Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी - Page 2 - SexBaba
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Gandi Sex kahani भरोसे की कसौटी

किचेन में कॉफ़ी बनाते हुए कुछेक बार देखा चाची की ओर.. चाची टीवी देखते हुए बीच बीच में साड़ी के ऊपर से अपने चूचियों पर हलके से हाथ फेर रही थी... जैसे ही चूचियों पर हाथ रखती उनका चेहरा ऐसा हो जाता मानो उनको बहुत दर्द हो रहा है | इतना ही नहीं, वो अपने पेट और जाँघों के अंदरूनी हिस्से पर भी हल्के तरीके से सहला रही थी | चूची, पेट या जांघ में से किसी पर भी हाथ रखते ही उनके चेहरे पर दर्द वाली एक टीस सी छा जाती | शायद आँखों के किनारों में आँसू थे उनके ..... उनकी ये हालत देख कर वाकई बुरा लगा मुझे पर उनकी इस हालत का ज़िम्मेदार कोई और है या वो खुद.. जब तक ये पता ना चले... मैंने अपने भावनाओं पर नियंत्रण रखने की ठान रखी थी |


कुछ ही देर में मैं स्कूटी लिए तेज़ गति से एक ओर चले जा रहा था | एक लड़के से मिलना था मुझे... मेरा ही स्टूडेंट है ... वो मेरी कुछ मदद कर सकता है ... |


घर पर ही मिल गया वो..
“गुड इवनिंग सर, सर .. आप यहाँ ?? मुझे बुलाया होता..|”
“वो तो मैं कर सकता था जफ़र... पर बात ही अर्जेंट वाली है... |”
“क्या हुआ सर...?” जफ़र का कौतुहल बढ़ा ..
“जफ़र... देखो.. ये कुछ सेंटेंस लिखे हुए हैं ... क्या तुम हेल्प कर सकते हो... आई थिंक ये उर्दू ज़बान में है...|” मैंने सिगरेट वाला पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा..|
ज़फर ने पैकेट हाथ में लेकर करीब से देखा और देखते ही तपाक से बोल उठा, “सर.. माफ़ कीजियेगा .. ये अरबी भाषा में है..|”
ये सुनते ही चौंका मैं.. बहुत ताज्जुब वाली बात नहीं थी पर मैं इस बात के लिए तैयार नहीं था | पर अब थोड़ा परेशान सा हो उठा | स्वर में बेचैनी लिए बोला, “तो तुम इसे ट्रांसलेट नहीं कर सकते?”
“कर लूँगा... शायद... पर थोड़ा टाइम लगेगा सर..|” जफ़र ने सिर खुजाते हुए कहा..
“कितना टाइम लगेगा..??”
“यही कोई दस-पंद्रह मिनट |”
“ठीक है... मैं बैठता हूँ... तुम जल्दी ट्रांसलेट करो...|”

जफ़र एक पन्ना और कलम ले कर बैठा और लगा माथा पच्ची कर के उन वाक्यों ट्रांसलेट करने | मैं वहीँ बैठकर एक मैगज़ीन को आगे पीछे पढ़ते हुए बेसब्री से इंतज़ार करने लगा | सामने वाल क्लोक के कांटे के हरेक हरकत के साथ मेरी बेचैनी भी बढती जाती थी | खैर, ऊपर वाले का शुक्र है की जफ़र ने ज़्यादा समय ना लेते हुए सभी वाक्यों के ट्रांसलेशन कर दिए | सभी ट्रांसलेशन कुछ ऐसे थे ...
kayf kan yawmak (आज का दिन कैसा रहा )



kanat jayida (अच्छा था)

hal sataemal (क्या वो काम करेगी?)

bialtaakid (बिल्कुल)

kayf kan hdha albund (वैसे माल कैसी थी)

rayie... eazim (वाओ... ज़बरदस्त)


अभी और भी पढ़ता .. पर तभी... जफ़र ने टोकते हुए कहा की “सर, कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो मैंने टूटे फूटे अंदाज़ में लिखे हैं.. मेरी ज़बान उर्दू है... अरबी नहीं.. पर .. थोड़ा बहुत समझता हूँ.. पर और जितने भी लिखे हैं वो कितने सही और कितने गलत होंगे... ये मैं नहीं जानता... सॉरी सर...|” चेहरे पर विनम्रता और स्वर में बेबसी लिए वो बोला था | वो मदद करना चाहता था... पर बेबस था बेचारा.. | मैंने उन शब्दों के ओर नज़र डाले जिन्हें उसने किसी तरह ट्रांसलेट किये थे :-


१)योर होटल
२)दोपहर से शाम
३)ये माल और वो माल
४)चरस और गांजा
५)आटोमेटिक गन
६)गोला बारूद
७)जो बोलूँगा वो करेगी
८)मालिक/बॉस के मज़े
९)शादी शुदा ... नाम दीप्ति ...|



ये सभी शब्द पढ़ते हुए मेरे हैरानी का लेवल बढ़ता जा रहा था और अंतिम शब्द या यूं कहूँ की अंतिम शब्दों ने तो मेरे धड़कन ही बढ़ा दिए थे... ‘शादी शुदा... नाम दीप्ति...!!’
 
जफ़र से जितना हो सका उसने किया... मेरा काम अभी के लिए पूरा हो गया था.. | जफ़र को धन्यवाद बोल कर मैं स्कूटी से अपने घर रवाना हुआ | रास्ते भर यही सोचता जा रहा था की आखिर इन सभी बातों का चक्कर क्या हो सकता है.. होटल योर... दोपहर से शाम... चरस और गांजा.. गोला बारूद.. जो बोलूँगा वो करेगी... शादी शुदा... नाम दीप्ति... ओफ्फ्फ़ ... लगता है शुरू से सोचना पड़ेगा...| इन्ही बातों को सोचते सोचते घर के पास पहुँच गया.. | देखा गली के पास एक स्कूटर पार्क किया हुआ है ... शक के पंखों ने फिर अंगड़ाई ली..| मैंने अपना स्कूटी अँधेरे में एक तरफ़ लगाया और गली के मुहाने के पास इंतज़ार करने लगा | अँधेरे में जाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था मैं | और इतनी सारी बातों के उजागर होने के बाद से तो बिल्कुल भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था | गली से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी.. खड़े खड़े पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए... मैंने सिगरेट सुलगाया और बगल के दीवार से सट कर धुंआ छोड़ने लगा.. तीन सिगरेट के ख़त्म होने और लगभग बीस से पच्चीस मिनट गुजरने के बाद अचानक गली से एक हल्की सी आवाज़ आई | शायद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ थी वो .. मैं चौकन्ना हुआ.. ध्यान दिया.. दो जोड़ी जूतों की आवाज़ इधर ही बढती आ रही थी | मैं तैयार हुआ.. पता नहीं क्या करने वाला था.. बस उनका गली के मुहाने पर आने का इंतज़ार करने लगा... और जैसे ही वो दोनों मुहाने पर पहुँच कर आगे बढ़े ... मैं अनजान और जल्दबाजी में होने का नाटक करता हुआ उन दोनों से टकरा गया |
“अरे अरे... सॉरी भैया... आपको लगी तो नहीं ...” मैंने हमदर्दी जताते हुए पूछा.. पर जिससे पूछा.. वो ना बोल कर उसका साथी बोल पड़ा, “जी कोई बात नहीं... अँधेरे में होता है ऐसा...|”


मैंने फिर पहले वाले से पूछा, “आप ठीक हैं?” इस बार फिर दूसरे शख्स ने कहा, “जी... आप फ़िक्र न करे... हम ठीक है...|” ऐसा कह कर उसने पहले वाले की ओर देखा और बोला, “चलिए जनाब..” दोनों अपने स्कूटर की ओर बढ़ गए थे और जल्द ही स्टार्ट कर वहाँ से चले गए...| मैं उन्हें तब तक देखता रहा जब तक की दोनों आँखों से ओझल नहीं हो गए | उनके ओझल होते ही मैं नीचे ज़मीन पर देखने लगा | दरअसल, जब मैं उनसे टकराया था तब उनमें से किसी एक के पॉकेट या कमर या कहीं और से कोई चीज़ नीचे गिरी थी जिसे या तो उन्होंने जान बुझ कर नहीं उठाई या फिर अचानक मेरे सामने आ जाने से उनको इस बात का ध्यान ही नहीं रहा या वाकई पता नहीं चला होगा | ढूँढ़ते ढूँढ़ते मेरे पैर से कुछ टकराया | तुरंत उठा कर देखा | समझ में नहीं आया... तो मैंने स्कूटी के लाइट को ऑन कर के उस चीज़ को हाथ में लेकर देखा और देखने के साथ ही मारे डर के छोड़ दिया | कंपकंपी छूट गई मेरी... वो दरअसल एक पिस्तौल थी !! मैंने जल्दी से लाइट ऑफ किया और पैर से मार कर पिस्तौल को उसी जगह पर ठोकर मार कर रख दिया जहाँ वो था | इतने ही देर में दूर से रोशनी के आने का आभास हुआ और साथ में स्कूटर की भी | मैं दौड़ कर गली में घुसा और एकदम आखिरी छोड़ तक चला गया |


वे दोनों आ कर स्कूटर खड़ी कर इधर उधर ज़मीन पर देखने लगे | उनके हाथ में टॉर्च था ... जला कर तुरंत ढून्ढ लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई उन्हें.. उठा कर स्कूटर में बैठे और चलते बने | जैसे वो चाहते ही नहीं थे की कोई उन्हें देखे..| कुछ देर वहाँ रुकने के बाद मैंने गली से निकलने का फैसला किया ... आगे बढ़ते हुए गली के दरवाज़े तक पहुँच ही था की उस पार से किसी की आवाज़ आई | दरवाज़े के दरारों से देखने का कोई फायदा नहीं था क्यूंकि उस तरफ़ पूरा अँधेरा था | पॉवर कट के कारण .. मैंने किसी तरह कोशिश करके दीवारों में जहां तहां बने दरारों पे पैर रख कर थोड़ा ऊपर चढ़ा और सिर ऊँचा कर के उस पार देखा... और जो देखा उसे देख कर अपनी आँखों पर यकीं करना शत प्रतिशत मुश्किल था... | पूर्णिमा वाले रात के दो-तीन बाद वाले रात के चांदनी रोशनी में देखा की सामने ज़मीन पर मेरी चाची नंग धरंग हालत में पड़ी है !! उनके सारे कपड़े साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी ज़मीन के चारों ओर बिखरे पड़े हैं और चाची पेट के बल लेटी खुद को ज़मीन से रगड़ते हुए उठाने की कोशिश कर रही थी .......................

मैं अपने कमरे में बैठा हाथ में फ़ोटो लिए चुपचाप उस फ़ोटो को देखे जा रहा था और नेत्रों से अश्रुधरा अविरल बहे जा रहे थे | जो कभी भूले से भी कल्पना नहीं की थी मैंने आज वो किसी बुरे सपने के हकीकत में बदल जाने के जैसा मेरे आँखों के सामने फ़ोटो के रूप में मेरे हाथों में था | मैं असहाय सा चुपचाप खुद पे आँसू बहाने के अलावा कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था |
 
*फ्लैशबैक*
उस रात चाची को वैसी स्थिति में देख कर मैं आतंक से भर गया था पर चूँकि चाची से मेरा बहुत लगाव भी था इसलिए खून भी खोल चुका था मेरा | मन ही मन ठान लिया था कि, ‘अब बस, बहुत हो गया ... अब इन लोगों को सबक सिखाना ही होगा..|’ गुस्से से दांत भींचते हुए मैं आहिस्ते से दीवार से उतरा और गली पार कर घर घुसा | करीब दस मिनट तक डोर बेल बजने के बाद चाची ने दरवाज़ा खोला था | भयानक हश्र था उनका | बाल बिखरे हुए... होंठों के साइड में हल्की लालिमा... शायद खून हो... कंधे पर के ब्लाउज बॉर्डर थोड़ा फटा हुआ... कुछेक नाखूनों के निशान...गले, कंधे और सीने के ऊपरी हिस्से पर | किसी तरह साड़ी लपेटी हुई थी.... आँख नहीं मिला रही थी... पर देखी मुझे तीरछि नज़रों से | मैं बिना उनकी नज़रों में आये उनके शरीर का हाल सामने से देख कर सीधे ऊपर अपने कमरे में चला गया | दुःख और प्रचंड गुस्से से भरा था मैं... मेरी रानी जैसी चाची को कोई ऐसे कर रहा है और मैं चुप हूँ?? मुझे चाची बहुत अच्छी लगती थी और बहुत पसंद भी थी | उनकी जैसी शारीरिक गठन और रूप वाली बहुत कम ही पाए जाते हैं | जब भी उनकी क्लीवेज नज़र आ जाए तो दोनों चूचियों के बीच मुँह घुसा देने का मन करे और अगर गांड पर नज़र जाए तो दो-तीन अच्छे से थप्पड़ मार कर मसल देने का मन करे... कमर के आस पास भी उपयुक्त मात्रा में वसा होने के कारण उनकी कमर भी अद्भुत सेक्सी लगती थी | जी करता था की घंटों उनके नाभि को चूमता हुआ कमर पे सिर डाले सोया रहूँ | पीठ की बात करना तो दूर, सोचने भर से लंड बाबाजी अपना सर उठाने लगते हैं ... साफ़..बेदाग़... मांसल...गदराया पीठ को तो जैसे घंटों चूमने, चाटने और दबोचने का मन होता था....

अगले पूरे दिन ना तो चाची को कोई फ़ोन आया और ना ही किसी भी माध्यम से कोई सन्देश.. चाची का भी उनकी तरफ़ से यह पुरज़ोर कोशिश रही की मुझे या उनके पति को किसी भी तरह का कोई संदेह न हो.... मैं किसी भी तरह बहाने कर कर चाची के आस पास ही बना रहता.. पर ऐसे की चाची को भी मुझ पर संदेह ना हो | सिर्फ एक दिन ही नहीं.. बल्कि तीन-चार दिन बीत गए ऐसे ही.. इतने दिनों में चाची एक बार के लिए भी घर से बाहर कदम नहीं रखी | थोड़ी सहमी सहमी सी ज़रूर होती पर हमेशा एक मोहक सी मुस्कान लिए बातें की | पूरी एक घरेलू औरत की तरह नज़र आई .. पति परायण एवं कर्तव्य निष्ठ... पर मेरा जासूस दिमाग कह रहा था की यह सब आने वाले किसी बड़ी सी चौंकाने वाले घटना के पहले की शांति है.... तैयारी है....|
पर मैं किसी घटना या फिर यूँ कहे की दुर्घटना की प्रतीक्षा किये बैठे नहीं रह सकता.. कुछ तो करना था .. इसलिए समय मिलते ही स्कूटी लिए उस मोहल्ले की तरफ़ निकल जाता था जहां चाची को पहली बार देखा था... उसी टेलर के दुकान में... | उसी चाय दुकान में कई घंटे निकाल देता था चाय सिगरेट लेते लेते | चाय वाले ने कई बार पूछा भी कि, किसी से कोई काम है क्या.. पहले कभी यहाँ आते नहीं देखा ...वगेरह वगेरह.. | किसी को कोई शक न हो इसलिए कुछेक बार अपने किसी दोस्त को साथ लिए चलता .. शायद चाय वाले ने भी मुझे उस टेलर दुकान की तरफ़ कई बार घूरते देखा था .. पर कहा कुछ नहीं |
मुझे भी कुछ खास चहल पहल नहीं दिख रही थी कुछ दिनों से .. जेंट्स और लेडीज आती.. कपड़ों के नाप देने... कपड़े देने..लेने.. इसके अलावा और कुछ होता नहीं दिखा | कुछेक कस्टमर से पूछा भी था की टेलर कैसा है... बदले में अलग अलग जवाब सुनने को मिले थें... कोई कहता ‘अच्छा है’.. तो कोई कहता ‘ठीक ही है’ ... तो कोई कहता .. ‘अजी, काम चल जाता है |’
काम (जासूसी) तो मेरा भी अच्छा चल रहा था पर कहते हैं की जासूसी में ज़्यादा उछल कूद बाद में बहुत भारी पड़ जाता है | और यही हुआ भी |
एक दिन अचानक चाची को एक पार्टी में जाना था | ‘वीमेन’स ग्रुप’ ने ऑर्गनाइज़ किया था | शहर के कुछ बड़े लोग भी आने वाले थे | शाम से ही चाची तैयार होने लगी थी ... मैं और चाचा भी जाने वाले थे | चाची ने कहा था की हमें लेने ग्रुप की तरफ़ से ही गाड़ी भेजी जाएगी.. और ठीक सात बजे गाड़ी आई भी | मर्सीडिज़ थी | चाचा की तो आँखें ही चौड़ी हो गयी थी और चाची को यकीं ही नहीं हो रहा था | आँखें तो मेरी भी चौड़ी हो गई थी पर गाड़ी नहीं ... चाची को देख कर ... क्या लग रही थी ! जब कमरे से सज कर निकली तभी से मेरी आँखें सिर्फ चाची पर ही थी... इतना ताड़े जा रहा था की चाची को पता तो लगा ही ... साथ ही शर्मा के लाल हो गई थी |
पारदर्शी साड़ी, स्लीवेलेस – बैकलेस डीप नेक ब्लाउज... जिसमे से आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर की तरफ़ निकली आ रही थी.. और उसपे भी वह अत्यंत चुंबकीय आकर्षण जैसा, सुन्दर, गोरा, छह इंच लम्बा क्लीवेज के दर्शन होते रहना... गोरी बाहों में.. हाथों में चूड़ियों की छनछन खन खन ...आहा... शायद हम जैसो के लिए यही स्वर्ग है | चाचा के लिए एक तो यह सब कॉमन हो चूका था और दूसरा वो माइंड नहीं करते थे |
पार्टी में जबरदस्त फन हुआ... डांस हुआ.. हंसी मजाक हुआ... खाना पीना चला.. चाची के डांस ने तो सब को बरबस उनका दीवाना बना दिया था.. उनके हरेक थिरकन पर छलक कर बाहर आते उभार की गोलाईयां सबको होंठों पर जीभ चलाने के लिए मजबूर कर देते थे |
ड्रिंक का दौर चल रहा था ... पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी.. चाचा भी कुछ लोगों के साथ मिलकर एक कोने में ड्रिंक करने में मशरूफ हो गए थे | चाची अपनी सहेलियों संग मजे कर रही थी ... मैं भी ड्रिंक कर रहा था पर आँखें मेरी चाची पर ही थी.... ऐसी अप्सरा को कौन भला अपने आँखों के आगे से ओझल होने देता है ?! अभी मैं उनके रूप लावण्य को आँखों से चख ही रहा था की तभी देखा की दो लोग चाची की तरफ़ बढे.. उनको देखते ही चाची की चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगीं | रंग सफ़ेद सा पड़ गया | शायद वो उन लोगों को जानती थी और उनके यहाँ होने की कल्पना नहीं की थी | उन दोनों ने चाची को कुछ कहा और चाची उनके साथ एक तरफ़ चली गई |
पार्टी वाले जगह से निकल कर वे तीनो बाहर लॉन में गए... वहां जहां थोड़ा अँधेरा था | मैं उनके पीछे ही लगा था | वे दोनो चाची को जैसे कुछ समझा रहे थे ... चाची परेशां, चिंतित और भय मिश्रित चेहरा लिए उनके हरेक बात पर सर हिला कर हाँ में जवाब दे रही थी | थोड़ी देर बात होने के बाद उनमें से एक ने इशारा कर के चाची को सड़क के दूसरी तरफ़ खड़े के बड़ी सी गाड़ी की ओर दिखाया... फिर गाड़ी की ओर इशारा किया... गाड़ी का पीछे का शीशा नीचे हुआ... देखा एक कोई शेख़ सा आदमी बैठा आँखों पर काले चश्मे लगाए उन लोगों की ओर देख रहा है.. और स्माइल भी है उसके होंठों पर... कुटिल मुस्कान... चाची देख कर सहम गई.. फ़ौरन उन दोनों की ओर पलट कर कुछ मना किया... पर दोनों नहीं माने... थोड़ी देर कुछ और कहने के बाद एक लिफाफा पकड़ाया चाची के हाथों और वहां से चले गए.. उनके जाने के बाद चाची ने लिफ़ाफ़ा बिना देखे ही अपने हैण्डबैग नुमा पर्स में डाला और फिर पार्टी वाले जगह की ओर चली दी... जाते वक़्त एक बार उन्होंने अपने आँखों पर उँगलियाँ चलाई थीं |
मैं भी पलट कर जैसे ही जाने लगा, ऐसा लगा मानो कोई मेरे पीछे खड़े मुझे देख रहा है और फ़ौरन वहां से हट गया ... मैं दौड़ कर उस जगह पहुँचा पर दूर दूर तक कोई नहीं था ... भययुक्त आशंकाओं से घिरे मन को सँभालते हुए मैं वापस पार्टी वाले जगह पहुँच गया..
 
इस घटना के करीब सप्ताह भर बाद...
सुबह का टाइम... चाचा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे हैं... चाची किचेन में है... मैं पेपर पढ़ रहा था ... तभी डोर बेल बजी... मैंने उठ कर दरवाज़ा खोला... देखा एक लड़का है.. पोस्टमैन वाले यूनिफार्म में... हमारा रोज़ का पोस्टमैन नहीं था ये... शायद ये लड़का नया ज्वाइन किया है... मुझे एक लिफ़ाफ़ा हाथ में दिया और सलाम करते हुए चला गया... आश्चर्य.... साइन वगेरह कुछ लिए बिना ही चला गया!... लिफ़ाफे पर लिखा देखा... ‘सिर्फ तुम्हारे लिए’....
अपने रूम आ कर मैंने लिफ़ाफ़ा खोला... एक कागज़ का टुकड़ा मिला... मुड़ा हुआ ... खोल कर पढने लगा..
“ये ख़ास तुम्हारे लिए है... बहुत उतावले लगते हो... बहुत सी चीज़ों को जल्द ही जान लेना चाहते हो... इतनी जल्दबाजी अच्छी बात नहीं ... उम्मीद है ..जो भेजा है उसे देख कर फड़फ़ड़ाना बंद कर दोगे ... | और अगर नहीं किये... तो अगली बार इससे भी ज़्यादा बहुत कुछ मिल सकता है तुम्हे..| आगे तुम्हारी मर्ज़ी...|’
मैं कौतुहलवश जल्दी से लिफ़ाफ़े में रखे एक और कागज़ के टुकड़े को निकाला.. मुड़ा हुआ था ये भी .. पर शायद इसमें कुछ था | कागज़ को खोला.. देखा तीन फ़ोटो रखे हैं अंदर...
एक औरत के हैं वो फ़ोटो...
१)एक में बिस्तर पर लेटी ही है... बाएं करवट लेकर.. साड़ी उसके घुटनों तक पहुँच गए हैं | पेट और कमर का काफ़ी हिस्सा दिख रहा है .... चूची का भी कुछ हिस्सा पल्लू के नीचे से दिख रहा है |
२)उसी औरत का क्लीवेज... साड़ी पल्लू बाएं कंधे के एकदम बाएँ तरफ़ है.... और फलस्वरुप, उस महिला के गोरे उन्नत स्तनयुगल पूरी मादकता के साथ दिख रहे हैं.. अपने साथ .. अपने साथी ‘क्लीवेज’ को साथ लेकर ....
३)महिला का पीछे से फ़ोटो लिया गया है... डीप बैक कट से झांकते उसकी गोरी पीठ और गदरायी हुई... चौड़ी और थोड़ी उठी हुई गांड..

**फ़्लैशबैक एंड्स**


और अपने बिस्तर पर बैठा ...जार जार आँसू बहाए जा रहा मैं... फ़ोटो को एकटक देखता हुआ... अपनी किस्मत को कोसता... खुद को गाली दे रहा था | और ऐसा करता भी क्यों ना.... आख़िर वो तीनों फ़ोटो मेरी ‘माँ’ की थी...!........|





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एक टैक्सी में बैठा हुआ हूँ मैं... और मेरा टैक्सी वाला अपने सामने के टैक्सी को फॉलो कर रहा है ... बराबर दूरी बना कर.. समान गति से.. खुद के पकड़े जाने का डर नहीं है.. मेकअप कर के बैठा हूँ.. एक मित्र है मेरा.. अच्छा काम करता है मेकअप का.. नकली दाढ़ी मूँछ लगा कर... हेयर स्टाइल बदल कर .. एक लम्बा..फ्री स्टाइल ट्राउजर .. पिंक कलर का शर्ट और उसपे ट्राउजर से मैच करता ग्रे कलर का ब्लेज़र डाला हुआ है मैंने.. दाएँ हाथ की तीन उँगलियों में तीन बेशकीमती (पर नकली) रत्न लगे अंगूठियाँ.. दाएँ हाथ की ही कलाई में एक चैन वाली घड़ी ... बाएँ हाथ की अँगुलियों ; तर्जनी और मध्यमा के बीच एक सुलगता सिगार ... और साथ में पेपर.. आँखों पर काला चश्मा.. गारंटी दे कर कह सकता था की कोई माई का लाल मुझे नहीं पहचान सकता था |


करीब पैंतालीस मिनट का सफ़र तय करते हुए आगे वाली टैक्सी शहर के ही एक महँगे होटल के सामने रुकी | मैंने भी अपने टैक्सी को थोड़ी ही दूरी पर रुकवा दिया | आगे वाली टैक्सी का पीछे वाले दोनों दरवाज़े एक साथ खुले .. दाएँ तरफ़ से एक लम्बा सा आदमी निकला.. पठानी सूट में... तो वहीं दूसरी तरफ़ से बाहर निकली थी कुछ समय पहले तक आदर्श गृहिणी का तमगा रखने वाली मेरी प्यारी चाची... आज चाची को भी पहचानना मुश्किल था .. हल्का आसमानी रंग की साड़ी और ब्लाउज के नाम पर बिकिनी ब्लाउज... जिसमें दो अत्यंत छोटे ब्लाउज कप्स थे..जिनका काम था चाची की उन्नत, परिपुष्ट चूचियों में से थोड़े हिस्से को कवर करना और बाकि के हिस्से को जबरदस्त प्रभाव के साथ ऊपर की ओर उठाये रखना | बस.... बाकि सब पतली रस्सियों की डोरी सी थी | और माँ कसम.... कमाल की पीस लग रही थी |



पीले गोल्डन जैसे चमकते हील वाले सेंडल पहने इठलाती , मटकती , आहिस्ते, शौख से गांड हिलाती वो उस लम्बे से आदमी के साथ अन्दर उस होटल में दाखिल हुई.. मैंने उस टैक्सी वाले को एक पचास का नोट थमाते हुए आँखों से कुछ इशारा किया ... वो मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया और मैं इतने में ही टैक्सी से उतर कर रोबीले अंदाज़ में उस होटल की ओर बढ़ चला... इधर मेरे टैक्सी वाले ने चाची वाले टैक्सी के साथ अपनी गाड़ी पार्क की और उधर ठीक उसी समय मैं उस आलिशान होटल के सुन्दर नक्काशी वाले और एक दो जगह कांच लगे दरवाज़े को हल्का धक्का देते हुए अन्दर घुसा |




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अन्दर घुसते ही देखा, वो आदमी चाची के कमर में हाथ डाले एक टेबल की ओर बढ़ा जा रहा है | ये ऐसा होटल है, जिसके ऊपर वाले फ्लोर पर होटल की सारी व्यवस्था है और नीचे, जहां अभी मैं हूँ... वो किसी रेस्टोरेंट और कैफेटेरिया का कॉम्बो जैसा है | यहाँ पिज़्ज़ा, बर्गर, हॉट डॉग्स, नूडल्स से लेकर हाई क्वालिटी की चाय, कॉफ़ी तक और तो और बियर और शराब तक अवेलेबल है | पूरी जगह की एक सरसरी सी नज़र दौड़ा कर मुआयना किया .... वो आदमी चाची को लेकर एक टेबल से लगी तीन कुर्सिओं में से एक पर बैठ गया और चाची को भी खिंच कर अपने से लग रखी दूसरी कुर्सी पर बैठाया | मैं तुरंत उनके ठीक बगल वाले टेबल पर जा कर बैठ गया | बगल में होते हुए भी वो टेबल थोड़ा पीछे था | वहां लोग बहुत नहीं थे पर थे भी | अभी तक मैंने पहली वाली ख़त्म कर एक और सिगार सुलगा लिया था | मेरे टेबल के लिए भी तीन कुर्सी थी जिनमें से एक पर मैं बैठा था ; बाकी दोनों खाली थे | मैं पेपर को सामने लिए पढने का ढोंग करने लगा | मेरे बैठने के कोई दो मिनट ही हुए होंगे की लाल कपड़े पहने एक वेटर आ गया और बड़ी शालीनता से आगे की ओर थोड़ा झुक कर सीधा होगया और बहुत ही शांत लहजे में पूछा,

“व्हाट वुड यू लाइक तो हेव सर...?”
“वन कॉफ़ी प्लीज़....लेस शुगर ... एंड अ टोस्ट...!” मैंने भी बड़े ही रोबीले अंदाज़ में अपना ऑर्डर दिया...|
“ओके सर... एनीथिंग एल्स सर...|”
“म्मम्म... या.. गेट अन ऑमलेट आल्सो...|” थोड़ी बेफिक्री से कहा मैंने... |
वेटर एक बार फिर वैसे ही झुक कर सलाम कर के चला गया .. पेपर पढ़ता हुआ मैं बीच बीच में चाची की टेबल की तरफ़ देख लेता | काला चश्मा पहने होने के कारण उन दोनों को पता नहीं चल रहा था की मैं उन्हें देख भी रहा हूँ |
इसी दौरान मैंने देखा की वो आदमी अपने कुरते के पॉकेट से एक स्टील केस बाहर निकाल कर उसे खोला और उसमें से एक सिगार निकाल कर सुलगा लिया... और धुआं चाची के चेहरे पर छोड़ने लगा.. | चाची को परेशानी हो रही थी पर वो बिना कुछ कहे, हाथों से धुआं हटाते हुए थोड़ा खांसती, फिर अपने पल्लू का एक सिरा अपने नाक पर रख लेती | चाची की यह हालत देख कर मेरी भी हंसी छूटने को हो रही थी |
 
तभी मेरी नज़र उनके टेबल के नीचे गई ... और थोड़ा चौंक उठा ... वो आदमी अपना बायाँ हाथ चाची के दाएँ जाँघ पर रख कर पूरे जांघ को ऊपर से नीचे घुटनों तक और फिर घुटनों से ऊपर कटिप्रदेश तक ले जा रहा था | बड़े आराम से, पर साथ ही थोड़ा तेज़ और रफ़ली हाथ फेर रहा था चाची की जाँघ पर | आदमी को देख कर तो कतई ऐसा नहीं कहा जा सकता था की उसके हाथ नरम होंगे... वहीं इसके उल्ट चाची को तो नरम त्वचा का दूसरा नाम कहा जा सकता था... उस आदमी के खुरदुरे हाथ के अपने जांघ पर स्पर्श से चाची के शरीर में सिहरन दौड़ रही थी ... तभी तो रह रह कर वो काँप उठती थी | इतना ही नहीं, हद तो तब हुई जब उस आदमी ने धुआं छोड़ते हुए चाची की तरफ़ थोड़ा झुक कर उनके दाएँ गाल पर एक किस दे दिया | गाल पर किस होते ही चाची चौंक कर इधर उधर देखी ... किसी को खुलेआम अपने प्यार का इज़हार करने के मूड में था वो आदमी.. पर अच्छे से समझ आ रहा था की ये प्यार व्यार कुछ नहीं... सिर्फ वासना का गन्दा खेल खेलने की बेकरारी है |

अभी ये सब चल ही रहा था की तभी दो काम एक साथ हुआ...

वेटर मेरा ऑर्डर ले आया और उधर एक हैट पहना हुआ, लाइट ब्राउन कलर का ब्लेजर-ट्राउजर , वाइट शर्ट पर रेड टाई लगाया हुआ आदमी, देखने से उम्र यही कोई पचास – पचपन का होगा, आया और चाची वाले टेबल में, खाली वाले चेयर पर बैठ गया.. उसके बैठते ही चाची ने थोड़ा डर और थोड़ा आश्चर्य आँखों में लिए अपने साथ वाले आदमी की ओर देखा और तुरंत ही अपने जांघ पर गोल गोल घूम रहे उसके हाथ को झटक कर दूर किया.. पर उस आदमी ने बड़ी ही बेशर्म वाली मुस्कान लिए फिर से चाची की जांघ पर हाथ रखा और आँखों के इशारों से चुप रहने को कहा | करीब दस मिनट तक शान्ति बनी रही | फिर उस ब्लेजर वाले आदमी ने कोई कोड बोलने को बोला पठानी सूट वाले आदमी को ... पठानी सूट वाला आदमी मुस्कुरा कर चाची की ओर देखा और आँखों के इशारे से कुछ कहा.. चाची सहमी हुई इधर उधर देखते हुए अपने दाएँ तरफ़ से सीने पर से पल्लू को सरका कर नीचे की और बिकिनी ब्लाउज के कप को थोड़ा और नीचे कर दी... वो दोनों आदमी तो बस देखते ही रह रहे थे उस तरफ़...
बिकिनी ब्लाउज कप थोड़ा नीचे होते ही चाची के दाईं चूची के निप्पल के थोड़ा ऊपर एक लाल रंग का दिल बना हुआ था... (शायद लाल रिफिल वाले पेन से)... और उस दिल के ऊपर, ब्लैक या ब्लू कलर से कुछ लिखा हुआ था जो मेरे से पढ़ा नहीं गया | चाची ने अपने निप्पल को अंगूठे से छिपा रखा था .... चेहरे पर शरारत सी शर्मो ह्या की लालिमा छाई हुई थी और साथ ही बेईज्ज़ती और किसी अनहोनी की आशंका का डर भी सताया हुआ था |

कुछ देर तक लगातार देखने के बाद उस आदमी ने खुद को संभाला... और गला साफ़ करते हुए बोला,
“हह्म्म्म... कोड सही है... गुड..जल्दी मुलाकात हो गई |” हैट वाला बोला |
“तो अब काम की बात करें?” पठानी सूट वाला बोला |
हैट – “हाँ.. बिल्कुल... ये बताओ मेरे माल देने के बाद मुझे मेरा माल कब मिलेगा?”
सूट – “पहले माल का डेमो देखेंगे... फिर फैसला करेंगे...”
हैट – “ओके... आज डेमो लाया हूँ... दिखाऊँ ??”
सूट – “बिल्कुल... |”
हैट वाले ने अपने ब्लेजर के अन्दर के पॉकेट से एक छोटा काला डिब्बा निकाला और बड़ी ही सावधानी से टेबल पर रख दिया.. फिर इधर उधर देखते हुए वो बॉक्स खोलना चाहा ... इस पर सूट वाले आदमी ने हँसते हुए कहा... “हाहाहा ... मिस्टर सैम.. डरिये नहीं... ये जगह हम जैसे लोगों के लिए ही है..|” सैम के साथ साथ मैंने भी एक बार हल्का सा नज़र उठा कर अपने चारों तरफ़ देखा ... देखा की वहां मौजूद आधे से ज़्यादा लोग महँगे कपड़ो में थे... पर साले सबके शक्ल एक जैसी थी... माफ़िया जैसी...वो भी कोई ऐरा गेरा नहीं.... एकदम हाई प्रोफाइल...!..

सैम थोड़ा निश्चिन्त होते हुए बोला, “थैंक्स मैन ..” और तुरंत ही उस बॉक्स को खोल दिया... बॉक्स के ढक्कन को खोल कर अलग करते ही उसमें से कुछ चमक कर बाहर आने लगी.. मतलब.. रोशनी... वो रोशनी... वो चमक बाहर आने लगी... और इस चमक में एक अलग ही बात है... सूट वाले आदमी का मुँह खुला का खुला ही रह गया | उसने धीरे से उस बॉक्स में हाथ डाला और और कुछ उठा कर अपने आँखों के बिल्कुल सामने ले आया... अब मैंने अच्छे से देखा ... वो दरअसल छोटे छोटे डायमंड के टुकड़े थे... अच्छी खासी चमक वाले... चाची की भी आँखें चौधिया गईं थीं.. और आँखें फाड़े ऐसे देख रही थी जैसे की उन्हें विश्वास ही नही हो रहा है |
“ह्म्म्म... उम्दा है.. | सूट वाले ने कहा...|
हैट – “तो डील पक्की...??”
सूट – “ह्म्म्म.... हाँ.. |”
हैट – “तो कल कहाँ होंगी माल एक्सचेंज?”
सूट – “वो तुम्हे बता दिया जाएगा...|”
हैट – “ओके...”

उसके लिए भी शायद कॉफ़ी आया था | हैट वाले ने कॉफ़ी ख़त्म की और वहां से ‘गुड बाय’ कह कर चला गया | उसके चले जाते ही सूट वाले ने चाची के दाएँ स्तन पर हाथ रखा और तीन चार बार जल्दी जल्दी पर जोर से दाब दिया | चाची मारे दर्द के बिलबिला उठी, “आःह्हह्ह्ह्ह...ऊऊच्च्च्च...” ... | उस आदमी ने इतनी जोर से दबाया था की चाची की आँखों में आँसू आ गये थे...|
 
पर उस आदमी को चाची की हालत देख कर मज़ा आया था | वेटर को बुला कर बिल मंगाया और बिल वहीँ टेबल पर देने के बाद वो चाची को धीरे से कुछ कहा और हाथ पकड़ कर पीछे की तरफ़ लगभग खींचते हुए ले गया...| मैं थोड़ी देर बैठने के बाद अपना बिल मंगाया और बिल देने के साथ साथ उस वेटर को बीस रूपए का अलग से टिप भी दिया | वेटर खुश हो गया... दो बार एक्स्ट्रा झुक कर सलाम किया उसने... मैं मुस्करा कर पीछे की तरफ़ चला गया |
पीछे वाशरूम था... टाइल्स, मार्बल्स वाला... जाकर देखा की दरवाज़ा बंद है और अन्दर से ‘आःह्ह्ह....ओफ्फ्फ़... नहीssssssss.... छोड़ोssss .....’ मैंने न आव देखा न ताव... तुरंत दूसरी गेट से पीछे लपका और एकदम बाहर आकर ठीक वाशरूम के पीछे आ पहुँचा... पाइप और दीवारों में बने खांचों के सहारे किसी तरह चढ़ा और वेंटीलेटर से अन्दर देखा ....
अन्दर चाची फर्श पर गिरी/लेटी हुई थी ... और वो आदमी उन पर चढ़ा हुआ था | चाची की बिकिनी ब्लाउज फर्श पर ही एक तरफ़ पड़ी थी ... उसने उनकी एक चूची को चूस चूस कर लाल कर दिया ... फिर दूसरी चूची को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा। वह अपना पूरा दम लगा कर उनकी चूचियों को चूसे जा रहा था... ऐसा लग रहा था मानो बस अब कुछ ही पलों का वह मेहमान है और मरने से पहले अपनी आखिरी इच्छा पूरी करना चाहता है | चूसते चूसते वो पुरजोर तरीके से उन्हें दबा भी रहा था |
कुछ देर तक तो वह ऐसे ही चूचियों को दबाता... चूसता ... गले और गालों को चूमता चाटता रहा... फिर थोड़ा उठ कर अपने पजामे के नाड़े को खोल कर नीचे सरकाया... फिर चाची के पैरों को पकड़ कर घुटनों से मोड़ते हुए फैलाया... फिर अपने लंड को सीधे उनकी हसीं चूत के मुँह पर रख दिया। लंड का सुपारा उनकी चूत के मुँह पर रगड़ कर उसने सुपारे को बिल्कुल सही जगह फिट किया ... उसके लंड का छुअन अपने चूत पर पाते ही चाची तेज़ सिसकारी लेने लगी... कसम से ... एकदम सड़क छाप रंडी लग रही थी...
एक अच्छे घर की बहु को इस तरह फर्श पर लेटे किसी और का लंड लेते हुए देखना मुझे जितना बुरा लग रहा था उतना ही मज़ा उस आदमी को आ रहा था | उसने अपने सुपारे को हल्का हल्का रगड़ते हुए धीरे धीरे अन्दर की तरफ धकेलना शुरू किया। हल्के से दबाव के साथ लंड का अगला हिस्सा उनकी चूत के अन्दर आधा जा चुका था। अब उसने उनकी जांघों को अपने हाथों से मजबूती से पकड़ा और एक जोर का झटका दिया और आधा लंड अन्दर घुस गया।

“आआअह्ह .... ऊऊ.....ग्गुऊंन… इस्स स्स्स… ह्म्म्म…” चाची दर्द से कराह उठी...|
उसने बिना रुके एक और झटका मारा और जड़ तक पूरे लंड को उनकी चूत में घुसेड़ दिया। चाची मारे जोर के दर्द से चिहुंक उठी... “आआह्ह्ह्ह..... माsssssss.........” | थोड़ा सा रुक कर उसने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर अंदर घुसा कर धीरे धीरे धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ चाची सिसकारियाँ भरती जा रही थीं और उनकी चूत से आती ‘फच्च...फच्च..’ की आवाज़ बता रही थी की उनकी चूत गीली होती जा रही है |
ठप्प्प… ठप्प्प्प… ठप्प्प… ठप्प्प… बस यही आवाजें सुनाई दे रही थीं उस आदमी के जोर जोर से धक्के देने से….

करीब दस मिनट तक ऐसे ही लंड पेलते पेलते उसने उनकी टाँगे छोड़ दीं और अपने रूखे हाथों को आगे बढाकर उनकी चूचियों को थाम लिया। और बहुत मस्ती में भर कर चूचियाँ मसलकर चुदाई का मज़ा लेने लगा....और चाची को तो देख कर लग रहा था जैसे की उनको भी इसमें मज़ा आ रहा है । उनके मुँह से लगातार ‘ऊह्ह्ह्ह...उऊंन्ह्ह....आआह्ह्ह्ह.... ग्गुऊंन......... ग्गुऊंन...............इस्स...स्स्स्स..... ह्ह्म्मम्म...आआह्ह’ | और उनकी इस मदमस्त कराहें उस आदमी को और जोश से बार दे रही थी |
करीब बीस मिनट की चुदाई के बाद अचानक से चाची बोल पड़ी...
“उफफ्फ… मैं..... आःह... अब्ब..औरररर..... आई… मैं .... नहींsssssss.......आईई… ओह्ह्ह… ओह्ह्हह… आआऐ ईईइ।” चाची के पैर और शरीर अकड़ गए और वो एकदम से ढीली पड़ गईं।
वह आदमी भी एक ज़ोरदार , ‘आआह्ह्ह..’ से कराहा और तेज़ लम्बी साँसे लेता हुआ धीरे धीरे चाची के ऊपर लेट गया...
 
दोनों कुछ देर तक वैसे ही लेटे रहे... चाची ने उसे हल्का झिंझोड़ कर उठाया... आहिस्ते से कहा, “जल्दी कीजिये... कोई आ जाएगा...|” वो आदमी मुस्कुराता हुआ चाची के दोनों चूचियों को मसलते हुए उनके होंठों पर हलके से किस किया ओर बोला, “क्या चीज़ है तू.... जितना भी रगडूं... उतना और करने को जी चाहता है... ऊम्माह्ह्ह |”
दोनों जल्दी से उठ कर अपने अपने कपड़े पहन कर वाशरूम से बाहर निकल गए.. | मैं भी जल्दी से उतरा और अपने लंड को ठीक करता हुआ होटल के आगे पहुँचा और फिर अपने टैक्सी वाले के पास गया... वो मुझे दूर से देख कर ही अपने हाथ को एक विशेष अंदाज़ में हिला कर मुस्कुरा दिया... ये उसका इशारा था... कि जो काम मैंने उसे दिया था.. वो उसने कर दिया है.... मैं भी मुस्कुरा कर एक सिगार सुलगाते हुए उसकी ओर बढ़ गया |





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शाम का समय | अपने छत पर खड़ा, छत की छोटी सी बाउंड्री वाल पर कॉफ़ी का मग रखकर, टी शर्ट – बरमुडा पहने, कश लगाते हुए दूर क्षितिज़ में अस्त होते सूर्य और उसके प्रकाश से आसपास आसमान में फ़ैली लालिमा को निहार रहा था | मंद मंद हवा भी चल रही थी | दूर कहीं शायद चमेली का पौधा होगा, जिसकी खुशबू, नथुनों से टकरा कर मन को शांत और आह्लादित कर दे रही थी | भोर और शाम ... इन दोनों में एक बात कॉमन ज़रूर है.. इन दोनों ही समय में, कोई एक पॉइंट ऐसा ज़रूर होता है जब आस पास की चीज़ें अचानक से स्थिर हुई सी प्रतीत होती है.. सबकुछ शांत.. रुका रुका सा लगता है ... | लगता है जैसे समय भी अपनी धुरी पर घूमना भूल कर, इस समय की अद्वितीय सुन्दरता और शांत खड़ी सी प्रकृति की प्रशंसा हेतु शब्द ढूँढ रहा हो और शब्दों के मिलते ही वो वातावरण नुमा धागे में उन्हें पिरोकर उस समय की महत्ता, सुंदरता और अद्वितीयता को कई गुना बढ़ा देता है |


तीन सिगरेट ख़त्म कर चूका हूँ अब तक... चौथा अभी अभी सुलगाया... कॉफ़ी लगभग ख़त्म होने को आ गई है | मन अब मेरा प्रकृति की सुंदरता से हट कर जीवन के संघर्षों में आ गया है | और फ़िलहाल कुछ समय से जीवन में रहस्य, रोमांच, भ्रांति, चिंता, संदेह और दुविधाओं के चक्रव्यूह वाला एक अलग अध्याय शुरू हो गया है | जिन्में मुख्य पात्र मेरी खुद की चाची ही है... (अभी तक) ... और रहस्य, रोमांच और भय वाले इस अध्याय / इस कहानी का ताना बाना बुना जा रहा है चाची के इर्द गिर्द... पर यह बात दावे के साथ कहा जा सकता है की इस कहानी का केन्द्रीय पात्र कोई और है | और वो जो कोई भी है वो विक्टिम भी हो सकता है या विलेन भी | हो सकता है वो इन सभी बातों से अनजान हो .. या हो सकता है की ये सब कुछ उसी के इशारों पर हो रहा हो |

इतनी सारी बातों का दिमाग में बार बार चलने के कारण सिर भारी सा होने लगा | अंतिम कश ख़त्म कर बची खुची कॉफ़ी गटक गया | अपने रूम में जा कर आराम करने का विचार आ ही रहा था कि तभी देखा, घर से दूर.. सड़क के मोड़ वाले जगह पर एक टैक्सी आ कर रुकी... कुछ देर... तकरीबन छह सात मिनट... या शायद दस मिनट तक टैक्सी वैसी ही खड़ी रही... आस पास थोड़ा अँधेरा हो चुका था और शायद टैक्सी के शीशे पर भी काली फिल्म चढ़ाई हुई थी.. | इसलिए बहुत साफ़ कुछ भी नहीं दिख रहा था | जल्द ही पीछे का दरवाज़ा खुला और और उसमें से एक महिला निकली... हाथ में एक मीडियम साइज़ का बैग लिए... | निकलने के बाद दरवाज़ा लगाई और झुक कर अन्दर बैठे किसी से बातें करने लगी | करीब दस और मिनट और बीत गया.. | टैक्सी आगे बढ़ी और फिर टर्न हो कर जिस रास्ते से आई थी.. उसी रास्ते से वापस चली गई | न अनजाने क्या मन हुआ जो मैंने खुद को एक कोने में खड़ा कर छुप गया पर नज़र बराबर सड़क पर ही थी मेरी | वो औरत धीरे धीरे चलते हुए हमारे ही घर के तरफ़ आ रही थी | कुछ करीब आते ही मैं पहचान गया उसे... वो चाची थी ! पर.. पर.. ये क्या... इनकी ड्रेस तो बदली सी है.. | सुबह जैसा देखा था अभी उसके एकदम उलट ... !


वेल्वेट मिक्स्ड डीप ब्लू रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में बिल्कुल किसी घरेलू गृहिणी जैसी ... पर साथ ही अत्यंत सुन्दर एक अप्सरा सी लग रही थी | सड़कों के दोनों तरफ़ लगे बिजली के खंभों पर लगे बल्बों से आती सफ़ेद रोशनी से नहाई चाची की ख़ूबसूरती को जैसे पंख लग गए हो | साड़ी को अच्छे से लपेटे, चेहरे पर थकान का बोझ लिए चाची गेट तक पहुँच गई थी... इसलिए मैं भी जल्दी से नीचे चला गया... दरवाज़ा खोलने |
 
तीन घंटे बाद,

चाची अपने रूम में है... और मैं अपने रूम में.. कुछ देर पहले फ़ोन आया था चाचा का .. आज आने में लेट होगा उनको.. ग्यारह बजे तक आयेंगे .. मुझे खाने का मूड नहीं था और चाची तो चाचा के आने बाद ही खाएँगी | बिस्तर पर लेटे लेटे पूरे दिन के घटनाक्रमों के बारे में सोच रहा था ... ‘माल की डिलीवरी.. ‘एक्सचेंज’... ‘डेमो’, ‘कोड’.... ये सब जितना सोचता उतना ही मेरे सिर पर किसी हथोरे की तरह चोट करते | बिस्तर पर से उठा.. पास के टेबल से बोतल उठाई और पूरा पानी गटक गया | पानी खत्म करते ही सिगरेट की तलब हो आई.. टेबल के दराज से ‘किंग साइज़’ और लाइटर निकाला और चल दिया ऊपर छत की तरफ़ .. कुछ कदम अभी चढ़ा ही था की सोचा एक बार चाची को बता दूं ..की ‘मैं छत पर जा रहा हूँ कोई काम होगा तो बुला लेना’ | साथ ही मुझे ये भी पता चल जाएगा की चाची अभी क्या कर रही है...
कोई पदचाप किये बिना मैं धीरे धीरे उनकी रूम की तरफ़ बढ़ा | दरवाज़ा पूरी तरह लगा नहीं था... हल्का सा सटा कर रखा गया था .. मैंने दरवाज़े को हल्का सा खोल कर अन्दर झाँका.. और झांकते ही आँखें चौड़ी हो गई..


चाची अन्दर अपने बदन पर सिर्फ़ एक टॉवल लपेटे आदमकद आइने (ड्रेसिंग टेबल) के सामने खड़ी थी | टॉवल भी सिर्फ़ उनके गांड से थोड़ी सी नीचे ही थी... बाकी सब साफ़ दिख रहा था .. चाची दूसरे टॉवल से अपने गीले बाल पोंछ रही थी और आईने में खुद को निहारते हुए मंद मंद मुस्कुरा रही थी | लगता है अभी अभी नहा कर निकली है | पूरा बदन चमक सा रहा था.. ख़ास कर उनका चेहरा.. काली आँखें, धनुषाकार आई ब्रो, लाल लिप्स, और उसपे भी रह रह कर आँखों और चेहरे पर गिर आते बालों के लट.. उन्हें और भी सम्मोहक और किसी काम मूर्ति की भाँती बना रही थी | कसम से, आज पहली बार उनको देख कर मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे.. और वो सभी नेक ख्याल नहीं थे इस बात का प्रमाण मेरे बरमुडा में उभर आया तम्बू साफ़ दे रहा था | बाल पोंछ कर चाची कमरे के दूसरी तरफ़ चली गई | मैं वहीँ अपने यथास्थान पर खड़ा रहा | मन और लंड अभी बहुत कुछ देखना चाहते थे शायद.. खैर, थोड़ी ही देर में चाची फिर से आईने के सामने आई ...औ..औरर... और.. जो मैंने देखा वो देखकर मुझे अपने आँखों पर यकीं ही नहीं हो रहा था !!


चाची एक अजीब सी .. अलग ही सी ड्रेस में आईने के सामने खड़ी थी.. ये कहने में कोई भूल नहीं होगी की उस ड्रेस ने चाची की यौवन को जितना निखार कर सामने लाने का बढ़िया काम कर रही थी उतना ही मेरे अन्दर काम ज्वाला को धधकाने में भी कर रही थी | किसी छोटे बच्ची की स्कर्ट जैसी लग रही थी ... अंतर सिर्फ़ इतना है की कन्धों पर पूरे कपड़े होने के बजाए वहां सिर्फ एक एक धागे की डोरी जैसी थी जो नीचे उतरता हुआ उनके स्तनों के पास छोटे और तंग कप्स जैसे बन गए थे जो उनकी चूचियों को बड़ी ही खूबसूरती से ऊपर की ओर धकेल रही थी और नतीजतन, दोनों चूचियों के बहुत सा भाग सफ़ेद सा होकर ऊपर उठा हुआ दिख रहा था और दोनों के इस तरह से आपस में सट कर लगे होने से दोनों के बीच की गहरी घाटी (क्लीवेज) भी बहुत ही उत्तेजक रूप से सामने प्रदर्शित हो रही थी | चाची खुद को निहारती, मुस्कराती हुई, अपनी ही खूबसूरती पर मंत्रमुग्ध होती हुई अपने बदन पर क्रीम/ लोशन लगा रही थी | अपनी ही चाची के उस अर्धनग्न; यौवन से भरपूर रूप लावण्य के सौन्दर्य में मैं अपनी सुध-बुध खोता सा चला जा रहा था |

क्रीम/लोशन लगाने के बाद चाची फिर पलटी और कमरे के दुसरे तरफ़ चली गई.. स्टील वाली आलमारी खुलने की आवाज़ आई ... फिर बंद होने की... थोड़ी सी खटपट और चूड़ियों की छन छन की आवाज़ आई ... दो मिनट बाद ही चाची फिर से आईने के सामने आई... इसबार अपने ऊपर एक नाईट गाउन जिसे अक्सर, अंग्रेजी में रोब (Robe) भी कहते हैं, ली हुई थी...|

शिट..!! नयनाभिराम दृश्य का बहुत जल्दी अंत हो गया !.. मन दुखी हो गया.. लंड की बात छोड़ देता हूँ फिलहाल के लिए... अब तो कुछ भी नहीं दिख रहा था | दुखी मन से चाची को अच्छे से देखा... सब ढका हुआ था सही पर नितम्ब और वक्षों के आस पास का क्षेत्र पूरे गर्व के साथ उठे हुए से थे | थोड़ा और निहारता की तभी टेलीफ़ोन की घंटी सुनाई दी... दिमाग को एक झटका सा लगा.. वासना वाली सपनों की दुनिया से बाहर निकला... | पर अधिक सोचने का समय नहीं था अभी.. इसलिए जल्दी से भागा वहां से.. इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए की मेरे से किसी तरह की कोई आवाज़ न हो जाए | अपने रूम के पास जा कर रुका और फिर दो मिनट रुक कर सीढ़ि से थोड़ा नीचे उतर कर नीचे बज रहे टेलीफोन पर नज़र रखा |
 
चाची आई और रिसीवर कानो से लगाईं.. थोड़ी ‘हूँ हाँ’ कर के बातचीत हुई... मेरे कान खड़े हो गए.. ये ज़रूर उन्ही लोगों का फ़ोन है.. मैं पूरे ध्यान से आगे की बातचीत सुनने के लिए तत्पर था कि तभी चाची की मखमली सी आवाज़ आई .. ‘अभय...! ओ अभय... देख किसका फ़ोन है.. तुझे ढूँढ रहा है ...!!’
अजीब था.. मेरा कोई भी परिचित नॉर्मली रात के टाइम फ़ोन नहीं करता.. सबको मना कर रखा था मैंने.. कोई तभी फ़ोन करता था मुझे जब कुछ बहुत बहुत ही अर्जेंट हो और कल पर टाला ना जा सके |

“कौन है .. चाची?” मैं सीढ़ियों से उतरते हुए पूछा |
“पता नहीं.. पहले तो बोला की मिस्टर एक्स है... फिर कहने लगा की उसे कहिये मिस्टर है.. उससे बात करना चाहता है..|” चाची ने थोड़ी बेफिक्री से कहा.. | ये कोई बम सा मेरे सिर पर गिरा | मिस्टर एक्स ?!! अब ये कौन है भला.. ज़रूर मेरा ही कोई दोस्त मस्ती कर रहा होगा... ये सोचते हुए मैं आगे बढ़ा और बे मन से धीरे से कहा, “पता नहीं कौन है... मैं तो ऐसे किसी को नहीं जानता...|” कहते हुए मेरी नज़र चाची पर गई.. वो मुझे ही देखे जा रही थी और संदेहयुक्त नज़रों से मेरी ओर देखते हुए, शरारती मुस्कान लिए फ़ोन का रिसीवर मेरी ओर बढाते हुए बोली, “हाँ जी.. आप तो किसी को नहीं जानते.. बस किसी ने ऐसे ही फ़ोन घूमा दिया और आपको पूछने लगा... भई हम कौन होते हैं ये पूछने वाले की कौन है, क्या चाहता है .... या क्या चाहती है...?” “चाहती है” कहते हुए आँखों में चमक लिए, चाची के चेहरे पर शर्म की लालिमा छा गई और साथ ही होंठों पर शरारती मुस्कान और गहरी होती चली गई | मैंने इशारे में बताने की कोशिश की कि ‘सच में.. मैं किसी को नहीं जानता..|’ पर चाची ने ध्यान न देकर रिसीवर मुझे थमा कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी | पीछे से उनकी उभरी हुई सुडोल गांड देख कर मन एक बार फिर मचल सा गया | चाची... को पीछे से मंत्रमुग्ध सा देखता हुआ रिसीवर कानों से लगा कर माउथपीस में अनमने भाव से कहा, “हेलो, कौन....?”


उधर से आवाज़ आई, “हेलो अभय... मिस्टर एक्स बोल रहा हूँ |”
 
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