Hindi Adult Kahani कामाग्नि - Page 3 - SexBaba
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Hindi Adult Kahani कामाग्नि

जय को तो मन ही मन मज़ा आ गया। पहली बार वो किसी पराई नारी को चोदने जा रहा था वो भी अपने बचपन के यार के साथ मिल कर। आखिर अगले रविवार की दोपहर वो घर से निकला तब भी शीतल ने कह कर भेजा कि अच्छे से चोदना, जल्दी झड़ के मेरी नाक मत कटा देना।

जय शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और जय, विराज के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि शालू ने आकर कहा कि राजन सो गया है।

दोनों विराज के बेडरूम में चले गए। शालू एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। विराज ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में शालू के पीछे जाकर बैठ गया। शालू ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।

विराज ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी शालू ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। जय ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।

विराज- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
जय- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
शालू- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं जय भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।

विराज नीचे जा कर शालू की चूत चाटने लगा और शालू ने जय की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। शालू ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो शालू की चूत की खुशबू थी या उसके जय के लंड को चूसने का दृश्य जिसने विराज का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। विराज ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर शालू को चोदना शुरू कर दिया।

तभी शालू उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह विराज को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। जय को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने विराज के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।

शालू- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।

शालू किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर विराज को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर जय का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो जय को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद शालू का विराज पर हावी होने का वो अंदाज़ जो जय को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो जय का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। शालू ने जय को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन विराज की छाती पर टिका दिए।

शालू- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
जय- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
विराज- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
शालू- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।

जय ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा शालू की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी शालू की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर जय अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब शालू ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।

जय और विराज को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली शालू दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब शालू के धक्के बंद हुए तो विराज और जय ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों शालू की चूत और गांड में ही झड़ गए।
 
उसके बाद एक बार विराज ने अकेले गांड मारने का अनुभव लिया और जय ने खड़े खड़े शालू को चोदा ये देख कर विराज का लंड भी खड़ा हो गया और शालू जय के गले में बाँहें डाल कर और उसकी कमर को अपनी टांगों में जकड़ कर लटक गई फिर पीछे से विराज ने उसकी गांड में अपना लंड डाल दिया और फिर दोनों ने मिलकर शालू को अपने दो-दो लंडों पर उछाल-उछाल कर चोदा।

आखिर शालू को बीच में सैंडविच बना कर तीनों नंगे ही सो गए। सुबह जय की नींद जल्दी खुल गई थी। उसने शालू के अंगों से खेलना और सहलाना शुरू किया तो शालू भी उठ गई। उसने जय को अपने साथ आने को कहा। दोनों नंगे ही कमरे से बाहर आ गए। जय को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है, शालू चाहती क्या है। उसने धीरे से खुसुर-फुसुर बात करने का सोचा।

जय- हम कहाँ जा रहे हैं?
शालू- मेरी सासू माँ के कमरे में।
जय- पागल हो क्या? मुझे ऐसे नंगे वहां क्यों ले जा रही हो?
शालू- माँजी इस समय नहा रही होतीं हैं मेरी बड़ी तमन्ना थी उनके नहाते टाइम उनके बिस्तर में चुदवाने की, लेकिन कभी नींद ही नहीं खुलती थी।

शालू ने धीरे से दरवाज़ा थोड़ा सा खोल कर देखा। अन्दर कोई नहीं था। शायद शालू की सासु अटैच्ड बाथरूम में नहाने गई हुईं थीं। शालू ने दरवाज़ा पूरा खोल कर खुला ही छोड़ दिया और जय को अन्दर बुला कर जल्दी से उसका लंड चूसने लगी। अन्दर से नल के चलने की आवाज़ आ रही थी। जय की धड़कन डर के मारे बहुत तेज़ हो गई थी। शायद इसी वजह से उसका लंड भी जल्दी खड़ा हो गया।

शालू जल्दी से लेट गई और अपनी टांगें चौड़ी कर दीं। उसकी चूत भी पूरी गीली हो गई थी। जय ने बिना समय गंवाए अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया और शालू के ऊपर लेट कर उसे जल्दी जल्दी चोदने लगा। तभी अन्दर से मग भर भर के पानी डालने की आवाज़ आने लगी।

ॐ गंगे च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि!…

शालू- जल्दी चोदो माँ जी आने वाली हैं।

जय ने चुदाई की रफ़्तार इतनी बढ़ा दी कि शायद कोई और टाइम होता तो छह कर भी इतना तेज़ नहीं चोद पाता। तभी बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और जय ने आव देखा ना ताओ शालू को वैसे ही गोद में उठा कर बाहर की तरफ भगा। इधर भी भाग ही रहा था कि उसके लंड ने शालू की चूत में अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। आखिर उसने विराज के कमरे में जा कर ही सांस ली। शालू को बिस्तर पर पटक के खुद भी उसी के ऊपर लेट गया। उसका लंड अभी भी शालू की चूत में था। इस सब में विराज की भी नींद खुल गई थी।

विराज- क्या हुआ सुबह सुबह चुदाई शुरू कर दी? और ये दरवाज़ा क्यों खोल रखा है। देखो माँ के उठने का टाइम हो गया है कहीं इधर आ गईं तो लफड़ा हो जाएगा।

इस बात पर दोनों हंस पड़े। जय का लंड अब तक अपनी सारी मलाई शालू की कटोरी में खाली कर चुका था। वो उठा और जा कर दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर जय ने बताया कि वो अभी क्या गुल खिला के आये हैं।
यह सुन कर तो विराज के भी दिल की धड़कन बढ़ गई।

खैर सबने उठ कर नाश्ता किया और जय को विदा किया। जय जब घर पहुंचा तो शीतल उसी की राह देख रही थी।

शीतल- क्या क्या किया फिर रात को?
जय- विराज और मैंने शालू को खूब चोदा और गांड भी मारी। यहाँ तक कि दोनों काम साथ में भी किये, एक चोद रहा था और एक गांड मार रहा था। खूब गर्म सेक्स का मजा लिया.
शीतल- आप झूठ बोल रहे हो ना? मुझे चिढ़ाने के लिए?

जय- झूठ क्यों बोलूँगा? तुम्ही ने तो कहा था ना कि नाक मत कटाना। तो मैंने शालू को विराज से ज्यादा ही चोदा होगा। मज़ा आ गया उसको।
शीतल- मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी।

इतना कह कर शीतल दुखी होकर बेडरूम में चली और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया। जय ने बाहर से समझाया कि उसके कहने ही पर तो वो गया था अगर वो मन कर देती तो नहीं जाता। आखिर जब कुछ नहीं हुआ तो वो चुपचाप दूकान पर चला गया। शाम को आया तो शीतल सामान्य थी। उसने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी भी मांगी और कहा कि ये पहली बार था इसलिए वो बर्दाश्त नहीं कर पाई लेकिन आगे से वो ऐसा नहीं करेगी।

अगले कुछ महीनों में जय 2-4 बार गाँव गया लेकिन उसको समझ आ गया कि शीतल को ये पसंद नहीं आ रहा था। वो कुछ ना भी कहती तो उसके व्यवहार से समझ आ जाता कि वो इस सब से खुश नहीं है। आखिर समय आने पर शीतल ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने सोनिया रखा। जय ने शीतल को वादा किया कि अब वो शालू को चोदने गाँव नहीं जाएगा।

विराज और जय अक्सर मिलते रहते थे। कभी कभी शालू भी आ जाती थी और कभी कभी छुट्टियों में जय का परिवार भी गाँव जाता था। दोनों परिवारों की दोस्ती खत्म नहीं हुई और ना ही कम हुई लेकिन उस दोस्ती में से सेक्स का जो हिस्सा था वो खत्म हो गया था।

अब विराज और शालू अपने जीवन में रंग भरने के लिए क्या करेंगे? क्या विराज को अपना पहला प्यार वापस मिल जाएगा?
 
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि शालू और विराज ने जय के साथ तिकड़ी जमी और तीनों ने मस्त चुदाई मस्ती की, लेकिन शीतल को ये सब पसंद नहीं आ रहा था इसलिए आखिर जय ने इस खेल से सन्यास ले लिया।
अब आगे …

जय के इस फैसले के बाद जय ने तो एक सामान्य जीवन जीने का निर्णय ले लिया था लेकिन विराज और शालू की हवस अभी खत्म नहीं हुई थी और उनके लिए ऐसा जीवन बड़ा ही नीरस था।
बड़ी मुश्किल से एक ही साल गुज़रा था कि शालू का दिमाग फिर कोई नई तरकीब ढूँढने में लग गया जिस से वो अपनी जिंदगी में फिर से वासना के नए नए रंग भर सके।

एक बार जब विराज किसी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ था तो दो दिन में ही शालू की हालत खराब हो गई क्योंकि अब तो वो सीधी सच्ची चुदाई भी उसे नहीं मिल रही थी। रात को उसे नींद नहीं आ रही थी।


काफी देर तक करवटें बदलने के बाद अचानक वो उठ गई और बेचैनी से कमरे में इधर उधर घूमने लगी। फिर ना जाने उसके मन में क्या आया कि उसने दीवार के उस दर्पण को सरकाया और दूसरे कमरे में देखने लगी।

विराज की माँ दूसरी ओर करवट ले कर सो रही थी। उस खिड़की के एक तरफ़ा कांच से देखते हुए शालू उन यादों में खो गई जब वो इसी खिड़की से विराज की माँ को चुदते हुए देखते थे और फिर विराज उसे दुगनी रफ़्तार से चोदता था। जब वो इन यादों से बहार निकली तो उसकी नज़र एक छोटी सी कुण्डी पर पड़ी। जिज्ञासावश जब शालू ने उसे खींचा तो दूसरी ओर का कांच भी खुलने लगा। उसे अब तक नहीं पता था कि इस दर्पण को भी हटाया जा सकता है।

इसी बात से शालू के मन में एक विचार आया कि जिस आग में वो जल रही है, क्या पता वही आग इस खिड़की के दूसरी ओर भी लगी हो। उसने इसी विचार को एक योजना में बदल दिया। अगले दिन शालू की नज़र विराज की माँ की एक एक हरकत पर थी और वो समझ गई थी कि शायद विराज के पापा के बाद जो स्थान जय के पापा को मिल गया था वो अब खाली है।

शालू की सासू माँ भले ही अब अधेड़ उम्र की हो गई थी लेकिन जवानी ने जैसे उसके बदन को अब तक नहीं छोड़ा था वैसे ही उसकी हसरतें भी अब तक तो जवान ही थीं। उस रात शालू, राजन को सुलाने के बाद अपनी सासू माँ के कमरे में गई।

शालू- माँ जी … सो गई क्या?
माँ- नहीं बहू, इस उमर में इत्ती जल्दी काँ नींद आबे है।
शालू- थोड़ी देर आपके पास सो जाऊं?
माँ- हओ … आजा।

शालू जा कर विराज की माँ के बाजू में जा कर चिपक कर सो गई।

शालू- मेरी माँ तो बचपन में ही गुज़र गई थी। ठीक से याद भी नहीं है।
माँ- तू जाए अपनोंई घर समझ बहू।
शालू- हाँ तभी तो आपके पास आ गई सोने … ये बता रहे थे कि ये काफी बड़े हो गए तब तक आपने इनको अपना दूध पिलाया था।
माँ- हुम्म …

शालू- मुझे भी पिलाओ ना!
माँ- का बात कर रई है। चुप कर!
शालू- बचपन की तो ठीक से याद नहीं है इसलिए सोचा आपको ही माँ समझ के बचपन की कमी पूरी कर लूँ। लेकिन …
माँ- ऐसी है तो पी ले … जे ले!

सासू माँ ने बच्चों को पिलाते हैं वैसे अपने ब्लाउज का नीचे से बटन खोल के अपना एक स्तन निकाल कर शालू की ओर बढ़ा दिया। शालू भी एक हाथ से पकड़ कर उसे चूसने लगी। एक औरत अच्छी तरह जानती है कि कैसे एक बच्चा दूध पीता है और किस तरह चूसने से उत्तेजना बढ़ती है। विराज की माँ पहले ही काफी समय से वासना की आग में जल रही थी। शालू ने उसे और भी भड़का दिया था।

उनकी धड़कन बढ़ गई थी और उनको होश ही नहीं रहा कि कब शालू ने उनके ब्लाउज का बाकी बटन भी निकाल दिए और अब वो दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसने लगी थी। जिस भी स्तन को वो ना चूस रही होती उसके चुचुक को अपने थूक से गीले किये हुए अंगूठे से सहलाती रहती। जिससे ऐसा आभास होता जैसे उनके दोनों चूचुक साथ में चूसे जा रहे हैं।

माँ- का कर रई है बहू … अब सेन (सहन) नईं हो रओ।
शालू- माँ जी … मैं भी एक औरत हूँ मैं आपकी समस्या समझ सकती हूँ। आप कहें तो कुछ मदद करूँ आपकी इस तड़प को दूर करने में।
माँ- कर दे बहू … कर दे …
 
शालू ने विराज की माँ की वासना की उस आग को भड़का दिया था जो इतने समय से वक्त की राख में दबने सी लगी थी। शालू ने सासू माँ का घाघरा उठाया और उनकी दोनों टांगें मोड़ कर फैला दीं। उन दोनों मुड़ी हुई टांगों को बांहों में भर के शालू ने अपनी उंगलियों से माँ की चूत की फांके अलग कीं और चूत का दाना अपने होंठों में दबा कर चूसने लगी।

विराज की माँ, कामोद्दीपन के एक अलग ही स्तर पर पहुँच गई थी। अव्वल तो ये कि उसकी चूत एक साल से भी ज्यादा समय से अनछुई थी, उस पर पहले भी कभी किसी ने उसकी चूत को मुँह नहीं लगाया था। उसकी चूत हमेशा चोदी ही गई थी। जिंदगी में पहली बार ये चूत चूसी जा रही थी। सासू माँ की कमर ऊपर नीचे होने लगी और आनंद के मारे वो छटपटा रही थी। अगर शालू ने उनकी टांगें अपनी बाहों में कस कर पकड़ी ना होतीं तो शायद शालू के होंठ अब तक चूत से चिपके ना रह पाते।

काफी देर तक ऐसे ही छटपटाने के बाद आखिर सासू माँ ढीली पड़ गईं। शालू ने भी अब उनको छोड़ दिया और उनके बाजू में जा कर लेट गई। थोड़ी देर बाद जब सासू माँ की साँस में साँस आई तो उन्होंने शालू को गले से लगा लिया।

इसके बाद तो सास-बहू ना केवल सहेलियों की तरह रहने लगीं बल्कि सासू माँ ने शालू को और भी नई नई बातें सिखाने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा हो सकता है जैसे वो चूत चटवाने के अनुभव से अब तक वंचित थीं वैसे ही और भी कुछ हो जो वो ना जानतीं हों।

शालू ने विराज के आने से पहले सासू माँ को आधुनिक काम शास्त्र का पूरा प्रशिक्षण दे डाला जिसमें घर पर सारा समय नंगे रहने से लेकर खुले आसमान के नीचे चुदाई के मज़े तक और मुख मैथुन से लेकर गुदा मैथुन (गांड मराई) तक के सारे गुर शामिल थे। शालू ने भी समलैंगिक संभोग के सारे प्रयोग जो वो शीतल के साथ नहीं कर पाई थी वो सब अपनी सास के साथ कर लिए।
एक रात दोनों सास-बहू एक दूसरे की चूत चाट कर झड़ गईं और नंगी चिपक कर पड़ी पड़ी बातें करने लगीं।
माँ- बहू … सच्ची कऊँ … तूने तो अच्छेई मजा करा दए।
शालू- हुम्म … अब साल भर से ऊपर हो गया था आपको चुदवाए हुए तो।
माँ- हम्म … जा तो सच्ची कई …

अचानक सासू माँ को होश आया कि उन्होंने गलत बात पर हामी भर दी है। पहले तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई लेकिन फिर थोड़ा साहस जुटा कर सोचा अब इसके साथ इतना सब हो गया तो क्या शर्माना।
माँ- तोय काँ से पता के १ सालई हुओ?
शालू- आपको लगता है जय भाईसाब के बाबूजी के बारे में किसी को नहीं पता?
माँ- अब बात करन बाले तो तेरी बी पता नई का का केत थे।
शालू- मेरी जो कहते थे वो तो मैंने सुहागरात पर ही इनको सब बता दिया था।

उसके बाद शालू ने अपनी सासू माँ को वो सब बातें बता दीं जो उसने सुहागरात पर विराज के साथ की थीं। उसके बाद ये भी बताया कि कैसे विराज उनकी ही कल्पना में मुठ मारना सीखा और वो जय के साथ क्या क्या करता था। लेकिन उसके आगे की सारी बातें वो छुपा गई कि कैसे उसने भी जय से चुदवाया। लेकिन ये सब सुनने के बाद सासू माँ ने जो कहा उसकी उम्मीद शालू ने नहीं की थी।

माँ- हम्म … चूत चटावे में मजा तो भोत आबे है, पर लंड की कसर तो लंडई पूरी करे है।
शालू- बात तो सही है। फिर जय के पापा के बाद कोई और क्यों नहीं ढूँढा?
माँ- अब बे घर के जैसेई थे। सबे पता थी कि हम उनको घर को काम कर दें हैं ते बे हमरो बहार को काम कर दें हैं। घर में आनो जानो लगो रेत थो। जा के मारे कभी कोई ने कछु नई कई। अब अलग से चुदाबे के लाने कोइए बुलाएं तो बदनामी ना होए।

शालू- हम्म … घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है। सोचती हूँ कुछ अगर आपके लिए कोई इंतज़ाम हो सकता होगा तो ज़रूर बताऊँगी।
माँ- रेन दे बहू! अब जा उमर में कोन पे भरोसा करूँ। थोड़े दिन बचे हैं। बे बी निकल जे हैं।
शालू- मैं तो बता दूँगी भरोसा करना है कि नहीं आप सोच लेना। चलो छोड़ो … अभी मैं आपको फ्रेंच किस सिखाती हूँ।

फिर बहूरानी की कामशास्त्र की कक्षा शुरू हो गई। ऐसे ही समय कब बीत गया पता ही नहीं चला।
 
आखिर विराज वापस आ गया और माँ को वापस अपने कपड़े पहन कर रहना शुरू करना पड़ा। विराज अपने साथ विडियो कैस्सेट प्लेयर ले कर आया था। दिन में सबने मिल कर प्लेयर पर माधुरी की ‘दिल’ देखी। ये प्लेयर वो जय की दूकान से ही खरीद कर लाया था। रात को जब सब सोने लगे तब विराज ने शालू को बताया कि जय ने उसे कुछ चुदाई वाली फिल्मो की कैस्सेट भी दिए हैं।

विराज- जय बोला जिन जिन फिल्मों पर शीतल भाभी ने प्रतिबन्ध लगा रखा है वो सब तू ले जा तो मैं ले आया। वो यूरोप से लाया था ये सब।
शालू- शीतल ने प्रतिबन्ध लगाया है तो फिर तो मस्त माल होगा। लगाओ लगाओ, देखते हैं। वैसे भी बहुत दिन से तुम्हारे लंड के लिए तड़प रही हूँ। मस्त चुदाई की फिल्म देख कर चुदाई करेंगे।

उन्होंने वही फिल्म लगाई ‘टैबू’ जिसमें माँ-बेटे के काम संबंधों को बड़ी गहराई से दिखाया था। विराज और शालू दोनों को ही इंग्लिश समझ नहीं आती थी लेकिन कैस्सेट पर जो नंबर थे उस से ये समझ आ गया था कि ये सब एक ही सीरीज की फ़िल्में हैं। फिर ये इतने गंवार भी नहीं थे कि मॉम, सन, ब्रदर और सिस्टर जैसे शब्द ना समझ पाएं। दोनों चुदाई करते करते फिल्म देख रहे थे। जल्दी ही उनको समझ आ गया कि फिल्म की हेरोइन अपने बेटे से चुदवाने के लिए तड़प रही है। वो उसे मना तो करती है लेकिन फिर एक बार चुदाई शुरू हो जाए तो फिर और चोदने को कहती है।

शालू- देखो कैसे चोद रहा है मादरचोद अपनी माँ को।
विराज- अरे वो मादरचोद नहीं है। उसकी माँ बेटाचोद है।
शालू- क्या फरक पड़ता है कद्दू दराँती पे गिरे या दराँती कद्दू पे।

शालू- तुम्हारी माँ भी लंड के लिए तड़प रही है। वो माँगे तो दोगे अपना लंड माँ की चूत में?
विराज- ऐसी बातें ना कर पगली अभी तेरी चूत में झड़ जाऊँगा नहीं तो। बचपन से उसी के सपने देख देख के तो मुठ मारना सीखा था। लेकिन वो नहीं लेगी मेरा।
शालू- मैं दिलवा दूँ तो?
विराज- तो फिर जो तू माँगे वो तुझे दिलाने की ज़िम्मेदारी मेरी।

इतना कह कर विराज ने शालू को पूरे जोर के साथ चोदना शुरू किया और उधर फिल्म में बेटा अपनी माँ के मुँह में झड़ा और इधर विराज शालू की चूत में। उसके बाद फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई के 1-2 सीन और आये और हर बार शालू यही चिल्लाती रही- चोद ज़ोर से मादरचोद … और ज़ोर से चोद। पता नहीं वो फिल्म के हीरो को कह रही थी या विराज को लेकिन एक बार और झड़ के दोनों सो गए।

अगले दिन जब विराज खेत पर गया तो शालू ने सासू माँ से बात की।

शालू- एक लंड मिला है आपके लिए। चाहिए तो बताना?
माँ- कौन को?
शालू- आपको लंड दिखा दूँगी। पसंद आये तब आगे की बात करेंगे।
माँ- तोय काँ से मिल गाओ। कोई भार के अदमी से तो नईं चुदा रइए तू।
शालू- आप फिकर मत करो आपने कहा था ना बदनामी नहीं होना चाहिए, तो आप बेफिक्र रहो।

उस रात विराज ने फिल्म का अगला पार्ट देखने की पेशकश की तो शालू ने मना कर दिया।

शालू- आज आप टीवी पे नहीं लाइव अपनी माँ की नंगी पिक्चर देखो।
विराज- क्या बात कर रही है। माँ ने किसी और से चक्कर चला लिया क्या?
शालू- ऐसा ही कुछ समझो।

इतना कह कर शालू ने अपनी तरफ के दर्पण को खोला और बाहर चली गई। विराज ने देखा दूसरी ओर उसकी माँ बिस्तर पर नंगी लेटी हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत और दूसरे से अपने चूचुक मसल रही थी। विराज से उसे ऐसा करते हुए पहली बार देखा था। विराज को अभी कुछ पता नहीं था कि उसकी पीठ पीछे शालू ने उसकी माँ को क्या क्या सिखा दिया था।

अचानक माँ के कमरे का दरवाज़ा खुला और नंगी शालू अंदर आई। विराज को तो जैसे झटका लग गया। उसके मन में यही आया कि ये शालू क्या कर रही है है मरवाएगी क्या।

लेकिन अगले ही पल उसकी आँखों से सामने एक अलग ही नज़ारा था। शालू और विराज की माँ आपस में गुत्थम गुत्था हो गईं और दोनों की जीभें आपस में एक दूसरे से छेड़खानी करने लगीं। शालू खींच कर माँ को दर्पण के पास ले आई और उसे दर्पण की ओर खड़ा करके पीछे से उसके स्तनों को मसलने लगी और फिर पीठ पर चुम्मियाँ लेते हुए नीचे की ओर जाने लगी। माँ खुद को दर्पण में नंगी देख रही थी लेकिन दूसरी ओर से विराज अपनी माँ को पहली बार इतनी करीब से नंगी देख रहा था।

थोड़ी देर बाद शालू ने सासू माँ को बिस्तर पर धकेल दिया और खुद उनके ऊपर चढ़ गई। दोनों एक दूसरे की चूत चाटने लगीं। शालू ने माँ को ऐसे लेटाया था कि उनकी चूत सीधे दर्पण की दिशा में ही थी। थोड़ा चूसने के बाद शालू ने अपने सर ऊपर किया और दर्पण की तरफ इशारा किया कि देखो और फिर माँ की चूत की फांकें खोल के विराज को दिखाईं।
 
काफी देर तक चूसा-चाटी करके जब दोनों झड़ गईं तो शालू ने सासू माँ को लंड दिखाई के बारे में याद दिलाया।

शालू- माँ जी, मैं चलती हूँ। आपको वो लंड देखना हो तो ये दीवार पर जो दर्पण है इसको देखते रहना अब थोड़ी ही देर में इसमें लंड दिख जाएगा।
माँ- काय दुलेन? बावरी हो गई का?


शालू ने बस हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरी और बाहर चली गई। सासू माँ इसी असमंजस में थीं कि ये क्या मज़ाक है; दर्पण में लंड कैसे दिखेगा? यही सोचते हुए वो दर्पण के सामने जा कर खड़ी हो गईं। विराज को लगा वो अपना नंगा रूप निहार रहीं हैं तो वो भी देखने लगा कि तभी शालू अन्दर आई। उसने दर्पण बंद किया लेकिन बंद करते करते उसने दूसरी तरफ का दर्पण थोड़ा सा खोल दिया। दर्पण बंद होने के बाद उसने विराज के खड़े हुआ लंड को पकड़ कर अपनी ओर खींचा।

शालू- आजा मेरे राजा! माँ की चूत देख के खड़ा हो गया?

जब सासू माँ ने दर्पण को सरकते हुए देखा तो वो अचंभित रह गईं। उन्होंने जो थोड़ा सा खुल गया था वहां उंगलियाँ डाल कर दर्पण को पूरा सरका दिया और उसके ठीक सामने उसके नंगे बेटा-बहू थे। शालू लंड को पकड़ कर घुटनों के बल बैठी थी। माँ को कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था लेकिन शालू अपने पति के लंड से बच्चों की तरह पुचकारते हुए बात कर रही थी।

शालू- माँ की चूत देख के खड़ा है …? चोदेगा …? मादरचोद बनना है …? ठीक है बन जाना, लेकिन अभी पहले मेरी चुदाई कर।

इतना बोल कर शालू ने विराज को दर्पण की तरफ घुमाया और उसके पीछे बैठ कर उसके अन्डकोषों को पकड़ कर दर्पण में दिखा कर चिढ़ाते हुए बोली कि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही बड़ा दिख रहा है। दरअसल उसका उद्देश्य इस लंड के दर्शन माँ को पास से कराने का था। फिर शालू ने विराज को बिस्तर पर ऐसे लिटाया कि उसका लंड दर्पण की ओर रहे। फिर ठीक जैसे विराज को माँ की चूत दिखाई थी वैसे ही विराज के मुँह पर चढ़ कर अपनी चूत चुसवाते हुए उसने विराज का लंड चूसना शुरू कर दिया।

जब वो थोड़ा गीला हो गया तो दर्पण की तरफ देख कर उसने ऐसे इशारा किया जैसे बड़ा स्वादिष्ट लंड है। उसके बाद एक मस्त चुदाई हुई जिसमें शालू ने विराज के लंड का भरपूर प्रदर्शन किया। आखिर चुदवा के शालू और विराज सो गए और विराज की माँ अपनी चूत रगड़ती रही। अब विराज को सिर्फ ये पता था कि उसने उसकी माँ को देखा है लेकिन उसकी माँ ने उसे भी देखा ये उसे नहीं पता था। अगले दिन शालू ने अपनी सासू से अकेले में बात की।

शालू- देखा ना फिर आपने जो लंड मैंने दिखाया था। कैसा लगा?
माँ- ना बहू … मैं अपनेई मोड़ा संगे … नईं नईं … जे ना हो सके।
शालू- आपने ही तो कहा था बात बाहर गई तो बदनामी होगी। अब ये तो घर के घर में ही है किसी को कानो कान खबर नहीं होगी। आपको इतना चाहते हैं ये … बड़े प्यार से ही चोदेंगे। इतने प्यार से तो जय के पापा ने भी नहीं चोदा होगा।
माँ- मो से नईं होएगो जे सब। तूई आ जाऊ करे एक चक्कर सोने से पेलम, उत्तोई भोत है।

रात को सोने से पहले शालू अपनी सासू के पास गई एक बार फिर विराज को अपनी चुसाई-चटाई का खेल दिखाया और जब सासू माँ को झड़ा के वापस आ रही थी तो सासू माँ का मन किया कि वो आज फिर उनकी चुदाई देखें। शालू दरवाज़े तक पहुँच ही गई थी कि सासू माँ ने उसे रोका।

माँ- बहू! सुन … आज बी कांच खुल्लो छोड़ दइये नी।
शालू- नहीं, आज खिड़की नहीं दरवाज़ा खुला छोडूंगी; आने का मन हो तो आ जाना। ज्यादा कुछ नहीं तो लंड ही चूस लेना। मैं अपनी चूत इनके मुँह पे दबा के बैठी रहूंगी तो पता नहीं चलेगा कि मैं चूस रही हूँ या तुम।
इतना कह कर शालू चली गई।

माँ कुछ देर तक तो उम्मीद लगाए बैठी रही कि शायद दर्पण खुल जाएगा, लेकिन फिर बैचैनी से कमरे में इधर उधर नंगी ही चक्कर काटने लगी। आखिर सोचा खिड़की ना सहीं दरवाज़ा तो खुला है, क्यों ना वहीं जा कर बहू की चुदाई के दीदार कर लिए जाएं। उसने सोच लिया था कि इससे ज्यादा कुछ नहीं करेगी। बस बहू की चुदाई देखते देखते अपनी चूत में उंगली कर लेगी और वापस आ जाएगी।

विराज के कमरे की अटैच्ड बाथरूम कुछ बड़ी थी और दरवाज़े से लगी हुई थी इस वजह से कमरे का दरवाज़ा पूरा भी खोल दो तो अन्दर का पूरा कमरा दिखाई नहीं देता था। हिम्मत करके माँ ने कमरे के अन्दर नग्नावस्था में ही प्रवेश किया और बाथरूम की दीवार के किनारे खड़े होकर अन्दर झाँका। अन्दर का दृश्य ठीक वैसा ही था जैसा शालू ने वादा किया था।

शालू, विराज के ऊपर चढ़ी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे के कामान्गों को चूस व चाट रहे थे। एक तो माँ के दिल की धड़कन तभी से बढ़ी हुई थी जब से वो नंगी अपने बेटे के कमरे में दाखिल हुई थी, ऊपर से ये दृश्य देख कर तो उसके हाथ पैर ही ढीले पड़ने लगे थे। एक तरफ़ा दर्पण के पीछे से चुदाई देखना तो लाइव टीवी जैसा था लेकिन ये सचमुच में आमने सामने का जीवंत अनुभव था।
 
उत्तेजना का मारे माँ की चूत से रस टपकने लगा। लेकिन अब तक भी ये उत्तेजना उसके बेटे के लिए नहीं थी। ये तो बस पहली बार था जब वो अपनी आँखों के सामने चुदाई होते देख रही थी और वो भी जब खुद वहां नंगी खड़ी थी। ये भी सच था कि उसने एक साल से भी ज्यादा समय से लंड नहीं देखा था और ऐसा जवान पहलवान लंड तो पता नहीं कब देखा था उसे याद तक नहीं था। उसकी चूत तो बस वो लंड देख रही थी। वो किसका लंड था ये ना तो उसकी चूत को दिखाई दे रहा था ना उसकी आँखों को; क्योंकि विराज का चेहरा तो शालू की पिछाड़ी के नीचे छिपा पड़ा था।

उत्तेजना में माँ को होश नहीं रहा कि चूत में उंगली करते करते उसके शरीर के कुछ हिस्से दीवार की ओट से बाहर निकल रहे हैं और ज्यादा हिलने-डुलने के कारण शालू की नज़र में भी आ चुके हैं। अचानक से जब माँ ने देखा कि शालू ने चूसना बंद कर दिया है और वो बस मुठिया रही है तो उनकी नज़र शालू के चेहरे की तरफ गई और देखा कि शालू उनको ही देख कर मुस्कुरा रही है।

शालू ने अपने एक हाथ, चेहरे हाव-भाव और आँखों से ही इशारा करके सासू माँ को कह दिया कि बड़ा मस्त लौड़ा है … एक चुम्मी तो बनती है। माँ से भी रहा नहीं गया। उसे बहू बेटा कुछ याद नहीं रहा, बस उसकी काम-वासना की प्यास बुझाने वाली साथी के हाथ में एक मस्त लंड दिखाई दिया जिसे वो अपने से दूर नहीं रख पाई और शालू के पास चली गई। शालू ने अपने हाथ से लंड का सर माँ की ओर झुका दिया। माँ ने पहले तो विराज के लंड की टोपी पर एक छोटी सी पप्पी ली; फिर उससे रहा नहीं गया तो उसने सीधे उसे शालू के हाथ से छीन कर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से चाटने लगी जैसे बिल्ली लपलप करके दूध पीती है।

इस सब में एक बात जो माँ के दिमाग को सोचने का मौका नहीं मिला वो ये कि विराज जब 4 हाथ अपने लंड पर महसूस करेगा तो क्या वो समझेगा नहीं कि वहां शालू के अलावा भी कोई है। वही हुआ भी विराज ने तुरंत शालू को अपने ऊपर से अलग किया और सामने देखा कि उसकी वही माँ उसका लंड शिद्दत से चूस रही है जिसने उसे इसलिए दूध पिलाने से मना कर दिया था कि वो अपना लंड सहला रहा था।

विराज- ये क्या कर रही हो माँ!

माँ इतनी मग्न थी कि उसने जवाब देने के लिए लंड चूसना बंद करना ज़रूरी नहीं समझा और शालू की तरफ इशारा कर दिया। शायद वो ये कहना चाह रही थी कि इसकी वजह से वो ये कर रही है; लेकिन शालू ने इस मौके का फायदा उठा कर मस्त जवाब दिया।

शालू- बचपन में जितना दूध पिया है ना माँ का अब माँ को अपने दूध का क़र्ज़ वापस चाहिए।
विराज- क्यों नहीं माँ! तूने जितना भी दूध पिलाया है उसकी मलाई-रबड़ी बना बना के वापस करूँगा। चूस ले माँ … जितना मन करे चूस ले।
शालू- जिस तरह से माँ जी मथ-मथ के चूस रहीं हैं मुझे तो लगता है सीधा घी ही निकलेगा। हा हा हा …

अब माँ अपने बेटे का लंड चूसे और उसमें से प्यार का फ़व्वारा ना छूटे, ऐसा कैसे हो सकता था। जल्दी ही विराज ने अपनी माँ का मुँह मलाई से भर दिया और माँ भी उसे बिना रुके गटक गई। आज माँ ने ना केवल अपने बेटे का बल्कि पहली बार किसी का भी वीर्यपान किया था। अचानक जब उनकी विराज से नज़रें मिलीं तो उसकी वासना का सपना टूटा और उसे अहसास हुआ कि ये क्या हो गया। वो उठ कर जाने लगीं।

माँ- मैं चलत हूँ अब। तुम दोई कर ल्यो अपनो काम।
शालू- अरे माँ जी … अभी से कहाँ … आपने हमको तो मौका दिया ही नहीं अपनी सेवा का।

शालू ने लपक के उनको जाने से रोक लिया और प्यार से पकड़ के पलंग पर बैठा दिया। शालू खुद ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और माँ की चूत चाटने लगी। विराज उनके स्तन सहलाने लगा तो माँ भी वैसे ही आँख मूँद कर लेट गई। अब तो विराज को और आसानी हो गई वो दोनों हाथों से माँ के दोनों स्तनों को मसलने लगा और बारी बारी से दोनों के चूचुक भी चूसने लगा। उधर शालू भी एक हाथ से अपने पति के लंड को मसल मसल कर खड़ा करने लगी।

जैसे ही लंड खड़ा हुआ, शालू ने उसे खींच कर अपनी तरफ आने का इशारा किया। विराज समझ गया और आगे सरक गया। शालू ने उसे अपने मुँह में ले कर बस गीला करने के लिए ज़रा सा चूसा और फिर अपने हाथ से विराज के लंड को उसकी माँ की चूत पर रगड़ कर सही जगह सेट कर दिया और विराज के नितम्बों पर एक चपत लगा कर उसे चुदाई शुरू करने का सिग्नल भी दे दिया।
 
विराज ने धीरे धीरे अपना लंड अन्दर की ओर धकेलना शुरू किया। माँ की चूत ज्यादा टाइट तो नहीं थी लेकिन इतनी ढीली भी नहीं थी कि कसावट महसूस ना हो। एक तो काफी समय से ये चूत चुदी नहीं थी तो थोड़ी कसावट आ गई थी उस पर ऐसा मुशटंडा लौड़ा तो ज़माने बाद उनकी चूत में घुसा था। माँ तो उस लौड़े को अपनी चूत में महसूस करते करते एक बार फिर भूल गईं थीं कि ये उनके बेटे का ही लंड था। विराज ने धीरे धीरे चुदाई शुरू कर दी। उधर स्तनों का मसलना और चूसना अभी भी वैसे ही जारी था, और अब तो शालू ने भी एक चूचुक चूसने की ज़िम्मेदारी खुद ले ली थी।

दोनों स्तनों को एक साथ मसला और चूसा जा रहा था और ज़माने बाद इतना मस्त लंड माँ की चूत चोद रहा था। माँ तो मनो जन्नत की सैर कर रही थी। इस सबके ऊपर शालू ने एक और नया काम कर दिया। वो अपना हाथ माँ-बेटे के नंगे जिस्मों के बीच ले गई और अपनी उंगली से माँ की चूत का दाना सहलाने लगी। ये तो जैसे सोने पर सुहागा हो गया। माँ का बदन इस चौतरफा सनसनी तो बर्दाश्त नहीं कर पाया और वो झड़ने लगी। लेकिन विराज तो अभी अभी झड़ के निपटा था वो अभी कहाँ झड़ने वाला था तो कोई नहीं रुका सब वैसे ही चलता रहा और माँ झड़ती रही।

थोड़ी देर बाद जब अतिरेक की भी अति हो गई तो झड़ना बंद हुआ लेकिन चुदाई अभी भी वैसी ही चल रही थी। आखिर जब माँ दूसरी बार भी झड़ गई तो शालू ने विराज को रुकने को कहा। फिर शालू नीचे लेटी और माँ को अपने ऊपर आ कर एक दूसरे की चूत चाटने की मुद्रा में लेटने को कहा। शालू और विराज की माँ एक दूसरे की चूत चाट रहीं थीं और ऐसे में विराज ने फिर से माँ चोदना शुरू किया। शालू अब भी माँ कि चूत का दाना चूस रही थी और अपने दोनों हाथों से उनके स्तन मसल रही थी।

इस बार जब माँ ने झड़ना शुरू किया तो वो पागलों की तरह शालू की चूत चाटने लगीं और विराज ने भी ये देख कर जोश में चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी। आखिर माँ का झड़ना बंद होते होते शालू और विराज भी झड़ गए। विराज ने अपना लंड तब तक माँ की चूत से नहीं निकाला जब तक उसके लंड से वीर्य की आखिरी बूँद तक नहीं निकल गई। लेकिन जब उसने लंड बाहर निकाला तो शालू ने माँ की चूत को चूस चूस के सारा वीर्य अपने मुँह में भर लिया फिर उसने पलट कर माँ को सीधा किया और उनको फ्रेंच किस करके अपने मुँह में भरा सारा माल माँ के मुँह में डाल दिया। माँ ने भी झट उसे पी लिया।

शालू- आपके दूध का क़र्ज़ है मैं क्यों उसमें मुँह मारूं? हे हे हे …

इस बात पर सभी हंस दिए और इस तरह विराज मादरचोद बन गया।

विराज को तो उसका पहला प्यार चोदने को मिल गया लेकिन क्या शालू को भी एक नए लंड की ज़रुरत पड़ेगी। अगर हाँ तो वो लंड किसका होगा?
 
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे शालू ने अपने काम जीवन में नए रंग भरने के लिए पहले अपनी सास के साथ समलैंगिक समबन्ध बनाए और फिर विराज को उसके बचपन की चाहत उसकी माँ की चूत दिलवा दी। आखिर विराज मादरचोद बन गया।

अब आगे…

शेर एक बार आदमखोर हो गया तो बस हो गया; फिर वो वापस साधारण शेर नहीं बन सकता। विराज को भी अपनी माँ की चूत की ऐसी चाहत लगी कि अगले कई दिनों तक उसने शालू के साथ मिल कर अपनी माँ को बजा बजा के पेला लेकिन माँ की उमर जवाब दे चुकी थी।

माँ ने एक दिन बोल ही दिया कि अब वो केवल कभी कभी चुदवाया करेंगी लेकिन विराज ने भी चालाकी दिखा दी- देख माँ! बाक़ी तेरा जब मन करे चुदवा, ना चुदवा… तेरी मर्ज़ी! लेकिन शालू की माहवारी के दिनों में मेरी मर्ज़ी चलेगी। बोलो मंज़ूर है?
माँ- हओ बेटा, तेरे लाने इत्तो तो करई सकत हूँ। अबे इत्ति बुड्ढी बी नईं भई हूँ के मइना में 3-4 बखत जा ओखल में तुहार मूसल की कुटाई ना झेल सकूँ।


उसके बाद माँ अपने तरफ का दर्पण हमेशा खुला रखतीं थीं और रोज़ बेटे बहु की चुदाई देखती थीं। कभी अगर देर से नींद खुलती तो नहाने के लिए बेटा-बहू के साथ ही चली जातीं थीं। तीनो फव्वारे के नीचे एक साथ नहाते, एक दूसरे को साबुन लगते और नहाते नहाते माँ की चुदाई तो ज़रूर होती ही थी।

इसके अलावा जब भी मन करता तो कभी कभी रात को बेटे के बेडरूम में जाकर खुद भी बेटे से चुदवा आतीं थीं; नहीं तो महीने के उन दिनों में तो विराज खुद आ जाता और पटक पटक के अपनी माँ की चूत चोदता था। कभी कभी माँ-बेटे की चुदाई देख कर, शालू माहवारी के टाइम पर भी इतनी गर्म हो जाती कि वो भी आ कर अपनी गांड मरवा लेती थी।

कभी शालू को बोल दिया जाता कि राजन का ध्यान रखे और फिर दिन दिहाड़े किचन या बाहर के कमरे में माँ बेटा की चुदाई हो जाती। यह सुविधा शालू को भी मिलती थी; बस इतना बोलने की ज़रूरत होती थी कि माँ जी ज़रा राजन का ध्यान रखना, मैं रसोई में चुदा रही हूँ।

जब सब मज़े में चल रहा होता है तो समय भी जैसे पंख लगा कर उड़ने लगता है। राजन छह साल का हो गया था और जय और शीतल की बेटी सोनिया दो से ऊपर की थी जब खबर मिली कि शीतल एक बार फिर गर्भवती हो गई है। पिछली बार उसके पेट से होने पर जय ने शालू को चोद कर ना केवल खुद बहुत मज़े किये थे बल्कि शालू ने भी अपनी दो लंडों से चुदाने की इच्छा पूरी कर ली थी।

इसी सबको याद करते करते एक रात विराज और शालू पुरानी यादों में खोए हुए थे।
विराज- उस बार तुमने जय से माँ के कमरे में जा के चुदाया था ना? तब तो तुमने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन तुम माँ के इतने करीब आ जाओगी।
शालू- हाँ, तब तो उनके कमरे में चुदवाना ही मुझे बड़े जोखिम का काम लगा था तब क्या पता था कि एक दिन मैं उनको उनके बेटे से ही चुदवा दूँगी और फिर उनके साथ मिल कर चुदाई किया करुँगी।

विराज- अरे हाँ इस बात से याद आया। तुमको वादा किया था कि अगर तुमने मुझे माँ की चूत दिलवा दी तो जो तू मांगेगी वो दिलवाऊंगा।
शालू- हाँ कहा तो था लेकिन…
विराज- लेकिन क्या? तू बोल के तो देख?
शालू- मेरा तो फिर से दो लौड़ों से एक साथ चुदाने का मन कर रहा है।
विराज- अरे, इसमें मांगने जैसा क्या है ये तो बिना मांगे मिला था ना जब जय आया था। हाँ लेकिन अब तो वो आएगा नहीं… देख शालू, मैं तो बिल्कुल राजी हूँ। तू कहे तो एक बार जा के जय को मना के लाने की कोशिश भी कर सकता हूँ लेकिन उसका आना मुश्किल है। और तेरे ही भले के लिए मैं नहीं चाहता कि अपन किसी ऐरे-गैरे को अपनी चुदाई में शामिल करें। अब तू ही बता कैसे करना है? तू जो कहेगी मुझे मंज़ूर है।

शालू- आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी किसी गैर से चुदाना नहीं चाहती। एक अपना है अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो लेकिन उसके पहले मुझे एक राज़ की बात बतानी पड़ेगी।
विराज- राज़ की बात? मुझे तो लगा तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। सुहागरात पर ही सब सच सच बता दिया था। फिर कौन सी राज़ की बात?

शालू- सुहागरात पर जो बताया वो सब सच ही था। एक शब्द भी आज तक आपसे झूठ नहीं बोला लेकिन एक बात थी जो बस बताई नहीं थी। आप पहले ही गुस्से में थे और मुझे डर था कि अगर ये बात बता दी तो कहीं आप मुझे छोड़ ही ना दो।
विराज- तो फिर अब क्यों बता रही हो? अब डर नहीं है? मन भर गया क्या मेरे से?

शालू- अरे नहीं, अब डर नहीं अब भरोसा है। अब हमारे बीच प्यार इतना गहरा है कि मुझे पता है कुछ नहीं होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि अब मुझे पता है कि आपको यह बात शायद इतनी बुरी ना लगे जितना मैंने सोचा था।
विराज- अब पहेलियाँ ना बुझाओ! बता भी दो!
 
शालू- ठीक है बताती हूँ। जैसा मैंने आपको बताया था कि कामदार को मार-पीट कर भगाने के बाद भैया मुझे समझा रहे थे कि कैसे ये सब ऐसे काम वालों के साथ करने से नाम तो हमारा ही ख़राब होगा ना। मुझे उनकी बात भी समझ आ रही थी लेकिन इस सारे टाइम ना तो मैंने अपने कपड़े वापस पहने थे और ना उन्होंने मुझे पहनने को कहा था।
मुझे भैया की बात से लग रहा था कि उनको मेरी फिकर है और वो मुझे प्यार करते हैं इसलिए नहीं चाहते कि मेरे साथ कुछ गलत हो। इन सब से शायद मन ही मन उनके लिए मेरा विश्वास बढ़ गया और मेरे जो हाथ अब तक मेरी गोलाइयों और इस मुनिया को छिपाने की कोशिश कर रहे थे वो साधारण रूप में आ गए और मैं उनके सामने वैसे ही नंगी बैठी थी।
अचानक मेरा ध्यान गया कि भैया के पजामे में तम्बू बन रहा है। आखिर पप्पू है तो नंगी लड़की देख कर खड़ा तो होगा ही, फिर वो लड़की बहन हो या माँ ही क्यों ना हो? सही बोल रही हूँ ना?

विराज- हम्म्म… बात तो सही है। मुझे समझ भी आ रहा है कि तुम्हारी कहानी किस तरफ जा रही है लेकिन अब मेरा पप्पू बोल रहा है कि सुन ही लेते हैं पूरी कहानी। आगे सुनाओ!

शालू- मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने आखिर बोल ही दिया…

शालू और उसके भाई की कहानी:
शालू- भैया! मैं कोई उस कामदार से प्यार नहीं करती, मुझे तो ये बाबा की किताबों में जो फोटो हैं ये सब करने का मन किया इसलिए मैंने उसको डरा धमका के बुलाया था। बहुत दिनों से ये सब देख रही हूँ और ये कहानियां पढ़ के काफी कुछ सीखा है। जब अपनी बुर का दाना रगड़ती हूँ तो बड़ा मज़ा आता है। सोचा अगर इसमें इतना मज़ा आता है तो इसके आगे जो करते हैं उसमे कितना मज़ा आता होगा।

सुनील भैया- ठीक है, तुम्हारी बात भी सही है। मैंने भी ये किताबें पढ़ी हैं और मैं भी ये सब फोटो देख-देख कर मुठ मार चुका हूँ और चाहता तो मैं भी बाबा की तरह किसी काम वाली को चोद सकता था लेकिन मैंने सुना है बहार लोग बाबा के बारे में क्या क्या बातें करते हैं। उनकी तो ज़मीदारी में बात चल गई। लोग राजा समझते हैं तो कम से कम सामने तो सब इज्ज़त करते हैं लेकिन अब हमारी पीढ़ी में ये सब नहीं चलेगा। वो ज़माने गए अब ये सब करेंगे तो कोई हमारी इज्ज़त नहीं करेगा।

शालू- बात तो भैया आप सही कह रहे हो। लेकिन…
सुनील- मैं समझ रहा हूँ तू क्या कहना चाह रही है। तुझे ऐतराज़ ना हो तो हम एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
शालू- आप चोदोगे मुझे?
सुनील- अरे नहीं ऐसे नहीं। कल को तेरी शादी होगी तो दूल्हा समझ जाएगा कि तू कुंवारी नहीं है। गलती से भी शादी के पहले चुदाई ना कर लेना।
शालू- फिर कैसे हम एक दूसरे की ठरक ठंडी करेंगे?
सुनील- हाँ… ठरकी बाप की ठरकी औलादें हैं कुछ तो करना पड़ेगा। मैंने एक फोटो में देखा था लड़के ने लड़की की गुदा में अपना लिङ्ग डाला हुआ था। लड़कियों को शायद वहां भी मज़ा आता होगा। तूने कभी कोशिश की है क्या वहां उंगली करने की?

शालू- नहीं की… अभी करके देखूं?
सुनील- रुक, तू पलट के लेट जा मैं करता हूँ।

शालू पेट के बल लेट गई और सुनील ने अपनी छोटी बहन के दोनों पुन्दे अलग करके गुदा का छेद चौड़ा किया फिर उसके बीच में अपने मुँह की थोड़ी लार टपका दी। फिर धीरे से नितम्बों वो वापस ढीला छोड़ दिया और उनके साथ दोनों हाथों से खेलने लगा। वो पहले दोनों तरफ से उनको दबाता फिर छोड़ देता और उन्हें खुद-ब-खुद हिलते हुए देखता। थोड़ी देर बाद उसने फिर दोनों नितम्बों को अलग करके पीछे वाले छेद में थोड़ी लार टपकाई और फिर धीरे से बंद करके खेलने लगा।

शालू- ये क्या कर रहे हो भैया? डालो ना उंगली!
सुनील- अरी मेरी भोली बहन! चूत तो तेरी इतनी गीली हो रही है। अब गांड तो अपने आप गीली नहीं होगी ना। उसको अन्दर तक गीली करने के लिए ये सब किया है। अब डालता हूँ उंगली।

सुनील ने अपनी उंगली अपने मुख में डाल कर अच्छी तरह से लार में भीगा कर गीली की और जैसे ही अपनी बहन की गांड के छेद पर रखी, गांड सिकुड़ के कस गई। सुनील ने अपने दूसरे हाथ से शालू के नितम्बों से पीठ तक सहलाया और उसे अपनी गांड ढीली छोड़ने को कहा। जब वो ढीली हुई तो सुनील ने उंगली घुसाई लेकिन अभी बस नाखून जितनी उंगली अन्दर गई थी कि गांड फिर सिकुड़ गई। सुनील ने धीरज से फिर इंतज़ार किया और आखिर 2-3 बार कोशिश करने के बाद पूरी उंगली अन्दर गई। फिर ऐसे ही धीरे धीरे करके उसने उसे अन्दर बाहर करना शुरू किया और साथ में अपनी बहन के पुन्दे मसलता रहा।
 
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