hotaks444
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कुछ देर की चुदाई के बाद दोनो एक साथ झड गये, सुषमा कराह कर बोली – अब अंदर चलो शंकर, मुझसे अब और खड़ा नही हुआ जा रहा रजाअ…
शंकर – रूको मे यही पर गद्दा लाकर डाल देता हूँ, आज खुले आसमान के नीचे ठंडे-ठंडे मौसम में बहुत मज़ा आरहा है…
गद्दा बिछा कर वो दोनो उसपर लेट गये, तारों भरे एकदम स्वच्छ सेप्टेंबर-अक्टोबर महीने के नीले आसमान के नीचे दो नंगे जिस्म एक दूसरे की बाहों में लिपटे अपनी कुछ देर पहले हुई दमदार चुदाई की थकान दूर कर रहे थे..
सुषमा उसके चौड़े सीने को चूमकर बोली – तुम मुझे ऐसे ही प्यार करते रहोगे ना शंकर…!
शंकर ने उसकी गोल-गोल मखमली चुचियों को सहलाया और दूसरे हाथ से उसकी रूई जैसी मुलायम गान्ड की दरार में उंगली चलाते हुए कहा –
मे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा भाभी, लेकिन अगर किसी दिन घरवालों को पता चल गया तो..,
आप जानती हैं ना क्या होगा..? मलिक मेरी खाल खिचवाकर भूसा भरवा देंगे…!
सुषमा उसके बदन से चिपक गयी, और उसके चेहरे पर अनगिनत चुंबन करते हुए बोली – बस कुछ दिन और ठहरो, उसके बाद किसी की हिम्मत नही होगी मेरे शंकर को छुने तक की…
शंकर ने उसकी गीली चूत में दो उंगली डालकर कहा – अच्छा ! कुछ दिन बाद ऐसा क्या चमत्कार होने वाला है भाभी..?
सुषमा ने सिसकते हुए उसके हाथ को अपनी चूत से अलग किया, और उसके मूसल को पकड़कर अपनी गीली चूत की फांकों पर रगड़ते हुए बोली – सस्स्सिईइ…आअहह….बस तुम देखते जाओ मेरे साजन…
तुम्हारी ये दासी इस घर की नयी मालकिन होगी, जिसकी बात कोई टाल भी नही सकेगा… आहह… अब डाल दो.. अंदर…हआइई….रीए…जालिम…धीरे….मर्रीइ…
उउफ़फ्फ़…जितनी बार इसे अंदर लेती हूँ, ये निगोडा हिला ही देता है मेरे पूरे शरीर को…, हाई..अब पेलो राजा.. ज़ोर्से..आअहह….हहूऊम्म्मन्णन…म्माआ…
खुले आसमान के नीचे एक बार फिर से धमाचौकड़ी शुरू हो गयी…, सुषमा औंधे मुँह बिस्तेर पर पड़ी थी…,
शंकर के मजबूत पट्ट, धपाक से उसकी गान्ड पर पड़ते, जिससे उसकी मुलायम मखमली गान्ड के उभार उपर को हिलोरें मारने लगते…!
उन्हें अपने हाथों में मसल्ते हुए, उनपर थप्पड़ मारते हुए शंकर अपनी पूरे दम-खम लगाकर धक्के लगा रहा था, सुषमा का पूरा बदन हिलने लगता……!
एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा ऐसे ही चुदाई के दौर पर दौर चलते रहे…सुषमा की वर्षों से प्यासी चूत लगातार पानी छोड़ती रही…
सुबह के 4 बज गये लेकिन मज़ाल क्या, दोनो में से कोई भी पीछे हटने को तैयार हो…
शंकर नौजवान देसी पट्ठा ताज़ा ताज़ा जवान हुआ था, उपर से उसकी माँ ने खिला-पिलाकर ताक़तवर और चुदाई का मास्टर बना दिया था…
उधर सुषमा अपने जीवन के 25-26 साल यौंही बर्बाद करके अब जाकर दो मजबूत बाहों का सहारा पाकर धन्य हो गयी थी…
जबसे शंकर ने उसे उपर आकर अपनी बाहों में लिया था, तब से एक सेकेंड के लिए भी उसकी चूत सुखी नही रह पाई थी…
कामरस और वीर्य से दोनो के बदन चिप-चिपाने लगे थे, खुले वातावरण में भी एक अजीब सी महक व्याप्त हो गयी थी…
सुषमा इन लम्हों को खुलकर जीना चाहती थी.., लेकिन आख़िर था तो हाड़-मास का बदन ही ना, थकने लगा…
सुषमा थक कर चूर हो चुकी थी, उसने एक मादक अंगड़ाई लेकर शंकर के होंठ चूमते हुए कहा – अब बस करो मेरे चोदु बलम, सुबह होने को है…!
लोग उठने लगेंगे, वैसे भी मेरा बदन पूरी तरह से टूटने लगा है, मुझमें अब खड़े होने की भी हिम्मत नही है…
फिर दोनो ने अपने-अपने कपड़े डाले जो नाम मात्र के ही थे, शंकर उसे अपनी गोद में उठाकर नीचे तक लाया,
सुषमा को उसके कमरे में छोड़ा, और एक प्यारा सा चुंबन उसके होंठों पर करके वो भी अपनी माँ के पास जाकर सो गया………!
शंकर के 12वी के बोर्ड एग्ज़ॅम में अब ज़्यादा समय नही था, स्कूल में लोकल एग्ज़ॅम चल रहे थे और बोर्ड वालों को प्रेपरेशन लीव दे रखी थी…
वो सुबह से ही पढ़ाई में जुटा हुआ था.., तभी उसकी माँ ने आकर कहा – बेटा थोड़ा समय हो तो अपने बापू का खाना पहुँचा देगा खेतों में..?
शंकर – हां माँ क्यों नही, ला दे अभी देकर आता हूँ, वैसे भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गया हूँ सुबह से, थोड़ा मूड फ्रेश भी हो जाएगा…!
एक कपड़े में साग रोटी बाँध कर रंगीली ने उसे पकड़ा दी, शंकर दौड़ता हुआ 10 मिनिट में खेतों में जा पहुँचा और अपने बापू को ढूँढ कर उसे खाना पकड़ा कर वापिस लौटने लगा…!
लाला जी के खेत बहुत दूर-दूर तक फैले हुए थे, वहीं कहीं दूर के खेतों में लल्ली का बापू भी काम कर रहा था और वो भी उसे खाना खिलाकर वापिस लौट रही थी…
रास्ते में लाला जी का आम का बगीचा पड़ता था जिसमें और भी फलों के पेड़ थे,
नयी-नयी जवानी आ रही थी लल्ली पर, एकांत पाते ही उसका दिमाग़ सेक्स की बातें ही सोचने लगता था…!
वैसे भी उसका ज़्यादातर उतना बैठना मोहल्ले की छिनाल टाइप भाभियों-चाचियों के साथ था, जो मौका पड़ते ही उसके अंगों के साथ छेड़खानी कर देती, चटखारे ले लेकर अपनी चुदाई की बातें बताती…
रात को पति के साथ क्या क्या मज़े लिए, कैसे लंड चूसा, चूत चटवाई जिन्हें वो चटखारे ले-लेकर बताती और उन्हें सुनकर लल्ली जैसी कच्ची कली उत्तेजित होकर लंड लेने के लिए व्याकुल होने लगती…!
सलौनी का भाई शंकर उसकी पहली पसंद था, अपनी चूत को सहलाते वक़्त उसका चेहरा उसकी आँखों में ज़रूर ही रहता…!
अब नारी सुलभ, माँ-बापू की इज़्ज़त का ख़याल, किसी भी पर पुरुष को रास्ते चलते पकड़कर तो कह नही सकती थी ले राजा चोद दे मुझे..,
इसलिए जब भी मौका मिलता अपनी चूत में उंगली से कुरेदकर गीली कर लेती थी…!
आज भी जब वो अपने बापू को खाना देकर लौट रही थी, चलते-चलते उसका दिमाग़ सेक्स की बातों की तरफ चला गया, उसकी मुनिया में खुजली होने लगी…
कुछ दूर तक वो अपने लहंगे के उपर से ही उसे खुजाति रही, लेकिन उसकी खुजली बजे कम होने के और बढ़ती जा रही थी, उसकी मुनिया लार टपकाने लगी थी..
इतने में आम का बगीचा आ गया, थोड़ा सा अंदर जाकर वो एक आम के पेड़ की साइड में अपनी टाँगें चौड़ी करके गान्ड ज़मीन पर रख कर बैठ गयी…
शंकर – रूको मे यही पर गद्दा लाकर डाल देता हूँ, आज खुले आसमान के नीचे ठंडे-ठंडे मौसम में बहुत मज़ा आरहा है…
गद्दा बिछा कर वो दोनो उसपर लेट गये, तारों भरे एकदम स्वच्छ सेप्टेंबर-अक्टोबर महीने के नीले आसमान के नीचे दो नंगे जिस्म एक दूसरे की बाहों में लिपटे अपनी कुछ देर पहले हुई दमदार चुदाई की थकान दूर कर रहे थे..
सुषमा उसके चौड़े सीने को चूमकर बोली – तुम मुझे ऐसे ही प्यार करते रहोगे ना शंकर…!
शंकर ने उसकी गोल-गोल मखमली चुचियों को सहलाया और दूसरे हाथ से उसकी रूई जैसी मुलायम गान्ड की दरार में उंगली चलाते हुए कहा –
मे अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँगा भाभी, लेकिन अगर किसी दिन घरवालों को पता चल गया तो..,
आप जानती हैं ना क्या होगा..? मलिक मेरी खाल खिचवाकर भूसा भरवा देंगे…!
सुषमा उसके बदन से चिपक गयी, और उसके चेहरे पर अनगिनत चुंबन करते हुए बोली – बस कुछ दिन और ठहरो, उसके बाद किसी की हिम्मत नही होगी मेरे शंकर को छुने तक की…
शंकर ने उसकी गीली चूत में दो उंगली डालकर कहा – अच्छा ! कुछ दिन बाद ऐसा क्या चमत्कार होने वाला है भाभी..?
सुषमा ने सिसकते हुए उसके हाथ को अपनी चूत से अलग किया, और उसके मूसल को पकड़कर अपनी गीली चूत की फांकों पर रगड़ते हुए बोली – सस्स्सिईइ…आअहह….बस तुम देखते जाओ मेरे साजन…
तुम्हारी ये दासी इस घर की नयी मालकिन होगी, जिसकी बात कोई टाल भी नही सकेगा… आहह… अब डाल दो.. अंदर…हआइई….रीए…जालिम…धीरे….मर्रीइ…
उउफ़फ्फ़…जितनी बार इसे अंदर लेती हूँ, ये निगोडा हिला ही देता है मेरे पूरे शरीर को…, हाई..अब पेलो राजा.. ज़ोर्से..आअहह….हहूऊम्म्मन्णन…म्माआ…
खुले आसमान के नीचे एक बार फिर से धमाचौकड़ी शुरू हो गयी…, सुषमा औंधे मुँह बिस्तेर पर पड़ी थी…,
शंकर के मजबूत पट्ट, धपाक से उसकी गान्ड पर पड़ते, जिससे उसकी मुलायम मखमली गान्ड के उभार उपर को हिलोरें मारने लगते…!
उन्हें अपने हाथों में मसल्ते हुए, उनपर थप्पड़ मारते हुए शंकर अपनी पूरे दम-खम लगाकर धक्के लगा रहा था, सुषमा का पूरा बदन हिलने लगता……!
एक के बाद दूसरा, फिर तीसरा ऐसे ही चुदाई के दौर पर दौर चलते रहे…सुषमा की वर्षों से प्यासी चूत लगातार पानी छोड़ती रही…
सुबह के 4 बज गये लेकिन मज़ाल क्या, दोनो में से कोई भी पीछे हटने को तैयार हो…
शंकर नौजवान देसी पट्ठा ताज़ा ताज़ा जवान हुआ था, उपर से उसकी माँ ने खिला-पिलाकर ताक़तवर और चुदाई का मास्टर बना दिया था…
उधर सुषमा अपने जीवन के 25-26 साल यौंही बर्बाद करके अब जाकर दो मजबूत बाहों का सहारा पाकर धन्य हो गयी थी…
जबसे शंकर ने उसे उपर आकर अपनी बाहों में लिया था, तब से एक सेकेंड के लिए भी उसकी चूत सुखी नही रह पाई थी…
कामरस और वीर्य से दोनो के बदन चिप-चिपाने लगे थे, खुले वातावरण में भी एक अजीब सी महक व्याप्त हो गयी थी…
सुषमा इन लम्हों को खुलकर जीना चाहती थी.., लेकिन आख़िर था तो हाड़-मास का बदन ही ना, थकने लगा…
सुषमा थक कर चूर हो चुकी थी, उसने एक मादक अंगड़ाई लेकर शंकर के होंठ चूमते हुए कहा – अब बस करो मेरे चोदु बलम, सुबह होने को है…!
लोग उठने लगेंगे, वैसे भी मेरा बदन पूरी तरह से टूटने लगा है, मुझमें अब खड़े होने की भी हिम्मत नही है…
फिर दोनो ने अपने-अपने कपड़े डाले जो नाम मात्र के ही थे, शंकर उसे अपनी गोद में उठाकर नीचे तक लाया,
सुषमा को उसके कमरे में छोड़ा, और एक प्यारा सा चुंबन उसके होंठों पर करके वो भी अपनी माँ के पास जाकर सो गया………!
शंकर के 12वी के बोर्ड एग्ज़ॅम में अब ज़्यादा समय नही था, स्कूल में लोकल एग्ज़ॅम चल रहे थे और बोर्ड वालों को प्रेपरेशन लीव दे रखी थी…
वो सुबह से ही पढ़ाई में जुटा हुआ था.., तभी उसकी माँ ने आकर कहा – बेटा थोड़ा समय हो तो अपने बापू का खाना पहुँचा देगा खेतों में..?
शंकर – हां माँ क्यों नही, ला दे अभी देकर आता हूँ, वैसे भी पढ़ते-पढ़ते बोर हो गया हूँ सुबह से, थोड़ा मूड फ्रेश भी हो जाएगा…!
एक कपड़े में साग रोटी बाँध कर रंगीली ने उसे पकड़ा दी, शंकर दौड़ता हुआ 10 मिनिट में खेतों में जा पहुँचा और अपने बापू को ढूँढ कर उसे खाना पकड़ा कर वापिस लौटने लगा…!
लाला जी के खेत बहुत दूर-दूर तक फैले हुए थे, वहीं कहीं दूर के खेतों में लल्ली का बापू भी काम कर रहा था और वो भी उसे खाना खिलाकर वापिस लौट रही थी…
रास्ते में लाला जी का आम का बगीचा पड़ता था जिसमें और भी फलों के पेड़ थे,
नयी-नयी जवानी आ रही थी लल्ली पर, एकांत पाते ही उसका दिमाग़ सेक्स की बातें ही सोचने लगता था…!
वैसे भी उसका ज़्यादातर उतना बैठना मोहल्ले की छिनाल टाइप भाभियों-चाचियों के साथ था, जो मौका पड़ते ही उसके अंगों के साथ छेड़खानी कर देती, चटखारे ले लेकर अपनी चुदाई की बातें बताती…
रात को पति के साथ क्या क्या मज़े लिए, कैसे लंड चूसा, चूत चटवाई जिन्हें वो चटखारे ले-लेकर बताती और उन्हें सुनकर लल्ली जैसी कच्ची कली उत्तेजित होकर लंड लेने के लिए व्याकुल होने लगती…!
सलौनी का भाई शंकर उसकी पहली पसंद था, अपनी चूत को सहलाते वक़्त उसका चेहरा उसकी आँखों में ज़रूर ही रहता…!
अब नारी सुलभ, माँ-बापू की इज़्ज़त का ख़याल, किसी भी पर पुरुष को रास्ते चलते पकड़कर तो कह नही सकती थी ले राजा चोद दे मुझे..,
इसलिए जब भी मौका मिलता अपनी चूत में उंगली से कुरेदकर गीली कर लेती थी…!
आज भी जब वो अपने बापू को खाना देकर लौट रही थी, चलते-चलते उसका दिमाग़ सेक्स की बातों की तरफ चला गया, उसकी मुनिया में खुजली होने लगी…
कुछ दूर तक वो अपने लहंगे के उपर से ही उसे खुजाति रही, लेकिन उसकी खुजली बजे कम होने के और बढ़ती जा रही थी, उसकी मुनिया लार टपकाने लगी थी..
इतने में आम का बगीचा आ गया, थोड़ा सा अंदर जाकर वो एक आम के पेड़ की साइड में अपनी टाँगें चौड़ी करके गान्ड ज़मीन पर रख कर बैठ गयी…