hotaks444
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बाली उमर की प्यास पार्ट--46
गतान्क से आगे..................
"दीदी प्लीज़....!" अंधेरा होते ही सीमा के साथ खेल के मैदान की और चल रही अंजलि के कदम रह रह कर ठिठक रहे थे...,"कम से कम मुझे वहाँ अकेला तो मत भेजो!"
"अकेली कहाँ है तू यार.. प्रेम तेरे साथ जा रहा है... डॉन'ट वरी; सुबह तक वो तेरे साथ ही रहेगा.... फिर मेरा नंबर. तो तेरे पास है ना..! कुच्छ दिक्कत हो तो प्रेम के फोन से मुझे फोन कर लेना... चल जल्दी.. 'वो' बाहर वेट कर रहा होगा..." सीमा ने कहकर उसका हाथ पकड़ा और अपने साथ लगभग खींच सा लिया....
"पर दीदी....!" अंजलि साथ साथ चलते हुए अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली..,"कल की तरह अगर वहाँ 3-4 लोग एक साथ मिले तो....?"
"क्यूँ मिलेंगे कयि लोग... एक ही मिलेगा तू चिंता मत कर....! बहुत मज़ा आएगा तुझे... आ.. चलती रह जल्दी जल्दी...!"
"आप भी साथ चलते तो.....!" अंजलि एक बार फिर कसमसाई.....
"मुझे मना ना किया होता तो मैं साथ ही चलती... और फिर मुझे रात को पिंकी को भी तो बाहर निकालना है ना...! उसका भी तो दिल है यार... उसको भी ऐश करने दे...!" सीमा ने चलते चलते तर्क दिया....
"इसके बाद तो आप कभी ज़बरदस्ती नही करोगी ना...? आज के बाद मुझे नही जाना कहीं भी ऐसे!" अंजलि और सीमा दोनो बातें करते करते गेट तक पहुँच चुके थे....
"काफ़ी देर से गाड़ी बाहर खड़ी है मेम'शाब..!" सीमा को गेट की तरफ आती देख गेट्कीपर लगभग भागा हुआ उनके पास आया था....
"चल चल.. जल्दी कर यार... मैं पहले ही बोल रही थी... लेट हो रहे हैं...!" दरवाजा खुलते ही सीमा अंजलि को बाहर गाड़ी के पास ले गयी... प्रेम पिच्छली सीट पर बैठा था...
"आ बैठ जल्दी...!" प्रेम ने तुरंत दरवाजा खोलते हुए अंजलि को इशारा किया.... अंजलि ने मुड़कर दयनीय आँखों से एक बार फिर सीमा की ओर देखा तो सीमा ने उसको अंदर धकेल सा दिया...,"बाइ... कल सुबह दिन निकलने से पहले छ्चोड़ जाना...!"
"चल...!" प्रेम ने इशारा किया और गाड़ी चल पड़ी....
"किधेर चलना है....!" डाराइविंग कर रही मनीषा कि आवाज़ सुनकर अंजलि उच्छल सी पड़ी... अंदर की लाइट बंद होने की वजह से 'वो' उसका चेहरा नही देख पा रही थी....,"दीदी..तुम?"
"सीधी चलती रह... मैं बता दूँगा...! थोड़ा धीरे चलना...." प्रेम ने कहा और अंजलि को अपनी गोद में खींच लिया..... अंजलि में हल्का सा विरोध करने की भी हिम्मत नही थी... उसको याद था कैसे प्रेम ने कल ज़रा सी बात पर रेवोल्वेर निकाल ली थी....
अंजलि के होंटो को चूस्ता हुआ प्रेम उसके उरोजो से खेलने लगा... अंजलि कसमसाई और वासना की एक तीव्र लहर उसके तन बदन में दौड़ गयी.....
"अब सारी उम्र मज़े लेना ऐसे ही....! बहुत मज़ा आ रहा होगा ना तुझे....!" मनीषा ने दाँत से पीसते हुए कहा तो प्रेम उसकी 'टोन' समझ गया...,"आए.. चुपचाप गाड़ी चलाती रह... मैं अकेला भी लेकर जा सकता हूँ इसको....! समझ गयी ना?"
इस बार मनीषा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही मिली... जी भर कर अपने हाथों से बोझिल सी अंजलि के शरीर से खेलने के बाद प्रेम ने अपनी चैन खोली और उसके हाथ में अपना 'लिंग' थमा दिया...," साली चूस्ति एक नंबर. का है तू.... कल रात से इसकी अकड़न कम नही हुई है....'मुरारी' ना भी कहे तो 'पकड़' के निचोड़ लेना 'उसका' ... पागल हो जाएगा स्साला ठरकी बुड्ढ़ा!"
प्रेम ने अंजलि की गर्दन पकड़ कर उसको अपनी गोद में झुकाया तो कसमसा कर अंजलि ने अपने होन्ट खोल दिए....
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"लौंडिया आ गयी साहब... क्या करूँ...?" रेस्ट हाउस से कुच्छ पहले गाड़ी रोक कर प्रेम ने मुरारी को फोन किया.....
"आ गयी तो अपनी गांद में घुसेड ले इसको... स्साले कब से इंतजार में बैठा हूँ... सीधा लेकर आ जा इसको 102 में.....!" मुरारी की बात सुनकर प्रेम सकपका उठा....
"ला रहा हूँ ना साहब... ववो.. गाड़ी पंक्चर हो गयी थी रास्ते में....!" अब प्रेम उसको 'ये' कैसे बताता कि 'वो' लाख कंट्रोल करने के बावजूद भी बेकाबू होकर रास्ते में अंजलि को ठोकने का लालच छ्चोड़ नही पाया था....
"यहीं लगा दे साइड में....!" प्रेम ने रेस्ट हाउस के सामने जाकर मनीषा को गाड़ी रोकने का इशारा किया और उसके बाद बाहर आकर मनीषा को भी अपने साथ आगे चलने के लिए बोला....
'मुरारी' के निर्देश गेट्कीपर्स को पहले ही मिले हुए थे... बिना कुच्छ पूच्छे ही उन्होने उन तीनो को 102 नंबर. के लिए उपर जाने वाली सीढ़ियाँ दिखा दी....,"उधर से!"
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"हां हां.... आ जाओ अंदर...!" दरवाजे पर नॉक होते ही उनको अंदर से मुरारी की आवाज़ आई और उन्होने दरवाजा अंदर की तरफ धकेल दिया.... पट्टे वाला कच्च्छा और आधी बाजू की बनियान पहने मुरारी दारू में धुत्त होकर सोफे पर पसरा हुआ था... छ्होटे से कद का मोटा सा, थुलथुला मुरारी; (याद होगा ना!)
एक बारगी तो दरवाजे पर खड़ी अंजलि के करारे और बेपनाह खूबसूरती से लबरेज मस्ताये हुए यौवन पर नज़रें डालते ही मुरारी अपनी सूदबुध खोकर उसको देखता ही रह गया... आँखें फ़ाडे घूरते हुए उसने पहले शायद ये तसल्ली की कि ये उसका सपना नही बुल्की हक़ीक़त है... फिर अचानक उसकी नज़र पिछे खड़े प्रेम और मनीषा पर पड़ी...,"चलो तुम अब... क्या काम रह गया यहाँ..?.. दरवाजा बाहर से लॉक करके चाबी गेट्कीपर को दे देना....!"
प्रेम बिना कुच्छ बोले पिछे हटा और मनीषा का हाथ पकड़ कर बाहर लाते हुए उसने दरवाजा लॉक कर दिया....,"हूमें यहीं रुकना है... साइड वाले कमरे में... आओ!"
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"क्या मस्त लौंडिया है यार!.... कहाँ से मिली तुमको...?" इन लफ़्ज़ों के ज़रिए मुरारी 'बॉस' को फोन करके उसका धन्यवाद करना ना भूला....,"एक दम रसीली है...! अनचुड़ी तो है ना?"
"हुज़ूर, चख के देखो और खुद ही जान लो.... अब तो आपके पहलू में ही है... हमसे क्या पूच्छ रहे हो...? हा हा हा!" उधर से मुरारी को बॉस का विनम्र स्वर सुनाई दिया..... मुरारी ने सड़ियल सी हँसी हंसते हुए फोन काटा और टेबल पर रख दिया....,"चल एक दम नंगी होज़ा... डॅन्स करना आता है ना?" मुरारी ने उठकर कमरे में चल रहे म्यूज़िक की धुन पर बेढंगे तरीके से मटकना शुरू कर दिया....
जिसके सामने और जिस कारण से अंजलि उस वक़्त 'वहाँ' खड़ी थी; अंजलि को खुद से ही घिन होने लगी.... 50-55 साल का बेहूदा सा आदमी अब उसकी 'अद्वितीया जवानी' को रोंदेगा; इस ख़याल से ही अंजलि को उल्टियाँ सी आने का मंन हुआ... वैसे भी कुच्छ देर पहले ही प्रेम ने गाड़ी में उसका अंग अंग चटका दिया था... उसकी योनि समेत उसका अंग अंग दुख़्ता हुआ स्वयं अंजलि की 'कामवासना' को ही कोस रहा था.... मुरारी के बेहूदा ढंग से खुद को घूरे जाने पर उसकी आँखें शर्मिंदा होकर झुक गयी....
"बहरी है क्या मादर चोद... नाचना नही आता तो नंगी होकर यहाँ आजा..." मुरारी ने अपनी जांघों पर हाथ मारा...," क्या जवानी दी है राम ने तुझे... अब और मत तडपा मुझको.. जल्दी कर...!"
अंजलि की आँखों से आँसू छलक आए... पर वो टस से मस ना हुई... मुरारी की तरफ नज़रें उठाकर देखने का भी मंन नही था उसका....
"अब इस उमर में मुझसे अपने कपड़े फदवाएगी क्या? जल्दी कर वरना....!" मुरारी ने एक बार फिर गुर्रकार कहा.... पर नतीजा वही धाक के तीन पात....
"स्साली कुतिया.... भाव क्यूँ खा रही है... सीधे सीधे प्यार से मान जा.. नही तो..." मुरारी अचानक बोलते बोलते रुक गया... उसने फोन उठाकर 'बॉस' को लगाया," क्या बिगड़ैल लड़की भेजी है यार... मान ही नही रही... अभी तो मैं प्यार से बोल रहा हूँ.. नही मानी तो मैं ससूरी को...... ये मुझे उंगली टेढ़ी करने पर मजबूर कर रही है....."
"पहली बार है ना सरकार! नखरे तो करेगी ही... हे हे.. आप उंगली टेढ़ी कीजिए या लड़की.. मुझे कोई प्राब्लम नही... माल आपका है.. हे हे हे..." उधर से बॉस की आवाज़ आई....
"ठीक है फिर... अभी मा चोद देता हूं मदर चोद की...!" मुरारी बड़बड़ाया और फोन वापस टेबल पर रख कर अंजलि की और बढ़ा...,"तेरी ऐसी गांद मारूँगा ना कि तू..."
जैसे ही मुरारी ने उसको छ्छूने की कोशिश की.. बुरी तरह डरी सहमी खड़ी अंजलि का बदन अचानक हरकत में आया और वो भाग कर कोने के पास लगे बिस्तेर के दूसरी और पहुँच गयी...,"प्लीज़ मुझे जाने दो.. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ अंकिल...!"
"तेरी मा की चूत स्साली... अंकल किसको बोलती है मदर्चोद..." गुर्रटा हुआ मुरारी पलट कर एक बार फिर उसकी ओर बढ़ा....,"तेरी चूचियाँ मसलूंगा आज... तेरी चूत मारूँगा.. और तू मुझे अंक्ल बोल रही है... मैं तेरा सैयाँ हूँ सैयाँ...." नशे में झूमते हुए मुरारी को जहाँ बिस्तेर के दूसरी और पहुँचने में करीब 10-12 सेकेंड लगे होंगे.. अंजलि को बिस्तेर के उपर से कूद कर दूसरी और आने में पूरा एक सेकेंड भी नही लगा......
मुरारी का चेहरा तमतमा गया...,"तेरी बेहन की... साँस की तकलीफ़ है पहले ही मुझे... चुपचाप मान जा वरना तेरा गॅंगरेप करवा दूँगा स्साली.... रुक... रुक तू एक मिनिट..." जैसे तैसे मुरारी दूसरी और आया तो अंजलि पहले वाली जगह जा चुकी थी... गुस्से से भाननाए हुए मुरारी ने फोन उठाया और अपने तीन राजनैतिक साथियों को रेस्टौउसे में आकर अपने साथ रंगरलियाँ मानने का न्योता दे डाला....
"म्म्माइन तैयार हूँ... किसी और को मत बुलाओ... मैं निकालती हूँ कपड़े....." अंजलि अंदर तक सिहर कर बोली....
"अब देखना तू... तेरी मा के यार आकर तेरी गांद और चूत का कैसे बैंड बजाते हैं....!" मुरारी ने गुस्से से तिलमिलते हुए कहा और फोन को वहीं सोफे पर पटकता हुआ सीधा बाथरूम में घुस गया......
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अपनी सूदबुध लगभग खो चुकी अंजलि को आज बचने का कोई और रास्ता दिखाई ना दिया...... उसने भाग कर पहले बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद किया और फिर दरवाजे की चिटकनी भी अंदर से लगा ली.... पर तब तक बाथरूम का दरवाजा अंदर से पीटा जाना शुरू हो गया था...,"साली कुतिया.. मदारचोड़.. दरवाजा खोल वरना....."
अंजलि ने बाथरूम के अंदर कुत्ते की तरह भौंक रहे मुरारी की बातों पर ध्यान ना देते हुए फोन उठाया और मानव का नंबर. डाइयल कर दिया... फोन बिज़ी आ रहा था.. अंजलि के माथे पर पसीने की बूंदे छलक उठी... उसने एक बार मुड़कर बुरी त्राह थपथपाए जा रहे दरवाजे की ओर देखा और फिर से नंबर. ट्राइ करने में जुट गयी....
"हेलो!" फोन पर मानव की चिरपरिचित आवाज़ सुनते ही अंजलि फफक पड़ी..,"म्म..मुझे बचालो सर.. प्लीज़....!"
मानव को फोन पर लड़की की आवाज़ के साथ ही दरवाजा पीटे जाने की आवाज़ भी सुनाई दी..,"हेलो.. कौन है उधर...?" मानव तुरंत ख़तरा भाँप कर बिस्तेर से खड़ा हो चुका था....
"Mमै हूँ सर.. अंजलि.. ंमुझे बचा लो प्लीज़...!" अंजलि अब भी दहाड़ें मारकर रो रही थी....
"अंजलि?... क्या हुआ?" मानव ने सकपका कर पूचछा....
"ययए... ये लोग मुझे.....!"
"ट्तूम तो गुरुकुल में हो ना?" मानव ने अचरज से पूचछा...
"नही सर... म्मैइन यहाँ शहर में हूँ.. किसी होटेल में.... प्लीज़ आप जल्दी से आ जाओ यहाँ...!" अंजलि बार बार पिछे मुड़कर बाथरूम के दरवाजे को देख रही थी....
"होटेल में....?" एक बार तो मानव असमन्झस में घिर गया... फिर अचानक ही वो अपने मंन में चल रहे सवालों के भंवर से बाहर आया...,"कौन्से होटेल में.. जल्दी बताओ.. मैं पहुँचता हूँ अभी....!"
"प्प..पता नही...!" अंजलि की साँसे बोलते हुए अटक रही थी.....
"ओह माइ गॉड... पर तुम... टेबल पर देखो... होटेल का मीनू पड़ा होगा कमरे में.. जल्दी बताओ!" मानव तब तक नीचे आकर अपनी जीप में बैठ चुका था....
अंजलि ने हड़बड़ाहट में कमरे में चारों और नज़र डाली.. पर उसको कहीं कोई क्लू नही मिला....,"पपता नही सर.. यहाँ तो... कुच्छ नही....!" अंजलि बोलते बोलते ठिठक कर काँपने लगी...,"अब दरवाजा बाहर से भी पीटा जाने लगा था... ववो लोग शायद मुरारी के बाथरूम का दरवाजा पीटने की आवाज़ें सुनकर वहाँ आ गये थे.....
"कहाँ हो तुम यार... कौन लोग हैं...?" मानव ने हताशा में स्टियरिंग पर घूँसा जमाते हुए पूचछा....
"ंमुझे ये नही पता... सीमा ने मुझे यहाँ...." अचानक दरवाजा भड़क से खुला और अंजलि की आँखें फटी की फटी रह गयी.... तभी गोली चलने की आवाज़ हुई और अंजलि एक दर्दनाक चीख के साथ पिछे सोफे पर आ गिरी..... फोन तभी उसके हाथ से छ्छूट कर गिर गया था....
"हेलो हेलो... अंजलि....!" मानव बोल ही रहा था कि अचानक किसी ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी.....
"स्साली... ज़्यादा सयानी बन रही थी...." अंदर फोन हाथ में लिए प्रेम के मुँह से निकला.....
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"हेलो मिश्रा... इनस्पेक्टर मानव हियर.... जल्दी से इस नंबर. को ट्रेस करने की कोशिश करो... जितनी जल्दी हो सके उतनी.... हरी उप!" मानव ने हड़बड़ी में ग़लत नंबर. लिखवा दिया.... उसके बाद उसने तुरंत मीनू के मोबाइल पर फोन किया...,"हेलो मीनू! गुरुकुल का कोई नंबर. है क्या?"
"हां.. एक लड़की का है... उनकी रूम-मेट है... क्यूँ?" मीनू ने सहजता से पूचछा....
"बात करने का टाइम नही है...." बोलते बोलते मानव का गला भररा गया...,"पता करो वहाँ अंजलि और पिंकी हैं या नही... अंजलि के बारे में पूच्छ कर जल्दी मुझे बताओ.... बस दो मिनिट में...!"
"ठीक है.. एक मिनिट रूको....!" मीनू ने तुरंत फोन काटा और हड़बड़ी में सीमा का नंबर. मिला दिया.....
"हेलो!" सीमा ने ही फोन उठाया था....
"पिंकी कहाँ है?" मीनू ने सीधे काम की बात की....
"पिंकी पिंकी पिंकी.... सारा दिन इस फोन पर पिंकी के ही फोन आते रहते हैं..." सीमा नींद में बड़बड़ाई...,"आए पिंकी.... तेरा फोन है यार.. ले जा!"
सीमा की बात सुनकर मीनू की जान में जान आई... तभी उसको पिंकी की मचलती हुई आवाज़ सुनाई दी,"बोलो दीदी...!" वह बाहर आ गयी थी.....
"ओह माइ गॉड! मानव ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी... ये भी कोई मज़ाक होता है....?" मीनू ने अपनी छाती पर हाथ रखकर कहा....
"क्यूँ? क्या हुआ?" पिंकी चहक कर बोली,"क्या मज़ाक किया जीजू ने?"
"कुच्छ नही छ्चोड़... अंजलि कहाँ है....?"
"ववो..वो.. यहीं है.. सो रही है... क्यूँ?" पिंकी का कलेजा बैठ गया....
"ठीक है.. सो जा... कुच्छ पढ़ाई वधाई भी करती हो या नही तुम दोनो...!" मीनू का लहज़ा अब सहज हो गया था.....
"हां करती हैं ना दीदी....!"
"अच्च्छा रखती हूँ.. मुझे मानव के पास फोन करना है....!" मीनू ने कहकर फोन काट दिया.....
9:30 होने ही वाले थे... अचानक हॅरी को याद करके पिंकी के होंटो पर मुस्कुराहट तेइर गयी..उसने नंबर. मिलाया और हॅरी के फोन उठाते ही पूचछा....,"आए या नही....!"
"बस पहुँच गया 2 मिनिट में.. आता कैसे नही.. तुमने बुलाया था गुलबो!"
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"ये कैसे हो सकता है यार... मैं मज़ाक नही कर रहा.. मैने फोन पर खुद अंजलि की आवाज़ सुनी... तुमने उस'से बात की या नही....!" मानव हैरान रह गया....
"नही.. पर पिंकी से मेरी बात हुई... अंजलि सो रही है....!"
"फिर भी... एक बार कन्फर्म कर लो यार... मुझे कोई धोखा नही हुआ है...!" मानव ने कहा.....
"बार बार फोन करने से वो सीमा मुँह बनाती है... चलो ठीक है.. मैं करती हूँ एक बार और...!"
"क्या? क्या नाम लिया तुमने अभी...?" मानव को याद आया अंजलि ने भी यही नाम लिया था....
"सीमा...! उनकी रूम मेट है.. गुरुकुल में बड़ी चलती है उसकी....! सिर्फ़ उसी के पास फोन है...."मीनू ने कहकर फोन काटा और एक बार फिर सीमा का नंबर. मिलाया.....
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"एक मिनिट... घर से फोन आ रहा है... मैं बात करते ही आती हूँ.. तुम तैयार रहना.....!" पिंकी हॅरी की किसी बात पर मुस्कुराइ और फिर मीनू की कॉल रिसीव कर ली,"हां दीदी....!"
"यार... अंजलि पक्का वहीं है ना...?" मीनू की बात सुनकर पिंकी का दिल धक से कर गया....
"हां... बार बार क्यूँ पूच्छ रही हो तुम....!" पिंकी ने झिझक कर पूचछा.....
"चल एक बार बात करवा दे मेरी....!" मीनू ने सपाट लहजे में बात कही....
"प्पर.. पर वो तो सो रही है ना!" पिंकी बुरी तरह डर गयी....
"सो रही है तो उठ नही सकती क्या...? तू झूठ तो नही बोल रही है... तेरी आवाज़ से लग रहा है ऐसा...." मीनू ने अपने तेवर बदल कर पूचछा...
"नही दीदी... ववो... हाँ... वो.. बाहर गयी है...!" पिंकी ने हथियार डाल दिए....
"क्क्या? बाहर कहाँ...? हॉस्टिल से बाहर...?"
कुच्छ देर पिंकी से कुच्छ ना बोला गया.. फिर धीरे से गले का थूक गटक कर उसने हामी भर दी....,"हां...!"
"हे भगवान... कमिनि... पहले क्यूँ नही बताया... कहाँ गयी है ववो?"
"प्प्पता नही दी...!" पिंकी बुरी तरह घबरा गयी थी... तभी मीनू ने बिना कुच्छ कहे फोन काट दिया.....
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"हेलो... मैं नही आ सकती हॅरी... दीदी को शक हो गया है... मुझसे अंजलि के बारे में पूच्छ रही है बार बार....!"
हॅरी सुनकर चौंक सा गया...," क्यूँ..? उनको कैसे पता लगा... क्या पूच्छ रही हैं...?"
"ऐसे तो कुच्छ नही... पर आज पता नही क्यूँ ज़िद लगाकर बैठ गयी.. बोली अंजलि से बात करा दे... वो तो आज फिर बाहर गयी है ना...? मुझे आख़िर में दीदी को बताना पड़ा.....
"पर वो रोज रोज क्या करने जाती है यार....!? चल छ्चोड़.... मैं तो बड़ी उम्मीद से आया था अपना काम छ्चोड़कर... अब ऐसे ही वापस जाना पड़ेगा क्या? 10-15 मिनिट के लिए ही आ जाओ...!" हॅरी ने मन मसोस कर कहा.....
"ठीक है... मैं 10 मिनिट के लिए आती हून... दीदी को साथ लेकर... फोन भी साथ ही रहेगा फिर....!" पिंकी मायूस होकर बोली....
"दीदी का क्या आचार डालगी यहाँ... पहली मुलाकात है और तुम.... कुच्छ नही होता... अकेली आ जाओ ना एक बार....!"
"अच्च्छा.. आती हूँ... पर हम कहीं जाएँगे नही... ठीक है ना?"
"हूंम्म्म..." हॅरी ने हामी भारी....!"
"दीदी... एक बार चलो ना मेरे साथ... मुझे बस 10-15 मिनिट के लिए जाना है...!" पिंकी अंदर आकर सीमा को उठाते हुए बोली....
"क्यूँ...? 10-15 मिनिट के लिए क्यूँ...? जा रही हो तो पूरी मस्ती करके आओ यार... यहाँ मैं संभाल लूँगी ना....!" सीमा खड़ी होकर बोली....
"नही... ववो.. दीदी को पता लग गया कि अंजलि गुरुकुल से बाहर है... मुझे डर लग रहा है...!"
"उसको कैसे पता लगा यार...?" सीमा चौंक कर बोली....
"ववो.. बार बार अंजलि से बात करने को बोल रही थी... उनको कुच्छ शक हो गया था... मुझे बताना पड़ा.....!" पिंकी सिर झुका कर बोली....
"सत्यानाश हो तेरा... और भी तो तरीके थे.. फोन ऑफ कर देती.... सुबह कह देती कि बॅटरी डाउन हो गयी थी... मुझे मरवाएगी तू....!" सीमा ने गुस्से से कहा...,"सुबह उसके आने के बाद बोल देना कि मैं मज़ाक कर रही थी.. समझ गयी...!" सीमा उसके साथ साथ चलते हुए नीचे आ गयी थी......
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"ओह माइ गॉड.... तो मेरा डर सही निकला... अंजलि ने भी सीमा का नाम लिया था... यहीं कुच्छ गड़बड़ है....!"
"मैं नंबर. दूँ उसका...? तुम बात कर लो जल्दी से....!" मीनू ने हड़बड़ी में कहा....
"ना... अब तो मुझे सीधा गुरुकुल में ही जाना पड़ेगा.... फोन करने से तो वो लोग फिर अलर्ट हो जाएँगे.... तुम भी फोन मत करो अब....!" मानव ने कहते ही फोन काटा और थाने से 2 लेडी पोलिसेकार्मियों को सीधे गुरुकुल भेजने की बात कहकर गाड़ी गुरुकुल की तरफ दौड़ा दी....
चलते चलते ही उसने एस.पी. ऑफीस में फोन किया..,"हां मिश्रा... कुच्छ पता चला नंबर .का..?"
"नही सर.. 'वो' नंबर. तो कयि महीने से सर्विस में नही है... हमने चेक कर लिया...
"वॉट रब्बिश यार... 20 मिनिट पहले ही तो मेरी उस फोन पर बात हुई हैं... एक मिनिट... नंबर. चेक करवाना...!" मानव ने स्क्रीन पर इनकमिंग कॉल डीटेल निकालते हुए कन्फर्म किया....
"ओह शिट यार... दूसरा नंबर. लिखो जल्दी.. मुझे अभी इस नंबर. की डीटेल चाहियें... जल्दी करना यार.. इट'स आन एमर्जेन्सी!"
"ओके सर...!" मिश्रा ने कहकर नंबर. लिखा और फोन काट दिया.....
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"मैं जल्दी ही वापस आ जाउन्गि दीदी... घर से फोन आए तो कह देना बाथरूम में हूँ....!" गेट के बाहर हॅरी की गाड़ी देखकर पिंकी के मॅन में झुरजुरी सी उठ गयी.. पर घरवालों का अंजाना सा डर भी उसको सता रहा था......
"डॉन'ट वरी... मैं फोन ऑफ कर रही हूँ... आराम से आना...!" सीमा ने मुस्कुरकर उसके गालों पर चिकोटी काटी और उसके बाहर निकलते ही वापस पलट गयी....
थोड़ी दूर जाते ही सीमा ने एक फोन लगाया...,"हेलो!"
"हां सीमा....!"
"पिंकी कह रही थी कि वो जल्द ही वापस आएगी.... वो शायद गुरुकुल से दूर नही जाएँगे.... सोचा तुम्हे बता दूँ... तुम गुरुकुल की तरफ ही आ जाओ!"
"ये क्या हो रहा है यार....? वहाँ अंजलि वाला मामला बिगड़ गया.. आज दिन ही उल्टा है... चल ठीक है... हम उधर ही आ जाते हैं....!" सुन'ने वाले ने कहकर फोन काट दिया...
क्रमशः.................................
गतान्क से आगे..................
गतान्क से आगे..................
"दीदी प्लीज़....!" अंधेरा होते ही सीमा के साथ खेल के मैदान की और चल रही अंजलि के कदम रह रह कर ठिठक रहे थे...,"कम से कम मुझे वहाँ अकेला तो मत भेजो!"
"अकेली कहाँ है तू यार.. प्रेम तेरे साथ जा रहा है... डॉन'ट वरी; सुबह तक वो तेरे साथ ही रहेगा.... फिर मेरा नंबर. तो तेरे पास है ना..! कुच्छ दिक्कत हो तो प्रेम के फोन से मुझे फोन कर लेना... चल जल्दी.. 'वो' बाहर वेट कर रहा होगा..." सीमा ने कहकर उसका हाथ पकड़ा और अपने साथ लगभग खींच सा लिया....
"पर दीदी....!" अंजलि साथ साथ चलते हुए अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करती हुई बोली..,"कल की तरह अगर वहाँ 3-4 लोग एक साथ मिले तो....?"
"क्यूँ मिलेंगे कयि लोग... एक ही मिलेगा तू चिंता मत कर....! बहुत मज़ा आएगा तुझे... आ.. चलती रह जल्दी जल्दी...!"
"आप भी साथ चलते तो.....!" अंजलि एक बार फिर कसमसाई.....
"मुझे मना ना किया होता तो मैं साथ ही चलती... और फिर मुझे रात को पिंकी को भी तो बाहर निकालना है ना...! उसका भी तो दिल है यार... उसको भी ऐश करने दे...!" सीमा ने चलते चलते तर्क दिया....
"इसके बाद तो आप कभी ज़बरदस्ती नही करोगी ना...? आज के बाद मुझे नही जाना कहीं भी ऐसे!" अंजलि और सीमा दोनो बातें करते करते गेट तक पहुँच चुके थे....
"काफ़ी देर से गाड़ी बाहर खड़ी है मेम'शाब..!" सीमा को गेट की तरफ आती देख गेट्कीपर लगभग भागा हुआ उनके पास आया था....
"चल चल.. जल्दी कर यार... मैं पहले ही बोल रही थी... लेट हो रहे हैं...!" दरवाजा खुलते ही सीमा अंजलि को बाहर गाड़ी के पास ले गयी... प्रेम पिच्छली सीट पर बैठा था...
"आ बैठ जल्दी...!" प्रेम ने तुरंत दरवाजा खोलते हुए अंजलि को इशारा किया.... अंजलि ने मुड़कर दयनीय आँखों से एक बार फिर सीमा की ओर देखा तो सीमा ने उसको अंदर धकेल सा दिया...,"बाइ... कल सुबह दिन निकलने से पहले छ्चोड़ जाना...!"
"चल...!" प्रेम ने इशारा किया और गाड़ी चल पड़ी....
"किधेर चलना है....!" डाराइविंग कर रही मनीषा कि आवाज़ सुनकर अंजलि उच्छल सी पड़ी... अंदर की लाइट बंद होने की वजह से 'वो' उसका चेहरा नही देख पा रही थी....,"दीदी..तुम?"
"सीधी चलती रह... मैं बता दूँगा...! थोड़ा धीरे चलना...." प्रेम ने कहा और अंजलि को अपनी गोद में खींच लिया..... अंजलि में हल्का सा विरोध करने की भी हिम्मत नही थी... उसको याद था कैसे प्रेम ने कल ज़रा सी बात पर रेवोल्वेर निकाल ली थी....
अंजलि के होंटो को चूस्ता हुआ प्रेम उसके उरोजो से खेलने लगा... अंजलि कसमसाई और वासना की एक तीव्र लहर उसके तन बदन में दौड़ गयी.....
"अब सारी उम्र मज़े लेना ऐसे ही....! बहुत मज़ा आ रहा होगा ना तुझे....!" मनीषा ने दाँत से पीसते हुए कहा तो प्रेम उसकी 'टोन' समझ गया...,"आए.. चुपचाप गाड़ी चलाती रह... मैं अकेला भी लेकर जा सकता हूँ इसको....! समझ गयी ना?"
इस बार मनीषा की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही मिली... जी भर कर अपने हाथों से बोझिल सी अंजलि के शरीर से खेलने के बाद प्रेम ने अपनी चैन खोली और उसके हाथ में अपना 'लिंग' थमा दिया...," साली चूस्ति एक नंबर. का है तू.... कल रात से इसकी अकड़न कम नही हुई है....'मुरारी' ना भी कहे तो 'पकड़' के निचोड़ लेना 'उसका' ... पागल हो जाएगा स्साला ठरकी बुड्ढ़ा!"
प्रेम ने अंजलि की गर्दन पकड़ कर उसको अपनी गोद में झुकाया तो कसमसा कर अंजलि ने अपने होन्ट खोल दिए....
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"लौंडिया आ गयी साहब... क्या करूँ...?" रेस्ट हाउस से कुच्छ पहले गाड़ी रोक कर प्रेम ने मुरारी को फोन किया.....
"आ गयी तो अपनी गांद में घुसेड ले इसको... स्साले कब से इंतजार में बैठा हूँ... सीधा लेकर आ जा इसको 102 में.....!" मुरारी की बात सुनकर प्रेम सकपका उठा....
"ला रहा हूँ ना साहब... ववो.. गाड़ी पंक्चर हो गयी थी रास्ते में....!" अब प्रेम उसको 'ये' कैसे बताता कि 'वो' लाख कंट्रोल करने के बावजूद भी बेकाबू होकर रास्ते में अंजलि को ठोकने का लालच छ्चोड़ नही पाया था....
"यहीं लगा दे साइड में....!" प्रेम ने रेस्ट हाउस के सामने जाकर मनीषा को गाड़ी रोकने का इशारा किया और उसके बाद बाहर आकर मनीषा को भी अपने साथ आगे चलने के लिए बोला....
'मुरारी' के निर्देश गेट्कीपर्स को पहले ही मिले हुए थे... बिना कुच्छ पूच्छे ही उन्होने उन तीनो को 102 नंबर. के लिए उपर जाने वाली सीढ़ियाँ दिखा दी....,"उधर से!"
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"हां हां.... आ जाओ अंदर...!" दरवाजे पर नॉक होते ही उनको अंदर से मुरारी की आवाज़ आई और उन्होने दरवाजा अंदर की तरफ धकेल दिया.... पट्टे वाला कच्च्छा और आधी बाजू की बनियान पहने मुरारी दारू में धुत्त होकर सोफे पर पसरा हुआ था... छ्होटे से कद का मोटा सा, थुलथुला मुरारी; (याद होगा ना!)
एक बारगी तो दरवाजे पर खड़ी अंजलि के करारे और बेपनाह खूबसूरती से लबरेज मस्ताये हुए यौवन पर नज़रें डालते ही मुरारी अपनी सूदबुध खोकर उसको देखता ही रह गया... आँखें फ़ाडे घूरते हुए उसने पहले शायद ये तसल्ली की कि ये उसका सपना नही बुल्की हक़ीक़त है... फिर अचानक उसकी नज़र पिछे खड़े प्रेम और मनीषा पर पड़ी...,"चलो तुम अब... क्या काम रह गया यहाँ..?.. दरवाजा बाहर से लॉक करके चाबी गेट्कीपर को दे देना....!"
प्रेम बिना कुच्छ बोले पिछे हटा और मनीषा का हाथ पकड़ कर बाहर लाते हुए उसने दरवाजा लॉक कर दिया....,"हूमें यहीं रुकना है... साइड वाले कमरे में... आओ!"
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"क्या मस्त लौंडिया है यार!.... कहाँ से मिली तुमको...?" इन लफ़्ज़ों के ज़रिए मुरारी 'बॉस' को फोन करके उसका धन्यवाद करना ना भूला....,"एक दम रसीली है...! अनचुड़ी तो है ना?"
"हुज़ूर, चख के देखो और खुद ही जान लो.... अब तो आपके पहलू में ही है... हमसे क्या पूच्छ रहे हो...? हा हा हा!" उधर से मुरारी को बॉस का विनम्र स्वर सुनाई दिया..... मुरारी ने सड़ियल सी हँसी हंसते हुए फोन काटा और टेबल पर रख दिया....,"चल एक दम नंगी होज़ा... डॅन्स करना आता है ना?" मुरारी ने उठकर कमरे में चल रहे म्यूज़िक की धुन पर बेढंगे तरीके से मटकना शुरू कर दिया....
जिसके सामने और जिस कारण से अंजलि उस वक़्त 'वहाँ' खड़ी थी; अंजलि को खुद से ही घिन होने लगी.... 50-55 साल का बेहूदा सा आदमी अब उसकी 'अद्वितीया जवानी' को रोंदेगा; इस ख़याल से ही अंजलि को उल्टियाँ सी आने का मंन हुआ... वैसे भी कुच्छ देर पहले ही प्रेम ने गाड़ी में उसका अंग अंग चटका दिया था... उसकी योनि समेत उसका अंग अंग दुख़्ता हुआ स्वयं अंजलि की 'कामवासना' को ही कोस रहा था.... मुरारी के बेहूदा ढंग से खुद को घूरे जाने पर उसकी आँखें शर्मिंदा होकर झुक गयी....
"बहरी है क्या मादर चोद... नाचना नही आता तो नंगी होकर यहाँ आजा..." मुरारी ने अपनी जांघों पर हाथ मारा...," क्या जवानी दी है राम ने तुझे... अब और मत तडपा मुझको.. जल्दी कर...!"
अंजलि की आँखों से आँसू छलक आए... पर वो टस से मस ना हुई... मुरारी की तरफ नज़रें उठाकर देखने का भी मंन नही था उसका....
"अब इस उमर में मुझसे अपने कपड़े फदवाएगी क्या? जल्दी कर वरना....!" मुरारी ने एक बार फिर गुर्रकार कहा.... पर नतीजा वही धाक के तीन पात....
"स्साली कुतिया.... भाव क्यूँ खा रही है... सीधे सीधे प्यार से मान जा.. नही तो..." मुरारी अचानक बोलते बोलते रुक गया... उसने फोन उठाकर 'बॉस' को लगाया," क्या बिगड़ैल लड़की भेजी है यार... मान ही नही रही... अभी तो मैं प्यार से बोल रहा हूँ.. नही मानी तो मैं ससूरी को...... ये मुझे उंगली टेढ़ी करने पर मजबूर कर रही है....."
"पहली बार है ना सरकार! नखरे तो करेगी ही... हे हे.. आप उंगली टेढ़ी कीजिए या लड़की.. मुझे कोई प्राब्लम नही... माल आपका है.. हे हे हे..." उधर से बॉस की आवाज़ आई....
"ठीक है फिर... अभी मा चोद देता हूं मदर चोद की...!" मुरारी बड़बड़ाया और फोन वापस टेबल पर रख कर अंजलि की और बढ़ा...,"तेरी ऐसी गांद मारूँगा ना कि तू..."
जैसे ही मुरारी ने उसको छ्छूने की कोशिश की.. बुरी तरह डरी सहमी खड़ी अंजलि का बदन अचानक हरकत में आया और वो भाग कर कोने के पास लगे बिस्तेर के दूसरी और पहुँच गयी...,"प्लीज़ मुझे जाने दो.. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ अंकिल...!"
"तेरी मा की चूत स्साली... अंकल किसको बोलती है मदर्चोद..." गुर्रटा हुआ मुरारी पलट कर एक बार फिर उसकी ओर बढ़ा....,"तेरी चूचियाँ मसलूंगा आज... तेरी चूत मारूँगा.. और तू मुझे अंक्ल बोल रही है... मैं तेरा सैयाँ हूँ सैयाँ...." नशे में झूमते हुए मुरारी को जहाँ बिस्तेर के दूसरी और पहुँचने में करीब 10-12 सेकेंड लगे होंगे.. अंजलि को बिस्तेर के उपर से कूद कर दूसरी और आने में पूरा एक सेकेंड भी नही लगा......
मुरारी का चेहरा तमतमा गया...,"तेरी बेहन की... साँस की तकलीफ़ है पहले ही मुझे... चुपचाप मान जा वरना तेरा गॅंगरेप करवा दूँगा स्साली.... रुक... रुक तू एक मिनिट..." जैसे तैसे मुरारी दूसरी और आया तो अंजलि पहले वाली जगह जा चुकी थी... गुस्से से भाननाए हुए मुरारी ने फोन उठाया और अपने तीन राजनैतिक साथियों को रेस्टौउसे में आकर अपने साथ रंगरलियाँ मानने का न्योता दे डाला....
"म्म्माइन तैयार हूँ... किसी और को मत बुलाओ... मैं निकालती हूँ कपड़े....." अंजलि अंदर तक सिहर कर बोली....
"अब देखना तू... तेरी मा के यार आकर तेरी गांद और चूत का कैसे बैंड बजाते हैं....!" मुरारी ने गुस्से से तिलमिलते हुए कहा और फोन को वहीं सोफे पर पटकता हुआ सीधा बाथरूम में घुस गया......
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अपनी सूदबुध लगभग खो चुकी अंजलि को आज बचने का कोई और रास्ता दिखाई ना दिया...... उसने भाग कर पहले बाथरूम का दरवाजा बाहर से बंद किया और फिर दरवाजे की चिटकनी भी अंदर से लगा ली.... पर तब तक बाथरूम का दरवाजा अंदर से पीटा जाना शुरू हो गया था...,"साली कुतिया.. मदारचोड़.. दरवाजा खोल वरना....."
अंजलि ने बाथरूम के अंदर कुत्ते की तरह भौंक रहे मुरारी की बातों पर ध्यान ना देते हुए फोन उठाया और मानव का नंबर. डाइयल कर दिया... फोन बिज़ी आ रहा था.. अंजलि के माथे पर पसीने की बूंदे छलक उठी... उसने एक बार मुड़कर बुरी त्राह थपथपाए जा रहे दरवाजे की ओर देखा और फिर से नंबर. ट्राइ करने में जुट गयी....
"हेलो!" फोन पर मानव की चिरपरिचित आवाज़ सुनते ही अंजलि फफक पड़ी..,"म्म..मुझे बचालो सर.. प्लीज़....!"
मानव को फोन पर लड़की की आवाज़ के साथ ही दरवाजा पीटे जाने की आवाज़ भी सुनाई दी..,"हेलो.. कौन है उधर...?" मानव तुरंत ख़तरा भाँप कर बिस्तेर से खड़ा हो चुका था....
"Mमै हूँ सर.. अंजलि.. ंमुझे बचा लो प्लीज़...!" अंजलि अब भी दहाड़ें मारकर रो रही थी....
"अंजलि?... क्या हुआ?" मानव ने सकपका कर पूचछा....
"ययए... ये लोग मुझे.....!"
"ट्तूम तो गुरुकुल में हो ना?" मानव ने अचरज से पूचछा...
"नही सर... म्मैइन यहाँ शहर में हूँ.. किसी होटेल में.... प्लीज़ आप जल्दी से आ जाओ यहाँ...!" अंजलि बार बार पिछे मुड़कर बाथरूम के दरवाजे को देख रही थी....
"होटेल में....?" एक बार तो मानव असमन्झस में घिर गया... फिर अचानक ही वो अपने मंन में चल रहे सवालों के भंवर से बाहर आया...,"कौन्से होटेल में.. जल्दी बताओ.. मैं पहुँचता हूँ अभी....!"
"प्प..पता नही...!" अंजलि की साँसे बोलते हुए अटक रही थी.....
"ओह माइ गॉड... पर तुम... टेबल पर देखो... होटेल का मीनू पड़ा होगा कमरे में.. जल्दी बताओ!" मानव तब तक नीचे आकर अपनी जीप में बैठ चुका था....
अंजलि ने हड़बड़ाहट में कमरे में चारों और नज़र डाली.. पर उसको कहीं कोई क्लू नही मिला....,"पपता नही सर.. यहाँ तो... कुच्छ नही....!" अंजलि बोलते बोलते ठिठक कर काँपने लगी...,"अब दरवाजा बाहर से भी पीटा जाने लगा था... ववो लोग शायद मुरारी के बाथरूम का दरवाजा पीटने की आवाज़ें सुनकर वहाँ आ गये थे.....
"कहाँ हो तुम यार... कौन लोग हैं...?" मानव ने हताशा में स्टियरिंग पर घूँसा जमाते हुए पूचछा....
"ंमुझे ये नही पता... सीमा ने मुझे यहाँ...." अचानक दरवाजा भड़क से खुला और अंजलि की आँखें फटी की फटी रह गयी.... तभी गोली चलने की आवाज़ हुई और अंजलि एक दर्दनाक चीख के साथ पिछे सोफे पर आ गिरी..... फोन तभी उसके हाथ से छ्छूट कर गिर गया था....
"हेलो हेलो... अंजलि....!" मानव बोल ही रहा था कि अचानक किसी ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी.....
"स्साली... ज़्यादा सयानी बन रही थी...." अंदर फोन हाथ में लिए प्रेम के मुँह से निकला.....
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"हेलो मिश्रा... इनस्पेक्टर मानव हियर.... जल्दी से इस नंबर. को ट्रेस करने की कोशिश करो... जितनी जल्दी हो सके उतनी.... हरी उप!" मानव ने हड़बड़ी में ग़लत नंबर. लिखवा दिया.... उसके बाद उसने तुरंत मीनू के मोबाइल पर फोन किया...,"हेलो मीनू! गुरुकुल का कोई नंबर. है क्या?"
"हां.. एक लड़की का है... उनकी रूम-मेट है... क्यूँ?" मीनू ने सहजता से पूचछा....
"बात करने का टाइम नही है...." बोलते बोलते मानव का गला भररा गया...,"पता करो वहाँ अंजलि और पिंकी हैं या नही... अंजलि के बारे में पूच्छ कर जल्दी मुझे बताओ.... बस दो मिनिट में...!"
"ठीक है.. एक मिनिट रूको....!" मीनू ने तुरंत फोन काटा और हड़बड़ी में सीमा का नंबर. मिला दिया.....
"हेलो!" सीमा ने ही फोन उठाया था....
"पिंकी कहाँ है?" मीनू ने सीधे काम की बात की....
"पिंकी पिंकी पिंकी.... सारा दिन इस फोन पर पिंकी के ही फोन आते रहते हैं..." सीमा नींद में बड़बड़ाई...,"आए पिंकी.... तेरा फोन है यार.. ले जा!"
सीमा की बात सुनकर मीनू की जान में जान आई... तभी उसको पिंकी की मचलती हुई आवाज़ सुनाई दी,"बोलो दीदी...!" वह बाहर आ गयी थी.....
"ओह माइ गॉड! मानव ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी... ये भी कोई मज़ाक होता है....?" मीनू ने अपनी छाती पर हाथ रखकर कहा....
"क्यूँ? क्या हुआ?" पिंकी चहक कर बोली,"क्या मज़ाक किया जीजू ने?"
"कुच्छ नही छ्चोड़... अंजलि कहाँ है....?"
"ववो..वो.. यहीं है.. सो रही है... क्यूँ?" पिंकी का कलेजा बैठ गया....
"ठीक है.. सो जा... कुच्छ पढ़ाई वधाई भी करती हो या नही तुम दोनो...!" मीनू का लहज़ा अब सहज हो गया था.....
"हां करती हैं ना दीदी....!"
"अच्च्छा रखती हूँ.. मुझे मानव के पास फोन करना है....!" मीनू ने कहकर फोन काट दिया.....
9:30 होने ही वाले थे... अचानक हॅरी को याद करके पिंकी के होंटो पर मुस्कुराहट तेइर गयी..उसने नंबर. मिलाया और हॅरी के फोन उठाते ही पूचछा....,"आए या नही....!"
"बस पहुँच गया 2 मिनिट में.. आता कैसे नही.. तुमने बुलाया था गुलबो!"
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"ये कैसे हो सकता है यार... मैं मज़ाक नही कर रहा.. मैने फोन पर खुद अंजलि की आवाज़ सुनी... तुमने उस'से बात की या नही....!" मानव हैरान रह गया....
"नही.. पर पिंकी से मेरी बात हुई... अंजलि सो रही है....!"
"फिर भी... एक बार कन्फर्म कर लो यार... मुझे कोई धोखा नही हुआ है...!" मानव ने कहा.....
"बार बार फोन करने से वो सीमा मुँह बनाती है... चलो ठीक है.. मैं करती हूँ एक बार और...!"
"क्या? क्या नाम लिया तुमने अभी...?" मानव को याद आया अंजलि ने भी यही नाम लिया था....
"सीमा...! उनकी रूम मेट है.. गुरुकुल में बड़ी चलती है उसकी....! सिर्फ़ उसी के पास फोन है...."मीनू ने कहकर फोन काटा और एक बार फिर सीमा का नंबर. मिलाया.....
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"एक मिनिट... घर से फोन आ रहा है... मैं बात करते ही आती हूँ.. तुम तैयार रहना.....!" पिंकी हॅरी की किसी बात पर मुस्कुराइ और फिर मीनू की कॉल रिसीव कर ली,"हां दीदी....!"
"यार... अंजलि पक्का वहीं है ना...?" मीनू की बात सुनकर पिंकी का दिल धक से कर गया....
"हां... बार बार क्यूँ पूच्छ रही हो तुम....!" पिंकी ने झिझक कर पूचछा.....
"चल एक बार बात करवा दे मेरी....!" मीनू ने सपाट लहजे में बात कही....
"प्पर.. पर वो तो सो रही है ना!" पिंकी बुरी तरह डर गयी....
"सो रही है तो उठ नही सकती क्या...? तू झूठ तो नही बोल रही है... तेरी आवाज़ से लग रहा है ऐसा...." मीनू ने अपने तेवर बदल कर पूचछा...
"नही दीदी... ववो... हाँ... वो.. बाहर गयी है...!" पिंकी ने हथियार डाल दिए....
"क्क्या? बाहर कहाँ...? हॉस्टिल से बाहर...?"
कुच्छ देर पिंकी से कुच्छ ना बोला गया.. फिर धीरे से गले का थूक गटक कर उसने हामी भर दी....,"हां...!"
"हे भगवान... कमिनि... पहले क्यूँ नही बताया... कहाँ गयी है ववो?"
"प्प्पता नही दी...!" पिंकी बुरी तरह घबरा गयी थी... तभी मीनू ने बिना कुच्छ कहे फोन काट दिया.....
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"हेलो... मैं नही आ सकती हॅरी... दीदी को शक हो गया है... मुझसे अंजलि के बारे में पूच्छ रही है बार बार....!"
हॅरी सुनकर चौंक सा गया...," क्यूँ..? उनको कैसे पता लगा... क्या पूच्छ रही हैं...?"
"ऐसे तो कुच्छ नही... पर आज पता नही क्यूँ ज़िद लगाकर बैठ गयी.. बोली अंजलि से बात करा दे... वो तो आज फिर बाहर गयी है ना...? मुझे आख़िर में दीदी को बताना पड़ा.....
"पर वो रोज रोज क्या करने जाती है यार....!? चल छ्चोड़.... मैं तो बड़ी उम्मीद से आया था अपना काम छ्चोड़कर... अब ऐसे ही वापस जाना पड़ेगा क्या? 10-15 मिनिट के लिए ही आ जाओ...!" हॅरी ने मन मसोस कर कहा.....
"ठीक है... मैं 10 मिनिट के लिए आती हून... दीदी को साथ लेकर... फोन भी साथ ही रहेगा फिर....!" पिंकी मायूस होकर बोली....
"दीदी का क्या आचार डालगी यहाँ... पहली मुलाकात है और तुम.... कुच्छ नही होता... अकेली आ जाओ ना एक बार....!"
"अच्च्छा.. आती हूँ... पर हम कहीं जाएँगे नही... ठीक है ना?"
"हूंम्म्म..." हॅरी ने हामी भारी....!"
"दीदी... एक बार चलो ना मेरे साथ... मुझे बस 10-15 मिनिट के लिए जाना है...!" पिंकी अंदर आकर सीमा को उठाते हुए बोली....
"क्यूँ...? 10-15 मिनिट के लिए क्यूँ...? जा रही हो तो पूरी मस्ती करके आओ यार... यहाँ मैं संभाल लूँगी ना....!" सीमा खड़ी होकर बोली....
"नही... ववो.. दीदी को पता लग गया कि अंजलि गुरुकुल से बाहर है... मुझे डर लग रहा है...!"
"उसको कैसे पता लगा यार...?" सीमा चौंक कर बोली....
"ववो.. बार बार अंजलि से बात करने को बोल रही थी... उनको कुच्छ शक हो गया था... मुझे बताना पड़ा.....!" पिंकी सिर झुका कर बोली....
"सत्यानाश हो तेरा... और भी तो तरीके थे.. फोन ऑफ कर देती.... सुबह कह देती कि बॅटरी डाउन हो गयी थी... मुझे मरवाएगी तू....!" सीमा ने गुस्से से कहा...,"सुबह उसके आने के बाद बोल देना कि मैं मज़ाक कर रही थी.. समझ गयी...!" सीमा उसके साथ साथ चलते हुए नीचे आ गयी थी......
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"ओह माइ गॉड.... तो मेरा डर सही निकला... अंजलि ने भी सीमा का नाम लिया था... यहीं कुच्छ गड़बड़ है....!"
"मैं नंबर. दूँ उसका...? तुम बात कर लो जल्दी से....!" मीनू ने हड़बड़ी में कहा....
"ना... अब तो मुझे सीधा गुरुकुल में ही जाना पड़ेगा.... फोन करने से तो वो लोग फिर अलर्ट हो जाएँगे.... तुम भी फोन मत करो अब....!" मानव ने कहते ही फोन काटा और थाने से 2 लेडी पोलिसेकार्मियों को सीधे गुरुकुल भेजने की बात कहकर गाड़ी गुरुकुल की तरफ दौड़ा दी....
चलते चलते ही उसने एस.पी. ऑफीस में फोन किया..,"हां मिश्रा... कुच्छ पता चला नंबर .का..?"
"नही सर.. 'वो' नंबर. तो कयि महीने से सर्विस में नही है... हमने चेक कर लिया...
"वॉट रब्बिश यार... 20 मिनिट पहले ही तो मेरी उस फोन पर बात हुई हैं... एक मिनिट... नंबर. चेक करवाना...!" मानव ने स्क्रीन पर इनकमिंग कॉल डीटेल निकालते हुए कन्फर्म किया....
"ओह शिट यार... दूसरा नंबर. लिखो जल्दी.. मुझे अभी इस नंबर. की डीटेल चाहियें... जल्दी करना यार.. इट'स आन एमर्जेन्सी!"
"ओके सर...!" मिश्रा ने कहकर नंबर. लिखा और फोन काट दिया.....
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"मैं जल्दी ही वापस आ जाउन्गि दीदी... घर से फोन आए तो कह देना बाथरूम में हूँ....!" गेट के बाहर हॅरी की गाड़ी देखकर पिंकी के मॅन में झुरजुरी सी उठ गयी.. पर घरवालों का अंजाना सा डर भी उसको सता रहा था......
"डॉन'ट वरी... मैं फोन ऑफ कर रही हूँ... आराम से आना...!" सीमा ने मुस्कुरकर उसके गालों पर चिकोटी काटी और उसके बाहर निकलते ही वापस पलट गयी....
थोड़ी दूर जाते ही सीमा ने एक फोन लगाया...,"हेलो!"
"हां सीमा....!"
"पिंकी कह रही थी कि वो जल्द ही वापस आएगी.... वो शायद गुरुकुल से दूर नही जाएँगे.... सोचा तुम्हे बता दूँ... तुम गुरुकुल की तरफ ही आ जाओ!"
"ये क्या हो रहा है यार....? वहाँ अंजलि वाला मामला बिगड़ गया.. आज दिन ही उल्टा है... चल ठीक है... हम उधर ही आ जाते हैं....!" सुन'ने वाले ने कहकर फोन काट दिया...
क्रमशः.................................
गतान्क से आगे..................