Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री - Page 2 - SexBaba
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Gandi Kahani सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री



11

आप जानते ही है, विजय एक घुटा हुआ शख्स है.
उसने उस शब्द का इस्तेमाल किया ही उसे चौंकाने के लिए था बल्कि यदि ये कहा जाए तो ज़्यादा मुनासिब होगा कि उसे खोलने के लिए किया था क्योंकि जानता था, ऐसे समय पर लोग काम के सवालो का जवाब कम देते है, रोने-धोने मे ज़्यादा टाइम लगाते है, उसकी टेक्नीक से मिसेज़. बिजलानी तुरंत ही लाइन पर आती नज़र आ रही थी.
विजय बात को घूमता हुआ बोला," भले ही अपने शरीर पर गोली मिस्टर. बिजलानी ने खुद चलाई हो लेकिन मुझे लगता है कि इसके लिए उन्हे किसी ने मजबूर किया था "
" क...किसने " वो रोना भूलकर उत्सुक नज़र आने लगी थी.
" यही तो पता लगाना है "
वो चुप रही.
" और इस काम मे आप हमारी मदद कर सकती है "
" म...मैं "
" क्या मैं आपका नाम जान सकता हू "
" अंजलि "
" क्या हाल-फिलहाल मे आपके और मिस्टर. बिजलानी के बीच मे कोई झगड़ा हुआ था "
" नही तो "
" अच्छी तरह याद करके बताइए, हो सकता है कि इसी सवाल के जवाब मे उनकी उस हरकत का राज़ छुपा हो जो उन्होने की "
अब...अंजलि ने सीधे-सीधे विजय की तरफ देखा.
उसकी बड़ी-बड़ी आँखो मे तीखापन था.
लहजे मे हल्की सी तल्खी," क्या आप ये सोच रहे है कि उन्होने ग्रह-कलह की वजह से... "
" क्या ऐसा नही है "
" हरगिज़ नही, हाल-फिलहाल की तो बात ही दूर, मेरे और उनके बीच कभी भी ऐसा झगड़ा नही हुआ जो एक रात क्रॉस कर सका हो, अगर किसी मुद्दे पर मतभेद के कारण झड़प हो भी जाती थी तो बेडरूम मे जाते ही ख़तम हो जाती थी "
" बहुत अच्छी बात है, पति-पत्नी के बीच का रिश्ता होना भी ऐसा ही चाहिए " विजय का अंदाज शालीनता भरा था," अच्छा ये बताइए, रिप्पी से तो झगड़ा नही हुआ था उनका "
" रिप्पी से तो वे प्यार ही इतना करते थे कि.... "
" झगड़ा उन्ही मे होता है जिनमे प्यार हो "
" जी "
" और अक्सर, झगड़े की वजह भी प्यार ही होता है, आदमी अंजान से, सड़क चलते से झगड़ने नही जाता "
" हो सकता है की आप ठीक कह रहे हो " अंजलि कहती चली गयी," मगर रिप्पी से झगड़े की तो बात ही दूर, उन्होने कभी उसे डांटा तक नही, प्लीज़, उनके इस कदम को ग्रह-कलह से जोड़कर ना देखिए, हमारे घर मे ऐसा कुछ नही था "
" फिर किससे जोड़कर देखु "
अंजलि उसके सवाल का जवाब ना दे सकी.
बस देखती रही उसकी तरफ.
अंदाज ऐसा था जैसे कहने के लिए कुछ सूझ ना रहा हो.
विजय ने ही कहा," कोई भी व्यक्ति इतना बड़ा कदम किसी छोटे-मोटे कारण से नही उठाता, उसके जीवन मे कोई बहुत ही बड़ी घटना घटी होती है, क्या आप किसी ऐसी घटना के बारे मे बता सकती है जो उनके विषाद का कारण बनी हो "
" मैं हैरान हू कि उन्होने ऐसा क्यू किया "
" मतलब उन्होने आपसे अपनी कोई टेन्षन शेअर नही की "
" नही "
" आपने उन्हे किसी टेन्षन मे महसूस किया "
" बिल्कुल नही, करती....तो पूछती "
" बंद कमरे मे वे क्या कर रहे थे "
" मेरी जानकारी के मुताबिक कमरा बंद नही था, तब भी नही जब मैं चाय देने गयी, ये उनका रुटीन था, डेढ़ बजे चाय पीने आते थे, चाय के साथ न्यूज़ देखने का शौक था उन्हे, मेरी जानकारी मे वही सब हो रहा था, मैं नीचे थी, गोली की आवाज़ सुनकर दौड़ती हुई उपर पहुचि.... "
" क्यो " विजय ने टोका," गोली की आवाज़ सुनते ही आप सीधे उपर की तरफ ही क्यो दौड़ी "
" आवाज़ वही से आई थी "
" ये बात आप आवाज़ सुनते ही समझ गयी "
" हां " कहते वक़्त अंजलि की पलके सिकुड गयी," मुझे ऐसा क्यो लग रहा है कि आप मुझ पर शक कर रहे है "
" नही-नही, ऐसी कोई बात नही है " विजय ने जल्दी से बात संभाली," उपर जाकर आपने क्या देखा "
" वही, जो आपने भी देखा, कमरा अंदर से बंद था और.... "
" अंकिता के बारे मे आपका क्या ख़याल है "
" अंकिता " वो बुरी तरह से चौंक्ति नज़र आई," उसके बारे मे क्यो पूछ रहे है आप "
" सवाल करना छोड़िए, जवाब दीजिए " विजय का लहज़ा अब भी सपाट था," अंकिता कैसी लड़की है "
" अच्छी है "
" कैसे कह सकती है "
" मैं उसे बचपन से जानती हू, तब से इस घर मे आ रही है जबसे वो और रिप्पी फ्रॉक पहनती थी "
" ओके, महत्त्वपूर्ण जानकारी देने के लिए शुक्रिया, आप जा सकती है और कृपया बिजलानी साहब के जूनियर को भेज दे "
" उत्सव को या दीपाली को "
" उत्सव, मतलब लड़का, दीपाली, मतलब लड़की "
" दोनो ही उनके जूनियर है, किसे भेजना है "
" पहले उत्सव ही मना लेते है "
अंजलि दरवाजे की तरफ बढ़ गयी.
फिर ठितकी.
पलटी और विजय की तरफ देखती हुई बोली," मेरे ख़याल से तो मैंने आपको ऐसी कोई जानकारी नही दी जो आपकी मदद कर सके क्योंकि ऐसी कोई जानकारी मेरे पास थी ही नही, फिर आपने ये क्यो कहा कि महत्त्वपूर्ण जानकारी देने के लिए शुक्रिया "
" होता है मोहतार्मा, हमारे साथ अक्सर ऐसा होता है कि लोग हमे महत्त्वपूर्ण जानकारिया दे जाते है और उन्हे खुद पता नही लगता की उन्होने कितनी अनमोल जानकारी दे दी है "
अंजलि के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे थे जैसे ये सोचने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डाल रही हो कि उसने आख़िर विजय को ऐसी क्या जानकारी दे दी जिसे महत्त्वपूर्ण कहा जा सके.
मगर फिर बगैर कोई सवाल किए चली गयी.

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" ये तो मैं भी जानना चाहूँगा गुरु "
" क्या "
" कि अंजलि क्या महत्त्वपूर्ण जानकारी दे गयी "
" ये क्या कम महत्त्वपूर्ण जानकारी दी कि उसे अपने पति और अंकिता के रिश्तो की कोई भनक नही है "
" फिर वही बात " रघुनाथ झल्ला-सा गया," मैं ये पूछ रहा हू कि इस बात को तुम बार-बार किस आधार पर कह रहे हो "
" आधार-कार्ड की कहानी हम तुम्हे सुना चुके है प्यारे "
रघुनाथ फिर कुछ कहना चाहता था लेकिन उससे पहले सफेद पॅंट-शर्ट और काला कोट पहने वो लड़का दरवाजे पर नज़र आया जिसका नाम उत्सव बताया गया था.
विजय ने उसे भी उसी कुर्सी पर बैठाने के बाद कहा," तो तुम्हारा नाम उत्सव है "
" जी "
" तुम्हारी पार्ट्नर का नाम दीपाली "
" अभी वो पार्ट्नर नही है "
" अभी नही से क्या मतलब "
" बहुत जल्द बन जाएगी, लाइफ पार्ट्नर " वो बहुत ही जीवंत अंदाज मे मुस्कुराया था," हम ने फ़ैसला कर लिया है "
" ये तो होना ही चाहिए था "
" जी " वो चौंका," क्या मतलब "
विजय ने कहा," मतलब से क्या मतलब "
" आपने ऐसा क्यो कहा कि ऐसा ही होना चाहिए था "
" बात बहुत सॉफ है मिया, बहरहाल, दोनो नाम एक-दूसरे के पूरक है, उत्सव के बगैर दीपाली नही और वो दीपाली ही क्या हुई जिसमे उत्सव ना हो, दोनो को एक तो होना ही चाहिए था "
" थॅंक यू " वो फिर मुस्कुराया.
" बड़े मुस्कुरा रहे हो यार, कुछ ही देर पहले तुम्हारे बॉस का राम नाम सत्य हुआ है और तुम मुस्कुराए ही जा रहे हो, चेहरे पर गम की शिकन तक नही, तुम जैसा बेमुर्रबात कर्मचारी हम ने पहले कभी नही देखा, क्या तुम्हे बिजलानी के मरने का ज़रा भी दुख नही है "
" द...दुख क्यो नही है " वो सकपकाया था.
" तो फिर इस तरह मुस्कुरा क्यो रहे थे जैसे घर भैया हुआ हो "
" स...सॉरी सर, आपने बात ही कुछ ऐसी छेड़ दी थी "
" दीपाली की बात "
" जी "
" तुम्हारे दिल के तार झंझणा उठे थे "
चेहरे पर फिर सुर्खी दौड़ गयी, बोला," इसका मतलब ये नही है कि जो हुआ उसका मुझे दुख नही है, दुख भी है क्योंकि वे मेरे पिता समान थे लेकिन दुख से ज़्यादा हैरानी है "
" वो क्यो "
" कि उन्होने ऐसा क्यो किया "
" कैसा किया "
" जी "
" हम ने पूछा, तुम्हारे ख़याल से उन्होने क्या किया "
" स्यूयिसाइड "
" तुम्हे ऐसा क्यो लगता है कि उन्होने स्यूयिसाइड की है, कमरे मे तो हम ने तुम्हे घुसने नही दिया, ठीक से तुमने लाश भी नही देखी "
" ये तो देखा था कि कमरा अंदर से बंद था "
" हां, ये तो देखा था, खैर, तुमने इंटरकम पर बिजलानी से कहा था कि राजन अंकल आ गये है, मतलब तुम्हे पहले से मालूम था कि वो आने वाले है "
" बिल्कुल मालूम था "
" कैसे "
" सर ने इंटरकम पर बताया था "
" उन्हे कैसे मालूम था "
" मुझे क्या मालूम "
" कितने बजे की बात है ये "
" करीब सवा दो बजे की " उत्सव ने बताया," वे रोज ठीक 2 बजे अपने रूम मे चाय पीने जाते थे "
" जब तुमने उन्हे इंटरकम पर हमारे आने की सूचना दी थी, उस वक़्त कैसा महसूस किया था "
" कैसा महसूस किया से क्या मतलब "
" वे किसी टेन्षन मे तो नही लग रहे थे "
" नही "
" क्या बाते हुई थी "
" आपके सामने ही तो हुई थी "
" हम ने केवल तुम्हे सुना था, उन्हे नही, ये बताओ, जब तुमने ये कहा कि राजन अंकल आ गये है सर, तो उन्होने क्या कहा "
" उन्होने पूछा, क्या उसके साथ और भी कोई है, जवाब मे मैंने जो कहा, वो आपने सुना ही था "
" उसे सुनकर वे क्या बोले "
" केवल इतना कि, ठीक है "
" ये नही कहा कि वे ऑफीस मे आ रहे है या नही "
" नही, ये नही कहा, बस 'ठीक है' कहकर रिसीवर रख दिया और मेरे ख़याल से उन्हे ऐसा कहने कि ज़रूरत भी नही थी, ये बात अंडरस्टुड थी कि राजन अंकल आए है तो वे आएँगे ही "
" ऐसा अंडरस्टुड क्यो था "
" क्योंकि हमेशा ऐसा ही होता था, ऐसा कभी नही हुआ कि राजन अंकल आए हो और सर उनसे ना मिले हो "
" ओके " विजय ने कहा," जो वार्तालाप तुमने बताया, उससे जाहिर है कि बिजलानी साहब को ये जानकारी तो पक्की थी कि राजन सरकार आने वाला है और ये शंका भी थी कि उनके साथ कोई आ सकता है, गौर करो प्यारे, इस बात की सिर्फ़ शंका थी, पक्के तौर पर नही पता था कि उनके साथ कोई आएगा ही आएगा, पक्के तौर पर पता होता तो पूछते नही कि राजन के साथ कोई और भी है या नही और पूछने से जाहिर है कि उन्हे शंका थी "
उत्सव ने कहा," इस किस्म की बातों को इतनी गहराई से तो आप जैसा जासूस ही सोच सकता है, हम जैसे साधारण लोगो के दिमाग़ो मे ऐसी बाते कहाँ आती है "
" तुम्हे किसने बताया कि हम जासूस है "
" राजन अंकल ने "
" कब बताया और उन्हे क्या ज़रूरत पड़ी "
" सर की बॉडी मिलने के बाद जब आपने हम सबको एक दूसरे कमरे मे बंद कर दिया था तो अंजलि आंटी और रिप्पी ये सोचकर घबराई हुई थी कि आप लोग कौन है जिन्होने ऐसा किया, तब मैंने उन्हे बताया कि तुम लोग राजन अंकल के साथ आए थे, ये सुनकर उन्होने राजन अंकल से पूछा कि अजनबी लोग हमे इस तरह कमरे मे बंद कैसे कर सकते है, तब राजन अंकल ने बताया की आपका नाम विजय है और आप राजनगर के ही नही इंडिया के सबसे बड़े जासूस है और अब उन्होने कान्हा मर्डर केस की जाँच आपको सौंपी है, आप उसी सिलसिले मे बिजलानी सर से वार्ता करने आए थे, उन्होने ये भी बताया की विकास आपका शिष्या है "
विजय का अगला सवाल," क्या तुम्हे कोई ऐसी वजह मालूम है जिसने इन दिनो बिजलानी साहब को परेशान कर रखा हो "
" नही "
" खुश थे वो "
" हमेशा खुश रहते थे, आज भी वैसे ही थे, बिल्कुल नॉर्मल "
" हमेशा खुश रहने से क्या मतलब "
" हर आदमी का मिज़ाज होता है, ख़ासतौर पर काम के टाइम मे, कुछ लोग हमेशा मुँह चढ़ाए रहते है, कुछ बात-बात पर झल्लते रहते है और कुछ खुशमिजाजी के साथ काम करते और करवाते है, वे वैसे ही थे, चाहे जितनी टेन्षन हो, चाहे जिससे, जितनी भी बड़ी मिस्टेक हो जाए, वे गुस्सा नही होते थे, हंसते रहते थे, बेटा-बेटा कहकर समझाया करते थे कि इस काम को ऐसे नही, ऐसे करो "
 


12

" दीपाली को भी बेटी कहते थे "
" ओफ़कौर्स "
" अंकिता को भी "
" हां-हां, आप सबके लिए अलग-अलग क्यो पूछ रहे है "
विजय ने अचानक बात घुमाई," पर तुम्हारे और दीपाली के टाँके की बात हमारी समझ मे नही आई "
" मतलब " उत्सव चौंका.
" दीपाली से कयि गुना ज़्यादा खूबसूरत तो अंकिता है "
" तो "
" उससे टांका क्यो नही भिड़ाया तुमने "
उत्सव के चेहरे पर बड़ी मोहक मुस्कान उभरी, बोला," शायद आपको कभी किसी से प्यार नही हुआ "
" जी नही " कहते वक़्त विजय के समूचे चेहरे पर सुर्खी दौड़ गयी, नज़रे झुका ली उसने और अपने दाए हाथ के अंगूठे के नाख़ून से बाए हाथ के अंगूठे के नाख़ून को कुरेदता हुआ-सा उन्ही पर दृष्टि केंद्रित किए 16 साल की कन्या की मानिंद बोला," उम्र के इस पड़ाव पर पहुच गये है लेकिन किसी को देखकर दिल का झुनझुना साला तन्तनाया ही नही "
" इसलिए आपने ऐसी बात कही "
" कैसी बात "
" कि अंकिता के रहते मैंने दीपाली से मोहब्बत क्यो की "
" क्यो की "
" क्योंकि मैंने मोहब्बत की नही, हो गयी "
" हो गयी "
" ये तो आपने भी सुना होगा, मोहब्बत की नही जाती, हो जाती है, जिसे होती है, खुद उसे ही पता नही होता कि कब हो गयी, जब तक नही हुई थी तब तक मैं भी इस बात को गप्प मानता था "
" यानी तुमने मोहब्बत की नही, हो गयी "
" हंड्रेड पर्सेंट करेक्ट और.... "
" और "
" अब आप समझ सकते है कि अंकिता दीपाली से क्यादा खूबसूरत आपके लिए होगी, मेरे लिए नही है "
" सच्चाई जो है, सो है, हमारी बात छोड़ो, एक लाख लोगो से भी पुछोगे की अंकिता और दीपाली मे से कौन ज़्यादा खूबसूरत है तो सब अंकिता को ही बताएँगे "
" मुझे दुख है कि आप अब भी मेरी बात के मर्म को नही समझ पा रहे है, खैर, अब तो यही कहूँगा कि भले ही सारा जमाना अंकिता को खूबसूरत बताता रहे पर मेरे लिए दीपाली ज़्यादा खूबसूरत है "
" या कोई और वजह है "
" और वजह क्या होती "
विजय ने वो बात कह दी जिसकी भूमिका बाँधी थी," ऐसा तो नही कि उसका टांका बिजलानी साहब के साथ भिड़ा था "
विजय के शब्द सुनकर भौचक्का रह गया वो, ऐसे अंदाज मे विजय की तरफ देखा जैसे किसी पागल को देख रहा हो और फिर लगभग चीख ही पड़ा," ये क्या बकवास कर रहे है आप, हम लोगो के और सर के बीच का रिश्ता मालूम भी है आपको, मैं बता चुका हू कि वे हम सबको औलाद की तरह प्यार करते थे "
" सॉरी यार, हम तो ऐसे ही फेंक रहे थे, तुम्हे कुछ ज़्यादा ही बुरी लग गयी, खैर, तुम जा सकते हो, अपनी दीपाली को भेज दो "
वो एक झटके से उठा और भन्नया हुआ-सा, तेज कदमो के साथ बाहर चला गया.
उसके बाद दीपाली के आने तक कोई कुछ ना बोला.
विजय ने दीपाली को भी उसी कुर्सी पर बिठाया और बिजलानी के बारे मे चन्द सवाल किए.
उसके जवाब भी वही थे जो उत्सव के थे.
अंकिता और बिजलानी के संबंधो के बारे मे उससे इतना खुल कर तो कुछ नही पूछा परंतु घुमा-फिरा कर जानना ज़रूर चाहा.
नतीजा ये निकला की उसकी जानकारी के मुताबिक भी अंकिता और बिजलानी के बीच वैसा कोई संबंध नही था.
अंततः उसने अंकिता को भेजने के लिए कहा.

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एक मारुति वन फ्लॅट नंबर. ए-74 के सामने रुकी, ए-74 के गेट पर ब्रास के अक्षरो से लिखा था 'राजन सरकार'.
ड्राइविंग सीट पर बैठे लड़के ने पूछा," यही है ना "
" ह...हां " कंडक्टर सीट पर बैठे लड़के की आवाज़ मे जोश था.
ड्राइविंग कर रहे लड़के ने वॅन आगे बढ़ा दी.
ऐसा होते देख कंडक्टर सीट पर बैठे लड़के ने कहा," क...क्या कर रहा है छीकु, मैंने बताया ना, राजन सरकार का फ्लॅट ये ही है "
" काम करने से पहले आसपास का मुआयना करना मेरा शगल है, भागने मे आसानी रहती है "
कंडक्टर सीट पर बैठा लड़का चुप हो गया.
पर वे दो नही थे, चार थे.
दो पिच्छली सीट पर बैठे चौकस नज़र आ रहे थे.
चारो की आयु 20-25 के बीच.
जिस्मो पर सस्ते से कपड़े.
घिसी-पीटी जीन्स और गंदी टी-शर्ट्स.
पैरो मे सस्ते पी.टी. शूज.
यदि ये लिखा जाए कि उनमे से किसी की भी आर्थिक स्तिथि मारुति वन का मालिक होने की नही लगती थी तो ग़लत ना होगा लेकिन लंबे कद का चीकू नाम का जो लड़का वॅन ड्राइव कर रहा था, उसका अंदाज बता रहा था कि कम से कम इस कार्य मे वो दक्ष है.
कंडक्टर सीट पर बैठे कसरती जिस्म वाले लड़के के दाए हाथ की उंगलियो मे एक सुलगी हुई बीड़ी थी, जिसमे वो बार-बार सुत्ते लगा रहा था, पीछे बैठे दोनो लड़को मे से एक अपने दांतो के बीच खैनि दबाए हुवे था, दूसरा गुटखा चबा रहा था.
उनमे से एक पतला था, दूसरा मोटा.
सभी के चेहरो पर तनाव नज़र आ रहा था.
किसी पर कम, किसी पर ज़्यादा, सबसे कम तनाव ड्राइविंग कर रहे चीकू के चेहरे पर था, उसी ने कहा," सब चुप क्यो हो गये सालो, फूँक सर्की हुई है क्या "
" हां यार " पीछे बैठे मोटे ने इसलिए मुँह उपर उठाते हुवे कहा ताकि गुट्खे का पीक गिरे नही," डर तो लग रहा है थोड़ा-थोड़ा "
" दिल तो मेरा भी ढोलक की तरह बज रहा है " उसकी बगल मे बैठे खैनि चबा रहे पतले लड़के ने कहा था.
" डरोगे तो कैसे काम चलेगा " बीड़ी के सुत्ते लगा रहे लड़के ने कहा," तुम ये काम अपने दोस्त के लिए कर रहे हो "
" वो तो ठीक है चंदू पर भूल मत जाइयो " लगातार ड्राइविंग कर रहे चीकू ने कहा था," कमाई के बगैर तो मैं नही छ्चोड़ूँगा "
" वो तो तेरी पहली शर्त है और मैंने कबूल की है "
" तो डरो मत यारो " चीकू पुनः बोला," तुम भले ही पहली बार ऐसे काम पर निकले हो मगर मैं पहले भी कयि बार कर चुका हू, पब्लिक साली डरपोक है इसलिए ऐसे काम बड़ी आसानी से हो जाते है, दूसरो के लिए कोई अपनी जान जोखिम मे नही डालता "
मोटे ने पूछा," हमे भी हिस्सा मिलेगा ना "
" बराबर का "
" मुझे हिस्सा-विस्सा नही चाहिए " पतला बोला," मैं तो ये काम अपने यार के लिए कर रहा हू, क्यू चंदू "
" मुझे मालूम है बॉब्बी कि तू मेरा पक्का यार है " चंदू ने बीड़ी को वॅन से बाहर फेंकते हुवे कहा," सबसे पहले तुझी से तो ज़िक्र किया था मैंने, तूने ही बंटी और चीकू को जुटाया "
" इसलिए तो....कम से कम तुझे नही डरना चाहिए " ड्राइविंग कर रहा चीकू बोला," बहरहाल, आज हम तेरे लिए वो काम करने जा रहे है जिसे तू लंबे समय से करना चाह रहा था लेकिन हिम्मत और साधन ना होने की वजह से नही कर पा रहा था "
इस वक़्त वन एक बहुत बड़े पार्क के चारो तरफ बनी कम चौड़ी सड़क पर थी, सड़क के दाई तरफ छोटे-छोटे बंग्लॉ जैसे नज़र आने वाले करीब-करीब एक ही नक्शे के ड्यूप्लेक्स फ्लॅट थे.
तीन मोड़ पार करने के बाद चीकू वॅन को पार्क के उस चौथे सिरे की ओर बढ़ाता ले गया जिसका मोड़ पार करने के बाद उसे पुनः उस लेन मे पहुच जाना था जिसमे ए-74 था.
धूप तेज थी, शायद इसलिए पार्क और उसके चारो तरफ की सड़क की तो बात ही दूर, किसी फ्लॅट के बाहर भी कोई व्यक्ति नज़र नही आ रहा था.
बॉब्बी बोला," यहा तो ऐसा सन्नाटा पसरा पड़ा है जैसे दिन के नही बल्कि रात के साढ़े 3 बजे हो "
" इसे कहते है एक्सपीरियेन्स " चीकू गर्व से मुकुराया," दिन के इस समय ऐसी कॉलोनियो मे अक्सर सन्नाटा ही रहता है क्योंकि ज़्यादातर मर्द काम पर गये होते है, घरो मे केवल महिलाए होती है और वे भी बाहर निकलने की बजाय ए.सी चलाकर सास-बहू के नाटक देखना ज़्यादा पसंद करती है, अतः ऐसे कामो के लिए ये समय सबसे मुफ़ीद होता है "
तीनो चुप रहे.
चीकू वन की रफ़्तार धीमी करता हुआ बोला," हम पहुचने वाले है दोस्तो और इस बार काम करके ही लौटेंगे, डरने की ज़रूरत नही है क्योंकि हमारे दिलो मे पनपा डर ना केवल हमारा काम बिगाड़ देगा बल्कि उल्टा हमे ही फँसा देगा, यकीन रखो, कुछ नही होगा, हमे बस ये कोशिश करनी है की ज़्यादा शोर-शराबा ना हो "
इस बार भी कोई कुछ ना बोला.
तीनो के चेहरे पर मौजूद तनाव मे इज़ाफा हो गया था.
चीकू ने वन पुनः ए-74 के सामने रोक दी.
" उतरो, यहाँ ज़्यादा देर खड़े रहना ख़तरनाक हो सकता है, जितनी जल्दी हो सके काम करके निकल जाना ही मुनासिब होता है " उसने एंजिन ऑफ करते हुवे कहा था," वॅन के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ नही होनी चाहिए, बल्कि बीच वाला गेट खुला छोड़ देना ताकि उस वक़्त खोलने मे टाइम वेस्ट ना हो "
वैसा ही किया गया.
गुटखे वाले ने पीक ठुका, खैनि वाले ने खैनि का चूरा.
तेज़ी से लपक कर वे ए-74 के लोहे वाले गेट पर पहुचे.
उसे चीकू ने बगैर ज़रा भी आहट किए खोला और चारो तेज़ी के साथ फ्लॅट के लकड़ी वाले दरवाजे की तरफ बढ़ गये जो छोटे से शेड के नीचे था, करीब पहुचते ही चारो दीवार से लाठी की तरह टेक लगाकर सीधे खड़े हो गये.
दो बाए, दो दाए.
चीकू ने फुसफुसाकर चंदू से कहा," तू क्यो छुप गया साले, तुझे तो दरवाजा खुलवाना है, सामने आकर बेल बजा "
चंदू को अचानक जाने क्या याद आया कि उसके जबड़े भींच गये, चेहरे पर सख्ती के भाव काबिज होते चले गये और आखो मे अजीब किस्म की हिंसा और दृढ़ता के भाव नज़र आने लगे.
वो पूरे कॉन्फिडेन्स के साथ बंद दरवाजे के सामने आ डटा और कॉल्लबेल स्विच पर अंगूठा रख दिया.
अंदर से बेल बजने की आवाज़ आई.
उसने बेल स्विच से अंगूठा हटाया, अंदर खामोशी छा गयी.
सभी दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहे थे.
सभी के दिल आसामानया गति से धधक रहे थे लेकिन अंदर छायि खामोशी इतनी लंबी हो गयी की चीकू ने चंदू को पुनः बेल बजाने का इशारा किया.
चंदू का हाथ बेल स्विच की तरफ बढ़ा ही था कि अंदर से एक महिला की आवाज़ आई," कौन "
" मैं हूँ इंदु आंटी " उसकी आवाज़ साधी हुई थी," चंदू "
" तुम " चौंकी हुई सी इस आवाज़ के साथ दरवाजा खुल गया.
45 से 50 के बीच की एक औरत नज़र आई.
वो लंबे चेहरे और लंबी नाक वाली एक साँवली औरत थी.
बालो की बाहरी लटे सफेद हो गयी थी.
जिस्म पर सलवार-सूट.
चंदू की तरफ देखते हुवे उसने लगभग गुस्से मे पूछा था," यहाँ क्यो आया है "
" म...मैं आपसे माफी माँगने आया हू इंदु आंटी " इस बार चंदू की आवाज़ थोड़ी लड़खड़ा गयी थी.
वो गुर्राई," अब किस बात की माफी माँगने आया है "
" मैंने पिच्छले दिनो आपके और अंकल के साथ जो व्यवहार किया, वो नही करना चाहिए था "
" हमें तेरी माफी की ज़रूरत नही.... "
इंदु सरकार अपना सेंटेन्स पूरा नही कर सकी बल्कि अगर ये लिखा जाए तो ज़्यादा जायज़ होगा कि उसके मुँह से निकलने वाले आगे के शब्द एक लंबी चीख मे तब्दील हो गये थे.
कारण था, चंदू को एक तरफ धकेलकर अचानक ही चीकू का ना केवल उसके सामने आ जाना बल्कि बिजली की सी फुर्ती से उसे पूरी बेरहमी के साथ पीछे की तरफ धकेल देना.
इंदु सरकार अचानक खुद पर टूट पड़ी इस मुसीबत के बारे मे समझ भी ना पाई थी कि चीख के साथ फ्लॅट के अंदर जा गिरी.
पलक झपकते ही सबसे पहले चीकू, उसके पीछे चंदू और फिर बॉब्बी-बंटी फ्लॅट के अंदर जा धम्के.
" दरवाजा बंद करो " लगभग चीखती सी आवाज़ मे कहता चीकू फर्श पर पड़ी इंदु पर झपटा था.
इधर उसने अपने दाए हाथ से उसका मुँह दबोचा, उधर बंटी ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.
इंदु सरकार विस्फारित नेत्रो से उन सबकी तरफ देख रही थी जबकि चीकू ने ख़ूँख़ार लहजे मे कहा," ज़्यादा चीखी-चिल्लाई तो यही काम तमाम कर दूँगा "
इंदु का सर क्योंकि ज़ोर से फर्श से टकराया था इसलिए वहाँ से खून बहने लगा था और मुँह भींचा होने के कारण वो ठीक से साँस नही ले पा रही थी इसलिए छटपटा रही थी.
चीकू चीखा," जल्दी से इंजेक्षन लगा बॉब्बी "
 


13

बॉब्बी ने जेब से एक ऐसी सरिंज निकाली जिस पर कॅप चढ़ि हुई थी और उसमे पहले ही से कोई तरल पदार्थ भरा हुआ था.
अब इंदु चीकू की गिरफ़्त से निकलने के लिए पूरी ताक़त से छटपटाने लगी थी, वो पुनः चीखा," जल्दी कर बॉब्बी "
सरिंज की कॅप उतारते वक़्त बॉब्बी के हाथ काँप रहे थे.
चंदू के वजूद पर ना जाने कैसे जुनून सवार हुआ कि," ला, मुझे दे " कहते हुए उसने बॉब्बी से सरिंज छीनी और ठीक इस तरह इंदु की मोटी भुजा मे पेवस्त कर दी जैसे भैंसे को इंजेक्षन लगाया जाता है, इंदु ने पुरजोर अंदाज मे चीखने की कोशिश की मगर चीकू का हाथ उसकी चीख को दबाए हुवे था.
गून-गून की आवाज़ के साथ वो छटपटाती रह गयी और फिर धीरे-धीरे छटपटाहट भी समाप्त होती चली गयी.
वो बेहोश हो गयी थी.
उस क्षण उन्होने पहली बार महसूस किया, बाहर से किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आ रही थी.
सबके चेहरे फक्क पड़ गये.
बंटी के मुँह से आवाज़ निकली," ये तो हमे मरवा देगा "
" अक्सर यही होता है " चीकू बोला," इंसान हम जैसो की गंध नही ले पाते जबकि कुत्ते सूंघ लेते है पर ज़्यादा घबराने की ज़रूरत नही है, पमिल्षन की आवाज़ है, ये सिर्फ़ भौंकते ही भौंकते है "
" चले " चंदू बोला," अब जल्दी से उठाकर इसे वन मे.... "
" नही, उससे पहले ये सब करना ज़रूरी हो गया है " चंदू की बात काटकर चीकू ने जेब से एक कॅप, रुमाल और काला चश्मा निकाला तथा उन सबसे अपने सर और चेहरे को छुपाता हुआ बोला," हमारे ना चाहने के बावजूद ये चीख पड़ी थी, इसी वजह से पमिल्षन भौंक रहा है, हो सकता है कि उसकी मालकिन बाहर निकल आई हो, वो पोलीस को हमारे हुलिए बता सकती है "
बाकी तीनो ने जल्दी से उसका अनुसरण किया.
अब उनके भवो तक के हिस्सो को कॅप ने, आँखो और उनके आस-पास के हिस्सो को चौड़े फ्रेम वाले काले चश्मो ने तथा नाकों सहित चेहरे के बाकी हिस्सो को रुमाल ने ढक रखा था.
" उठाओ इसे, दरवाजा खोल बंटी " कहने के साथ चीकू ने एक ही झटके मे लेटी हुई इंदु को बैठा लिया.
बाकी दोनो ने बल्कि तीनो ने उसकी मदद की क्योंकि बंटी पहले ही दरवाजा खोल चुका था.
इंदु के बेहोश जिस्म को लिए वे बाहर निकले और उनका बाहर निकलना था कि ए-76 की बाल्कनी मे खड़ी महिला ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगी," चोर...चोर...चोर "
कुत्ते के भौंकने की आवाज़ तेज हो गयी थी.
वो ए-76 की गॅलरी मे था.
महिला की चीखे सुनकर कयि बाल्कनी के दरवाजे खुल गये थे.
शोर बढ़ता चला गया.
कयि लोग फ्लॅट्स से बाहर निकल आए थे.
चीकू ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलता चीखा," जल्दी से गाड़ी मे डालो, डरो मत, वे शोर मचाने से ज़्यादा कुछ नही करेंगे "
चंदू, बंटी और बॉब्बी ने वैसा ही किया.
इंदु को गाड़ी मे ठूँसने के बाद वे भी अंदर घुस गये.
चीकू पहले ही एंजिन स्टार्ट कर चुका था.
दरवाजे बंद होते ही उसने वॅन आगे बढ़ा दी.
तभी कोई चीखा," अरे, वो तो इंदु को ले जा रहे है "
वॅन कमान से निकले तीर की-सी गति से सड़क पर दौड़ी.
शोर-शराबा तेज हो गया था मगर जिसके हाथ मे स्टियरिंग था, वो घबराने वाला नही था.
उसने वॅन पार्क से बाहर निकलने वाले रास्ते पर दौड़ा दी परंतु उससे पहले किसी के द्वारा फेंका गया पत्थर वॅन का पिच्छला काँच तोड़ता हुआ ना केवल वॅन के अंदर आ गया था बल्कि बंटी के सिर मे भी लगा था, उसके मुँह से चीख निकल गयी थी और साथ ही सिर से खून भी बहने लगा था.

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अंकिता आई.
विजय के कहने पर कुर्सी पर बैठ गयी, उसके टॉप का उपरी बटन अब भी खुला हुआ था पर चेहरे की आभा गायब थी.
गमगीन नज़र आ रही थी वो.
आँखे ऐसी जैसे खूब रोई हो.
उन आँखो मे झाँकते विजय ने सीधा सवाल किया," बिजलानी से तुम्हारा क्या रिश्ता था "
वो थोड़ी चौंक्ति-सी नज़र आई.
फिर संभलकर बोली," वैसे तो वो मेरे बॉस थे मगर बॉस से पहले अंकल थे "
" अन...क..ल " विजय ने हर अक्षर को निचोड़ा.
" हां-हां " वो जल्दी से बोली," क...क्यो "
" क्यो से मतलब "
" आप मेरी तरफ इस तरह क्यो देख रहे है " वो अपसेट नज़र आई," अंकल शब्द भी आपने अजीब लहजे मे कहा, ऐसा क्यो "
" क्योंकि हमे नही लगता कि तुम्हारे और बिजलानी के बीच अंकल वाला रिश्ता रह गया था "
" क...क्यो, क्यो लगता है आपको ऐसा " उसके हलक से जो आवाज़ निकली वो चीख जैसी थी.
" क्योंकि कुछ दिनो से वो तुमसे कुछ ज़्यादा ही बाते करते थे "
अपने फेस पर उभर आई घबराहट को छुपाने के लिए वो पुनः चीखी," इसका क्या मतलब हुआ "
" इसका मतलब ये हुआ " कहने के साथ विजय ने अपनी जेब से बिजलानी का मोबाइल निकालकर मेज पर रख दिया.
यहाँ ये लिखा जाए तो ग़लत ना होगा कि रघुनाथ और विकास की समझ मे विजय की बातो का आधार आ गया था और अंकिता तो आँखे फाड़-फाड़कर मोबाइल को देखने लगी थी, बोली," मैं अब भी नही समझी कि आप क्या कहना चाहते है "
" इस मोबाइल को पहचानती हो ना "
" हां, ये सर का मोबाइल है "
" इसका रिकॉर्ड बता रहा है की पिच्छले कुछ दिनो से वे तुमसे कुछ ज़्यादा ही बाते कर रहे थे "
" तो इसमे ऐसी क्या बात है कि आप मुझसे इस अंदाज मे पूछताछ क्र रहे है, काम के सिलसिले मे वे अक्सर बाते करते रहते थे "
" ऐसी ज़रूरत उन्हे क्यो पड़ती थी "
" मैं आपके सवालो का मतलब नही समझ पा रही "
" ऑफीस मे, इसी इमारत मे मौजूद उस ऑफीस मे जिसमे कुछ देर पहले हम सब थे, तुम और वो साथ-साथ बैठे होते थे, फिर बार-बार फोन पर बात करने की क्या ज़रूरत थी, काम से कनेक्टेड बाते तो वहाँ हो ही जाया करती होंगी "
" वहाँ भी होती थी और फोन पर भी, फोन पर तब होती थी जब वे या तो कोर्ट मे होते थे या अपने बेडरूम मे और मैं ऑफीस मे अपना काम कर रही होती थी, उस वक़्त अगर उन्हे कुछ याद आता था तो फोन पर निर्देश देते थे "
" काम से रिलेटेड "
उसने उल्टा सवाल किया," आपको क्या लगता है "
" रेकॉर्ड बता रहा है कि बाते कुछ ज़्यादा ही लंबी होती थी "
" केस से संबंधित पायंट्स वो डीटेल मे समझाया करते थे ताकि मैं कुछ उल्टा-सीधा टाइप ना कर दूं, उसमे टाइम तो लगता ही था "
" ये सिलसिला पिच्छले कुछ दिनो से ही चालू हुआ था, करीब एक महीने पहले से, मोबाइल का रेकॉर्ड बता रहा है, उससे पहले तुम्हारे बीच इतनी लंबी-लंबी बाते नही होती थी "
" शायद आपकी जानकारी मे हो, करीब एक महीना पहले ही कान्हा मर्डर केस पर निचली कोर्ट का फ़ैसला आया है, इन दिनो वे उस फ़ैसले के विरुद्ध हाइकोर्ट मे अपील करने की तैयारी कर रहे थे, हर पॉइंट पर कभी उनका विचार कुछ बनता था, कभी कुछ, यानी कि उनके अपने ही विचार चेंज होते रहते थे, इसलिए वे अक्सर फोन करते थे कि अंकिता हम ने तुमसे जो ये लिखने के लिए कहा था, उसकी जगह वो लिख दो "
" और तुम लिख देती थी "
" मेरा तो काम ही उनके कहे को फॉलो करना था "
" कयि बार बिजलानी ने तुम्हे रात को भी फोन किया, 11 बजे, 12 बजे, यहा तक की डेढ़ बजे भी, हमारे ख़याल से उस वक़्त तुम ओफिस मे नही, अपने घर पर होती होगी "
" बिल्कुल होती थी और वे फोन करते थे " अब वो पूरी हनक के साथ जवाब दे रही थी," ऐसा तब होता था जब उनके दिमाग़ मे रात के वक़्त कोई पॉइंट आता था, वे कहते थे, रात के इस वक़्त डिस्टर्ब करने के लिए सॉरी अंकिता मगर हम ने इसी वक़्त फोन इसलिए किया है कि कही सुबह तक ये पॉइंट दिमाग़ से निकल ना जाए, उस अवस्था मे तुम याद रखना "
" क्या वे उस वक़्त ड्रिंक किए हुए होते थे "
" हां " उसने दबी सी आवाज़ मे कहा," ऐसा तो था "
" उसी हालत मे आदमी को ये डर हो सकता है कि जो पॉइंट इस वक़्त दिमाग़ मे आ रहा है, वो सुबह तक उड़ँच्छू हो सकता है "
अंकिता चुप रह गयी.
अब, विजय ने बहुत ही गौर से उसकी बड़ी-बड़ी आँखो मे झाँकते हुवे पूछा था," ऐसे किसी समय पर उन्होने कभी कोई ऐसी बात तो नही कही जो उन्हे नही कहनी चाहिए थी "
" म...मतलब " वो सकपकाती नज़र आई, विजय से ठीक से आँखे भी मिलाए नही रख पाई थी वो," क..कैसी बात कर रहे है आप, आ...आपका इशारा कैसी बातो की तरफ है "
" जिनका किसी केस से संबंध ना हो "
" ब...भला ऐसी बाते क्यो करते वो "
" कर जाते है, रात के वक़्त, नशे मे लोग अक्सर ऐसी बाते कर जाते है जिनकी अपेक्षा उनसे दिन मे, सामान्य अवस्था मे नही की जा सकती, या यूँ भी कहा जा सकता है कि जिन बातो को वे सामान्य अवस्था मे कहने की हिम्मत नही जुटा पाते उन्हे रात मे नशे मे होने की बहाने पर सवार होकर कह जाते है "
" नही " उसके जबड़े कस गये," ऐसी तो कभी कोई बात नही कही उन्होने "
" कोई ऐसी बात जो अंकल के रिश्ते से मेल ना खाती हो "
" नही.... नही....नही.... " अचानक वो चिल्ला पड़ी," कितनी बार सफाई दूं आपको, बार-बार इस किस्म के सवाल करने का मतलब क्या है, वे मेरे अंकल थे, पिता समान थे, ठीक वैसे ही जैसे रिप्पी के पिता है, और आप है की सिर्फ़ फोन कॉल्स के बेस पर ना जाने उनके और मेरे बीच क्या रिश्ता जोड़ना चाहते है "
" तुम तो बुरा मान गयी मोहतार्मा, भला हम कौन होते है किन्ही दो व्यक्तियो के बीच नया रिश्ता जोड़ने वाले " उसके तेवर और हालत देखते हुवे विजय ने तुरंत पैंतरा बदल लिया था," पूछताछ करना हमारा काम है, उनके फोन मे तुम्हे की गयी कॉल्स कुछ ज़्यादा ही थी इसलिए ये सब पूछना पड़ा "
" और मेरे ख़याल से मैं आपके सभी सवालो के जवाब दे चुकी हू " वो उखड गयी थी," क्या अब मैं जा सकती हू "
" कमाल कर रही हो, पहले ही कह देती, हम क्या तुम्हे जाने से रोकने वाले थे, और फिर, तुम्हे बाँधकर अपने सामने बैठाने वाले हम होते कौन है "
अंकिता बिना कुछ कहे एक झटके से उठी और तमतमाई हुई-सी अवस्था मे दरवाजे की तरफ बढ़ गयी, अभी वो दरवाजे तक भी नही पहुचि थी कि विजय ने कहा," रिप्पी को भेज देना "
ना वो ठितकी.
ना घूमी और ना ही जवाब मे कुछ कहा.
बस हवा के तेज झोंके की तरह बाहर निकल गयी, उसका जाना था कि रघुनाथ ने कहा," तो ये था तुम्हारा आधार-कार्ड "
" हमारे बताए बिना समझने के लिए शुक्रिया तुलाराशि "
" पर गुरु " विकास बोला," सोच तो शायद आप ठीक ही रहे है, मुझे भी इनके संबंधो मे गड़बड़ नज़र आई "
" वो कैसे "
" आपके सवालो के जवाब मे अंकिता के रिक्षन्स बड़े अटपटे थे, कभी अकड़ती-सी नज़र आती थी, कभी टूट-ती-सी, कम से कम ऐसे रिक्षन्स तो नही थे उसके जैसे ऐसे आरोप लगाने पर एक इनोसेंट लड़की के होने चाहिए थे "
" क्यो, एक इनोसेंट लड़की को क्या करना चाहिए था "
" मेरे ख़याल से तो उसे भड़क जाना चाहिए था "
" भड़की कब नही वो, भड़की तो इतनी ज़्यादा की फ़ौरन ही हमारे सामने से उठकर चली गयी "
" मुझे नही लगा कि ऐसा उसने भड़कने की वजह से किया "
" और क्या लगा "

 


14

" कि वो आपके सवालो के कारण खुद को कंफर्टबल नही पा रही थी, इसलिए जल्दी से जल्दी पीछा छुड़ाना चाहती थी "
" हू " एक लंबे हुंकार के साथ विजय ने उस बुजुर्ग की तरह गर्दन हिलाई जो किसी युवा की बात पर विचार कर रहा हो.
विकास आगे बोला," मेरे ख़याल से आपने एक ग़लती की "
" खुदा तो हम है नही प्यारे, इंसान ही है, ग़लतियाँ करना हमारी फ़ितरत होता है मगर फिलहाल क्या ग़लती की, उसे उगलो "
" आपको उसका मोबाइल भी चेक करना चाहिए था "
" उससे क्या होता "
" मुमकिन है कि दोनो के संबंधो के बारे मे और पता लगता "
" कम से कम फिलहाल हमे उसकी ज़रूरत नही लगी क्योंकि उसके फोन से बिजलानी के फोन पर की गयी कॉल्स सामान्य थी और असमान्य टाइम पर तो एक भी नही थी "
विकास ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि रिप्पी कमरे मे आ गयी, आहट सुनकर सबने दरवाजे की तरफ देखा, विजय ने महसूस किया, वो बुरी तरह रोई थी और इस समय थोड़ी सी सहमी हुई भी थी, ऐसा लगा जैसे कि उसे इल्म हो कि क्या पूछा जाएगा और वो उन सवालो का सामना ना करना चाहती हो.

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विजय ने उसे भी सामने वाली चेअर पर बिठाने के बाद सामान्य स्वर मे कहा," हमे मालूम है कि इस वक़्त तुम किसी भी सवाल का जवाब देने की मानसिक अवस्था मे नही हो इसलिए केवल एक सवाल पूछेंगे और तुम्हे उसका जवाब देना होगा "
रिप्पी ने अपनी भीगी आँखे विजय की तरफ उठाई, उनमे प्रश्न था, क्या पूछना चाहते है.
" तुम्हारे और तुम्हारे पापा के बीच इन दिनो क्या चल रहा था "
" क..क्या चल रहा था से क्या मतलब हुआ "
" क्या तुम्हे अपने पापा से कोई शिकायत थी "
" नही तो "
विजय ने सीधे कहा," तुम झूठ बोल रही हो "
" क्यो " रिप्पी सकपकाई," मैं झूठ क्यो बोलूँगी "
" वही जानने की कोशिश कर रहे है "
" नही, मैं झूठ नही बोल रही "
" अपने पापा से कोई शिकायत नही थी तुम्हे "
" कितनी बार कहूँ, नही "
" तो फिर बंद दरवाजे को पीट-ते वक़्त तुमने ये क्यों कहा था की दरवाजा खोलो पापा, मुझे आपसे कोई शिकायत नही है "
" ओह, आप वो पूछ रहे है, वो कोई बड़ी बात नही थी "
" छोटी ही बता दो "
" परसो ही पापा दुबई से लौटे थे, जब वे गये थे तो मैंने सोनी का कॅमरा लाने के लिए कहा था मगर अपने काम की व्यस्त-ता के कारण वे कॅमरा नही ला सके, मैं नाराज़ हो गयी, उन्होने सॉरी कहा, ये भी कहा कि इसी हफ्ते मे किसी से मॅंगा देंगे लेकिन मेरा मूड ठीक नही हुआ, तभी से, उनसे बात नही कर रही थी "
" क्या उस पल तुम्हे ये लगा कि तुम्हारे पिता ने कॅमरा ना ला पाने के कारण खुद पर गोली चला ली है "
" हां, मुझे यही लगा था, तभी तो वैसा कह रही थी "
" क्या ये कुछ ज़्यादा ही नही हो गया, क्या कोई पिता अपनी बेटी के लिए कॅमरा जैसी मामूली चीज़ ना ला पाने के कारण इतना आत्मघाती कदम उठा सकता है "
" आप मेरे और मेरे पापा के बीच के रिश्ते को नही समझ सकते, वे मुझसे बेन्तेहा प्यार करते थे, इतना ज़्यादा की एक दिन भी इस बात को नही से सकते थे की मैं उनसे नाराज़ हू जबकि आज वो तीसरा दिन था जबसे मैं उनसे बात नही कर रही थी, इसलिए उस वक़्त मुझे लगा कि कही उन्होने निराश होकर खुद को..... "
उसने स्वयं अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
" हम फिर कहेंगे कि बात हमे जाँच नही रही क्योंकि इतनी छोटी-सी बात पर कोई आत्महत्या नही कर सकता, आत्महत्या आदमी तभी करता है जब उसे लगे कि जीने से मर जाना बेहतर है "
" मैं आपसे सहमत हू " रिप्पी ने तुरंत ही हथियार डाल दिए थे," बाद मे मुझे लगा कि हड़बड़ाहट के उस दौर मे मेरे दिमाग़ मे ग़लत ख़याल आया था, खुद पर गोली चलाने के पीछे इतना छोटा कारण नही हो सकता, यक़ीनन कोई बड़ी वजह थी "
" वो क्या हो सकती है "
" काफ़ी सोचने के बावजूद मुझे कुछ समझ नही आ रहा "
" अंकिता से तुम्हारे रिश्ते कैसे है "
" अंकिता " वो चौंक्ति सी नज़र आई," वो मेरी फ्रेंड है "
" या थी "
" मतलब "
" सीधा जवाब दो, अंकिता तुम्हारी फ्रेंड थी या अभी भी है "
वो पूरी मजबूती से बोली," है "
" इसका मतलब तुम्हे अपने पापा और अंकिता के बीच बने नये रिश्ते के बारे मे नही मालूम "
" नया रिश्ता " वो चौंकी," कौन सा नया रिश्ता "
" वो... जिसके बारे मे अगर तुम्हे पता लग जाता तो वो तुम्हारी फ्रेंड नही रह जाती "
रिप्पी के चेहरे पर पीलापन छा गया.
देखती रह गयी वो विजय की तरफ.
फिर बोली," आप कौन से रिश्ते की बात कर रहे है "
" छोड़ो " विजय ने कहा," तुम जा सकती हो "
" नही, मैं इस तरह नही जाउन्गि, आपको बताना होगा कि आपने कौन्से रिश्ते की बात की "
इससे पहले की विजय कुछ कह पाता कमरे के बाहर से भागते कदमो की आवाज़ आई.
सबने पलटकर उधर देखा और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता भड़ाक की जोरदार आवाज़ के साथ दरवाजा खुला.
बदहवास सी अवस्था मे दौड़ता हुआ राजन सरकार अंदर आया, वो लगातार विजय-विजय चीख रहा था.
" क्या हुआ हुजूर-ए-आला " विजय ने पूछा," आप हमे इस तरह क्यो पुकार रहे है जैसे मजनू गली-गली लैला को पुकारता था "
" इंदु का अपहरण हो गया "
" इंदु " विजय चौंका.
" मेरी पत्नी "
इसमे शक नही कि विजय जैसे शख्स के दिमाग़ को भी झटका लगा था, इसलिए वो अपने स्थान से खड़ा हो गया था लेकिन फिर तुरंत ही खुद को कंट्रोल करके सदाबहार टोन मे बोला," पर तुम्हे ये आकाशवाणी कहा से हुई "
" अभी-अभी मिसेज़. चंदानी का फोन आया है "
चंदानी शब्द सुनकर विजय के होंठो पर रहस्यमय मुस्कान उभरी थी, बोला," क्या हम जान सकते है, ये मोहतार्मा कौन हुई "
" हमारी पड़ोसन....ए-76 मे रहती है "
विजय के मुँह से बस यही शब्द निकले," ओह, वो "

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राजन सरकार की कार भीड़ भारी सड़क पर दौड़ी चली जा रही थी, उसके पीछे विकास की पजेरो थी, पजेरो के पीछे रघुनाथ की लाल बत्ती लगी सरकारी गाड़ी और उसके पीछे थी वर्दी वालो से भरी वो जीप जो सेक्यूरिटी के रूप मे रघुनाथ के साथ रहती थी.
राजन सरकार की गाड़ी मे इस वक़्त सिर्फ़ ड्राइवर था जो उसे ड्राइव कर रहा था क्योंकि राजन विजय, विकास और धनुष्टानकार के साथ विकास की पजेरो मे था.
पजेरो मे अपने साथ उसे खुद विजय ने बिठाया था.
विकास ड्राइव कर रहा था.
धनुष्टानकार कदेक्टर सीट पर बैठा सिगार फूँक रहा था.
विजय और राजन सरकार पिच्छली सीट्स पर थे.
गाड़ी मे खामोशी व्याप्त थी.
एकाएक विजय ने राजन सरकार से पूछा," गूंगे बने क्यो बैठे हो सरकार-ए-आलम "
" आ.. " राजन सरकार की विचार तंद्रा भंग हुई.
" और क्या कहा मिसेज़. चंदानी ने " 'मिसेज़. चंदानी' पर उसने ख़ासा ज़ोर दिया था.
" बहुत घबराई हुई थी, कह रही थी, वे चार थे, चारो ने अपने चेहरे कॅप, काले चश्मे और रुमाल से ढक रखे थे, उन्होने इंदु को मारुति वॅन मे डाला और फरार हो गये "
" कौन हो सकते है वो "
" मैं क्या कह सकता हू "
" आप नही कहेंगे तो और कौन कहेगा " विजय बोला," कम से कम इतना तो इल्म आपको भी होना चाहिए कि आपकी पत्नी को कौन और किस मकसद से किडनॅप कर सकता है "
" इस बारे मे मुझे कतयि कोई इल्म नही है बल्कि... "
" बल्कि "
" मैं तो ये सोच रहा हू कि किसी ने ऐसा किया क्यो, किसी को इंदु के अपहरण से क्या मिल जाएगा और मेरी इंदु इस वक़्त किस हालत मे होगी "
" पहले अशोक बिजलानी का एक बटा दो, उसके तुरंत बाद आपकी धरमपत्नी का किडनॅप, कोढ़ मे खाज ये कि दोनो काम हमारे रियिन्वेस्टिगेशन पर निकलते ही हो गये, क्यो "
" मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा है "
" कोशिश करो सरकार-ए-आली, कोशिश करो समझने की क्योंकि बगैर समझे ना तुम्हारा काम चलने वाला है ना हमारा " विजय कहता चला गया," इन घटनाओ को अंजाम देने वाला जो भी है, इतनी जल्दी मे क्यो है, क्यो हमे साँस तक नही लेने दे रहा है "
" क्या तुम ये कहना चाहते हो विजय कि अशोक बिजलानी के स्यूयिसाइड और इंदु के किडनॅप के पीछे एक ही आदमी है "
" आदमी एक ही है या 10-20, ये तो कहा नही जा सकता लेकिन दोनो घटनाए एक-दूसरे से जुड़ी ज़रूर मालूम पड़ रही है "
" वो कैसे "
" कान्हा मर्डर केस को एक साल हो गया है, इतने लंबे अंतराल मे कोई और ऐसी आपराधिक घटना नही घटी जिसे आपसे जोड़ा जा सके पर मदद के लिए हमारे पास पहुचते ही बल्कि ये कहा जाए तो ज़्यादा मुनासिब होगा कि हमारे रियिन्वेस्टिगेशन पर निकलते ही घटनाए शुरू हो गयी, घटनाए भी इतनी तेज़ी से कि अभी ठीक से पहली घटना को समझ भी नही पाए थे कि दूसरी सामने आ गयी, आख़िर राज़ क्या है इसका "
सवालिया चिन्ह बना राजन विजय की तरफ देखता रहा.
" तुम भी अपनी समझदानी के कपाट खोलो दिलजले " विजय विकास से मुखातिब हुआ," क्या तुम्हारी खोपड़ी मे कुछ घुसा "
" मेरे ख़याल से अपराधी बौखला गया है "
" कारण "
" आपका रियिन्वेस्टिगेशन पर निकलना "
" तुम्हारे मुताबिक यदि अपराधी इस हद तक कामयाब हो चुका है कि उसने सरकार दंपति को कोर्ट से सज़ा तक करा दी तो हमारे ही निकल पड़ने पर इतना क्यो बौखलाएगा, सोचेगा, जिस तरह अब तक चुपचाप बैठा तमाशा देख रहा हू उसी तरह देखता रहूं, विजय नाम का गधा कर ही क्या लेगा "
" राजनगर की तो बात ही छोड़ दीजिए गुरु, पूरे देश मे, बल्कि दुनिया मे ऐसा शायद एक भी शख्स ना मिले जो ये ना मानता हो कि जिस केस पर विजय गुरु निकल पड़े है उसका असल अपराधी ज़्यादा दिन तक पर्दे के पीछे छुपा नही रह सकता है "
" बटरिंग का कारण "
" ये बटरिंग नही गुरु, वास्तविकता है और इसी वास्तविकता के कारण मेरा ये मानना है कि शायद इसी बात से घबराकर उसने उल्टी-सीधी हरकते करनी शुरू कर दी है जो अब तक ये माने शांत बैठा था कि कदम-कदम पर वही होगा जो उसने रच रखा है इसलिए उसे और कुछ करने की ज़रूरत नही है "
" और अब वो ये मान रहा है कि वो हमे अपनी उल्टी-सीधी हर्कतो से उलझा लेगा "
" बौखलाहट के कारण शायद वो यही सोच रहा है जबकि ये उसकी सबसे बड़ी ग़लतफहमी है, मेरा मानना ये है कि इस किस्म की हरकते करता रहा तो वक़्त से पहले आपके सामने एक्सपोज़ हो जाएगा, कयि बार आदमी का नाम बहुत बड़ा काम करता है गुरु, इस मामले मे भी यही लग रहा है, जो मुजरिम एक बार षड्यंत्र रचने के बाद, अब तक खामोशी साधे राजन सरकार अंकल की बर्बादी का तमाशा देख रहा था और ये सोच रहा था कि अब उसे कुछ भी 'और' करने की ज़रूरत नही है, उसके दिमाग़ मे आपके सक्रिय होते ही खलबली मच गयी है "
" तुम्हारी थियरी को सच मान लिया जाए तो सवाल ये उठता है कि उसे हमारे सक्रिय होने का पता कैसे लगा "
" ये तो आपने बहुत ही बचकानी बात कह दी गुरु, ऐसा तो हो ही नही सकता कि कोई शिकारी अपने शिकार पर नज़र ना रखे, सरकार अंकल जिसके भी शिकार है, वो 24 घंटे इनपर नज़र रखे हुए होगा और उसने जान लिया होगा कि आप निकल पड़े है "
" बच्चे तो हम है ही दिलजले बचकानी बात हम नही करेंगे तो क्या तुम करोगे जिसके पैर कब्र मे लटक चुके है "
" अब आप मज़ाक करने लगे है "
" अजी, मज़ाक करे हमारे दुश्मन... खैर, ये सवाल हमारे सामने ज़हरीले नाग की तरह फन उठाए खड़ा है कि अगर कोई सरकार-ए-आलम पर नज़र रखे हुवे है तो अब तक हमारी गिद्ध जैसी दृष्टि के दायरे मे क्यो नही आया "

 

15

" पीछे उसने जो कुछ किया गुरु, वो बताता है कि वो उतना फुद्दु भी नही है कि आपको पहली ही नज़र मे नज़र आ जाए, बल्कि मैं तो ये कहूँगा कि वो कोई बहुत ही शातिर शख्स है, इतना शातिर कि जिसने पोलीस, मीडीया और पब्लिक को ही नही बल्कि कोर्ट तक को ये मानने पर मजबूर कर दिया है जो वो चाहता है, इतनी आसानी से वो आपके हाथ भी नही आएगा "
" तुम तो यार दोनो हाथो मे लड्डू लेकर मटरगश्ती करते घूम रहे हो, एक तरफ हमारी बटरिंग भी कर डाली, दूसरी तरफ अपराधी को जादूगर भी बता डाला "
" दोनो ही बात सच है गुरु, इस बात को यू भी कहा जा सकता है कि इस टकराव मे मज़ा आएगा, आपके हाथ भी वो आसानी से आने वाला नही है, बहुत छकाएगा लेकिन केवल छका ही सकेगा, मैं जानता हू, अंततः आपके हाथ उसके गिरेबान पर होंगे "
" जब होंगे तब होंगे, फिलहाल तो हमारी खोपड़ी झन्नात हुई पड़ी है दिलजले, दिमाग़ का काफ़ी मालूदा निकालने के बावजूद भी नही समझ पा रहे है कि मिसेज़. सरकार को किस मकसद से किडनॅप किया गया होगा और.... "
विजय ने अपनी बात खुद अधूरी छोड़ दी.
विकास को पूछना पड़ा," चुप क्यो हो गये गुरु "
इस बार विजय विकास के सवाल का जवाब देने की जगह राजन सरकार से मुखातिब होता बोला," मिसेज़. चंदानी का पूरा नाम क्या है सरकार-ए-आलम "
" कंचन चंदानी "
विजय ने ऐसे लहजे मे पूछा जैसे कोई लड़का अपनी होने वाली दुल्हन के बारे मे पूछ रहा हो," कुछ और बताइए ना उनके बारे मे "
विजय की टोन के कारण राजन बुरी तरह बौखला गया था, मुँह से निकला," और क्या बताऊ "
" आपकी कैसी पट रही है उनसे "
" ओह " जैसे अचानक बात राजन की समझ मे आई," तुम शायद उन मीडीया रिपोर्ट्स के कारण ऐसा पूछ रहे हो जो पिच्छले साल अख़बार की सुर्खिया बनी थी "
" न्यूज़ चॅनेल्स की भी " विजय ने बात पूरी की.
" तुम समझ सकते हो विजय... बल्कि अब तो देश का बच्चा-बच्चा समझता है कि अख़बार और न्यूज़ चॅनेल्स को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए चटपटी और सनसनीखेज न्यूज़ चाहिए, इस बात की उन्हे कोई परवाह नही रहती कि उनकी इस कुछ देर की सनसनी से किसी की पारिवारिक लाइफ समाप्त हो सकती है या पूरा कॅरियर समाप्त हो सकता है "
" क्या आप ये कहना चाहते है कि आपके और कंचन चंदानी के बीच कभी कोई अफेर नही रहा "
" बिल्कुल नही रहा " राजन सरकार से दृढ़तापूर्वक कहा.
" यदि कही धुँआ नज़र आता है तो कही ना कही आग ज़रूर लगी होती है सरकार-ए-आली, भले ही वो आग किसी ने अपने घर के कूड़े-करकट मे ही क्यो ना लगाई हो "
" पता नही तुम बात कौन सी भाषा मे करते हो "
" बोलते तो हुजूर हम हिन्दी ही है, ये बात अलग है कि सामने वाले की समझदानी मे घुसकर वो भिड़ी बन जाती है " विजय सदाबहार टोन मे कहता चला गया," हमारे कहने का मतलब ये है कि कही ना कही छोटी-मोटी आग तो ज़रूर लगी होगी जो धुँआ उठा, माना कि अख़बारो मे तिल का ताड़ बना दिया जाता है मगर तिल तो कही ना कही होता ही है जनाब, बगैर तिल के तो खबर्चि भी ताड़ नही बना सकते, आप फिर कहेंगे कि हम पता नही कौनसी भाषा मे बात कर रहे है इसलिए सर्फ एक्स्सेल से धोकर सॉफ कर देते है कि आपके और कंचन चंदानी के बीच कुछ तो रहा होगा जिसे लेकर खबर्चियो ने इतना तूफान उतारा, यहाँ तक लिख दिया कि आपके और कंचन चंदानी के संबंधो की जानकारी आपके बेटे कान्हा को हो गयी थी, वो आपके भेद को सबके सामने खोल देने की धमकी देता था, उसकी हत्या का एक कारण ये भी हो सकता है, हो सकता है जब आपने उसे मीना के साथ रंगे हाथो पकड़ा तो उसने आपको धमकी दी हो कि.... "
" बस-बस विजय " लगभग चीखने की सी हालत मे कहते हुए राजन सरकार ने अपने दोनो हाथ कानो पर रख लिए," मैं इससे ज़्यादा नही सुन सकता "
" इसमे नया क्या कहा हम ने, वही दोहराया है जो अख़बारो मे छपता रहा है, फिर कानो पर हाथ रखने वाली क्या बात हो गयी "
" तुम मेरे दोस्त के बेटे हो, तुम्हारे मुँह से अपने लिए ये सब सुनना मेरे लिए शरामनाक है, इसे मेरा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि मुझे ये दिन देखना पड़ा "
" जब तक हम इस केस पर काम कर रहे है तब तक आपको ये भूलना पड़ेगा कि हम आपके दोस्त के बेटे है "
" कोशिश कर रहा हू "
" तो जवाब दीजिए, ऐसा क्या हुआ था कि वो अफवाह.... हां, फिलहाल हम उसे अफवाह ही कह रहे है, बहरहाल, आपके आसपास अन्य महिलाए भी रहती होंगी, ऐसा क्या कारण बना कि पोलीस ने कंचन चंदानी से ही आपका नाम जोड़ा "
" सच्चाई ये ही है कि मैं इस बारे मे कुछ नही जानता " वो इस तरह बोला जैसे स्पष्टीकरण देना भी शरम्नाक लग रहा हो," बस, इतना जानता हू कि उस वक़्त मैं बुरी तरह चौंका था जब राघवन ने इस बारे मे पहला सवाल किया था बल्कि चौंकने से ज़्यादा गुस्से मे आ गया था, हलक फाड़कर चीख पड़ा था, राघवन से पूछा था कि तुम मुझ पर और कंचन पर ऐसी गंदगी कैसे उच्छाल सकते हो "
" उसने क्या जवाब दिया "
" कहने लगा ऐसी बाते पता लगाने के पोलीस के अपने सुत्र होते है और उनके बारे मे हम किसी को बताया नही करते, अक्क्यूस्ड को तो किसी भी हालत मे नही "
" यानी उसने नही बताया "
" नही "
" बाद मे भी, किसी अन्य सुत्र से भी आपको पता नही लग सका कि ये कीचड़ उसने किसके बेस पर उछाली थी "
" नही, और उस वक़्त तो मैं ना केवल असचर्यचकित रह गया था बल्कि गलानि से डूब मरने को जी चाहा जब एक न्यूज़ चॅनेल पर देखा कि पोलीस ने अपनी मनघड़ंत कहानी का संबंध मेरे बेटे के मर्डर से जोड़ दिया है, चॅनेल पर कहा जा रहा था कि कान्हा को मेरे और चाँदनी के संबंद्धो का पता चल गया था और उसने मुझे उस बारे मे सबको बता देने की धमकी दी थी इसलिए मैंने उसे मार डाला "
" उस पर आपने कुछ किया नही "
" जब तुम इतना सबकुछ जानते हो तो ये भी जानते होगे कि मैंने अगले ही दिन प्रेस से कहा था कि ये सब झूठ और पोलीस की बनाई हुई मनघड़ंत स्टोरी है जिसमे कोई सच्चाई नही है "
" पर इस बारे मे कंचन चंदानी ने कभी कुछ नही कहा "
" वो बेचारी क्या कहती, उसके कुछ भी कहने का मतलब अपनी ही छीछालेदारी करना होता "
" मिस्टर. चंदानी क्या कहते है "
" उनका कहना भी यही था कि वो अपनी और अपनी पत्नी की और ज़्यादा छीछालेदारी नही करना चाहते "
" आपके और उनके संबंध कैसे है "
" बहुत अच्छे, पड़ोसी तो और भी काई है बल्कि पार्क मे रहने वाले सभी एक-दूसरे को जानते है लेकिन मिस्टर. चंदानी से शुरू से ही घरेलू संबंध है, एक-दूसरे के घरो मे आना-जाना है "
" था या है "
" है "
विजय ने अगले सवाल के लिए मुँह खोला ही था कि विकास की आवाज़ कानो मे पड़ी," शायद हम पहुच गये है गुरु "
विजय ने विंड्स्क्रीन के पार देखा, वहाँ लोगो की भीड़ लगी हुई थी, पोलीस भी नज़र आ रही थी, राजन साकार की गाड़ी ड्राइवर ने भीड़ के करीब खड़ी कर दी थी.

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राघवन मजूमदार.
जी हां, उस इनस्पेक्टर के सीने पर लगी नेंप्लेट पर यही लिखा था जिसने आगे बढ़कर रघुनाथ को जोरदार सल्यूट ठोका.
रघुनाथ ने रोबीले लहजे मे पूछा," क्या हुआ है "
" मिसेज़. सरकार का अपहरण हो गया है सर, अपहरणकर्ता 4 थे, चारो ने अपने चेहरे कॅप, चश्मे और रुमालो से ढके हुवे थे, वे एक मारुति वॅन मे थे, जिसका नंबर आरजे 1252 था "
" नंबर किसने बताया "
" मिसेज़. कंचन चंदानी ने "
" उन्हे कैसे पता "
" उनका कहना है कि गॅलरी मे मौजूद उनका डॉगी अचानक बहुत ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा, आमतौर पर वो इस तरह तभी भौंकता है जब कोई घर मे घुसने की कोशिश करे, वे अपने बेडरूम मे थी, डॉगी के भौंकने का कारण जानने बाल्कनी मे आई तो देखा कि मिस्टर. सरकार के फ्लॅट के सामने एक मारुति वन खड़ी थी, वे माजरे को समझने की कोशिश कर ही रही थी कि 4 लोग मिसेज़. सरकार को उठाए बाहर निकले और उन्हे गाड़ी मे डाल लिया, वे समझ गयी कि मिसेज़. सरकार को किडनॅप करने की कोशिश की जा रही है इसलिए चिल्लाने लगी, साथ ही गाड़ी का नंबर भी दिमाग़ मे नोट कर लिया था, जब बदमाश गाड़ी लेकर भागे तब तक उनकी चीख-चिल्लाहट सुनकर पार्क मे कयि लोग घरो से निकल आए थे, सभी शोर मचाने लगे, कुछ ने गाड़ी पर पत्थर भी फेंके, कयि का दावा है कि उनके पत्थर गाड़ी मे लगे थे "
एकाएक विजय बोला," एक पत्थर वॅन के पिच्छले काँच को तोड़ता हुआ उसके अंदर भी जा घुसा था "
" तुम्हे कैसे पता " रघुनाथ ने बुरी तरह चौंकते हुवे पूछा.
" हमारे तीसरे नेत्र ने देखा "
" बकवास ना करो विजय, सीधी तरह बताओ, ये बात तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो "
" अजी दावे के साथ कहाँ कही है तुलाराशि, हम ने तो ऐसे ही हवा मे उछाल दी और तुम हो कि उसे लपक कर उच्छले-उच्छले फिर रहे हो, छोड़ो उस बात को और अपने उस प्यादे से पूछताछ जारी रखो "
रघुनाथ भले ही विजय को कच्चा चबा जाने के अंदाज मे घूर कर रह गया था लेकिन विकास के जेहन मे फुलझड़िया सी छूट रही थी, वो हरगिज़ नही मान सकता था कि विजय गुरु ने ये बात बिना किसी ठोस आधार के कही होगी, निश्चित रूप से उन्हे कोई सुराग मिला होगा लेकिन क्या और कब.
वो भी तो शुरू से उनके साथ ही है.
वो तो नही जान पाया कि किसी पत्थर ने बदमाशो की वॅन का काँच तोड़ा है.
वे कैसे जान पाए.
कहाँ से क्या सूत्र हाथ लगा उनके.
काफ़ी दिमाग़ घुमाने के बावजूद वो समझ ना सका जबकि रघुनाथ ने राघवन से पूछा," तुम यहाँ कितनी देर पहले पहुचे "
" 15 मिनिट पहले सर "
" वारदात के बारे मे कैसे पता लगा "
" किसी ने 100 नंबर पर फोन किया था, वहाँ से मुझे सूचना दी गयी और मैं तुरंत यहाँ पहुचा "
" घटना कितनी देर पहले की है "
" करीब 30 मिनिट पहले की "
" यानी तुम्हारे आने से 15 मिनिट पहले की "
" जी "
" गाड़ी का नंबर फ्लश किया "
" मिसेज़. चंदानी से बात होते ही मैंने वाइयरलेस पर नंबर फ्लश कर दिया है सर, करीब 10 मिनिट हो चुके है "
" तब तो वे किसी नाके पर पकड़े जाने चाहिए "
एकाएक विजय बोल पड़ा," नही पकड़े जाएँगे "
" क्यो " रघुनाथ ने उसे फिर घूरा.
" क्योंकि वॅन को वे ज़्यादा दूर नही ले गये है बल्कि एक मदिर के बगल मे खाली पड़ी जगह पर छोड़ गये है "
" तुम्हे कैसे मालूम "
" काला जादू तुलाराशि " विजय ने किसी तांत्रिक की तरह हाथ और उंगलिया घुमाते हुवे कहा," काला जादू, उसके बूते पर हम बहुत कुछ जान सकते है "
विकास बोला," इसका मतलब आपने वॅन को यहा आते वक़्त रास्ते मे ही देख लिया था "
" तुम्हे हमारे काले जादू को हवा मे उड़ाकर हल्का करने का कोई हक़ नही है दिलजले "
 


17

" इस दीवार के उस तरफ " राजन ने उस दीवार के विपरीत वाली दीवार की तरफ इशारा किया जिस पर एसी था.
" हम उसे देखना चाहते है "
" आओ " कहने के बाद वो पुनः लॉबी मे आया और उन्हे उस कमरे मे ले गया जिसका दरवाजा उसके बेडरूम के दरवाजे के बगल मे था, वो कमरा 14 बाइ 12 का था, उसमे भी एक डबल बेड, एक राइटिंग टेबल, कुर्सी, एसी और टीवी मौजूद था, टीवी के अलावा वहाँ एक सीडी प्लेयर भी रखा हुआ था और इस कमरे मे विंडो नही बल्कि स्प्लिंट एसी लगा हुआ था.
सारे फ्लॅट की तरह वहाँ भी कुछ दिन पहले ही पुताई हुई थी, विजय ने पूछ ही लिया," पुताई कब कराई "
" तीन महीने पहले " राजन सरकार ने बताया.
मुकम्मल कमरे का निरीक्षण करने के बाद विजय ने दोनो कमरो के बीच की दीवार को अपनी मुट्ठी से ठोकते हुए कहा," ये सिर्फ़ 4 इंच की है सरकार-ए-आली, अगर किसी और ने कान्हा और मीना को हॉकी से मारा था तो वे चीखे ज़रूर होंगे और ये दीवार उनकी आवाज़ो को आपके बेडरूम मे जाने से नही रोक सकी होगी "
" मानता तो हू मैं भी यही बात "
" माननी पड़ेगी क्योंकि आपके ना मानने से फ़र्क पड़ने वाला नही है, पोलीस का अगर ये कहना है कि उस हालत मे आप सोते हुए नही रह पाए होंगे तो उसका कहना ठीक ही है "
" तुम कान्हा मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे हो या इंदु के किडनॅपर्स का पता लगाने की "
" अमा हां यार " विजय ने अपने माथे पर हाथ मारा और इस तरह बोला जैसे सचमुच भटक गया था," हम तो ये भूल ही गये कि इस वक़्त हम यहाँ आपकी धरमपत्नी के किडनॅप की डोर सुलझाने आए थे, पुराने मामले मे जा उलझे, इससे तो हमे निकलना पड़ेगा मगर प्लीज़, ये और बता दीजिए कि मीना कहाँ सोती थी "
" आओ " कहने के साथ वह उन्हे उस छोटे से कमरे मे ले गया जिसमे इस वक़्त भी फोल्डिंग पलंग बिच्छा हुआ था.
कमरे का निरीक्षण करते विजय ने पूछा," हर कमरे की तरह इस कमरे मे भी 4 कोने है, हॉकी कौन से कोने मे रखी थी "
" हॉकी इस कमरे मे नही थी विजय " राजन सरकार ने ऐसे अंदाज मे कहा जैसे इस सेंटेन्स को कहते-कहते थक चुका हो.
" पोलीस का कहना तो यही है.... "
" कितनी बार कहूँ, वो स्टोरी झूठी है, मैं अपनी हॉकी मीना के कमरे मे क्यो रखूँगा "
" कहाँ रखी थी "
" हमेशा की तरह बेडरूम मे "
" तो पोलीस ने अपनी स्टोरी मे उन्हे यहाँ क्यो दिखाया, आपके कमरे मे ही क्यो ना दिखा दिया जो कि बकौल आपके सच भी था, वे यदि अपनी स्टोरी मे यही कह देते कि आपने अपने कमरे से हॉकी लाकर उन दोनो को मार दिया तो क्या फ़र्क पड़ जाता "
" राघवन ने अपनी स्टोरी एक-एक पॉइंट पर बहुत गौर करके बनाई है, उस स्टोरी के मुताबिक वो ये कहना चाहता है कि अपने कमरे मे मैंने खटके की आवाज़ सुनी, मैं लॉबी मे आया, उस वक़्त तक मुझे ये पता नही था कि मीना कान्हा के कमरे मे है, इस बात का इल्म तब हुआ जब मीना को उसके कमरे मे नही पाया, ऐसा इल्म होते ही मेरे जेहन पर गुस्सा सवार हो गया और वहाँ रखी दो मे से एक हॉकी उठाकर कान्हा के कमरे मे पहुचा, अगर वे अपनी स्टोरी यू गढ़ते कि मैं अपने ही कमरे से हॉकी लेकर निकला था तो ये सवाल उठता कि बाहर आने से पहले मुझे मीना और कान्हा के एक कमरे मे होने के बारे मे कैसे पता लगा, ये सवाल ना उठे, इसलिए उन्होंने हॉकी का यहाँ होना बताया है "
" अगले दिन यानी हत्या वाली सुबह पोलीस को आपके कमरे से कोई हॉकी नही मिली "
" ये सच है "
" कहाँ चली गयी "
" मुझे नही मालूम "
" ये जवाब जाँचने वाला नही है, इसलिए पोलीस ने माना कि उन्हे आपने ही गायब किया था और वे आजतक भी नही मिली है, इसलिए क्योंकि उनमे से कोई एक हॉकी मर्डर वेपन थी "
" मुझे मालूम है मेरा जवाब जाँचने वाला नही है पर सच्चाई यही है, हॉकी वहाँ से गायब थी जहाँ मैंने 4 जून की रात रखी थी "
" इसका मतलब तो ये हुआ कि हत्यारा या हत्यारे जो भी थे वे कान्हा के कमरे मे जाने से पहले आपके कमरे मे आए, वहाँ से हॉकी उठाई और तब कान्हा के कमरे मे जाकर हत्याए की "
" लगता तो ऐसा ही है लेकिन.... "
" लेकिन "
" इसमे पेंच ये है कि 5 जून की सुबह जब हम सोकर उठे तो कमरे का दरवाजा अंदर की तरफ से ठीक उसी तरह बंद था जिस तरह हम ने सोने से पहले 4 जून की रात को किया था "
" तो फिर आपके कमरे से हॉकी कौन और कैसे ले गया "
" ऐसे अनेक सवाल है जिनका मैं संतुष्टिजनक जवाब नही दे पा रहा, जवाब इसलिए नही दे पा रहा क्योंकि लाख दिमाग़ खपाने के बावजूद नही समझ पा रहा कि क्या कैसे हुआ "
" उहू " विजय इनकार मे गर्दन हिला उठा," आपको बेगुनाह साबित करना तो वाकयि नामुमकिन सा काम है, बकौल आपके, आपका कमरा अंदर से बंद था और हॉकी गायब हो गयी, कैसे हो सकता है ऐसा, एक पुरानी कहावत है, चोर आँखो मे लगा काजल चुरा लिया करते थे और जिनकी आँखो से चुराया करते थे उन्हे पता तक नही लगता था कि काजल चुरा लिया गया है, ये मामला तो कुछ वैसा ही है "
एक बार फिर चुप रह जाने के अलावा जैसे राजन सरकार के पास कोई चारा नही था, विजय के उपरोक्त शब्दो से उसके चेहरे पर निराशा ज़रूर फैल गयी थी.
कुछ देर निराशा मे डूबा रहा लेकिन फिर अचानक इस तरह बोला जैसे उसका जेहन इंदु की तरफ मूड गया हो," हम फिर कान्हा मर्डर केस मे उलझ गये जबकि इस वक़्त सबसे पहली ज़रूरत इंदु का पता लगाना है "
" सो तो है " विजय ने भी खुद को कान्हा मर्डर केस से बाहर निकाला," उसके लिए हमे मिसेज़. चंदानी से रूबरू होना पड़ेगा और उनसे रूबरू होना तो कान्हा मर्डर केस के सीलसले मे भी ज़रूरी है, बहरहाल, वे एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है "

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कंचन पर नज़र पड़ते ही विजय के जेहन मे सबसे पहला ख़याल ये उभरा था कि, वाकाई कोई भी मर्द इस औरत के रूपजाल मे फँस सकता है, उसकी उम्र करीब 45 साल थी मगर उम्र के उस पड़ाव पर भी वो बेहद आकर्षक ही नही बल्कि सेक्सी भी नज़र आती थी, लंबे कद की थी वो, गोरे और गोल चेहरे वाली.
आँखे बड़ी-बड़ी और बेहद नशीली थी.
त्वचा चमकीली, कोई झुर्री नही.
पेट अंदर.
जिस्म गठा हुआ, भारी वक्ष, भारी नितंब, गुलाबी होंठ.
किनारे और कन्पटियो की कुछ लट सफेद हो गयी थी मगर वे लट उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी.
इस वक़्त वो शिफॉन की सफेद साड़ी और स्लीवेलेस ब्लाउस मे गजब ढा रही थी, उसके गोल और गोरे बाजू सॉफ दृष्टिगोचर हो रहे थे, एक भी बाल नही था उनपर.
जिस वक़्त विजय विकास, रघुनाथ, धनुष्टानकार और राजन सरकार के साथ ए-74 से बाहर निकला उस वक़्त भी कॉलोनी वालो की भीड़ बदस्तूर लगी हुई थी.
उसी मे कंचन चंदानी भी थी.
राजन सरकार ने उसके करीब पहूचकर कहा था," कंचन, मिस्टर. विजय तुमसे मिलना चाहते है "
उसके चेहरे पर उलझन के से भाव उभरे.
पूछा," कौन मिस्टर. विजय "
" मैंने कान्हा मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन इन्हे ही सौंपी है " राजन सरकार ने विजय की तरफ इशारा करके कहा था," ये इस देश के सबसे बड़े जासूस है "
" अजी नही " कहने के साथ ही विजय ने अपना चेहरा इस कदर लाल कर लिया जैसे 16 साल की लड़की को किसी ने पहली बार प्रपोज़ किया हो तथा कहता चला गया," हम तो ना पिद्दी है, ना पिद्दी के शोरबे, ये तो राजन सरकार साहब की जर्रानवाजी है कि हमे इतने भारी-भरकम शब्दो से नवाज रहे है "
उसकी इस हरकत ने कंचन को हतप्रभ सा कर दिया.
वो चाहकर भी कुछ ना बोल सकी जबकि विजय ने शरमाते से अंदाज मे कहा," क्या आप हमे अपने फ्लॅट के अंदर बैठकर बात करने का सुअवसर प्रदान करेंगी "
कंचन चंदानी समझ ना सकी कि विजय किस किस्म का जीव है, बोली," मुझसे क्या बात करना चाहते है "
" थोड़ी प्राइवेट लिमिटेड बाते है " विजय उसी टोन मे बोला था," सार्वजनिक स्थल पर नही की जा सकती "
कंचन चंदानी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि राजन सरकार ने बात संभाली," मिस्टर. विजय इसलिए तुमसे बात करना चाहते है क्योंकि सबसे पहले तुम्ही ने इंदु के किडनॅपर्स को देखा था और गाड़ी का नंबर पोलीस को बताया था "
" आइए " कहकर वो ए-76 की तरफ बढ़ गयी.
लोहे वाला गेट पार करके वे गॅलरी मे पहुचे ही थे कि कुत्ते के भौंकने की आवाज़ गूंजने लगी.
वो बोली," डरिये नही, मैंने उसे बाँध दिया है "
" बड़ा अच्छा किया " विजय बोला," वरना हम यही से भाग जाते और आप गुणा हो जाती, ये बेचारे प्लस-माइनस बन जाते "
एक बार फिर कंचन चंदानी की समझ मे विजय की बात नही आई बल्कि बात की तो बात ही दूर, विजय ही उसकी समझ मे नही आया था लेकिन वो बोली कुछ नही, खामोशी के साथ उन्हे अपने ड्राइंगरूम मे ले आई.
बैठने का इशारा करने के बाद खुद भी एक सोफा-चेअर पर बैठ गयी, विजय बोला," अब आप पूछेंगी कि हम गरम लेंगे या ठंडा, दरअसल हम ठंडे मे गरम मिलकर पीते है, क्या आप कोई ऐसा पेय पदार्थ पेश कर सकती है "
अंततः कंचन चंदानी के मुँह से ये शब्द फिसल ही गये," ये आदमी पागल है क्या "
" जी पूरा पागल तो नही पर थोड़ा सा खिसका हुआ ज़रूर हू " विजय ने कहा," इसलिए लोग मेरे नज़दीक से ज़रा खिसककर ही बैठते है क्योंकि मैं कब कहा चुन्ट लूँ, कुछ पता नही "
कंचन चंदानी हकबकाकर राजन की तरफ देखने लगी, इस बार विकास भी अपने होंठो पर फैलने वाली मुस्कान को नही रोक सका था जबकि रघुनाथ विजय की हर्कतो पर झल्ला रहा था.
मोंटो ने अपना हाथ मुँह पर रख लिया था.
राजन ने कहा," कंचन, मिस्टर. विजय मज़ाक कर रहे है "
" म...मज़ाक " वो चिहुनकि," ये किस किस्म का मज़ाक है "
" प्लीज़ विजय, तुम्हे कंचन से जो भी पूछना है, सीधे-सीधे पूछ लो," राजन सरकार ने बात को संभालने की कोशिश की," इस बेचारी को हलकान क्यो कर रहे हो "
" आपने पहले ही ऐसा कह दिया होता तो हम इतना शरमाते ही क्यो " विजय ने सीधा कंचन की आँखो मे झाँका," सीधे-सीधे ही पूछ सकते है तो सीधे-सीधे ही बताइए, आपने क्या देखा "
कंचन ने वही कहा जो राघवन ने बताया था.
विजय का सवाल," जब वे सरकारनी को वॅन मे ठूंस रहे थे उस वक़्त वे चीख-चिल्ला रही थी या नही "
 


18

" सरकारनी "
" मिस्टर. सरकार की पत्नी सरकारनी ही हुई ना "
इस बार तो कंचन चंदानी भी ठहाका लगाकर हंस पड़ी और जब उसने ऐसा किया तो उसके मोतियो जैसे दाँत चमक उठे.
बड़ी खनकदार हँसी थी उसकी, हँसती हुई बोली," आप तो वाकाई बहुत दिलचस्प आदमी है, मैंने कभी सोचा भी नही था कि इंदु को सरकारनी भी कहा जा सकता है "
" आदत खराब है हमारी " विजय ने कहा," हम वही करते है जो किसी ने सोचा नही होता "
" इंदु चिल्ला नही रही थी "
" क्यो "
" म..मुझे क्या पता "
" ज़रूर वे बेहोश होंगी "
" शायद ऐसा ही था, होश मे होती तो चिल्लाति क्यो नही "
" शायद नही पक्का " विजय बोला," उन्हे इंजेक्षन लगाकर बेहोश किया गया था, मोंटो प्यारे, वो सरिंज निकालकर मेज पर पटक दो जिसे तुमने अपने अब्बाजान की प्रॉपर्टी की तरह सरकार-ए-आली के ड्रॉयिंग रूम से उठाकर अपनी जेब के हवाले किया था "
धनुष्टानकार ने ऐसे स्टाइल मे माथे पर हाथ मारा जैसे कह रहा हो, ये बात भी छुपी ना रह सकी, उसने अपने छोटे से कोट की जेब से सरिंज निकालकर मेज पर रख दी.
" ओह " सरिंज पर नज़ारे गढ़ाए राजन सरकार के मुँह से शब्द निकले," इससे तो लगता है कि वे लोग बहुत बेरहम है, प्लीज़ विजय, जैसे भी हो, जल्दी से जल्दी पता लगाने की कोशिश करो कि वे लोग इंदु को कहाँ ले गये है, कही ऐसा ना हो कि..... "
" कैसा ना हो कि "
" क...कही वे इंदु को कोई नुकसान ना पहुचा दे "
" इस तरफ से बेफ़िक्र रहो " विजय ने कहा," वे उन्हे किसी किस्म का नुकसान नही पहुचाएँगे "
" कैसे कह सकते हो "
" नुकसान पहुचना होता तो किडनॅप करके नही ले गये होते, वही, फ्लॅट मे ही नुकसान पहुचकर निकल गये होते "
" क...क्या कहना चाहते हो तुम, फिर उन्होने इंदु को किडनॅप क्यो किया, क्या चाहते होंगे वे "
" खुद बताएँगे "
" मतलब "
" किडनॅपर अक्सर खुद बताते है कि उन्होने किडनॅप क्यो किया है, इस मामले मे भी ऐसा ही होने वाला है, बस अपना मोबाइल संभालकर रखो, देर-सवेर इसी पर फोन आएगा, अगर उस वक़्त हम आस-पास ना हो तो कह देना अभी आप बात नही कर सकते क्योंकि आपके इर्द-गिर्द भीड़ है, बाद मे बात करोगे, हमे बता देना, फिर हम बात करेंगे उनसे और तब आप हमारे बात करने का स्टाइल देखना, हम उन्हे फोन पर ही चित्त कर देंगे "
" मैं तुम्हारे आसपास क्यो नही होऊँगा " राजन बोला," जब तक इंदु नही मिल जाती मैं तुम्हारे साथ ही हू "
" साथ ज़रूर रहोगे लेकिन पास नही रहोगे "
" मतलब "
" कुछ देर के लिए यहाँ से गारत हो जाओ, या तो इस फ्लॅट के किसी और कमरे मे चले जाओ या बाहर निकल जाओ "
" मैं समझा नही कि तुम क्या कहना चाहते हो "
" हमारी बात पर शायद आपने गौर नही किया, हम ने कहा था, हमे चाँदनी से प्राइवेट लिमिटेड बाते करनी है "
" चाँदनी "
" चंदानी की पत्नी चाँदनी "
एक बार फिर कंचन ठहाका लगाकर हंस पड़ी, बोली," आप वाकाई बहुत दिलचस्प आदमी है मिस्टर. विजय "
" तारीफ के लिए शुक्रिया चाँदनी जी, वैसे कुछ देर पहले हम आपको पागल नज़र आ रहे थे "
" ऐसा अक्सर होता है, पहली नज़र मे आदमी की पहचान नही हो पाती, वैसे क्या इन सभी को बाहर जाना होगा "
" सिर्फ़ सरकार-ए-आली को, बाकी सब यही रहेंगे "
राजन ने कहा," यानी तुम्हे सिर्फ़ मुझसे परहेज है "
" जाहिर है "
" ओके " कहने के बाद वो उठकर बाहर चला गया.

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" हां तो मिसेज़. चाँदनी " विजय कंचन चंदानी से मुखातिब हुआ," सबसे पहले आप हमे ये बताइए कि कान्हा और मीना का मर्डर किसने किया "
" म...मुझे क्या मालूम "
" सबको मालूम है तो आपको क्यो नही मालूम "
" क्या मालूम है सबको "
" कि मर्डरर सरकार दंपति है "
" ग़लत मालूम है "
" दावे की वजह "
" क्योंकि हम राजन और इंदु को अच्छी तरह जानते है और इस बात के गवाह है कि वे कान्हा से कितना प्यार करते थे, वे उसके लिए अपनी जान दे तो सकते थे पर उसकी जान ले नही सकते थे "
" गुस्से मे आदमी वो भी कर बैठता है जो सामान्य हालात मे करने के बारे मे सोच भी नही सकता "
" वैसे हालात कभी आए ही नही "
" ये बात आप इतने विश्वासपूर्वक कैसे कह सकती है "
" एक बार फिर वही कहूँगी, इस परिवार को जितने नज़दीक से हम ने जाना है, उतने नज़दीक से शायद किसी ने नही जाना "
" आप लगातार राहुल गाँधी की तरह मैं क़ी जगह हम शब्द का इस्तेमाल कर रही है, इस हम मे कौन-कौन शामिल है "
" मैं और मेरे पति "
" कहाँ है वे "
" आज सुबह ही किसी काम से देल्ही गये है, मैंने इंदु के बारे मे उन्हे भी बता दिया है, वे वहाँ से चल पड़े है, शाम तक पहुच जाएँगे, सुनते ही उनकी भी वही प्रक्रिया थी जो मेरी थी, ये कि इन लोगो ने कभी किसी का कुछ नही बिगाड़ा फिर पता नही भगवान इनसे किस बात का बदला ले रहा है "
" आपके बच्चे "
" एक बेटी है, पुणे से एमबीए कर रही है "
" सरकार परिवार से काफ़ी सिंपती है आपको "
" क्यो नही होगी "
" क्यो है "
" क्योंकि हम अच्छी तरह जानते है कि पोलीस की स्टोरी मे बाल-बराबर भी सच्चाई नही है, सबकुछ झूठ का पुलंदा है, जो शख्स ये जानते है कि जिसका बेटा मरा वे ही उसकी हत्या के इल्ज़ाम मे खींचे-खींचे फिर रहे है, उन्हे उनसे स्य्म्प्थी नही होगी "
" या कोई और वजह है "
" और क्या वजह हो सकती है "
विजय ने चोट की," आपके और मिस्टर. सरकार के संबंध "
" ओह " कंचन के आकर्षक होंठ गोल हो गये," तो आप भी उस बारे मे सोच रहे है "
" आप भी से मतलब "
" ये स्कॅंडल इनस्पेक्टर राघवन का खड़ा किया हुआ है, एक घटिया इनस्पेक्टर ने एक घटिया स्टोरी गढ़ी और आजकल का मीडीया तो भूखा ही ऐसी चटपटी स्टोरीस का है, उन्हे किसी की इज़्ज़त से कोई लेना-देना नही, टीआरपी बढ़नी चाहिए, अगर इस स्टोरी मे दम होता तो कान्हा-मीना मर्डर केस के तहत कोर्ट मे भी ले जाई गयी होती मगर नही.... ये स्टोरी कोर्ट मे नही ले जाई गयी, सिर्फ़ मीडीया तक सीमित रही, सिर्फ़ हमारी छिछालेदारी की गयी "
" आपके हिसाब से स्टोरी कोर्ट तक क्यो नही ले जाई गयी "
" क्योंकि साबित नही की जा सकती थी, साबित वो किया जाता है जिसका कोई सबूत हो और इस फेक स्टोरी का राघवन के पास कोई सबूत नही था "
विजय ने उसकी शरबती आँखो मे झाँकते हुवे पूछा," क्या आप पूरे विश्वास के साथ कह रही है कि आपके और मिस्टर. सरकार के बीच कभी कोई ऐसा-वैसा संबंध नही था "
" मैं इस सवाल का जवाब देना भी अपना अपमान समझती हू और इसके लिए केवल एक ही आदमी को दोषी मानती हू, उसका नाम है राघवन, उसी ने ये स्टोरी मीडीया को परोसी "
" इनस्पेक्टर राघवन ने ऐसा क्यो किया "
" जो गंदे होते है वो दूसरो के बारे मे भी गंदा ही सोचते है "
" कही से कोई तो क्लू मिला होगा उसे "
" उसी से पूछ लीजिएगा और अगर वो बता दे तो मुझे भी बता दीजिएगा ताकि कुछ तो शांति मिले मुझे "
" यानी उसने आपको कभी कुछ नही बताया "
" पूछने के बावजूद नही, बस यही कहता रहा, पोलीस अपने सुत्र खोलती नही है, इस सेंटेन्स की आड़ मे तो चाहे जिस पर चाहे जो आरोप लगाया जा सकता है "
" यदि ये आरोप इतना बड़ा झूठ था तो जब आप पर लगा था, गुस्सा तो बहुत आया होगा आपको "
" जी चाहा था, इनस्पेक्टर का मुँह नोच लू "
" पर नोचा नही "
" मेरे वश मे नही था "
" मानहानि का केस करना तो वश मे था "
" करना चाहती थी, चंदानी साहब ने रोक दिया "
" क्यो "
" ये समझकर कि कुछ हासिल नही होगा, और बदनामी ही होगी हमारी, हमारे फोटो तक मीडीया मे आ जाएँगे "
" मेरा अगला सवाल इसी संबंध मे था, जब ये अफवाह उड़ी, उस वक़्त आपकी पारिवारिक लाइफ भी तो हिली होगी, मिस्टर. चंदानी को भी तो आप पर शक हुआ होगा "
" एक पर्शेंट भी नही "
" स्वाभाविक तो नही है ऐसा, आदमी आख़िर.... "
" पति-पत्नी का रिश्ता एक-दूसरे के विश्वास पर कायम होता है और मेरे तथा चंदानी साहब के बीच वो रिश्ता बहुत मजबूत है, यदि मैंने ज़रा भी महसूस किया होता कि मुझ पर से उनका विश्वास डिगा है तो मैं आज उनके साथ इस छत के नीचे ना रह रही होती, उसी वक़्त रिश्ता तोड़कर अलग हो जाती "
" काफ़ी बोल्ड मालूम पड़ रही है आप "
" मुझसे ज़्यादा बोल्ड चंदानी साहब है "
" वो कैसे "
" सरकार दंपति और हमारा संबंध ऐसा था कि शाम के वक़्त या तो वे यहाँ आ जाते थे या हम उनके घर चले जाते थे, मगर उस अफवाह के बाद मैंने राजन के घर जाना बंद कर दिया था, कुछ दिन चंदानी साहब अकेले जाते रहे जबकि राजन और इंदु हमारे यहाँ बिल्कुल नही आ रहे थे, फिर एक दिन चंदानी साहब ने मुझसे कहा, तुम राजन के घर जाने से क्यो मना कर देती हो, हमे उनके घर जाना चाहिए, ख़ासतौर पर इन दिनो क्योंकि उनका बुरा वक़्त चल रहा है, बुरे वक़्त मे अपने ही साथ छोड़ देंगे तो वे बेचारे तो टूट ही जाएँगे, तब मैंने कहा, मैं इसलिए नही जाती क्योंकि कॉलोनी वाले उल्टी-सीधी चर्चा शुरू कर देंगे, तब वे बोले, हमे कॉलोनी वालो की फ़िक्र करनी चाहिए या उनकी, जिनका हम जैसे चन्द लोगो के अलावा और कोई नही है, मतलब ये कि मुझे उनकी बात माननी पड़ी, मैं भी बिना किसी की परवाह किए उनके घर जाने लगी और अब तो वे भी यहाँ आ जाते है "
" बुरा ना माने तो एक बात पूछे "
" पूछिए "
" लगभग हर शाम वे यहाँ या आप वहाँ क्यो जाया करते थे "
" डिन्नर साथ ले लेते थे "
" सिर्फ़ डिन्नर "
" दो-दो पेग भी "
" आप और सरकारनी भी "
" जेंट्स ले सकते है तो लॅडीस क्यो नही "
" नही, वो मतलब नही था हमारा, बस सवाल किया, वैसे एक बात कहें, एक बार फिर, बुरा तो नही मानेगी "
" कहिए "
" कहीं उस अफवाह के पीछे यही कारण तो नही, छोटी सोच के पड़ोसियो को दो पड़ोसियो का इतना मेलजोल खटकने लगता है और वे कानाफूसियाँ शुरू कर देते है, राघवन की स्टोरी के पीछे कही ये कानाफूसियाँ ही तो नही थी "
" हो भी सकती है मगर हमे परवाह नही है "
विजय ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था कि आँधी-तूफान की तरह दौड़ता राजन सरकार अंदर आया.
वो उत्तेजित अवस्था मे था.
चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थी.
 


19

मोबाइल उसके हाथ मे था और वो ये कहता हुआ कमरे मे दाखिल हुआ था," आ गया, उसका फोन आ गया विजय, तुम्हारी बात सच साबित हुई "
" क्या कहा उसने "
" प...पाँच लाख रुपये माँग रहा है "
" इतने कम " विजय कह उठा," इतनी कम फिरौती तो आजकल बकरी के बच्चे की भी नही माँगी जाती "
" कह रहा था, पाँच लाख नही दिए तो इंदु को मार डालेगा "
" आप कह देते, मार डाल "
" क...क्या " उसके मुँह से चीख निकल गयी," ये तुम क्या कह रहे हो विजय, इंदु के लिए भला मैं ऐसा.... "
" समझिए सरकार-ए-आली, कोशिश कीजिए समझने की, उसने सरकारनी को मारने के लिए किडनॅप नही किया है, फिर वही कहेंगे, ऐसा करना होता तो आपके फ्लॅट पर ही कर डालता, उसे सरकारनी की जान नही, पाँच लाख चाहिए "
" लेकिन उसे फिरौती नही मिली तो मार सकता है ना "
" आपने क्या कहा "
" वही, जो तुमने कहा था, यही कि अभी मैं भीड़ मे हू, बाद मे बात करूँगा, बस इतना कहकर मैंने फोन काट दिया "
" लाइए, हमे दीजिए फोन "
राजन सरकार ने मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

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विजय ने लेटेस्ट कमिंग कॉल का नंबर देखा और रिडाइयल वाला बटन दबा दिया, जैसी की उम्मीद थी, स्विच ऑफ आया.
विजय ने नंबर रघुनाथ को दिया.
कहा," इसे सर्व्लेन्स पर लग्वाओ तुलाराशि, उम्मीद तो नही है कि वो इस नंबर को पुनः चालू करेगा लेकिन फिर भी, चान्स तो लिया ही जाना चाहिए, अगर उसने बेवकूफी कर दी तो हम उसके गले जा पड़ेंगे "
रघुनाथ ने पोलीस हेडक्वॉर्टर फोन लगाकर निर्देश देते हुए नंबर नोट करा दिया.
उसका कॉल ख़तम हुआ ही था कि राजन सरकार के मोबाइल की बेल बजने लगी.
विजय ने नंबर देखा.
वो वो नही था जो उसने रघुनाथ को नोट करवाया था.
उस वक़्त कंचन और राजन सरकार हैरत के सागर मे गोते लगाने लगे थे जब विजय ने मोबाइल का ग्रीन स्विच दबाने के साथ हेलो कहा, कारण ये था कि विजय के मुँह से निकलने वाली आवाज़ हूबहू राजन सरकार की थी.
वे विजय को इस तरह देखने लगे थे जैसे वो अजूबा हो जबकि विकास और धनुष्टानकार के लिए वो ज़रा भी हैरत की बात नही थी, वे जानते थे कि विजय किसी की भी आवाज़ की नकल कर सकता है.
रघुनाथ को थोड़ा अस्चर्य ज़रूर हुआ था लेकिन अजूबे जैसी बात नही लगी थी क्योंकि उसने पहले भी काई बार विजय को दूसरो की आवाज़ की नकल करते देखा था.
हेलो कहने के साथ ही विजय ने स्पीकर ऑन कर दिया था ताकि दूसरी तरफ की आवाज़ भी सब सुन सके.
दूसरी तरफ से पूछा गया था," अब तो फ़ुर्सत मे है "
" ह..हां " विजय ने हकलाहट भरी आवाज़ मे कहा.
" तो सुन " गुर्राहट भरे लहजे मे कहा गया," जैसा कि पहले भी कह चुका हू, पाँच लाख का इंतज़ाम कर ले वरना अपनी बीवी की लाश देखेगा "
" आ..ऐसा क्यो कह रहे हो तुम " विजय ने राजन सरकार की आवाज़ को थोड़ा कप्कंपाया था," मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है "
" अपने पापो की सज़ा तो तुझे भुगतनी ही पड़ेगी "
" प..पाप, मैंने क्या पाप किया है "
" आमने-सामने होंगे तो उसके बारे मे भी बताउन्गा, फिलहाल ये बता, 5 लाख कब पहुचा रहा है "
" मेरे पास इतने पैसे नही है "
" मुझे मालूम है तेरे पास कितने पैसे है, पाँच लाख तो ऐसी रकम है कि अपनी पतलून झाडेगा तो उससे भी टपक पड़ेंगे "
" यकीन मानो, जब से मेरा बेटा मारा है, कमाई ठप्प है और मुक़दमे-बाजी ने मुझे आर्थिक रूप से तोड़कर रख दिया है "
" बेटे और मीना को तो तूने खुद मारा "
" नही मारा " राजन को लगा जैसे ये शब्द वो खुद बोल रहा है," किस-किस से कितनी बार कहूँ कि मैंने उन्हे नही मारा "
" नाटक करने की ज़रूरत नही है " दूसरी तरफ से कड़क आवाज़ मे कहा गया," सीधा जवाब दे, पाँच लाख पहुचाएगा या तेरी बीवी को मारकर कूड़े के ढेर मे डाल दूं "
" नही-नही, इंदु को हाथ भी मत लगाना तुम, तुम जो कहोगे मैं करूँगा लेकिन मेरे पास इस वक़्त पाँच लाख नही है "
" कब तक इंतज़ाम करेगा "
" ए...एक हफ़्ता तो लग ही जाएगा "
" दो हफ्ते लगा, एक महीना लगा, मुझे कोई फ़र्क नही पड़ेगा, पर इतना याद रखियो, जितने भी दिन लगेंगे, मैं तेरी बीवी को खाने का एक नीवाला भी नही दूँगा, एक बूँद पानी तक नही पीने दूँगा इसे, खुद सोच ले, ये कब तक जिंदा रह सकेगी "
" नही-नही " विजय गिड़गिडया," तुम ऐसा नही करोगे "
" मैं ऐसा ही करूँगा " बेहद सख़्त लहजे मे कहा गया," मुझे बेवकूफ़ बनाने की ज़रूरत नही है, जानता हू कि तू चाहे तो मिनटों मे पाँच लाख का इंतज़ाम कर सकता है, कल फोन करूँगा, अपनी बीवी को बचाना चाहता है तो इंतज़ाम करके रखियो, और सुन, यदि पोलीस को बीच मे लाने की कोशिश की तो फिर तुझे अपनी बीवी की लाश की देखने को मिलेगी "
" पर मैं कैसे यकीन मान लू कि इंदु तुम्हारे ही पास है "
" मुझे मालूम था तू ये ज़रूर कहेगा इसलिए, ले, अपनी बीवी की आवाज़ सुन "
इसके बाद कुछ देर तक दूसरी तरफ खामोशी छा गयी.
फिर इंदु की आवाज़ उभरी," ये लोग बहुत जालिम है राज, इन्होने मुझे बहुत मारा है, वो कर दो जो ये कह रहे है "
" इंदु " विजय ने ठीक इस तरह कहा जैसे अगर राजन सरकार लाइन पर होता तो कहता," क्या तुम इन्हे पहचानती हो "
" कुत्ते के बीज " आवाज़ उभरी," हमारी टोह लेना चाहता है इससे, ऐसी होशियारी करेगा तो रन्डवा बना देंगे तुझे " इन शब्दो के बाद फोन काट दिया गया था.
हालाँकि विजय समझ गया था, फाय्दा इस बार भी कुछ नही होगा, वे जो भी है सर्व्लेन्स के बारे मे जानते है लेकिन फिर भी उसने ये दूसरा नंबर भी रघुनाथ को देकर सर्व्लेन्स पर लगाने के लिए कहा और रघुनाथ ने पुनः प्रक्रिया दोहरा दी, जबकि विजय सीधा राजन सरकार से बोला था," अब आपको ये याद करना पड़ेगा सरकार-ए-आली कि आपने क्या पाप किया है "
" मैंने कुछ नही किया "
" आपने खुद सुना, उसने आपके किसी पाप का ज़िक्र किया था, इंदु का अपहरण उसी के बदले मे हुआ है "
" मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा है "
तुरंत ही विकास बोला," जो आपकी समझ मे आ रहा है गुरु वो मेरी भी समझ मे आ रहा है "
" पर अभी उगलो मत, बात सही समय पर उगली जानी ही सही होती है दिलजले " विजय तेज़ी से दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ बोला था," आओ, अब हमे मारुति वन की जाँच करने के अलावा इनस्पेक्टर राघवन की भी खबर लेनी पड़ेगी, उसका बयान ही इस उलझे हुवे मामले को सुलझाने मे सहायक हो सकता है "
रघुनाथ, विकास और राजन सरकार उसके पीछे लपके.
मोंटो तो विकास के कंधे पर था ही, लेकिन कंचन जहाँ खड़ी थी, जड़-सी बनी वही खड़ी रह गयी.
इसमे शक नही कि अंतिम क्षणों मे उसे लगा था की विजय इस दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा है.

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वॅन मे घुसते ही विजय के नथुने फडक उठे थे, उसने टूटे काँच, गाड़ी मे पड़े काँच के टुकड़े, पत्थर और पिच्छली सीट पर पड़े खून का निरीक्षण किया और बगैर किसी चीज़ को छेड़े बाहर निकल आया.
लगभग तभी राघवन ने रघुनाथ को बताया था," पता लगा है सर कि ये मारुति वन चोरी की है, 2 बजे सिविल लाइन थाने मे इसकी चोरी की रिपोर्ट लिखवाई गयी थी "
राघवन के शब्द विजय के तेज कानो मे भी पड़ गये थे इसलिए उसने पूछा," रिपोर्ट लिखवाने वाले का नाम "
" रवींद्रा पुजारा "
" गाड़ी कहाँ से चोरी हुई "
" फन माल की पार्किंग से, पुजारा फॅमिली के साथ 'गुंडे' देखने गया था, वापिस आया तो गाड़ी पार्किंग मे नही थी "
" हमे पहले ही उम्मीद थी कि ये गाड़ी चोरी की होगी " विजय ने ऐसा कहा ही था कि विकास बोला," और वो दूसरी गाड़ी भी चोरी की होनी चाहिए गुरु जिसमे किडनॅपर्स ने इंदु आंटी को ट्रान्स्फर किया और यहाँ से फरार हो गये "
" कैसे कह सकते हो प्यारे कि वे इंदु को यहाँ से गाड़ी मे ही ले गये है, कंधे पर लादकर भी तो ले गये हो सकते है " विजय ने हल्की-सी मुस्कान के साथ पूछा.
" मैं नही समझता कि आपकी नज़र यहाँ मौजूद दूसरी गाड़ी के इन टाइयर्स के निशान पर नही पड़ी होगी " कहने के साथ विकास ने घासयुक्त कच्ची ज़मीन पर बने टाइयर्स के निशानो की तरफ इशारा किया था," बल्कि मेरी तरह आपने भी गौर कर लिया होगा की उसका अगला दायां टाइयर बाई तरफ से घिसा हुआ होना चाहिए "
" हमे ख़ुसी है दिलजले की तुम शरलॉक होम्ज़ बनते जा रहे हो मगर हम इस बात से सहमत नही है कि वो गाड़ी भी चोरी की होगी क्योंकि किन्ही भी अपराधियो के लिए एक साथ दो गाड़िया चुराना ज़रा अटपटा लगता है "
" तो क्या दूसरी गाड़ी उनकी अपनी होगी "
" उम्मीद तो यही है, अपनी गाड़ी उन्होने पहले ही यहाँ खड़ी कर दी होगी, क्राइम चोरी की गाड़ी से किया ताकि अगर देख भी ली जाए तो गाड़ी के आधार पर पकड़े ने जा सके, वॅन से वे इंदु को यहाँ तक लाए, उसे अपनी गाड़ी मे ट्रान्स्फर किया ताकि किसी नाके पर रोके ना जा सके और सरपट निकल जाए "
" इस हरकत से ये भी स्पष्ट है कि वे इस किस्म के कामो मे माहिर है, प्लान बनाए हुए थे कि किन हालात से कैसे बचना है "
विकास की बात पर ध्यान दिए बगैर विजय ने राजन सरकार से वो सवाल किया जिसका जवाब उसे पहले से मालूम था," मीना के परिवार मे कोई और भी है क्या "
" एक लड़का "
" नाम "
" चंदू "
" उम्र "
" करीब 22 साल "
" कहाँ रहता है "
" धनपतराय के फार्महाउस पर "
" कौन धनपतराय "
" राजनगर के प्रसिद्ध उद्योगपति है, चंदू उनके फार्महाउस पर माली का काम करता है "
" क्या आप कभी चंदू से मिले है "
" कयि बार, वो अपनी माँ से मिलने आ जाया करता था "
" आपके प्रति उसका व्यवहार कैसा होता था "
" वैसा ही जैसा एक नौकर का मालिक के प्रति होता है परंतु मीना की मौत के बाद बदल गया था "
" क्या तब्दीली आई थी "
" वो पोस्मोरेट्म हाउस मे मिला था, हम कान्हा के पोस्टमॉर्टम के सिलसिले मे गये हुए थे, वो मीना के लिए आया हुआ था, उस वक़्त कुछ बोला तो नही था लेकिन लगा था, नफ़रत भरी नज़रो से हमे घूर रहा है, मीना की लाश को वही ले गया था "
" उसके बाद "
" कोर्ट मे हम पर दोनो की हत्याओ का केस चला, हालाँकि वो कोई पक्ष नही था मगर केस के दरम्यान अक्सर कोर्ट मे मिला करता था, हर तारीख पर आता था, उसकी आँखो मे हमारे लिए अच्छे भाव नही होते थे, एक बार तो कहा भी 'तुमने मेरी माँ को मारकर अच्छा नही किया सेठ, मैं तुम्हे फाँसी के फंदे पर झूलते देखना चाहता हू' उन दिनो मुझे लगता था कि उसका व्यवहार असमान्य नही है क्योंकि सारी दुनिया की तरह वो भी हमे ही अपनी माँ का हत्यारा समझ रहा है, मैंने उससे हमेशा यही कहा कि हम ने मीना को नही मारा है चंदू, हम पर झूठा केस चल रहा है "
" क्या वो cइग्रेत्त या बीड़ी पीता था "
" मीना के जिंदा रहने तक मेरे सामने नही पीता था मगर उसकी मौत के बाद उसे अक्सर बीड़ी पीते देखा था, मगर उसके बारे मे तुम इतने सवाल क्यो पूछ रहे हो "
" हमे लगता है, इंदु जी को उसी ने किडनॅप किया है "

 


20

" च...चंदू ने " राजन सरकार के मुँह से बस यही शब्द निकले और काफ़ी देर तक चेहरे पर अस्चर्य के भाव लिए उसकी तरफ देखता रहा, फिर बोला," आप ऐसा कैसे कह सकते है "
" उस बात को छोड़िए सरकार-ए-आली, ये बताइए कि क्या उसने ऐसा किया हो सकता है, क्या तुमने कभी महसूस किया कि वो अपराधी प्रवृत्ति का है "
" मुझे तो ऐसा नही लगा और.... "
" और "
" मुझे नही लगता कि ये काम उसने किया है "
" वजह "
" फोन पर उसकी आवाज़ नही थी " राजन ने कहा," मैं उसकी आवाज़ पहचान सकता हू "
" आप भूल रहे है कि ये काम उसने अपने बाकी तीन साथियो के साथ किया है, फोन पर कोई और भी हो सकता है "
" हां, ये तो है "
" पर हमारे ख़याल से वही था "
" क...कैसे कह सकते हो "
" उसने आपके पाप वाली बात कही, इंदु को मारकर कूड़े के ढेर पर डालने की बात कही, याद रहे, मीना की लाश कूड़े के ढेर से ही बरामद हुई थी, उसके शब्दो मे उसके अंदर की आग बोल रही थी, वॅन मे बीड़ी के धुँए की गंध अभी भी मौजूद है "
" तो फिर मैंने उसकी आवाज़ पहचानी क्यो नही "
" जो सर्व्लेन्स के बारे मे जानते है वो ये भी जानते होंगे कि मोबाइल पर अगर कपड़ा डालकर बात की जाए तो सामने वाले के लिए आवाज़ पहचानना मुश्किल हो जाता है "
" आ..अगर तुम्हारा अनुमान ठीक है, तब तो इंदु की जान ख़तरे मे है " कहते-कहते राजन के चेहरे पर आतंक काबिज हो गया था," जिसके जेहन मे ये जहर भरा है कि उसकी माँ की हत्या हम ने की है, वो कुछ भी कर सकता है "
" वही समझाने की कोशिश कर रहे है सरकार, उम्मीद है अब ये भी समझ गये होंगे कि आपने कौन सा पाप किया है जिसका ज़िक्र फोन पर किया गया था "
" कितनी बार कहूँ कि हम ने मीना का मर्डर.... "
" अपनी नज़र मे ना सही लेकिन चंदू की नज़र मे किया है " वो उसकी बात काटकर बोला," अब इस बात को भी समझ लीजिए हुजूर-ए-आला कि आपकी पत्नी को पाँच लाख के लिए किडनॅप नही किया गया है बल्कि चंदू के दिल मे बदले की भावना है, आपने खुद ही बताया कि केस के दरम्यान वो हर तारीख पर मौजूद रहता था और आपकी तथा आपकी पत्नी की फाँसी का ख्वाइश्मन्द था "
" फिर वो पाँच लाख क्यो माँग रहा था "
" इस पहेली को समझना अभी बाकी है, अगर उसका मकसद बदला लेना ही था तो इंदु को किडनॅप क्यो किया, पूरा मौका होने के बावजूद फ्लॅट मे ही उनकी हत्या क्यों नही कर दी "
राजन सरकार के चेहरे पर ख़ौफ़ नाचने लगा था.
विजय ने विकास से पूछा," क्या कहते हो मेरे शरलॉक होम्ज़ "
" हमे नही भूलना चाहिए गुरु कि उसके साथ तीन लोग और है, मुमकिन है उनका उद्देश्य पैसा हो "
" या कोई बड़ा गेम... बड़ा गेम है उसकी खोपड़ी मे "
" कैसा बड़ा गेम "
" उसे छोड़ो प्यारे " कहने के बाद विजय एक बार फिर राजन सरकार से मुखातिब हुआ," हमारी अगली मंज़िल धनपतराय है, हो सकता है चंदू ने इंदु को उसके फार्महाउस पर रखा हो "
" मैंने धनपतराय का बंगला देखा है "
" तो चलो... और तुम हमारे साथ गाड़ी मे बैठोगे राघवन प्यारे, रास्ते मे तुमसे मोहब्बत भरी कुछ बाते करनी है ताकि हमारे दिमाग़ पर पड़े गोदरेज के ताले खुल सके "
विजय के तेवरो ने राघवन के जिस्म मे झुरजुरी सी दौड़ा दी थी.

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" हां तो राघवन प्यारे, चालू हो जाओ " गाड़ी के वहाँ से रवाना होते ही विजय ने कहा था," कान्हा के मर्डर के बाद राजन सरकार के फ्लॅट पर पहुचने वाले तुम पहले पोलीस वाले थे, विस्तार्पूर्वक बताओ, वहाँ पहुचने पर तुमने क्या देखा "
" उससे पहले क्या मैं... "
अपना वाक्य अधूरा छोड़कर वो खुद ही रुक गया.
" हां-हां कहो " विजय बोला," क्या कहना चाहते हो "
" क..क्या मैं जान सकता हू कि आप कौन है और किस हैसियत से ये सब पूछ रहे है "
विजय ने एक सेकेंड के लिए सोचा, शायद ये कि उसे क्या बताए, फिर बोला," हम रॉ के एजेंट है "
" र...रॉ के एजेंट "
" जी "
" क्या ये केस रॉ के हवाले हो गया है "
" ऐसा ही समझो "
" कोर्ट के फ़ैसले के बाद भला... "
विजय ने उसकी बात काटकर कहा," बारीकियो मे मत जाओ प्यारे, तुमने एक सवाल के जवाब की पर्मिशन माँगी थी, हम दो के दे चुके है, अब तुम्हे हमारे सवालो के जवाब देने है "
" मुझे शुरू से इल्म हो रहा था कि आप हमारे सुपेरिटेंडेंट साहब से बड़े ऑफीसर है, तभी उनके सामने इतना बोल पा रहे थे, अब भी वे अपनी गाड़ी मे है, बल्कि राजन सरकार को भी आपने उन्ही के साथ बिठा दिया है जबकि मुझे लेकर इस गाड़ी मे बैठे " कहने के बाद उसने पजेरो ड्राइव कर रहे विकास और कंडक्टर सीट पर सिगार फूँक रहे धनुष्टानकार की तरफ इशारा करते हुए पूछा था," क्या इन दोनो का संबंध भी रॉ से है "
" तुमने फिर सवाल किया लेकिन फिर भी, हम तुम्हारी आत्मा की शांति के लिए जवाब दे देते है " विजय ने कहा था," ठीक पहचाना तुमने, सरकार-ए-आली को तुम्हारे सूपरईडियत के साथ हम ने इसलिए बिठाया है क्योंकि तुमसे जो गुफ्तगू करनी है वो उनके सामने नही करना चाहते थे और ये दोनो भी रॉ के एजेंट है "
राघवन खामोश रहा, विजय ने पूछा," तुम्हे कान्हा के मर्डर की सूचना कितने बजे मिली "
" सवा 7 बजे "
" और साढ़े 7 बजे ए-74 पहुच गये "
" थाने से वहाँ तक का रास्ता 15 मिनिट का ही है "
" यानी सूचना मिलते ही चल पड़े थे "
" जी "
" तुम जैसे कर्मठ पोलिसेवाले हम ने ज़रा कम ही देखे है, खैर सूचना किसने दी थी "
" राजन सरकार ने "
" क्या कहा था "
" यही कि उनकी मीना नामक नौकरानी उनके बेटे कान्हा का मर्डर करके और करीब 6 लाख के जेवरात लेकर फरार हो गयी है "
" ए-74 पहुचने पर क्या देखा "
" फ्लॅट के बाहर कॉलोनी वालो की और मिस्टर. राजन सरकार के परिचितो की भीड़ लगी थी, कुछ लोग फ्लॅट के अंदर भी थे "
" अंदर कौन-कौन थे "
" खुद सरकार दंपति, आड्वोकेट अशोक बिजलानी, प्रिन्स नामक दूधवाला और ए-76 मे रहने वाले चंदानी दंपति "
" अशोक बिजलानी और चंदानी दंपति की तो बात समझ मे आती है क्योंकि सरकार दंपति की नज़रो मे वे उनके हमदर्द थे पर दूधवाला क्या कर रहा था "
" उसके आने पर ही तो कान्हा के मर्डर के बारे मे पता चला "
" डीटेल बताओ "
" मुझे प्रिन्स ने बताया, सुबह साढ़े 6 बजे जब वो दूध लेकर पहुचता था तो मीना ही दारवाजा खोलती थी, सरकार दंपति और कान्हा सोए हुए होते थे, मीना अक्सर पहली बेल पर ही दरवाजा खोल देती थी लेकिन उस सुबह वैसा नही हुआ, कयि बार बेल बजानी पड़ी और बार-बार बेल बजाने पर अंदर से इंदु मेम-साहब की ऐसी आवाज़े आई जैसे मीना को पुकार रही हो पर मीना की आवाज़ नही आई थी, फिर इंदु मेमसाहब के मुँह से निकलने वाली ऐसी चीखने की आवाज़ आई जैसे वे किसी चीज़ को देखकर डर गयी हो और उसके तुरंत बाद राजन सरकार की आवाज़े आने लगी थी, केवल आवाज़े आ रही थी, शब्द स्पष्ट नही थे, और फिर दोनो के रोने की आवाज़े आने लगी, प्रिन्स घबरा गया और बेल बजाने की जगह बार-बार दरवाजा पीटने लगा, साथ ही पूछने लगा कि क्या हुआ है, दरवाजा खुला और रोती हुई इंदु ने कहा, देखो प्रिन्स, मीना क्या करके गायब हो गयी है, कहते वक़्त उन्होने कान्हा के कमरे की तरफ इशारा किया था, प्रिन्स ने देखा, कान्हा के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था लेकिन कुछ सॉफ नज़र नही आया, रोते हुए राजन सरकार ने कहा, वहाँ जाकर देखो, प्रिन्स ये सोचकर घबरा गया कि पता नही क्या हो गया है, दरवाजे पर पहूचकर देखा तो सिहर उठा, मुँह से चीख निकल गयी, बेड पर कान्हा की लाहुलुहान लाश पड़ी थी "
" जब तुम पहुचे, क्या उस वक़्त राजन सरकार या इंदु सरकार मे से किसी के कपड़ो पर खून लगा था "
" नही "
" क्या तुम्हारे जेहन मे ये सवाल नही उभरा कि ऐसा क्यो था, जिनका बेटा मरा था, क्या उन्होने उसे स्पर्श तक नही किया, जबकि स्वाभाविक तो ये था कि उसे गले लगाकर रोए होंगे "
" मेरा ध्यान उस तरफ गया था "
" पूछा कि ऐसा क्यो था "
" नही पूछ पाया "
" वजह "
" कुछ सवाल परिस्तिथियो के कारण नही पूछे जाते, उस वक़्त के हालात ऐसे सवाल करने की इजाज़त नही देते थे "
" ये तो पूछा होगा कि यदि उन्हे ये सब साढ़े 6 बजे पता लग गया था तो थाने पर सवा 7 बजे फोन क्यो किया गया, पौने घंटे तक क्या करते रहे "
" पूछा था, जवाब अशोक बिजलानी ने दिया, उसने कहा कि सरकार दंपति घबरा गये थे, इन्होने पहला फोन मुझे किया था, इसलिए, क्योंकि मैं इनका दोस्त होने के साथ एक आड्वोकेट भी हू, मैंने आते ही पूछा, पोलीस को फोन किया, इन्होने जब इनकार किया तो मैंने कहा ग़लती की तुमने, सबसे पहला फोन पोलीस को करना चाहिए था, और तब फोन किया गया था "
" ये जवाब तो जमने वाला नही है "
" मुझे भी नही जमा था लेकिन फिर भी ज़्यादा ध्यान नही गया क्योंकि कम से कम उस वक़्त मैं तो क्या, संसार का कोई भी व्यक्ति ये नही सोच सकता था कि वो सारा कांड सरकार दंपति ने किया होगा, अर्थात उनपर शक करने का कोई कारण नही था "
" अशोक बिजलानी से पूछा कि वे वहाँ कितने बजे पहुचे थे "
" उन्होने बताया, 7 बजे "
" उसके बाद तुम कान्हा के कमरे मे गये "
" वहाँ तो प्रिन्स, बिजलानी और सरकार दंपति से पूछताछ से पहले ही हो आया था, बहरहाल, घटनास्थल का निरीक्षण करना मेरा पहला कर्तव्य था "
" क्या देखा तुमने, एक-एक बात ध्यान करके बताओ क्योंकि क्राइम सीन सबसे महत्त्वपूर्ण होता है, कुछ भी छूटना नही चाहिए, डेडबॉडी लाहुलुहान क्यो थी, खून कहाँ से निकला था "
" कान्हा की कनपटी से "
" दाए हिस्से से, या बाए हिस्से से "
" बाए हिस्से से "
" किस चीज़ से वार किया गया था "
" मेरी समझ मे कुछ नही आया था क्योंकि कमरे मे कोई वेपन नही था, ये भी पता लग गया था कि राजन सरकार हमारे आइजी निर्भय सिंग के बचपन के दोस्त है इसलिए खुद ज़्यादा पंगा ना लेते हुवे अधिकारियो को फोन करना मुनासिब समझा "
" ये किसने बताया कि राजन सरकार आइजी के दोस्त है "
" ये बात मुझे डाइरेक्ट नही बताई गयी थी बल्कि मेरे सामने अशोक बिजलानी ने राजन सरकार से कहा था, तुमने इस बारे मे आइजी साहब को फोन किया या नही, वे तो तुम्हारे बचपन के दोस्त है "
" ये बात तो वो राजन सरकार से तुम्हारे पहुचने से पहले भी पूछ सकता था, बहरहाल, वो 7 बजे पहुच गया था "
राघवन हौले से मुस्कुराया, बोला," हम पोलीसवाले इस बात को समझते है कि लोग हमारे सामने ऐसी बाते हम जैसे छोटी रंक के पोलीस वालों को प्रभावित करने के लिए करते है "
" यानी तुम ये समझ गये थे कि अशोक बिजलानी ने वैसा तुम्हे प्रभावित करने के लिए कहा था "
" जी "
" और तुम प्रभावित हुए "
" होना पड़ता है, तभी तो कार्यवाही करने से पहले अधिकारियो को फोन करना मुनासिब समझा "
" अधिकारियो को फोन करने से तात्पर्य क्या है तुम्हारा, क्या आइजी साहब को फोन किया था "
" मेरी हैसियत डाइरेक्ट उन्हे फोन करने की कहा है सर, मैंने एसएसपी साहब को फोन किया था "
" राजन सरकार ने भी आइजी साहब को फोन नही किया "
 


21

" करना चाहते थे लेकिन अशोक बिजलानी ने रोक दिया, कहा कि, उन्हे फोन करने की ज़रूरत नही लग रही, मिस्टर. राघवन ठीक से कार्यवाही कर तो रहे है "
" और वे मान गये "
" वे अशोक बिजलानी की हर बात मान रहे थे "
" कान्हा उस वक़्त क्या पहने हुए था "
" नाइट शर्ट और पाजामा "
" क्या पाजामे का नाडा खुला हुआ था "
" नही "
" शर्ट के बटन "
" नही "
" खून के निशान और कहाँ-कहाँ थे "
" कान्हा के चेहरे पर, शर्ट पर और बेड की चादार का हिस्सा भी खून से भीगा हुआ था "
" दीवारो पर "
" दो दीवारो पर खून के छींटे थे, जैसे वार होते वक़्त पड़े हो "
" कौन-कौन सी दीवार पर "
" बेड के पीछे वाली और कमरे की बाई दीवार पर " राघवन ने बताया," बाई दीवार पर जो छींटे थे, ऐसा लग रहा था जैसे उन्हे सॉफ करने की कोशिश की गयी हो "
" फर्श पर "
" बेड से थोड़ी दूर फर्श पर एक ऐसा धब्बा था जैसे वहाँ मौजूद खून को सॉफ किया गया हो "
" इस बारे मे सरकार दंपति से पूछा "
" मौहोल ज़्यादा पूछताछ करने का नही था "
" और कुछ "
" और कुछ क्या "
विजय ने कहा," कोई ऐसी बात जो हम ने ना पूछी हो लेकिन तुम बताना चाहते हो "
" मुझे लगा था कि शर्ट कान्हा को मारने के बाद पहनाई गयी थी "
" क्यो लगा था "
" यदि उसने शर्ट उस वक़्त पहन रखी होती जब वार किया गया था तो कॉलर के पिच्छले हिस्से पर काफ़ी खून होना चाहिए था मगर ऐसा नही था, पर ये बात मुझे उस वक़्त नही सूझी थी, बाद मे सूझी, तब, जब सरकार दंपति संदेह के घेरे मे आए "
" यानी मीना की लाश मिलने के बाद "
" जी "
" कूदकर उतनी दूर मत पहुचो, अभी घटनास्थल पर ही रहो "
" डाइनिंग टेबल पर दो गिलास और विस्की की बॉटल भी रखी हुई थी, जाहिर था कि वहाँ किसी ने विस्की पी थी "
" किस नतीजे पर पहुचे, किसने पी होगी "
" उस वक़्त मेरी समझ मे कुछ नही आया था "
" वहाँ का निरकिशन करने के बाद तुमने क्या किया "
" प्रिन्स, बिजलानी और सरकार दंपति से संक्षिप्त पूछताछ जिसके बारे मे मैं पहले ही बता चुका हू, हालाँकि पूछना तो बहुत कुछ चाहता था मगर बिजलानी और सरकार दंपति मौका ही नही दे रहे थे, बार-बार यही कहे जा रहे थे कि मुझे उनसे पूछताछ मे समय गँवाने की जगह मीना को तलाश करने की कोशिश करनी चाहिए वरना वो इतनी दूर निकल जाएगी कि किसी के हाथ नही आएगी, ये भी कहूँ तो ग़लत ना होगा कि वे अपनी पहुच का इस्तेमाल करने के अंदाज मे अधिकारियो से मेरी शिकायत करने की धमकी दे रहे थे, कह रहे थे कि अगर मीना कभी हाथ नही आई तो मैं ही दोषी होऊँगा क्योंकि उनसे पूछताछ मे मैं टाइम वेस्ट कर रहा था, कुछ देर बाद एसएसपी साहब, डीआइजी साहब के साथ पहुच गये और उन्होने मुझे मीना को तलाश करने का हुकुम दिया क्योंकि राजन सरकार उन पर भी उसी के लिए दबाव बना रहे थे "
" तो तुम मीना की तलाश मे लग गये "
" जाहिर है "
" कहाँ-कहाँ तलाश की उसकी "
" एक टीम बिहार उस अड्रेस पर भेजी गयी जो राजन सरकार ने दिया था, दूसरी वहाँ जहाँ इस वक़्त जा रहे है यानी कि धनपतराय के बंगले पर क्योंकि उन्होने बताया था कि मीना का एक बेटा भी है जो धनपतराय के फार्महाउस पर माली का काम करता है, हमारा अनुमान था कि या तो मीना अपने बेटे के पास छुपी होगी या उसे भी साथ लेकर फरार हो गयी होगी "
" क्या पता लगा "
" चंदू फार्म हाउस पर मौजूद था मगर मीना नही थी, वो बार-बार ये कहने लगा कि उसकी माँ ऐसा नही कर सकती "
" बिहार गयी टीम ने क्या रिपोर्ट दी "
" मीना वहाँ नही पहुचि थी "
" उसके बाद "
" कान्हा की डेडबॉडी पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दी गयी, मीना को तलाश करने के अलावा कोई काम बाकी नही बचा था और वो मिल नही रही थी लेकिन फिर, अगले दिन शहर भर के कूड़े के ढेर पर जब मीना की लाश मिली तो..... "

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" कूदो मत.... कूदो मत राघवन प्यारे " विजय ने टोका," क्या फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट और डॉग स्क्वाड नही बुलाए गये थे "
" नही "
" क्यो नही, जब छोटी-मोटी चोरी होने पर भी उनकी सेवाए ली जाती है तो फिर इतनी बड़ी वारदात यानी कि कत्ल हो जाने पर उन्हे क्यो नही बुलाया गया "
" क्योंकि उस वक़्त वारदात मे कोई पेंच नज़र नही आ रहा था, सीधा-साधा मामला लग रहा था कि मीना जेवरात के लालच मे कान्हा का मर्डर करके फरार हो गयी है "
" मीना की लाश पर आओ, सबसे पहले उसे किसने देखा और सूचना तुम तक कैसे पहुचि "
" लाश पर सबसे पहली नज़र नगर निगम के उन ट्रक्स मे से एक ट्रक ड्राइवर की पड़ी जो दिन मे 3-3 बार कूड़े के उस ढेर पर कूड़ा डालने जाते थे, उसने वही से संबंधित थाने को फोन किया, उस थाने का इनस्पेक्टर वहाँ पहुचा, उसने मुझे फोन किया "
" तुम्हे क्यो "
" मीना के गायब होने की सूचना सभी थानो को थी, उन हालात मे सभी का फ़र्ज़ था कि कोई औरत किसी भी हालत मे मिले तो मुझे सूचित किया जाए "
" तुम वहाँ पहुचे "
" जाहिर है, आप जानते होंगे, नगर निगम जहाँ सारे शहर का कूड़ा इकहट्टा करके डालता है, वहाँ कूड़े के छोटे-छोटे पहाड़ बन गये है, उनपर 24 घंटे गिद्ध मंडराते रहते है क्योंकि उसी कूड़े मे उनका भोजन भी होता है, भगवान ना करे वहाँ किसी को जाना पड़े लेकिन हम पोलीस वालों को हर जगह जाना पड़ता है और हम गये, चारो तरफ बहुत ही गंदी वाली बदबू फैली हुई थी, कूड़े से उठ रही बदबू के दायरे मे कदम रखते ही मैंने और मेरे साथियो ने मुँह और नाक पर रुमाल रख लिए थे " राघवन कहता चला गया," हम लाश के करीब पहुचे, उसे काफ़ी हद तक गिद्धो ने खा लिया था लेकिन चेहरा सुरक्षित था, अर्थात पहचाना जा सकता था, मेरे पास मीना का फोटो नही था लेकिन लाश की उम्र आदि वही थी जो बताई गयी थी इसलिए अपने सब-इनस्पेक्टर को फोन किया कि मिस्टर. सरकार को लेकर वहाँ पहुचे, दूसरा फोन एक अन्य पोलिसेवाले को किया और चंदू को लेकर पहुचने के लिए कहा "
" मीना का फोटो क्यो नही था, तुमने राजन सरकार से माँगा तो होगा क्योंकि ये एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, गायब हुवे व्यक्ति का फोटो तो पोलीस मांगती ही है, ख़ासतौर से उसका जो लूट और हत्या करके गायब हुई थी "
" मैंने माँगा था लेकिन उन्होने कहा कि फोटो हमारे पास नही है, कभी इसकी ज़रूरत ही महसूस नही की गयी "
" जबकि पोलीस और सरकार अपनी तरफ से खूब प्रचार करती रहती है कि अपने सर्वेंट्स के फोटो ज़रूर रखे बल्कि संबंधित थाने से उनके वेरिफिकेशन भी कराए "
" लोग लापरवाही करते है "
" चंदू से उसकी माँ का फोटो ले सकते थे "
" उसने कहा, मेरी याद मे माँ का कभी कोई फोटो नही खींचा "
" सब-इनस्पेक्टर मिस्टर. सरकार को लेकर पहुचा "
" जी "
" उन्होने मीना को पहचाना "
" आप अख़बारो मे पढ़ चुके होंगे, नही "
" हम जो पढ़ या देख चुके है उसे भूल जाओ प्यारे, सबकुछ इस तरह बताओ जैसे हम बिल्कुल बुग्गे है "
" बुग्गे क्या "
" बुग्गा उसे कहते है जिसे कुछ मालूम नही होता "
" ओके " वो थोड़ा मुस्कुराया था.
" उसके बाद "
" चंदू ने अपनी माँ की लाश देखते ही पहचान ली "
" वो मिस्टर. सरकार के बाद पहुचा था या पहले "
" बाद मे "
" जब उसने लाश पहचानी तब मिस्टर. सरकार वही थे "
" ये कहकर जा चुके थे कि वे इतनी बदबू मे नही रह सकते "
" ओह " विजय ने लंबी साँस ली.

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इस बार सवाल विकास ने किया," मिस्टर. सरकार ने इंदु को नही पहचाना लेकिन चंदू ने कहा कि वो उसकी माँ ही है, उस वक़्त तुम्हारे दिमाग़ मे क्या आया "
" जाहिर है, मिस्टर. सरकार उसी क्षण मेरे संदेह के दायरे मे आ गये थे, भले ही इस नतीजे पर ना पहुचा होउ कि ये सब मिस्टर. सरकार का ही किया-धारा है लेकिन ये ख़याल तो जेहन मे आ गया था कि उन्होने लाश नही पहचानी तो कोई गड़बड़ है "
" तब तुमने क्या किया "
" पहली कोशिश ये पता लगाने की थी कि लाश वहाँ किसने पहुचाई, कत्ल किसने किया और कहाँ किया, सो, लाश के इर्दगिर्द के निशानो पर ध्यान दिया गया, कूड़े पर कूड़ा डालने ट्रक आते-जाते रहते थे इसलिए वहाँ ट्रक्स के टाइयर्स के अनेक निशान थे मगर उस वक़्त मैं रोमांचित हो उठा जब ट्रक्स के टाइयर्स के अलावा किसी गाड़ी के निशान भी मिले, आप समझ सकते है, ट्रक और गाड़ी के टाइयर्स के निशान मे फ़र्क होता है, आमतौर पर किसी गाड़ी के वहाँ आने का सवाल ही नही था, लगा कि ये निशान उसी गाड़ी के है जिसमे मीना की बॉडी लाई गयी इसलिए मैंने तुरंत पोलीस फोटोग्राफर को बुलाया और टाइयर्स के निशानो तथा डेडबॉडी की फोटोग्रफी करवाई "
" गुड " विजय के मुँह से निकला.
" डेडबॉडी मॉर्च मे भिजवाई, मिस्टर. सरकार के काई पड़ोसियो को वहाँ बुलवाकर शिनाख्त करवाई, सबने उसकी शिनाख्त मीना के रूप मे ही की, अब मेरे लिए ये पता लगाना ज़रूरी हो गया था कि मिस्टर. सरकार ने झूठ क्यो बोला, सारे हालात अधिकारियो को बताए, उनके भी कान खड़े हो गये, ख़ासकर आइजी साहब ने मिस्टर. सरकार की जानकारी मे लाए बिना उनकी दोनो गाडियो की जाँच करने के आदेश दिए, उन्होने कहा कि इस बात पर ज़रा भी ध्यान ना दिया जाए कि मिस्टर. सरकार हमारे बचपन के दोस्त है, जब क़ानूनी कार्यवाही की बात आती है तो कोई पोलीसवाले का दोस्त नही होता, बगैर ज़रा भी हिचके या शरम किए बिना पूरी मुस्तैदी से कार्यवाही की जाए, उनके शब्दो ने मेरा हौंसला बुलंद कर दिया और मैंने पूरी मुस्तैदी से कार्यवाही की "
" क्या पाया "
" कूड़े के ढेर पर से लिए गये टाइयर्स के निशान स्विफ्ट डिज़ायर, जो राजन सरकार के गेराज मे खड़ी थी से मेल खा रहे थे पर ना तो उनपर कोई गंदगी लगी हुई थी और ना ही गाड़ी के अंदर और बाहर बहुत ढूँढने पर कोई खून की बूँद मिली, सॉफ नज़र आ रहा था कि गाड़ी को अच्छी तरह से धोया गया है, टाइयर्स को तो ख़ासतौर पर, परंतु गेराज मे वैसी ही दुर्गंध फैली हुई थी जैसी कूड़े के ढेर पर थी, गाड़ी को सॉफ करने वाले उस दुर्गंध को सॉफ करने का कोई तरीका शायद नही ढूँढ पाए थे, मैं इस नतीजे पर पहुचा कि बॉडी को उसी मे रखकर कूड़े के ढेर पर पहुचाया गया था "
" उसके बाद "
" दोबारा कान्हा के बेडरूम का निरीक्षण किया, इस बार उन स्थानो पर मेरा ख़ास ध्यान था जहाँ से खून सॉफ किया गया था, जैसे फर्श और बाई दीवार "
" उनपर ख़ास ध्यान क्यो था "
" क्योंकि ये बात मुझे शुरू से ही खटक रही थी कि कान्हा के खून के छींटे अगर बेड की पीछे वाली दीवार पर है तो कमरे की बाई दीवार पर खून के वे छींटे किसके है जिन्हे सॉफ करने की कोशिश की गयी, उसी तरह, कान्हा के जिस्म से निकला खून अगर बेड पर था तो फर्श पर किसका खून था और उसे सॉफ करने की कोशिश क्यो की गयी थी, वहाँ निशान तो अब भी थे मगर इतना कुछ नही था कि मैं कोई नमूना लॅबोरेटरी मे भेज सकता, अर्थात समझ तो सकता था कि मीना की हत्या वही की गयी थी परंतु किसी साइंटिफिक तरीके से इस बात को साबित नही कर सकता था, पुनः अधिकारियो को रिपोर्ट दी, आइजी साहब ने इस दिशा मे और इन्वेस्टिगेट करने के निर्देश दिए, साथ ही कहा कि मुझे सारी जाँच इस तरह से करनी है कि मिस्टर. सरकार को इस बात का इल्म ना हो पाए कि चीज़े उनके खिलाफ जेया रही है, मेरे सामने अब इस सवाल का जवाब ढूँढने की चुनौती थी कि मिस्टर. सरकार ने ये दोनो हत्याए क्यो की, मैंने गुपचुप तरीके से पड़ोसियो और कान्हा के दोस्तो से पूछताछ करने का निर्णय लिया, दो धमाकेदार बाते निकल कर आई, पहली ये कि, कान्हा के परिपक्व मीना से सेक्स संबंध हो गये थे, दूसरी ये कि मिस्टर. सरकार के संबंध मिसेज़. चंदानी से थे "

 
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