hotaks444
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जय को तो मन ही मन मज़ा आ गया। पहली बार वो किसी पराई नारी को चोदने जा रहा था वो भी अपने बचपन के यार के साथ मिल कर। आखिर अगले रविवार की दोपहर वो घर से निकला तब भी शीतल ने कह कर भेजा कि अच्छे से चोदना, जल्दी झड़ के मेरी नाक मत कटा देना।
जय शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और जय, विराज के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि शालू ने आकर कहा कि राजन सो गया है।
दोनों विराज के बेडरूम में चले गए। शालू एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। विराज ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में शालू के पीछे जाकर बैठ गया। शालू ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।
विराज ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी शालू ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। जय ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।
विराज- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
जय- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
शालू- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं जय भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।
विराज नीचे जा कर शालू की चूत चाटने लगा और शालू ने जय की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। शालू ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो शालू की चूत की खुशबू थी या उसके जय के लंड को चूसने का दृश्य जिसने विराज का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। विराज ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर शालू को चोदना शुरू कर दिया।
तभी शालू उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह विराज को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। जय को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने विराज के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।
शालू- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।
शालू किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर विराज को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर जय का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो जय को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद शालू का विराज पर हावी होने का वो अंदाज़ जो जय को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो जय का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। शालू ने जय को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन विराज की छाती पर टिका दिए।
शालू- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
जय- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
विराज- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
शालू- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।
जय ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा शालू की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी शालू की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर जय अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब शालू ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।
जय और विराज को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली शालू दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब शालू के धक्के बंद हुए तो विराज और जय ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों शालू की चूत और गांड में ही झड़ गए।
जय शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और जय, विराज के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि शालू ने आकर कहा कि राजन सो गया है।
दोनों विराज के बेडरूम में चले गए। शालू एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। विराज ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में शालू के पीछे जाकर बैठ गया। शालू ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।
विराज ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी शालू ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। जय ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।
विराज- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
जय- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
शालू- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं जय भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।
विराज नीचे जा कर शालू की चूत चाटने लगा और शालू ने जय की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। शालू ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो शालू की चूत की खुशबू थी या उसके जय के लंड को चूसने का दृश्य जिसने विराज का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। विराज ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर शालू को चोदना शुरू कर दिया।
तभी शालू उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह विराज को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। जय को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने विराज के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।
शालू- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।
शालू किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर विराज को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर जय का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो जय को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद शालू का विराज पर हावी होने का वो अंदाज़ जो जय को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो जय का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। शालू ने जय को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन विराज की छाती पर टिका दिए।
शालू- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
जय- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
विराज- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
शालू- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।
जय ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा शालू की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी शालू की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर जय अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब शालू ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।
जय और विराज को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली शालू दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब शालू के धक्के बंद हुए तो विराज और जय ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों शालू की चूत और गांड में ही झड़ गए।