desiaks
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दीदी की बात सुनकर मुझे निराशा हुई। वो अपनी मर्जी से जीजू को मुझे चोदने की छूट नहीं दे रही थी, वो । मजबूरी में कह रही थी। जीजू कुछ बोले बगैर दीदी को जोरों से चोदने लगे। मेरा दिमाग दीदी की बातों के बारे में सोच रहा था, जिससे मेरे बदन की तपिस गायब हो चुकी थी।
दीदी के मुँह से धीरे-धीरे सिसकारी न निकल रही होती तो वो एक लाश ही लगती, न उन्होंने अपने पैरों को। ज्यादा चौड़ा किया था, ना उन्होंने जीजू का टी-शर्ट निकलवाया था, एक बार भी उन्होंने जीजू को सामने से किस नहीं किया था। वो दोनों हाथों को फैलाए चुदवा रही थी। थोड़ी ही देर में दोनों झड़ गये और मैं बिस्तर पे जाकर लेट गई। सुबह मैं और दीदी किचन में काम कर रहे थे। मैं सब्जी बना रही थी और दीदी आंटा गूंध रही थी।
तभी जीजू की आवाज आई- “मीना अंदर आना, मेरे शर्ट का बटन टूटा हुवा है...”
दीदी- “निशा, जाओ तुम लगा आओ...” दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा।
मैं- “आप जाओ...” मैंने कंधे उचकाते हुये कहा।
दीदी- “मेरे हाथ अच्छे नहीं है, अनिल को देरी हो रही होगी, तुम जाओ...” दीदी ने उनके हाथ को थोड़ा ऊपर करके कहा।
मैं- “सूई और धागा?”
दीदी- “अनिल, सूई और धागे का डिब्बा निकालकर रखना, निशा जा रही है...”
मैं बेडरूम में गई, जीजू ने मेरे हाथों में शर्ट और डिब्बा थमा दिया, और पैंट पहनने लगे। मैं सूई में धागा पिरोकर बटन लगाने लगी। बार-बार मेरा ध्यान जीजू के चौड़े सीने पे जा रहा था, मन करता था की मैं वहां सिर रखकर सो जाऊँ।
जीजू- “कल रात देखा था?” जीजू पैंट पहनकर मेरे बाजू में बैठते हुये फुसफुसाए।
मैं- “क्यों आपने मुझे नहीं देखा था?” तबत क बटन लग गया था तो मैंने शर्ट जीजू को दिया।
जीजू- “मैंने खिड़की की तरफ देखा ही नहीं था, डर रहा था की कहीं तेरी दीदी को मालूम पड़ गया तो हंगामा करेगी। लेकिन अब कोई टेन्शन नहीं। अब तो वो खुद चाहती है की मैं तुझे चोदूं...” दबी आवाज में बात करतेकरते जीजू शर्ट पहनकर कह रहे थे।
मैं- “दीदी मन से नहीं, मजबूरी से कह रही हैं..” मैंने कहा।
जीजू- “जैसे भी कहा, पर हाँ तो कहा ना... और तुमने भी तो उस दिन कहा था...” जीजू शायद ये समझ रहे थे। की मेरी भी इच्छा नहीं है।
दीदी के मुँह से धीरे-धीरे सिसकारी न निकल रही होती तो वो एक लाश ही लगती, न उन्होंने अपने पैरों को। ज्यादा चौड़ा किया था, ना उन्होंने जीजू का टी-शर्ट निकलवाया था, एक बार भी उन्होंने जीजू को सामने से किस नहीं किया था। वो दोनों हाथों को फैलाए चुदवा रही थी। थोड़ी ही देर में दोनों झड़ गये और मैं बिस्तर पे जाकर लेट गई। सुबह मैं और दीदी किचन में काम कर रहे थे। मैं सब्जी बना रही थी और दीदी आंटा गूंध रही थी।
तभी जीजू की आवाज आई- “मीना अंदर आना, मेरे शर्ट का बटन टूटा हुवा है...”
दीदी- “निशा, जाओ तुम लगा आओ...” दीदी ने मेरी तरफ देखकर कहा।
मैं- “आप जाओ...” मैंने कंधे उचकाते हुये कहा।
दीदी- “मेरे हाथ अच्छे नहीं है, अनिल को देरी हो रही होगी, तुम जाओ...” दीदी ने उनके हाथ को थोड़ा ऊपर करके कहा।
मैं- “सूई और धागा?”
दीदी- “अनिल, सूई और धागे का डिब्बा निकालकर रखना, निशा जा रही है...”
मैं बेडरूम में गई, जीजू ने मेरे हाथों में शर्ट और डिब्बा थमा दिया, और पैंट पहनने लगे। मैं सूई में धागा पिरोकर बटन लगाने लगी। बार-बार मेरा ध्यान जीजू के चौड़े सीने पे जा रहा था, मन करता था की मैं वहां सिर रखकर सो जाऊँ।
जीजू- “कल रात देखा था?” जीजू पैंट पहनकर मेरे बाजू में बैठते हुये फुसफुसाए।
मैं- “क्यों आपने मुझे नहीं देखा था?” तबत क बटन लग गया था तो मैंने शर्ट जीजू को दिया।
जीजू- “मैंने खिड़की की तरफ देखा ही नहीं था, डर रहा था की कहीं तेरी दीदी को मालूम पड़ गया तो हंगामा करेगी। लेकिन अब कोई टेन्शन नहीं। अब तो वो खुद चाहती है की मैं तुझे चोदूं...” दबी आवाज में बात करतेकरते जीजू शर्ट पहनकर कह रहे थे।
मैं- “दीदी मन से नहीं, मजबूरी से कह रही हैं..” मैंने कहा।
जीजू- “जैसे भी कहा, पर हाँ तो कहा ना... और तुमने भी तो उस दिन कहा था...” जीजू शायद ये समझ रहे थे। की मेरी भी इच्छा नहीं है।