hotaks444
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सोते हुए शंकर को जब अपने होंठों पर कुछ गीला-गीला सा एहसास हुआ तो उसकी नींद खुल गयी,
माँ को अपने पास सोते देख कर उसने उसे कस कर अपने बदन से सटा लिया………..!
बेटे से चिपकते ही रंगीली दीवानावर उसके चेहरे को चूमने लगी, शंकर की एक टाँग अपने उपर रखकर उसने अपनी मुनिया को उसके लंड से सटा दिया…!
शंकर का लंड अपनी माँ की चूत की खुश्बू सूंघते ही नींद से जाग उठा…!
उसका एहसास होते ही रंगीली ने उसे मुट्ठी में भरते हुए कहा – इतने दिन क्या-क्या किया वहाँ शहर में…? इसको कुछ खुराक मिली कि नही..?
शंकर अपनी माँ की चुचियों को सहलाते हुए बोला – मत पूछ माँ, तेरे बेटे के लिए वहाँ स्वर्ग था, दो दो अप्सरायें हर समय सेवा में हाज़िर रहती थी…!
रंगीली उसके लंड को सहलाते हुए बोली – क्या..? दोनो ही..,
सुप्रिया का तो पता है मुझे… लेकिन प्रिया हिटलरनी कैसे चक्कर में आ गई.. वो तो साली कितनी कड़क मिज़ाज है…, आदमी को आदमी नही समझती!
शंकर ने अपनी माँ के होंठों को चूमा फिर उसके चोली के बटन खोलते हुए बोला – उसी ने तो मेरा क्या जबरदस्त स्वागत किया माँ, किसी राजकुमार की तरह रखा, तेरे बेटे का हुलिया ही बदल दिया उन्होने..,
फिर शंकर ने प्रिया के साथ जो-जो हुआ वो सब ज्यों का त्यों बता दिया.., रंगीली ने उसके पाजामे को नीचे खिसका दिया,
उसके अंडरवेर में हाथ डालकर उसके मूसल हो चुके लंड को आगे-पीछे करते हुए बोली – इसलिए उन परियों की चुदाई में अपनी माँ को भी भूल गया…
तेरे बिना ये एक महीना मेने कैसे निकाला है, मे तुझे बता नही सकती..,
शंकर ने उसकी नंगी चुचियों को मसलते हुए कहा – सच कहूँ माँ, जितना मज़ा मुझे तेरे साथ आता है उतना मज़ा मुझे किसी और के साथ नही आया..,
तू सचमुच आनंद का सागर है, जितना गहरे उतरने की कोशिश करूँ, और उतरने का मन करता है..,
ये कहते कहते उसने उसके लहंगे का नाडा भी खोल दिया, और उसे नीचे खिसका कर अपनी उंगली अपनी माँ की गान्ड की दरार में घूमने लगा…!
रंगीली ने उसका लंड बाहर निकल लिया, उसे पकड़कर अपनी गीली चूत की फांकों के उपर घूमाते हुए सिसक कर बोली -…
सस्स्सिईइ…आअहह…. शंकरा.. तेरा ये लंड ही इतना प्यारा है, हर कोई चूत खोलकर लेट जाए.., पर ये बता उन दोनो में से मज़ा कोन्सि ज़्यादा देती है…!
शंकर अपने लंड को माँ की चूत में दबाते हुए बोला – आअहह…माँ, कितनी गर्मी है तेरे अंदर..,
प्रिया दीदी बहुत रसीली औरत है, हर समय उसकी चूत गीली ही मिली मुझे…! बहुत मज़ा आया उसे चोदने में…!
रंगीली से अब और सबर नही हो पा रहा था, सो उसने शंकर की कमर में हाथ डालकर उसे अपने उपर ले लिया, और खुद सीधी लेट कर अपनी टाँगें खोल दी…!
रंगीली से अब और सबर नही हो पा रहा था, सो उसने शंकर की कमर में हाथ डालकर उसे अपने उपर ले लिया, और खुद सीधी लेट कर अपनी टाँगें खोल दी…!
सस्सिईइ…आआहह…अब पूरा डाल दे मेरे लाल.., वैसे वो साली हिटलरनी दिखती भी मस्त है रे, सुप्रिया तो अभी भी बच्ची जैसी ही लगती है…!
शंकर ने पूरा का पूरा लंड अपनी माँ की चूत में उतार दिया, और धीरे-धीरे धक्के लगाते हुए बोला…!
लेकिन माँ मेरी एक बात समझ में नही आई, प्रिया एक बच्ची की माँ भी है, उसका पति भी देखने से तो लगता है, उसे भरपूर प्यार देता होगा, फिर उसने मुझे क्यों पटाया..?
आअहह…सस्सिईइ…छोड़ ना उसे, तू अपनी माँ को चोद, निकाल मेरी गर्मी, एक महीने से भरी पड़ी है…,
आहह…तेरे बाप का लंड वहाँ तक नही पहुँचता…, और तेज.. हां, हाए.. अब आया मज़ा.. फाद्दद्ड….उऊयईीई….म्माआ….गाइिईई….र्रिि…
उपर से शंकर के धक्के, नीचे से रंगीली अपनी कमर उचका देती, दोनो की मस्त ट्यूनिंग सेट हो चुकी थी..,
ताबड-तोड़ चुदाई से रंगीली की चूत पानी छोड़ बैठी, उसकी एडीया शंकर की गान्ड पर कस गयी, और वो अपनी कमर उठाकर उसके लंड से जोंक की तरह चिपक गयी…
लेकिन शंकर अभी इंटर्वल तक भी नही पहुँचा था, सो वो उसे मसोसता ही जा रहा था उसने अपने धक्कों में कोई रियायत नही आने दी…!
रंगीली कुछ ठंडी पड़ गयी, उसके चूतड़ पर चपत लगाकर बोली – मेरे घोड़े.., थोड़ा रुक…, मेरी चूत चाट कर फिर से गरम कर…, फिर मे तुझे चोदुन्गि…!
कुछ देर दोनो माँ-बेटे एक दूसरे के उपर लिपटे एक दूसरे के अंगों को चूस्ते चाट’ते रहे, जब रंगीली फिर से गरम हो गयी तो वो अपनी गदराई हुई गान्ड लेकर अपने बेटे के लंड पर बैठ गयी…!
रंगीली उपर से उठक-बैठक करने लगी और शंकर नीचे से अपनी कमर उचका कर मस्ती में चूर अपनी माँ की ओखली की कुटाई करने लगा…
इसी तरह दोनो माँ-बेटे एक दूसरे के साथ देर रात तक मस्ती करते रहे, एक दूसरे की प्यास बुझाते रहे.., इस बात से बेख़बर कि उन दोनो की इस रासलीला का कोई तीसरा भी मज़ा ले रहा है…!
जब रंगीली पूरी तरह संतुष्ट हो गयी, तो अपने बेटे के लंड को चूमकर बोली – कल सुषमा से भी मिल लेना, बेचारी बहुत याद करती है तुझे..,
अब वो एक दो महीने और मज़े ले सकती है तेरे इस मूसल के, फिर तो बंद करना पड़ेगा…, इतना कहकर वो अपनी बेटी के पास चली गयी, और शंकर अपनी माँ को चोदने की खुमारी में चूर नींद में डूब गया…!
दूसरे दिन नहा-धोकर रंगीली और उसकी बेटी ने शंकर के लाए हुए नये-नये कपड़े पहने, सारी में रंगीली का अप्सरा जैसा रूप और ज़्यादा निखर गया था…
उसे देखते ही सेठानी की झान्टे सुलग गयी, लेकिन लाला जी की कल की डाँट ने उसने चुप रहने पर मजबूर करके रखा था…!
लाला जी तो रंगीली को देखकर कंट्रोल ही नही कर पाए, और अपनी बैठक में ले जाकर उन्होने रंगीली का रस्पान भी कर लिया…!
ज़्यादा वो कुछ इसलिए नही कर पाए, क्योंकि लाजो किसी मधुमक्खी की तरह हर समय उनके आस-पास ही मंडराती रहती थी…!
लाजो ने भी रंगीली के इस रूप की तारीफ की, फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोली – काकी, आपके उस नुस्खे से तो अब मेरी उसमें पानी भी नही आता है..,
ससुरजी भी बोल रहे थे कि तुम्हारी चूत गीली क्यों नही होती, लंड सूखा सा ही लगता रहता है…, चुदाई में भी मज़ा नही आरहा…!
रंगीली – वो नुस्ख़ा तो मेरे मायके की एक बहुत ही होशियार औरत ने बताया था, जिसे औरतों के बारे में बहुत जानकारी है..,
माँ को अपने पास सोते देख कर उसने उसे कस कर अपने बदन से सटा लिया………..!
बेटे से चिपकते ही रंगीली दीवानावर उसके चेहरे को चूमने लगी, शंकर की एक टाँग अपने उपर रखकर उसने अपनी मुनिया को उसके लंड से सटा दिया…!
शंकर का लंड अपनी माँ की चूत की खुश्बू सूंघते ही नींद से जाग उठा…!
उसका एहसास होते ही रंगीली ने उसे मुट्ठी में भरते हुए कहा – इतने दिन क्या-क्या किया वहाँ शहर में…? इसको कुछ खुराक मिली कि नही..?
शंकर अपनी माँ की चुचियों को सहलाते हुए बोला – मत पूछ माँ, तेरे बेटे के लिए वहाँ स्वर्ग था, दो दो अप्सरायें हर समय सेवा में हाज़िर रहती थी…!
रंगीली उसके लंड को सहलाते हुए बोली – क्या..? दोनो ही..,
सुप्रिया का तो पता है मुझे… लेकिन प्रिया हिटलरनी कैसे चक्कर में आ गई.. वो तो साली कितनी कड़क मिज़ाज है…, आदमी को आदमी नही समझती!
शंकर ने अपनी माँ के होंठों को चूमा फिर उसके चोली के बटन खोलते हुए बोला – उसी ने तो मेरा क्या जबरदस्त स्वागत किया माँ, किसी राजकुमार की तरह रखा, तेरे बेटे का हुलिया ही बदल दिया उन्होने..,
फिर शंकर ने प्रिया के साथ जो-जो हुआ वो सब ज्यों का त्यों बता दिया.., रंगीली ने उसके पाजामे को नीचे खिसका दिया,
उसके अंडरवेर में हाथ डालकर उसके मूसल हो चुके लंड को आगे-पीछे करते हुए बोली – इसलिए उन परियों की चुदाई में अपनी माँ को भी भूल गया…
तेरे बिना ये एक महीना मेने कैसे निकाला है, मे तुझे बता नही सकती..,
शंकर ने उसकी नंगी चुचियों को मसलते हुए कहा – सच कहूँ माँ, जितना मज़ा मुझे तेरे साथ आता है उतना मज़ा मुझे किसी और के साथ नही आया..,
तू सचमुच आनंद का सागर है, जितना गहरे उतरने की कोशिश करूँ, और उतरने का मन करता है..,
ये कहते कहते उसने उसके लहंगे का नाडा भी खोल दिया, और उसे नीचे खिसका कर अपनी उंगली अपनी माँ की गान्ड की दरार में घूमने लगा…!
रंगीली ने उसका लंड बाहर निकल लिया, उसे पकड़कर अपनी गीली चूत की फांकों के उपर घूमाते हुए सिसक कर बोली -…
सस्स्सिईइ…आअहह…. शंकरा.. तेरा ये लंड ही इतना प्यारा है, हर कोई चूत खोलकर लेट जाए.., पर ये बता उन दोनो में से मज़ा कोन्सि ज़्यादा देती है…!
शंकर अपने लंड को माँ की चूत में दबाते हुए बोला – आअहह…माँ, कितनी गर्मी है तेरे अंदर..,
प्रिया दीदी बहुत रसीली औरत है, हर समय उसकी चूत गीली ही मिली मुझे…! बहुत मज़ा आया उसे चोदने में…!
रंगीली से अब और सबर नही हो पा रहा था, सो उसने शंकर की कमर में हाथ डालकर उसे अपने उपर ले लिया, और खुद सीधी लेट कर अपनी टाँगें खोल दी…!
रंगीली से अब और सबर नही हो पा रहा था, सो उसने शंकर की कमर में हाथ डालकर उसे अपने उपर ले लिया, और खुद सीधी लेट कर अपनी टाँगें खोल दी…!
सस्सिईइ…आआहह…अब पूरा डाल दे मेरे लाल.., वैसे वो साली हिटलरनी दिखती भी मस्त है रे, सुप्रिया तो अभी भी बच्ची जैसी ही लगती है…!
शंकर ने पूरा का पूरा लंड अपनी माँ की चूत में उतार दिया, और धीरे-धीरे धक्के लगाते हुए बोला…!
लेकिन माँ मेरी एक बात समझ में नही आई, प्रिया एक बच्ची की माँ भी है, उसका पति भी देखने से तो लगता है, उसे भरपूर प्यार देता होगा, फिर उसने मुझे क्यों पटाया..?
आअहह…सस्सिईइ…छोड़ ना उसे, तू अपनी माँ को चोद, निकाल मेरी गर्मी, एक महीने से भरी पड़ी है…,
आहह…तेरे बाप का लंड वहाँ तक नही पहुँचता…, और तेज.. हां, हाए.. अब आया मज़ा.. फाद्दद्ड….उऊयईीई….म्माआ….गाइिईई….र्रिि…
उपर से शंकर के धक्के, नीचे से रंगीली अपनी कमर उचका देती, दोनो की मस्त ट्यूनिंग सेट हो चुकी थी..,
ताबड-तोड़ चुदाई से रंगीली की चूत पानी छोड़ बैठी, उसकी एडीया शंकर की गान्ड पर कस गयी, और वो अपनी कमर उठाकर उसके लंड से जोंक की तरह चिपक गयी…
लेकिन शंकर अभी इंटर्वल तक भी नही पहुँचा था, सो वो उसे मसोसता ही जा रहा था उसने अपने धक्कों में कोई रियायत नही आने दी…!
रंगीली कुछ ठंडी पड़ गयी, उसके चूतड़ पर चपत लगाकर बोली – मेरे घोड़े.., थोड़ा रुक…, मेरी चूत चाट कर फिर से गरम कर…, फिर मे तुझे चोदुन्गि…!
कुछ देर दोनो माँ-बेटे एक दूसरे के उपर लिपटे एक दूसरे के अंगों को चूस्ते चाट’ते रहे, जब रंगीली फिर से गरम हो गयी तो वो अपनी गदराई हुई गान्ड लेकर अपने बेटे के लंड पर बैठ गयी…!
रंगीली उपर से उठक-बैठक करने लगी और शंकर नीचे से अपनी कमर उचका कर मस्ती में चूर अपनी माँ की ओखली की कुटाई करने लगा…
इसी तरह दोनो माँ-बेटे एक दूसरे के साथ देर रात तक मस्ती करते रहे, एक दूसरे की प्यास बुझाते रहे.., इस बात से बेख़बर कि उन दोनो की इस रासलीला का कोई तीसरा भी मज़ा ले रहा है…!
जब रंगीली पूरी तरह संतुष्ट हो गयी, तो अपने बेटे के लंड को चूमकर बोली – कल सुषमा से भी मिल लेना, बेचारी बहुत याद करती है तुझे..,
अब वो एक दो महीने और मज़े ले सकती है तेरे इस मूसल के, फिर तो बंद करना पड़ेगा…, इतना कहकर वो अपनी बेटी के पास चली गयी, और शंकर अपनी माँ को चोदने की खुमारी में चूर नींद में डूब गया…!
दूसरे दिन नहा-धोकर रंगीली और उसकी बेटी ने शंकर के लाए हुए नये-नये कपड़े पहने, सारी में रंगीली का अप्सरा जैसा रूप और ज़्यादा निखर गया था…
उसे देखते ही सेठानी की झान्टे सुलग गयी, लेकिन लाला जी की कल की डाँट ने उसने चुप रहने पर मजबूर करके रखा था…!
लाला जी तो रंगीली को देखकर कंट्रोल ही नही कर पाए, और अपनी बैठक में ले जाकर उन्होने रंगीली का रस्पान भी कर लिया…!
ज़्यादा वो कुछ इसलिए नही कर पाए, क्योंकि लाजो किसी मधुमक्खी की तरह हर समय उनके आस-पास ही मंडराती रहती थी…!
लाजो ने भी रंगीली के इस रूप की तारीफ की, फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोली – काकी, आपके उस नुस्खे से तो अब मेरी उसमें पानी भी नही आता है..,
ससुरजी भी बोल रहे थे कि तुम्हारी चूत गीली क्यों नही होती, लंड सूखा सा ही लगता रहता है…, चुदाई में भी मज़ा नही आरहा…!
रंगीली – वो नुस्ख़ा तो मेरे मायके की एक बहुत ही होशियार औरत ने बताया था, जिसे औरतों के बारे में बहुत जानकारी है..,