desiaks
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मुकेश बीच पर पहुंचा ।
बीच पर उस घड़ी करनानी और नवागन्तुका सुलक्षणा घटके के अलावा कोई नहीं था । दोनों अगल बगल पड़ी बीच चेयर्स पर पसरे हुए थे और मौसम का आनन्द ले रहे थे । दोनों उस वक्त स्विमिंग कास्ट्यूम में थे और आंखों पर काले चश्मे चढाये थे ।
करनानी ने उसे देखा तो हाथ के इशारे से उसे करीब बुलाया ।
“कहां भटक रहे हो ?” - वो बोला ।
“भटक ही रहा हूं ।” - मुकेश बोला, उसने एक गुप्त निगाह सुलक्षणा पर डाली ।
“समझ लो तुम्हारी भटकन खत्म हुई । बैठो ।”
“थैंक्यू ।”
“इनसे मिलो । मैडम का नाम सुलक्षणा घटके है । और सुलक्षणा ये मुकेश है । मुकेश माथुर । मुम्बई का नामी वकील है ।”
“नामी नहीं ।” - मुकेश तनिक मुस्कराता बोला ।
वो हंसी ।
“इधर कैसा लगा ? माहौल पसन्द आया, मैडम ?”
“हां । बीच तो बहुत ही पसन्द आया । बहुत शान्ति है यहां । बहुत सकून है । कुछ दिन तो अब इधर ही डेरा है ।”
“वैलकम, मैडम ।”
“बीच पर स्विमिंग को लिये नहीं आये, मिस्टर महेश ?”
“जी नहीं । मैं तो यूं ही करनानी को देख कर चला आया था । और मैडम, मेरा नाम मुकेश है ।”
“यस । मुकेश । मुकेश महाजन...”
“माथुर ।”
“तुम से मिलकर खुशी हुई, मिस्टर मुकेश माथुर ।”
“मेरे को भी ।”
एकाएक वो उठ कर खड़ी हुई । उसने अपना चश्मा उतारकर अपने बीच बैग में डाला और उसमें से निकाल कर बालों पर वाटरफ्रूफ कैप चढाई ।
मुकेश ने देखा कि उसकी आंखें भूरी थीं और खूब बड़ी बड़ी थीं ।
“तुम आ रहे हो ?” - वो करनानी से बोली ।
“तुम चलो” - करनानी बोला - “मैं एक मिनट में आता हूं ।”
कूल्हे झुलाती वो वहां से रुखसत हुई और समुद्र की ओर बढ चली ।
“थाने में कैसी बीती ?” - पीछे करनानी बोला ।
“थाने में ?”
“तुम कह रहे थे न कि इन्स्पेक्टर अठवले का बुलावा था !”
“अच्छा, वो ।”
“हां ।”
“मेरे पर क्या बीतनी थी ? मैंने क्या किया है ?”
“अरे, बात क्या हुई उधर ? केस का कोई आधा पौना खुलासा किया उस इन्स्पेक्टर साईं ने ?”
“हां कुछ तो किया ।”
“क्या ?”
“फिलहाल उसकी निगाहेकरम घिमिरे पर है ।”
“यानी कि देवसरे का कातिल वो ?”
“हां ।”
“दो टूक बोला इन्स्पेक्टर ऐसा ?”
“यही समझ लो । बहरहाल पुलिस की निगाह में प्राइम सस्पैक्ट अब वो ही है ।”
“सच पूछो तो मेरी भी निगाह में ।”
“अच्छा ! कोई खास बात ?”
“खास तो कोई नहीं लेकिन... वो क्या है कि इस खामोश संजीदासूरत शख्स में मुझे वो खसूसियात दिखाई देती हैं जो गहरे पानी में होती हैं । यानी कि ऊपर शान्ति नीचे हलचल । हलचल सतह पर आ जायेगी तो शान्ति भंग होगी या नहीं होगी ?”
“होगी ।”
“यही हुआ । उसने अपना भविष्य बर्बाद होता देखा तो हत्थे से उखड़ गया ।”
“और मिस्टर देवसरे का कत्ल कर बैठा !”
“जाहिर है ।”
“चलो, मान लिया । मान लिया कि यूं उसने अपना भविष्य बर्बाद होने में बचा लिया । फिर उसने रिंकी के कत्ल की कोशिश क्यों की ?”
“रिंकी के कत्ल की कोशिश ! पागल हुए हो ?”
“ये हकीकत है ?”
“क्या हकीकत है ?”
“कल रात किसी ने रिंकी को खलास करने की कोशिश की थी ।”
“कैसे ? क्या किस्सा है ?”
मुकेश ने किस्सा बयान किया । ऐसा करते वक्त किसी विशिष्ट प्रतिक्रिया की अपेक्षा में उसने हर क्षण करनानी के चेहरे पर अपनी निगाह गड़ाये रखी लेकिन वो इस बात से बेखबर निरन्तर परे समुद्र की ओर देखता रहा ।
“कमाल है !” - वो खामोश हुआ तो करनानी बोला - “उस इन्स्पेक्टर को इस वाकये की खबर है ?”
“हां ।”
“वो क्या कहता है ?”
“अभी खास कुछ नहीं कहता ।”
“नाखास क्या कहता है । “
“कहता है एक्सीडेंट था । इरादायेकत्ल जैसी जरूरी नहीं कि कोई बात हो ।”
“और ? कुछ तो और कहा होगा ?”
“महाडिक पर अपना शक जाहिर किया था ।”
“अगर उसकी कार की एक्सीडेंट में शिरकत होती तो...”
“ऐसा अहमक कोई होता है ?”
“ये भी ठीक है । अपनी कार से ऐसा करतब तो कोई अहमक ही कर सकता है ।”
“जो कि महाडिक नहीं है ।”
“कहां, साईं ! वो तो बहुत पहुंचा हुआ आदमी है जो कहीं पहुंचने के लिये करतब पर करतब कर रहा है ।”
“करतब पर करतब ?”
“क्या पता परसों रात तुम्हारे पर हमला भी उसी ने किया हो ?”
“ऐसा ?”
“जब वो मौकायवारदात के करीब देखा गया था तो ऐसा उसने क्यों नहीं किया हो सकता ?”
“शायद तुम ठीक कह रहे हो ।”
“लिहाजा मानते हो कि मकतूल के कॉटेज में तुम पर पीछे से हमला करने वाला शख्स महाडिक हो सकता है ?”
“हां ।”
“फिर देवसरे का कातिल भी यकीनन वही होगा ।”
“ये तो जरूरी नहीं ।”
“क्यों ?”
“वो कत्ल हो चुकने के बाद वहां पहुंचा हो सकता है ।”
“हिमायत कर रहे हो उसकी ?”
“एक तर्कसंगत बात कह रहा हूं । ये कह रहा हूं कि ये भी एक सम्भावना है, भले ही असलियत कुछ और हो । फर्ज करो कि तुम्हारे कदम किसी ऐसी जगह पड़ते हैं जहां उसी घड़ी एक खून होकर हटा होता है, ऊपर से मैं आ जाता हूं तो क्या तुम्हारी पहली, सहज और स्वाभाविक प्रतिक्रिया ये नहीं होगी कि मुझे तुम्हारी वहां मौजूदगी की खबर न लगे ?”
“होगी तो सही ।”
“सो देयर ।”
“तुम्हारी दलील में दम है लेकिन जब बात सम्भावना की है तो सम्भावना ये भी तो बराबर है कि वो ही कातिल है ।”
“लेकिन...”
“लेकिन की गुंजायश सदा होती है, हर जगह होती है, यहां भी है लेकिन पहले सुन लो कि मैं ये बात क्यों कह रहा हूं ।”
“क्यों कह रहे हो ?”
“फर्ज करो कि वो ही देवसरे का कातिल है और उसी ने रिंकी को भी खलास करने की कोशिश की थी क्योंकि वो उसके खिलाफ गवाह थी कि कत्ल के वक्त के आसपास वो मौकायवारदात पर था । ठीक ?”
“ठीक ।”
“लेकिन उसकी कोशिश कामयाब तो हुई नहीं । गवाह तो जिन्दा है । अब मेरा सवाल ये है कि जिस कोशिश में वो एक बार नाकाम रहा, वो ही कोशिश वो दोबारा नहीं करेगा ?”
“ये तो तुम बड़ी खतरनाक बात कह रहे हो !”
“पुटड़े, बात खतरनाक तभी है जबकी देवसरे का कातिल महाडिक हो क्योंकि रिंकी महाडिक के खिलाफ गवाह है लेकिन अगर देवसरे का कातिल महाडिक नहीं है तो हम चाहें या न चाहें हमें ये बात माननी पड़ेगी कि रिंकी के एक्सीडेंट से भी उसका कोई लेना देना हो सकता ।”
“तो फिर कातिल कौन है ? और क्यों वो रिंकी के पीछे पड़ा है ?”
“यही तो वो लाख रुपये का सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है ।”
तभी समुद्र में कमर तक पानी में खड़ी सुलक्षणा ने उसे आवाज लगायी और उसकी तरफ हाथ हिला कर उसे समुद्र में उतरने का इशारा किया ।
“जाता हूं ।” - वो उठता हुआ बोला - “नयी माशूक उतावली हो रही है । तुम पुरानी माशूक का ध्यान रखना ।”
“किसका ?” - मुकेश अचकचा कर बोला ।
“रिंकी का, भई, और किसका ? जानते नहीं हो कि वो किस कदर तुम पर फिदा है !”
“फट्टा मार रहे हो ।”
“अरे, नौजवान लड़की है, हसीन लड़की है, ऐसी प्राइम प्रॉडक्ट डैमेज न हो इसका खयाल तो हर किसी को रखना चाहिये । हर किसी में तुम भी एक नग हो इसलिये बोल दिया ।”
“मुझे लगा था कि तुम उसे खास मेरी माशूक बता रहे थे ।”
“पुटड़े, ये जो हुस्न वाले होते हैं न, इनका कोई एक जना मालिक नहीं बन सकता लेकिन ये सबके मालिक बन सकते हैं ।”
“ऐसा ?”
“हां । और हुस्नवालों की अपनी सरकार होती है । मालूम ?”
“कहते तो हैं अलंकारिक ढंग से ऐसा ।”
“बराबर होती है । अपनी सरकार होती है, अपनी नेवी होती है, अपनी आर्मी होती है, अपनी एयरफोर्स होती है ।”
“नानसेंस ।”
“जब सरकार होगी तो अमलदारी नहीं होगी ?”
“अटर नानसेंस ।”
“अब सोचो, इतने तामझाम का कोई अकेला मालिक कैसे बन सकता है ?”
“तुम मजाक कर रहे हो ।”
वो हंसा । फिर फौरन संजीदा हुआ ।
“कोशिश नहीं कर सकते हो” - वो बोला - “तो दुआ करो कि बेचारी को कुछ न हो । मैं भी करूंगा ।”
बीच पर उस घड़ी करनानी और नवागन्तुका सुलक्षणा घटके के अलावा कोई नहीं था । दोनों अगल बगल पड़ी बीच चेयर्स पर पसरे हुए थे और मौसम का आनन्द ले रहे थे । दोनों उस वक्त स्विमिंग कास्ट्यूम में थे और आंखों पर काले चश्मे चढाये थे ।
करनानी ने उसे देखा तो हाथ के इशारे से उसे करीब बुलाया ।
“कहां भटक रहे हो ?” - वो बोला ।
“भटक ही रहा हूं ।” - मुकेश बोला, उसने एक गुप्त निगाह सुलक्षणा पर डाली ।
“समझ लो तुम्हारी भटकन खत्म हुई । बैठो ।”
“थैंक्यू ।”
“इनसे मिलो । मैडम का नाम सुलक्षणा घटके है । और सुलक्षणा ये मुकेश है । मुकेश माथुर । मुम्बई का नामी वकील है ।”
“नामी नहीं ।” - मुकेश तनिक मुस्कराता बोला ।
वो हंसी ।
“इधर कैसा लगा ? माहौल पसन्द आया, मैडम ?”
“हां । बीच तो बहुत ही पसन्द आया । बहुत शान्ति है यहां । बहुत सकून है । कुछ दिन तो अब इधर ही डेरा है ।”
“वैलकम, मैडम ।”
“बीच पर स्विमिंग को लिये नहीं आये, मिस्टर महेश ?”
“जी नहीं । मैं तो यूं ही करनानी को देख कर चला आया था । और मैडम, मेरा नाम मुकेश है ।”
“यस । मुकेश । मुकेश महाजन...”
“माथुर ।”
“तुम से मिलकर खुशी हुई, मिस्टर मुकेश माथुर ।”
“मेरे को भी ।”
एकाएक वो उठ कर खड़ी हुई । उसने अपना चश्मा उतारकर अपने बीच बैग में डाला और उसमें से निकाल कर बालों पर वाटरफ्रूफ कैप चढाई ।
मुकेश ने देखा कि उसकी आंखें भूरी थीं और खूब बड़ी बड़ी थीं ।
“तुम आ रहे हो ?” - वो करनानी से बोली ।
“तुम चलो” - करनानी बोला - “मैं एक मिनट में आता हूं ।”
कूल्हे झुलाती वो वहां से रुखसत हुई और समुद्र की ओर बढ चली ।
“थाने में कैसी बीती ?” - पीछे करनानी बोला ।
“थाने में ?”
“तुम कह रहे थे न कि इन्स्पेक्टर अठवले का बुलावा था !”
“अच्छा, वो ।”
“हां ।”
“मेरे पर क्या बीतनी थी ? मैंने क्या किया है ?”
“अरे, बात क्या हुई उधर ? केस का कोई आधा पौना खुलासा किया उस इन्स्पेक्टर साईं ने ?”
“हां कुछ तो किया ।”
“क्या ?”
“फिलहाल उसकी निगाहेकरम घिमिरे पर है ।”
“यानी कि देवसरे का कातिल वो ?”
“हां ।”
“दो टूक बोला इन्स्पेक्टर ऐसा ?”
“यही समझ लो । बहरहाल पुलिस की निगाह में प्राइम सस्पैक्ट अब वो ही है ।”
“सच पूछो तो मेरी भी निगाह में ।”
“अच्छा ! कोई खास बात ?”
“खास तो कोई नहीं लेकिन... वो क्या है कि इस खामोश संजीदासूरत शख्स में मुझे वो खसूसियात दिखाई देती हैं जो गहरे पानी में होती हैं । यानी कि ऊपर शान्ति नीचे हलचल । हलचल सतह पर आ जायेगी तो शान्ति भंग होगी या नहीं होगी ?”
“होगी ।”
“यही हुआ । उसने अपना भविष्य बर्बाद होता देखा तो हत्थे से उखड़ गया ।”
“और मिस्टर देवसरे का कत्ल कर बैठा !”
“जाहिर है ।”
“चलो, मान लिया । मान लिया कि यूं उसने अपना भविष्य बर्बाद होने में बचा लिया । फिर उसने रिंकी के कत्ल की कोशिश क्यों की ?”
“रिंकी के कत्ल की कोशिश ! पागल हुए हो ?”
“ये हकीकत है ?”
“क्या हकीकत है ?”
“कल रात किसी ने रिंकी को खलास करने की कोशिश की थी ।”
“कैसे ? क्या किस्सा है ?”
मुकेश ने किस्सा बयान किया । ऐसा करते वक्त किसी विशिष्ट प्रतिक्रिया की अपेक्षा में उसने हर क्षण करनानी के चेहरे पर अपनी निगाह गड़ाये रखी लेकिन वो इस बात से बेखबर निरन्तर परे समुद्र की ओर देखता रहा ।
“कमाल है !” - वो खामोश हुआ तो करनानी बोला - “उस इन्स्पेक्टर को इस वाकये की खबर है ?”
“हां ।”
“वो क्या कहता है ?”
“अभी खास कुछ नहीं कहता ।”
“नाखास क्या कहता है । “
“कहता है एक्सीडेंट था । इरादायेकत्ल जैसी जरूरी नहीं कि कोई बात हो ।”
“और ? कुछ तो और कहा होगा ?”
“महाडिक पर अपना शक जाहिर किया था ।”
“अगर उसकी कार की एक्सीडेंट में शिरकत होती तो...”
“ऐसा अहमक कोई होता है ?”
“ये भी ठीक है । अपनी कार से ऐसा करतब तो कोई अहमक ही कर सकता है ।”
“जो कि महाडिक नहीं है ।”
“कहां, साईं ! वो तो बहुत पहुंचा हुआ आदमी है जो कहीं पहुंचने के लिये करतब पर करतब कर रहा है ।”
“करतब पर करतब ?”
“क्या पता परसों रात तुम्हारे पर हमला भी उसी ने किया हो ?”
“ऐसा ?”
“जब वो मौकायवारदात के करीब देखा गया था तो ऐसा उसने क्यों नहीं किया हो सकता ?”
“शायद तुम ठीक कह रहे हो ।”
“लिहाजा मानते हो कि मकतूल के कॉटेज में तुम पर पीछे से हमला करने वाला शख्स महाडिक हो सकता है ?”
“हां ।”
“फिर देवसरे का कातिल भी यकीनन वही होगा ।”
“ये तो जरूरी नहीं ।”
“क्यों ?”
“वो कत्ल हो चुकने के बाद वहां पहुंचा हो सकता है ।”
“हिमायत कर रहे हो उसकी ?”
“एक तर्कसंगत बात कह रहा हूं । ये कह रहा हूं कि ये भी एक सम्भावना है, भले ही असलियत कुछ और हो । फर्ज करो कि तुम्हारे कदम किसी ऐसी जगह पड़ते हैं जहां उसी घड़ी एक खून होकर हटा होता है, ऊपर से मैं आ जाता हूं तो क्या तुम्हारी पहली, सहज और स्वाभाविक प्रतिक्रिया ये नहीं होगी कि मुझे तुम्हारी वहां मौजूदगी की खबर न लगे ?”
“होगी तो सही ।”
“सो देयर ।”
“तुम्हारी दलील में दम है लेकिन जब बात सम्भावना की है तो सम्भावना ये भी तो बराबर है कि वो ही कातिल है ।”
“लेकिन...”
“लेकिन की गुंजायश सदा होती है, हर जगह होती है, यहां भी है लेकिन पहले सुन लो कि मैं ये बात क्यों कह रहा हूं ।”
“क्यों कह रहे हो ?”
“फर्ज करो कि वो ही देवसरे का कातिल है और उसी ने रिंकी को भी खलास करने की कोशिश की थी क्योंकि वो उसके खिलाफ गवाह थी कि कत्ल के वक्त के आसपास वो मौकायवारदात पर था । ठीक ?”
“ठीक ।”
“लेकिन उसकी कोशिश कामयाब तो हुई नहीं । गवाह तो जिन्दा है । अब मेरा सवाल ये है कि जिस कोशिश में वो एक बार नाकाम रहा, वो ही कोशिश वो दोबारा नहीं करेगा ?”
“ये तो तुम बड़ी खतरनाक बात कह रहे हो !”
“पुटड़े, बात खतरनाक तभी है जबकी देवसरे का कातिल महाडिक हो क्योंकि रिंकी महाडिक के खिलाफ गवाह है लेकिन अगर देवसरे का कातिल महाडिक नहीं है तो हम चाहें या न चाहें हमें ये बात माननी पड़ेगी कि रिंकी के एक्सीडेंट से भी उसका कोई लेना देना हो सकता ।”
“तो फिर कातिल कौन है ? और क्यों वो रिंकी के पीछे पड़ा है ?”
“यही तो वो लाख रुपये का सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है ।”
तभी समुद्र में कमर तक पानी में खड़ी सुलक्षणा ने उसे आवाज लगायी और उसकी तरफ हाथ हिला कर उसे समुद्र में उतरने का इशारा किया ।
“जाता हूं ।” - वो उठता हुआ बोला - “नयी माशूक उतावली हो रही है । तुम पुरानी माशूक का ध्यान रखना ।”
“किसका ?” - मुकेश अचकचा कर बोला ।
“रिंकी का, भई, और किसका ? जानते नहीं हो कि वो किस कदर तुम पर फिदा है !”
“फट्टा मार रहे हो ।”
“अरे, नौजवान लड़की है, हसीन लड़की है, ऐसी प्राइम प्रॉडक्ट डैमेज न हो इसका खयाल तो हर किसी को रखना चाहिये । हर किसी में तुम भी एक नग हो इसलिये बोल दिया ।”
“मुझे लगा था कि तुम उसे खास मेरी माशूक बता रहे थे ।”
“पुटड़े, ये जो हुस्न वाले होते हैं न, इनका कोई एक जना मालिक नहीं बन सकता लेकिन ये सबके मालिक बन सकते हैं ।”
“ऐसा ?”
“हां । और हुस्नवालों की अपनी सरकार होती है । मालूम ?”
“कहते तो हैं अलंकारिक ढंग से ऐसा ।”
“बराबर होती है । अपनी सरकार होती है, अपनी नेवी होती है, अपनी आर्मी होती है, अपनी एयरफोर्स होती है ।”
“नानसेंस ।”
“जब सरकार होगी तो अमलदारी नहीं होगी ?”
“अटर नानसेंस ।”
“अब सोचो, इतने तामझाम का कोई अकेला मालिक कैसे बन सकता है ?”
“तुम मजाक कर रहे हो ।”
वो हंसा । फिर फौरन संजीदा हुआ ।
“कोशिश नहीं कर सकते हो” - वो बोला - “तो दुआ करो कि बेचारी को कुछ न हो । मैं भी करूंगा ।”