desiaks
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“नमस्ते बेटा। सदा खुश रहो।" वह अपने घर की ओर लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ चल दिया। उसे प्रीति के घर काफी देर हो गई थी। प्रीति के घर से थोड़ी दर चलने पर ही उसे प्रीति के पिताजी दिखाई दिये थे। उसने नमस्ते की थी और आगे बढ़ गया। उन्होंने भी उसे नहीं रोका था। प्रीति के पिताजी घर पहुंचे तो सबसे पहले प्रीति की मां ने प्रीति के पिता को विनीत की नौकरी की बात बतायी थी। प्रीति की मां विनीत को बहुत पसंद करती थीं। वह विनीत की नौकरी के विषय में जानकर बहुत प्रसन्न हो गयी थीं।
विनीत घर पहुंचा तो चेहरे के भाव साफ थे। चेहरा चिन्तामुक्त था। अनीता को भइय्या का चेहरा देखकर सकून मिल गया। "भइय्या नमस्ते। आज तो अब कुछ ठीक नजर आ रहे हैं।"
"हां अनीता। आओ मां के पास चलते हैं। तुम्हें एक बात बताऊंगा।"
दोनों मां के कमरे में चले गये। "मां....अब कैसी हो?" विनीत ने मुस्कराकर कहा।
"ठीक हूं बेटा। अब तू बता....नौकरी का क्या रहा?"
"मां, आज मुझे एक कम्पनी के मैनेजर ने आश्वासन दिया है कि वे मुझे कल नौकरी दे देंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि मुझे बहां पर नौकरी मिल जायेगी।" विनीत के होठों पर एक हल्की मुस्कान उभरी।
अनीता भइय्या की बात सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हो गई। विनीत की मां ने विनीत को गले लगा लिया। "बेटा, तुम हमेशा कामयाब होते रहो। मेरे दिल को तो ये ही तमन्ना है।” उसकी मां विनीत पर निहाल हो रही थीं। थोड़ी देर बाद विनीत मां से बातें करने के पश्चात् अन्दर चला गया। अन्दर जाकर वह पलंग पर बैठकर जूते उतारने लगा। उसको घर आते-आते शाम हो गई थी। वह पलंग पर लेटकर आंखें मूंदे लेट गया। तभी सुधा उसके पास चाय लेकर आ गई। विनीत को आंखें बंद करे लेटा देख वह सोची शायद भइय्या सोने के लिये लेटे हैं मगर तभी विनीत को लगा शायद कोई आया है, उसने आंखें खोल दीं।
“भइय्या, चाय पी लीजिये।” सुधा ने कहा।
पास रखे स्टूल की ओर इशारा करते हुए विनीत ने कहा- रख दो सुधा, मैं पी लूंगा। तुम जाओ।" सुधा कप स्टूल पर रखकर वापस आ गई। थोड़ी देर तक विनीत लेटा रहा। तभी उसे याद आया, सुधा चाय रखकर गई है, वह उठकर बैठा और चाय का कप उठा लिया। चाय ठन्डी हो चुकी थी। उसने चाय का कप होठों से लगाया और एक ही बार में खाली कर रख दिया और फिर सोने के इरादे से लेट गया। आंखें बंद कर ली। उसे लगा जैसे बाहर प्रीति के पिता मांजी से बात कर रहे हों। यही सोचकर वह उठकर बाहर आया तो वास्तव में चाचा जी आये थे। वे मां से बातें कर रहे थे। वह उनको नमस्ते करने के पश्चात् वहीं खड़ा रहा। मां से तो उन्होंने अधिक देर तक बात नहीं की थी। परन्तु विनीत को दूसरे कमरे में ले जाकर बोले थे—"विनीत....."
“कहिये, चाचा जी।"
“मैंने सुना है जल्दी ही तुम्हारी नौकरी लगने वाली है।"
"उम्मीद तो है।"
विनीत घर पहुंचा तो चेहरे के भाव साफ थे। चेहरा चिन्तामुक्त था। अनीता को भइय्या का चेहरा देखकर सकून मिल गया। "भइय्या नमस्ते। आज तो अब कुछ ठीक नजर आ रहे हैं।"
"हां अनीता। आओ मां के पास चलते हैं। तुम्हें एक बात बताऊंगा।"
दोनों मां के कमरे में चले गये। "मां....अब कैसी हो?" विनीत ने मुस्कराकर कहा।
"ठीक हूं बेटा। अब तू बता....नौकरी का क्या रहा?"
"मां, आज मुझे एक कम्पनी के मैनेजर ने आश्वासन दिया है कि वे मुझे कल नौकरी दे देंगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि मुझे बहां पर नौकरी मिल जायेगी।" विनीत के होठों पर एक हल्की मुस्कान उभरी।
अनीता भइय्या की बात सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हो गई। विनीत की मां ने विनीत को गले लगा लिया। "बेटा, तुम हमेशा कामयाब होते रहो। मेरे दिल को तो ये ही तमन्ना है।” उसकी मां विनीत पर निहाल हो रही थीं। थोड़ी देर बाद विनीत मां से बातें करने के पश्चात् अन्दर चला गया। अन्दर जाकर वह पलंग पर बैठकर जूते उतारने लगा। उसको घर आते-आते शाम हो गई थी। वह पलंग पर लेटकर आंखें मूंदे लेट गया। तभी सुधा उसके पास चाय लेकर आ गई। विनीत को आंखें बंद करे लेटा देख वह सोची शायद भइय्या सोने के लिये लेटे हैं मगर तभी विनीत को लगा शायद कोई आया है, उसने आंखें खोल दीं।
“भइय्या, चाय पी लीजिये।” सुधा ने कहा।
पास रखे स्टूल की ओर इशारा करते हुए विनीत ने कहा- रख दो सुधा, मैं पी लूंगा। तुम जाओ।" सुधा कप स्टूल पर रखकर वापस आ गई। थोड़ी देर तक विनीत लेटा रहा। तभी उसे याद आया, सुधा चाय रखकर गई है, वह उठकर बैठा और चाय का कप उठा लिया। चाय ठन्डी हो चुकी थी। उसने चाय का कप होठों से लगाया और एक ही बार में खाली कर रख दिया और फिर सोने के इरादे से लेट गया। आंखें बंद कर ली। उसे लगा जैसे बाहर प्रीति के पिता मांजी से बात कर रहे हों। यही सोचकर वह उठकर बाहर आया तो वास्तव में चाचा जी आये थे। वे मां से बातें कर रहे थे। वह उनको नमस्ते करने के पश्चात् वहीं खड़ा रहा। मां से तो उन्होंने अधिक देर तक बात नहीं की थी। परन्तु विनीत को दूसरे कमरे में ले जाकर बोले थे—"विनीत....."
“कहिये, चाचा जी।"
“मैंने सुना है जल्दी ही तुम्हारी नौकरी लगने वाली है।"
"उम्मीद तो है।"