desiaks
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"विनीत , मुझे अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं है। मगर आज मैं बहुत ही बेइज्जत महसूस कर रहा हूं। एक मैनेजर के साथ तुम्हारी वहन ने ऐसा ब्यबहार किया जैसा मैं अपने नौकर के साथ भी नहीं करता।"
"सॉरी सर। उसकी ओर में मैं माफी मांगने को तैयार हूं....मगर आप बता तो दीजिये आखिर क्या किया उसने....?"
“ये कहो क्या नहीं किया..." स्वर में शिकायत थी।
"फिर भी कुछ तो बताइये।"
"कुछ क्या बताऊं—उसने मुझे अन्दर तक नहीं बुलाया। दो ट्रक जवाब देकर-भइय्या घर में नहीं हैं....कहकर दरवाजा बंद कर दिया।" किशोर ने सफेद झूठ बोला।
"प्लीज, आप उसे माफ कर दीजिये। मैं उसे समझा दूंगा....। आगे से कोई ऐसी गलती नहीं होगी।"
"इट्स ओके।" वह चुप हो गया फिर बोला—"तुम जा सकते हो। जाकर अपना काम करो।"
“बैंक्यू सर।" वह कुर्सी से उठा और ऑफिस से बाहर निकल गया। अपना काम करने बैठा तो मन नहीं लगा। वह मन-ही-मन अनीता पर गुस्सा हो रहा था। अनीता को सर के साथ ऐसा नहीं करना चाहिये था....। घर लौटा तो सबसे पहले अनीता को अपने पास बुलाकर पूछा- "अनीता, यह क्या बदतमीजी है? तुमने सर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?" इतना सुनकर अनीता सकपका गई।
"क्या भइय्या, मैंने ऐसी क्या गलती की है?" वह विनीत के चेहरे पर आये नाराजगी के भावों को देखती हुई बोली।
"हमारे मैनेजर यहां आये और तूने उन्हें पानी तक के लिये नहीं पूछा?"
अपने भाई की यह बात सुनकर अनीता सोच में पड़ गई। आखिर किशोर ने ऐसा क्यों कहा भाई से—जबकि गलती तो उसने स्वयं की थी। "नहीं भइय्या।” अनीता आगे कुछ कहती तभी विनीत दहाड़ा-"खामोश! अनीता, तुम्हें ये तो सोचना चाहिये था कि वो कितने बड़े लोग हैं....हम जैसों के घर तो वे आना भी पसंद नहीं करते और मेरी दोस्ती के कारण वे हमारे घर आ जाते हैं। और आज तुमने उनके सामने मेरी गर्दन नीची करवा दी।" बड़े भाई के सामने उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। उसे लगा कि अगर वह सच बात बता भी देगी तो भी शायद अब भइय्या विश्वास नहीं करेंगे। बस यही सोचकर वह चुप रही और रोती हुई अन्दर चली गई।
परन्तु उस दिन....
"सॉरी सर। उसकी ओर में मैं माफी मांगने को तैयार हूं....मगर आप बता तो दीजिये आखिर क्या किया उसने....?"
“ये कहो क्या नहीं किया..." स्वर में शिकायत थी।
"फिर भी कुछ तो बताइये।"
"कुछ क्या बताऊं—उसने मुझे अन्दर तक नहीं बुलाया। दो ट्रक जवाब देकर-भइय्या घर में नहीं हैं....कहकर दरवाजा बंद कर दिया।" किशोर ने सफेद झूठ बोला।
"प्लीज, आप उसे माफ कर दीजिये। मैं उसे समझा दूंगा....। आगे से कोई ऐसी गलती नहीं होगी।"
"इट्स ओके।" वह चुप हो गया फिर बोला—"तुम जा सकते हो। जाकर अपना काम करो।"
“बैंक्यू सर।" वह कुर्सी से उठा और ऑफिस से बाहर निकल गया। अपना काम करने बैठा तो मन नहीं लगा। वह मन-ही-मन अनीता पर गुस्सा हो रहा था। अनीता को सर के साथ ऐसा नहीं करना चाहिये था....। घर लौटा तो सबसे पहले अनीता को अपने पास बुलाकर पूछा- "अनीता, यह क्या बदतमीजी है? तुमने सर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?" इतना सुनकर अनीता सकपका गई।
"क्या भइय्या, मैंने ऐसी क्या गलती की है?" वह विनीत के चेहरे पर आये नाराजगी के भावों को देखती हुई बोली।
"हमारे मैनेजर यहां आये और तूने उन्हें पानी तक के लिये नहीं पूछा?"
अपने भाई की यह बात सुनकर अनीता सोच में पड़ गई। आखिर किशोर ने ऐसा क्यों कहा भाई से—जबकि गलती तो उसने स्वयं की थी। "नहीं भइय्या।” अनीता आगे कुछ कहती तभी विनीत दहाड़ा-"खामोश! अनीता, तुम्हें ये तो सोचना चाहिये था कि वो कितने बड़े लोग हैं....हम जैसों के घर तो वे आना भी पसंद नहीं करते और मेरी दोस्ती के कारण वे हमारे घर आ जाते हैं। और आज तुमने उनके सामने मेरी गर्दन नीची करवा दी।" बड़े भाई के सामने उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। उसे लगा कि अगर वह सच बात बता भी देगी तो भी शायद अब भइय्या विश्वास नहीं करेंगे। बस यही सोचकर वह चुप रही और रोती हुई अन्दर चली गई।
परन्तु उस दिन....