hotaks444
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तभी पीछे से एक हाथ ने उसे कस कर पकड़ लिया और एक झटका देकर मुंडेर से नीचे खींच लिया..,
तेज झटके के कारण वो सीधी उस खींचने वाले के उपर आ गिरी…!
नीचे होने के कारण रंगीली के मुँह से कराह निकल गयी, वो दोनो उठकर खड़ी हो गयी.., लाजो उससे अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली – छोड़िए काकी, मुझे मर जाने दीजिए…!
रंगीली ने एक जोरदार चाँटा उसके गाल पर रशीद कर दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे बस अड्डे की तरफ ले चली, रास्ते से संदूक उठाया…!
शाम तक वो अपने मायके जा पहुँची.., अपने बूढ़े माँ-बापू को देखकर उसकी रुलाई फुट पड़ी.., अपनी माँ के गले लगकर खूब रोई..,
वो अभी मिल-मिला ही रहे थे कि लाजो गश खाकर धडाम से ज़मीन पर गिर पड़ी.., रंगीली ने उसे फ़ौरन एक चारपाई पर लिटाया.., उसके मुँह पर पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाई…!
रंगीली – क्या हुआ लाजो.., ऐसे बेहोश क्यों हो गयी..,?
लाजो – पता नही काकी, शायद गर्मी के कारण हुआ होगा, अचानक से चक्कर सा आया…, आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और मे गिर पड़ी…!
रंगीली की माँ की अनुभवी आँखों ने उसके चेहरे को पढ़ा.., उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर वो रंगीली को लेकर बाहर आ गई…!
रंगीली की दोनो छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी, उनके अपने भरे पूरे परिवार थे, यहाँ बूढ़े माँ-बाप के साथ उसका सबसे छोटा भाई ही था जो अभी तक कुँवारा ही था..!
बाहर आकर उसकी माँ ने कहा – ये माँ बन’ने वाली है बेटी.., पर ये है कॉन..?
रंगीली विस्मय के साथ बोली – क्या..? ये माँ बन’ने वाली है..? हे राम…!
फिर धीमे स्वर में बोली – माँ-बापू.., मेरी बात ध्यान से सुनो.., ये हमारे सेठ की छोटी बहू है.., ग़लत आचरण की वजह से सेठानी ने इसे घर से निकाल दिया है…!
अब ये आप लोगों की ज़िम्मेदारी है.., ये लो रकम..ये कहकर उसने धन की थैली उन्हें पकड़ा दी.., और ध्यान रहे..,
इसे किसी तरह का कोई कष्ट ना हो.., समय समय पर और पहुँचा दिया करूँगी…!
किसी और को इस बात की भनक भी ना लगे कि ये कॉन है.., इसकी वास्तविकता क्या है.., कोई पुच्छे तो कोई भी बहाना बना देना..!
फिर वो लाजो के पास पहुँची और बोली – बधाई हो छोटी बहू तुम माँ बन’ने वाली हो.., अब ये तो तुम्हें पता होगा कि ये किसका अंश है.., लेकिन
विश्वास रखो, यहाँ तुम्हें किसी बात की कोई तकलीफ़ नही होगी..!
वक़्त आने पर तुम्हें और तुम्हारे इस बच्चे को पूरा हक़ मिलेगा ये मेरा वादा है तुमसे.., अपना ख्याल रखना.., अब मे चलती हूँ वरना वहाँ सेठानी जी बखेड़ा खड़ा कर देंगी…!
इतना कहकर और अपने माँ-बापू से विदा लेकर रंगीली वहाँ से चल पड़ी उसी हवेली की तरफ जहाँ उसकी कर्म-भूमि थी…!
लाजो के घर से निकलते ही सेठानी गुस्से से उफनती हुई अपने कमरे में घुस गयी.., उन्हें अभी भी लाजो की बातों पर विश्वास नही हो पा रहा था..,
क्या कोई ससुर अपनी ही बहू को चोदेगा भला..? झूठ बोलती है हरामजादी छिनाल., जैसी खुद है वैसा ही दूसरों को समझती है.., लेकिन दिमाग़ के किसी कोने में ये बात ज़रूर कचोट रही थी..,
दूसरे ही पल उसके दिमाग़ में उसके अपने बेटे के लिए कहे गये वो शब्द किसी तीर की तरह चुभ रहे थे.., क्योंकि कहीं ना कहीं वो और सेठ दोनो ही ये बात जानते थे कि कल्लू की काम शक्ति कमजोर तो है…,
तो क्या हरम्जादि कुटिया सही कह रही थी…? नही…नही.., छिनाल की चूत में ही ज़्यादा आग लगी रहती है, जो मेरे बेटे से पूरी नही होती.., ऐसा होता तो सुषमा बहू उम्मीद से कैसे हो गयी…?
ये सोचते सोचते सेठानी की आँख लग गयी.., और कुछ देर के लिए हवेली में शांति छा गयी..,
लेकिन दोपहर ढलते ही सेठानी की आँख खुल गयी.., नौकर अपने-अपने कामों में लगे थे, लेकिन रंगीली उसे कहीं भी नज़र नही आई…!
सेठानी मन ही मन उसे गालियाँ देते हुए बड़बड़ाई – ये मेरी सौत कुतिया रंगीली कहाँ मर गयी..? महारानी अभी भी सोई पड़ी होगी…!
मुन्नी…ओ.. मुनिया.. जा जाकर देख तो ये रंगीली कहाँ मर गयी…?
मुन्नी जी मालकिन कहकर रंगीली के घर की तरफ चल दी…!
लाजो और सेठानी के बीच क्या-क्या हुआ.., ये जान’ने की इच्छा से लाला जी के कान हवेली की तरफ ही लगे थे, सेठानी द्वारा रंगीली को बुलाने की बात सुनते ही वो चोन्कन्ने हो गये…!
मुन्नी के बाहर निकलते ही वो उसके सामने आ गये और बोले – अरी तू कहाँ चली..?
मुन्नी – मालिक वो मालकिन ने कहा है कि रंगीली काकी अभी तक काम पर क्यों नही आई..? उन्हें ही बुलाने जा रही थी…!
लाला जी – वो यहाँ नही है, उसे हमने खेतों की तरफ भेजा है..,
शंकर यहाँ नही है तो वो कुछ देखभाल कर लेगी.., तू जा अंदर और अपना काम कर…!
यही शब्द मुन्नी ने सेठानी के सामने दोहरा दिए.., जिन्हें सुनकर वो और ज़्यादा जल-भुन गयी और सीधी गद्दी में जा पहुँची…!
जाते ही सेठानी भाननाए स्वर में बोली – ये आजकल इस घर में हो क्या रहा है..?
लाला जी – क्या कहना चाहती हो.., साफ-साफ कहो…!
सेठानी – मे पूछती हूँ, एक ही घर में नौकर है जो अच्छे से काम संभालती है, उसी को तुमने खेतों पर भेज दिया…!
लाला जी – अरे तो और क्या करूँ.., वहाँ भी तो देखबाल ज़रूरी है..., अब शंकर भी यहाँ नही है.., तुम्हारे कपूत का कोई अता-पता नही रहता.., अब भाई हमसे तो इस गर्मी में खेतों पर जाया नही जाता…!
सेठानी – तुम सबको मेरे ही बेटे में खोट नज़र आते हैं.., जाते-जाते वो छिनाल भी बोल रही थी कि मेरा बेटा नपुंसक है..,
और हां.., क्या तुम्हारे उस कुतिया लाजो के साथ ग़लत संबंध थे…?
तेज झटके के कारण वो सीधी उस खींचने वाले के उपर आ गिरी…!
नीचे होने के कारण रंगीली के मुँह से कराह निकल गयी, वो दोनो उठकर खड़ी हो गयी.., लाजो उससे अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए बोली – छोड़िए काकी, मुझे मर जाने दीजिए…!
रंगीली ने एक जोरदार चाँटा उसके गाल पर रशीद कर दिया और उसका हाथ पकड़कर उसे बस अड्डे की तरफ ले चली, रास्ते से संदूक उठाया…!
शाम तक वो अपने मायके जा पहुँची.., अपने बूढ़े माँ-बापू को देखकर उसकी रुलाई फुट पड़ी.., अपनी माँ के गले लगकर खूब रोई..,
वो अभी मिल-मिला ही रहे थे कि लाजो गश खाकर धडाम से ज़मीन पर गिर पड़ी.., रंगीली ने उसे फ़ौरन एक चारपाई पर लिटाया.., उसके मुँह पर पानी के छींटे मारकर उसे होश में लाई…!
रंगीली – क्या हुआ लाजो.., ऐसे बेहोश क्यों हो गयी..,?
लाजो – पता नही काकी, शायद गर्मी के कारण हुआ होगा, अचानक से चक्कर सा आया…, आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और मे गिर पड़ी…!
रंगीली की माँ की अनुभवी आँखों ने उसके चेहरे को पढ़ा.., उसे वहीं चारपाई पर लिटाकर वो रंगीली को लेकर बाहर आ गई…!
रंगीली की दोनो छोटी बहनों की शादी हो चुकी थी, उनके अपने भरे पूरे परिवार थे, यहाँ बूढ़े माँ-बाप के साथ उसका सबसे छोटा भाई ही था जो अभी तक कुँवारा ही था..!
बाहर आकर उसकी माँ ने कहा – ये माँ बन’ने वाली है बेटी.., पर ये है कॉन..?
रंगीली विस्मय के साथ बोली – क्या..? ये माँ बन’ने वाली है..? हे राम…!
फिर धीमे स्वर में बोली – माँ-बापू.., मेरी बात ध्यान से सुनो.., ये हमारे सेठ की छोटी बहू है.., ग़लत आचरण की वजह से सेठानी ने इसे घर से निकाल दिया है…!
अब ये आप लोगों की ज़िम्मेदारी है.., ये लो रकम..ये कहकर उसने धन की थैली उन्हें पकड़ा दी.., और ध्यान रहे..,
इसे किसी तरह का कोई कष्ट ना हो.., समय समय पर और पहुँचा दिया करूँगी…!
किसी और को इस बात की भनक भी ना लगे कि ये कॉन है.., इसकी वास्तविकता क्या है.., कोई पुच्छे तो कोई भी बहाना बना देना..!
फिर वो लाजो के पास पहुँची और बोली – बधाई हो छोटी बहू तुम माँ बन’ने वाली हो.., अब ये तो तुम्हें पता होगा कि ये किसका अंश है.., लेकिन
विश्वास रखो, यहाँ तुम्हें किसी बात की कोई तकलीफ़ नही होगी..!
वक़्त आने पर तुम्हें और तुम्हारे इस बच्चे को पूरा हक़ मिलेगा ये मेरा वादा है तुमसे.., अपना ख्याल रखना.., अब मे चलती हूँ वरना वहाँ सेठानी जी बखेड़ा खड़ा कर देंगी…!
इतना कहकर और अपने माँ-बापू से विदा लेकर रंगीली वहाँ से चल पड़ी उसी हवेली की तरफ जहाँ उसकी कर्म-भूमि थी…!
लाजो के घर से निकलते ही सेठानी गुस्से से उफनती हुई अपने कमरे में घुस गयी.., उन्हें अभी भी लाजो की बातों पर विश्वास नही हो पा रहा था..,
क्या कोई ससुर अपनी ही बहू को चोदेगा भला..? झूठ बोलती है हरामजादी छिनाल., जैसी खुद है वैसा ही दूसरों को समझती है.., लेकिन दिमाग़ के किसी कोने में ये बात ज़रूर कचोट रही थी..,
दूसरे ही पल उसके दिमाग़ में उसके अपने बेटे के लिए कहे गये वो शब्द किसी तीर की तरह चुभ रहे थे.., क्योंकि कहीं ना कहीं वो और सेठ दोनो ही ये बात जानते थे कि कल्लू की काम शक्ति कमजोर तो है…,
तो क्या हरम्जादि कुटिया सही कह रही थी…? नही…नही.., छिनाल की चूत में ही ज़्यादा आग लगी रहती है, जो मेरे बेटे से पूरी नही होती.., ऐसा होता तो सुषमा बहू उम्मीद से कैसे हो गयी…?
ये सोचते सोचते सेठानी की आँख लग गयी.., और कुछ देर के लिए हवेली में शांति छा गयी..,
लेकिन दोपहर ढलते ही सेठानी की आँख खुल गयी.., नौकर अपने-अपने कामों में लगे थे, लेकिन रंगीली उसे कहीं भी नज़र नही आई…!
सेठानी मन ही मन उसे गालियाँ देते हुए बड़बड़ाई – ये मेरी सौत कुतिया रंगीली कहाँ मर गयी..? महारानी अभी भी सोई पड़ी होगी…!
मुन्नी…ओ.. मुनिया.. जा जाकर देख तो ये रंगीली कहाँ मर गयी…?
मुन्नी जी मालकिन कहकर रंगीली के घर की तरफ चल दी…!
लाजो और सेठानी के बीच क्या-क्या हुआ.., ये जान’ने की इच्छा से लाला जी के कान हवेली की तरफ ही लगे थे, सेठानी द्वारा रंगीली को बुलाने की बात सुनते ही वो चोन्कन्ने हो गये…!
मुन्नी के बाहर निकलते ही वो उसके सामने आ गये और बोले – अरी तू कहाँ चली..?
मुन्नी – मालिक वो मालकिन ने कहा है कि रंगीली काकी अभी तक काम पर क्यों नही आई..? उन्हें ही बुलाने जा रही थी…!
लाला जी – वो यहाँ नही है, उसे हमने खेतों की तरफ भेजा है..,
शंकर यहाँ नही है तो वो कुछ देखभाल कर लेगी.., तू जा अंदर और अपना काम कर…!
यही शब्द मुन्नी ने सेठानी के सामने दोहरा दिए.., जिन्हें सुनकर वो और ज़्यादा जल-भुन गयी और सीधी गद्दी में जा पहुँची…!
जाते ही सेठानी भाननाए स्वर में बोली – ये आजकल इस घर में हो क्या रहा है..?
लाला जी – क्या कहना चाहती हो.., साफ-साफ कहो…!
सेठानी – मे पूछती हूँ, एक ही घर में नौकर है जो अच्छे से काम संभालती है, उसी को तुमने खेतों पर भेज दिया…!
लाला जी – अरे तो और क्या करूँ.., वहाँ भी तो देखबाल ज़रूरी है..., अब शंकर भी यहाँ नही है.., तुम्हारे कपूत का कोई अता-पता नही रहता.., अब भाई हमसे तो इस गर्मी में खेतों पर जाया नही जाता…!
सेठानी – तुम सबको मेरे ही बेटे में खोट नज़र आते हैं.., जाते-जाते वो छिनाल भी बोल रही थी कि मेरा बेटा नपुंसक है..,
और हां.., क्या तुम्हारे उस कुतिया लाजो के साथ ग़लत संबंध थे…?