hotaks444
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उसे अब अपनी माँ को अपना लिंग दिखाने में शर्म महसूस होने लगी थी, सो बोला – रहने दे माँ, एक दो दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा…!
रंगीली – बेकार की बहस मत किया कर मुझसे, चल उतार इसे, अपनी माँ को अंग दिखाने में शर्म नही करते.., ये कहकर उसने ज़बरदस्ती उसके पाजामे को उतरवा दिया…!
यहाँ पीठ जितना घाव तो नही था, लेकिन था तो सही, वो भी उसके लौडे के एकदम नज़दीक, हालाँकि अभी उसका लिंग सोया हुआ था,
अपनी माँ के लिए उसके मन में केवल और केवल श्रद्धा के भाव थे, सो बस एक थोड़ी सी झिझक के अलावा और कोई भावना नही थी जिसके कारण वो उत्तेजित होता..
शंकरा का मुरझाया हुआ लिंग भी रामू के खड़े लंड की बराबर लंबा था, रंगीली ने उसे अपनी टाँगें चौड़ी करके बैठने को कहा, फिर वो उसकी टाँगों के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठ गयी…
एक हाथ से उसने उसके लिंग और गोटियों को साइड में किया और दूसरे हाथ की उगलियों से उसके घाव पर तेल लगाने लगी,
ना जाने क्यों रंगीली जब भी अपने बेटे के लिंग को छूति थी, उसका शरीर उत्तेजित होने लगता था, और वो अपनी चूत में गीलापन महसूस करने लगती थी…!
अब भी जब उसने उसके लिंग और वाकी समान से हाथ लगाया, तो वो फिर से उत्तेजित होने लगी, जैसे तैसे करके उसके तेल लगाकर हल्दी लगाई, और उसे एक कपड़े की पट्टी से बाँध दिया…!
लेकिन इतनी देर वो अपने हाथ से उसके लिंग को सहलाती रही, जिससे शंकर का लिंग धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ने लगा था, जिसे देख कर रंगीली की उत्तेजना और बढ़ गयी,
मलम पट्टी तो हो गयी, लेकिन रंगीली का मन उसके लिंग की सुंदरता को देखने से नही भरा, सो वो उसे प्यार से सहलाते हुए बोली – बेटा, तेरा ये इतना बड़ा कैसे हो जाता है…!
शंकर शरमाते हुए बोला – छोड़ ना माँ, ला अब मुझे पाजामा पहनने दे…!
रंगीली – नही थोड़ी देर हवा लगने दे घाव को…!
शंकर – लेकिन माँ, तूने तो पट्टी बाँध दी, फिर हवा कैसे लगेगी, शंकर के जबाब से वो लाजबाब हो गयी, लेकिन फिर अपनी बात को संभालते हुए बोली –
वही तो, एक तो ये मुई पट्टी, उपर से तू पाजामा और पहन लेगा तो और ज़्यादा गर्मी रहेगी और घाव सही नही हो पाएगा…!
शंकर – माँ ! पाजामा के अंदर पहनने को अंडरवेर दिला दे ना, बड़ा अजीब सा लगता है, स्कूल में सब लड़के-लड़कियाँ मेरी हिलती हुई सू सू देखकर हँसते हैं…!
रंगीली – अच्छा ठीक है, कल स्कूल से लौटते वखत ले आना, कितने के आते हैं..? पैसे ले जाना मेरे से…!
फिर जैसे उसे कुछ याद आया हो, सो वो बोली – अरे हां बेटा, मे तो भूल ही गयी थी, तू सुवह कुछ अपने सपने के बारे में कह रहा था…!
वो क्या सपना था, जिसकी वजह से तेरा पाजामा इतना ज़्यादा गीला हो गया था…?
अपनी माँ की बात सुनकर शंकर को एकदम से झटका सा लगा, वो जिस बात को लेकर स्कूल में अच्छे से पढ़ भी नही पाया था, उसी बात को छेड़कर माँ ने एक तरह सोए हुए नाग को फिर से जगा दिया…!
सपने में आई उस युवती के कामुक संगेमरमरी किसी अप्सरा जैसे बदन के एहसास से ही उसका लंड ठुमकने लगा, उपर से रंगीली ने उसे पाजामा भी नही पहनने दिया था….
उसके लंड को ठूमकते देख, रंगीली ने उसे फिर से उकसाया, बता ना.. क्या देखा था सपने में…?
शंकर – ऐसा कुछ नही था माँ, मुझे ठीक से याद भी नही रहा कि मेने क्या देखा था…, तू जा अब मुझे थोड़ा पढ़ाई करनी है…!
रंगीली उसके लिंग को हाथ में लेकर बोली – देख बेटा, सुवह तेरे इसके रस से तेरा इतना ज़्यादा पाजामा गीला हुआ ना, उसे देख कर मुझे बड़ी चिंता होने लगी है,
मे जो तेरी इतनी परवाह करके अच्छा-अच्छा खिलाती पिलाती हूँ, वो सब ऐसे ही बरवाद ना हो जाए, इसलिए जानना चाहती थी कि आख़िर ऐसा क्या देखा मेरे बेटे ने सपने में जिससे इतना सारा रस छोड़ दिया…!
लेकिन तुझे अगर मेरी चिंता की कोई परवाह नही है तो ठीक है, आज से तू खुद अपना ख़याल रखना, जो मिले खा लेना, पीना हो पी लेना, मे क्यों खम्खा अपना खून सुखाऊ तेरी चिंता में…
इतना कहकर वो उसके पास से उठ खड़ी हुई, और वहाँ से जाने के लिए जैसे ही पलटी, की शंकर ने उसकी कलाई थाम ली…………..!
शंकर ने अपनी माँ की कलाई थामकर उसे जाने से रोका.., जो उसे उलाहना देकर जाने लगी थी…, रंगीली ने प्रश्नसूचक निगाह उस पर डाली….
शंकर कहने लगा.. माँ तू तो जानती है, मेने आज तक तेरी किसी बात को नही टाला है, और मे ये भी जानता हूँ, कि मेरी माँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे भले के लिए ही सोचती और करती है,
पर माँ, … ना जाने क्यों मुझे ये सपने वाली बात तुझे बताने में शर्म सी महसूस हो रही है, जो मेने सपने में देखा था उसे अपनी माँ के सामने कैसे बयान करूँ…?
रंगीली – अच्छा ठीक है तू अपनी माँ को नही बताना चाहता है तो मत बता, लेकिन ये तो बता सकता है कि इस बात का जिकर अपनी माँ के अलावा ऐसा कोई तो होगा जिसके सामने तू कर सकता है…?
शंकर कुछ देर चुप रहा फिर कुछ सोचकर बोला – हां अगर मेरा कोई दोस्त होता तो ये बात मे उसके साथ सांझा कर सकता था, लेकिन मेने अभी तक ऐसा कोई दोस्त बनाया ही नही जिसके साथ साझा कर सकूँ…!
रंगीली – तो क्या तू कभी भी कोई दोस्त बनाएगा ही नही…?
शंकर – अगर कोई मुझे समझने वाला मिल गया तो ज़रूर बनाउन्गा…!
रंगीली उसकी आँखों की भाषा पढ़ने की कोशिश करते हुए बोली – मे तुझे थोड़ा बहुत समझती हूँ…?
शंकर – हां माँ, तेरे अलावा और कॉन है जो मुझे समझता है…!
रंगीली – तो समझ ले आज से मे तेरी वो दोस्त हूँ,
शंकर अपनी माँ की तरफ देखता ही रह गया, उसे कोई जबाब देते नही बन रहा था, उसे चुप देख वो फिर से बोली – क्यों माँ एक दोस्त नही हो सकती…?
शंकर – क्यों नही, तू तो मेरी सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त है माँ…!
रंगीली – तो फिर अपने सुख-दुख, ख्वाब, सपने अपने दोस्त के साथ भी सांझा नही कर सकता…?
अपनी माँ के तर्क सुनकर शंकर लाजबाब हो गया, उसके मुँह पर जैसे ताला लटक गया हो.. रंगीली खड़ी-खड़ी सिर्फ़ उसके चेहरे पर नज़र गढ़ाए देखती रही…!
शंकर उसका हाथ पकड़कर बोला – चल बैठ, अब जब हम दोनो दोस्त ही हैं तो मे बताता हूँ अपने सपने की बात की मेने क्या देखा था…
वो उसके बगल में पालती मारकर बैठ गयी, शंकर नज़र नीची करके अपने रात वाले सपने के बारे में बताने लगा…
वो जैसे-जैसे अपने सपने के बारे में बताता जा रहा था, रंगीली पर उत्तेजना का भूत सवार होता जा रहा था, उसकी चूत में चींटियाँ सी रेंगने लगी,
रस गागर छलक्ने लगी, उधर शंकर भी बताते बताते सपने में मानो खो ही गया, उत्तेजना में उसका लंड कड़क होकर सीधा भेलचा की तोप की तरह तन गया,
रंगीली – बेकार की बहस मत किया कर मुझसे, चल उतार इसे, अपनी माँ को अंग दिखाने में शर्म नही करते.., ये कहकर उसने ज़बरदस्ती उसके पाजामे को उतरवा दिया…!
यहाँ पीठ जितना घाव तो नही था, लेकिन था तो सही, वो भी उसके लौडे के एकदम नज़दीक, हालाँकि अभी उसका लिंग सोया हुआ था,
अपनी माँ के लिए उसके मन में केवल और केवल श्रद्धा के भाव थे, सो बस एक थोड़ी सी झिझक के अलावा और कोई भावना नही थी जिसके कारण वो उत्तेजित होता..
शंकरा का मुरझाया हुआ लिंग भी रामू के खड़े लंड की बराबर लंबा था, रंगीली ने उसे अपनी टाँगें चौड़ी करके बैठने को कहा, फिर वो उसकी टाँगों के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठ गयी…
एक हाथ से उसने उसके लिंग और गोटियों को साइड में किया और दूसरे हाथ की उगलियों से उसके घाव पर तेल लगाने लगी,
ना जाने क्यों रंगीली जब भी अपने बेटे के लिंग को छूति थी, उसका शरीर उत्तेजित होने लगता था, और वो अपनी चूत में गीलापन महसूस करने लगती थी…!
अब भी जब उसने उसके लिंग और वाकी समान से हाथ लगाया, तो वो फिर से उत्तेजित होने लगी, जैसे तैसे करके उसके तेल लगाकर हल्दी लगाई, और उसे एक कपड़े की पट्टी से बाँध दिया…!
लेकिन इतनी देर वो अपने हाथ से उसके लिंग को सहलाती रही, जिससे शंकर का लिंग धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ने लगा था, जिसे देख कर रंगीली की उत्तेजना और बढ़ गयी,
मलम पट्टी तो हो गयी, लेकिन रंगीली का मन उसके लिंग की सुंदरता को देखने से नही भरा, सो वो उसे प्यार से सहलाते हुए बोली – बेटा, तेरा ये इतना बड़ा कैसे हो जाता है…!
शंकर शरमाते हुए बोला – छोड़ ना माँ, ला अब मुझे पाजामा पहनने दे…!
रंगीली – नही थोड़ी देर हवा लगने दे घाव को…!
शंकर – लेकिन माँ, तूने तो पट्टी बाँध दी, फिर हवा कैसे लगेगी, शंकर के जबाब से वो लाजबाब हो गयी, लेकिन फिर अपनी बात को संभालते हुए बोली –
वही तो, एक तो ये मुई पट्टी, उपर से तू पाजामा और पहन लेगा तो और ज़्यादा गर्मी रहेगी और घाव सही नही हो पाएगा…!
शंकर – माँ ! पाजामा के अंदर पहनने को अंडरवेर दिला दे ना, बड़ा अजीब सा लगता है, स्कूल में सब लड़के-लड़कियाँ मेरी हिलती हुई सू सू देखकर हँसते हैं…!
रंगीली – अच्छा ठीक है, कल स्कूल से लौटते वखत ले आना, कितने के आते हैं..? पैसे ले जाना मेरे से…!
फिर जैसे उसे कुछ याद आया हो, सो वो बोली – अरे हां बेटा, मे तो भूल ही गयी थी, तू सुवह कुछ अपने सपने के बारे में कह रहा था…!
वो क्या सपना था, जिसकी वजह से तेरा पाजामा इतना ज़्यादा गीला हो गया था…?
अपनी माँ की बात सुनकर शंकर को एकदम से झटका सा लगा, वो जिस बात को लेकर स्कूल में अच्छे से पढ़ भी नही पाया था, उसी बात को छेड़कर माँ ने एक तरह सोए हुए नाग को फिर से जगा दिया…!
सपने में आई उस युवती के कामुक संगेमरमरी किसी अप्सरा जैसे बदन के एहसास से ही उसका लंड ठुमकने लगा, उपर से रंगीली ने उसे पाजामा भी नही पहनने दिया था….
उसके लंड को ठूमकते देख, रंगीली ने उसे फिर से उकसाया, बता ना.. क्या देखा था सपने में…?
शंकर – ऐसा कुछ नही था माँ, मुझे ठीक से याद भी नही रहा कि मेने क्या देखा था…, तू जा अब मुझे थोड़ा पढ़ाई करनी है…!
रंगीली उसके लिंग को हाथ में लेकर बोली – देख बेटा, सुवह तेरे इसके रस से तेरा इतना ज़्यादा पाजामा गीला हुआ ना, उसे देख कर मुझे बड़ी चिंता होने लगी है,
मे जो तेरी इतनी परवाह करके अच्छा-अच्छा खिलाती पिलाती हूँ, वो सब ऐसे ही बरवाद ना हो जाए, इसलिए जानना चाहती थी कि आख़िर ऐसा क्या देखा मेरे बेटे ने सपने में जिससे इतना सारा रस छोड़ दिया…!
लेकिन तुझे अगर मेरी चिंता की कोई परवाह नही है तो ठीक है, आज से तू खुद अपना ख़याल रखना, जो मिले खा लेना, पीना हो पी लेना, मे क्यों खम्खा अपना खून सुखाऊ तेरी चिंता में…
इतना कहकर वो उसके पास से उठ खड़ी हुई, और वहाँ से जाने के लिए जैसे ही पलटी, की शंकर ने उसकी कलाई थाम ली…………..!
शंकर ने अपनी माँ की कलाई थामकर उसे जाने से रोका.., जो उसे उलाहना देकर जाने लगी थी…, रंगीली ने प्रश्नसूचक निगाह उस पर डाली….
शंकर कहने लगा.. माँ तू तो जानती है, मेने आज तक तेरी किसी बात को नही टाला है, और मे ये भी जानता हूँ, कि मेरी माँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे भले के लिए ही सोचती और करती है,
पर माँ, … ना जाने क्यों मुझे ये सपने वाली बात तुझे बताने में शर्म सी महसूस हो रही है, जो मेने सपने में देखा था उसे अपनी माँ के सामने कैसे बयान करूँ…?
रंगीली – अच्छा ठीक है तू अपनी माँ को नही बताना चाहता है तो मत बता, लेकिन ये तो बता सकता है कि इस बात का जिकर अपनी माँ के अलावा ऐसा कोई तो होगा जिसके सामने तू कर सकता है…?
शंकर कुछ देर चुप रहा फिर कुछ सोचकर बोला – हां अगर मेरा कोई दोस्त होता तो ये बात मे उसके साथ सांझा कर सकता था, लेकिन मेने अभी तक ऐसा कोई दोस्त बनाया ही नही जिसके साथ साझा कर सकूँ…!
रंगीली – तो क्या तू कभी भी कोई दोस्त बनाएगा ही नही…?
शंकर – अगर कोई मुझे समझने वाला मिल गया तो ज़रूर बनाउन्गा…!
रंगीली उसकी आँखों की भाषा पढ़ने की कोशिश करते हुए बोली – मे तुझे थोड़ा बहुत समझती हूँ…?
शंकर – हां माँ, तेरे अलावा और कॉन है जो मुझे समझता है…!
रंगीली – तो समझ ले आज से मे तेरी वो दोस्त हूँ,
शंकर अपनी माँ की तरफ देखता ही रह गया, उसे कोई जबाब देते नही बन रहा था, उसे चुप देख वो फिर से बोली – क्यों माँ एक दोस्त नही हो सकती…?
शंकर – क्यों नही, तू तो मेरी सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त है माँ…!
रंगीली – तो फिर अपने सुख-दुख, ख्वाब, सपने अपने दोस्त के साथ भी सांझा नही कर सकता…?
अपनी माँ के तर्क सुनकर शंकर लाजबाब हो गया, उसके मुँह पर जैसे ताला लटक गया हो.. रंगीली खड़ी-खड़ी सिर्फ़ उसके चेहरे पर नज़र गढ़ाए देखती रही…!
शंकर उसका हाथ पकड़कर बोला – चल बैठ, अब जब हम दोनो दोस्त ही हैं तो मे बताता हूँ अपने सपने की बात की मेने क्या देखा था…
वो उसके बगल में पालती मारकर बैठ गयी, शंकर नज़र नीची करके अपने रात वाले सपने के बारे में बताने लगा…
वो जैसे-जैसे अपने सपने के बारे में बताता जा रहा था, रंगीली पर उत्तेजना का भूत सवार होता जा रहा था, उसकी चूत में चींटियाँ सी रेंगने लगी,
रस गागर छलक्ने लगी, उधर शंकर भी बताते बताते सपने में मानो खो ही गया, उत्तेजना में उसका लंड कड़क होकर सीधा भेलचा की तोप की तरह तन गया,