desiaks
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तभी बाहर शोर सुनाई दिया। मैंने गैलरी में जाकर देखा तो कुछ लोग हाथ में छोटे-मोटे हथियार लेकर रामू के रूम की तरफ जा रहे थे।
हमारे अपार्टमेंट के ज्यादातर लोग अपनी-अपनी गैलरी में खड़े देख रहे थे, जिसमें से एक भाई ने पूछा- “कौन हो।
और यहां क्या लेने आए हो?”
तुम्हारे चौकीदार ने हमारी गली के संतू (कान्ता का पति) को मार डाला है, हम उसे ढूँढ़ने आए हैं." उन लोगों में से एक आदमी आगे आकर बोला।
रामू ने कतल कर दिया है, ये सुनकर मेरा दिल डर के मारे बैठ गया। मैं उन लोगों की बात तो सुनना चाहती थी, पर साथ में डर भी था की कहीं कोई मुझे पहचान लेगा तो? उन लोगों में से कुछ तो ऐसे लोग होंगे ही, जो शाम से ये सारा माजरा देख रहे होंगे और वो मुझे पहचान सकते हैं। मैं गैलरी में नीचे बैठ गई और उनकी बातें सुनने लगी।
तभी वोही भाई की आवाज आई- “अरे भाई, हम भी उससे परेशान थे, और वो यहां नहीं है ये मुझे मालूम है।
और तुम्हारे हाथ में आएगा तो भी तुम कुछ नहीं कर सकोगे, वो दस-दस लोगों पर भारी पड़ सकता है। इससे तो अच्छा ये है की तुम पोलिस में जाकर शिकायत करो...”
उस भाई की बात सबके भेजे में उतर गई और- “चलो पोलिस स्टेशन, चलो, चलो...” करते हुये सब निकल गये।
थोड़ी देर बाद आवाज आना बंद हुवा तो मैं उठने गई तो मेरे पैर लड़खड़ा गये। मैंने गैलरी की दोनों साइड की दीवार का सहारा लिया और धीरे-धीरे अंदर गई। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। मैंने जब से सुना था की रामू ने संतू को मार डाला है, तब से मुझे ऐसा लग रहा था की रामू ने संतू को नहीं नीरव को मार डाला है। मैंने जाकर दरवाजे के ताले को चेक किया और टीवी आफ करके आँखें बंद करके सोफे पर लेट गई।
नीरव आया तब मैंने उससे- “कौन है?" ये पूछकर दरवाजा खोला, और नीरव को देखते ही मैं उसे बाहों में लेकर रोने लगी। मैंने हिचकियां लेते हुये कहा- “नीरव, रामू ने मर्डर कर दिया है."
नीरव- “पर, उसमें तुम इतना क्यों रो रही हो?” नीरव ने मेरे आँसू पोंछते हुये कहा।
क्या बताऊँ मैं नीरव को और कैसे बताऊँ की जिस बात के लिए रामू ने संतू को मार दिया है उसी बात के लिए वो नीरव को भी मार सकता था। जिस बात के लिए आज कान्ता जिम्मेदार है उसी बात के लिए मैं जिम्मेदार होती। वासना की आग में मैं भूल गई थी की रामू कितना खतरनाक इंसान है, और वो उसके रास्ते में आए किसी भी इंसान को मार भी सकता है। ये सब सोचते हुये मैं और रोने लगी।
नीरव- “अरे पगली तू ये सोच रही है ना की तुम घर में अकेली होती थी, तब वो काम करने आता था और तब तुझे मारकर चला गया होता तो? ये सोचकर रो रही है ना? जो नहीं हवा वो सोचकर रोने से क्या फायदा? उसने तुम्हें कुछ नहीं किया वोही बहुत है हमारे लिए...”
इतना कहकर नीरव मेरे कंधों को सहलाते मुझे सांत्वना देने लगा।
मैं क्या बोलू, ये तो नहीं बोल सकती थी ना की- “आज जो हुवा है वो हमारे साथ भी हो सकता था...”
हमारे अपार्टमेंट के ज्यादातर लोग अपनी-अपनी गैलरी में खड़े देख रहे थे, जिसमें से एक भाई ने पूछा- “कौन हो।
और यहां क्या लेने आए हो?”
तुम्हारे चौकीदार ने हमारी गली के संतू (कान्ता का पति) को मार डाला है, हम उसे ढूँढ़ने आए हैं." उन लोगों में से एक आदमी आगे आकर बोला।
रामू ने कतल कर दिया है, ये सुनकर मेरा दिल डर के मारे बैठ गया। मैं उन लोगों की बात तो सुनना चाहती थी, पर साथ में डर भी था की कहीं कोई मुझे पहचान लेगा तो? उन लोगों में से कुछ तो ऐसे लोग होंगे ही, जो शाम से ये सारा माजरा देख रहे होंगे और वो मुझे पहचान सकते हैं। मैं गैलरी में नीचे बैठ गई और उनकी बातें सुनने लगी।
तभी वोही भाई की आवाज आई- “अरे भाई, हम भी उससे परेशान थे, और वो यहां नहीं है ये मुझे मालूम है।
और तुम्हारे हाथ में आएगा तो भी तुम कुछ नहीं कर सकोगे, वो दस-दस लोगों पर भारी पड़ सकता है। इससे तो अच्छा ये है की तुम पोलिस में जाकर शिकायत करो...”
उस भाई की बात सबके भेजे में उतर गई और- “चलो पोलिस स्टेशन, चलो, चलो...” करते हुये सब निकल गये।
थोड़ी देर बाद आवाज आना बंद हुवा तो मैं उठने गई तो मेरे पैर लड़खड़ा गये। मैंने गैलरी की दोनों साइड की दीवार का सहारा लिया और धीरे-धीरे अंदर गई। मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। मैंने जब से सुना था की रामू ने संतू को मार डाला है, तब से मुझे ऐसा लग रहा था की रामू ने संतू को नहीं नीरव को मार डाला है। मैंने जाकर दरवाजे के ताले को चेक किया और टीवी आफ करके आँखें बंद करके सोफे पर लेट गई।
नीरव आया तब मैंने उससे- “कौन है?" ये पूछकर दरवाजा खोला, और नीरव को देखते ही मैं उसे बाहों में लेकर रोने लगी। मैंने हिचकियां लेते हुये कहा- “नीरव, रामू ने मर्डर कर दिया है."
नीरव- “पर, उसमें तुम इतना क्यों रो रही हो?” नीरव ने मेरे आँसू पोंछते हुये कहा।
क्या बताऊँ मैं नीरव को और कैसे बताऊँ की जिस बात के लिए रामू ने संतू को मार दिया है उसी बात के लिए वो नीरव को भी मार सकता था। जिस बात के लिए आज कान्ता जिम्मेदार है उसी बात के लिए मैं जिम्मेदार होती। वासना की आग में मैं भूल गई थी की रामू कितना खतरनाक इंसान है, और वो उसके रास्ते में आए किसी भी इंसान को मार भी सकता है। ये सब सोचते हुये मैं और रोने लगी।
नीरव- “अरे पगली तू ये सोच रही है ना की तुम घर में अकेली होती थी, तब वो काम करने आता था और तब तुझे मारकर चला गया होता तो? ये सोचकर रो रही है ना? जो नहीं हवा वो सोचकर रोने से क्या फायदा? उसने तुम्हें कुछ नहीं किया वोही बहुत है हमारे लिए...”
इतना कहकर नीरव मेरे कंधों को सहलाते मुझे सांत्वना देने लगा।
मैं क्या बोलू, ये तो नहीं बोल सकती थी ना की- “आज जो हुवा है वो हमारे साथ भी हो सकता था...”