desiaks
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#76
मैं- तो फिर किसकी है ये कहानी
वो- रूठे नसीब और बेबसी की , खुशनसीबी की , बदनसीबी की प्रेम की और अपमान की ,
मैं- मैं जानना चाहता हूँ ठाकुर कुंदन के बारे में
वो- अपने अन्दर झाँक कर देखो ,
मैं- तंग आ गया हूँ मैं इन उलझी बातो से , आखिर कोई मुझे सीधा सीधा बताता क्यों नहीं है , आखिर बताती क्यों नहीं मुझे की मैं कैसे जुड़ा हूँ इस कहानी से, मेरी शक्ल क्यों मिलती है कुंदन से
वो- तक़दीर , तक़दीर तुम्हारी कबीर , सब अपना भाग लिखा कर लाते है तुम भी अपने लेख लाये हों .
मैं- हम्म, फिर भी मैं ये कहानी सुनना चाहूँगा
वो- ये कहानी है कुंदन की एक आम सा लड़का जो फिर भी खास था , खास इसलिए की उसके दिल में करुणा थी, प्रेम था स्नेह था किसी के लिए भेदभाव नहीं था , कुंदन की चाहत थी पूजा ,
मैं- पर उनकी पत्नी तो आयत थी न .
वो- चुप रहो , कुंदन की चाहत थी पूजा, यही बस दो गली आगे रहती थी अपने रिश्तेदारों के घर , न जाने कब कुंदन और पूजा का दिल धडक उठा , और कहानी शुरू हो गयी, अक्सर गली मोहल्ले में दोनों मिल जाते, साथ पढ़ते थे तो बस इश्क में परिंदे उड़ने लगे थे .
कुंदन के अपने पिता के साथ रिश्ता कोई खास नहीं था वो तो बस जस्सी थी जिसने कुंदन को थाम रखा था वर्ना वो कभी का चला जाता इस घर से दूर .
मैं- जस्सी कौन
वो- जस्सी, कुंदन की भाभी इस घर की बहु, पर कहते है न की नसीब ने जाने क्या लेख लिख रहे है एक दिन कुंदन उस से टकरा गया जिसने सारी कहानी को बदल कर रख दिया. एक रात उसकी मुलाकात आयत से हुई , दोनों एक जैसे थे मुसाफिर, कुंदन का मन घर नहीं लगता था और आयत का घर नहीं था भटकते भटकते दोनों ने एक दुसरे का हाथ थाम लिया .
मैं- फिर
वो- फिर क्या आयत थी अर्जुन सिंह की बेटी, जो बेहद गहरा दोस्त था कुंदन के बाप का किसका खून हुकुम सिंह ने कर दिया था .
मैं- हाँ मैंने कामिनी की डायरी पढ़ी थी .
वो- तब तो तुम सब जान ही गए होंगे.
मैं- सब कुछ तो नहीं पर बहुत कुछ , मेरे सवाल शुरू वहां से होते है की जब कुंदन के आयत से ब्याह कर लिया था तो फिर आगे क्या हुआ .
वो- आगे क्या हुआ , आगे क्या हुआ, आगे वो हुआ जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था , आयत को को वरदान मिला था , वो इन्सान नहीं थी प्रेत थी पर प्रेम गहरा था उसका, तो खुद माँ तारा ने उसे इन्सान होने का वर दिया था .
मैं- सच में
वो - हाँ सच में, प्रेम से बड़ी क्या शक्ति होती है कबीर, प्रेम में खुद शिव वास करते है और माँ कैसे शिव का कहा टालती, पर इतना आसान कहाँ होता है प्रेम को प्राप्त कर लेना, और कुंदन की जिन्दगी तो तीन टुकडो में बंटी हुई थी उसके जीवन के तीन स्तम्भ थे आयत, पूजा और जस्सी,
जस्सी ठाकुर हुकुम सिंह की बेटी थी
मैं- मैं जानता हूँ
वो- रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में सब उलझे थे की किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था , खैर, कुंदन ने आयत और पूजा दोनों से विवाह कर लिया अपनी दो पत्नियों और जस्सी के साथ रहने लगा था वो .
मैं- फिर
वो- एक बात बताओ कबीर,
मैं- हाँ
वो- तुम्हे क्या लगता है प्रेम और नफरत में क्या फर्क होता है
मैं- दोनों दिल से होते है
वो- दोनों अपनों से होते है , जब प्रेम नफरत में बदलता है तो फिर बस दर्द होता है , कुंदन की इच्छा थी आयत को उसका सम्मान लौटाने की , इसलिए वो अर्जुन गढ़ आया जिस हवेली की हक़दार थी आयत उसके ताले खोलने ,
मैं- फिर क्या हुआ
वो- फिर एक जलजला आया जो अपने साथ सब कुछ उजाड़ गया , खुशियाँ कब गम में बदल गयी किसी को मालूम नहीं हुआ कुंदन जा चूका था , उसके गम में आयत जैसे पागल हो गयी थी कुंदन की लाश देख कर मानो विक्षिप्त हो गयी वो . दोनों गाँवों में पहले से ही दुश्मनी तो थी ही कुंदन की मौत ने आग में घी डाल दिया.
देवगढ़ तबाह हो गया , पर आयत का कहर भी टूटा था अर्जुन गढ़ पर लाल मंदिर में जोड़ा था शिव और शक्ति का ,आयत के क्रोध ने खंडित कर दिया उसे.
जिस प्यार के लिए साक्षात् यम को जीत आई थी वो प्यार कोई ऐसे कैसे छीन सकता था उस से इस बात को आयत ने दिल से लगा लिया. और टूटे दिल की सदा क्या होती है समझ तो सकते ही हो तुम . देवगढ़ ढह गया था जस्सी टूट गयी थी पूजा बेहाल थी.
फिर एक घडी ऐसी आई जब आयत ने अपने प्राण त्याग दिए. कहते है उस पूरी रात बारिश आई थी, एक कहानी बस वक्त की रेत में दब गयी, रह गयी तो बस एक बात की प्रीत की डोर जो दोनों ने बाँधी थी उसका एक हिस्सा खो गया कही .
मैं- एक हिस्सा, क्या मतलब है तुम्हारा, एक मिनट एक मिनट एक हिस्सा मेरा मतलब दूसरा हिस्सा थी पूजा ..
वो मुस्कुरा पड़ी बोली- पूजा के बारे में हम फिर कभी बात करेंगे रात बीतने को है तुम थोड़ी देर सो जाओ.
मैं- कुछ कहूँ
वो- हाँ
मैं- क्या मैं ठाकुर कुंदन हूँ , मेरा मतलब कहीं ये पुनर्जनम जैसा कुछ तो नहीं
वो- जैसा मैंने कहा कुछ कहनिया बस कहानी ही होते है , बेह्सक तुम्हारी शक्ल मिलती है पर उन जैसा कोई नहीं हो सकता, तुम तो बिलकुल नहीं , पर तुम एक काम कर सकते हो, देवगढ़ को दुबारा बसा सकते हो, इस घर को दुबारा बसा सकते हो .
मैं- जरुर करूँगा मैं ये काम ,
वो उठी और जाने लगी की मैंने उसे टोक दिया .
मैं- जाने से पहले एक सवाल और मेघा को जब मैंने तलवार मारी थी तो खून मेरा बहा था ,ज़ख्म मुझे हुए क्यों
उसने मेरी आँखों में देखा और बोली- ये तो उस से फेरे लेने से पहले सोचना था आधी शक्ति है वो तुम्हारी अब , डोर बाँधी तुमने अब देखो तमाशा
मैं- तो फिर किसकी है ये कहानी
वो- रूठे नसीब और बेबसी की , खुशनसीबी की , बदनसीबी की प्रेम की और अपमान की ,
मैं- मैं जानना चाहता हूँ ठाकुर कुंदन के बारे में
वो- अपने अन्दर झाँक कर देखो ,
मैं- तंग आ गया हूँ मैं इन उलझी बातो से , आखिर कोई मुझे सीधा सीधा बताता क्यों नहीं है , आखिर बताती क्यों नहीं मुझे की मैं कैसे जुड़ा हूँ इस कहानी से, मेरी शक्ल क्यों मिलती है कुंदन से
वो- तक़दीर , तक़दीर तुम्हारी कबीर , सब अपना भाग लिखा कर लाते है तुम भी अपने लेख लाये हों .
मैं- हम्म, फिर भी मैं ये कहानी सुनना चाहूँगा
वो- ये कहानी है कुंदन की एक आम सा लड़का जो फिर भी खास था , खास इसलिए की उसके दिल में करुणा थी, प्रेम था स्नेह था किसी के लिए भेदभाव नहीं था , कुंदन की चाहत थी पूजा ,
मैं- पर उनकी पत्नी तो आयत थी न .
वो- चुप रहो , कुंदन की चाहत थी पूजा, यही बस दो गली आगे रहती थी अपने रिश्तेदारों के घर , न जाने कब कुंदन और पूजा का दिल धडक उठा , और कहानी शुरू हो गयी, अक्सर गली मोहल्ले में दोनों मिल जाते, साथ पढ़ते थे तो बस इश्क में परिंदे उड़ने लगे थे .
कुंदन के अपने पिता के साथ रिश्ता कोई खास नहीं था वो तो बस जस्सी थी जिसने कुंदन को थाम रखा था वर्ना वो कभी का चला जाता इस घर से दूर .
मैं- जस्सी कौन
वो- जस्सी, कुंदन की भाभी इस घर की बहु, पर कहते है न की नसीब ने जाने क्या लेख लिख रहे है एक दिन कुंदन उस से टकरा गया जिसने सारी कहानी को बदल कर रख दिया. एक रात उसकी मुलाकात आयत से हुई , दोनों एक जैसे थे मुसाफिर, कुंदन का मन घर नहीं लगता था और आयत का घर नहीं था भटकते भटकते दोनों ने एक दुसरे का हाथ थाम लिया .
मैं- फिर
वो- फिर क्या आयत थी अर्जुन सिंह की बेटी, जो बेहद गहरा दोस्त था कुंदन के बाप का किसका खून हुकुम सिंह ने कर दिया था .
मैं- हाँ मैंने कामिनी की डायरी पढ़ी थी .
वो- तब तो तुम सब जान ही गए होंगे.
मैं- सब कुछ तो नहीं पर बहुत कुछ , मेरे सवाल शुरू वहां से होते है की जब कुंदन के आयत से ब्याह कर लिया था तो फिर आगे क्या हुआ .
वो- आगे क्या हुआ , आगे क्या हुआ, आगे वो हुआ जिसके बारे में किसी ने नहीं सोचा था , आयत को को वरदान मिला था , वो इन्सान नहीं थी प्रेत थी पर प्रेम गहरा था उसका, तो खुद माँ तारा ने उसे इन्सान होने का वर दिया था .
मैं- सच में
वो - हाँ सच में, प्रेम से बड़ी क्या शक्ति होती है कबीर, प्रेम में खुद शिव वास करते है और माँ कैसे शिव का कहा टालती, पर इतना आसान कहाँ होता है प्रेम को प्राप्त कर लेना, और कुंदन की जिन्दगी तो तीन टुकडो में बंटी हुई थी उसके जीवन के तीन स्तम्भ थे आयत, पूजा और जस्सी,
जस्सी ठाकुर हुकुम सिंह की बेटी थी
मैं- मैं जानता हूँ
वो- रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में सब उलझे थे की किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था , खैर, कुंदन ने आयत और पूजा दोनों से विवाह कर लिया अपनी दो पत्नियों और जस्सी के साथ रहने लगा था वो .
मैं- फिर
वो- एक बात बताओ कबीर,
मैं- हाँ
वो- तुम्हे क्या लगता है प्रेम और नफरत में क्या फर्क होता है
मैं- दोनों दिल से होते है
वो- दोनों अपनों से होते है , जब प्रेम नफरत में बदलता है तो फिर बस दर्द होता है , कुंदन की इच्छा थी आयत को उसका सम्मान लौटाने की , इसलिए वो अर्जुन गढ़ आया जिस हवेली की हक़दार थी आयत उसके ताले खोलने ,
मैं- फिर क्या हुआ
वो- फिर एक जलजला आया जो अपने साथ सब कुछ उजाड़ गया , खुशियाँ कब गम में बदल गयी किसी को मालूम नहीं हुआ कुंदन जा चूका था , उसके गम में आयत जैसे पागल हो गयी थी कुंदन की लाश देख कर मानो विक्षिप्त हो गयी वो . दोनों गाँवों में पहले से ही दुश्मनी तो थी ही कुंदन की मौत ने आग में घी डाल दिया.
देवगढ़ तबाह हो गया , पर आयत का कहर भी टूटा था अर्जुन गढ़ पर लाल मंदिर में जोड़ा था शिव और शक्ति का ,आयत के क्रोध ने खंडित कर दिया उसे.
जिस प्यार के लिए साक्षात् यम को जीत आई थी वो प्यार कोई ऐसे कैसे छीन सकता था उस से इस बात को आयत ने दिल से लगा लिया. और टूटे दिल की सदा क्या होती है समझ तो सकते ही हो तुम . देवगढ़ ढह गया था जस्सी टूट गयी थी पूजा बेहाल थी.
फिर एक घडी ऐसी आई जब आयत ने अपने प्राण त्याग दिए. कहते है उस पूरी रात बारिश आई थी, एक कहानी बस वक्त की रेत में दब गयी, रह गयी तो बस एक बात की प्रीत की डोर जो दोनों ने बाँधी थी उसका एक हिस्सा खो गया कही .
मैं- एक हिस्सा, क्या मतलब है तुम्हारा, एक मिनट एक मिनट एक हिस्सा मेरा मतलब दूसरा हिस्सा थी पूजा ..
वो मुस्कुरा पड़ी बोली- पूजा के बारे में हम फिर कभी बात करेंगे रात बीतने को है तुम थोड़ी देर सो जाओ.
मैं- कुछ कहूँ
वो- हाँ
मैं- क्या मैं ठाकुर कुंदन हूँ , मेरा मतलब कहीं ये पुनर्जनम जैसा कुछ तो नहीं
वो- जैसा मैंने कहा कुछ कहनिया बस कहानी ही होते है , बेह्सक तुम्हारी शक्ल मिलती है पर उन जैसा कोई नहीं हो सकता, तुम तो बिलकुल नहीं , पर तुम एक काम कर सकते हो, देवगढ़ को दुबारा बसा सकते हो, इस घर को दुबारा बसा सकते हो .
मैं- जरुर करूँगा मैं ये काम ,
वो उठी और जाने लगी की मैंने उसे टोक दिया .
मैं- जाने से पहले एक सवाल और मेघा को जब मैंने तलवार मारी थी तो खून मेरा बहा था ,ज़ख्म मुझे हुए क्यों
उसने मेरी आँखों में देखा और बोली- ये तो उस से फेरे लेने से पहले सोचना था आधी शक्ति है वो तुम्हारी अब , डोर बाँधी तुमने अब देखो तमाशा