desiaks
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प्रीति के स्वर ने खामोशी को तोड़ा-"विनीत, क्या सोच रहे हो....?"
“मैं....कुछ भी तो नहीं....बस यूं ही।" विनीत हड़बड़ाकर बोला।
"तो फिर इतने उदास क्यों हो? मैं कई दिन से नोट कर रही हूं कि तुम पता नहीं किस उलझन में उलझे हो। मुझे लगता है जैसे....तुम मेरे साथ होकर भी मेरे साथ नहीं हो।" प्रीति ने विनीत की चुप्पी का कारण जानना चाहा। प्रीति और विनीत एक सुनसान सड़क पर प्रेम के डग भरते हए चलते जा रहे थे। सड़क के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे बंगलों की कतारों को बे पीछे की ओर छोड़ते जा रहे थे। प्रीति विनीत की सच्ची प्रेमिका थी। उसकी जिन्दगी थी वह।
दोनों अक्सर इन्हीं रास्तों पर घूमने के लिये निकलते थे। जिन्दगी बड़ी खुशगवार थी। प्रीति के पिता ने भी विनीत से प्रीति की शादी करने को कह दिया था। प्रीति अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थी। प्रीति मिडिल क्लास फेमिली से सम्बन्ध रखती थी। विनीत प्रीति के पड़ोस में ही रहती थी। विनीत प्रीति के पिता को 'चाचा जी' कहकर पुकारता। विनीत व प्रीति के पिता आपस में दोस्त थे। विनीत एक गरीब परिवार से सम्बन्ध रखता था। घर में उसके अतिरिक्त उसकी दो वहनें थीं। एक अनीता, दूसरी सुधा। दोनों वहनें विनीत से छोटी थीं। हँसता-खेलता परिवार था। पिता एक छोटी-सी नौकरी पर थे। घर में गरीबी होने के बावजूद पिता ने विनीत को पढ़ाने में कमी नहीं की थी। प्रीति के पिता ने विनीत के पिता से विनीत और प्रीति की शादी के लिये हां कर दी थी। इस बात से दोनों बेहद खुश थे। गरीब होने के साथ-साथ परिवार में खुशियां-ही-खुशियां थीं।
विनीत कहीं खोया-खोया आगे बढ़ता जा रहा था। काफी दूर चलने पर जंगल शुरू हो गया। यह इलाका सुनसान-सा लगता था। अभी यहां किसी भी प्रकार की आबादी नहीं थी। सामने एक छोटा-सा पुल था। दोनों उस पुल पर आ गये। "विनीत, तुमने बताया नहीं जो मैंने पूछा।" प्रीति का स्वर उदास हो गया। वह पुल पर खड़ी होकर पुल के नीचे कल-कल करती हुई जलधारा को देखने लगी।
"क्या बताऊं प्रीति!” विनीत ने एक गहरी सांस लेकर कहा।
“क्यों, क्या बताने लायक बात नहीं?" प्रीति उदास हो गई।
विनीत ने प्रीति के उदास चेहरे पर दृष्टि डालते हुए कहा- नहीं प्रीति, वैसा नहीं है जैसा तुम समझ रही हो।"
"तो फिर कैसा है? तुम बताते क्यों नहीं हो।" प्रीति ने विनीत का हाथ अपने हाथों में ले लिया।
विनीत ने अपनी परेशानी का कारण प्रीति को बता दिया। इतना सुनकर प्रीति बोली ____ "इसमें परेशान होने वाली क्या बात है? तुम उससे कह क्यों नहीं देते कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया।"
विनीत भावुक होकर बोला—"प्रीति, मैं तुम्हारे सिवा किसी भी लड़की से बात नहीं करना चाहता-आखिर वह क्यों मेरे मुंह से कुछ भी सुनना चाहती है?"
इसका जवाब तो प्रीति के पास भी नहीं था।
“मैं....कुछ भी तो नहीं....बस यूं ही।" विनीत हड़बड़ाकर बोला।
"तो फिर इतने उदास क्यों हो? मैं कई दिन से नोट कर रही हूं कि तुम पता नहीं किस उलझन में उलझे हो। मुझे लगता है जैसे....तुम मेरे साथ होकर भी मेरे साथ नहीं हो।" प्रीति ने विनीत की चुप्पी का कारण जानना चाहा। प्रीति और विनीत एक सुनसान सड़क पर प्रेम के डग भरते हए चलते जा रहे थे। सड़क के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे बंगलों की कतारों को बे पीछे की ओर छोड़ते जा रहे थे। प्रीति विनीत की सच्ची प्रेमिका थी। उसकी जिन्दगी थी वह।
दोनों अक्सर इन्हीं रास्तों पर घूमने के लिये निकलते थे। जिन्दगी बड़ी खुशगवार थी। प्रीति के पिता ने भी विनीत से प्रीति की शादी करने को कह दिया था। प्रीति अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थी। प्रीति मिडिल क्लास फेमिली से सम्बन्ध रखती थी। विनीत प्रीति के पड़ोस में ही रहती थी। विनीत प्रीति के पिता को 'चाचा जी' कहकर पुकारता। विनीत व प्रीति के पिता आपस में दोस्त थे। विनीत एक गरीब परिवार से सम्बन्ध रखता था। घर में उसके अतिरिक्त उसकी दो वहनें थीं। एक अनीता, दूसरी सुधा। दोनों वहनें विनीत से छोटी थीं। हँसता-खेलता परिवार था। पिता एक छोटी-सी नौकरी पर थे। घर में गरीबी होने के बावजूद पिता ने विनीत को पढ़ाने में कमी नहीं की थी। प्रीति के पिता ने विनीत के पिता से विनीत और प्रीति की शादी के लिये हां कर दी थी। इस बात से दोनों बेहद खुश थे। गरीब होने के साथ-साथ परिवार में खुशियां-ही-खुशियां थीं।
विनीत कहीं खोया-खोया आगे बढ़ता जा रहा था। काफी दूर चलने पर जंगल शुरू हो गया। यह इलाका सुनसान-सा लगता था। अभी यहां किसी भी प्रकार की आबादी नहीं थी। सामने एक छोटा-सा पुल था। दोनों उस पुल पर आ गये। "विनीत, तुमने बताया नहीं जो मैंने पूछा।" प्रीति का स्वर उदास हो गया। वह पुल पर खड़ी होकर पुल के नीचे कल-कल करती हुई जलधारा को देखने लगी।
"क्या बताऊं प्रीति!” विनीत ने एक गहरी सांस लेकर कहा।
“क्यों, क्या बताने लायक बात नहीं?" प्रीति उदास हो गई।
विनीत ने प्रीति के उदास चेहरे पर दृष्टि डालते हुए कहा- नहीं प्रीति, वैसा नहीं है जैसा तुम समझ रही हो।"
"तो फिर कैसा है? तुम बताते क्यों नहीं हो।" प्रीति ने विनीत का हाथ अपने हाथों में ले लिया।
विनीत ने अपनी परेशानी का कारण प्रीति को बता दिया। इतना सुनकर प्रीति बोली ____ "इसमें परेशान होने वाली क्या बात है? तुम उससे कह क्यों नहीं देते कि मैंने तुम्हें माफ कर दिया।"
विनीत भावुक होकर बोला—"प्रीति, मैं तुम्हारे सिवा किसी भी लड़की से बात नहीं करना चाहता-आखिर वह क्यों मेरे मुंह से कुछ भी सुनना चाहती है?"
इसका जवाब तो प्रीति के पास भी नहीं था।