hotaks444
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किचेन में कॉफ़ी बनाते हुए कुछेक बार देखा चाची की ओर.. चाची टीवी देखते हुए बीच बीच में साड़ी के ऊपर से अपने चूचियों पर हलके से हाथ फेर रही थी... जैसे ही चूचियों पर हाथ रखती उनका चेहरा ऐसा हो जाता मानो उनको बहुत दर्द हो रहा है | इतना ही नहीं, वो अपने पेट और जाँघों के अंदरूनी हिस्से पर भी हल्के तरीके से सहला रही थी | चूची, पेट या जांघ में से किसी पर भी हाथ रखते ही उनके चेहरे पर दर्द वाली एक टीस सी छा जाती | शायद आँखों के किनारों में आँसू थे उनके ..... उनकी ये हालत देख कर वाकई बुरा लगा मुझे पर उनकी इस हालत का ज़िम्मेदार कोई और है या वो खुद.. जब तक ये पता ना चले... मैंने अपने भावनाओं पर नियंत्रण रखने की ठान रखी थी |
कुछ ही देर में मैं स्कूटी लिए तेज़ गति से एक ओर चले जा रहा था | एक लड़के से मिलना था मुझे... मेरा ही स्टूडेंट है ... वो मेरी कुछ मदद कर सकता है ... |
घर पर ही मिल गया वो..
“गुड इवनिंग सर, सर .. आप यहाँ ?? मुझे बुलाया होता..|”
“वो तो मैं कर सकता था जफ़र... पर बात ही अर्जेंट वाली है... |”
“क्या हुआ सर...?” जफ़र का कौतुहल बढ़ा ..
“जफ़र... देखो.. ये कुछ सेंटेंस लिखे हुए हैं ... क्या तुम हेल्प कर सकते हो... आई थिंक ये उर्दू ज़बान में है...|” मैंने सिगरेट वाला पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा..|
ज़फर ने पैकेट हाथ में लेकर करीब से देखा और देखते ही तपाक से बोल उठा, “सर.. माफ़ कीजियेगा .. ये अरबी भाषा में है..|”
ये सुनते ही चौंका मैं.. बहुत ताज्जुब वाली बात नहीं थी पर मैं इस बात के लिए तैयार नहीं था | पर अब थोड़ा परेशान सा हो उठा | स्वर में बेचैनी लिए बोला, “तो तुम इसे ट्रांसलेट नहीं कर सकते?”
“कर लूँगा... शायद... पर थोड़ा टाइम लगेगा सर..|” जफ़र ने सिर खुजाते हुए कहा..
“कितना टाइम लगेगा..??”
“यही कोई दस-पंद्रह मिनट |”
“ठीक है... मैं बैठता हूँ... तुम जल्दी ट्रांसलेट करो...|”
जफ़र एक पन्ना और कलम ले कर बैठा और लगा माथा पच्ची कर के उन वाक्यों ट्रांसलेट करने | मैं वहीँ बैठकर एक मैगज़ीन को आगे पीछे पढ़ते हुए बेसब्री से इंतज़ार करने लगा | सामने वाल क्लोक के कांटे के हरेक हरकत के साथ मेरी बेचैनी भी बढती जाती थी | खैर, ऊपर वाले का शुक्र है की जफ़र ने ज़्यादा समय ना लेते हुए सभी वाक्यों के ट्रांसलेशन कर दिए | सभी ट्रांसलेशन कुछ ऐसे थे ...
kayf kan yawmak (आज का दिन कैसा रहा )
kanat jayida (अच्छा था)
hal sataemal (क्या वो काम करेगी?)
bialtaakid (बिल्कुल)
kayf kan hdha albund (वैसे माल कैसी थी)
rayie... eazim (वाओ... ज़बरदस्त)
अभी और भी पढ़ता .. पर तभी... जफ़र ने टोकते हुए कहा की “सर, कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो मैंने टूटे फूटे अंदाज़ में लिखे हैं.. मेरी ज़बान उर्दू है... अरबी नहीं.. पर .. थोड़ा बहुत समझता हूँ.. पर और जितने भी लिखे हैं वो कितने सही और कितने गलत होंगे... ये मैं नहीं जानता... सॉरी सर...|” चेहरे पर विनम्रता और स्वर में बेबसी लिए वो बोला था | वो मदद करना चाहता था... पर बेबस था बेचारा.. | मैंने उन शब्दों के ओर नज़र डाले जिन्हें उसने किसी तरह ट्रांसलेट किये थे :-
१)योर होटल
२)दोपहर से शाम
३)ये माल और वो माल
४)चरस और गांजा
५)आटोमेटिक गन
६)गोला बारूद
७)जो बोलूँगा वो करेगी
८)मालिक/बॉस के मज़े
९)शादी शुदा ... नाम दीप्ति ...|
ये सभी शब्द पढ़ते हुए मेरे हैरानी का लेवल बढ़ता जा रहा था और अंतिम शब्द या यूं कहूँ की अंतिम शब्दों ने तो मेरे धड़कन ही बढ़ा दिए थे... ‘शादी शुदा... नाम दीप्ति...!!’
कुछ ही देर में मैं स्कूटी लिए तेज़ गति से एक ओर चले जा रहा था | एक लड़के से मिलना था मुझे... मेरा ही स्टूडेंट है ... वो मेरी कुछ मदद कर सकता है ... |
घर पर ही मिल गया वो..
“गुड इवनिंग सर, सर .. आप यहाँ ?? मुझे बुलाया होता..|”
“वो तो मैं कर सकता था जफ़र... पर बात ही अर्जेंट वाली है... |”
“क्या हुआ सर...?” जफ़र का कौतुहल बढ़ा ..
“जफ़र... देखो.. ये कुछ सेंटेंस लिखे हुए हैं ... क्या तुम हेल्प कर सकते हो... आई थिंक ये उर्दू ज़बान में है...|” मैंने सिगरेट वाला पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा..|
ज़फर ने पैकेट हाथ में लेकर करीब से देखा और देखते ही तपाक से बोल उठा, “सर.. माफ़ कीजियेगा .. ये अरबी भाषा में है..|”
ये सुनते ही चौंका मैं.. बहुत ताज्जुब वाली बात नहीं थी पर मैं इस बात के लिए तैयार नहीं था | पर अब थोड़ा परेशान सा हो उठा | स्वर में बेचैनी लिए बोला, “तो तुम इसे ट्रांसलेट नहीं कर सकते?”
“कर लूँगा... शायद... पर थोड़ा टाइम लगेगा सर..|” जफ़र ने सिर खुजाते हुए कहा..
“कितना टाइम लगेगा..??”
“यही कोई दस-पंद्रह मिनट |”
“ठीक है... मैं बैठता हूँ... तुम जल्दी ट्रांसलेट करो...|”
जफ़र एक पन्ना और कलम ले कर बैठा और लगा माथा पच्ची कर के उन वाक्यों ट्रांसलेट करने | मैं वहीँ बैठकर एक मैगज़ीन को आगे पीछे पढ़ते हुए बेसब्री से इंतज़ार करने लगा | सामने वाल क्लोक के कांटे के हरेक हरकत के साथ मेरी बेचैनी भी बढती जाती थी | खैर, ऊपर वाले का शुक्र है की जफ़र ने ज़्यादा समय ना लेते हुए सभी वाक्यों के ट्रांसलेशन कर दिए | सभी ट्रांसलेशन कुछ ऐसे थे ...
kayf kan yawmak (आज का दिन कैसा रहा )
kanat jayida (अच्छा था)
hal sataemal (क्या वो काम करेगी?)
bialtaakid (बिल्कुल)
kayf kan hdha albund (वैसे माल कैसी थी)
rayie... eazim (वाओ... ज़बरदस्त)
अभी और भी पढ़ता .. पर तभी... जफ़र ने टोकते हुए कहा की “सर, कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो मैंने टूटे फूटे अंदाज़ में लिखे हैं.. मेरी ज़बान उर्दू है... अरबी नहीं.. पर .. थोड़ा बहुत समझता हूँ.. पर और जितने भी लिखे हैं वो कितने सही और कितने गलत होंगे... ये मैं नहीं जानता... सॉरी सर...|” चेहरे पर विनम्रता और स्वर में बेबसी लिए वो बोला था | वो मदद करना चाहता था... पर बेबस था बेचारा.. | मैंने उन शब्दों के ओर नज़र डाले जिन्हें उसने किसी तरह ट्रांसलेट किये थे :-
१)योर होटल
२)दोपहर से शाम
३)ये माल और वो माल
४)चरस और गांजा
५)आटोमेटिक गन
६)गोला बारूद
७)जो बोलूँगा वो करेगी
८)मालिक/बॉस के मज़े
९)शादी शुदा ... नाम दीप्ति ...|
ये सभी शब्द पढ़ते हुए मेरे हैरानी का लेवल बढ़ता जा रहा था और अंतिम शब्द या यूं कहूँ की अंतिम शब्दों ने तो मेरे धड़कन ही बढ़ा दिए थे... ‘शादी शुदा... नाम दीप्ति...!!’