Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 22 - SexBaba
  • From this section you can read all the hindi sex stories in hindi font. These are collected from the various sources which make your cock rock hard in the night. All are having the collections of like maa beta, devar bhabhi, indian aunty, college girl. All these are the amazing chudai stories for you guys in these forum.

    If You are unable to access the site then try to access the site via VPN Try these are vpn App Click Here

Hindi Antarvasna - चुदासी

अब्दुल- “किसने मारा? या अल्लाह, कहीं इसने तो... ...” अब्दुल ने मेरी तरफ देखकर अपनी बात को अधूरा छोड़ दिया।

जावेद- “नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुवा, विजय पोलिस की गोलियों से मारा गया है...”

अब्दुल- “अल्लाह का सुकर है, मैं इसे ले जा सकता हूँ?” अब्दुल ने मुझे ले जाने की इजाज़त माँगते हुये पूछा।

जावेद- “जरूर, लेकिन इसके पहले आपको कुछ फारमेलिटी पूरी करनी पड़ेगी...”

अब्दुल- “जी, मैं जानता था इसलिए इसका और इसके अब्बू का एलेक्सन काई और साथ में हम दोनों के घर का एलेक्ट्रिक बिल लेकर आया हूँ...” कहते हुये अब्दुल ने तीन चार कागज जावेद को दिए।

जावेद ने वो सब चेक करके कान्स्टेबल को दिया और अब्दुल को मेरे बयान के नीचे दस्तखत करने को कहा।

अब्दुल ने दस्तखत करके फिर से पूछा की- “अब हम जा सकते हैं?”

जावेद- “जरूर, लेकिन इन्हें एक बार कल कमिश्नर से मिलना होगा...”

अब्दुल- “ठीक है, चलो बिटिया...” अब्दुल ने मुझे कहा। हम दोनों बाहर आए।

हमारे पीछे-पीछे जावेद आया, उसने चारों तरफ देखकर धीरे से कहा- “अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चला लेकिन परबत सिंह के आने के बाद टेन्शन है.”

अब्दुल- “आप बेफिक्र रहिए, सब कुछ सही-सही होगा...” अब्दुल ने कहा।

जावेद- “वैसे कमिश्नर साहब ने मुझे पूरी छूट दे रखी है...”

अब्दुल- “तो चिंता की कोई बात ही नहीं है ना...”

जावेद- “लेकिन वो भी परबत सिंह से डरते हैं। अब आप लोग जल्दी से निकलो यहां से, परबत सिंह को खबर दे दी गई है, वो पहले हास्पिटल गया है जहां विजय की लाश का पोस्टमार्टम हो रहा है...”

अब्दुल- “ठीक है, हम निकलते हैं, खुदा हाफिज..” कहकर अब्दुल गाड़ी में बैठा और इशारे से मुझे बैठने को कहा और गाड़ी स्टार्ट की। कुछ देर बाद अब्दुल ने कहा- “अब तुम्हारी फ्रेंड पर कोई खतरा नहीं है...”

मैं- “वो तो है, लेकिन ये सब कुछ ज्यादा हो गया?” मैंने मेरे मुँह पर साड़ी का पल्लू ओढ़ा हुवा था वो खोलते हुये कहा।

अब्दुल- “और कोई रास्ता नहीं था, खुद कमिश्नर भी जानता था की विजय ने ही अमित को मारा है, लेकिन परबत की वजह से कुछ नहीं कर सकते थे, और साथ में पोलिस को विजय के विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं मिल रहा था। सारा पोलिस बीभाग उनके आदमी के कतल का बदला लेने के लिए तरसता था, लेकिन पोलिस किसी को सुपारी तो नहीं दे सकती ना... इसलिए ये सब करना पड़ा। और अब तुम्हारी वजह से विजय पर बलात्कार करने की कोशिश का इतना संगीन आरोप लग चुका है की परबत सिंह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेगा...”

मैं- “मतलब की मेरा इश्तेमाल तुम लोगों ने उस बकरी की तरह किया, जिसे बाँधकर शेर का शिकार किया जाता है...” मैंने कहा।

अब्दुल- “बिल्कुल ठीक... लेकिन यहां फर्क ये है की शेरनी को बाँधकर बकरे को हलाल किया गया है. अब्दुल ने मुश्कुराते हुये कहा।

मैं- “जावेद को तुम कब से जानते हो?” मेरे मन से कब से जो सवाल घूम रहा था वो मैंने पूछ लिया।

अब्दुल- “तुमसे बात तो हुई थी, कुछ ही दिन से जानता हूँ मैं उसे..” अब्दुल ने कहा।

मुझे लगा की उससे जावेद की पुरानी बात करने का कोई फायदा नहीं है।

अब्दुल- “एक ही गलती हो गई, हमने सोचा ही नहीं था की विजय तुम्हें होटेल ग्रीनलैण्ड की जगह और कोई होटेल ले जा सकता है, और हमने होटेल ग्रीनलैंड इसलिए पसंद किया था की एक तो वो मेरे दोस्त का था और दूसरा वो होटेल जावेद के इलाके में आता था...”
 
अब्दुल- “एक ही गलती हो गई, हमने सोचा ही नहीं था की विजय तुम्हें होटेल ग्रीनलैण्ड की जगह और कोई होटेल ले जा सकता है, और हमने होटेल ग्रीनलैंड इसलिए पसंद किया था की एक तो वो मेरे दोस्त का था और दूसरा वो होटेल जावेद के इलाके में आता था...”

मैं- “लेकिन तुम लोगों को वो दूसरे होटेल के बारे में कैसे पता चला?” मैंने पूछा।

अब्दुल- “तुम और विजय पोलिस स्टेशन से निकले तब से मैं तुम्हारे पीछे ही था, जैसे ही विजय की गाड़ी होटेल ग्रीनलैंड से आगे निकली तो मैंने जावेद को काल कर दिया और हम उसी होटेल में आ गये जहां तुम लोग थे.”

मैं- “लेकिन जावेद उसी वक़्त कमरे में कैसे आ गया, जिस वक़्त विजय मुझे मारने वाला था?"

अब्दुल- “वो तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन इत्तेफाक से हुवा होगा। हम लोगों ने तुम्हें होटेल से बाहर निकलते देखा और फिर तुरंत तुम वापस अंदर गई। हम लोग तुम्हारे पीछे आए तो तुम्हें विजय से बात करते देखा और फिर तुम लोगों को फर्स्ट फ्लोर पर के कमरे में जाते देखा और फिर जावेद ने मुझे उस एरिया के पोलिस स्टेशन का फोन काटने को कहा था तो मैं उस काम में लगा हुवा था...” अब्दुल ने कहा।

मैं- “वो, क्यों?”

अब्दुल- “क्योंकि जावेद चाहता था की विजय को मारने के बाद उसके पोलिस स्टेशन के कान्स्टेबल आएं, दूसरे आने से परेशानी हो सकती थी...”

मैं- “थोड़ी देर पहले जावेद ने जो फोन मेरी मम्मी को किया वो शायद उन्होंने नहीं तुम्हें किया था ना?”

अब्दुल- “हाँ... मुझे ही किया था और ये पोलिस केस होगा वो हम जानते थे। लेकिन तुम्हें इसलिए नहीं बताया क्योंकि तुम ‘ना' कह देती...”

मैं- “मुझे ये पोलिस केस हुवा वो ठीक नहीं लगा..” मैंने कहा।

अब्दुल- “तुम टेन्शन मत लो, कल के बाद पोलिस वाले तुम्हें नहीं बुलाएंगे, और इससे भी बड़ा टेन्शन एक और है तुम्हारे लिए...” अब्दुल ने कहा।

मैं- “कौन सा?”

अब्दुल- “रात के बारह बजे हैं, तुम तुम्हारे घर में, हास्पिटल में सोओगी ऐसा कहकर आई हो। और इस वक़्त तुम हास्पिटल जा नहीं सकती तो कहां जाओगी?” अब्दुल के चेहरे पर शरारत थी।

मैं- “तुम्हारा घर है ना?” मैंने मुश्कुराते हुये कहा।

मेरी बात सुनकर अब्दुल ने एकदम से गाड़ी रोक दी।

मैं- “क्यों क्या हुवा?” मैंने हँसते हुये पूछा।

अब्दुल- “बाहर देख, घर आ गया है...” उसने मेरी जांघ पर चिकोटी लेते हुये कहा।
* *
* * *
* *
* * *
 
मुझे जावेद ने उसके घर बुलाया था। मैं हिचकिचा रही थी उसके घर जाने में लेकिन उसका कहना था की बाहर मिलने में खतरा है। जावेद के घर का दरवाजा उसकी अम्मी ने खोला। मैंने उनकी उमर से अंदाजा लगाया था
की ये जावेद की अम्मी होंगी।

बेटा, कोई आया है तुमसे मिलने..." जावेद की अम्मी ने मुझे सोफे पर बैठने का इशारा करके जावेद को बुलाया।

जावेद रूम में से बाहर आया और मुझे सलाम करके मेरे सामने के सोफे पर बैठा- “पता हूँढ़ने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना?”

मैं- “नहीं, आपको तो यहां सभी पहचानते हैं...” मैंने कहा।

जावेद- “अम्मी ये निशा है, मैंने तुम्हें इसके बारे में बताया था ना?" जावेद ने अपनी अम्मी को कहा।

मैंने देखा कि मेरी पहचान सुनकर उनकी आँखों में एक चमक छा गई थी, उन्होंने मुझे सलाम किया और किचन में चली गई।

जावेद- “रीता की हालत अब कैसी है?”

मैं- “कोई खास फर्क नहीं है...” मैंने कहा।

जावेद- “अमित सर ने हम लोगों को पकड़ा, उसके बाद ये बात इतनी बढ़ेगी मैंने कभी नहीं सोचा था...” जावेद के मुँह से ये बात सुनकर मेरे लिए एक बात तो साफ-साफ हो गई की वोही विकास था।

मैं- “लेकिन तुमने तो उस वक़्त तुम्हारा नाम विकास बताया था...”

जावेद- “तुम्हें अभी भी वो नाम याद है?" जावेद के चेहरे पर एक अंजानी खुशी की लहर आ गई।

मैं- “हाँ...” मैंने कहा।

जावेद- “मैंने झूठ कहा था...”

मैं- “झूठ, क्यों?”

जावेद- “क्योंकी मैं तुम्हें मेरे प्यार के जाल में फँसाना चाहता था और कहीं तुम मेरे मुस्लिम नाम से भड़क न जाओ, इसलिए मैंने तुम्हें मेरा नाम विकास बताया था और मैं तुम्हारे कालेज में पढ़ता भी नहीं था...”

मैं- “तुम हमारी कालेज में नहीं पढ़ते थे?”
 
जावेद- “हाँ.. यही सच है। विजय तुम्हें किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहता था। उस वक़्त वो मेरा अच्छा यार था, तो एक दिन उसने मुझे तेरे बारे में बताया...” इतना कहकर जावेद रुक गया।

मैं- “फिर?”

जावेद- “मैंने ही उसे एक आइडिया दिया की कालेज के किसी दोस्त के जरिए तुम्हें पटाकर उसके पास ले जाय...” जावेद की आवाज में बेहद अफसोस था- “तब विजय ने कहा की था तुम उसके कालेज के सारे दोस्तों को जानती हो। फिर उसके दिमाग में मेरा खयाल आया...”

मैं- “लेकिन तुम तो कालेज में होते थे...”

जावेद- “मैं कालेज शुरू और खतम होने के वक़्त आ जाता था...”

मैं- “तुम और विजय तो अच्छे दोस्त थे, तो तुमने उसे मारा क्यों?” मैंने अपनी आशंका जताई।

जावेद- “उसने जो किया उसकी सजा तो उसे मिलनी ही थी। मैं तुम्हें पूरी बात बताता हूँ। उस वक़्त मैं तुमसे । प्यार तो क्या दोस्ती भी नहीं कर सका, तो विजय मुझ पर भड़क गया और मुझे तुमको कालेज के अंतिम दिन मिलने के लिए बुलाने को कहा और मैंने वैसा ही किया, जैसा उसने कहा..”

मैं- “ये सब तो मुझे मालूम है, फिर?”

जावेद- “तुम लोग वहां आए तब शुरू में मैं भी विजय के साथ तुमसे और रीता से जबरदस्ती करने लगा था, लेकिन जब अमित भैया आए तब मुझे पकड़े जाने का जितना अफसोस था, उससे कहीं ज्यादा तुम लोगों के बच जाने की खुशी थी...”

मैं- “उसके बाद?"

जावेद- “अमित भैया हम सबको पोलिस स्टेशन ले गये, तब उनको हम सबका नाम जानने से पता चला की मैं उनके करीबी दोस्त पोलिस इंस्पेक्टर रजाक का बेटा हूँ, तो उन्होंने मुझे तुरंत छोड़ दिया। उस वजह से विजय जब जेल से छूटा तो मुझसे मिले बिना दुबई चला गया और उसके बाद मैं पोलिस में भरती हो गया...”

मैं- “विजय को सजा हुई थी क्या?”

जावेद- “अमित भैया ने कोशिश तो बहुत की थी लेकिन खास सजा नहीं दिलवा पाए थे। लेकिन उन्होंने विजय को मारा बहुत था...”

मैं- “फिर?”

जावेद- “दुबई से आने के बाद वो मुझे एक बार मिला था, उसकी बातों से मुझे लगा की वो अभी तक अपनी कड़वाहट भूला नहीं है..”

मैं- “फिर तुमने जब रीता और अमित भैया के बारे में सुना तो उसपर शक हुवा...”

जावेद- “हाँ... और मैं विजय को इस बारे में पूछ-ताछ करने गया तो दूसरे दिन उसने मेरे बेटे को उठवा लिया

और उसे मार डालने की धमकी देकर छोड़ दिया, ये कहकर की मैं केस से हट जाऊँ और फिर उसने मेरा तबादला भी करवा दिया...”

मैं- “फिर तुम्हें मेरा खयाल कहां से आया?”

जावेद- “अब्दुल मुझे मिलने आया तब उसने मुझे रीता की दोस्त के बारे में बताया तो मैं समझ गया की वो तुम्हीं होगी, फिर तो क्या किया तुम जानती हो?”

मैं- “लेकिन मैं तुम्हें विजय को मारते देखकर बहुत डर गई थी, पहले से बता देते तो मैं इतना टेन्शन में नहीं आती..."

जावेद- “मैं पहले से तुम्हें मिलता तो तुम मुझ पर यकीन नहीं करती...”

उसकी बात तो सही थी। मैं उसे मिले बिना भी उसपर शक तो कर रही थी। तभी बाहर से एक स्कूल ड्रेस में एक पाँच साल का लड़का आया और जावेद को ‘पापा, पापा' कहकर उसकी गोद में बैठ गया। मैंने उसके बालों को सहलाते हुये जावेद से पूछा- “इसकी अम्मी नहीं दिखाई दे रही...”

मेरी बात सुनकर जावेद कुछ पल मेरे सामने देखता रहा और फिर बोला- “नगमा इसे जनम देते वक़्त अल्लाह को प्यारी हो गई...”
 
जावेद- “मैं पहले से तुम्हें मिलता तो तुम मुझ पर यकीन नहीं करती...”

उसकी बात तो सही थी। मैं उसे मिले बिना भी उसपर शक तो कर रही थी। तभी बाहर से एक स्कूल ड्रेस में एक पाँच साल का लड़का आया और जावेद को ‘पापा, पापा' कहकर उसकी गोद में बैठ गया। मैंने उसके बालों को सहलाते हुये जावेद से पूछा- “इसकी अम्मी नहीं दिखाई दे रही...”

मेरी बात सुनकर जावेद कुछ पल मेरे सामने देखता रहा और फिर बोला- “नगमा इसे जनम देते वक़्त अल्लाह को प्यारी हो गई...”

कुछ ही पल में जावेद का बेटा मुझसे घुल-मिल गया। मैंने आंटी का दिया हुवा शरबत पीते हुये उसका नाम पूछा- “बेटे तुम्हारा नाम क्या है?”

आदिल- “आंटी, आप मेरे पापा की क्या लगती हो?"

उसके सवाल से मैं सोच में डूब गई की क्या जवाब दें? मुझे कालेज के वो दिनों की याद आ गई, जब जावेद ने। मुझसे दोस्ती करने को कहा था- “हम आपके पापा की दोस्त हैं बेटा...”

आदिल- “बेस्ट फ्रेंड..”

मैं- “हाँ बेटा, हम आपके पापा के बेस्ट फ्रेंड हैं."

आदिल- “तो फिर आप मेरी भी फ्रेंड हुई ना?” उसका एक और सवाल।

मैं- “हाँ बेटा...” मैंने जवाब दिया।

आदिल- “तो फिर आप मेरे साथ मेरे रूम में चलिए, वहां मैं आपको खिलौने दिखाता हूँ..” आदिल ने मेरा हाथ खींचते हुये कहा।

मैं थोड़ा शर्मा रही थी पर उसका मन रखने के लिए उसके कमरे में गई। थोड़ी देर बाद जब आदिल अपने खिलौनों से खेलने में मशगूल हो गया तो मैं उसके कमरे से बाहर निकलने गई तो मेरे कानों में आंटी कीआवाज टकराई- “बेटा, ये वोही निशा है ना, जिसकी याद में तुम शादी नहीं करना चाहते थे?”

जावेद ने मेरी पहचान उन्हें दी थी तब क्यों उनकी आँखें चमक उठी थी वो मैं अब समझी।

जावेद- “हाँ... अम्मी ये वोही है...” जावेद की आवाज आई।

“बेटा, तूने उसे सारी बातें बताई लेकिन ये नहीं बताया की तू उसे कितना प्यार करता था...”

जावेद- “अम्मी, मैं उसे आज भी उतना ही प्यार करता हूँ। मैंने नगमा से शादी भी अम्मी तुम्हारा दिल रखने के लिए ही की थी और शायद उसी वजह से नगमा मुझे छोड़कर खुदा के पास चली गई...”

लेकिन बेटे तुम्हें खुदा ने मोका दिया था अपने दिल का हाल बताने का...”

जावेद- “अम्मी, एक बार तो मैंने उसके आगे अपने प्यार का झूठा इजहार किया था। अब दूसरी बार करता तो वो मुझ पर विस्वास नहीं करती और अम्मी मुझे उसके प्यार का अहसास तब हुवा, जब वो मुझसे दूर हुई और अब तो वो शादीशुदा है, वैसे में उससे ऐसी बात करना मुझे अच्छा नहीं लगा...”

जावेद की बात अभी पूरी नहीं हुई थी लेकिन मैं जहां खड़ी थी वहां ज्यादा देर तक छुप के रहेना मुश्किल था तो मैंने उनका ध्यान खींचने के लिए आदिल को कहा- “बाइ बेटे...”

मेरी आवाज सुनकर वो दोनों चुप हो गये।

आदिल- “बाइ, आंटी..” आदिल ने अंदर से कहा।

मैंने बाहर आकर जावेद से कहा- “मुझे देरी हो रही है, थोड़ी जल्दी करो...”

पोलिस कमिश्नर से मिलकर मुझे ऐसा लगा की उन्होंने मुझे सिर्फ फारमेलिटीस पूरी करने के लिए ही बुलाया है। क्योंकि उन्होंने मुझसे तीन-चार सवाल करके जाने को कहा।
 
वहां से निकलकर मैं दीदी के घर गई। वहां जीजू के बड़े भैया (अजय) और भाभी (पूनम) मिले। अजय भैया से मैं दीदी की शादी के बाद पहली बार मिल रही थी, क्योंकि जीजू जब हमारे घर नहीं आते थे तब उनके रिश्तेदार भी हमें नहीं मिलते थे।

शाम के छ बजे राजकोट के लिए मेरी बस थी इसलिए मैं दीदी के यहां ज्यादा देर नहीं रुकी और घर जाकर थोड़ा नाश्ता करके पापा के साथ स्टेशन जाने के लिए निकली। लिफ्ट से बाहर निकलते ही मुझे खुशबू मिली, उसके चेहरे की लाली और पेट के उभार से मुझे वो प्रेगनेंट है ऐसा लगा, तो मैंने उससे पूछा तो उसने 'हाँ' कहा फिर मैंने उससे प्रेम का हाल पूछा और वहां से निकल गई।

रत को 9:00 बजे मैं राजकोट पहुँच गई। नीरव स्टेशन पर आया था मुझे लेने के लिए और फिर रात के दो बजे तक नीरव ने मुझे सोने नहीं दिया। लेकिन अंत में उसके ‘टाई टाई फिस्स' से मेरा मूड आफ हो गया। उसके बाद पंद्रह दिन निकल गये। मेरी जिंदगी फिर से सामान्य होने लगी थी। उस बीच तीन-चार बार मैंने नीरव से रिपोर्ट के बारे में बात की, लेकिन वो हमेशा की तरह बात को टाल देता था। खुशबू को पेट से देखा तब से मेरे दिल की चाह और बढ़ गई थी, लेकिन मेरी किश्मत मुझे इसमें साथ नहीं दे रही थी।

दो दिन बाद रात के दो बजे नीरव का मोबाइल बजा और उसके बाद मैंने फिर से एक ऐसा काम किया जो मुझे नहीं करना चाहिए था।

वो फोन वीरंग भैया का था, उन्होंने बताया- “पापा (मेरे ससुर) को हार्ट-अटैक आया है और उन्हें हास्पिटल ले जा रहे हैं...”

मैं और नीरव तुरंत हास्पिटल पहुँचे, वहां बाहर लाबी में मेरी सास और जेठानी पहले से ही मौजूद थे। हमने मेरी सास से वीरंग भैया के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया की वो अंदर आई.सी.यू. में पापा के पास बैठे हुये हैं, जो सुनकर नीरव भी अंदर गया और मैं उनके पास बैठ गई।
फिर मैंने डाक्टर ने क्या कहा ये पूछा तो भाभी ने कहा- “पापा को भारी अटैक आया है, जल्द ही आपरेशन करने
की जरूरत है लेकिन डायबिटीस 400 के ऊपर है, वो जब तक नार्मल नहीं होगा तब तक आपरेशन नहीं हो पाएगा ऐसा डाक्टर का कहना है..."

मैं- “कब तक नार्मल हो जाएगा?"

“डाक्टर ने डायबिटीस के इंजेक्सन और मेडिसिन चालू कर दी है, दो-तीन दिन में डायबिटीस कंट्रोल में आ जाएगा ऐसा उनका कहना है...”

भाभी से बात करके मैं भी रूम में गई, वहां अंदर वीरंग भैया और नीरव डाक्टर से बातें कर रहे थे। मैं मेरे ससुर को हाल पूछकर वापस बाहर आ गई। उनकी हालत बहुत ही दयनीय थी, उनके मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही थी। सुबह मैं और नीरव मेरी सास को लेकर घर गये और वहां हम फ्रेश होकर वापस हास्पिटल आए। उसके बाद वीरंग भैया और भाभी घर गये, वो लोग दोपहर का खाना खाकर आए और हमारे लिए टिफिन लेकर आए।

उसके बाद हम घर गये और शाम को उनके लिए टिफिन लेकर आए। रात को मैं और मेरी जेठानी घर गईं और दोनों भाई और मेरी सास वहीं पर सो गये।
 
भाभी से बात करके मैं भी रूम में गई, वहां अंदर वीरंग भैया और नीरव डाक्टर से बातें कर रहे थे। मैं मेरे ससुर को हाल पूछकर वापस बाहर आ गई। उनकी हालत बहुत ही दयनीय थी, उनके मुँह से आवाज भी नहीं निकल रही थी। सुबह मैं और नीरव मेरी सास को लेकर घर गये और वहां हम फ्रेश होकर वापस हास्पिटल आए। उसके बाद वीरंग भैया और भाभी घर गये, वो लोग दोपहर का खाना खाकर आए और हमारे लिए टिफिन लेकर आए।

उसके बाद हम घर गये और शाम को उनके लिए टिफिन लेकर आए। रात को मैं और मेरी जेठानी घर गईं और दोनों भाई और मेरी सास वहीं पर सो गये।

दो दिन निकल गये लेकिन ना तो डायबिटीस कम हो रहा था, ना मेरे ससुर की तबीयत में कोई सुधार आ रहा था। हम सभी एक घर (हम लोग उनके साथ रहने गये थे) में रहने लगे थे। मेरी सास की तबीयत भी ठीक नहीं रह रही थी, जिस वजह से वो हास्पिटल नहीं जा रही थी।

तीसरे दिन दोपहर को मैं और नीरव हास्पिटल में बैठे थे। तभी नीरव को क्लाइंट का फोन आया और जरूरीआफिस आने को कहा। जाना जरूरी था इसलिए नीरव मुझे पापा का ध्यान रखने को कहकर निकल गया। दसपंद्रह मिनट बाद मेरे ससुर ने मुझे बताया की उन्हें लेट्रिन जाना है। मैं जल्दी से बाहर गई और वाईवाय को। बुलाकर लाई।

वाईवाय मेरे ससुर को बाथरूम ले जाने के लिए धीरे-धीरे करके एक तरफ के हाथ को पकड़कर पलंग पर से नीचे उतार रहा था, तभी उसका बैलेन्स नहीं रहा और मेरे ससुर पलंग पर से नीचे की तरफ झुक गये। वाईवाय डर गया और मैं जल्दी से वहां गई और मैंने मेरे ससुर को दूसरी तरफ से पकड़ लिया और मेरे ससुर गिरते-गिरते बच गये। लेकिन ये सब करते हुये मेरी साड़ी का पल्लू मेरे ब्लाउज पर से हटकर नीचे सरक गया और मेरी
आधी नंगी चूचियां दिखने लगीं, जिसे वाईवाय घूरने लगा। और कोई वक़्त होता तो मैं अपने ससुर का हाथ छोड़ देती। लेकिन मेरे पास और कोई चारा नहीं था तो मैंने उसे नजर अंदाज किया और मेरे ससुर को बाथरूम तक छोड़कर मैं अपनी साड़ी ठीक करने लगी।

उसके बाद और दो दिन निकल गये। लेकिन मेरे ससुर की तबीयत में कोई खास सुधार नहीं दिख रहा था। दोपहर से पहले मैं और नीरव हास्पिटल जाते थे, और दोपहर के बाद भैया और भाभी रहते थे।

नीरव जब भी मुझे अकेला हास्पिटल छोड़ जाता था, तब वो वाईवाय बिना वजह एक दो चक्कर लगा जाता था। मैं उसके मुँह नहीं लगती थी, फिर भी वो आकर अपनी बक-बक से मेरा सिर दुखा जाता था। बातों ही बातों में उसने मुझे बताया की वो मराठी है। मेरे साथ बात करना उसके लिए एक बहाना था, बात करते वक़्त उसकी नजर हमेशा मेरे बदन के उस हिस्से पर टिकी रहती थी जो उसने आकस्मात से देख ली थी।

चौथे दिन रात को मेरे ससुर की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई (सुबह तक फिर से पहले की तरह सामान्य हो गई), पूरी रात हम सब हास्पिटल में बैठे रहे। सुबह सभी बहुत थके हुये थे इसलिए नीरव अकेला हास्पिटल में रहा और हम सभी घर आए।

घर आकर वीरंग भैया सो गये और हम सब फ्रेश होकर रसोई करने में व्यस्त हो गये। दस बजे मेरी सास मंदिर गई, उसके थोड़ी देर बाद भाभी भैया को जगाने के लिए गईं। मैं जो भी काम रह गया था वो निपटाने में लग गई। तभी मेरी सास मंदिर से वापस आई।

सास ने आते ही कहा- “मैं मंदिर से डोरा (धागा) लाई हूँ, वो तुम पूजा (मेरी जेठानी) को दे आओ और कहना की हास्पिटल जाते ही महा मृत्युंजय का पाठ करते हुये पापा की कलाई पे बाँध देना...”

मैं- “ये अच्छा किया, मम्मी जो आप ले आई, भाभी बाहर आएंगी तब दे देंगी...” मैंने डोरा उनके हाथ से लेते हुये कहा।

सास- “नहीं अभी देकर आओ फिर कहीं भूल गये तो? आज का दिन शुभ है, पूजा को कहना अभी ही उसके पर्स में रख दे...” मेरी सास उनके रूम में जाते हुये बोली।

मैं- “ठीक है...” कहती हुई मैं भैया और भाभी के रूम की तरफ गई। उनका कमरा ऊपर की तरफ था (फ्लैट इयूप्लेक्स है) मैं सीढ़ियां चढ़कर जैसे ही भाभी को आवाज लगाने गई तभी उनकी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी।

भाभी- “आज तो आ जाएगी ना वसीयत?”

वसीयत की बात सुनकर मैं वही पर रुक गई और उनकी बात ध्यान से सुनने लगी।
 
वीरंग- “हाँ... कहा तो है...” भैया ने कहा।

भाभी- “मतलब की आज भी फिक्स नहीं है, कितने दिन हो गये वसीयत बनाने में?” भाभी ने कहा।

वीरंग- “काम तो दो दिन पहले ही शुरू किया है...”

भाभी- “मैं एक महीने से आपको कह रही हूँ की पापा से मैं किसी भी तरह साइन करवा देंगी, लेकिन आप हैं। की..” भाभी गुस्से में थी फिर भी दबी आवाज में बोल रही थी।

वीरंग- “कोई ऐरा-गैरा तो नहीं बना देगा ना? अपनी पहचान वाला होना चाहिए। बाद में किसी को बता दे या हमें ब्लैकमेल करे तो ये सोचकर मैंने अपने दोस्त से वसीयत बनाने की सोची और वो फारेन में था, दो दिन पहले। ही इंडिया में आया, आते ही पहला काम हमारा हाथ में लिया है...”

भाभी- “लेकिन उसके पहले पापा को कछ हो गया तो?"

वीरंग- “देख तू जितना सोचती है उतना आसान नहीं है ये, इसमें दो गवाह की साइन भी लेनी पड़ती है और रजिस्ट्री भी करवाना पड़ता है। इसलिए मैंने मेरे दोस्त को काम दिया है उसकी पहुँच ऊपर तक है...”

भाभी- “वो पुरानी वसीयत जिसमें नीरव भी हिस्सेदर है, वो रेजिस्टर्ड हैं क्या?” हमारा जिकर आते ही मैं और चौंकन्नी हो गई।

वीरंग- “अरे यार, वो रजिस्टर्ड नहीं होती तो क्या टेन्शन था? उसका हिस्सा लेने के लिए तो हमने ये सब किया है, लेकिन तू पापा को जल्दी लपेट न सकी...”

भैया की बात सुनकर मैं चौंक गई- “क्या भाभी और मेरे ससुर? नहीं इसका और कोई मतलब होता होगा...” मैंने सोचा।

भाभी- “तुमने जो कहा वो सब मैंने किया। मेरी एक भी ना ना तूने सुनी थी? मैं अपनी मर्जी से तुम्हारे पापा के साथ सोती नहीं थी, तुम्हारे कहने पर मैंने ये किया था। फिर भी तुम मेरी गलती निकाल रहे हो...” बोलते हुये भाभी की आवाज भारी हो गई थी और मेरा दिमाग।

वीरंग- “चल अब चुप कर, मैं फोन करके पूछता हूँ वसीयत बन गई है की नहीं?” कहकर भैया चुप हो गये और कुछ सेकेंड बाद उनकी आवाज फिर से सुनाई दी- “बन गई, ओके मैं आधे घंटे में ले जाता हूँ...”

भाभी- “बन गई...” भाभी की आवाज सुनाई दी, शायद भैया ने फोन रख दिया होगा।

वीरंग- “हाँ... जानेमन अब जल्दी कर, आज ही खतम कर देते हैं हम अपना काम..” भैया ने कहा।

और मैं सोच में पड़ गई की अब क्या होगा? वसीयत में पापा की साइन हो गई तो हमारा क्या होगा? ऐसे भी नीरव की कोई अहमियत नहीं है इस घर में, साइन हो गई तो भैया और भाभी तो हमें घर से भी निकाल देंगे। मैं जल्दी से वापस किचन के पास आ गई, मैं किसी भी तरह भैया और भाभी को हास्पिटल जाने से रोकना चाहती थी। लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करूं?

तभी मेरे दिमाग में एक बात आई। मैं किचन के पास वहीं नीचे बैठ गई। थोड़ी देर बाद मेरी सास कमरे से बाहर आई तो मैंने उन्हें झूठ कहा- “मेरा मासिक (पीरियड) आ गया है...”

मासिक में हमारे यहां मंदिर और किचन में नहीं जाते। मेरी बात सुनकर मेरी सास ने पूछा- “वो डोरा?”

मैंने मेरे हाथ की मुट्ठी खोलकर उन्हें डोरा दिखाया।

सास- "हे भगवान्... अब तो ये काम नहीं आएगा... नहीं तो पूजा को भेज देते डोरा बाँधने के लिए...” ।

हम बात ही कर रहे थे तभी भाभी ऊपर से आई, और पूछा- क्या हुवा?

सास- “निशा का मासिक आ गया, अब रसोई की पूरी जिमेदारी तुझ पर आ गई है। एक काम करो मुझे और निशा को खाना दे दो..” मेरी सास ने कहा।

भाभी- “देती हूँ..” कहते हुये भाभी दो थाली लेकर आई।

हम खाना खा ही रहे थे कि वीरंग भैया आए. “जल्दी करो पूजा हमें हास्पिटल जाना है...”

सास- “हास्पिटल पूजा नहीं निशा जाएगी...” मेरी सास ने कहा।

वीरंग- “क्यों?” भैया ने पूछा।

सास- “पूजा हास्पिटल जाएगी तो रसोई कौन बनाएगा? निशा मासिक में है...” मेरी सास ने कहा।

मैंने भैया की तरफ देखा। उनका मुँह लटक गया था।

वीरंग- “ऐसा करो ना मम्मी, हम थोड़ी देर के लिये चले जाते हैं बाद में निशा को भेजना, वो बोर हो जाएगी अकेली...”

सास- “निशा अकेली नहीं जाने वाली, तुम जाओगे उसके साथ। अब दो दिन तक निशा ही वहां रहेगी और तुम दोनों भाई बारी-बारी..” मेरी सास ने अपना हुकुम सुना दिया।

थोड़ी देर बाद मैं और भैया हास्पिटल जाने के लिए निकले, रास्ते में भैया ने फोन भी किया- “मैं बाद में ले जाऊँगा..."

मैं समझ गई थी की वो किस चीज की बात कर रहे हैं।
* *
* * *
*
* * *
 
मैंने पांडु के हाथ से उसका मोबाइल छीन लिया और उसके लगाए हुये फोन को सामने से कोई उठाए उसका इंतेजार करने लगी। दो बार रिंग खतम हो गई लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया, लेकिन तीसरी बार की कोशिश में फोन उठा लिया गया।

कृष्णा- “मैंने कहा ना मैं रात को तेरे घर आ जाऊँगी, अभी तुम मुझे परेशान मत करो...” मैं समझ गई वो कृष्णा ही है।

मैं- “रात को अब तुम्हें पांडु के पास जाने की कोई जरूरत नहीं है...” मैंने कहा।

कृष्णा- “आप, आप कौन?” उसने पूछा।

मैं- “मैं जो भी हैं लेकिन मेरी बात सुनो। अब तुम्हें अपनी मर्जी के बिना पांडु से मिलने की कोई जरूरत नहीं है, मैंने तेरी क्लिप डेलिट कर दी है...” मैंने कहा।

कृष्णा- “आप सच कह रही हैं दीदी? मैं आपको दीदी कह सकती हूँ ना?”

मैं- “हाँ... कह सकती हो और मैं तुमसे झूठ क्यों बोलँ?”

कृष्णा- “थॅंक्स दीदी, हम लोगों का बाथरूम कामन है, उसने उसमें छेद करके मेरी वीडियो बना ली और फिर दीदी सबको दिखाने की धमकी देकर उसने मेरा उपभोग किया...” कृष्णा बोलते हुये भावुक हो गई।

मैं- इसमें तुम्हारी भी गलती कम नहीं है कृष्णा...”

कृष्णा- “मेरी गलती?”

मैं- “हाँ... तुम्हारी। जब उसने तुम्हें पहली बार क्लिप दिखाकर ब्लैकमेल किया तब तुम पोलिस में रिपोर्ट कर देती तो तुम्हारी इज़्ज़त बच जाती...”

कृष्णा- “लेकिन दीदी, मैं डर गई थी."

मैं- “इसी डर के करण तो मर्द हमारा मनमानी उपयोग करते हैं, और हमें क्यों डरना चाहिए? डरना तो उसे चाहिए जिसने हमारी क्लिप बनाई है, उसने गैर कानूनी काम किया है, हमने नहीं...” मैंने कहा।

कृष्णा- “लेकिन दीदी हमें हमारी इज्ज़त का भी खयाल करना पड़ता है ना?”

मैं- “सही बात है तेरी। हमें अपनी इज्ज़त का खयाल जरूर करना चाहिए। लेकिन मेरे खयाल से हमें अपनी बाहरी इज्ज़त बचाने के लिए अपनी अंदरूनी इज्ज़त को दाँव पर नहीं लगाना चाहिए। अगर तुम उसी दिन पोलिस में रिपोर्ट कर देती तो आज तुम बेदाग होती...” मैंने कहा।

कृष्णा- “सही बात है, दीदी आपकी..”

मैं- “मर्द हमेशा औरतों की भावुकता और डर का ही गलत उपयोग करता है। कभी भी अपनी मर्जी के बिना किसी की भी गलत इच्छाओं के आधीन हमें नहीं होना चाहिए, ये मैं अपने खुद के अनुभव से कह रही हूँ..”
 
कृष्णा- “थॅंक्स दीदी... आपने मुझे सही रास्ता दिखा दिया, लेकिन दीदी ये तो बताइए कि आपको मेरी क्लिप के बारे में पता कैसे चला?”

मैं- “मैं वोही हास्पिटल में हैं, जहां ये पांडु काम करता है। मैंने उसे कोने में खड़े होकर तेरी क्लिप देखते हुये पकड़ लिया। मैं फोन रख रही हूँ अभी, बाइ..” वो कोई और सवाल पूछे उसके पहले मैंने फोन काट दिया और पांडु को उसका मोबाइल देकर वहां से निकलने को कहा।
* *
* * *
* * *
* *
तीन माह हो गये थे हम लोगों को अहमदाबाद आए। इन तीन माह में मैं और मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल । चुकी थी। आज भी मुझे वो दिन बार-बार याद आता है, जब हम राजकोट से निकलने वाले थे और मैंने नीरव के कपबोर्ड में कुछ कागज देखे, जिसने मेरी जिंदगी बदल डाली।

वो कागज मेरी रिपोर्ट के थे, जो पढ़कर मुझे मालूम पड़ा की मैं प्रेगनेंट नहीं हो सकती। मुझमें कुछ ऐसी प्राब्लम है जिसके करण मैं कभी भी माँ नहीं बन सकती। रिपोर्ट पढ़कर मुझ पर बिजली गिर पड़ी थी, मैं पहले तो । इसलिए रोने लगी की मैं अब कभी भी माँ नहीं बन पाऊँगी, और फिर नीरव का खयाल आते ही मेरा रोना बढ़ गया।

कितना प्यार करता है वो मुझे, मुझमें खामी थी लेकिन उसने मुझे कभी कहा नहीं और मैं हमेशा उसे तानेमारती रही, कितनी गिरी हुई हूँ मैं। मैं उसे धोखा देती रही और वो मुझसे इतना प्यार करता रहा। रात को नीरव आया, तब मैं उससे लिपटकर जोरों से रोने लगी।

नीरव ने मुझे बाहों में लेकर मेरे बालों को सहलाते हुये पूछा- “क्या हुवा निशु?”

मैं रोती रही, कोई जवाब दिए बगैर।

नीरव मेरी पीठ थपथपाते हुये बोला- “तेरे पापा की चिंता हो रही है, क्या तुझे?”

मैं उस भोले इंसान की बात सुनकर और जोरों से रोने लगी।

नीरव- “हम कल से अहमदाबाद सिफ्ट हो रहे हैं। फिर तो तुम हर रोज अपने मम्मी-पापा को मिल सकोगी और उन्हें कोई प्राब्लम ना हो तो वो लोग हमारे साथ भी रह सकते हैं। मेरे मम्मी-पापा का साथ तो मुझे नहीं मिला,
लेकिन तुम्हें तो तेरे मम्मी-पापा का साथ मिलेगा.”

कितना खयाल करता है वो मेरा, मैं यही सोचकर उससे लिपटकर और रोने लगी।

इन तीन महीनों में कई अच्छे दिन आए मेरी जिंदगी में, लेकिन इन सब में सबसे बेहतरीन दिन था जब रीता को होश आया। होश में आने को बाद वो बहुत जल्द ठीक होकर अपने घर भी वापस आ गई। मैं हफ्ते में एक बार उससे जरूर मिलने जाया करती थी, वहां अक्सर जावेद मिल जाता था।

नीरव ने भी उसका नया बिजनेस अच्छी तरह से सेट कर लिया था और उसने जीजू को साथ में ले लिया था। जिस वजह से जीजू के फाइनेंसियल प्राब्लम कम हो गये थे। नीरव ने मेरे मम्मी-पापा को हमारे साथ रहने को कह दिया था, लेकिन वो अभी तक आए नहीं थे।
 
Back
Top