desiaks
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अब्दुल- “किसने मारा? या अल्लाह, कहीं इसने तो... ...” अब्दुल ने मेरी तरफ देखकर अपनी बात को अधूरा छोड़ दिया।
जावेद- “नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुवा, विजय पोलिस की गोलियों से मारा गया है...”
अब्दुल- “अल्लाह का सुकर है, मैं इसे ले जा सकता हूँ?” अब्दुल ने मुझे ले जाने की इजाज़त माँगते हुये पूछा।
जावेद- “जरूर, लेकिन इसके पहले आपको कुछ फारमेलिटी पूरी करनी पड़ेगी...”
अब्दुल- “जी, मैं जानता था इसलिए इसका और इसके अब्बू का एलेक्सन काई और साथ में हम दोनों के घर का एलेक्ट्रिक बिल लेकर आया हूँ...” कहते हुये अब्दुल ने तीन चार कागज जावेद को दिए।
जावेद ने वो सब चेक करके कान्स्टेबल को दिया और अब्दुल को मेरे बयान के नीचे दस्तखत करने को कहा।
अब्दुल ने दस्तखत करके फिर से पूछा की- “अब हम जा सकते हैं?”
जावेद- “जरूर, लेकिन इन्हें एक बार कल कमिश्नर से मिलना होगा...”
अब्दुल- “ठीक है, चलो बिटिया...” अब्दुल ने मुझे कहा। हम दोनों बाहर आए।
हमारे पीछे-पीछे जावेद आया, उसने चारों तरफ देखकर धीरे से कहा- “अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चला लेकिन परबत सिंह के आने के बाद टेन्शन है.”
अब्दुल- “आप बेफिक्र रहिए, सब कुछ सही-सही होगा...” अब्दुल ने कहा।
जावेद- “वैसे कमिश्नर साहब ने मुझे पूरी छूट दे रखी है...”
अब्दुल- “तो चिंता की कोई बात ही नहीं है ना...”
जावेद- “लेकिन वो भी परबत सिंह से डरते हैं। अब आप लोग जल्दी से निकलो यहां से, परबत सिंह को खबर दे दी गई है, वो पहले हास्पिटल गया है जहां विजय की लाश का पोस्टमार्टम हो रहा है...”
अब्दुल- “ठीक है, हम निकलते हैं, खुदा हाफिज..” कहकर अब्दुल गाड़ी में बैठा और इशारे से मुझे बैठने को कहा और गाड़ी स्टार्ट की। कुछ देर बाद अब्दुल ने कहा- “अब तुम्हारी फ्रेंड पर कोई खतरा नहीं है...”
मैं- “वो तो है, लेकिन ये सब कुछ ज्यादा हो गया?” मैंने मेरे मुँह पर साड़ी का पल्लू ओढ़ा हुवा था वो खोलते हुये कहा।
अब्दुल- “और कोई रास्ता नहीं था, खुद कमिश्नर भी जानता था की विजय ने ही अमित को मारा है, लेकिन परबत की वजह से कुछ नहीं कर सकते थे, और साथ में पोलिस को विजय के विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं मिल रहा था। सारा पोलिस बीभाग उनके आदमी के कतल का बदला लेने के लिए तरसता था, लेकिन पोलिस किसी को सुपारी तो नहीं दे सकती ना... इसलिए ये सब करना पड़ा। और अब तुम्हारी वजह से विजय पर बलात्कार करने की कोशिश का इतना संगीन आरोप लग चुका है की परबत सिंह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेगा...”
मैं- “मतलब की मेरा इश्तेमाल तुम लोगों ने उस बकरी की तरह किया, जिसे बाँधकर शेर का शिकार किया जाता है...” मैंने कहा।
अब्दुल- “बिल्कुल ठीक... लेकिन यहां फर्क ये है की शेरनी को बाँधकर बकरे को हलाल किया गया है. अब्दुल ने मुश्कुराते हुये कहा।
मैं- “जावेद को तुम कब से जानते हो?” मेरे मन से कब से जो सवाल घूम रहा था वो मैंने पूछ लिया।
अब्दुल- “तुमसे बात तो हुई थी, कुछ ही दिन से जानता हूँ मैं उसे..” अब्दुल ने कहा।
मुझे लगा की उससे जावेद की पुरानी बात करने का कोई फायदा नहीं है।
अब्दुल- “एक ही गलती हो गई, हमने सोचा ही नहीं था की विजय तुम्हें होटेल ग्रीनलैण्ड की जगह और कोई होटेल ले जा सकता है, और हमने होटेल ग्रीनलैंड इसलिए पसंद किया था की एक तो वो मेरे दोस्त का था और दूसरा वो होटेल जावेद के इलाके में आता था...”
जावेद- “नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुवा, विजय पोलिस की गोलियों से मारा गया है...”
अब्दुल- “अल्लाह का सुकर है, मैं इसे ले जा सकता हूँ?” अब्दुल ने मुझे ले जाने की इजाज़त माँगते हुये पूछा।
जावेद- “जरूर, लेकिन इसके पहले आपको कुछ फारमेलिटी पूरी करनी पड़ेगी...”
अब्दुल- “जी, मैं जानता था इसलिए इसका और इसके अब्बू का एलेक्सन काई और साथ में हम दोनों के घर का एलेक्ट्रिक बिल लेकर आया हूँ...” कहते हुये अब्दुल ने तीन चार कागज जावेद को दिए।
जावेद ने वो सब चेक करके कान्स्टेबल को दिया और अब्दुल को मेरे बयान के नीचे दस्तखत करने को कहा।
अब्दुल ने दस्तखत करके फिर से पूछा की- “अब हम जा सकते हैं?”
जावेद- “जरूर, लेकिन इन्हें एक बार कल कमिश्नर से मिलना होगा...”
अब्दुल- “ठीक है, चलो बिटिया...” अब्दुल ने मुझे कहा। हम दोनों बाहर आए।
हमारे पीछे-पीछे जावेद आया, उसने चारों तरफ देखकर धीरे से कहा- “अभी तक सब कुछ ठीक ठाक चला लेकिन परबत सिंह के आने के बाद टेन्शन है.”
अब्दुल- “आप बेफिक्र रहिए, सब कुछ सही-सही होगा...” अब्दुल ने कहा।
जावेद- “वैसे कमिश्नर साहब ने मुझे पूरी छूट दे रखी है...”
अब्दुल- “तो चिंता की कोई बात ही नहीं है ना...”
जावेद- “लेकिन वो भी परबत सिंह से डरते हैं। अब आप लोग जल्दी से निकलो यहां से, परबत सिंह को खबर दे दी गई है, वो पहले हास्पिटल गया है जहां विजय की लाश का पोस्टमार्टम हो रहा है...”
अब्दुल- “ठीक है, हम निकलते हैं, खुदा हाफिज..” कहकर अब्दुल गाड़ी में बैठा और इशारे से मुझे बैठने को कहा और गाड़ी स्टार्ट की। कुछ देर बाद अब्दुल ने कहा- “अब तुम्हारी फ्रेंड पर कोई खतरा नहीं है...”
मैं- “वो तो है, लेकिन ये सब कुछ ज्यादा हो गया?” मैंने मेरे मुँह पर साड़ी का पल्लू ओढ़ा हुवा था वो खोलते हुये कहा।
अब्दुल- “और कोई रास्ता नहीं था, खुद कमिश्नर भी जानता था की विजय ने ही अमित को मारा है, लेकिन परबत की वजह से कुछ नहीं कर सकते थे, और साथ में पोलिस को विजय के विरुद्ध कोई प्रमाण नहीं मिल रहा था। सारा पोलिस बीभाग उनके आदमी के कतल का बदला लेने के लिए तरसता था, लेकिन पोलिस किसी को सुपारी तो नहीं दे सकती ना... इसलिए ये सब करना पड़ा। और अब तुम्हारी वजह से विजय पर बलात्कार करने की कोशिश का इतना संगीन आरोप लग चुका है की परबत सिंह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेगा...”
मैं- “मतलब की मेरा इश्तेमाल तुम लोगों ने उस बकरी की तरह किया, जिसे बाँधकर शेर का शिकार किया जाता है...” मैंने कहा।
अब्दुल- “बिल्कुल ठीक... लेकिन यहां फर्क ये है की शेरनी को बाँधकर बकरे को हलाल किया गया है. अब्दुल ने मुश्कुराते हुये कहा।
मैं- “जावेद को तुम कब से जानते हो?” मेरे मन से कब से जो सवाल घूम रहा था वो मैंने पूछ लिया।
अब्दुल- “तुमसे बात तो हुई थी, कुछ ही दिन से जानता हूँ मैं उसे..” अब्दुल ने कहा।
मुझे लगा की उससे जावेद की पुरानी बात करने का कोई फायदा नहीं है।
अब्दुल- “एक ही गलती हो गई, हमने सोचा ही नहीं था की विजय तुम्हें होटेल ग्रीनलैण्ड की जगह और कोई होटेल ले जा सकता है, और हमने होटेल ग्रीनलैंड इसलिए पसंद किया था की एक तो वो मेरे दोस्त का था और दूसरा वो होटेल जावेद के इलाके में आता था...”