Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 16 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

मैं- “ये क्या कर रहे हो? जाओ यहां से...” मैंने कहा।

वाह री मेडम, रेंट तो वसूल करने दो...” उसने दूसरे हाथ को पीछे किया और मेरी गाण्ड को सहलाया।

मैं- “छोड़, नहीं तो मैं चिल्लाऊँगी..” मैंने धमकी दी।

चिल्लाओ, मैं सबको बताऊँगा की इस लड़की ने रूम गलत बोलकर चाभी ली थी और बाजू के रूम में झांक रही थी, तो मैंने उसे पकड़ा तो ये चिल्ला रही है...” उसने इतना कहा और थोड़ा रुक के मुझे आदेश दिया- “चल नीचे उतरकर कपड़े निकाल...”

मैं- “मुझे देखना है कि वो लोग क्या कर रहे हैं प्लीज़..” मैंने कहा।

मैं तुम्हें करके दिखाता हूँ ना...” उसने फिर से अपने गंदे दांत दिखाते हुये हँसकर कहा।

मैं- “थोड़ी देर ठहर जाओ ना...” मैंने उसकी बात मानते हुये कहा और वो तो मेरी हाँ है ये जानकर पागल हो। गया।

“मैं दूसरा टेबल लेकर आता हूँ, तेरे पीछे खड़ा हो जाऊँगा, तुम अंदर का देखना, और मैं यहां पे करूँगा..." इतना कहकर वो बाहर निकल गया।

मैंने अंतिम बार अंदर नजर डाली, खुशबू अब चुदवा रही थी। मैंने मेरा मोबाइल उठाया और टेबल से नीचे उतरकर रूम से बाहर निकल गई। वो आदमी अभी टेबल लेकर आता दिखाई नहीं दे रहा था। मैं फटाफट सीढ़ियां उतरकर होटेल में से बाहर निकलकर आटो में बैठ गई। घर पहुँचते ही मैं आटो से उतरी और आटो वाले को पैसे देकर निकल ही रही थी की कहीं से अब्दुल आ गया।

अब्दुल ने कहा- “एक दिन निकल गया लड़की, अब एक ही दिन है तेरे हाथ में, मेरे नीचे सोने के लिए आ जा, नहीं तो तेरी अम्मी की इज्ज़त की नीलामी कर दूंगा..."

मैं उसके मुँह पे थूकना चाहती थी और कहना चाहती थी- “हरामी तू दूसरों की बेटियों को चोदने के लिए ढूँढ़ रहा है, वहां तेरी बेटी चुदा रही है...” लेकिन मैं कुछ बोले बगैर आगे निकल गई, वो हरामी मुझे तब तक घूरता रहा जब तक मैं लिफ्ट में न बैठ गई।

मैं मन में- “साला कुत्ता, मेरी मम्मी को चोदता था, आज उसकी बेटी चुदवा रही है, जैसी करनी वैसी भरनी...” मैं लिफ्ट के अंदर दाखिल हुई और मैंने धीरे से बोलकर मेरी भड़ास निकाली। वो मुझे ब्लैकमेल कर रहा है मेरी मम्मी के नाम पे, क्या करूं मैं? सोचती हुई लिफ्ट में से बाहर निकली और घर में दाखिल हुई।

मम्मी- “आ गई बेटा...” मम्मी ने स्वागत किया।

मैं- “मम्मी, मैं खाकर आई हूँ..” इतना कहकर मैं कुर्सी पे बैठ गई। मम्मी को देखकर मेरे दिमाग में फिर से अब्दुल आ गया। मुझे अब हर हाल में उसके नीचे सोना ही था, नहीं सोऊँगी तो अब्दुल जो कह रहा है वो करेगा तो मम्मी-पापा सच में मर जाएंगे।
 
वैसे अब्दुल, रामू, और अंकल से तो दिखने में काफी अच्छा था, उसकी उमर अंकल से कम थी और रामू से । बेहतर था दिखने में। आप सोचेंगे की मैं उन दोनों से चुदवा सकती हूँ तो मुझे अब्दुल से क्या प्राब्लम है? मुझे प्राब्लम है उसके रवैए से, वो सेक्स को खरीदने और छीन लेने की चीज समझता है। मेरी मम्मी को उसने पैसे का लालच देकर चोदा, और अब मुझे धमकाकर चोदना चाहता है। पर देखो उसकी करनी का फल की उसकी बेटी भी चुदवा रही है उसकी ही उमर के आदमी से।

मैंने उन दोनों की क्लिप भी बना ली है, आने दो खुशबू को वो क्लिप दिखाकर पूछती हूँ- “ये क्या है?"

क्लिप का खयाल आते ही मेरे दिमाग में एक बात आई की मुझे ये क्लिप खुशबू को नहीं अब्दुल को दिखानी चाहिए और कह देना चाहिए- “तुमने अगर मेरी मम्मी को बदनाम करने की कोशिश की तो मैं ये क्लिप सबको दिखा देंगी.” हाँ यही ठीक रहेगा। थोड़ी हिम्मत करनी पड़ेगी और मुझे उससे चुदवाना भी नहीं पड़ेगा।
*

रात के दस बजे थे, मम्मी-पापा चाचा के घर गये थे और मैं गहरी सोच में डूबी हुई थी। दो दिन पहले मैं पप्पू से खुशबू को बचाना चाहती थी, और आज उल्टा हो गया था, अब मुझे खुशबू के जाल में से पप्पू को निकालना जरूरी लग रहा था। मैं कब से पप्पू की राह देख रही थी कि वो कब मिले और उसे मैं खुशबू की क्लिप दिखाऊँ। यही सोच रही थी मैं।

“दीदी...” आवाज सुनकर मैं चौंक उठी और सोच में से बाहर निकलकर देखा तो खुशबू थी। मैं उसके भोले भाले चेहरे को ध्यान से देखने लगी की कहीं कोई पाप, कपट या दाग दिख रहा है की नहीं?

खुशबू- “क्या सोच रही हो दीदी?” वो फिर से बोली।

मैं- “तेरे इस चेहरे के पीछे जो नागिन है उसे देखने की कोशिश कर रही हूँ..”

मेरी बात सुनकर खुशबू का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया- “आप क्या कह रही हो दीदी?" उसने एक-एक शब्द को चबाते हुये बोला।

मैं- “सच कह रही हूँ और क्या?” मैंने कहा।

खुशबू- “आपसे तो बात करना ही बेकार है, मार डालूंगी प्रेम को वो अब आपसे मिलने आया तो...” खुशबू गुस्सा होकर बाहर निकलने लगी।

मैं- “ऐसे भी मार ही दिया है तूने उसे, वो तुम्हें पागलों की तरह प्यार करता है और तू होटेल में गुलछरें उड़ाती है...” मुझे जो कहना था वो मैंने कह दिया।

मेरी बात सुनकर खुशबू के पाँव रुक गये।

मैं- “वापस आ जा, नहीं तो मैं प्रेम को सब कुछ बता देंगी.”

मेरी बात का जादुई असर हुवा खुशबू के ऊपर और वो वापस आकर मेरे पास बैठ गई। मैंने उसकी तरफ देखा तो उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में आँसू आ गये थे।

मैंने फिर पूछा- “क्यों करती है ये सब? एक के साथ प्यार और दूसरे के साथ वासना का खेल, कितना प्यार करता है पप्पू तुझसे?”

मेरी बात सुनते ही खुशबू रोने लगी। मैं उठकर पानी का ग्लास ले आई और उसकी पीठ सहलाते हुये मैंने उसे चुप कराया।

थोड़ी देर बाद ठीक होकर खुशबू ने बताया की उस आदमी का नाम इमरान है, और वो उसके अब्बू का खास आदमी है। एक साल पहले अब्दुल दुबई गया था, तब खुशबू को उसके घर छोड़ गया था। एक महीने तक खुशबू उसके घर रही थी। तब उसने किसी भी तरह बहलाकर खुशबू से शारीरिक संबध बना लिए थे और तब से लेकर आज तक वो जब मन करे तब खुशबू को बुलाकर चोदता है। हर बार चुदवाते वक़्त खुशबू बहक जाती है और बाद में खुद से नफरत करके रोती है। खुशबू ना कहती है तो वो अब्दुल को बता देने की धमकी देता है। माँ के बगैर बच्ची करे तो क्या करे? किसे कहे वो समझ नहीं पा रही थी। प्रेम उसे भी पहली नजर में ही पसंद आ । गया था, लेकिन इन्हीं करणों से उसने पहले 'ना' कहा और फिर दिल के आगे मजबूर हो गई और प्रेम के प्यार को स्वीकार कर बैठी। पहले खुशबू ने सोचा था की बाद में प्रेम को सब सच-सच बता देगी, लेकिन अब डर रही है की सच बताकर प्रेम को कहीं खो न दे और यही डर की वजह से वो प्रेम को कुछ भी बताना नहीं चाहती थी।
 
पहले खुशबू ने सोचा था की बाद में प्रेम को सब सच-सच बता देगी, लेकिन अब डर रही है की सच बताकर प्रेम को कहीं खो न दे और यही डर की वजह से वो प्रेम को कुछ भी बताना नहीं चाहती थी।

खुशबू- “दीदी उस कुत्ते के बच्चे ने दो दिन पहले मेरे अब्बू को जो कहा, वो आप सुनोगी तो हैरान हो जाओगी...” खुशबू अब थोड़ा संभल चुकी थी।

मैं- “क्या कहा?” मैंने पूछा।

खुशबू- “उसने मेरी शादी की बात की...”

मैं- “किसके साथ?”

खुशबू- “उसके बेटे से...”

मैं- “उसके बेटे से?” सुनकर मैं सच में हैरान हो गई- “उसके बेटे से तुम्हारी शादी होगी तो उसके बाद तू पूरी तरह उसके हाथ की कठपुतली बन जाएगी और वो जो चाहेगा वो कर सकेगा तेरे साथ...” सच में ये इमरान एक नंबर का हरामी आदमी लगा मुझे। वो उसकी भूख मिटाने के लिए खुशबू से उसके बेटे की शादी तक करना चाहता है।

खुशबू- “क्या करूं दीदी, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा?” खुशबू की आवाज में दर्द था।

मैं- “मुझे तो इसमें से निकलने का एक ही रास्ता दिख रहा है..” मैंने सोचते हुये कहा।

खुशबू- “बताओ, मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ दीदी..” खुशबू ने कहा।

मैं- “पप्पू के साथ भाग जाओ..” मैंने कहा।

खुशबू- “नहीं दीदी...”

मैं- “क्यों?”

खुशबू- “मैं प्रेम को तीन महीने से ही जानती हूँ दीदी, मैं उसे अभी ज्यादा जानना चाहती हूँ। आप ये मत सोचना दीदी की मुझे प्रेम पे भरोसा नहीं है। मुझे आज की दुनियां पे भरोसा नहीं है। हम हर रोज अख़बार में पढ़ते हैं। की आजकल के लड़के लड़कियों को फँसाकर क्या-क्या करवाने लगते हैं। मैं अभी प्रेम को पूरी तरह से पहचानना चाहती हूँ दीदी..”

खुशबू की बात सुनकर मुझे लगा की शायद उसने एक बार इमरान के हाथों ठोकर खाई है, इसलिए इतना ज्यादा सोच रही है।

मैं- “खुशबू, तुम तो प्रेम को तीन महीने से जानती हो पर मैं तो उसे तीन बार ही मिली हूँ। फिर भी मैं पूरे यकीन से कह सकती हूँ की तुम उसके साथ चली जाओ, वो तुम्हें अच्छी तरह से रखेगा...” मैंने खुशबू को कहा
जो वो पूरे ध्यान से सुन रही थी।
 
खुशबू- “पर दीदी...” खुशबू इतना बोली की दरवाजे पर टक्कर पड़ी और वो रुक गई।

मैंने उठकर दरवाजा खोला, मम्मी-पापा आ गये थे। खुशबू उन्हें सलाम कहकर अपने घर चली गई।
* *
* * *

11:00 बजे थे, मैं अकेली बाहर के रूम में लेटी हुई थी, नींद नहीं आ रही थी मुझे। मैं फिर से समझ नहीं पा रही थी की मैं क्या करूं?

मैंने सोचा था की मैं अब्दुल को उसकी बेटी की क्लिप दिखाऊँगी, तो मुझे उसकी धमकियों के वश में नहीं होना पड़ेगा। लेकिन खुशबू की बात सुनकर मेरा मन बदल गया था, मैं अब अब्दुल को खुशबू की क्लिप दिखा नहीं सकती थी। क्योंकि हो सकता है की अब्दुल क्लिप देखकर खुशबू की शादी जल्दी-जल्दी में कहीं भी कर सकता है, और साथ में अच्छा हुवा की पप्पू के पहले मुझे खुशबू मिल गई। पहले पप्पू मिलता और मैं उसे खुशबू के बारे में ये सब बता देती तो बहुत बड़ी भूल हो जाती मुझसे। मैंने फैसला कर लिया की मैं अब खुशबू की क्लिप डेलीट कर देती हूँ। मैंने लाइट चालू की और देखा की मोबाइल कहां है। मोबाइल टेबल पे पड़ा था।

मैंने उठाया और मेनू खोला तभी नीरव का काल आया- “हेलो...”

नीरव- “मोबाइल हाथ में था क्या निशु डार्लिंग...” नीरव ने बड़े प्यार से पूछा।

मैं- “क्यों?"

नीरव- “पहली ही रिंग में उठाया तूने निशु...”

मैं- “मैं तुम्हें ही फोन करने की सोच रही थी...” मैं ऐसे ही झूठ बोली।

नीरव- “तुम मुझे फोन करने की सोच रही थी, मतलब की तुम मुझे याद कर रही थी...”

मैं- “पहले तुम्हारे कहने का मतलब बताओ, मैं तुम्हें याद नहीं करती क्या?”

नीरव- “जितना मैं करता हूँ उतना तुम नहीं करती होगी..." नीरव ने कहा।

मैं- “मैं कितना तुम्हें याद करती हूँ वो तुम क्या जानो...” मैंने कहा।

नीरव- “अच्छा बाबा तुम ज्यादा याद करती होगी, और बताओ, कैसी तबीयत है तेरी?”

मैं- “मैं ठीक हूँ, कब आ रहे हो?”

नीरव- “लगता है, एक दो दिन ज्यादा हो जाएंगे...”

मैं- “जल्दी आ जाओ अब, बहुत दिन हो गया अब तो..” मैंने कहा।

नीरव- “काम पटते ही आ जाता हूँ जान, मुझे भी तेरे बिना मन नहीं लग रहा...”

मैं- “तो फिर जल्दी से काम पटाओ और उड़कर आ जाओ...”

नीरव- “तू कहती है तो उड़कर आ जाऊँगा, काम पटते ही। एक किस दे दो...” नीरव आज ज्यादा ही रोमेंटिक हो रहा था।

मैं- “मुआवाच, अब तुम दो..”

नीरव- “मुआवाच, बाइ डियर...”

मैं- “बाइ..”

नीरव के काल काटते ही मैंने मोबाइल फिर से टेबल पे रख दिया और लाइट आफ करके सो गई। मैंने मोबाइल किस मकसद से हाथ में लिया था मैं वोही भूल गई और खुशबू का क्लिप डेलीट किए बगैर मैं सो गई।
 
सुबह दस बजे खुशबू आई तब मैं किचन में थी तो वो सीधे ही वहां आई- “क्या बना रही हो दीदी?”

मैं- “आलू के पराठे..” मैंने कहा।

खुशबू- “एक ज्यादा बनाना, मैं ले जाऊँगी...”

मैं- “एक बात पुछू, बुरा न मानो तो...”

खुशबू- “पूछो दीदी..”

मैं- “तुम नानवेज़ होगी ना?”

खुशबू- “हाँ, दीदी...”

मैं- “और पप्पू?”

खुशबू- “वो तो प्योर वेज़ है दीदी...”

मैं- “तो फिर बाद में तुम दोनों के बीच कुछ प्राब्लम नहीं होगी?”

खुशबू- “दीदी मैंने बीस दिन से नानवेज़ नहीं खाया और मैंने सोच भी लिया है की मैं अब नानवेज़ नहीं खाऊँगी...”

मैं- “पप्पू ने कहा छोड़ने को?”

खुशबू- “नहीं दीदी, उसने तो कहा की तू छोड़ दे या मैं चालू कर दें। लेकिन मैंने सोचा की प्रेम तो मेरे लिए चालू कर देगा, पर उसकी बाकी की फैमिली का क्या? यही सोचकर मैंने नानवेज़ छोड़ने का फैसला किया...”

खुशबू की बात सुनकर मैं मुश्कुराई और बोली- “इतना प्यार करती हो पप्पू को और उसपर भरोसा नहीं करती?”

खुशबू- “मैंने सोच लिया दीदी। मैं तैयार हूँ, प्रेम के साथ जाने के लिए..”

मुझे भी सबसे सही रास्ता यही लग रहा था खुशबू के लिए, और मैंने उसे कल कहा भी था। फिर भी मैंने कहा जो भी फैसला लेना, सोच समझकर लेना...”

खुशबू- "दीदी, कल रात भी इमरान चाचू उनके लड़के साहिल से मेरी शादी की बात करने आया था, और अब्बू ने उन्हें कल बताऊँगा, ये कहा है...” खुशबू ने इतनी जल्दी फैसला क्यों लिया उसका राज बताया।

मैं- “तो... तो तुम दोनों को जल्दी भागना पड़ेगा...” मैंने सोचते हुये कहा।

खुशबू- “हाँ दीदी, आज ही जाना पड़ेगा, एक बार मेरी शादी साहिल से पक्की हो गई तो मेरा बाहर निकलना भी मुश्किल हो जाएगा.” खुशबू ने अपनी प्राब्लम बताई।

मैं- “तो फिर एक काम करो, तुम जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी पप्पू को बुला लो...” मैंने कहा।

खुशबू- “हाँ दीदी यही ठीक रहेगा, मैं चलती हूँ..” इतना कहकर खुशबू जाने लगी।

तब मैंने उसे पीछे से आवाज दी- “पराठे ले जाना भूल गई...”

फिर खुशबू वापस आकर पराठे लेकर निकल गई।
* *
* * *

दोपहर को एक बजे खुशबू ने मुझे आवाज दी। मैं मम्मी को कहकर उसके साथ निकली। हम लिफ्ट में ग्राउंड फ्लोर पर आए और फिर वहां गये, जहां मैंने पप्पू के साथ सेक्स किया था। पप्पू पहले से ही वहां मोजूद था मुझे देखकर मुझकुराया।

मैं- “खुशबू को कब तुम्हारी दुल्हन बना रहे हो?” मैंने उसे पूछा।

पप्पू- “खुशबू कहे आज तो मैं आज ही तैयार हूँ..” पप्पू ने कहा।

खुशबू- “मैं तैयार हूँ और आज ही के दिन...” खुशबू ने कहा।

पप्पू- “आज ही?” कहकर पप्पू सोच में पड़ गया।
 
मैं- “हाँ आज ही, उसकी शादी की बात चल रही है और एक बार फिक्स हो गई तो उसके लिए मुश्किल हो जाएगी..." इस बार मैं बोली।

पप्पू- “मैं भी तैयार हूँ, शाम को पाँच बजे निकलते हैं..." पप्पू ने कहा।

खुशबू- “मैं आ जाऊँगी..” खुशबू ने कहा।

पप्पू- “थॅंक्स माई डार्लिंग, आई लव यू..” कहकर पप्पू खुशबू से लिपट पड़ा।

मुझे अब वहां से निकल जाना बेहतर लगा, क्योंकि उन लोगों को यहां से निकलकर कहां जाना है, वो उन्हें ही सोचना था। उस बारे में मैं उन्हें कुछ समझा नहीं सकती थी और साथ में उन प्रेमियों के बीच ज्यादा देर तक खड़े रहना मैंने ठीक नहीं समझा। मैंने उन लोगों को कहा- “मैं निकल रही हूँ..”

मेरी बात सुनकर पप्पू बोला- “हम भी आ रहे हैं दो मिनट में। पाँच बजे निकलने के लिए बहुत तैयारियां करनी पड़ेंगी...”

मैं बाहर निकली तो प्रेम ने दरवाजा बंद कर दिया। मैं ग्राउंड फ्लोर पे आई, बिजली नहीं थी तो लिफ्ट बंद थी। मैं सीढ़ियां उतरने लगी, दूसरे और तीसरे माले के बीच की सीढ़ियों पर मुझे अब्दुल मिल गया। वो थोड़ा जल्दी में है, ऐसा लग रहा था।

उसने पूछा- “तीन घंटे बाकी है, क्या सोचा?”

मैंने मेरी नजरें नीची कर ली और उसके बाजू से निकल गई- “तीन घंटे में पूरी दुनियां बदल सकती है कोई ना कोई रास्ता जरूर मिल जाएगा...” मैं मन ही मन बोली।

जरा सा आगे निकली तो मुझे पप्पू और खुशबू का खयाल आया की वो लोग जहां हैं वहां से अब्दुल निकलेगा और कहीं उसे मालूम पड़ गया तो? इसलिये मैंने आवाज लगाई- “कहां मिलना है?”

अब्दुल दूसरे माले तक पहुँच गया था, वो वहां से वापस ऊपर आया- “कल मिलते हैं, जगह और समय शाम को बता दूंगा...”

मैं किसी भी तरह समय निकालना चाहती थी तो मैंने कहा- “कल मेरे पास समय नहीं है...”

अब्दुल- “तो परसों...”

मैं- “नहीं..”

अब्दुल- “तो फिर?”

मैं- “आज ही...” मैंने कहा।

अब्दुल- बहुत जल्दी है बुलबुल को चुदवाने की?”

अब्दुल ने कहा तो मैंने उसे स्माइल दी।

मेरी स्माइल देखकर वो झूम उठा- “समय भी तू फिक्स करेगी क्या?”

मैं- “हाँ, पाँच बजे...” मैंने कहा।

अब्दुल- “जगह भी तू कहेगी...”

मैं- “वो तुम कहोगे..” मैंने कहा।

अब्दुल- “रेलवे स्टेशन के पास होटेल मुमताज है, वहां पाँच बजे आ जाना...” ये कहते हुये अब्दुल मेरे बिल्कुल करीब आ गया। उसने मेरे चेहरे को उसके दो हाथों के बीच पकड़ा और वो मुझे किस करने लगा। तभी जोर से सीढ़ियों पर चढ़ने की आवाज आने लगी तो अब्दुल मुझे छोड़कर सीढ़ी उतरने लगा।

मैं भी ऊपर की तरफ जल्दी से चढ़ने लगी। मैं घर पर पहुँचकर एक मिनट के लिए रुकी। तभी खुशबू आई।। खुशबू को देखकर मुझे शांति हुई की वो सीढ़ी चढ़ने की आवाज खुशबू की थी। चलो अच्छा हुवा कि अब्दुल को कुछ मालूम न पड़ा।

मैंने अब्दुल को कुछ देर रोकने के लिए ही उसे 'हाँ' कहा था। पर बाद में समझ में आया की उसे एक बार ‘हाँ कह ही दिया तो अब मुझे जाना ही पड़ेगा, नहीं तो वो गुस्सा होकर जो कह रहा था वो कर सकता है, और वो पाँच बजे मेरे साथ होगा। ये बात पप्पू और खुशबू के लिए भी अच्छी साबित हो सकती है। मैं जितना हो सकेगा उतना ज्यादा समय अब्दुल के साथ निकालूंगी, तब तक वो दोनों जितना हो सके उतना दूर निकल जाएंगे। हाँ यही ठीक रहेगा मैं जरूर जाऊँगी। मैंने निश्चय कर लिया।

साढ़-चार बजे मैंने जल्दी से हल्का सा मेकप किया, मैंने कपड़े चेंज नहीं किए थे, सुबह से जो सलवार कमीज पहनी थी, वोही पहनकर निकल पड़ी। मैंने मम्मी से झूठ बोल- “मैं रीता के यहां जा रही हूँ..."
 
मैंने बाहर आकर स्टेशन के लिए आटो की। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, क्योंकि होटेल मुझे अकेले जाना था। सुबह मेरी और अब्दुल की ज्यादा बात नहीं हुई थी, ना तो मैंने उससे रूम नंबर पूछा था, ना मैंने उससे पूछा था कि वो कहां मिलेगा? स्टेशन आ गया तो मैंने आटो से उतरकर आटो वाले को पैसे दिए। मैंने मुमताज होटेल देखा नहीं था। स्टेशन सीधे रोड पर था, और स्टेशन के सामने दो सिंगल रोड भी थी। इनमें से कौन सी रोड पे मुमताज होटेल होगा वो किसी को पूछे बिना मालूम नहीं पड़ सकता था। होटेल कैसी होगी ये मुझे मालूम नहीं था, इसलिए मैं पूछने से डर रही थी।

मेरा मानना था की स्टेशन पे जो होटेल होती है वहां कालगर्ल होती ही हैं, इसीलिए मैंने आटो वाले को होटेल का नाम नहीं दिया था।

तभी मेरा ध्यान सामने के रोड पर पड़ा, एक पोलिस वाला एक औरत को खींचता हुवा ला रहा था। वो मेरी तरफ ही ला रहा था। मैं डरने लगी की वो मेरी तरफ क्यों ला रहा है? लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो पा रही थी वहां से हिलने की भी। वो दोनों मेरे बिल्कुल करीब आ गये, पोलिस वाले ने मेरी तरफ उंगली करके गुस्से से वो औरत को कुछ कहा तो मैं और डर गई। वो दोनों बिल्कुल मेरे नजदीक आ गये।

मुझे ऐसा लगने लगा की मेरी जान मेरे गले में आ चुकी है और वो लोग मेरे पास होते हुये मेरे बाजू में से । निकल गये। उन्हें मेरे पास से निकलते देखकर मेरी जान में जान आई। मैंने पीछे उन लोगों की तरफ देखा तो मेरे पीछे पोलिस स्टेशन था। वो पोलिस वाला उस औरत को वहां घसीटता हुवा ले जा रहा था।

मैंने थोड़ा आगे जाकर हिम्मत जुटाकर एक पान की दुकान पे होटेल मुमताज के बारे में पूछा। पान वाले ने सामने के रोड पे है ऐसा कहा।

मैं जा ही रही थी तभी उसकी आवाज सुनाई दी- “समझ में नहीं आता कि सब अच्छे घर की दिख रही हैं और मुमताज होटेल के बारे में पूछ रही हैं..."

अभी वो औरत को पोलिस पकड़कर ले गई ना, वो भी वहीं से लेकर आ रहे थे...” पान वाले की बात का जवाब वहां खड़े एक आदमी ने दिया, जो सुनकर मेरे सारे बदन में डर फैल गया।

मैंने सोच लिया की चाहे कुछ भी हो जाय, मैं इस होटेल में नहीं जाऊँगी। मुझे याद आया मैं जीजू के साथ। होटेल युवराज में गई थी। अब्दुल को वहां आना है तो ठीक है, नहीं तो मैं निकल जाऊँगी।

मुमताज होटेल का बोर्ड नजर आया तो मैं थोड़ी दूर पर खड़ी रहकर अब्दुल का इंतेजार करने लगी। पाँच बजकर दस मिनट हुई थी,
और बीस मिनट बाद अब्दुल गाड़ी लेकर आया।

मैं उसके पास गई और दरवाजा खोलकर अंदर बैठ गई और उससे कहा- “यहां से थोड़ा दूर ले लो.."

अब्दुल ने गाड़ी को थोड़ा आगे लिया और फिर मेरी तरफ मुँह करके पूछा- “क्या हुवा बुलबुल?”

मैं- “ऐसे गंदी होटेल में नहीं जाना मुझे...”

अब्दुल- “मैंने तुम्हें सुबह कहा था जगह भी तू ही कह दे पर तूने ना कहा, बोल कहा लँ?”

मैं- “होटेल युवराज...” मैंने कहा।

अब्दुल- “दूर है, आधा घंटा तो ऐसे ही निकल जाएगा..."
 
मैं- “मुझे वहीं जाना है..” मैंने मेरी बात दोहराई।

अब्दुल- “वैसे मेरे होते हुये कोई टेन्शन नहीं लेने का, फिर भी तू कहती है तो ओके...” कहते हुये अब्दुल ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई।

करीबन छ बजे हम होटेल युवराज पहुँच गये। गाड़ी पार्क करके अब्दुल ने रूम बुक करवाया, रूम तीसरे माले पर था, हम लिफ्ट में बैठकर तीसरे माले पर पहुँचे और तभी अब्दुल का मोबाइल बज उठा। अब्दुल ने थोड़ा दूर जाकर मोबाइल पे बात की तो उसके चेहरे पर चिंता और लझन के भाव दिख रहे थे। मुझे लग रहा था की शायद उसे खुशबू के बारे में पता चल गया है, जो भी हो अब क्या हो सकता था?

अब्दुल मेरे नजदीक आया और मुझसे कहा- “मुझे काम है, तुम बाहर से आटो पकड़ लो...”

मैं आटो में घर वापिस आई। तभी मेरी आटो के बाजू में अब्दुल की गाड़ी आकर रुकी। मैं आटो से उतरी तब मेरे साथ गाड़ी में से खुशबू भी निकली जिसे देखकर में ठिठक गई। उसका चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था की वो खूब रोई है और इस वक़्त उसकी आँखों में आँसू सूख गये थे।

सुबह के 11:00 बजे थे, मैंने कल शाम से अब तक खुशबू के घर की तरफ कितनी बार देखा होगा, उसकी गिनती नहीं की थी। अगर की होती तो 300 से ऊपर होती। कल शाम के बाद एक बार भी खुशबू का घर खुल्ला
नहीं था, और ना ही कोई उसके घर आया था।

कल शाम खुशबू को गाड़ी से उतरते देखा, तब से किसी अज्ञात भय ने मेरे मस्तिष्क को घेर रखा था। प्लान के मुताबिक खुशबू को इस वक़्त पप्पू के साथ होना चाहिए था। पर हो सकता है दोनों किसी वजह से पकड़े गये होंगे तो पप्पू कहां है? पप्पू को मारा तो नहीं होगा ना अब्दुल ने? मुझे सबसे ज्यादा टेन्शन यही बात की हो रही थी।

हम एक साथ ही लिफ्ट में ऊपर चढ़े। लेकिन अब्दुल साथ में था तो मैं खुशबू को कुछ पूछ ना सकी। खुशबू की आँखों के आँसू बहुत कुछ बता रहे थे, पर मैं समझ नहीं पा रही थी। थोड़ी देर बाद मैं पप्पू के घर भी गई थी, लेकिन उसका घर बंद था। अब्दुल के करण खुशबू के घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। दोनों में से किसी का भी मोबाइल नंबर मेरे पास नहीं था की मैं जान सकू की उन दोनों के साथ क्या हुवा था?

निशा फिल्म देखने आएगी?” रीता का मोबाइल आया।

मेरा मूड नहीं था जाने का लेकिन मैं पप्पू और खुशबू को थोड़ी देर के लिए भूलना चाहती थी- “फर्स्ट शो में जाएंगे..."

रीता- “ओके, गोलमाल-श्री की टिकेट ला दें..”

मैं- “हाँ..."

रीता- “लाकर फोन करती हैं, बाइ..” रीता ने काल काट दी।

अच्छा हुवा उसका मोबाइल आया, नहीं तो मैं ये सब सोच-सोचकर पागल हो जाती। फिल्म देखने जाना था और खाना भी मुझे ही बनाना था तो मैं जल्दी से खाना बनाने लगी। मैं यहां जब भी आती मम्मी मुझे किचन में पैर भी रखने नहीं देती थी, लेकिन इस बार उसकी तबीयत ठीक नहीं थी तो मैं ही खाना बना रही थी। खाना बनाकर पापा, मम्मी और मैं खाना खाने बैठे।

पापा- “तुम्हारी मम्मी को डाक्टर के पास ले जाना है, ले जाओगी?” पापा ने पूछा।

मेरी जगह मम्मी ने जवाब दिया- “निशा ने फिल्म देखने जाने का पोग्राम बनाया है, आप आफिस से छुट्टी ले लो..."

पापा- “किसके साथ जाने वाली हो बेटा?”

मैं- “रीता के साथ पापा...”

पापा- “तुम फिल्म देख आओ, मैं जाता हूँ तेरी मम्मी के साथ...” पापा ने खड़े होते हुये कहा।

थोड़ी देर बाद पापा और मम्मी निकले। मैं रीता के काल की राह देखती हुई घर का दरवाजा खुला रखकर खुशबू के घर की तरफ नजर गड़ाए बैठी थी। तभी लिफ्ट के ठहरने की आवाज आई और फिर जाली खुलने की आवाज आई। मैंने खड़े होकर लिफ्ट की तरफ नजर की तो उस तरफ से जो आ रहा था उसे देखकर मेरी आँखें फट गई, वो मेरे ही घर की तरफ आ रहा था।

उसने घर के अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया और मेरे नजदीक आकर कहा- “निशा कुछ करो, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा...” उसके मुँह से मेरे लिए निशा का संबोधन सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गई, वो पप्पू था।
 
उसने घर के अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया और मेरे नजदीक आकर कहा- “निशा कुछ करो, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा...” उसके मुँह से मेरे लिए निशा का संबोधन सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गई, वो पप्पू था।

मैं- “तुम कहां थे कल शाम से? तुम तो खुशबू के साथ जाने वाले थे ना?” मैंने पप्पू के ऊपर सवालों की बौछार कर दी।

पप्पू- “खुशबू ना बोल रही है...” पप्पू ने गीली आँखों से कहा।

मैं- “क्यों?” मैंने पूछा।

पप्पू- “कल मैं निकालने ही वाला था की मेरी मम्मी बाथरूम में फिसल गई। मैं उन्हें हास्पिटल ले गया, अभी भी ठीक नहीं हैं...” पप्पू ने अभी तक जो धैर्य बाँध रखा था वो टूट गया और वो छोटे बच्चे की तरह रोने लगा,

मैंने उसे सांत्वना देने के लिए बाहों में ले लिया, और कहा- “इसमें तो तुम्हारी गलती है, उसका दोष क्यों निकल रहे हो?”

पप्पू- “मैंने ये सब बताने के लिए उसे फोन किया था, लेकिन वो मुझे धोखेबाज बोल रही है। कभी फोन मत कर ऐसा बोला खुशबू ने मुझे..” पप्पू और जोर से रोने लगा। उसका वर्ताव छोटे बच्चे जैसा था, लेकिन उसकी हरकतें मर्दाना थीं। उसने मुझे जोरों से बाहों में भींच दिया जिससे मेरे उरोज उसके सीने से दब गये और मेरे मुँह से । सिसकारी निकल गई।

मैंने कहा- “मैं खुशबू को मोबाइल लगाती हूँ..”

पप्पू- “नहीं करना खुशबू को फोन, नहीं करनी मुझे उससे शादी। वो बता रही थी की मैं दो दिन में शादी करने वाली हूँ...” पप्पू रो रहा था लेकिन उसके हाथ करामात दिखा रहे थे। वो कपड़े के साथ मेरी गाण्ड सहला रहे थे।

मैंने गाउन पहन रखा था। मैंने पूछा- “शादी... किसके साथ?”

पप्पू- “साहिल... साहिल नाम बता रही थी...” पहले तो पप्पू ने उसका सिर मेरे कंधे पर रख दिया लेकिन बाद में वो मेरी गर्दन चूमने लगा।

मैं बहकने लगी थी लेकिन साहिल, इमरान का बेटा, का नाम सुनने के बाद मैं खुशबू के लिए चिंतित हो उठी। मैंने मेरी बाहों में से उसे मुक्त करके, धीरे से उसके कान में कहा- “छोड़ो मुझे, हम खुशबू को फोन करते हैं.”

पप्पू- “नहीं निशा, वो मुझे धोखेबाज कह रही है, जो की वो खुद है। मुझे तुम्हारी जरूरत है, निशा मुझे तुम्हारी बाहों में ले लो...” कहते हुये पप्पू ने मेरे होंठ पर उसके होंठ रख दिए।

मैं पिघलने लगी। मैंने पप्पू को फिर से बाहों में ले लिया और उसके होंठ चूसने लगी। पप्पू ने हाथ नीचे किया और मेरा गाउन उठाया और मेरी जांघों को सहलाने लगा। मैंने मदमस्त होकर मेरी आँखें बंद कर ली, तभी मेरा मोबाइल बज उठा।

मैं जमीन पर बैठकर पप्पू के लण्ड को निहारने और सहलाने लगी, पप्पू का लण्ड झटके मारकर मेरी हरकत को सलामी देने लगा, तभी मेरा मोबाइल फिर से बज उठा। मैंने पप्पू के चिढ़ भरे चेहरे को देखते हुये उसके पास से मोबाइल माँगा।

पप्पू मोबाइल को फेंकना चाहता हो ऐसी चेष्टा करते हुये मोबाइल मेरे हाथ में थमाया।

रिंग सुनकर मैं भी चिढ़ गई थी। लेकिन देखा की दीदी की काल है तो चिढ़ थोड़ी कम हुई- “हेलो दीदी...”

दीदी- “निशा, मेरी बहन कल रात अनिल ने मुझे सोने ही नहीं दिया...”

मैं बातें करते हुये पप्पू को देख रही थी। वो नंगा ही डान्स करते हुये अंदर के रूम में से बाहर आ-जा रहा था जो देखकर मुझे हँसी आ रही थी।

मैं- “क्या-क्या किया दीदी, पूरी बात बताओ..”
 
दीदी- “पवन के सोने के बाद मैं टीवी देख रही थी तब अनिल ने मुझे उसकी बाहों में उठाया और बेडरूम में ले गया..."

मैं- “वाउ दीदी... जीजू आपको उठाकर बेडरूम में ले गये, फिर?"
मेरी बात सुनकर पप्पू ने उसका डान्स रोक लिया।

दीदी- “फिर अनिल ने मुझे नंगा किया और मेरे हर अंग को चूमा...”

मैं- “नंगा करके चूमा, कहां-कहां चूमा दीदी बताओ ना?” मेरी बात पूरी होते ही मैं उधर हो गई थी।

पप्पू ने मुझे उसकी बाहों में उठा लिया था, और अंदर रूम में लेजाकर लेटाया। मैंने पप्पू की तरफ नशीली आँखों से देखा और मोबाइल का लाउडस्पीकर ओन कर दिया।

दीदी- “पहले तो मेरे पैरों की उंगलियों को चूमा...” दीदी की आवाज रूम में गूंजने लगी।

जिसे सुनकर पप्पू मेरी उंगलियां चूमने, सच कहें तो चूसने लगा जिससे मेरे मुँह से आऽऽ निकल गई।

दीदी- “तुम तो सुनकर ही आहें भरने लगी.”

मैं- “हाँ... दीदी बताओ ना फिर क्या हुवा?”

दीदी- “फिर जांघ पर, बाद में नाभि और पेट पर, बाद में चूचियों पर..”

दीदी बोले जा रही थी और पप्पू वहां-वहां चूम रहा था जहां-जहां दीदी बता रही थी और मैं आहें भर रही थी।

दीदी- “फिर हम लोगों ने एक दूसरे को किस किया...”

मैं- “दीदी जीजू ने नीचे नहीं चाटा...”

दीदी- “चाटा ना अंत में अनिल ने मेरी भोस चाटी...” दीदी की खुल्ली बात सुनकर पप्पू बौचक्का हो गया और मेरी तरफ देखने लगा।

मैंने मुश्कुराते हुये मेरी टाँगें चौड़ी की और पप्पू को झुकने का इशारा किया, और दीदी को बाइ कहकर काल काट दिया। मैंने पप्पू को झुकने को कहा लेकिन वो झुका नहीं और असमंजस से मुझे देखता रहा।

मैं- “पप्पू यहां किस करो...” मैंने मेरी चूत की तरफ उंगली करते हुये कहा।

लेकिन पप्पू ने कोई प्रतिभाव नहीं दिया।

मैं समझ गई उसे घिन हो रही है। मुझे खयाल आया की नीरव को भी होती है। मुझे पप्पू पर बहुत गुस्सा आया- “ऐसे ही ठंडा रहा ना तो खुशबू की प्यास बुझा नहीं पाओगे...”

पप्पू- “निशा, तुम ऐसा क्यों कह रही हो?" पप्पू ने झल्लाते हुये कहा।

मैंने उसके सिर के पीछे हाथ डाला और खींचकर कहा- “इसे चाटो..” मैं उसे बता तो नहीं सकती थी की खुशबू कितनी गरम है जो मैं देख चुकी हूँ।
 
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