Desi Sex Kahani मेरी प्रेमिका - Page 6 - SexBaba
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Desi Sex Kahani मेरी प्रेमिका

उसी रात सोनाली के पिताजी अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठे थे.
किचन मे अंधेरा था और उनके होठों मे ड्रिंक का ग्लास था. उन्होने
अभी भी अपना सूट पहन रखा था.

"पिताजी आप अंधेरा मे क्या कर रहे हैं?" सोनाली ने किचन मे आते
हुए पूछा.

"कुछ ख़ास नही बस कुछ सोच रहा हूँ. पर रात के दो बजे तुम
यहाँ क्या कर रही हो?" सोनाली के पिताजी ने जवाब दिया.

सोनाली किचन मे आई और लाइट जलदी. उसने फ्रिज खोला, "मुझे
भूक लगी है." सोनाली ने कहा.

सोनाली जैसे ही फ्रिज मे से कुछ निकालने को झुकी तो उसके पिताजी
को उसकी सुडौल गान्ड सॉफ दिखाई दे रही थी. सोनाली ने सिर्फ़ टी-शर्ट
और उसके नीचे पैंटी पहन रखी थी. उसे उमीद नही थी कि इस वक्त
उसे कोई किचन मे मिल जाएगा.

"क्या सोच रहे हैं आप? मम्मी के बारे मे." सोनाली जानना चाहती थी.
उसने फ्रिड्ज से ब्रेड और चीज़े निकाला और ब्रेड पर लगाने लगी.
वो अपने पिताजी के पास आई और एक खाली कुर्सी पर बैठ गयी.

"हां में उसके बारे मे ही सोच रहा था. मुझे उसकी कमी महसूस हो
रही है. तुम तो जानती हो कि इतने साल साथ रहने के बाद अचानक
दूर रहना कितना मुश्किल होता है." सोनाली के पिताजी ने कहकर ग्लास
मे से एक बड़ा सीप लिया. उनकी सांसो से उठती महक से सोनाली समझ
गयी थी कि उनकी ये पहली ड्रिंक नही थी.

"में समझ सकती हूँ आप क्या कहना चाहते हैं. मुझे भी राज की
कमी महसूस हो रही है." सोनाली ने कहा.

"उसे वापस आने मे कितने दिन और लगेंगे?" उसके पिताजी ने उससे
पूछा. सोनाली के पिताजी ने अपना ग्लास ख़त्म किया और फिर से उसे
भरने लगे.

"करीब तीन साप्ताह बाकी है." सोनाली ने जवाब दिया.

"क्या तुम भी ड्रिंक लेना चाहोगी?" उसके पिताजी ने उसी पूछा. सोनाली
ने हां मे गर्दन हिला दी. उसके पिताजी दो ग्लास मे ड्रिंक बनाने
लगे. उसके पिताजी ने एक ग्लास सोनाली को पकड़ाया. सोनाली ग्लास लेकर
उसमे से सीप लेने लगी. पिताजी फिर अपनी कुर्सी पर बैठ गये और
अपनी टाइ ढीली कर दी.

बाप बेटी दोनो कुछ देर शांति से बैठे रहे और अपनी अपनी ड्रिंक
का का मज़ा लेते रहे. फिर उसके पिताजी ने उसकी ओर देखा, उसके
प्यारे शरीर को घूरते हुए उन्होने सोनाली से पूछा, "सोनाली जो उस
दिन तुमने देखा क्या तुम्हे मज़ा आया."

सोनाली तो चौंक गयी और अंजान बनने की कोशिश करने लगी, पर
उसके पिताजी कुछ सुनने को तय्यार नही थे, "मेने जानता हूँ उस दिन
खिड़की के पीछे से तुम ही देख रही थी. सच सच बताओ मुझे?' वो
जानना चाहते थे.

सोनाली ने शर्मा कर गर्दन हां मे हिला दी. उसके पिताजी मुस्कुराए
और बोले, "घबराओ मत बेटी, ज़्यादा मत सोचो, तुम पूछो इससे पहले
में ही बता देता हूँ कि ये सिलसिला कई दिन से चल रहा है."

सोनाली ने अपने ग्लास मे से एक घूँट भरी, "पिताजी आपको कहने की
ज़रूरत नही है."

"नही ज़रूरत है," पिताजी ने बीच मे टोकते हुए कहा, "में अपनी
बेटी से कुछ छुपाना नही चाहता. मेने सिर्फ़ अपना लंड चुस्वाया था
और कुछ नही. तुम तो जानती हो कि में और तुम्हारी माँ, सच कहूँ
तो आखरी बार उसने मुझे तब छुआ था जब मेरी पीठ मे बहोत दर्द
था और तुम्हारी माँ ने मेरी पीठ की मालिश की थी."

"क्या आपकी पीठ मे अब भी दर्द रहता है," सोनाली ने विषय बदलने
की कोशिश की. लंड चूसाइ की बातें करते हुए वो अपने आपको बहोत
ही बेचैन महसूस कर रही थी. उसे डर था कि कहीं इन सब बातों
से उसकी चूत गीली ना हो जाए और पिताजी देख ले.

"सच कहूँ तो आज भी बहोत दर्द रहता है. क्या मेरी रानी बेटी कल
मेरी पीठ की मालिश कर देगी? वैसे तो उमा मेरी पीठ की मालिश कर
दिया करती है, पर कल वो काम पर आने वाली नही है इसलिए तुमसे
कह रहा हूँ." पिताजी ने सोनाली से कहा.

"हां पिताजी क्यों नही, जब आप घर आ जाए तो मुझे आवाज़ दे
देना." सोनाली ने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा.

"शुक्रिया बेटी, में अब सोने जा रहा हूँ." कहकर उसके पिताजी खड़े
हुए और अपना ग्लास किचन के सिंक मे रख दिया.

इसके पहले की उसके पिताजी दरवाज़े से बाहर निकलते सोनाली ने पीछे
से कहा, "हां पिताजी मुझे वो नज़ारा देखा कर काफ़ी मज़ा आया,
बहोत ही अच्छा था."

पिताजी ने मूड कर उसकी ओर देखा, "प्लीज़ ये बात हम दोनो के बीच
ही रखना, कहीं अपनी माँ से मत कह देना समझी."

सोनाली ने अपनी गर्दन हां मे हिलाई. उसके पिताजी अपने कमरे मे
चले गये और सोनाली वहीं बैठी रही.

दो मिनिट के बाद उसका भाई किचन मे आता है, "अरे बहना तुम अभी
तक जाग रही हो?"

सोनाली ने उसे हां कहा और फ्रिड्ज की ओर बढ़ गयी, "विजय तुम्हे
कुछ चाहिए?"

विजय कुछ जवाब दिए बिना उसकी ओर बढ़ा और उसे कमर से पकड़
लिया, "मुझे तुम्हारी ये प्यारी चूत चाहिए जिसे तुमने छुपा रखा
है." विजय ने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ते हुए कहा.

"विजय रुक जाओ, पिताजी अभी सोने गये हैं यहाँ से." सोनाली ने अपने
आपको उससे छुड़ाते हुए कहा.
 
विजय ने उसकी पैंटी खींच कर नीचे कर दी, "फिर तो अब वो सुबह
तक वापस आने वाले नही है." विजय ने उत्तेजित होते हुए कहा.

विजय ने सोनाली को अपने नज़दीक खींचा और अपने हाथ उसकी जांघों
के अन्द्रुनि हिस्सों पर फिराने लगा. उसकी चूत को सहलाते हुए उसने
अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल दी.

"ओह विजजज़ाआआ." सोनाली का जो विरोध था वो भी अब जाता रहा.

विजय ने सोनाली को घुमा दिया जिससे उसके चूतड़ अब पीछे की ओर हो
गये थे. विजय ने अपनी शॉर्ट्स की ज़िप खोली और अपने लंड को बाहर
निकाल लिया. बिना हिचकिचाए उसने अपने लंड को उसके चूतड़ की
दरार मे से उसकी चूत के अंदर डाल दिया.

सोनाली की चूत से उठती गर्मी उसे अच्छी लग रही थी, साथ ही उसकी
चूत इतनी गीली थी कि उसका मूसल लंड आराम से अंदर चला गया
था. विजय अब सोनाली के चूतड़ पकड़ अपने लंड को उसकी चूत के
अंदर बाहर कर रहा था.

सोनाली ने दोनो हाथों से फ्रिड्ज को पकड़ रखा था जिससे वो गिर ना
जाए. विजय उसके कुल्हों को पकड़ ज़ोर के धक्के लगा रहा था. सोनाली
भी अपने कूल्हे आगे पीछे कर उसके धक्कों का साथ दे रही थी.

"ओह विजजज़ज्जे कित्ट्त्त्ना अकककचा लग रहह्ा हाई, हाआँ और जूऊर से
चूऊड़ो मुझे." सोनाली सिसक रही थी. विजय की धक्के इतने तीव्र
थे कि फ्रिड्ज भी हिलने लग रहा था.

"विजय चलो सोफे पर चलते है," सोनाली ने धीरे से कहा.

विजय ने अपना लंड बाहर निकाल लिया. सोनाली अपनी साँसे संभालते हुए
सोफे की ओर बढ़ गयी. उसने अपनी पैंटी वहीं फ्रिड्ज के पास निकाल
दी. सोनाली ने देखा कि विजय सोफे पर बैठा अपने लंड को सहला रहा
था.

"सोनाली यहाँ आओ मेरे लंड पर चढ़ जाओ." विजय ने कहा.

सोनाली विजय की पास आई और अपनी टाँगे विजय की टाँगो के इर्द गिर्द
कर उसकी गोद मे बैठ गयी. फिर उसने थोड़ा उपर होते हुए विजय के
लंड को अपनी चूत पर लगाया और नीचे होते हुए उसके लंड को पूरा
अपनी चूत मे ले लिया.

"हाआँ में यही कह रहा था, तुम जब इस तरह लंड को लेती हो तो
वो तुम्हारी चूत की जड़ तक चला जाता है, ओ हाआँ आईश्शे ही."
विजय सिसक पड़ा.

सोनाली को विजय का लंड बहोत ही अच्छा लग रहा था. वो उछल उछल
कर लंड को अपनी चूत मे ले रही थी. अब वो घूम कर इस तरह
बैठ गयी कि उसका चेहरा विजय के सामने था. विजय अपने दोनो
हाथो से उसकी चुचियाँ पकड़ मसल्ने लगा.

सोनाली ने अपने होठ विजय के होठों पर रख उन्हे चूसने लगी साथ
ही उसने अपनी चूत को इस तरह जकड़ा कि विजय के लंड ने उसी समय
पानी छोड़ दिया.

"ओह सोनाली तूमम्महरी चूत बहूओत क़ास्ससी है, मेरा तो
छूट गया." विजय बड़बड़ा रहा था.

सोनाली ने अपनी जीब उसके मुँह मे डाल दी और गोल गोल घूमाने लगी,
साथ ही वो जोरों से उछल कर धक्के लगा रही थी.

"ऑश सूओनाली हाां आौर जूओर से." कहकर विजय ने अपनी बेहन
की चूत को अपने वीर्य से भर दिया.

"ओह विजाआय आआआः ओह." सोनाली की चूत ने भी पानी
छोड़ दिया.

तभी उन्हे किसी के कदमों की आहट सुनाई दी. सोनाली उछल कर विजय
की गोद से उठी और उसके बगल मे बैठ गयी. सोनाली को अपनी पैंटी
कहीं दिखाई नही दी इसलिए वो अपनी टाँगे सिकोडे वैसे ही सोफे पर
बैठ गयी. उसने अपनी टी-शर्ट को इस तरह ढांप लिया जिससे उसकी
चूत दिखाई ना दे. विजय ने भी जल्दी से अपनी पॅंट उपर खींच कर
पहन ली.

उनके पिताजी ने कमरे मे कदम रखा. उन्होने सिर्फ़ अपना नाइट गाउन
पहन रखा था. "पिताजी आप इस समय यहाँ क्या कर रहे है?"
सोनाली ने डरते हुए पूछा.

उनके पिताजी कुछ नींद मे थे, "बेटा सिर्फ़ अपने लिए एक और ड्रिंक
लेने आया था, पता नही क्यों आज नींद नही आ रही. फिर मे अपना
चस्मा भी यहीं भूल गया था, हां वो रहे!" कहकर वो किचन की
ओर बढ़ गये.

"नमस्ते पिताजी." विजय ने कहा.

"ओह विजय बेटा, में तो समझा था कि आज तुम्हारी नाइट शिफ्ट है…."

विजय और पिताजी कुछ बातों मे लगे हुए थे वहीं सोनाली ने महसूस
किया कि विजय का वीर्य उसकी चूत से होता हुआ उसकी टाँगो पर बह
रहा है. उसने अपनी टी-शर्ट से ढकने की बहोत कोशिश की पर उसने
देखा कि उसकी टी-शर्ट पर एक सफेद धब्बा सा बनता जा रहा था.

तभी सोनाली को याद आया कि उसकी पैंटी वहीं फ्रिड्ज के सामने ज़मीन
पर पड़ी है, जब उसने अपने पिताजी को फ्रिड्ज की ओर बढ़ते देखा तो
एक सर्द लहर सी उसकी रगों मे दौड़ गयी.

उसके पिताजी फ्रिड्ज की ओर बढ़े और अपनी ड्रिंक बनाने लगे. सोनाली
ने विजय की ओर देखा, विजय मुस्कुराते हुए अपनी घबराहट छुपाने की
कोशिश कर रहा था. विजय ने देखा कि उसका वीर्य किस तरह सोनाली
की टाँगो पर बह रहा था.

"ओके बच्चो अब मे सोने जा रहा हूँ." कहकर पिताजी कमरे से चले
गये.

"हे भगवान, आज तो बड़ी मुश्किल से बच गये!" विजय ने कहा.
सोनाली खिशक कर उसकी बाहों मे आ गयी. तभी उसे अपनी पैंटी का
ध्यान आया और वो दौड़ कर फ्रिड्ज की ओर गयी.

"विजय मर गये….." सोनाली हल्के से चीखी.

"क्यों क्या हुआ?" विजय ने पूछा.

"मेरी पैंटी, थोड़ी देर पहले फ्रिड्ज के पास पड़ी थी पर अब वो वहाँ
नही है." सोनाली ने कहा.

"शायद फ्रिड्ज के नीचे खिसक गयी होगी." विजय उठकर देखने लगा.
पर उन्हे पैंटी कहीं नही मिली. दोनो असमंजस मे एक दूसरे को देखने
लगे.

"क्या तुम्हे नही लगता…….." विजय ने कहना चाहा.

"पिताजी अपने साथ ले गये……तुम यही कहना चाहते हो ना." सोनाली ने
कहा.
 
में प्लेन मे बैठा अपने प्लेन का मुंबई एरपोर्ट पर उतरने का
इंतेज़ार कर रहा था. आख़िर डेढ़ महीने बाद में अपने घर वापस
आ रहा था. पर ये डेढ़ महीना बहोत ही अच्छा गुज़रा था. कुछ पैसे
भी फिल्म की शूटिंग से कमाए थे साथ ही गायत्री की हसीन चूत
भी चोदने को मिली थी. मेरा लंड अब भी उसकी चूत को याद कर रहा
था.

कुछ घंटे पहले ही तो हम एक दूसरे से अलग हुए थे. गायत्री अपने
शहर वापस चली गयी थी जहाँ उसकी सबसे प्यारी सहेली की
शादी थी. हम दोनो ने काफ़ी समय साथ गुज़ारा था, बिस्तर पर भी
और बिस्तर के बाहर भी. हम साथ साथ इतना घूमे कि एक दूसरे को
अच्छी तरह समझने लगे थे. में दिल से कहूँगा कि गायत्री मुझे
पसंद आई थी पर यहाँ मेरी प्रेमिका सोनाली मेरा इंतेज़ार कर रही
थी.

हां मेरी प्रेमिका सोनाली बहोत अच्छी लड़की है, में शूटिंग पर
जहाँ गायत्री की चूत मे अपना पानी छोड़ रहा था वहीं मेरी
प्रेमिका सोनाली अपने भाई और बेहन से चुदाई के मज़े ले रही थी.
उसने अपने पिताजी को भी नौकरानी से लंड चूस्वाते हुए देखा.

सोनाली की माँ ने तलाक़ की अर्जी अदालत मे दे दी थी. उसकी माँ अपनी
बेहन के पास रह रही थी, और उसकी माँ और पिताजी का रिश्ता ख़त्म
सा था. यही सब ख़याल के साथ मे अपनी ड्रिंक ले रहा था.

मेने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि घर पहुँचने के बाद मुझे
सोनाली से बात करनी होगी. में खुद तय नही कर पा रहा था कि
गायत्री के बारे मे सोनाली को बताऊ या नही. मुझे अपने और गायत्री
के रिश्ते के बारे में भी पक्की तरह से विश्वास नही था. पर
में समझ चुका था कि मुझे सोनाली और गायत्री दोनो मे से एक को
चुनना है.

जैसे ही प्लेन ने रनवे को छुआ मेरी सोच भंग हो गयी. सोनाली
मेरा इंतेज़ार कर रही थी. मेने उसे बाहों मे भरा और हल्के से
उसके होठ चूम लिए. उसके गरम और नाज़ुक बदन को बाहों मे लेना
मुझे अच्छा लगा. मेने सही मे उसे मिस किया था.

जैसे ही हम मेरे फ्लॅट मे दाखिल हुए, सोनाली घूटनो के बल मेरे
सामने बैठ गयी और मेरी पॅंट की ज़िप खोल मेरे लंड को बाहर
निकाल लिया. मेरा लंड पूरी तरह से खड़ा नही था, पर जैसे ही
उसने उसे मुँह मे ले चूसना शुरू किया वो अपनी पूर लंबाई मे तन
गया.

सोनाली मेरे चेहरे को देखते हुए अपना सिर उपर नीचे कर मेरे लंड
को जोरों से चूस रही थी. में प्यार से उसके बालों मे हाथ फिरा
रहा था और उस वक्त का पूरा मज़ा ले रहा था.

सोनाली ने मेरे लंड को अपने मुँह से बाहर निकाला और उसे उपर से
नीचे तक चाटने लगी. वो अपनी जीब से मेरे लंड के छेद को छेड़ती
और फिर अपनी जीब उपर से नीचे तक ले जाते हुए मुझे चिढ़ा रही
थी.

"डार्लिंग तुम्हारे लंड का स्वाद आज कुछ ज़्यादा ही खारा है."
सोनाली ने मेरे लंड को चाटते हुए कहा.

"हो सकता है, गर्मी की वजह से पसीना कुछ ज़्यादा आ गया होगा."
मेने जवाब दिया.

सोनाली मेरे लंड को चाटते हुए अपनी जीब मेरी गान्ड के छेद पर
फिराने लगी, "म्म्म्मेम राज तुम्हारी गान्ड भी खारी लग रही है…….पर
मज़ा आ रहा है."
 
में बड़ी मुश्किल से खुद को खड़ा रख पा रहा था. मेरी पॅंट मेरी
टाँगो मे फँसी हुई थी जिससे खड़े होने मे तकलीफ़ हो रही थी, में
करीब लड़खड़ा गया और मेने दीवार का सहारा लेने की कोशिश की
पर में ज़मीन पर गिर पड़ा. सोनाली ज़ोर से हँसने लगी. में ज़मीन
पर गिरा पड़ा था और मेरा लंड तन कर सीधा खड़ा था.

"चलो उठो और इन कपड़ो को उतार दो?" सोनाली ने हंसते हुए कहा.

में अपने बेडरूम मे गया और कपड़े उतारने लगा. मेरे कपड़े पसीने
से भीगे हुए थे. कपड़े उतार जब में नंगा हॉल मे पहुँचा तो
सोनाली किचन मे चाइ बना रही थी.

"तुम्हे नंगा देख कर मुझे अच्छा लग रहा है." सोनाली ने कहा.

"तुम चाइ बनाओ तब तक में नहा कर आता हूँ." मेने उसके गालों
को चूमते हुए कहा.

शवर की नीचे नहाते हुए ठंडा पानी बदन पर अच्छा लग रहा
था. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे सारे पाप धूल रहे हैं पर ऐसा
नही था. माना सोनाली का मेरे पास होना मुझे अच्छा लग रहा था पर
में गायत्री और उसके प्यारे बदन को भी भुला नही पा रहा था.
हमारा साथ गुज़रा वक्त और वो चुदाई मुझे याद आ रही थी. और इस
ख़याल ने मेरे लंड को और गरमा दिया.

में अपने बेडरूम मे पहुँचा तो देखा कि सोनाली नंगी बिस्तर पर
लेटी हुई थी और उसकी दो उंगलियाँ उसकी चूत के अंदर बाहर हो रही
थी.

"ऊवू तुम एयेए गये, जल्दी से आआओ. इस टवल को फैंको अओर मेरी
चूत मे अपना लंड डाल मुझे जोरों से चोदो." सोनाली सिसकते हुए
बोली.

में उछल कर उसकी टाँगो के बीच पहुँच गया. पर अपना लंड उसकी
चूत मे डालने के बजाय में पहले उसकी चूत चूसना था. में अपनी
जीब उसकी चूत के मुँह पर फिराने लगा. मेने दोनो हाथों से उसकी
चूत को थोड़ा फैलाया और अपनी जीब उसके अंदर बाहर करने लगा.

"ऑश हाां चहतो आईसससे ही बहूत अच्छा लग रहा हाऐी."
सोनाली सिसक पड़ी.

अब में उसकी चूत को मुँह ने भर चूस रहा था. साथ ही में अपनी
जीब उसकी चूत मे गोल गोल घूमा रहा था.

"ओह हााअ और चूऊवसूओ और जूऊओर सीई."

सोनाली की चूत बहोट ही प्यारी और रस भरी थी. में कस कर उसकी
चूत को चूस रहा था. उसकी चूत से बहते रस का स्वाद मुझे
बहोत ही अच्छा लग रहा.

उसकी चूत को चूस्ते हुए मेने अपनी एक उंगली उसकी गान्ड के छेद पर
घूमाने लगा. फिर मेने धीरे से उंगली को अंदर डाल दिया. फिर
धीरे से बाहर खींच फिर अंदर पेल दी. अब में अपनी उंगली को उसकी
गान्ड के अंदर बाहर कर रहा था.

"ओह राआाज तुम क्यूऊन चाले गाए थे…….मेने तुम्हे कितना
मिस्सस्स किया हाां चूवसो औरर्र जूऊओर सीए चूवस्सो और मेराअ
पानी चूऊड़ा दूओ." सोनाली उत्तेजना में अपने कूल्हे उठा सिसक रही
थी.

सोनाली की चूत पानी छोड़ने लगी. उसकी चूत ने इतना पानी छोड़ा की
रस बह कर उसकी गान्ड तक आ गया. मेरी उंगली और आसानी से अंदर
बाहर होने लगी. अब में उसकी चूत को चूस्ते हुए हल्के हल्के
दांतो से काटने लगा. सोनाली और उत्तेजित हो गयी, काम इच्छा मे वो
अपनी टाँगे इधर उधर हिला रही थी.

सोआंलि ने मेरे बालों को पकड़ा और मुझे अपने उपर खींच
लिया, "ओ राअज अब में नही रुक सकती. अपने मोटे और लंबे लंड
को मेरी चूत मे डालकर मुझे जोरो से चोदे."

जो वो चाहती मेने उसे देने का फ़ैसला कर लिया. मेने उसकी दोनो
चुचियों को पकड़ा और उसकी आँखों मे देखते हुए अपने लंड को उसकी
चूत पर रख दिया. मेने हल्के से ज़ोर लगाया तो मेरा लंड उसकी
चूत मे इस तरह घुस गया जैसा की छुरी माखन मे घुसती है.
मेने और थोड़ा ज़ोर लगाया और मेरा पूरा लंड उसकी चूत मे घुस
गया.
 
सोनाली ने अपनी चूत की मांसपेशियों को इस तरह जकड़ा कि मेरा लंड
उसकी चूत के गिरफ़्त मे था. एक अनोखे आनंद से मेरा शरीर भर
गया. उसकी चूत कितनी गरम और गीली थी. मेने हल्के हल्के धक्के
लगा उसे चोदने लगा.

उसकी चुचियों को मसल्ते हुए में अब पागलों की तरह उसे चोद रहा
था. मेरे हर धक्के का साथ वो अपने कूल्हे उछाल दे रही थी.

"ओह हाां चूऊऊदू और्र जूओरों से ओह आआआं राआाज
फाड़ दो मेर्र्री चूऊत को आाज हाां ऐसे हीईीई चूओड़ो."

"ओह सूऊनाअली तूमम्महरी चूत किट्त्टनी आअची हाऐी ओब मेराअ
तो छोओओओटा." बदबते हुए मेरे लंड ने वीर्य का फ़ौवारा उसकी चूत
मे छोड़ दिया.

सोनाली ने मुझे कस कर अपनी बाहों मे भर लिया और अपने कुल्हों को
और उपर उठा कर मेरे लंड को अपनी चूत की जड़ तक ले लिया, "हाअ
राअज चूओद दो अपना पानी भार दो मेरी चूओत कूऊव आआअज ऊवू."

हम दोनो थके निढाल पड़े हुए थे. सोनाली मेरे बालों मे अपनी
उंगलियाँ बड़े प्यार से फिरा रही थी. दोनो का बदन पसीने से भर
गया था और साँसे तेज हो गयी थी.

जब दोनो की साँसे थोड़ी संभली तो उसने मुझे अपने से अलग किया.
मेरा लंड अभी भी खड़ा था, उसने अपनी उंगली अपनी चूत मे डाली
और मेरे वीर्य को ले चाटने लगी, "बहोत ही अच्छा स्वाद है तुम्हारे
वीर्य का."

में सिर्फ़ मुस्कुरा दिया. सोनाली बिस्तर से उठी, "तुम यही रहो में
तुम्हारे लिए चाइ लेकर आती हूँ."

सोनाली जब बेडरूम से किचन की ओर जा रही थी जोरों से
बोली, "राज देखो ना तुम्हारे लंड ने कितना पानी छोड़ा है, मेरी
टाँगो तक बह कर आ रहा है."

मेने देखा मेरा वीर्य उसकी चूत से होते हुए टाँगो पर बह रहा
था. जब वो वापस आई तो उसने अपनी चूत पौंछ ली थी. हम दोनो
बिस्तर पर ही बैठ कर चाइ पीने लगे.

सोनाली और में बातचीत कर रहे थे कि उसके चेहरे पर कुछ
गंभीरता आगयि. उसने खाली कप साइड पर रखे और मेरे मुरझाए
लंड को पकड़ मसल्ने लगी.

"राज में तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ, मेने ये बात तुम्हे फोन पर
इसलिए नही बताई कि में रूबरू तुम्हे ये बताना चाहती थी. प्लीज़
मेरी पूरी बात सुने बिना किसी निर्णय पर मत पहुँचना." सोनाली मेरे
लंड को मसल्ते हुए बोली.

सोनाली एक बार पहले भी इसी तरह अपनी कहानी सुना चुकी थी एक
बार और सही क्या फरक पड़ता था. सोनाली अपनी कहानी सुनाने लगी.

"राज ये दो हफ्ते पहले की बात है……………………."
 
सोनाली के पिताजी सोनाली के कमरे की ओर बढ़ रहे थे. वो अपने कमरे
मे नही थी, उसके कपड़े चारों ओर कमरे मे फैले हुए थे. "सोनाली
कहाँ हो तुम?" वो ज़ोर से चिल्लाए.

"में बाथरूम मे हूँ." सोनाली ने जवाब दिया.

उसके पिताजी ने बाथरूम मे कदम रखा, जो उसके कमरे के पास मे
था. सोनाली टाय्लेट सीट पर बैठी अपने पौन के नाख़ून काट रही
थी. सोनाली अभी अभी नहा कर नकली थी, उसने सिर्फ़ अपनी पैंटी
पहन रखी थी.

"पिताजी मैने कपड़े नही पहन रखे," सोनाली ने शरमाते हुए कहा.

"तुमने मुझसे वादा किया थी कि मेरी पीठ की मालिश करोगी. मेरे
कंधे और पीठ आज बुरी तरह दुख रहे है." उसके पिताजी ने कहा.

"पिताजी सिर्फ़ थोड़ी देर रुक जाइए फिर मे मालिश कर देती हूँ."
सोनाली ने कहा.

"बेटा बहोत दर्द हो रहा है, मुझसे सहा नही जा रहा. थोड़ी सी
मालिश कर दोगि तो दर्द चला जाएगा. अब करो ना तुम्हारी माँ भी
बराबर कर देती थी, और आज तो उमा भी नही आई. कपड़े पहनने की
चिंता मत करो. मैने तुम्हारी चुचियाँ पहले भी देख चुका हूँ,
याद है ना तुम्हे."

इतना कह कर सोनाली के पिताजी बेडरूम की ओर बढ़ गये, उम्मीद कर
रहे थे कि सोनाली उनके पीछे पीछे आ रही होगी. पिताजी बिस्तर पर
जाकर लेट गये और कमरे का दरवाज़ा खुला रहने दिया, "तुम आ रही
हो कि नही?"

सोनाली ने ज़ोर की गहरी साँस ली. उसके पिताजी किसी भी बात का थोड़ा
भी इंतेज़ार नही कर सकते थे, वो ये बात जानती थी. अच्छा है कि
वो वहाँ चली जाए वरना वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते रहेंगे.

सोनाली बाथरूम से अपने कमरे की ओर बढ़ी. वो नंगी रहकर अपने
पिताजी की पीठ की मालिश नही करना चाहती थी, इसलिए वो पहनने के
लिए कोई शर्ट देखने लगी. उसने ज़मीन पर पड़ी एक टी-शर्ट उठाकर
पहन ली. उसने ब्रा पहनने की कोशिश नही की आख़िर वो उसके पिताजी
थे, क्या फरक पड़ता है.

सोनाली बेडरूम मे पहुँची तो देखा कि पिताजी पेट के बल पीठ उपर
किए लेटे थे. वो अपने कंधों और पीठ की मालिश करने को तय्यार
थे. पिताजी ने सिर्फ़ अंडरवेर पहन रखी थी. तेल की बॉटल देब के
साइड मे रखी हुई थी.

सोनाली झुक कर तेल की शीशी उठाने लगी, उसकी चुचियाँ उसके
पिताजी के चेहरे से कुछ ही दूरी पर थी. पर उसे इसकी परवाह नही
थी, वो पिताजी के बगल मे बैठ कर उनकी पीठ पर तेल मलने लगी.

"ज़रा ज़ोर से मसलो बेटी, मुझे कुछ महसूस ही नही हो रहा है."
पिताजी बोले.

"ठीक है बुड्ढे में और ज़ोर से मसल्ति हूँ," सोनाली ने मन ही मन
कहा और जोरों से तेल मसल्ने लगी.

"हां अब मुझे अच्छा लग रहा है, ऐसा लग रहा है कि मेरा दर्द
गायब होता जा रहा है." पिताजी बोले.

सोनाली मालिश करती रही. पर उसे पिताजी के कंधों की मालिश
करने मे तकलीफ़ हो रही थी, कारण कि कंधों तक उसके हाथ नही
पहुँच रहे थे और ऐसा करने के लिए उसे अपनी छाती पिताजी की
पीठ से रगड़नी पड़ रही थी.

"क्या हुआ सोनाली तुम रुक क्यों गयी?" पिताजी ने पूछा.

"मेरा हाथ आपके कंधों तक नही पहुँच रहा है." सोनाली ने
जवाब दिया.

"मेरी पीठ पर बैठ कर मेरे कंधों की मालिश करो, तुम्हारी माँ
ऐसे ही किया करती थी." पिताजी थोड़ा मुस्कुरा कर बोले.

सोनाली एक गहरी साँस लेकर पिताजी की पीठ पर बैठ गयी. उसके
कूल्हे पिताही के कुल्हों पर थे, और दोनो टाँगे उनके बदन के अगल
बगल रखी हुई. सोनाली उनके कंधों पर तेल मसल्ने लगी.

"हां बहोत अच्छा लग रहा है, थोड़ा नीचे की ओर मसलो?" पिताजी
ने कहा.

सोनाली उनकी पीठ की पूरी तरह से करीब 15 मिनिट तक मालिश करने
लगी. सोनाली को उसके पिताजी की पीठ अच्छी लग रही थी, चौड़े और
मजबूत कंधे उसे आकार्षित कर रहे थे. उनके गतीले शरीर को
देख कोई कह नही सकता था कि वो 50 साल के हो गये थे. वो थोड़ा
नीचे की और मालिश करने लगी.

"हां यही, थोड़ा और नीचे. पाज ज़रा संभलकर, मेरी अंडरवेर पर
तेल ना लगने पाए, उसकी बदबू मुझे अच्छी नही लगती."

सोनाली ने पिताजी की अंडरवेर को थोड़ा नीचे खिसकाने की कोशिश की
पर वो ऐसा कर नही पाई, कारण उसके हाथ तेल से भरे पड़े थे इस
वजह से उनकी अंडरवेर पर तेल लग सकता था.

"पिताजी मेरी थोड़ी मदद करिए ना." सोनाली ने कहा.

पिताजी ने साइड से अपनी अंडरवेर पकड़ी और थोड़ा नीचे की ओर खिसका
दी. उनकी अंडरवेर अब उनकी गान्ड से थोड़ा नीचे को हो गयी थी.
सोनाली अपने पिताजी की बालों से भरी गान्ड को देख रही थी, उसकी
समझ मे नही आ रहा था कि कैसे शुरू करे.
 
"सोनाली मालिश करो, रूको मत, नही तो नसों मे ठंडक भर
जाएगी." पिताजी ने कहा.

सोनाली उनकी गान्ड के थोड़ा उपर मालिश करने लगी. वो अच्छी तरह
से मसल मसल कर मालिश कर रही थी. उसे अपने पिताजी की गान्ड
बहोत अच्छी लग रही थी, वो उसे छूना चाहती थी पर ऐसा कर ना
सकी.

"सोनाली तुम्हारे हाथों मे तो सही मे जादू है, कितनी अच्छी तरह
से मालिश करती हो तुम." पिताजी ने कहा.

"थॅंक यू, पिताजी."

"क्या तुमने विजय की भी कभी ऐसी मालिश की है?" पिताजी ने उससे
पूछा.

"पिताजी बड़ा अटपटा सा सवाल है आपका." सोनाली ने धीरे से कहा.
ऊए बुड्ढ़ा क्या जानना चाहता है, सोनाली ने मन ही मन सोचा.

"पर वो तुम्हारी मालिश करता रहता है, है ना?"

"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं पिताजी, अगर मुझे मालिश की ज़रूरत
होगी तो में राज से कहूँगी, विजय से क्यों मालिश कर्वाउन्गि."
सोनाली ने जवाब दिया.

"में पीठ की मालिश की बात नही कर रहा, में दूसरी जगह की
मालिश की बात कर रहा हूँ." पिताजी थोड़ा हंसते हुए बोले.

पिताजी की बात सुनकर सोनाली को पसीना आ गया. उसके हाथ उनकी
गान्ड पर जहाँ थे वही रुक गये.

सोनाली के पिताजी ने करवट बदली और लेट गये. सोनाली उनके पास
बैठी थी, वो सॉफ देख रही थी कि पिताजी का लंड सख़्त और खड़ा
था.

"पिताजी…….."

उसके पिताजी ने उसकी आँखों मे देखा, "सोनाली साइड के ड्रॉयर मे
देखो?"

सोनाली ने अपने हाथ पौन्छे और साइड का ड्रॉयर खींच कर खोल दिया.
उसने देखा कि कल रात की पैंटी उस ड्रॉयर मे पड़ी थी. सोनाली के
साँसे जहाँ की तहाँ रुक सी गयी.

सोनाली के पिताजी ने गहरी साँस लेते हुए कहा, "कल रात तुम दोनो
काफ़ी मज़े ले रहे थे, तुम दोनो की सुनाई देती सिसकारियों से तो
ऐसा ही लग रहा था. तुम दोनो की सिसकने और करहाने की आवाज़
सुनकर में नीचे आया. फिर जब तुम दोनो फारिग हो गये तो मैने
नीचे आने का बहाना बनाया जिससे तुम दोनो डर ना जाओ.

सोनाली को इतनी शरम आ रही थी कि वो अपने पिताजी की आँखों मे
आँखे नही मिला पा रही थी. वो अपने अपने आपको कोस रही थी कि
उसने विजय के साथ उसके कमरे मे चुदाई क्यों नही की.

उसके पिताजी उठकर उसके पास बैठ गये. फिर प्यार से उसकी थोड़ी
पकड़ कर बोले, "मेरी समझ मे नही आ रहा कि में तुमसे क्या
कहूँ? कितने दिनो से चल रहा है तुम्हारे और विजय के बीच?
 
सोनाली ने बड़ी हिम्मत जुटा कर बड़ी मुश्किल से अपने पिताजी की
आँखों से आँखे मिलाई, "थोड़े ही दिन हुए पिताजी."

"क्या राज को इसका पता है?"

सोनाली ने हां मे अपनी गर्दन हिला दी.

"सच मे………..मुझे विश्वास नही हो रहा, अगर तुम्हारी माँ होती तो
घर मे हंगामा खड़ा कर देती."

"में जानती हूँ. पर ये सब कब और कैसे हुआ मुझे पता ही नही
चला." सोनाली ने जवाब दिया.

सोनाली के पिताजी ने अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, "में समझ सकता
हूँ. जब में जवान था तो में भी अपनी बेहन तुम्हारी भुआ सीमा को
चोदना चाहता था. एक बार तो करीब करीब चोद ही दिया था पर
तुम्हारी भुआ डर गयी, बस उसके बाद कुछ नही हुआ, पर हो सकता
था."

सोनाली आश्चर्य से अपने पिताजी को देख रही थी. उसे विश्वास नही हो
रहा था कि उसके पिताजी उससे इस तरह की बात भी कर सकते है.

"तुम्हारी भुआ सीमा उन दिनो काफ़ी सुंदर दिखा करती थी, आज की
तरह मोटी भैंस नही. ठीक जैसे आज तुम दिखती हो, मेरी प्यारी
गुड़िया. में विजय को दोषी नही मानता, तुम हो ही इतनी सुंदर की
कोई भी लड़का तुम्हारी कामना कर सकता है." सोनाली के पिताजी जब ये
बात कह रह थे उनका हाथ उसकी थोड़ी से नीचे होते हुए, हल्के से
उसकी चुचियों को छुआ और उसकी गोदी मे आ गया था.

सोनाली के शरीर मे एक सर्द लहर सी दौड़ गयी.

"सोनाली मुझे एक बात बताओ क्या तुम्हारी चुचियों के निपल भी
तुम्हारी माँ की तरह नाज़ुक है?"

सोनाली के पिताजी के सवाल का जवाब हां ही था, कारण उसके पिताजी
के हल्के से स्पर्श ने ही उसके निप्प्लो मे जैसे जान फूँक दी थी और
वो तन कर खड़े हो गये थे. उसके तने हुए निपल उसके टी-शर्ट से
सॉफ झलक रहे थे.

"मुझे मेरा जवाब मिल गया," कहकर उसके पिताजी का हाथ उसकी
चुचियों पर आ गया और उसके निपल को उसकी टी-शर्ट के उपर से
सहलाने लगा.

सोनाली के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. हे भगवान उसके पिताजी उसे इस
तरह छू रहे थे और उसे बहोत ही अच्छा लग रहा था. उसके पिताजी
आप पूरी हथेली उसकी चुचियों पर रख उसे सहला रह थे, और
सोनाली का मुँह उत्तेजना मे खुला का खुला रह गया.

"तुम्हे अच्छा लग रहा है, है ना?" उसके पिताजी ने उससे पूछा.

सोनाली ने अपनी गर्दन हां मे हिलाई. उसने तिरछी नज़रों से देखा
उसके पिताजी का लंड बढ़ता ही जा रहा था, और बढ़ रहा था आख़िर
वो अपनी पूरी लंबाई और मोटाई मे आ गया था. इतना बड़ा लंड उसने
अपनी जिंदगी मे कभी नही देखा था, वो विजय या मेरे लंड से भी
लंबा था, करीब 10'इंच या उससे भी ज़्यादा.
 
"तुम्हारी मम्मी ने जब पहली बार देखा था तो उसके चेहरे पर भी
यही भाव थे, वो अपने आपको इसे छूने से रोक नही पाई थी." पिताजी
उत्तेजित भावना मे बोले.

सोनाली का गला सुख रहा था और उसकी साँसे तेज होती जा रही थी.
वो अपने पिताजी के लंड की लंबाई और मोटाई मे इतना खो गयी कि उसे
कुछ भी होश नही था. उसके पिताजी ने अब उसकी दूसरी चुचि को अपने
हाथों मे ले लिया था और दोनो चुचियों को साथ साथ मसल रहे
थे भींच रहे थे.

सोनाली के मुँह से सिसकारियाँ फुट रही थी. जब उसके पिताजी ने उसकी टी-
शर्ट उतारने की कोशिश की तो उसने विरोध नही किया और उन्हे टी-
शर्ट उतरने दी. वो तो बस उनके लंड को देखे जा रही थी.

"इसे छूकर देखो?" पिताजी ने धीरे से उससे कहा.

सोनाली ने अपना बयान हाथ बढ़ा कर उनके लंड पर रख दिया. उसने
धीरे से उनके लंड के सुपाडे पर उंगली फिराई, ऊहह कितना बड़ा
सुपाडा लग रहा था. उससे उत्तेजना का रस चूह रहा था.

सोनाली ने उनके लंड को अपनी हथेली मे पकड़ने की कोशिश की. पर
लंड की मोटाई इतनी थी कि वो उसकी नाज़ुक और छोटी हथेली मे नही
आया. सोनाली धीरे धीरे अपना हाथ लंड पर सहलाने लगी. गरम लंड
को स्पर्श उसे मा दे रहा था.

"हां सोन्नाअली मास्लो ईईसे जूओर सीए ज़ूर से हाआँ मुठियाओ
इसे." उसके पिताजी सिसक रहे थे, उन्होने उसकी चुचियों को छोड़
दिया था और पीछे झुक अपनी कोहनी के बल हो गये थे. वो अपनी
प्यारी बेटी को अपने लंड को मुठियाते देख रहे थे.

सोनाली के पिताजी अपनी प्यारी बेटी के खड़े निपल को घुरे जा रहे
थे. उसके निपल को चूसने की बड़ी इच्छा हो रही थी उनकी, साथ ही
वो उसकी चूत की भी कल्पना कर रहे थे. उसके पिताजी ने अपना एक
हाथ बढ़ा कर पैंटी के उपर से उसकी चूत पर रख दिया. उन्होने
महसूस किया कि पैंटी चूत के रस से भीग कर गीली हो गयी थी.

सोनाली अब अपने दोनो हाथों से उनके लंड को पकड़ मसल रही थी.

"हाआँ बेटी और जूऊरू से ओह आईससे हूऊ अयाया."

सोनाली के पिताजी ने अपनी एक उंगली उसकी पैंटी के उपर से ही उसकी
चूत मे घुसा दी, जैसे ही पैंटी के कपड़े ने उसकी चूत के अन्द्रुनि
भाग छुआ उसके पिताजी के लंड ने वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.

गाढ़े और सफेद वीर्य की पिचकारी ठीक उसके पिताजी की जाँघो, पेट
पर और उसके हाथों मे गिरी.

"इसे चाट कर सॉफ कर दो?" उसके पिताजी ने मानो हुक्म दिया.

सोनाली अपने पिताजी के लंड से इतनी मंत्रमुग्ध थी कि उसने बिना कोई
विरोध किए अपने जीब से वीर्य को चाटने लगी.

पिताजी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "हां बेटी अच्छी तरह
हर तरह से चाट कर सॉफ करना." पिताजी ने उसके मुँह को खुद के
लंड की तरफ कर दिया.

सोनाली ने अपने मुँह को खोल उनके लंड को अंदर ले लिया, फिर अपनी
जीब से उसे अच्छी तरह चाट कर सॉफ करने लगी.

"शाबाश बहोत ही अच्छी बेटी हो."

सोनाली को उनके वीर्य का स्वाद अच्छा लग रहा था, विजय के लंड के
वीर्य से भी अच्छा. जब पिताजी का लंड अच्छी तरह सॉफ हो गया तो
उसने लंड को अपने हाथों मे पकड़ लिया. आधा मुरझाया लंड भी उसे
काफ़ी बड़ा लग रहा था.
 
सोनाली अपने पिताजी की टाँगो के बीच लेट गयी. फिर उनकी आँखों से
आँखे मिला उसने उनके लंड को अपने मुँह मे लिया.

"हाां बेटी चूऊसो इसससे जूओर जूओर से ऊ." पिताजी ने कहा.

सोनाली अब पूरे जोश से उनके लंड को चूसने लगी. जैसे ही लंड अपनी
लंबाई मे आने लगा सोनाली को चूसने मे दिक्कत महसूस होने लगी,
लंड उसके गले तक ठोकर मार रहा था. उसने अपने मुँह को और चौड़ा
करते हुए उनके लंड को चूसने लगी. उसके पिताजी का लंड इतना लंबा
और मोटा था की थोड़ी ही देर मे उसके जबड़े दुखने लगे, फिर भी वो
अपनी पूरी ताक़त से लंड को चूस रही थी.

"बेटी अपना मुँह पूरा पूरा खोल लो, मेरा अब छूटने वाला है,"
कहकर उसके पिताजी ने वीर्य उसके मुँह मे छोड़ दिया. बड़ी मुस्ककिल से
सोनाली उस वीर्य को निगल पाई.

"शाबाश बेटी, बहूत ही अच्छा." उसके पिताजी ने कहा, "जिसने भी
तुम्हे लंड चूसना सिखाया काफ़ी अच्छी तरह से शिक्षा दी है."

सोनाली को खुशी हो रही थी की उसने अपने पिताजी की काम अग्नि को
शांत कर उन्हे तृप्त कर दिया था.

"अब इससे पहले कि सब घर मे आ जाए, तुम उठ कर अपने कपड़े पहन
लो. हम ये खेल फिर कभी खेलेंगे." उसके पिताजी ने उससे कहा.

सोनाली को अपने पिताजी की बात सुनकर थोड़ी निराशा हुई, पर उसने
कुछ कहे बिना उठ कर अपने कपड़े पहने और कमरे से बाहर चली
गयी.

वो सीधी अपने कमरे मे आई और अपनी पैंटी उतार दी. फिर बिस्तर पर
लेट कर अपनी चूत मे उंगली करने लगी. थोड़ी ही देर मे उसकी चूत
ने पानी छोड़ दिया. वो बिस्तर पर लेटे छत को घूर रही थी.

सोनाली ने अपनी कहानी ख़त्म की. जब वो मुझे ये सब बता रही थी,
उसके हाथ मेरे लंड को मुठिया रहे थे. वैसे तो मुझे अच्छा लग
रहा था फिर भी मेरा दिमाग़ उसकी बातों मे खोया था, ठीक उसी
तरह जब उसने पहली बार खुद के और विजय के बारे मे बताया था कि
किस तरह दोनो ने चुदाई की थी.

सोनाली की बातें सुनकर में भी गरमा गया था. पर अब उसने अपने
पिता जी के लंड को मसला था और चूसा था, मैने सपने मे भी नही
सोचा था कि वो रिश्तों को नज़र अंदाज़ कर काम वासना की अग्नि मे
इस कदर आगे बढ़ जाएगी.

"मुझे माफ़ कर दो राज. मुझे लगता है कि तुम्हारे जाने के बाद
हालात कुछ ज़्यादा ही बदल गये. मेरे पिताजी को मेरी ज़रूरत है और
में उन्हे निराश नही कर सकती हूँ. में अपने पिताजी, अपने भाई
और अपनी बेहन को बहोत प्यार करती हूँ और सही कहूँ तो मुझे उनके
साथ चुदाई करने मे मज़ा भी आता है, में सब के साथ हर वक़्त
चुदाई करना चाहती हूँ." सोनाली ने कहा.

सोनाली ने अपनी बात मेरा लंड मसल्ते और रगड़ते हुए इस अंदाज़ में
कही थी कि मैं अपने लंड को पानी छोड़ने से नही रोक पाया. एक तीव्र
फ़ौवारे की तरह मेरा लंड पानी छोड़ रहा था.

"लगता है तुम्हे मेरी बात पसंद आई है." सोनाली ने कहा और मेरे
लंड के सुपाडे को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगी. अब वो मेरे लंड
मे बचे पानी को भी अपनी जीब और होठों से निचोड़ रही थी.

"सोनाली मेरी बात ध्यान से सुनो, ये तो सॉफ है कि तुम्हे विजय से
चुदवाते देखना मुझे अच्छा लगता है. और जब में सोचता हूँ कि
किस तरह तुम्हारे पिताजी तुम्हारी चूत के साथ खेलते है, किस तरह
तुम उनके लंड को मसल्ति और चूस्ति हो, ये सोच मात्र मुझे गरमा
देती है." मैने सोनाली का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा.

"में क्या कहूँ राज मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा." सोनाली ने
जवाब दिया.

"सोनाली अगर हम सोचे तो ये सब अजीब सा लगता है, क्यों कि ये सब
प्यार की बातें है." मुझे महसूस हुआ कि इन बातों की शुरआत तो
कुछ महीने पहले ही हो चुकी थी, में चाह कर भी इन सब को नही
रोक सकता था. सोनाली का अपने परिवार के सदस्यों से चुदना मुझे
देखने मे अच्छा लगता था. इसका मतलब ये नही कि सोनाली कोई छिनाल
या रंडी बन गयी थी. हम दोनो दो लोग थे, और एक दूसरे को अच्छी
तरह से समझते थे. और मेरा हमेशा ये विश्वास रहा है कि
इंसान को वही करना चाहिए जो उसे अच्छा लगे, फिर जमाने की परवाह
कौन करता है. में अपने दिमाग़ मे भविश्य के बारे मे सोचने
लगा.
 
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