मकसद के लिये इश्तेमाल करते हैं...” फिर उसने मुझे बताया की- “उसने एक आदमी से जिश्मानी संबंध बनाए थे और उससे
शादी के लिये तैयार थी लेकिन वो उसे सिर्फ शादी का लालच देता रहा और उसे बहुत दफा चोदकर निकल जाता, फिर एक दफा उसने अपने दो दोस्तों को भी अपने साथ मिला लिया जो उससे सारी रात बेइंसानियत सा सलूक करते रहे...”

मैंने उसे खुद से अलग किया और कहा- “दरवाजा बंद कर आओ...”

वो थोड़ी हैरान हुई लेकिन दरवाजा बंद कर दिया। रशीदा वापिस दरवाजा बंद करके मेरे पास आ गई। और सवालिया नजरों से मेरी तरफ देखने लगी। उसकी चूची जब मेरी चूची से छूई थी तो वोही कैफियत दोबारा पैदा हो चुकी थी जो थोड़ी देर पहले हुई थी। अब मेरा काम था की मैं उसे अपनी धुन पर लाती। मैंने टेबल पर पड़े तेल की तरफ इशारा किया और कहा- “रशीदा मेरी मालिश कर दो...”

रशीदा ने इस बात में अपनी मुंडी हिलाई और तेल उठाकर मेरे पास ले आई। उसने धीरे से मेरी शलवार का पायंचा उठाया और ऊपर करने की कोशिश करने लगी। पायंचा तंग होने की वजह से ऊपर न हो रहा था। मैं बोली- “रशीदा मेरी शलवार उतार दो इससे आसानी होगी...”

रशीदा एक लम्हे को झिझकी फिर उसने सर को हिलाते हुये धीरे से मेरी शलवार उतार दी। अब वोही सूरते-एहाल पैदा हो गई थी जो पहलवान की दुकान में थी। मैं तसवार-ए-तसवार में खुद को पहलवान की दुकान में।
महसूस कर रही थी। रशीदा ने धीरे से एक तकिया उठाया और मेरे घुटने के नीचे रख दिया। फिर उसने अपने हाथों पर तेल मला और मेरी पिंडली पर मालिश शुरू कर दी। घुटने पर चूकी पट्टी बँधी हुई थी इसलिये इससे थोड़ा नीचे ही महडोद रही।

धीरे-धीरे मैं फिर जोश में आने लगी। मेरी चूत में फिर से खुजली होने लगी। रशीदा अब पिंडली से रान पर मुन्तकल हो गई थी। मेरा जोश आरोज पर था मेरे मुँह से लज़्ज़त भरी सिसकारियां निकल रही थीं, क्योंकी रशीदा के नाजुक हाथ पहलवान के खुरदारे हाथों जैसे न थे। लेकिन फिर भी मजा बहुत आ रहा था। मैंने अपना हाथ फिर से अपनी पैंटी में डाल दिया और अपनी फुद्दी को सहलाने लगी। सहलाते हुये मैं लज़्ज़त और नशे से भरपूर आवाजें आह्ह्ह... भी निकाल रही थी।
 
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