Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 10 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

उत्तरायण की पतंगबाजी मैं बर्तन, डिश, कप को अंदर रखकर आई। तब तक नीरव पतंग और डोरी लेकर बाहर निकल गया। मैं भी उसके पीछे-पीछे बाहर निकली और हम घर को बंद करके छत पर चले गये।

10:00 बजे थे, आसमान नीले रंग की जगह आज अलग-अलग रंगों से रंगा हुवा था। मेरे पसंदीदा दो ही त्योहार हैं- उत्तरायण और धुलेटी। क्योंकि ये दोनों त्योहार रंगों से भरे हैं। एक में हम आसमान रंगों से भरते हैं, दूसरे में हम खुद रंगों से भर जाते हैं। हर छत पर टेपरेकाईर बज रहे थे। हर बिल्डिंग की छत खचाखच भरी हुई थी।

कुछ बच्चे पतंग पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे, तो कई बच्चे अपने मम्मी-पापा से जिद करके पतंग उड़ा देने को कह रहे थे।

कुछ बूढे एक तरफ चेयर पे बैठे हुये थे, तो कुछ अपने पोते, पोतियों को संभाल रहे थे। लड़के पतंग उड़ा रहे थे

और उनकी बीवियां, बहन या गर्लफ्रेंड फिरकी पकड़कर पीछे खड़ी थीं। कुछ लड़के बारी-बारी एक दूसरे की फिरकी पकड़कर काम चला रहे थे। चारों तरफ से थोड़ी-थोड़ी देर में- “कयपो छे..” की आवाजें आ रही थीं।

मैंने फिरकी पकड़ी हुई थी और नीरव पतंग उड़ा रहा था। उसने अब तक दो पतंग काट दिए थे। हमारी बिल्डिंग में मैं और नीरव सबसे अच्छा पतंग उड़ाते हैं, इसलिए जिसे पतंग उड़ाना नहीं आता था वो सब हमारे आस-पास खड़े थे, और नीरव के पतंग काटते ही वो सब हमारे साथ चिल्लाते थे- “कयपो छे...”

तभी नीरव की पतंग के साथ रेड कलर की पतंग का पेंच लड़ गया। नीरव ढील देने लगा तो वो खींचने लगा तो मैंने नीरव से कहा की- “तुम भी खीचो नहीं तो हमारा कट जाएगा...”

नीरव ने और ढील छोड़ते हुये कहा- “किसने कहा की वो करे ऐसा हमें करना चाहिए, और डोरी को खींचने में कितनी मेहनत पड़ती है मालूम है तुझे...”

मैं मन ही मन बड़बड़ाई- “कब सीखोगे मेहनत करना, हर काम ईजी ही करते रहते हो...”

तभी बाजू की छत से जोरों की आवाज आई- “कयपो छे...”

मैंने देखा तो हमारी पतंग काट चुकी थी और पतंग काटने वाला बाजू की छत से ही था।

नीरव- “यार इतने में तो कोई मेरी पतंग काट नहीं सकता, ये कौन है?” नीरव ने बाजू में खड़े भाई से पूछा।

तभी बाजू की छत से आवाज आई- “नीरव, मैंने कहा था ना अगले साल तेरी पतंग उड़ने नहीं दूंगा, देख ये मेरा भांजा आया है तेरी पतंग काटने और मेरी प्रोमिस है की तुममें से कोई उसकी एक पतंग काटकर दिखाओ तो वो चला जाएगा...”

मैंने उस तरफ देखा तो हमारे बाजू की बिल्डिंग में रहने वाले मनसुख भाई थे, जो कुछ 50 साल के होंगे। पिछले उत्तरायण में उनकी सारी पतंगें नीरव ने काट दिए थे और तब सबने उनकी बहुत मजाक उड़ाई थी।

नीरव- “ऐसा है मनसुख भाई तो मैं भी आपकी चैलेंज लेता हूँ। अगर आप जीत गये तो मैं कभी पतंग नहीं उड़ाऊँगा..." नीरव ने भी जोरों से कहा।

मैंने मनसुख भाई के बाजू में देखा तो एक क्यूट सा लड़का खड़ा था जो शायद उनका भांजा था।

मनसुख- “तो समझ लो ये उत्तरायण तुम्हारी लास्ट है, आज के बाद तुम पतंग उड़ा नहीं सकोगे...” मनसुख भाई ने कहा।

नीरव- “देखते हैं..” कहते हुये नीरव ने दूसरी पतंग उठाई।
 
मनसुख भाई के बिल्डिंग की छत हमसे एक फ्लोर ऊपर थी। उस वजह से वो लोग उनकी छत पर से हमारी । छत की तरफ के आगे के भाग में आते थे, तभी एक दूसरे से बात होती थी। सिर्फ उनकी छत की पानी की टंकी हमें दिख रही थी जिस पर कुछ 15-17 साल के लड़के थे। अच्छी हवा होने की वजह से नीरव की पतंग तुरंत चढ़ गई, इतनी देर में तो छत पर जो लोग थे उन सबको नीरव और मनसुख भाई की शर्त के बारे में पता चल चुका था।

मनसुख भाई ने तो हमारी बिल्डिंग के सभी लोगों को चैलेंज दिया था इसलिए सभी को बात में इंटरेस्ट पड़ा। सब लोग हमारी पतंग की तरफ देखने लगे थे। हमारी पतंग कुछ ज्यादा ऊपर गई भी नहीं थी और रेड पतंग हमारी तरफ आई और उससे पेंच लड़ गया, नीरव कुछ सोचे समझे उसके पहले हमारी पतंग कट भी गई।

पतंग कटते ही मनसुख भाई हमारी छत की तरफ आए- “क्यों नीरव, कहा था ना अभी भी चाहो तो शर्त छोड़ सकते हो?”

नीरव- “अंकल एक-दो पतंग कटने से इतने खुश मत हो जाओ, अभी पूरा दिन बाकी है...” नीरव ने भी सामने जवाब दिया।

तभी उनकी छत पर से नारा सुनाई दिया- "नीरव भाई, नीरव भाई आए हैं; कच्ची डोरी लेकर पतंग उड़ा रहे हैं...”

हमारी छत पर जितने भी लोग थे, सबकी नजर उनकी छत पर चली गई। नारा लगाने वाले दिखाई नहीं दे रहे थे, पर जो बच्चे पानी की टंकी पर थे वो हमारी तरफ देखकर हमें अंगूठा दिखाकर डान्स करने लगे।

हमारी बिल्डिंग के एक अंकल हमें कहने लगे- "नीरव, अब तो हमारी इज्ज़त का सवाल है, काटो उसकी पतंग...”

नीरव- “अंकल, इस बार तो मैं उसे नहीं छोडूंगा..” कहते हुये नीरव सारी पतंगें चेक करने लगा। 10-15 मिनट की मेहनत के बाद उसने एक पतंग निकाला और उसे चढ़ाया।

इस बार हमारी पतंग पूरी तरह से ऊपर चढ़ गई तब तक वो रेड पतंग से हमारी पेंच नहीं लड़ी। नीरव ने दूसरी (और किसी का) पतंग काटा पर सबको वो रेड पतंग नीरव कब काटे उसमें ज्यादा इंटरेस्ट था। थोड़ी देर बाद नीरव ने उसकी पतंग को रेड कलर की पतंग पर रख दिया और पेंच लड़ा दिया और ढील छोड़ने लगा। उस तरफ से वो पतंग को खींच रहा था। 10 मिनट तक नीरव ढील छोड़ता ही रहा पर दोनों में से किसी की पतंग कटी नहीं। हमारी पतंग इतनी दूर चली गई थी की वो दिखाई भी नहीं दे रही थी।

तभी अचानक ही उस लड़के ने अपनी पतंग नीचे से निकालकर ऊपर रख दिया। हम लोगों को उसका ये खेल देखकर आश्चर्य हुवा, क्योंकि इतने साल में हमने आज तक किसी को ऐसा करते नहीं देखा था। शायद किसी को आता भी नहीं होगा ऐसा करना। अब स्थिति ऐसी थी की चाहे कुछ भी हो नीरव को अब पतंग खींचना ही था। क्योंकि हमारी पतंग नीचे थी। ज्यादा दूर जाने से पतंग भारी हो गई होगी क्योंकि नीरव खींचते हुये बीच-बीच में हाथों को झझोड़ रहा था। 5-7 मिनट खींचने के बाद नीरव थक गया और धीरे-धीरे खींचने लगा और थोड़ी ही देर में फिर से हमारी पतंग कट गई। पतंग कटते ही नीरव छत पर नीचे बैठ गया, मैं उसकी डोरी लेकर खींचने लगी।
 
“नीरव भाई नीरव भाई आए हैं.” “कच्ची डोरी लेकर पतंग उड़ा रहे हैं...”

फिर से उस छत पर से नारा गूंजने लगा और टंकी पर बच्चे डान्स करने लगे। डोरी खींचकर मैं नीरव के पास गई।

नीरव- “साले ने थका दिया...” नीरव ने गुस्से से कहा।

मैं- “अब तुम छोड़ो मैं चढ़ाती हूँ..” कहते हुये मैंने एक पतंग उठाई। मैंने पतंग को डोरी से बाँधा और जिस तरफ मनसुख भाई की छत थी उस तरफ जाकर मैंने आवाज लगाई- “अंकल... अंकल... मनसुख अंकल..”

मनसुख भाई हमारी छत की तरफ आए और पूछा- क्या है?

मैं- “मुझे लगता है कि आपका भांजा कुछ चीटिंग कर रहा है..” मैंने कहा।

मनसुख- “हम लोग चीटिंग नहीं करते...” अंकल ने थोड़ा तैश में आकर कहा।

मैं- “तो फिर वो वहां खड़े होकर क्यों पतंग उड़ा रहा है, जहां हमें कुछ दिखता नहीं?” मैंने उन्हें ज्यादा उकसाने के लिए कहा।

मनसुख- “तो फिर कहां खड़ा रहे बोलो तुम?” अंकल और तैश में आ गये थे।

मैं- “उसको कहो कि वो इस तरफ हमारे सामने पतंग चढ़ाए..” मैंने कहा।

मनसुख- “अच्छा, मैं उससे कहता हूँ..” अंकल ने इतना कहा और वो उसे बुलाने चले गये।

मैं खुश हो गई, क्योंकि मैं अपने इरादों में सफल हो गई थी। वो लड़का मुझे देखते हुये पतंग चढ़ाए ऐसा मैं चाहती थी। तुरंत वो लड़का हमारी तरफ आया, बहुत क्यूट सा था, 17-18 साल का होगा।

मैंने उसे पूछा- क्या नाम है तुम्हारा?

विशाल...” उसने कहा।

मैं- “और घर पे सब क्या कहते हैं?”

विशाल- “पप्पू...” उसने कहा।

मैं- “तो देखो पप्पू, मैं पतंग उड़ा रही हूँ...” कहते हुये मैंने अपनी पतंग का चढ़ाना चालू किया, 2-3 धक्के लगाने के बाद मेरी पतंग ऊपर चढ़ गई।

मैंने एक लड़के बुलाया और उससे पूछा- “तेरे घर पे ‘पप्पू कांट डान्स' वाले गाने की सी.डी. है?”

उसने 'हाँ' बोला।

तब मैंने उससे कहा- “जा लेकर आ और सेटिंग करके रखना, पप्पू की पतंग कटते ही वो बजाना...”

वो लड़का हँसता हुवा चला गया।
 
मेरी और पप्पू की पतंग में जंग छिड़ गई थी, वो कई बार पतंग को ऊपर तो कई बार नीचे करता था, जो उसकी मास्टरी थी। 15-20 मिनट तक हमारी जंग चलती रही, न मेरी पतंग कट रही थी न उसकी। पप्पू बीचबीच में मेरी तरफ देख रहा था और ज्यादातर हमारी आँख मिल जाती, तब वो शर्मकार ऊपर देखने लगता था। सबकी नजर आसमान की तरफ थी। कुछ लोग तो आँखें बंद करके भगवान को याद करने लगे थे।

मैंने उनकी छत पर देखा, तो पप्पू के सिवा वहां टंकी पर बैठे हुये लड़के दिख रहे थे। मैंने चिल्लाकर पप्पू को बुलाया- “पप्पू..”
और पप्पू ने मेरी तरफ देखा तो मैंने मुश्कुराते हुये आँख मारी और फिर उसे फ्लाइंग किस दे दी। वो मानो सब कुछ भूल गया और मेरी तरफ देखता ही रहा और उसका ध्यान भंग तब हुवा जब हमारी छत पर से नारा बजा कयपो छे...”

उसकी पतंग कट चुकी थी, हमारी छत पर से गाना चालू हो गया- “पप्पू कांट डान्स साला...”

उसका मामा आकर उसे धमकाने लगा। वो मेरी तरफ हाथ करके बोलना चाहता था पर अटक गया। और इसतरफ नीरव ने आकर मुझे उठा लिया और सब तालियां बजाकर चिल्लाने लगे- “कयपो छे...”

थोड़ी देर बाद मैंने उस लड़के को पानी की टंकी पर बैठे हुये देखा, वो मेरी तरफ ही देख रहा था, उसका मुँह लटका हुवा था।‘

मुझे ऐसे क्यूट से लड़के को मुँह लटकाकर बैठे देखकर दया आ गई तो मैंने उसके सामने देखकर कान पकड़ाऔर धीरे से बोली- “सारी...”

उसने अपना मुँह फेर लिया। मुझे उसकी हालत देखकर बुरा तो बहुत लगा, पर मैं क्या कर सकती थी। मुझे हर हाल में जीतना ही था, उसके मामा ने मेरे नीरव के साथ शर्त जो लगाई थी।

1:00 बजे आसपास नीरव ने कहा- “अब पहले पेट पूजा कर लेते हैं..." नीरव जानता था की वो उत्तरायण के दिन मुझे खाने के बारे में न कहे तो मैं मेरी तरफ से तो कभी याद नहीं करती थी।

मैं- “चलो...” कहते हुये मैंने डोरी लपेटना चालू किया और नीरव ने पतंग को नीचे उतारा।

खाना खाकर नीरव सोफे पर लेट गया और पेपर पढ़ने लगा, और मैं सिंगल सोफे पर बैठ गई। मैंने टीवी ओन किया। खाने में मैंने भेल बनाई थी, मीठी और तीखी चटनी अगले दिन बनाकर रखी थी।

तभी रामू काम पर आया। रामू के आते ही मैंने अपनी नजरें नीची कर लीं, क्योंकि रामू के मेरे संबध चालू हुये उसके बाद मैं पहली बार नीरव के साथ उसे हमारे घर में देख रही थी। रामू ने बर्तन तो तुरंत धो लिए क्योंकि हर रोज से आज कम थे। उसके बाद रामू झाडू लगाने लगा। मैंने टीवी देखते हुये चोरी छुपे उसपर नजर डाली।

वो मुझे घूरते हुये झाडू लगा रहा था और हमारी नजर मिलते ही वो मुझे इशारे करने लगता था।

वैसे तो नीरव लेटा हुवा था, इसलिए उसे कुछ दिखने वाला नहीं था। फिर भी मुझे डर लगने लगा की कहीं नीरव हमें देख न ले। मैंने उसकी तरफ देखकर आँखें निकली और इशारे से कहा- “ये क्या कर रहे हो?” और फिर मैंने उसके सामने देखना ही बंद कर दिया।

झाड़ लगाकर रामू बेडरूम के अंदर पोंछा लगाने गया और वो बहुत देर तक बाहर नहीं निकला तो मैंने रूम की तरफ देखा तो रामू रूम के दरवाजा के पास ही खड़ा था और जैसे ही मैंने उसके ऊपर नजर डाली तो वो हाथ से इशारे करके अंदर बुलाने लगा। मैंने उसपर से नजर हटा दी। पर थोड़ी देर तक वो वहां से नहीं आया।

तब मैंने नीरव से कहा- “अंदर पैसे बाहर पड़े हैं और रामू काम कर रहा है, मैं लेकर कपबोर्ड में रख देती हूँ..” कहते हुये मैंने टीवी का वाल्यूम बढ़ा दिया।
 
रामू ने मुझे सोफे पर से खड़े होते हुये देखा तो वो अंदर चला गया। मेरे अंदर जाते ही उसने मेरा हाथ पकड़कर उसकी चड्डी पर के उभरे भाग पर रखवा दिया। वहां हाथ रखते ही मुझे मालूम पड़ गया की वो चूत के अंदर जाने के लिए बिल्कुल तैयार है, और जो थोड़ी बहुत कमी थी वो मेरे हाथ के दबाव ने पूरी कर दी, उसका लण्ड झटके मारने लगा।

मैंने उसे शरारत से बिल्कुल धीमी आवाज में कहा- “कहीं ये तुम्हारी चड्डी फाड़कर बाहर न निकल जाए?”

रामू- “आपकी चूत उसे नहीं मिली तो वो क्या-क्या फाड़ देगा, वो तो मैं भी नहीं जानता। मेमसाब, आप साहेब को ऊपर भेज दो ना, मैं जल्दी-जल्दी कर लूंगा आप फिर ऊपर चली जाना...” रामू ने अपना मुँह मेरे मुँह के नजदीक लाकर कहा।

रामू के लण्ड को छूने के बाद मेरी वासना भी जाग गई थी, मेरी चूत रोने लगी थी और मुझसे कह रही थी

जब तक मुझे इंडे से मारोगे नहीं तब तक मैं चुप नहीं रहूंगी, रोती ही रहूंगी...”

मैंने रामू को धीमी आवाज में कहा- “मुझे छोड़ो और अपना काम जल्दी से निपटाओ, मैं कुछ करती हूँ..”

रामू- “सच ना?” कहते हुये रामू ने मेरा हाथ छोड़ दिया।

मैं कोई जवाब दिए बगैर बाहर निकल गई। मैं सोच रही थी क्यों नहीं करूंगी कुछ? अब तो मैं चुदासी बन चुकी हूँ, चुदवाने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ। मैं बाहर आकर नीरव के बाजू में थोड़ी जगह थी वहां बैठ गई और उसके बालों को सहलाने लगी। मैंने देखा की रामू अब अपना काम जल्दी से निपटा रहा था।

मैंने कहा- “नीरव मैं थक चुकी हैं, थोड़ी देर सोना चाहती हूँ। तुम जाओ, मैं बाद में आऊँगी...”

नीरव- “ओके, जैसी मेडम की मर्जी, सोना है तो सो जाओ..” नीरव ने कहा।
मैंने रामू की तरफ देखा, हमारी नजरें मिली तो वो अपने लण्ड को चड्डी में अडजेस्ट (वहां कुछ ज्यादा ही उभरा हुवा दिख रहा था) करने लगा जो देखकर मुझे हँसी आ रही थी पर मैंने दबा दी।

नीरव- “पर मेडम हम भी आपके साथ सो जाएंगे और जब आप ऊपर जाएंगी तभी हम ऊपर जाएंगे..." नीरव ने पहले शायद अपनी बात अधूरी छोड़ दी थी जो पूरी की।

नीरव की बात सुनते ही मेरा और रामू का चेहरा उतर गया और उसके बाद रामू काम निपटाकर निकल गया।

रामू को बाहर जाते देखकर नीरव बोला- “ये अभी घर में ही था?"

मैंने कहा- “हाँ, क्यों?”

नीरव- “मैंने उसके सामने तेरे साथ सोने की बात की, क्या सोचेगा मेरे बारे में?” नीरव ने कहा।

मैं कुछ बोली नहीं, सिर्फ मुश्कुराई की तेरे बारे में नहीं सोचेगा, मेरे बारे में सोचेगा की मेमसाब कब सोने आएंगी मेरे साथ? थोड़ी देर बाद मैंने नीरव से कहा- “चलो ऊपर चलते हैं, थकान तो कल भी उतर जाएगी, पतंग उड़ाने को कल नहीं मिलेगा..."

नीरव- “मुझे मालूम था कि थोड़ी ही देर में तुम ऐसा ही कहोगी.” नीरव ने कहा।
मैं- “क्यों ऐसा कहते हो?” मैंने पूछा।

नीरव- “वो तुम्हें पतंग का शौक इतना है ना, चलो अब छत पे चलते हैं..” नीरव ने कहा।

थोड़ी देर बाद नीरव के पतंग ने 3 पतंगें काट दिए थे, हमारी छत पर से सब थोड़ी-थोड़ी देर में- “कयपो छे..” की आवाज लगा रहे थे, सारे लोग पूरा एंजाय कर रहे थे। छत पर जितने लोग थे सबका ध्यान हम पर था और मेरा ध्यान रामू की तरफ था। मेरे तन, मन में वासना की आग लगी थी, मैं उसके नीचे पिसने के लिए तड़प रही थी, तभी मेरे दिमाग में एक खयाल आया।

मैंने मेरा मोबाइल निकाला और कान पे लगाकर- हेलो...” कहा। मैं चाहती थी कि नीरव देखे, पर वो अपनी मस्ती में मसगूल था तो मैंने और जोर-जोर से- “हेलो, हेलो...” कहा।
 
तब नीरव का ध्यान मेरी तरफ गया। उसने पूछा- “किसका है?”

मैं- “मेरी फ्रेंड का है...” कहकर मैंने फिरकी जमीन पर रखी और साइड में हो गई। थोड़ी देर तक मैं साइड में जाकर मेरे मोबाइल पे ऐसे ही बात करती रही और फिर मैंने नीरव के पास आकर फिरकी उठाकर कहा- “मेरी फ्रेंड का काल था, वो मुझे साड़ी देखने शाप पे बुला रही है, ना बोला तो उसे बुरा लग गया और काल काट दी तुम कहो तो मैं जाऊँ?”

नीरव- “आज के दिन कौन सी शाप खुली होगी?” नीरव ने पूछा तो मुझे लगा की गई भैंस पानी में।

तभी एक अंकल जो हमारी बात ध्यान से सुन रहे थे उन्होंने कहा- “कपड़े की दुकान त्योहार के दिन खुली रहती ही है, उनको आज ज्यादा ग्राहकी रहती है...”

अंकल की बात सुनकर नीरव ने लगभग चिढ़ते हुये कहा- “जाओ, जाकर आओ पर आधे घंटे में आ जाना, नहीं तो मैं नीचे उतर जाऊँगा और आज तो फिर ऊपर नहीं आऊँगा...”

मैंने जिस अंकल ने हमारी बात सुनकर बीच में बोला था, उन्हीं के हाथ में फिरकी पकड़ा दी और छत से नीचे उतरने लगी। छत से बाहर निकलते हुये मैंने पीछे मुड़कर नीरव पे नजर डाली, तो नीरव घड़ी देख रहा था। मैंने मुँह फेर लिया और में 8वें फ्लोर पे आई लिफ्ट के लिए (हमारी बिल्डिंग 8 फ्लोर की है) तो मैंने देखा की लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पे थी। मैं सीढ़ियां उतरने लगी, क्योंकि मैं लिफ्ट खीचें और अंदर बैठें तब तक तो नीचे भी पहुँच । जाऊँगी। मैंने जीन्स पहना था इसलिए जल्दी-जल्दी सीढ़ी उतर नहीं पा रही थी, ऊपर टाप पहना था और अंदर से ऊपर-नीचे दोनों जगहें नंगी थी।

मैंने सोचा था की मैं रामू को घर पे बुला लँगी पर जिस तरह से मैंने नीरव को समय चेक करते देखा, मुझे डर लगा की कहीं वो सच में 30 मिनट में नीचे आ न धमके। मैं जहां तक जानती थी कि जब वो एक बार पतंग चढ़ाना चालू करे उसके बाद वो नीचे आने वाला नहीं था। पर आज मुझे किसी तरह का रिस्क लेना ठीक नहीं लग रहा था।

मुझे अब रामू के रूम में जाना था। मुझे याद आया की रामू चाहे कितनी भी देर कर दे तो भी मैं कभी उसे काम के लिए बुलाने उसके रूम के पास भी नहीं जाती थी, पर आज मैं हर रोज से अलग किश्म के काम के लिए उसके पास जा रही थी। आज तो मैं उसके रूम के अंदर जाकर उसके साथ सोने वाली थी। मैंने रामू के रूम में जाकर धीरे से दरवाजा खटखटाया।

अंदर से रामू की आवाज आई- “आ जाओ मेमसाब, दरवाजा खुला है...”

मैं दरवाजा खोलकर अंदर गई, वो खटिया पे सिर्फ चड्डी में लेटा हुवा था। मैंने दरवाजा भिड़ाकर स्टापर लगाई और मैंने चौतरफा रूम में नजर घुमाई, एक खटिया, ऊपर पुराना पंखा जो किचुड़-किचुड़ की आवाज के साथ चल रहा था, एक तरफ पुरानी ट्यूबलाइट लगाई हुई थी जो कम उजाले के करण इस वक़्त भी जल रही थी, एक
लोकांड की बैग, पानी की मटकी, बीच में एक डोरी बँधी हुई थी जिस पर कुछ कपड़े लटके हुये थे, बाल्टी, टब और साबुन चौकड़ी बनाई हुई थी वहां थे, और कुछ बरतन और स्टोव भी थी, दीवालों पे पानी जम रहा था और कहीं-कहीं तो प्लास्टर निकल गया था और पूरे रूम में उजाला और हवा के लिए ऊपर एक रोशनदान ही था, रूम की हवा में अलग प्रकार की बदबू आ रही थी, जिसे मैंने दो बार बाहर सांसे निकालकर कम की। मैं रामू के पास
गई।

रामू ने मेरे हाथ को पकड़कर मुझे खींचा और बोला- “मैं जानता था कि आप जरूर आएंगी...”

मैं उसके बाजू में खटिया पे बैठ गई और उसके सीने को सहलाने लगी। रामू मेरे होंठों को उंगली से सहलाने लगा। मैंने मुँह खोला तो उसने मेरे मुँह में उंगली डाल दी। मैंने पहले तो उंगली को काट लिया और फिर उसे । चूसने लगी। मैंने उसकी चड्डी में हाथ डाल दिया और उसके लण्ड को पकड़ लिया। रामू ने मेरे टाप में हाथ डाल दिया और मेरी नंगी चूचियां पकड़कर धीरे-धीरे दबाते हुये सहलाना शुरू कर दिया। मैंने उसके लण्ड के सुपाड़े को पकड़कर जोर से नाखून मारा तो रामू के मुँह से सिसकारी निकल गई और उस वक़्त उसने मेरी चूची जोर से दबा डाली जिससे मैं दर्द से सीत्कार उठी।
 
मैं- “रामू समय कम है थोड़ा जल्दी करना है...” मैंने सुपाड़े पे जो छेद होता है उस पर उंगली से दबाव डालते हुये कहा।

मेरी बात सुनकर रामू ने मेरी निप्पल को दो उंगली के बीच लेकर दबाते हुये कहा- “मेमसाब, साहब ने कभी आपको खड़े-खड़े चोदा है?”

मैं क्या बोलूं? उसे ये तो नहीं बता सकती थी की साहब खड़े-खड़े क्या लेटकर भी नहीं चोदते, मैंने मेरा सिर हिलाकर 'ना' बोला।

राम्- “तो जल्दी से मेमसाब आप अपने कपड़े निकालिये और वो दीवार से सटकर खड़ी हो जाइए..." रामू ने उठते हुये कहा।

मैं भी खड़ी हो गई और मेरी टाप मैंने निकाल दी। रामू मुझे ही देख रहा था, उसकी चड्डी निकालने में उसे कहां वक़्त लगने वाला था। मैंने मेरी जीन्स का बटन और चैन खोला।

जैसे मैं जीन्स नीचे करने गई तो रामू ने मुझे रोक लिया- “बस इतना ही मेमसाब..” और उसने मुझे दीवार से सटा दिया और झुक कर मेरी चूचियों को चूसने लगा।

मेरे बदन में वासना की आग और भड़क उठी और मैं उसके बालों को सहलाने लगी। बीच-बीच में रामू मेरी । निप्पलों को धीरे से काट लेता था, जिससे मैं और मचल उठती थी। साथ में रामू ने उसका हाथ मेरी जीन्स के अंदर डालकर मेरी चूत को उसकी उंगली से सहलाना चालू कर दिया। मैंने भी फिर से मेरा हाथ उसकी चड्डी में सरका दिया और उसके लण्ड से खेलने लगी। रामू ने अब मेरी चूचियो को छोड़ दिया, और मेरे सामने देखा तो मैंने मुश्कुरा दिया। वो मुझे किस करने लगा, और साथ में मेरी चूत में उंगली से दबाव बढ़ाने लगा। मैंने भी मेरा हाथ थोड़ा और नीचे किया और उसके टट्टे पकड़ लिए, जिससे रामू का लण्ड झटके मारने लगा।

रामू मेरे दोनों होंठों को बारी-बारी चूस रहा था और साथ में कभी कभार अपनी जबान बाहर निकालकर होंठों को चाट भी लेता था। रामू ने मेरी जीन्स को थोड़ा नीचे किया और फिर उसने अपने पैर को ऊपर करके जीन्स को मेरे घुटने तक कर दिया। मैंने भी मेरी उंगलियां उसकी चड्डी में फँसाई, थोड़ी नीचे सरकी तो मेरे पैर की उंगलियों से पकड़कर नीचे कर दी।

रामू ने झुक के मेरी नाभि पे पप्पी ले ली और झुक के मेरी चूत पे एक और पप्पी ली।

मैं सिहर उठी, मेरी चूत में से पानी बहने लगा तभी मुझे समय का खयाल आया। मैंने कहा- “ये मत करो रामू, समय नहीं है हमारे पास...”
 
रामू ने झुक के मेरी नाभि पे पप्पी ले ली और झुक के मेरी चूत पे एक और पप्पी ली।

मैं सिहर उठी, मेरी चूत में से पानी बहने लगा तभी मुझे समय का खयाल आया। मैंने कहा- “ये मत करो रामू, समय नहीं है हमारे पास...”

रामू कुछ बोले बगैर खड़ा हो गया पर उसका चेहरा ऐसे हो गया था, मानो मैंने उसके पास से कुछ खींच लिया हो। रामू मेरी चूत पर लण्ड रगड़ने लगा। उसने फिर से मुझे किस करना शुरू कर दिया इस बार मैं भी उसके होंठों को चूसने लगी थी।

रामू- “एक मिनट मेमसाब...” कहते हुये रामू मुझसे अलग हुवा और खटिया खींचकर मेरी दाईं तरफ रख दी, रामू ने मेरी एक टांग उठाई और खटिया के ऊपर रखवा दी, जिससे मुझे अहसास हुवा की मेरी चूत ज्यादा फैल गई होगी। अब रामू ने अपना लण्ड मेरी चूत पे टिकाया और एक ही झटके में पूरा अंदर घुसेड़ दिया।

मैं चीखते-चीखते रह गई और फिर थोड़ा संभल के उसे चिकोटी काट ली- “इतनी जोर से कोई डालता है क्या?”

रामू- “जन्नत में जाने को मिल रहा हो तब धीरे-धीरे जाने वाला चूतिया होता है...” और रामू ने लण्ड को आगेपीछे करना शुरू कर दिया था।

अब रामू ने फिर से मुझे किस करना शुरू कर दिया था और साथ में मैंने भी। उसकी छाती से मेरी चूचियां दब रही थीं। उसके हर फटके के साथ मेरी गाण्ड दीवार से सट जाती थी और मैं फिर से आगे लेती थी, तो वो फिर फटका मारता था और मेरी गाण्ड फिर से दीवार से सट जाती थी। रामू ने अपनी जबान बाहर निकाली और मैंने वो होंठों के बीच ले ली और चूसने लगी। रामू के लण्ड की सख्ती बढ़ गई। रामू के मुँह से थूक मेरे मुँह में आ रहा था।

मैंने भी अपनी जबान बाहर निकाली और उसकी जबान से लड़ाने लगी। खटिया पे जो मेरा पैर था वो अब दर्द करने लगा था। रामू ने अपने हाथ से मेरी कमर पकड़ी ना होती तो शायद में बैठ जाती, रामू के हर फटके के साथ मैं अब सिसकने लगी थी। रामू भी जोर से आहें भर रहा था, उसके शरीर से पशीना पानी की तरह बह रहा था, जिससे वो मेरे बदन पे चिपक जाता था और साथ में मेरा बदन उसके पसीने से गीला हो रहा था, फर्श भी उसके पसीने से गीली हो गई थी।

रामू मेरी जबान को जैसे ही अपनी जबान से लड़ाने लगा तो मैंने मेरी जबान को अंदर खींच लिया। तब उसने भी मेरे मुँह में उसकी जबान डाल दी और हम एक दूसरे की जबान से जबान घिसने लगे। फिर रामू ने वही किया जो मैंने किया था। इस बार मैंने अपनी जबान उसके मुँह में डाल दी, फिर तो हमें इस खेल में मजा आने लगा। बारी-बारी हम दोनों एक दूसरे के मुँह में जबान डालकर जबान लड़ाते रहे। रामू ने उसकी स्पीड बढ़ा दी थी, वो तेजी से मेरी चुदाई कर रहा था। हमारी सांसें फूल रही थी, मुझे लग रहा था की पतंग की जगह, मैं आसमान में उड़ रही हूँ।
 
तभी मोबाइल में रिंग बाजी, मोबाइल जीन्स के पाकेट में थी और वो दिख रहा था। रामू ने झुक के मोबाइल लिया और मेरे हाथ में दे दिया, और फिर से चुदाई में जुट गया। मैंने स्क्रीन पे नजर डाली तो नीरव की काल
थी। मैं डर गई, पूरी रिंग खतम हो गई पर मैंने काल नहीं लिया। चंद सेकेंड में तुरंत रिंग बजने लगी। इस बार मुझे अलग डर लगने लगा की ये रिंग की आवाज रूम के बाहर भी जाती होगी तो कोई सुन भी सकता है और किसी का ध्यान रूम की तरफ जा सकता है।

मैंने काल उठाई और कहा- “मैं आ रही हूँ 5 मिनट में..” इतना कहकर नीरव कुछ समझे सोचे उसके पहले काल काट दी, और रामू को कहा- “जल्दी कर..."

मेरी बात सुनकर रामू ने एक हाथ कमर से हटाकर मेरी चूचियां पकड़ ली और उसे दबाने लगा और दूसरा हाथ कमर से चूतड़ों तक नीचे किया और मेरे चूतड़ों को पकड़कर एक उंगली गाण्ड में डाल दी और गाण्ड को चोदने लगा। रामू अब मुझे दोनों तरफ से चोदने लगा। चूत को लण्ड से, गाण्ड को उंगली से, साथ में दूसरे हाथ से । चूचियां दबा रहा था और ऊपर हम एक दूसरे को किस करते हुये जबान लड़ा रहे थे। मेरी उत्तेजना अब चरम सीमा पे पहुँच गई थी, और शायद रामू भी ये सब एक साथ इसलिए कर रहा था की वो भी जल्दी झड़ना चाहता था और थोड़ी ही देर बाद वही हुवा जो हर रोज होता था।

आज फर्क इतना पड़ा की मैं और रामू एक साथ झड़े। झड़ते हुये रामू का वीर्य छूटा जो मेरी चूत में गया और रामू के लण्ड बाहर निकालने के बाद नीचे टपकने लगा, जिससे मेरी जीन्स खराब हो गई।

रामू के हटते ही मैं खटिया में लेट गई, मेरे पाँव में जो दर्द हो रहा था उसे तब थोड़ा आराम मिला, रामू भी फर्श पे बैठ गया था। थोड़ी देर बाद मैं उठी और डोरी पर से एक कपड़ा लिया और उससे जीन्स पर पड़ा वीर्य पुंछा ।

और बाद में जीन्स के पाकेट में से रुमाल निकालकर शरीर को पोंछना चालू किया। पर उससे इतना पशीना कहां पोंछने वाला था। रामू खड़ा हवा और डोरी पर से तौलिया लेकर मेरा बदन पोंछने लगा। बाद में मैंने जल्दी सेकपड़े पहने और फिर रूम में से बाहर निकल गई।
 
रामू के हटते ही मैं खटिया में लेट गई, मेरे पाँव में जो दर्द हो रहा था उसे तब थोड़ा आराम मिला, रामू भी फर्श पे बैठ गया था। थोड़ी देर बाद मैं उठी और डोरी पर से एक कपड़ा लिया और उससे जीन्स पर पड़ा वीर्य पुंछा ।
और बाद में जीन्स के पाकेट में से रुमाल निकालकर शरीर को पोंछना चालू किया। पर उससे इतना पशीना कहां पोंछने वाला था। रामू खड़ा हवा और डोरी पर से तौलिया लेकर मेरा बदन पोंछने लगा। बाद में मैंने जल्दी सेकपड़े पहने और फिर रूम में से बाहर निकल गई।

पहले मैं घर गई, मुँह धोया और टाप बदली, हल्का सा मेकप किया, बाल बनाकर छत पे जाने के लिए तैयार हो गई।

छत पर नीरव के पास पहुँचते ही नीरव ने मुझसे कहा- “12 मिनट लेट हो गई निशु तुम...”

मैं- “वो तुम्हारे कारण...” मैंने अंकल के हाथ से फिरकी लेते हुये कहा।

नीरव- “मेरे कारण, मैंने क्या किया?” नीरव ने चौंकते हुये पूछा।

मैं जब छत पे आ रही थी तब मुझे खयाल आया की मुझे जीन्स बदलना था और जल्दी-जल्दी में मैंने टाप बदल लिया। पहले तो मैंने सोचा की वापस जाकर बदल लेती हूँ, पर तभी मेरे दिमाग में ये खयाल आया की मैं नीरव पे ही सारा दोष थोप देती हूँ तो वो और किसी भी बात पे सवाल नहीं करेगा।

मैं- “तुम्हारा मोबाइल आया तब मैं वापस ही आ रही थी, मैंने अक्टिवा चलाते हुये मोबाइल निकाला और तुमसे बात करके जैसे ही काटा तभी बीच में कुत्ता आ गया, एक हाथ से चला रही थी तो बेलेंस नहीं रहा और स्लिप हो गई..” मैंने कहा।

नीरव- “कहीं लगा तो नहीं ना?” नीरव ने पूछा।

मैं- “लगा तो नहीं, पर कपड़े खराब हो गये, टाप ज्यादा बिगड़ गया था तो बदलकर भी आई..” मैंने कहा।

नीरव- “सारी, पर तुम्हें अक्टिवा रोक के मोबाइल निकालना चाहिए ना..." नीरव ने कहा।

मैं- “कैसे रोकती, तुमने जल्दी आने को कहा था ना...” मैंने प्यार जताते हुये कहा।

नीरव- “लगा नहीं इसलिए टेन्शन नहीं, तुम्हें पतंग चढ़ाना है?" नीरव ने पूछा।

मैं- “नहीं, मैं फिरकी पकड़ती हूँ..” मैंने कहा। मैंने नीरव से जो बहाना निकाला उससे ये हुवा की नीरव ने मुझे और कुछ पूछा ही नहीं, नहीं तो न जाने क्या-क्या पूछता, इतनी देर क्यों हुई? वो तुम्हारी फ्रेंड कौन थी? साड़ी पसंद आई की नहीं? कौन सी शाप से ली और भी कितने सवाल पूछता।।

तभी आवाज आई- “कयपो छे..." तो मैंने आसमान के तरफ नजर की।

हवा अच्छी थी जिसकी वजह से पतंग उड़ाने वालों को मजा आ रहा था। मुझे पप्पू का खयाल आया तो मैंने बाजू की छत की पानी की टंकी पे नजर डाली कि पप्पू कहीं दिख रहा है की नहीं? वो नहीं था, शायद वो चला गया होगा।

मैंने फिर से ऊपर हमारी पतंग की तरफ देखते हुये नीरव को पूछा- “मैं गई उसके बाद कितनी पतंग काटी नीरव.."

नीरव- “6 पतंग काटी, एक हमारी भी गई...” नीरव ने कहा।

तभी मेरा ध्यान पप्पू की तरफ गया, वो फिर से टंकी पे आकर बैठा हुवा था। उसका ध्यान मुझ पर ही था, मैं उसे देखकर मुश्कुराई तो वो भी मुश्कुराया। वो सच में बहुत ही क्यूट था, कोई सिर्फ उसका चेहरा देखकर उसे लड़की भी समझ सकता है, इतना क्यूट था वो।

मैंने नीरव से कहा- “वो पप्पू बेचारा उसके मामू की वजह से ऐसे ही बैठा है, तुम उसके मामा को कहो की उसे पतंग उड़ाने दे...”

नीरव- “सही बात है निशु तुम्हारी, कहता हूँ..” इतना कहकर नीरव ने पप्पू को कहा- “तेरे मामा को बुला...”
 
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