Hindi Adult Kahani कामाग्नि - Page 2 - SexBaba
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Hindi Adult Kahani कामाग्नि

जय- वो देखो! उस दूकान पर पहिये वाले जूते मिलते हैं।
शीतल- तो उसमें क्या बड़ी बात है? वो तो अपने यहाँ भी मिलते हैं।
जय- और वहां पर खेलकूद का सामान मिलता है।
शीतल- क्या, हो क्या गया है आपको? मुझे वहां ये सब फालतू चीज़ें क्यों दिखा रहे हो?
जय- ताकि तुम यहाँ नीचे ना देख पाओ। हा हा हा…

जैसे ही शीतल ने नीचे देखा तो वो चौंक गई। वो एक कांच के फर्श पर खड़ी थी और उसके नीचे निचली मंजिल पर लोग आ-जा रहे थे। पहले तो उसे बड़ा मज़ा आया कि वो जैसे हवा में उड़ रही है लेकिन जैसे ही उसे याद आया कि अपनी स्कर्ट के अन्दर वो बिलकुल नंगी है और उसकी चूत अब सब लोगों के सामने खुली हुई है, वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसने जल्दी से अपने पाँव सिकोड़ लिए।

शीतल- आप भी ना, बड़े बेशर्म हैं। पहले बता देते तो मैं सम्हाल के आती ना।
जय- फिर ये मज़ा कहाँ से आता?
शीतल- आपको अपनी पत्नी की उस की नुमाइश करने में मज़ा आता है?
जय- ‘उस की’?
शीतल- हाँ, मतलब मेरी वो… समझ जाओ ना!

जय- अरे यार, यहाँ हिंदी कोई नहीं समझता। चूत बोलो चूत!
शीतल- आप दिन पे दिन बहुत बेशर्म होते जा रहे हैं। तो मेरी चूत दुनिया को दिखा के क्या मज़ा मिला आपको?
जय- तुम भी तो दिन पे दिन बिंदास होती जा रही हो। रही बात तुम्हारी चूत की तो मज़ा तो दुनिया को आया होगा मुझे तो तुमको और बिंदास बनाना है इसलिए ऐसा किया।

शीतल- इतनी बिंदास तो हो गई हूँ। आगे हो के आपको चोद डालती हूँ। ऐसे गंदे गंदे शब्द बोलने लगी हूँ। और कितना बिंदास बनाओगे?
जय- इतना कि सारी दुनिया के सामने मुझे चोद सको।
शीतल- मजाक मत करो। कोई सारी दुनिया के सामने नंगा होता है क्या? पागल कहेगी सारी दुनिया।

इस बात पर जय बस मुस्कुरा दिया। मन ही मन वो ये सोच कर हंस रहा था कि शीतल को अभी पता नहीं था कि वो जहाँ जा रहे हैं वो किस बात के लिए प्रसिद्ध है। केप ड’अग्ड, फ्रांस में उस समय एक छोटा सा गाँव था तो अपने प्रकृतिवादी रिसॉर्ट्स के लिए उन दिनों काफी प्रसिद्ध हो रहा था। रात का खाना प्लेन में ही हो गया और सोने के समय से पहले दोनों रिसोर्ट में पहुँच गए थे। थकान काफी थी इसलिए सीधा सोने चले गए। अगली सुबह शीतल फ्रेश हो कर आई और तैयार होने के लिए अपने कपड़े निकालने लगी।

शीतल- आज कहाँ चलना है और उस हिसाब से क्या कपड़े पहनूं?
जय- वो बिकिनी ली थी ना, फूलों के प्रिंट वाली वो पहन लो और उसके ऊपर ये कुरता डाल लो।
शीतल- क्या बात कर रहे हो आप भी। ये इतना झीना कुरता वो भी ये चिंदी जैसे कपड़ों के ऊपर। नहीं नहीं… ये पहन के मैं बाहर नहीं जा सकती। मुझे तो लगा था आपने ये इसलिए दिलवाया है कि अगर ज़्यादा गर्मी पड़ी तो रात को पहन के सोने के काम आएगा।

जय- एक काम करो। ये पहन लो… साथ में हम ये बड़ी वाली शाल ले चलते हैं, अगर तुमको लगे कि कोई तुमको गलत नज़र से देख रहा है तो ये ओढ़ लेना।
शीतल- ठीक है। और आप क्या पहनोगे?
जय- बस ये एक चड्डी काफी है।
शीतल- हाँ, आप तो हो ही बेशरम।

फिर दोनों तैयार हो कर निकल पड़े। एक बास्केट में वही बड़ी सी शाल कुछ बियर की कैन और कुछ नमकीन रख लिया था। बीच ज्यादा दूर नहीं था, बल्कि यूँ कहें कि सामने ही दिख रहा था बस वहां तक पहुंचना था। दूर से लोग बीच पर धूप सेंकते दिख रहे थे लेकिन ठीक से नहीं। तभी थोड़ी दूरी पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बीच की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया। उसके पास भी वैसा ही बास्केट था जैसा होटल वालों ने जय और शीतल को दिया था लेकिन वो पूरा नंगा था।

शीतल- हे भगवान! सुबह सुबह ये पागल ही दिखाना था? अब देखो, मैं कल ही कह रही थी ना… इस इंसान को आप पागल ही कहोगे ना। चलो अपन थोड़ा दूसरी तरफ चल देते हैं।
जय- तुम्हारा मतलब उस तरफ?

जय ने इशारा करके बताया और जब शीतल ने उस दिशा में देखा तो दंग रह गई। वहां एक खूबसूरत जोड़ा जो लगभग उनकी ही उम्र के थे और वो भी पूरे नंग-धड़ंग बीच की ओर जा रहे थे। वो आपस में बात करते हुए बड़ी फुर्ती से बीच की ओर बढ़ रहे थे और उनकी हरकतों को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो पागल थे। शीतल कुछ समझ पाती इस से पहले जय ने एक और दिशा में इशारा किया।
 
वहां तो एक पूरा परिवार नंगा बैठा था। पति-पत्नी और एक करीब दस साल की लड़की और लगभग छह साल का लड़का जो वहां रेत में किले बना रहे थे। ये लोग अब बीच पर आ गए थे और हर जगह जो भी स्त्री-पुरुष और बच्चे धूप सेंक रहे थे वो सब नंगे ही थे। शीतल तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी।

शीतल- ये सब क्या हो रहा है। कहाँ ले आए हो आप हमको?
जय- ये एक प्रकृतिवादी लोगों का गाँव है। इन लोगों का मानना है कि प्रकृति ने जैसा हमें बनाया है, हमको वैसे ही रहना चाहिए। इनका खानपान रहन सहन सब प्राकृतिक होता है।

इतना कहते कहते जय ने बास्केट में रखी शाल रेत पर बिछा दी और अपनी चड्डी निकाल कर उस पर लेट गया।

शीतल- अरे ये लोग जो हैं वो हैं लेकिन आप तो शर्म थोड़ी करो। ऐसे सबके सामने नंगे हो रहे हो!
जय- जैसा देस वैसा भेस। बल्कि अगर तुम ऐसे घूमोगी तो सब तुमको ही देखेंगे। मैं तो कहता हूँ कम से कम ये कुरता तो निकाल ही दो।
जय अपनी बीवी को नंगी करना चाहता था कि उसकी शर्म पूरी खुल जाए और वो अपनी नंगी बीवी की नंगी कहानी अपने दोस्त और भाभी को सुनाये.

शीतल को जय की बात सही लगी। अब तक काफी लोग उसे अजीब नज़र से देख चुके थे। उसने भी कुरता निकाल दिया और शाल के ऊपर लेट गई। दोनों एक दूसरे की तरफ करवट ले कर लेटे थे और अपने एक हाथ पर सर को टिका कर दूसरे हाथ से बियर पी रहे थे। जय ने शीतल को हज़ार बार नंगी देखा था लेकिन आज ऐसे खुले बीच पर बिकिनी में उसे देख कर जय का लंड खड़ा हो गया। उधर शीतल ने पहली बार बियर पी थी तो उसे थोड़ी चढ़ने लगी थी।

शीतल- अरे तुम्हारा तो लंड खड़ा हो गया। चूस दूं क्या?
जय- अरे नहीं! यहाँ लोग प्राकृतिक रहने के लिए नंगे रहते हैं सेक्स के लिए नहीं। लेकिन अब ये खड़ा हो गया है तो इसको लेकर तो कहीं जा भी नहीं सकते… अच्छा नहीं लगेगा। तुम्हारे कुरते से ढक लेता हूँ तुम हाथ से हिला के झड़ा दो।

शीतल ने थोड़ी देर कोशिश की लेकिन जब जय नहीं झड़ा तो शीतल नशे में बोलने लगी- चोद लो यार, यहाँ सब वैसे भी नंगे ही तो घूम रहे हैं।
शीतल नशे में समझ नहीं पा रही थी कि वहां बच्चों वाले परिवार भी थे।

लेकिन जय को एक नया उपाय सूझा, उसने शीतल को समुद्र में चलने को कहा। दोनों भाग कर पानी में चले गए और इतने गहरे पानी में जा कर खड़े हो गये कि पानी उनकी छाती तक था। कभी लहर भी आती तो गले तक ही आ रहा था।

ऐसे में जय ने शीतल की बिकिनी बॉटम (पेंटी) को नीचे सरका के पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। समंदर की लहरों में दोनों की चुदाई के झटके कहीं खो गए और देखने वालों को यही लग रहा है कि कोई अपनी बीवी के साथ लहरों का आनंद ले रहा है। शीतल पर नशे की खुमारी थी और ऊपर से समंदर की लहरों में झूलते हुए ऐसी चुदाई उसने पहली बार अनुभव की थी।

आखिर में जब वो झड़ी तो कुछ देर के लिए तो आनंद के अतिरेक से वो बिल्कुल निढाल पड़ गई। अगर जय तब उसे पकड़ ना लेता तो शायद वो डूब ही जाती।
थोड़ी देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो नशा पूरी तरह से उतर चुका था।
जैसे ही वो सम्हालने लायक हुई उसे एक और झटका लगा।
उसकी बिकिनी बॉटम गायब थी। जब जय ने चोदने के लिए उसे नीचे सरकाया था तब तो शीतल ने उसे अपने पैर चौड़े करके घुटनों से ऊपर अटका रखा था लेकिन चुदाई के मज़े में जब उसका बदन ढीला पड़ा तो वो नीचे सरक कर लहरों में कहीं बह गई। दोनों ने मिल कर काफी ढूँढा लेकिन आसपास कहीं नज़र नहीं आई।

शीतल- मैं ऐसे बाहर नहीं निकल सकती; आप मुझे आपका बरमूडा ला कर दो ना, मैं वही पहन कर बाहर आ जाऊँगी।
जय- ऐसे घबराओ मत यार, दिमाग से काम लो। यहाँ सब औरतें नंगी ही घूम रही हैं ऐसे में तुमने बिकिनी पहनी थी वही लोगों को अजीब लग रहा था। अब तुम मेरे साइज़ का बरमुडा पहनोगी और उसे हाथ से पकड़ कर चलोगी तो सब हँसेंगे तुम पर। ऐसे ही चल दोगी तो शायद कोई देखेगा भी नहीं।

ठन्डे दिमाग से सोचा तो बात शीतल को भी सही लगी; थोड़ी हिम्मत करके वो बाहर आ गई। थोड़ी ही देर में उसे समझ आ गया कि अगर वो इस बीच पर नंगी भी घूमे तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ने तौलिये से अपने अपने बदन को सुखाया और वहीं थोड़ा घूमने का सोचा।

जय- अब ये ऊपर की ब्रा भी निकाल ही दो। बड़ा अजीब लग रहा है, चूत दिखा रही हो और बोबे छुपा रही हो।
शीतल- हे हे… बात तो आपकी सही है, और वैसे भी यहाँ किसी को फर्क नहीं पद रहा कि मैं यहाँ नंगी खड़ी हूँ।

इतना कहकर शीतल ने बिकिनी टॉप भी निकाल दिया और खुले आसमान के नीचे पूरी नंगी हो गई। काफी देर तक दोनों वहीं बीच पर घूमते रहे। शीतल को आज़ादी का एक नया ही अहसास हो रहा था। वो नंगी ही बीच पर दौड़ लगा रही थी समंदर की आती जाती लहरों में छई-छप्पा-छई कर रही थी। जय बहुत खुश था शीतल का ये रूप देख कर।

देसी बीवी की नंगी कहानी जारी रहेगी.
 
मेरी सेक्स कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे जय ने सफलतापूर्वक अपनी देसी बीवी को पेरिस के एक बीच पर पूरी नंगी कर लिया और समुद्र के पानी में छिप पर खुलेआम चुदाई भी कर डाली.
अब आगे:

उसे समझ आ गया कि अगर वो इस बीच पर नंगी भी घूमे तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ने तौलिये से अपने अपने बदन को सुखाया और वहीं थोड़ा घूमने का सोचा।

जय- अब ये ऊपर की ब्रा भी निकाल ही दो। बड़ा अजीब लग रहा है, चूत दिखा रही हो और बोबे छुपा रही हो।
शीतल- हे हे… बात तो आपकी सही है, और वैसे भी यहाँ किसी को फर्क नहीं पद रहा कि मैं यहाँ नंगी खड़ी हूँ।


इतना कहकर शीतल ने बिकिनी टॉप भी निकाल दिया और खुले आसमान के नीचे पूरी नंगी हो गई। काफी देर तक दोनों वहीं बीच पर घूमते रहे। शीतल को आज़ादी का एक नया ही अहसास हो रहा था। वो नंगी ही बीच पर दौड़ लगा रही थी समंदर की आती जाती लहरों में छई-छप्पा-छई कर रही थी। जय बहुत खुश था शीतल का ये रूप देख कर।

अब तो शीतल रिसोर्ट में भी नंगी घूमने से नहीं शर्मा रही थी। उस रात ठण्ड ज़रूर थी लेकिन फिर भी चाँद की हल्की रोशनी में दोनों फिर नंगे अकेले बीच पर गए। वहां एक जगह काफी सारे जुगनू दिखाई दिए। उन जुगनुओं की झिलमिल रोशनी में शीतल का नंगा बदन जब अंगड़ाई लेते हुए जय ने देखा तो उसका लंड तुरंत पत्थर का हो गया। फिर उन जुगनुओं के बीच खुले आसमान के नीचे जो चुदाई हुई वो शायद जीवन में एक ही बार होती है।

मानो चुदाई का दंगल हो जहाँ ना किसी को चित करना है ना खुद को बचाने कोशिश लेकिन फिर भी कुश्ती जारी है। ये तो बस अन्दर की उत्तेजना है जो इस रूप में बाहर आ रही है। इसमें प्यार भी है; रोमांच भी और वासना भी है। चुदाई कम हो रही थी और गुत्थम-गुत्थी ज्यादा। जब थोड़े थक जाते तो चुदाई कर लेते और फिर जोश आ जाता तो एक बार फिर दंगल शुरू हो जाता। आखिर दोनों झड़े तो दोनों ने ये माना कि इतनी अच्छी चुदाई उन्होंने कभी नहीं की थी। मज़ा आ गया!

फिर दोनों ने वहीं समंदर में अपनी रेत साफ़ की और रिसोर्ट में वापस आ कर सो गए।

अगली सुबह शीतल ने नहीं पूछा कि क्या पहनना है। आज वो फ्रेश होने के बाद नंगी ही बाथरूम से बाहर आई।
शीतल- चलो मैं तो तैयार हूँ।
जय- मैं भी तैयार हूँ। देखा नंगे रहने के कितने फायदे हैं।

उस पूरे दिन उन्होंने बीच पर मस्ती की। शीतल भी अब पूरी बेशरम हो गई थी। बीच के एक किनारे पर बड़ी सी चट्टान की ओट में चुदाई भी कर ली। बहरहाल अगले दिन यहाँ से विदा लेना था और फिर से कपड़े वालों की दुनिया में जाना था। शीतल ने वेल-बॉटम वाला पेंट और डिज़ाइनर शर्ट पहना था। शाम तक दोनों एम्स्टर्डम पहुँच गए थे। सफ़र ज्यादा लम्बा नहीं था तो थकान उतनी नहीं थी। जय ने उसे कुछ ख़ास दिखने के लिए साथ चलने को कहा। शीतल ने एक मैक्सी पहन ली जिसके अन्दर वो अभी भी नंगी थी। उसे अब नंगेपन का अहसास भाने लगा था।

जय उसे एम्स्टर्डम के रेड-लाइट डिस्ट्रिक्ट ले गया जहाँ जो उनकी होटल से पैदल जाने लायक दूरी पर ही था। पूरी सड़क पर जितने भी घर थे सबके सामने लड़कियां बहुत ही छोटे कपड़े पहन कर खड़ी हुई थीं। जय ने शीतल को बताया के ये सब पैसे ले कर सेक्स करने के लिए खड़ी हुई हैं।

शीतल- आप भी ना! अब मैं बिंदास हो गई हूँ तो इसका मतलब ये नहीं कि आप मुझे ऐसी जगह ले आओ। मुझसे आपका मन नहीं भर रहा क्या?
जय- अरे नहीं यार! यहाँ इस सब को गलत नहीं मानते ये सब इसको एक बिज़नस की तरह करती हैं और सरकार को टैक्स भी देती हैं।
शीतल- चलो ठीक है लेकिन फिर भी आपको क्या ज़रूरत पड़ गई यहाँ आने की? मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि आप मेरे अलावा किसी और की तरफ नज़र उठा कर भी देखो।
जय- अरे नहीं यार, तू फिकर ना कर। मैं तो तुझे दिखाने के लिए लाया था क्योंकि अपने उधर तो तुझे ले कर गया तो लोग तेरे पीछे ही पड़ जाएंगे इसलिए सोचा ये जगह सही है जहाँ तू बिना किसी फिकर के देख सकती है कि ये सब देह व्यापार कैसा होता है।
शीतल- चलो ठीक है देख लिया अब वापस चलो।
जय- हाँ अभी तो चलो लेकिन कल वापस आएँगे। यहाँ एक क्लब है वहां कल के शो की बुकिंग करवाई है।
उस रात जय ने शीतल को नहीं चोदा। थकान का बहाना करके सो गया लेकिन सच तो ये था कि उसे पता था कि शीतल को अब रोज़ चुदाई की आदत हो गई है और आज चुदाई नहीं मिली तो कल वो बहुत चुदासी रहेगी। अगली रात के सपने देखते देखते वो सो गया।

अगले दिन दोनों दिन भर ट्यूलिप गार्डन और एम्स्टर्डम की नहरों में घूमते रहे, और भी कई जगह गए लेकिन शाम से पहले होटल वापस आ गए। शाम को फ्रेश होकर तैयार होने के लिए जय ने शीतल को एक मिनी स्कर्ट और नूडल स्ट्रिंग वाला टॉप पहनने को कहा। अब तक शीतल की शर्म तो ख़त्म हो ही चुकी थी इसलिए उसने कोई नखरा तो किया ही नहीं बल्कि बिना कहे अन्दर भी कुछ नहीं पहना।

तैयार होकर डिनर के समय से पहले ही दोनों एक क्लब के सामने जा पहुंचे जिसके ऊपर लिखा था ‘बार नाईटक्लब – कासा रोज़ा’
अन्दर पहले से रिज़र्व जगह तक पहुँचाने के लिए एक लड़की साथ आई जिसने एक बड़ी चमकीली बिकिनी पहनी हुई थी। उसने उन्हें एक कमरे में ले जा कर एक सोफे पर बैठने को कहा और चली गई। ये बहुत ही आरामदायक सोफे था जिस पर दो लोग आराम से बैठ सकते थे। सोफे के सामने एक टेबल था जिस पर कुछ ग्लास और सजावटी सामान था।
 
कमरे के दूसरे कोने में ठीक वैसा ही सोफे और टेबल लगा हुआ था और इस कमरे की सामने की दीवार नहीं थी बल्कि कुछ ही दूरी पर एक स्टेज था जो दरअसल एक बड़े हॉल में थे और ये कमरा केवल इसलिए बनाया गया था कि हॉल के लोग इस कमरे के अन्दर ना देख सकें और यहाँ बैठे लोग स्टेज का शो प्राइवेट में देख सकें।

थोड़ी ही देर में एक और जोड़ा इस कमरे में आया और दूसरे सोफे पर बैठ गया।

इस दूसरे जोड़े में जो लड़की थी उसने बहुत ही छोटी मिनी स्कर्ट पहनी थी और अन्दर आ कर उसने अपना जैकेट उतार दिया जिसके अन्दर उसने एक लगभग ब्रा जैसी ही डिज़ाइनर टॉप पहनी थी। दोनों आते ही चिपक कर बैठ गए और चोंच से चोंच लड़ाने लगे।

जय ने अपना खाने-पीने का आर्डर पहले ही कर दिया था तो कुछ ही देर में वही वेट्रेस एक शैम्पेन की बोतल लेकर आई और दोनों के ग्लास भर के बोतल बर्फ की बाल्टी में रख कर दूसरे जोड़े से आर्डर लेने चली गई।

शीतल- यहाँ क्या खाने के साथ डांस का शो होता है या कोई नाटक होता है?
जय- देखते जाओ। यहाँ वो होगा जो तुमने कभी नहीं देखा होगा। अभी तो तुम अपना ड्रिंक लो। चियर्स!!!

दोनों पीने लगे… कुछ ही देर में म्यूजिक भी बजने लगा। तभी वेट्रेस उस दूसरे वाले जोड़े का आर्डर ले कर आई। उन्होंने टकीला शॉट्स आर्डर किये थे। एक ट्रे में काफी सारे छोटे छोटे ग्लास रखे हुए थे और साथ में कुछ नींबू और कुछ और भी चीज़ें थीं। उस आदमी ने कुछ कहा तो वेट्रेस ने अपनी बिकिनी ब्रा खोल दी फिर एक टॉवल से अपने स्तनों को साफ़ किया फिर एक चुचुक पर नींबू का रस और दूसरे पर नमक लगाया फिर एक टकीला ग्लास अपने दोनों स्तनों के बीच दबा कर उस आदमी के पास गई, उसने ग्लास से टकीला पी और फिर उसके दोनों चुचुकों को चूस कर नमक और नींबू चाटा।

शीतल ने जब ये देखा तो दंग रह गई। वो कुछ कहती कि तभी स्टेज पर शो शुरू हो गया।

एक लड़का और एक लड़की म्यूजिक पर डांस कर रहे थे। धीरे धीरे वो अपने कपड़े निकालने लगे और बड़ा ही मादक नृत्य करने लगे। इधर जय ने शीतल के पीछे से अपना एक हाथ उसके टॉप में डाल दिया और उसके एक स्तन को सहलाने लगा। शीतल को अब थोड़ी शर्म आने लगी।
शीतल- क्या कर रहे हो यार?
जय- उधर देखो!

शीतल ने जब देखा तो दूसरे कोने में जो आदमी था वो अपनी साथी की टॉप ऊपर सरका चुका था और उसके चूचुकों को बारी बारी चूस रहा था। कभी दोनों चुम्बन करने लगते तो वो उसके स्तनों को मसलने लगता। शीतल पर शैम्पेन का नशा असर करने लगा था। सामने वो नाचते युगल पूर्ण नग्नावस्था में बहुत मादक रूप में आलिंगन और चुम्बन करते हुए थिरक रहे थे। शीतल भी कल से चुदासी बैठी थी। उसने भी जोश में आ कर अपना टॉप निकाल दिया और जय के सर को अपने स्तनों के बीच दबा कर मसलने लगी।

स्टेज पर चुदाई शुरू हो गई थी और कमरे के दूसरे कोने में बैठा युगल भी पीछे नहीं था। वो अपनी महिला साथी को टेबल पर झुका कर पीछे से चोद रहा था। म्यूजिक की धुन भी ऐसी थी कि लग रहा था चुदाई के लिए ही बनी थी। कुछ ही देर में शीतल और जय पूरे नंगे थे और चुदाई कर रहे थे। शीतल पलटी और सोफे के बाजू पर अपनी कोहनियाँ टेक कर घोड़ी बन गई ताकि जय उसे पीछे से चोद सके लेकिन देखा कि सामने वाला जोड़ा भी ठीक उसी आसन में चुदाई कर रहा था।

सामने वाला युगल शीतल और जय को देख कर मुस्कुराया और दोनों तरफ से इशारे में ही हेल्लो-हाय हुई।

अनजान युवक- वुड यू लाइक टु स्वैप? (क्या आप अदला बदली करना पसंद करोगे)
जय- शी वोंट एप्रूव (वो मंज़ूरी नहीं देगी)
अनजान युवक- नो प्रॉब्लम (कोई बात नहीं)

शीतल और जय दोनों के लिए ही यह पहली बार था कि वो किसी के सामने ऐसे चुदाई कर रहे थे। उस पर बातें भी होने लगीं तो उत्तेजना कुछ और ही बढ़ गई और उधर स्टेज पर लड़के ने लड़की के मुख में अपना वीर्य छोड़ दिया ये देख कर शीतल झड़ने लगी और उसने भी नशे में यही करने की ठान ली और उठ कर बैठ गई अपना मुख खोल कर। इतना देख कर ही जय की उत्तेजना चरम पर पहुँच गई और उसने शीतल के मुँह में अपना वीर्य छोड़ दिया।

इतना ड्रिंक करने के बाद वैसे ही शीतल का मन कुछ नमकीन खाने का हो रहा था। उसे वीर्य का स्वाद पसंद आ गया और वो पूरा निगल गई बाक़ी जो इधर उधर लग गया था उसे भी उंगली से निकाल कर चाट गई और बाकी लंड को कोल्ड्रिंक की स्ट्रॉ जैसे चूस के उसके अन्दर से जो मिला वो भी खा गई। आखिर दोनों ने कपड़े पहने और नशे में लड़खड़ाते हुए गाने एक दूसरे को अनाप-शनाप बकते हुए होटल वापस आ गए।

यूरोप के पांच दिन पूरे हो चुके थे, अगले दिन शीतल ने जय से नहीं पूछा कि उसे क्या पहनना है। वो अपना सलवार-सूट पहन कर अपने देश वापस आने के लिए तैयार थी।

देसी बीवी की सेक्स कहानी जारी रहेगी.
 
प्रिय पाठको, मेरी कामुक कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे जय ने हनीमून के लिए यूरोप जा कर अपनी बीवी को नग्न बीच पर सबके सामने नंगी होने के लिए प्रोत्साहित किया और बाद में एक क्लब में दूसरे जोड़े के सामने उसकी चुदाई भी कर दी। जय को लगा कि इतना सब होने के बाद शायद वो विराज से चुदवाने के लिए तैयार हो जाएगी और फिर दोनों दोस्त आपस में मिल कर एक दूसरे की बीवियों को चोदेंगे। अब आगे …

यूरोप से वापस आने के बाद एक अलग ही जोश आ गया था जय और शीतल के जीवन में। अब शीतल पहले जैसी नहीं रह गई थी; उसे अब चोदा-चादी के इस खेल में मज़ा आने लगा था। दरअसल मज़ा कभी चुदाई में नहीं होता। मज़ा तो उन खेलों में होता है जो चुदाई के साथ साथ खेले जाते हैं। मज़ा समाज के उन नियमों को चकमा देने में होता है जिनको आप बचपन से बिना सोचे समझे निभाए जा रहे हो।

देर रात सुनसान सड़क पर चुदाई करने में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि सड़क कोई बहुत आरामदायक जगह होती है। चलती ट्रेन में सबके सोने के बाद चुदाई में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि वो कोई आसान काम है। दिन दिहाड़े किसी और के खेत में घुस के चोदने में ज्यादा मज़ा आता है पर इसलिए नहीं कि खेतों में कोई सौंधी खुशबू होती है।

इन सब जोखिम भरे तरीकों से चोदने-चुदाने में ज्यादा मज़ा इसलिए आता है क्योंकि एक तो जोखिम भरे काम उत्तेजना बढ़ाते हैं और ऊपर से हमारे अन्दर का जो जानवर है जिसको प्रकृति ने नंगा पैदा किया था वो वापस आज़ादी का अनुभव करता है। आज़ादी उन नियमों से जो समाज ने हम पर थोपे हैं जिनका शायद कोई फायदा भी होगा लेकिन फिर भी वो हमें अपने सर पर रखा वज़न ही लगते हैं।

शीतल इस वज़न से मुक्त हो गई थी इसलिए अब वो जय के साथ ये सारे काम करने में पूरी तरह से उसका साथ देने लगी थी। घर पर अब वो अक्सर नंगी ही रहती थी; जब भी गाँव जाते तो कभी किसी के खेत में तो कभी नदी के किनारे किसी टेकरी के पीछे चुदाई कर लेते। बस में, ट्रेन में, कभी मोहल्ले की पीछे वाली गली में तो कभी अपने ही घर की छत पर। शायद ही कोई जगह बची हो जहाँ जय ने शीतल को चोदा ना हो।


इस सब में कई महीने निकल गए। अब तो बस एक ही ख्वाहिश बाकी थी कि वो अपने दोस्त विराज के साथ मिल कर शीतल और शालू की सामूहिक चुदाई कर पाए। समय निकलते देर नहीं लगती, जल्दी ही राजन एक साल का हो गया और विराज ने उसके जन्मदिन पर जय और शीतल को बुलाया।

जन्मदिन मनाने के बाद विराज और राजन अकेले में बैठ कर बातें कर रहे थे।
जय- और सुना! शालू भाभी की टाइट हुई कि नहीं?
विराज- अरे तू भी क्या शर्मा रहा है सीधे सीधे बोल ना कि भाभी की चूत टाइट हुई या नहीं?
जय- हाँ यार वही, तूने कहा था ना कि भाभी की चूत वापस टाइट हो जाए फिर प्रोग्राम करेंगे।
विराज- इसीलिए तो तुम लोगों को बुलाया है। तेरी शीतल तैयार हो तो अभी कर लेते हैं।

जय- अरे तैयार तो हो ही जाएगी। यूरोप में जो जो करके हम आये हैं उसके बाद मुझे नहीं लगता कि मना करेगी, लेकिन फिर भी मुझे एक बार बात कर लेने दे। अगर सब सही रहा तो न्यू इयर की पार्टी मनाने तुम हमारे यहाँ आ जाना फिर वहीं करेंगे जो करना है।
विराज- ठीक है फिर। जहाँ इतना इंतज़ार किया वहां थोड़ा और सही। लेकिन अपनी यूरोप की कहानी ज़रा विस्तार में तो सुना।

फिर देर रात तक जय ने विराज को यूरोप की पूरी कहानी एक एक बारीकी के साथ सुना दी।

अगले दिन शीतल और जय शहर वापस आ गए। उस रात जय ने वो विडियो कैसेट निकाले जो वो एम्स्टर्डम से ले कर आया था। इनमें उस समय की 8-10 मानी हुई पोर्न फ़िल्में थीं। उसने उनमें से वो फिल्म निकाली जिसमें दो जोड़े आपस में एक दूसरे के पति-पत्नी के साथ मिल कर सामूहिक सेक्स करते हैं।

फिल्म को देखते देखते शीतल उत्तेजित हो कर जय का लंड और अपनी चूत सहलाने लगी।
जय- याद है, हमने भी एम्स्टर्डम में ऐसे ही किसी अनजान कपल के साथ सेक्स किया था।
शीतल- हाँ! बड़ा मज़ा आया था। लेकिन ये लोग तो अदला बदली कर रहे हैं मैंने तो आपके ही साथ किया था बस।
जय- तो अदला बदली भी कर लेती, मैंने कब मना किया था।
शीतल- अरे नहीं, ये कभी नहीं हो सकता। आपके अलावा कोई मुझे छू नहीं सकता।

जय- लेकिन मेरी इजाज़त तो तब तो कर सकती हो ना?
शीतल- अरे ऐसे कैसे … मेरा शरीर है तो आपकी इजाज़त से क्या होगा। अग्नि के सात फेरे ले कर ये शरीर आपको सौंपा है तो आपके अलावा किसी और को छूने भी नहीं दूँगी मैं।
जय- ठीक है ठीक है बाबा … लेकिन जो एम्स्टर्डम के उस क्लब में किया था वैसा कुछ तो कर सकती हो ना?

शीतल मुस्कुराती हुई- क्यों? फिर से एम्स्टर्डम चलने का मन है क्या?
जय- नहीं लेकिन वो काम तो यहाँ भी हो सकता है ना!
शीतल- यहाँ भी वैसे क्लब हैं क्या?
जय- क्लब तो नहीं हैं लेकिन तुम हाँ तो करो हम घर में ही क्लब बना लेंगे।
 
शीतल- देखना कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए। किसे बुलाओगे; रंडियों को?

जय- नहीं यार, वो विराज को मैंने बताया था कि हमने क्या क्या किया वहां तो उसका भी मन था। अब परदेस जाना वो चाहता नहीं है तो मैंने सोचा आगर तुम हाँ करो तो उसको और शालू भाभी को यहीं पर वो सब मज़े करवा दें।
शीतल कुछ सोचते हुए- हम्म … शालू भाभी तो शायद मान भी जाएंगी। लेकिन मुझे आपके अलावा कोई छुएगा नहीं; ये वादा करो तो मुझे मंज़ूर है।
जय- एम्स्टर्डम में भी तो किसी ने कुछ नहीं किया था ना तुमको। बस वैसे ही करेंगे। चिंता ना करो विराज नहीं चोदेगा तुमको। मैं ही चोदूँगा बस … ऐसे …

फिर जय ने इसी ख़ुशी में शीतल को जम के चोदा। शीतल भी उन यादों से काफी उत्तेजित हो गई थी। साथ साथ वो अदला-बदली करके चुदाई करने वाली फिल्म का वीडियो भी देखती जा रही थी। उसे भी चुदाई में बड़ा मज़ा आया। अगले ही दिन जय ने विराज को सन्देश भिजवा दिया कि न्यू इयर मनाने शहर आ जाए। यह तो बस एक कोडवर्ड था जिससे विराज समझ जाए कि शीतल तैयार है।

31 दिसंबर 1987 की शाम के पहले ही विराज और शालू, राजन को अपनी दादी के भरोसे छोड़ कर एक रात के लिए जय के घर आ गए। यहाँ कोई बड़ा बूढ़ा तो था नहीं, सब हमउम्र थे और ना केवल विराज-जय बल्कि शालू-शीतल के भी काफी हद तक अन्तरंग समबन्ध रह चुके थे। यह अलग बात है कि शीतल को किसी और के साथ ऐसे समबन्ध रखना सही नहीं लगता था इसलिए उसने शालू से दूरी बनाई हुई थी लेकिन आज तो उनके संबंधों में एक नया मोड़ आने वाला था।

शालू अन्दर रसोई में शीतल का हाथ बंटाने चली गई।
शालू- क्या बना रही है?
शीतल- मसाला पापड़ के लिए मसाला बना रही हूँ। खाना तो ये बोले खाने की शायद ज़रूरत ना पड़े नाश्ते से ही पेट भरने का प्रोग्राम है।
शालू- हाँ, वैसे भी ऐसे में थोड़ा पेट हल्का ही रहे तो सही है।
शीतल- तुमको पता है ना ये दोनों क्या क्या सोच कर बैठे हुए हैं?

शालू- मुझे इनके प्लान का तुझसे तो ज्यादा ही पता रहता है।
शीतल- हाँ, जब इन्होंने कहा तो मुझे यही लगा था कि तुम तो तैयार हो ही जाओगी।
शालू- देख शीतल! मेरा तो सीधा हिसाब है पति बोले तो मैं तो किसी और से भी चुदवा लूँ।
शीतल- हाय दैया! दीदी, आप भी ना … कैसी बातें करती हो।

इधर शालू और शीतल की बातें शुरू हो रहीं थीं जिसमें यूरोप की यात्रा की यादें थीं तो शालू की टिप्पणियां भी थीं कि अगर वो होती तो क्या क्या हो सकता था। शालू शीतल को और भी बिंदास बनाने की कोशिश कर रही थी। उधर विराज और जय योजना बना रहे थे कि कैसे इन महिलाओं की स्वाभाविक शर्म के पर्दे को गिराया जाए और अपने लक्ष्य तक पहुंचा जाए।

जय- बाकी सब तो ठीक है यार लेकिन शीतल ने साफ़ कह दिया है कि वो मेरे अलावा किसी और से नहीं चुदवाएगी। मैंने सोचा एक बार साथ मिल के चुदाई तो कर लें फिर हो सकता है उसकी हिम्मत बढ़ जाए और हम अदला-बदली भी कर पाएं।
विराज- तू फिकर मत कर, मैं शालू को ही चोदूँगा। लेकिन शालू ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है, तो अगर तुम दोनों का जुगाड़ जम जाए तो मुझे आपत्ति नहीं है, तू शालू को चोद सकता है।

रात 9 बजे तक तो ऐसे ही बातें चलती रहीं और उधर रसोई का काम ख़त्म करके शीतल और शालू भी तैयार हो गईं थीं। फिर दारु पीते हुए गप्पें लड़ाने का दौर शुरू हुआ। विराज और जय स्कॉच पी रहे थे और महिलाओं के लिए व्हाइट वाइन लाई गई थी।
कुछ देर तक इधर उधर की बातों के बाद यूरोप की बातें शुरू हुईं। शीतल शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी लेकिन शालू आगे होकर शीतल की बताई हुई बातें चटखारे लेकर सुना रही थी।

विराज- फिर वो नंगे बीच पर बस नंगे होकर घूमे ही … या कुछ किया भी?
जय- दिन में तो नहीं, लेकिन रात को किया था … जुगनुओं के साथ।
शालू- क्या बात कर रहे हो जय भाईसाहब। बस जुगनुओं के साथ? शीतल तो बता रही थी किसी क्लब में किसी और जोड़े के साथ भी किया था?
शीतल (धीरे से)- क्या दीदी आप भी … सबके सामने!

आखिर सबने मिल कर एक सेक्सी फिल्म देखने का फैसला किया। जय ने जो ब्लू फिल्मों की कैस्सेट्स लेकर आया था उनमें से सबसे कम सेक्स वाली फिल्म लगा दी। इसमें चुदाई को बहुत ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया था। बस नंगे होकर चुम्बन-आलिंगन तक ही दिखाया था लेकिन बहुत ही उत्तेजक तरीके से जैसे कि स्तनों को लड़के की छाती से चिपक कर दबना या उनकी जीभों का आपस में खेल करना जो कि काफी करीब से फिल्माया गया था। इसको देख कर सब काफी उत्तेजित हो गए थे।

शालू विराज के साथ ही बैठ गई थी और विराज मैक्सी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबा रहा था। एक बार तो उस से रहा नहीं गया और उसने उंदर हाथ डाल कर शालू का एक स्तन मसल डाला। उधर वाइन का असर शीतल पर भी होने लगा था और इस फिल्म के दृश्यों ने उसकी वासना भड़का दी थी वो भी जय के साथ जीभ से जीभ लड़ा कर चुम्बन करने लगी।
 
फिल्म ख़त्म हुई तब तक 12 बजने में 10 मिनट कम थे।

विराज- यार, काश हम भी तुम्हारे नग्न समुद्रतट यानि न्यूड बीच वाला अनुभव ले पाते।
शालू- मुझे तो उस क्लब में जाकर चुदवाने का मन कर रहा है।
जय- क्यों ना हम यहीं वो क्लब बना लें। मान लो यही वो क्लब है और हम न्यू इयर मनाने यहाँ आये हैं।
शालू- एक काम करते हैं जैसे ही 12 बजेंगे, हम सब एक साथ नंगे हो जाएँगे तो फिर किसी को पहले या बाद में नहीं होना पड़ेगा और शर्म भी नहीं आएगी।

विराज- ठीक है फिर ऐसे कपड़े पहन लेते हैं जो एक झटके में निकल जाएं।
शीतल- आप लोग अन्दर जा कर लुंगी पहन लो।
शालू- हाँ, हमारे कपड़े तो वैसे भी केवल ये डोरियों से अटके हैं बस अन्दर के कपड़े निकालने पड़ेंगे तो वो हम पहले ही निकाल लेते हैं।

शालू और शीतल ने जो मैक्सी पहनी थीं उनमें कंधे पर बस दो डोरी थीं जिनके सहारे पूरी ड्रेस लटक रही थी। जब दोनों मर्द बेडरूम में लुंगी लेने गए तो शालू ने अपनी निगरानी में शीतल के ब्रा और पेंटी निकलवा दिए और खुद के भी निकाल दिए। 12 बजने में 1 ही मिनट बचा था।

जय (ऊंची आवाज़ में)- एक काम करो आप लोग भी यहाँ बेडरूम में ही आ जाओ।
शीतल- ठीक है जी।
शीतल ने नशे में लहराती हुई आवाज़ में जवाब दिया.

दोनों बेडरूम में पहुंचे तो जय और विराज लुंगी लपेट कर आधे नंगे खड़े थे और आखिरी मिनट के सेकंड्स गिन रहे थे।

49 … 50 … 51 … 52 … 53 … 54 … 55 … 56 … 57 … 58 … 59 … हैप्पी न्यू इयर !!!
एक झटके में दोनों लुंगियां ज़मीन पर थीं। अगले ही क्षण शालू की मैक्सी भी फर्श पर गिर गई लेकिन शीतल ने अपनी मैक्सी निकलने के बजाए दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं थीं। आखिर शालू ने ही उसे अपने गले लगाते हुए उसकी मैक्सी नीचे खसका दी। वैसे शायद वो ऐसी हालत में शालू को अपने से चिपकने ना देती लेकिन अभी शर्म के मारे वो उससे चिपक गई और अपना सर उसके कंधे पर झुका कर आँखें मूँद लीं।

विराज जाकर शालू के पीछे चिपक गया और जय शीतल का पीछे। शालू ने जय को आँख मारते हुए चुम्बन का इशारा किया और अपने होंठ आगे कर दिए। जय भी हल्का नशे में था और न्यू इयर पार्टी की मस्ती थी सो अलग। उसने भी आवाज़ किये बिना अपने होंठ शालू के होंठों से टकरा कर हल्का सा चुम्बन ले लिया। तभी शालू ने शीतल धक्का दे कर अपने से अलग किया।

शालू- अब तू अपना पति सम्हाल; मैं अपना सम्हालती हूँ।

इतना कह कर शालू पलटी और घुटनों के बल बैठ कर विराज का लंड चूसने लगी। जय ने शीतल को पीछे से पकड़ लिया और एक हाथ से उसके स्तन मसलने लगा और दूसरे से उसकी चूत का दाना।
एम्स्टर्डम में तो कोई अनजान था जिसके सामने शीतल ने चुदवाया था और वहां एक जोड़ा स्टेज पर खुले आम चुदाई कर रहा था जिसे देख कर उसे जोश आ गया था; लेकिन यहाँ तो उसके पति का लंगोटिया यार था जिसके सामने वो नंगी खड़ी थी और वो अपनी पत्नी से लंड चुसवाते हुए उसके नंगे बदन को निहार रहा था।

पहली बार अपने बचपन के दोस्त की नंगी बीवी को देखते हुए विराज के लंड को लोहे की रॉड बनने में देर नहीं लगी। उसने शालू को वहीँ बिस्तर पर पटका और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा कर उसे चोदने लगा। शालू के दोनों पैरों को उसने अपने हाथों से पकड़ रखा था और खुद घुटने मोड़ कर बिस्तर पर बैठे बैठे उसे चोद रहा था।

जय और शीतल कुछ देर तक तो उनकी चुदाई देखते रहे फिर जय शालू के बाजू में पीछे दीवार पर तकिया लगा कर अधलेटा सा बैठ गया और शीतल को अपना लंड चूसने के लिए कहा। पहले तो कुछ देर उसने बिस्तर के किनारे बैठ कर जय का लंड चूसा लेकिन फिर सुविधा के हिसाब से बिस्तर पर पैर मोड़ कर बैठी और झुक कर चूसने लगी। ऐसे में उसकी गांड विराज की आँखों के ठीक सामने थी और दोनों जंघाओं के बीच उसकी चिकनी मुनिया भी झाँक रही थी।

विराज कभी शीतल की गांड और चूत को देखता तो कभी उसके झूलते मम्मों को। शालू का ध्यान काफी देर से विराज की नज़रों पर था। उसने भी सोचा क्यों ना वो कोई शरारत करे। उसने अपना सर जय की ओर घुमाया और जैसे ही जय ने उसकी ओर देखा, शालू ने अपने हाथों से अपने स्तनों को सहलाते हुए आँखों से उनकी ओर इशारा किया और फिर अपने होंठों से एक हवाई चुम्बन जय की ओर फेंका।

जय इस मादक आमंत्रण के सम्मोहन में बंध कर जैसे खुद-ब-खुद शालू की ओर झुका और उसके रसीले आमों का रस चूसने लगा। शीतल तो जय के लंड पर झुकी थी इसलिए देख नहीं पाई कि अभी अभी क्या हुआ लेकिन इस हरकत ने विराज का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उसकी आँखों के सामने उसका दोस्त उसकी बीवी के स्तनों को मसलते हुए चूस रहा था। विराज की उत्तेजना और बढ़ गई और उस से रहा नहीं गया। उसने भी शीतल की गांड पर हाथ फेरते हुए एक उंगली उसकी भीगी-भीगी चुनिया-मुनिया के अन्दर सरका दी।
 
शीतल को तो जैसे करंट लग गया। पहले तो वो कुछ क्षणों के लिए जैसे मदहोशी के आगोश में समां गई लेकिन जैसे ही वो मदहोशी टूटी उसे याद आया कि उसके पति ने वादा किया था कि उसके अलावा शीतल को कोई नहीं चोदेगा और वो अचानक उठ कर बैठ गई और गुस्से से विराज की ओर मुड़ी…

शीतल- आपकी हिम्म… त…

लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि उसने अभी अभी क्या देखा था। उसने अपना सर वापस जय की ओर घुमाया और देखा कि वो अभी भी शालू का स्तनपान करने में व्यस्त था।

शीतल- अब समझ आया। यही चाहिए था ना आपको? तो फिर मेरी क्या ज़रूरत थी। मुझे अपने चरित्र पर कोई दाग नहीं लगवाना; आपको जो करना है कीजिये; मैं मना नहीं करती लेकिन मुझे इस सब में शामिल नहीं होना है। मैं जा रही हूँ। आप लोग मज़े करो।

इस से पहले कि जय सम्हाल पाता या समझ पाता कि क्या हुआ है, शीतल बाहर निकल गई।

जय- क्या हुआ यार, अचानक से इतना क्यों भड़क गई। अच्छा नहीं लगा तो मना कर देती।
विराज- नहीं यार! भाभी भड़कीं तो मेरी हरकत से थी फिर तेरी हरकत देख के उनका गुस्सा बेकाबू हो गया।
जय- तुझे तो मैंने बताया था ना कि वो मेरे अलावा किसी से नहीं चुदवाएगी फिर तूने हरकत की क्यों?
विराज- नहीं यार, मेरा चोदने का कोई इरादा नहीं था। वो तो तुझे शालू के बोबे चूसते देखा तो सोचा छूने में क्या हर्ज़ है तो मैंने एक उंगली भाभी की चूत में डाल दी पीछे से, ये सोच के कि उनको भी थोड़ा मज़ा आ जाएगा।

जय- अरे यार! गलती मेरी ही है। उसने कहा था कि उसे मेरे अलावा कोई हाथ नहीं लगाएगा और मैंने तुझे बोल दिया कि मेरे अलावा कोई नहीं चोदेगा। अब तो ये ग़लतफ़हमी महंगी पड़ गई। खैर तुम अपनी चुदाई खत्म करो मैं जा के देखता हूँ मना सकता हूँ या नहीं अब उसको। आधे घंटे में वापस ना आऊं तो फिर इंतज़ार मत करना।

विराज और शालू का तो मन फीका पड़ गया था, तो उन्होंने फिर आगे चुदाई नहीं की। जय ने भी शीतल को मानाने की कोशिश की लेकिन उसने बात करने से साफ़ इन्कार कर दिया। जय ने फिर वापस जाना सही नहीं समझा, वो वहीं शीतल के साथ चिपक कर सो गया।

उधर विराज-शालू ने भी कुछ समय तक इंतज़ार किया फिर वो भी सो गए। अगली सुबह दोनों जल्दी निकल गए क्योकि राजन को उसकी दादी के भरोसे छोड़ कर आए थे तो ज्यादा देर रुक नहीं सकते थे।

इस सामूहिक चुदाई का तो कुछ नहीं हो पाया क्योंकि शीतल के संस्कार उसे पराए मर्द से चुदवाने की इजज़र नहीं दे रहे थे लेकिन शालू क्या उसके और जय के बीच कोई और नया समीकरण बन पाएगा?

देखते हैं अगले भाग में!
 
दोस्तो, आपने इस गर्म सेक्स कहानी के पिछले भाग में पढ़ा कि शीतल सामूहिक चुदाई के लिए तो मान गई लेकिन अब तक उसके संस्कार उसे अपने पति के अलावा किसी और से चुदवाने की इजाज़त नहीं दे रहे थे। वहीं दूसरी ओर शालू तो जय से चुदाने के लिए तैयार बैठी थी। अब आगे…

सामूहिक चुदाई की पहली कोशिश नाकाम हो चुकी थी। आगे भी इसके हो पाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। आखिर हर किसी को अपनी ज़िन्दगी में कोई तो नया रंग भरना ही था। जय और विराज दोनों अपने अपने तरीके से कोशिश करने लगे।
जय ने अपनी उन ब्लू फिल्म वाली कैस्सेट्स का सहारा लिया जो वो एम्स्टर्डम से लाया था, लेकिन विराज के लिए अब कुछ नया करने को बचा नहीं था। राजन अभी छोटा था उसके सोने तक वैसे भी विराज कुछ कर नहीं पाता था और देर रात तक इतना समय होता नहीं था कि कुछ खास किया जा सके।
धीरे धीरे विराज और शालू का काम जीवन नीरस होने लगा था।

लेकिन जय के अभी कोई बच्चे नहीं थे उसने शीतल के साथ ब्लू फिल्म देखना शुरू किया। हालाँकि शीतल विवाहेतर संबंधों के पक्ष में नहीं थी फिर भी पता नहीं क्यों उसे 1974 में बनी इमैन्युएल (Emmanuelle) नाम की फिल्म बहुत पसंद आई। उसमें भी नायिका का पति उसे मज़े करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था। लेकिन शायद जो उसे पसंद आया था वो उस नायिका के कामानंद का प्रदर्शन था।

इस फिल्म का कई भाग थे और कई महीनों तक शीतल बस उन्ही को देखने की माँग करती रहती थी। आखिर एक दिन जय के कहने पर उन्होंने 1976 में बनी ऐलिस इन वंडरलैंड देखी। ये एक तरह से हास्य फिल्म थी। सेक्स में कॉमेडी का मिलना ही एक अलग अनुभव था उस पर हिंदी फिल्मों की तरह गाने भी। चुदाई करते करते गाना गाते कलाकार सोच कर ही हँसी आती है। ये शीतल ही नहीं बल्कि जय के लिए भी एक नया अनुभव था।


लेकिन इस फिल्म से शीतल को एक और नई बात सीखने को मिली जो उसने पहले कभी सपने भी नहीं सोची थी। और वो थी रिश्तों में चुदाई। इस फिल्म में ऐलिस, एक जुड़वां भाई-बहन से मिलती है जिनका नाम ट्विडलीडी और ट्विडलीडम था। वो बच्चों की तरह खेलते खेलते चुदाई करते रहते हैं। शीतल को ये बात अजीब सी लगी।

शीतल- इन्होंने ऐसा क्यों दिखाया? भाई-बहन भी कभी ऐसा करते हैं क्या!
जय- ज़्यादातर नहीं करते। लेकिन शीतल, दुनिया बहुत बड़ी है हर तरह के लोग हैं। कुछ लोग करते भी होंगे।
शीतल- पता नहीं। मुझे तो नहीं लगता। वैसे भी ये तो मजाकिया फिल्म है वो भी काल्पनिक दुनिया के बारे में इसलिए दिखा दिया होगा।

जय- तुमको ऐसा लगता है तो फिर मैं तुमको एक और फिल्म दिखाता हूँ। मैंने भी नहीं देखी है लेकिन पोस्टर देख कर ही समझ गया था कि उसमें क्या है।
शीतल- क्या नाम है उस फिल्म का?
जय- टैबू
शीतल- मतलब?
जय- वर्जित।

यह शायद दुनिया की पहली फिल्म थी जिसमें माँ-बेटे के बीच के कामुक रिश्ते को इतनी गहराई से दिखाया था। फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई देख कर तो शीतल थर थर कांपने लगी, वो दृश्य उसके सेक्स को झेल पाने की मानसिक शक्ति से बहुत ऊपर था; उसके हाथ पैर ढीले पड़ गए और दिल की धड़कन राजधानी एक्सप्रेस के साथ रेस लगाने लगी।

उस दिन शीतल चुदाई के समय एक लाश की तरह पड़ी रही लेकिन जो अनुभव उसकी चूत को हुआ वो शायद पहले कभी नहीं हुआ था। सच है… सेक्स, शरीर का नहीं दिमाग का खेल है।

जय और शीतल ने जब ये ब्लू फिल्में देखना शुरू किया तब इस सब के बिलकुल विपरीत विराज और शालू की आँखों से नींद गायब थी और वो एक रात बिस्तर पर पड़े पड़े अपने नीरस काम-जीवन पर चर्चा कर रहे थे। वही पुराना घिसा-पिटा चुदाई का खेल खेलने में अब उन्हें कोई रूचि नहीं रह गई थी।

शालू- देखो क्या से क्या हो गया। कहाँ तो आप जय के साथ मज़े कर लेते थे और कहाँ अब मेरे होते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे।
विराज- तब तो माँ की चुदाई देख कर मस्ती करते थे अब अकेले अकेले मज़ा नहीं आ रहा। जय की बीवी ने भी मना कर दिया नहीं तो अपनी ज़िन्दगी ऐश में कटती।
शालू- क्या कहा आपने? माँ की चुदाई?

विराज तो शालू को पूरी कहानी बताई कि कैसे वो अपनी माँ और जय के पापा की चुदाई देखते थे और दरअसल कैसे उनके आपस में मुठ मारने की शुरुआत भी उसकी माँ की वजह से ही हुई थी।
 
यह सब सुनते सुनते शालू के दिमाग में एक खुराफात आई।
शालू- जय के पापा तो मम्मी को अब भी चोदते होंगे। क्यों ना हम भी उनकी चुदाई देख देख के चुदाई करें?
विराज- नहीं यार, अब वो सुराख से देख कर मज़ा नहीं आयेगा, और वैसे देखते देखते तुमको कैसे चोद पाऊंगा।
शालू- ये तुम्हारी माँ के बेडरूम और हमारे बेडरूम के बीच की दीवार में एक तरफ़ा आईना लगवा लें तो कैसा रहेगा?
विराज- हम्म! आईडिया तो अच्छा है लेकिन माँ यहाँ आई तो उसे दिख जाएगा कि उस आईने से हमें सब दीखता है। एक मिनट सोचने दो।

आखिर सोच समझ कर सही प्लान मिल ही गया। सबसे पहले अपने बेडरूम को नया बनाने की बात की गई और फिर विराज ने कहा कि हम अपने आराम के साथ साथ माँ को भी वही आराम देंगे और इस तरह दोनों बेडरूम को फिर से बनवाने का काम शुरू किया। दोनों बेडरूम के बीच की दीवार में दोनों तरफ एक जैसे आईने लगवाए गए जिनके बीच दीवार नहीं थी। राजन के लिए एक छोटा बिस्तर बनवाया गया जो एक पार्टीशन के उस तरफ रखा था जिस से चुदाई के वक़्त कोई बाधा ना हो।

दोनों बेडरूम के दर्पण एक दम सामान्य दर्पण ही दिखाई देते थे लेकिन विराज के बेडरूम के दर्पण को सरका कर आसानी से हटाया जा सकता था। उसके बाद केवल माँ के बेडरूम का दर्पण लगा रहता जिसमें से विराज के तरफ से सब साफ़ दिखाई देता था। ये बात विराज ने शालू को भी नहीं बताई थी कि माँ के तरफ वाला दर्पण भी हटाया जा सकता था लेकिन उसको खोलने की कुण्डी जय के बेडरूम की ही तरफ थी।

तो अब सबके सोने के बाद विराज के बेडरूम का दर्पण हटा दिया जाता और वो खिड़की अब एक लाइव टीवी बन जाती लेकिन अक्सर उस पर एक ही बोरिंग का कार्यक्रम चल रहा होता था जिसमें विराज की माँ सोती हुई दिखाई देती थी। लेकिन कभी कभी विराज और शालू की किस्मत अच्छी होती तो उस पर लाइव ब्लू फिल्म चलती थी जिसकी हीरोइन विराज की माँ होती थी।

कई महीनों तक विराज और शालू ने बड़े मज़े किये. शालू को तो बड़ा जोश आ जाता था और वो विराज की माँ को रंडी, छिनाल और पता नहीं क्या कह कर चिढ़ाती थी कि देख कैसे तेरी माँ अपने यार से चुदा रही है।
विराज को भी इस बात से और जोश आता और वो शालू को दुगनी ताकत से चोदता। विराज और शालू के काम-जीवन में फिर से एक नई ऊर्जा आ गई थी।

लेकिन ये सब ज्यादा समय नहीं चल पाया। एक दिन जब जय के पापा सुबह खेत पर घूमने गए तो वहां उनको सांप ने काट लिया और जब तक कोई उनको वहां बेहोश पड़ा देख पता बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल जाते जाते ही उनकी मौत हो गई। माहौल थोड़ा ग़मगीन हो गया और इस बीच किसी के दिमाग में ये बात नहीं आई कि अब विराज और शालू को उनकी लाइव ब्लू फिल्म देखने को नहीं मिलेगी।

ग़म और ख़ुशी रात और दिन की तरह होते हैं। एक जाता है तो दूसरा आता है। अगले ही महीने शीतल ने बताया कि वो गर्भवती है। जय को लगा कि शायद उसके बाबूजी उसके बेटे के रूप में वापस आने वाले हैं। सारे ग़म फिर खुशी में बदल गए।
लेकिन विराज और शालू के लिए तो सब कुछ फिर से नीरस हो गया था। जय के ऐश भी खत्म होने ही वाले थे क्योंकि ना केवल शीतल गर्भवती होने के कारण अब पहले जैसे चुदा नहीं सकती थी बल्कि उसने उन सब ब्लू फिल्मों को भी ताले में बंद कर दिया था क्योंकि उसे लगता था कि इस सब का आने वाले बच्चे पर गलत असर पड़ेगा।

जहाँ चाह वहां राह … नदी अपना रास्ता खुद ढूँढ लेती है। शालू ने विराज को एक तीर से दो निशाने लगाने की सलाह दी।

शालू- देखो जी, ऐसे वापस नीरस होने से कोई फायदा नहीं है। उधर शीतल भी पेट से है। मेरे टाइम पर जय भाईसाहब ने आपका साथ दिया था। अब आप उनका साथ दे दो…
विराज- साथ देने का वादा तो तूने भी किया था।
शालू- अरे! अब आप कहोगे तो मैं मना करुँगी क्या। आप जाकर निमंत्रण तो दो।
विराज- चुदाई निमंत्रण? हे हे हे!!!

विराज जब शहर गया तो जय की दुकान पर जा कर उसने अपनी बात उसे बता दी और कह दिया कि जब मन करे आ जाना। जय ने हमेशा की तरह पूरी ईमानदारी के साथ शीतल से पूछ लिया।

जय- विराज आया था कुछ काम से तो आधे घंटे दुकान पर बैठ कर गया। कह रहा था कि शालू पेट से थी तो तुमने बड़ा साथ दिया था। अब मैं चाहूँ तो वो मेरा साथ दे सकता है।
शीतल- हाँ तो चले जाओ… और अगर आपके दोस्त को दिक्कत ना हो तो शालू के साथ भी कर लेना जो करना हो।
जय- अरे नहीं, तुमको तो वो पसंद नहीं था ना। मैं उसके साथ नहीं करूँगा।

शीतल- नहीं नहीं, वो तो मुझे कोई हाथ लगाए ये पसंद नहीं है। आपको अच्छा लगता है ये सब तो मैं क्यों आपकी तमन्नाओं के रास्ते का पत्थर बनूँ।
जय- तुमको पक्का कोई समस्या नहीं है ना?
शीतल- मुझे क्या समस्या होगी? बल्कि मैं तो कहती हूँ ऐसे जम के चोदना उसको कि वो भी याद रखे कि शीतल का पति क्या मस्त चोदता है।
 
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