hotaks444
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“इन पेपर्स को देखो..” एकदम से मेरी ओर उन कागजों को बढ़ाते हुए बोली |
पर तब तक मेरी नज़रें उसके उभारों को अच्छे से निहार चुकी थीं इसलिए उसके बोलने के काफ़ी पहले ही मेरा ध्यान भी उन पेपर्स पर ही था |
पेपर्स को हाथों में लिए बड़े गौर से देखने लगा | कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा था | वे कागज़ दरअसल ज़ेरोक्स थे .. असली के...|
कुल बारह कागज़ थे और प्रत्येक पर किन्ही लोगों के फ़ोटो (वे भी ज़ेरोक्स) के साथ कुछ बातें लिखी हुई थीं | ज़ेरोक्स होने के कारण कुछ लिखावट समझ में आ रही थी और कुछ नहीं |
काफ़ी देर तक पन्नों को उलट पलट कर देखने के बाद भी जब कुछ ख़ास समझ में नहीं आया तो उस लड़की की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा | उसे शायद मेरी इसी प्रतिक्रिया की आशा थी |
क्योंकि उसकी ओर देखते ही वह हौले से मुस्करा दी और बोली,
“ये वही लोग हैं जिनकी तलाश तुम्हें है और इन्हें तुम्हारी तलाश है |”
“क्या??!!!”
सुनते ही जैसे मेरे ऊपर बिजली सी गिरी |
लगभग उछल कर कुर्सी पर सीधा तन गया और दोबारा उन पन्नों को बेसब्री से आगे पीछे पलटने लगा |
पर ‘झांट’ कुछ समझ में आ रहा था.......
मेरा उतावलापन देख कर वह अपना हाथ आगे बढाई और मेरे हाथों को थाम लिया..
उफ़..! कितने नर्म मुलायम थे उसके हाथ ..! कितना कोमल स्पर्श था !! पल भर को तो मैं जैसे सब भूल ही गया | मन में एक आवाज़ उठी कि, ‘बस... ऐसे ही हमेशा हाथ को पकड़े रहना.. |’
शांत लहजे में कहा,
“अभय... धैर्य से काम लो... उतावलापन हमेशा भारी पड़ता है |”
उसका मेरा नाम लेना मेरे कानों को मधु सा लगा | जी किया कि एक बार उससे अनुरोध करूँ की एकबार फ़िर वह मेरा नाम ले .....
आहा! कितना मधुर स्वर है इसका...
पर...
अरे, यह क्या..!!
इसे मेरा नाम .. कैसे पता...??
चौंक उठा मैं |
और तुरंत ही अचरज भरी निगाहों से उसे देखा...|
मन पढ़ने की उसने कोई डिग्री कर रखी होगी शायद ....
तभी तो मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने मेरे आँखों और चेहरे पर उभर आये आश्चर्य की रेखाओं को देखते ही कहा,
“मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ ना सही पर बहुत कुछ जानती हूँ...”
ये कहते हुए उसने मेरे इंस्टिट्यूट, मेरी पढ़ाई लिखाई, परिवार और ऐसे ही कई सारी बातों का जिक्र किया
पर तब तक मेरी नज़रें उसके उभारों को अच्छे से निहार चुकी थीं इसलिए उसके बोलने के काफ़ी पहले ही मेरा ध्यान भी उन पेपर्स पर ही था |
पेपर्स को हाथों में लिए बड़े गौर से देखने लगा | कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा था | वे कागज़ दरअसल ज़ेरोक्स थे .. असली के...|
कुल बारह कागज़ थे और प्रत्येक पर किन्ही लोगों के फ़ोटो (वे भी ज़ेरोक्स) के साथ कुछ बातें लिखी हुई थीं | ज़ेरोक्स होने के कारण कुछ लिखावट समझ में आ रही थी और कुछ नहीं |
काफ़ी देर तक पन्नों को उलट पलट कर देखने के बाद भी जब कुछ ख़ास समझ में नहीं आया तो उस लड़की की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा | उसे शायद मेरी इसी प्रतिक्रिया की आशा थी |
क्योंकि उसकी ओर देखते ही वह हौले से मुस्करा दी और बोली,
“ये वही लोग हैं जिनकी तलाश तुम्हें है और इन्हें तुम्हारी तलाश है |”
“क्या??!!!”
सुनते ही जैसे मेरे ऊपर बिजली सी गिरी |
लगभग उछल कर कुर्सी पर सीधा तन गया और दोबारा उन पन्नों को बेसब्री से आगे पीछे पलटने लगा |
पर ‘झांट’ कुछ समझ में आ रहा था.......
मेरा उतावलापन देख कर वह अपना हाथ आगे बढाई और मेरे हाथों को थाम लिया..
उफ़..! कितने नर्म मुलायम थे उसके हाथ ..! कितना कोमल स्पर्श था !! पल भर को तो मैं जैसे सब भूल ही गया | मन में एक आवाज़ उठी कि, ‘बस... ऐसे ही हमेशा हाथ को पकड़े रहना.. |’
शांत लहजे में कहा,
“अभय... धैर्य से काम लो... उतावलापन हमेशा भारी पड़ता है |”
उसका मेरा नाम लेना मेरे कानों को मधु सा लगा | जी किया कि एक बार उससे अनुरोध करूँ की एकबार फ़िर वह मेरा नाम ले .....
आहा! कितना मधुर स्वर है इसका...
पर...
अरे, यह क्या..!!
इसे मेरा नाम .. कैसे पता...??
चौंक उठा मैं |
और तुरंत ही अचरज भरी निगाहों से उसे देखा...|
मन पढ़ने की उसने कोई डिग्री कर रखी होगी शायद ....
तभी तो मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने मेरे आँखों और चेहरे पर उभर आये आश्चर्य की रेखाओं को देखते ही कहा,
“मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ ना सही पर बहुत कुछ जानती हूँ...”
ये कहते हुए उसने मेरे इंस्टिट्यूट, मेरी पढ़ाई लिखाई, परिवार और ऐसे ही कई सारी बातों का जिक्र किया