Hindi Antarvasna - चुदासी - Page 23 - SexBaba
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Hindi Antarvasna - चुदासी

नीरव ने भी उसका नया बिजनेस अच्छी तरह से सेट कर लिया था और उसने जीजू को साथ में ले लिया था। जिस वजह से जीजू के फाइनेंसियल प्राब्लम कम हो गये थे। नीरव ने मेरे मम्मी-पापा को हमारे साथ रहने को कह दिया था, लेकिन वो अभी तक आए नहीं थे।

इन सबके बीच फिर से वही हुवा जो हर रोज होता है। उस दिन मम्मी-पापा ने हमें खाने पे बुलाया था तो मैं दोपहर से वहां चली गई। लेकिन मेरे पहुँचने के बाद मम्मी-पापा को चाचा के घर जाने को हुवा। मम्मी-पापा के
जाने के दो ही मिनट बाद घर की डोरबेल बजी तो मैंने दरवाजा खोला तो सामने अब्दुल को पाया।

मैं कुछ सोचूं या बोलूं उसके पहले अब्दुल ने अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया और मुझे बाहों में जकड़ लिया“अरे बुलबुल तू जब से अहमदाबाद में आ गई है, तब से तो मुझे मिलती ही नहीं...”

मैंने अब्दुल की बाहों में से अपने आपको मुक्त करके थोड़ा आगे जाकर कहा- “मुझे छोड़ो, मैं पानी लाती हूँ, तुम्हारे लिए...”

लेकिन उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और उसकी तरफ खींचते हुये कहा- “प्यास तो लगी है, लेकिन उसके लिए पानी की नहीं तुम्हारी जरूरत है."

मैं- “प्लीज़... अब्दुल अभी नहीं...” मैंने अपना हाथ छुड़ाते हुये कहा। और कोई होता तो मैं उसे मार देती लेकिन अब्दुल ने कुछ ही दिनों पहले मेरी मदद जो की थी वो मैं कैसे भूल जाती।

अब्दुल- “अभी क्या प्राब्लम है?” अब्दुल ने मुझे पीछे से पकड़ लिया और मेरे बालों को सूंघते हुये मेरी गर्दन को चूमने लगा।

मैं- “मेरे मम्मी-पापा आ जाएंगे...” मैंने उसे पीछे धकेलने की नाकाम कोशिश करते हुये कहा।

अब्दुल हँसते हुये मेरी गर्दन को पागलों की तरह चूमने लगा- “तुम्हारे मम्मी-पापा मुझे नीचे मिले, बुलबुल... वो तो तीन घंटे बाद वापस आने वाले हैं...”
 
उसकी हरकतों से मैं बहकने लगी थी, मेरा ईमान डोलने लगा था, नीरव के प्यार को मैं भूलने लगी थी, लेकिन फिर भी मैंने अपनी हार नहीं मानी- “प्लीज़... अब्दुल, अभी मेरी इच्छा नहीं है, छोड़ो मुझे...”

लेकिन अब्दुल मेरी बात सुनने के मूड में नहीं था, उसका लण्ड मेरी गाण्ड को छू रहा है, वो मुझे महसूस हो रहा था। उसने अपना हाथ मेरी सलवार में डाल दिया था और वो मेरी चूत को पैंटी के साथ सहलाने लगा था और मैं धीमी-धीमी आवाज में- “नहीं अब्दुल, नहीं अब्दुल...” बोले जा रही थी।

लेकिन अब मेरी ना-ना में कुछ हद तक हाँ-हाँ भी शामिल थी। लेकिन तभी मेरा मोबाइल बजा था और उसकी आवाज से डरकर अब्दुल ने मुझे छोड़ दिया था और मैंने आगे बढ़कर टेबल पर से मोबाइल उठाया, वो काल नीरव की थी।

नीरव ने पूछा- “कहां हो?”

मैं- “मैं यहां मम्मी के पास आई हूँ, कुछ काम था क्या?”

नीरव- “हाँ। लेकिन तुम घर पर होती तो हो सकता था, लेकिन कोई बात नहीं...”

मैं- “तो मैं घर आ जाती हूँ ना?”

नीरव- “नहीं, नहीं कोई बात नहीं चलेगा...” नीरव ने कहा।

मैं- “ठीक है...” मैंने कहा और नीरव ने फोन काट दिया लेकिन मैं बोलती रही। यही एक रास्ता था अब्दुल से पीछा छुड़ाने का- “ठीक है, तुम कहते हो तो मैं आ जाती हूँ, इतना जरूरी है तो आना ही पड़ेगा...”

और फिर मैंने अब्दुल की तरफ घूमकर कहा- “मुझे जाना पड़ेगा, नीरव मुझे घर बुला रहा है.”

अब्दुल- “ओके मेडम। पहले पातिदेव, फिर हम... कहें तो आपके घर छोड़ दें हम..” अब्दुल ने दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाते हुये कहा।

मैं- “नहीं, नहीं मैं चली जाऊँगी...” मैंने कहा।

उस दिन के बाद मैं हमेशा सोचती हूँ की मुझे अब उस रास्ते पे नहीं जाना हो तो ज्यादा ध्यान रखना पड़ेगा

और उसमें सबसे खास अब्दुल का खयाल रखना पड़ेगा।

* * * * *
 
आज सुबह के पेपर में मैंने राजकोट की एक खबर पढ़ी- “कृस्णा नाम एक लड़की ने खुदकुशी कर ली, लड़की ने अपनी बीमारी से तंग आकर खुदकुशी की थी और वो एच.आई.वी. पाजिटिव थी...”

खबर पढ़ने के कुछ देर बाद मेरे दिमाग में आया की पांडु जिस लड़की को परेशान कर रहा था, उसका नाम भी कृस्णा था। फिर मैंने सोचा की राजकोट में कई सारी कृस्णा होंगी, यही एक थोड़ी होगी। लेकिन दिमाग में से । बात निकल नहीं रही थी। रह-रहकर एक ही बात दिमाग में आया करती थी की अगर ये कृस्णा वही होगी तो पांडू भी एच.आई.वी. पाजिटिव होगा और उसके साथ तो मैंने भी संभोग किया है।

पूरा दिन यही बात सोचती रही, खाना भी ना के बराबर खाया, पूरी रात बार-बार लगातार जागती रही, दूसरे दिन और रात भी वही हाल रहा।

नीरव ने मुझे कई बार पूछा की- “क्या हुवा?”

लेकिन मैं कोई जवाब दिए बगैर उसी बारे में सोचती रही, हर वक़्त मेरी आँखों के सामने पांडु नाचता हुवा कह रहा था की- “तूने पांडु को गान्डू बनाया था ना तो देख पांडु ने तुझे एच.आई.वी. पाजिटिव बना दिया, हाहाहा..”

और मैं अपने सिर को पकड़ लेती।
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तीसरे दिन रात को मेरी नींद लग गई और सपने में पांडु और करण आए और मेरा मजाक उड़ाने लगे और मैं चीखती हुई खड़ी हो गई- “नहीं... नहीं में एच.आई.वी. पाजिटिव नहीं हो सकती?” मेरा पूरा शरीर पसीने से तरबतर था, मैं हाफ रही थी और नीरव भी मेरे साथ जाग गया था और मुझे बाहों में लेकर मेरी पीठ सहलाने । लगा, मैं रोने लगी।

नीरव- “क्या हुवा निशा, आजकल तुझे क्या हो गया है?”

मैं जोरों से रोने लगी।

कुछ देर नीरव ऐसे ही चुपचाप मेरी पीठ सहलाते रहा और फिर बोला- “क्या हुवा निशा?”

आज मैंने भी सोच लिया था की जो भी है सब सच-सच नीरव को बता देना है, और छुपाकर मैं अब जी नहीं सकती। मैं बोलने लगी, नीरव सुनने लगा, मैंने सारी बात बता दी, करण, रामू, जीजू, अंकल, प्रेम, अब्दुल, । विजय, पांडु और नीरव के पापा के साथ मैंने कब और किस-किस हालत में सेक्स किया वो सारी बातें मैंने नीरव को बता दी।

नीरव के चेहरे पर कई प्रत्याघात आए। फिर भी बीच में कुछ बोले बिना वो चुपचाप सुनता रहा और जैसे ही मेरी बात खतम हुई उसने मेरे गाल पर जोरों से एक थप्पड़ मारा। नीरव ने इतनी जोरों से मेरे गाल पर थप्पड़ मारा
था की मेरे होंठों के कोने से खून निकल आया

नीरव- “अब बताती है ये सब तुम मुझे, तूने उस वक़्त...” वो आगे नहीं बोल सका। वो रोने लगा और साथ में मैं भी रोने लगी। रोते हुये उसका शरीर कांप रहा था।

मैं चाहती थी की वो मुझे और मारे, गालियां दे लेकिन वो रोए ही जा रहा था। मैं रोती हुई बार-बार एक ही बात कह रही थी- “मुझे माफ कर दो नीरव...” लेकिन उसे छूने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, डर लग रहा था की कहीं वो मुझे दुतकार न दे।
 
कुछ देर बाद वो दूसरी तरफ मुँह करके लेट गया लेकिन उसकी सिसकियां बंद नहीं हुई थीं। पूरी रात मुझे नींद नहीं आई और शायद नीरव को भी। दूसरे दिन सुबह वो चुपचाप जल्दी उठकर आफिस चला गया। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था की मैं क्या करूं? मैंने सोच लिया था की नीरव ने मुझे घर से निकल दिया तो मैं किसी अनाथ-आश्रम में चली जाऊँगी और वहां बच्चों की सेवा करूंगी। दोपहर को नीरव का काल आया।

मैंने कंपकंपाती आवाज में उससे बात शुरू की- “हाँ, बोलो...”

नीरव- “तुम पीरामल लबोरेटरी आ जाओ...” नीरव ने कहा।

मैं- “क्यों?”

नीरव- “तुम्हारा वहम दूर करने के लिए, तुम्हारी एच.आई.वी. का रिपोर्ट निकालने के लिए..”

मैं जल्दी से तैयार होकर पीरामल लबोरेटरी पहुँची। वहां पहले से ही नीरव मोजूद था। वो इस वक़्त कुछ नार्मल दिख रहा था। वहां मेरा ब्लड देकर हम घर वापस आए, उसके बाद नीरव आफिस नहीं गया। रात तक तो नीरव पूरी तरह से नार्मल हो गया था। मेरी धारणा के विपरीत उसने पूरे दिन में एक भी बार पुरानी बातों को याद नहीं किया था।

मैं घर का सारा काम निपटाकर बेडरूम में गई। तब नीरव नहाकर नया नाइट-सूट पहनकर बैठा था। उसने मुझे बाहों में जकड़ लिया और मेरे होंठ चूमने लगा। मेरी सोच के विपरीत उसकी ये हरकत देखकर मेरी आँखें भर
आईं। नीरव ने मुझे बेड पर लेटाकर साड़ी को मेरी गाण्ड तक ऊपर उठाई और फिर वो मेरे होंठों को चूमते हुये मेरी दो टांगों के बीच में आ गया और अपना पाजामा नीचे करके मेरी चूत पर अपना लण्ड घिसने लगा।

मैंने मेरी टांगों को एक के ऊपर दूसरी को चढ़ा दी, नीरव को अपने ऊपर से धक्का देते हुये कहा- “अभी नहीं...”

नीरव- “क्यों?”

मैं- “जब तक रिपोर्ट न आए तब तक नहीं...”

नीरव- “क्या फर्क पड़ता है निशु रिपोर्ट से? तू चाहे एच.आई.वी. हो या ना हो, मैं जीना सिर्फ तेरे साथ और तेरे लिए चाहता हूँ..” उसने भावुक होकर कहा।


मैं- “फिर भी रिपोर्ट न आए तब तक नहीं..” मैं रोने लगी।

नीरव- “मैं तेरे बिना जी नहीं सकता निशु, तू नहीं जानती मैं तुझसे कितना प्यार करता हूँ...”

मैं- “मैं अब जान चुकी हैं नीरव, और अब चाहे जो भी हो जाय मैं हर पल तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ.."

नीरव- “तूने मुझे पहले ये सब बता दिया होता तो मैं उस वक़्त सेक्शोलोजिस्ट को दिखा देता जो आज सुबह मैं बताकर आया हूँ..”

मैं- “क्या तुम डाक्टर को दिखा आए?”

नीरव- “हाँ... मुझे कभी तेरी बातों से भी पता नहीं चला था की तू मुझसे अतृप्त है, मालूम है आज डाक्टर ने मुझे क्या कहा?"

मैं- “क्या कहा?”

नीरव- “मेरे जल्दी फारिग होने का करण बताया, उन्होंने कहा की मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ इसलिए तुम्हारे पास आते ही फारिग हो जाता हूँ...”

मैं- “वो तो तुम करते ही हो...”

नीरव- “उन्होंने उसका इलाज भी बताया की सेक्स करते वक़्त मैं तुम्हारे बारे में न सोचते हुये अपने बिजनेस के बारे में सोचूं, जिससे समय बढ़ सकता है, कुछ दवाइया भी दी हैं..” उसके बाद नीरव फिर से सेक्स करने की जिद करने लगा।
 
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