Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार - Page 4 - SexBaba
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Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार

आखिरकार बड़े मामा ने अपना मुश्किल से थोड़ा नरम हुए लंड को मेरी अत्यंत चौड़ी हुई गांड में से निकाल कर मेरी गांड चाटने लगे. मेरे नथुने मेरी गांड की खुशबू से भर गए. बड़े मामा ने प्यार मेरी सूजी गांड को चाट कर साफ़ किया. मामाजी की जीभ मेरी बेदर्दी से चुदी थोड़ी ढीली खुली गांड में आसानी से अंदर चली गयी. मेरी गांड साफ़ कर बड़े मामा बोले, "नेहा बेटा, अब हम आपकी गांड पीछे से मारेंगें." मैं अब गांड मारने के आनंद की कामुकता से प्रभावित हो गयी थी. मैं पलट कर घोड़ी की तरह अपने हाथों और घुटनों पर हो गयी. बड़े मामा का तना हुआ लंड मेरी गांड के मल के लेप से भूरे रंग का हो गया था. मैंने जल्दी से बड़े मामा के लंड तो अपने मूंह और जीभ से चाट कर साफ़ किया. मुझे अपनी गांड और बड़े मामा के वीर्य का मिला-जुला का स्वाद अत्यंत अच्छा लगा. बड़े मामा ने अपना लंड मेरी गांड में पीछे से हौले-हौले अंदर डाल दिया. मेरी गांड इतनी देर में फिर से तंग हो गयी थी. पर मुझे इस बार बहुत थोड़ा दर्द हुआ. बड़े मामा ने मेरी गांड शीघ्र तेज़ी से चोदना शुरू कर दिया. हमारा कमरा मामा और भांजी के बीच अवैध अगम्यागमन गांड-चुदाई से उपजी मेरी सिस्कारियों से भर गया. बड़े मामा के हर भीषण धक्के से मेरा शरीर फिर से कांप उठा। उनकी बलवान मांसल झांगें हर धक्के के अंत में मेरे कोमल मुलायम भरे भरे चूतड़ों से टकरा रहीं थीं। हमारे शरीर के टकराने की आवाज़ कमरे में ' थप्पड़ ' की तरह गूँज रही थी। बड़े मामा ने मेरी गांड की चुदाई पहली बार की तरह बेदर्दी से की. मुझे पांच बार झाड़ कर बड़े मामा दूसरी बार मेरी गांड में स्खलित हो गए. मामाजी का गरम गाड़ा वीर्य मेरी गांड की नाज़ुक दीवारों से टकरा कर मेरी गांड में मथे हुए मल के साथ मिल गया. बड़े मामा मेरी गांड से अभी भी संतुष्ट नहीं हुए थे. उन्होंने अपना मेरे मल से रंगा हुआ गन्दा लंड मेरे मूंह से साफ़ कराया और एक बार फिर मेरी गांड के मंथन के लिए तैयार हो गए. उस रात बड़े मामा के स्थूल विशाल लंड ने मेरी गांड तीन बार और मारी. मैं बड़े मामा के साथ लम्बी रतिक्रिया में बार बार झड़ने की मदहोशी से बेहोशी की अवस्था में पहुँच गयी. मैं अपने निरंतर रति-निष्पत्ति की गिनती भी नहीं रख पाई. बड़े मामा ने मेरी गांड पांचवी बार अपने जनन-क्षम वीर्य से भर दी. मैं बिकुल थक कर चूर हो गयी थी. बड़े मामा मेरी गांड चार घंटों से मथ रहे थे. मैंने बड़े मामा के मुंह और गालों को प्यार से चूम चूम कर गीला कर दिया. बड़े मामा ने अपना लंड मेरी गांड से बाहर निकाल लिया. मुझे लगा जैसे मेरा पखाना निकलने वाला था, "बड़े मामा मुझे शौचालय जाना है. आपके लंड ने मेरी टट्टी मथ दी. मैं उसे अब रोक नहीं पा रही." "नेहा बेटा, गांड मरवाने के बाद ऐसा लगता है पर फ़िक्र नहीं करो कुछ बाहर नहीं निकलेगा," बड़े मामा ने अपने अनुभव से मुझे आश्वासन दिया, पर मेरी गुदा में बड़ते दबाव ने मेरे संयम को हरा दिया. बड़े मामा ने हँसते हुए मुझे बाँहों में भर कर शौचालय में ले गए. बड़े मामा ने मुझे कमोड [शौचासन] के ऊपर बैठाने के बजाय मुझे नहाने के टब में ले गए. बड़े मामा ने मुझे आगे झुका कर मेरी गुदाज़ चूतड़ों को चौड़ा कर अपना मुंह मेरी गांड से लगा दिया. "मामाजी मेरी गांड खुलने वाली है, प्लीज़ मुझे शौचासन पर जाने दीजिये," मैंने बड़े मामा से अनुरोध किया. "नेहा बेटा, अपनी बेटी की पहली बार गांड मारने के प्रसाद को हम हाथ से नहीं निकलने देंगें." "बड़े मामा पता नहीं मेरी गांड से क्या निकल जाये?" बड़े मामा की मेरी गांड के मंथन के फल को चखने की कामुक इच्छा ने मुझे भी मदहोश कर दिया. मैंने अपनी गांड को ढीला कर दिया. मेरी गुदा से मामाजी का गाड़ा जनन-क्षम वीर्य और मेरे मथे मल का मिश्रण फिसल कर कर मामाजी के मुंह में टपकने लगा. मेरी मलाशय की सुगंध सारे स्नानगृह में समा गयी. मैंने ज़ोर लगा कर अपने मलाशय के भीतर जमे मिश्रण को मामाजी के आनंद के लिए निकालने का प्रयास करने लगी. मेरे ज़ोर लगाने से मेरा पाद निकल गया. मैं शर्मा कर दबी हंसी से बोली, "सॉरी मामाजी." बड़े मामा ने मेरी गांड को चूम कर मुझे आश्वासित किया. मेरी गांड से अचानक गीले मल और वीर्य मिश्रण के अलावा कुछ ठोस पदार्थ भी फिसल कर बड़े मामा के मुंह में टपक गया. बड़े मामा ने उसे भी बेसब्री और क्षुधातुर प्रकार से स्वीकार किया. बड़े मामा ने अपना मुंह मुझे सीधा करके मेरी चूत पर लगा कर मेरे मूत्र की मांग की. मैंने अपना पेशाब धीरे-धीरे बड़े मामा के मुंह में बहने दिया. बड़े मामा ने मेरा मूत्र प्यार से पी लिया. मैं उसके बाद शौचासन पर बैठ कर ठीक से अपना मलाशय खोल दिया. बड़े मामा का मेरे मल से सना लंड मेरे मूंह के सामने था. मैंने मामाजी का लंड चूस, चाट कर साफ़ कर दिया. मुझे अपने मल का स्वाद बड़े मामा के वीर्य से मिश्रित और भी स्वादिष्ट लगा. मैंने बड़े मामा की ओर प्रत्याशा से देखा, बड़े मामा ने मेरा आश्रय समझ गए. बड़े मामा ने अपने शिथिल पर भारी लंड के सुपाड़े को मेरे खुले मुंह में डाल कर अपना मूत्र हौले-हौले खोलने लगे. मामाजी का मूत्र तीखा पर बहुत स्वादिष्ट था. बड़े मामा ने अपने पेशाब की धारा को नियंत्रित प्रकार से मेरे मुंह में प्रवाहित किया. मामाजी मुझे अपने मुंह में भरे पेशाब को पीने का समय देकर फिर से मेरा मुंह अपने मूत्र से भर देते थे. बड़े मामा का लंड जब तक मैंने उनका पूरा मूत पिया
 
जब मैंने अपना मलोत्सर्ग समाप्त कर दिया तो मामाजी ने मुझे उठा कर शौचासन के कुंड पर हाथ रख कर आगे झुका दिया. मेरा मूंह मेरे अपने मल से भरे कमोड के ठीक ऊपर था. बड़े मामा ने पहले मेरी गांड चाट कर साफ़ की फिर मुझसे पूछा,"नेहा बेटा, पहले क्या मरवानी है- चूत या गांड?" मैं तो अब बड़े मामा के महाकाय विशाल अतृप्य लंड की दीवानी हो गयी थी, "बड़े मामा आज आपने मेरी चूत बिलकुल भी नहीं मारी. पहले चूत मारिये, प्लीज़," मैंने मामाजी से अनुरोध किया. बड़े मामा ने अपना विशाल स्थूल लंड मेरी चूत में चार भयंकर धक्कों से जड़ तक ठूंस दिया. मेरे गले से स्वतः चीख निकल पड़ी. शीघ्र ही बड़े मामा का विकराल लंड मेरी रति-रस से भरी मखमली चूत में वैद्युत मूसल की भांति मेरी चूत की गहरायी नापने लगा । मेरी काम वासना से भरी सिस्कारियां स्नानगृह में गूँज उठीं । बड़े मामा का लंड 'चपक-चपक' की आवाजें बनाते हुए मेरी चूत का प्यार भरा मर्दन करने लगा। मैंने अपने सूजे होंठ को चबा कर अपनी सिस्कारियों को दबाने का निष्फल प्रयास करने के बाद खुल कर ऊंचीं ऊंचीं सीत्कारियां से मामाजी को मेरी चूत निर्मम प्राहरों से मारने के लिए उत्साहित कर दिया । बड़े मामा ने मेरी चूत मार कर मुझे तीन बार झाड़ दिया. मैं अपने आखिरी रति-निष्पत्ति से अभी संभल भी नहीं पाई थी कि बड़े मामा ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकल कर मेरी गांड के छोटे तंग छल्ले पर रख कर अंदर दबा दिया. जैसे ही मेरा गुदा-द्वार बड़े मामा के विशाल लंड के सेब सामान मोटे सुपाड़े के अकार के अनुरूप चौड़ा हुआ हुआ तो मेरी दर्द से भरी चीत्कार स्नानगृह में गूँज उठी. पर बड़े मामा ने पहले के अनुभव से मेरी चीत्कार की उपेक्षा कर मेरी गांड में अपना लंड तीन लम्बी विध्वंसक धक्कों से जड़ तक डाल दिया. बड़े मामा ने मेरी गांड का मंथन एक बार शुरू किया तो डेढ़ घंटे तक निरंतर मेरे गुदाभंजन से मुझे बिलकुल पस्त कर दिया. बड़े मामा और मेरा गुदामैथुन मेरी बेहोशी की अवस्था में समाप्त हुआ. मेरे अनगिनत यौन-चरमोत्कर्ष ने मुझे निढाल कर दिया. बड़े मामा ने मेरी गांड में अपना लंड खोल दिया. यदि बड़े मामा ने मुझे नहीं सम्भाला होता तो मैं शौचासन पर गिर जाती, बड़े मामा के साथ अवैध कौटुंबिक व्यभिचार के आधिक्य ने मुझे मदहोश कर दिया. मुझे याद नहीं कि कब बड़े मामा ने अपना स्खलित लंड मेरी दुखती गांड में से बाहर निकाला, कब मुझे अपनी बाँहों में उठा कर बिस्तर में ले गए. ******************* बड़े मामा और मैं देर रात को अचानक गहरी नींद से उठ गए. बड़े मामा का लंड चुदाई के लिए तैयार तना हुआ खड़ा था. मैं अभी नींद में थी पर बड़े मामा ने मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी चूत में अपना लंड तीन-चार धक्कों में पूरा अंदर डाल कर मेरी चूत को आधे घंटे तक चोद कर तीन बार झाड़ दिया. हम दोनों उसके बाद देर सुबह तक सोते रहे. हम दोनों को जानकी दीदी ने उठाया, "नेहा, चाचू. चलो दोनों उठो. सारे नौकर घर में हैं. कमरे की सफाई करने के लिए मैंने उन्हें रोका कि आप दोनों अपने कमरों में सो रहे होंगे. चलिए दोनों तैयार हो जाइये. मैं कमरा और बिस्तर साफ़ कर देतीं हूँ," जानकी दीदी ने चादर पर लगे भूरे दागों को देख कर हम दोनों* चिड़ाया, "चाचू लगता है आपने कल रात नेहा की गांड की अच्छे से सेवा की!" मैं शर्मा गयी. बड़े मामा ने जानकी दीदी को बाँहों में भर कर चूमा और फिर शैतानी से उनके दोनों विशाल नर्म*उरोज़ों को कस कर मसल दिया. जानकी दीदी चीख कर बड़े मामा की बाँहों से निकल गयीं. बड़े मामा ने हँसते हुए मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानगृह की तरफ चल दिए, "जानकी बेटी, यदि आपकी चूत और गांड खुजलाने लगे तो स्नानगृह खुला है." "इस बार आप सिर्फ नेहा की सेवा करें. पापा* के लंड ने कल रात मेरी दोनों छेदों की तौबा मचा दी." जानकी दीदी ने इठला कर कहा. मेरे मूंह खुला का खुला रह गया. जानकी दीदी और उनके पिताजी, गंगा बाबा भी कौटुम्बिक व्यभिचार में संलग्न थे. बड़े मामा ने मुझे दोनों की कहानी, जब मैं उनका सुबह सवेरे का ताज़ा पेशाब पी रही थी, सुनाई. बड़े मामा को जानकी दीदी ने इस घटना को पूरे विस्तार से सुनाया था. ********************************************
 
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गंगा बाबा की पत्नी का देहांत १२ साल पहले हो गया. जानकी सिर्फ दस साल की थी. जानकी का शारीरिक विकास अत्यंत कालपूर्व हो रहा था.उस उम्र में भी उनका वक्षस्थल किसी पन्द्रह साल की लड़की के सामान गर्व से उनके ब्लाउज़ को भर देता था. गंगा बाबा और जानकी एक दुसरे के बहुत नज़दीक और संलग्न थे. बाप बेटी का रिश्ता इस दुःखद घटना के बाद, गंगा बाबा के शोक में डूब गया. जानकी अपने पिता को हर दिन ज्यादा शराब पीते देखती. तीन साल तक गंगा बाबा अपने विधुर्ता के दुःख में भूल गए कि उनकी बेटी का शोक अपनी माँ को खोने में उतना ही दुःख दाई था. जानकी के धैर्य ने अस्त्र फैंक दिये । अत्यंत में हार मान कर जानकी ने मेरे मम्मी से अपना दर्द बांटा. एक रात को जब गंगा बाबा ने काफी शराब पी रखी थी तब जानकी अपनी मम्मी की साड़ी में अपने पिता जी के कमरे गयीं. गंगा बाबा नशे में अपनी सुंदर अर्धांग्नी को देख कर पागल हो गए. गंगा बाबा ने जानकी के कपडे फाड़ कर उन्हें बिस्तर पर पटक दिया. गंगा बाबा ने अपने विशाल स्थूल लंड से जानकी की कुंवारी चूत की बेदर्दी से चुदाई की. गंगा बाबा ने जानकी को उस रात चार बार चोद कर बेहोश कर दिया. सुबह जब दोनों पिता-पुत्री जगे तो गंगा बाबा को समझने में कुछ देर नहीं लगी कि उनकी प्यारी इकलौती बेटी उन्हें कितना प्यार करती है. अपने पिता के महाकाय लंड से चुदवाने के बाद जानकी दीदी और उनका प्यार अपने पिता की तरफ और भी मज़बूत हो गया. तब से दोनों बाप-बेटी रोज़ अगम्यगामी रतिक्रिया के सुख में डूबे रहते थे. गंगा बाबा ने समाज की फ़िक्र से जानकी दीद का विवाह एक साल पहले एक अमीर घर में कर दिया. पर कुछ महीनों के बाद सब को साफ़ हो गया कि जानकी का पति आलसी और निकम्बा था. जानकी की तरफ उसका व्यवहार भी अस्वीकार्य था. तब से जानकी दीदी सिर्फ नाम के लिए विवाहित थीं. *************************** बड़े मामा ने समाप्ती में कहा, "मैंने दोनों को सलाह दी है कि इस विवाह के नाटक में छुप कर दोनों अपना परिवार शुरू कर सकते हैं. फिर जानकी अपने पति से कानूनी तौर से अलग हो सकती है. उनके लिए इस घर से जुड़ा ५ शयनकक्ष का घर बना तैयार है." मैंने बड़े मामा के लंड तो चूस कर साफ़ कर दिया. बड़े मामा ने मेरा मूत्र्पान किया. बड़े मामा ने मेरी स्नान के बीच एक बार फिर से मनमोहक पर भयंकर चुदाई की. नाश्ते के बाद बड़े मामा और मैं झील की तरफ घूमने चल दिए. मुझे सारी रात और सुबह चोद कर भी बे मामा का मन नहीं भरा था। उन्होंने झील के किनारे की सैर के बीच मुझे तीन बार और चोदा। ************************** गंगा बाबा ने सुरेश अंकल और नम्रता चाची के आगमन की इत्तिला दी. अंकल आंटी कमरे में अपने कपडे अलमारी में रख रहे थे. सुरेश शर्मा अंकल ६ फुट ऊंचे ४९ साल के बहुत मोटे मर्द थे. उनकी तोंद का मज़ाक हम सब लोग बनाते थे. नम्रता शर्मा आंटी भी , ५'५" के ४५ साल की उम्र की, थोड़ी मोटी स्त्री थीं.उनका गदराया हुए शरीर और अत्यंत सुंदर चेहेरा किसी भी मर्द को आकर्षित कर सकता था. मैं खुशी से चीख कर दौड़ कर सुरेश अंकल की खुली बाँहों में समा गयी. अंकल ने मुझे बाँहों में उठा कर मेरा मूंह चुम्बनों से भर दिया. बड़े मामा ने आंटी को गले लगाया,"नम्रता भाभी आप हमेशा की तरह किसी अप्सरा जैसी सुंदर लग रहीं है." आंटी शर्म से लाल हो गयीं, " रवि भैया आप तो मेरी प्रशंसा बस अपने प्यार के वजह से करते हैं." मैंने खुशी से किलकारी मारते हुए आंटी के आलिंगन में समा गयी. आंटी ने मेरे चेहरे को चूम चूम कर गीला कर दिया, फिर मेरे कान में फुसफुसा कर पूछा, "नेहा बेटी, रवि भैया ने तुम्हारी चूत की पूरी देखबाल की ना? मैं तो तुम्हे बिस्तर में कराहते हुए देखने की अपेक्षा कर रही थी." मैं शर्म से लाल हो गयी. अंकल आंटी दोनों को बड़े मामा और मेरे कौटुम्बिक व्यभिचार के बारे में पता था. मैंने शरमाते हुए पर इठला कर कहा कहा,"आंटी बड़े मामा ने हमें बहुत बेदर्दी से चोदा है." "रवि भैया, नेहा बेटी पर थोड़ा तो रहम करना था ना. अभी बेचारी कमसिन है और आपका लंड घोड़े से भी बड़ा है," नम्रता आंटी ने बड़े मामा को प्यार से धक्का दिया, "पर नेहा बेटी अब आप किसी भी लंड से चुदवाने के लिए तैयार हो." मैं शर्मा गयी. "नम्रता भाभी, नेहा बेटी ने हमसे कोई शिकायत नहीं की." बड़े मामा ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर प्यार से चूमा. सुरेश अंकल ने बड़े मामा की तरफदारी की, "नेहा बेटी आप जैसी अप्सरा सुन्दरी का कौमार्य-भंग कर स्त्री बनाना कोई आसान काम नहीं है. मुझे विश्वास है कि रवि ने ज़रुरत से ज्यादा दर्द नहीं किया होगा."
 
"सुरेश अंकल आप बड़े मामा की तरफदारी क्यों कर रहें है. आंटी आप अंकल को कहें ना?" मैंने प्यार से अंकल के पेट में घूँसा मारा. अंकल ने मुझे हंस कर गले से लगा लिया. "नेहा बेटी, लगता है तुम्हारे अंकल तुम्हारी चूत में घुसने की योजना बना रहे है. इस लिए वो तुम्हारे दर्द को नज़रंदाज़ करने के कोशिश कर रहें है. ये भी रवि भैया के साथ मिल गए हैं." नम्रता आंटी बड़े मामा की बाँहों में समा कर बोलीं. मैंने शर्मा कर अपना मुंह अंकल के सीने में छुपा लिया.मुझे बड़े मामा पर तरस आ गया. मैंने अंकल के सीने से लगे हुए कहा, "नहीं मेरे बड़े मामा ने मेरी चुदाई बहुत अच्छे से की है. आंटी आप उनको कुछ नहीं कहें." "देखा भाभी नेहा बेटी ने मुझे माफ़ कर दिया है," बड़े मामा ठहाका लगा कर हंस दिए. बड़े मामा ने हम सबके सामने नम्रता आंटी को प्यार से चूम लिया. "रवि भैया,आज सिर्फ चुम्बन से काम नहीं चलेगा. मुझे आप से एक चुम्बन से बहुत ज़्यादा चाहिए." आंटी ने बड़े मामा की चौड़ी कमर के इर्द-गिर्द बाहें डाल कर उनसे कस कर लिपट गयीं. बड़े मामा ने अपने विशाल हाथों में आंटी के बड़े-बड़े गुदाज़ चूतड़ों को भर कर जोर से मसला और कहा, "भाभी, हम तो आप के देवी जैसे सौन्दर्य की सेवा करने के लिए तैयार हैं यदि सुरेश और नेहा को कोई आपत्ती नहीं हो तो." अंकल ने मेरी तरफ देखा. मैंने शर्म से लाल अपना मुंह अंकल के सीने में फिर से छुपा लिया और सिर्फ अपना सर हिला कर अनुमति दे दी. हम सब भोजन कक्ष की तरफ चल पड़े. अंकल-आंटी गंगा बाबा और जानकी दीदी से गले मिले. "आंटी, यदि आप एक दिन और रुक सकते हों तो रुक जाइये," जानकी दीदी ने आंटी से अनुरोध किया. अंकल ने जल्दी से सिर हिला कर आंटी को अपनी अनुमती देदी. आंटी ने भी हामी भर कर जानकी के चेहरा खुशी से भर दिया. खाना ख़त्म होते ही गंगा बाबा ने सब नौकरों को विदा कर दिया. हम सब मदिरापान करने बैठक में चले गए. दो गिलास मदिरा के बाद गंगा बाबा ने जानकी की बाजू पकड़ कर उठाया और विदा मांगी. "जानकी, लगता है आज रात तुम्हारी चूत की खैर नहीं है. गंगा, की बेसब्री छुप नहीं पा रही". आंटी ने जानकी की चुटकी ली. जानकी शर्मा कर लाल हो गयी,"पापा तो रोज़ मेरी हालत बुरी कर देतें है.पर मुझे भी उनके बिना चैन नहीं पड़ता." हम सब हंस दिए और दोनों को शुभ-रात्री की कामना के साथ विदा किया. अंकल 'सुधा' के कौटुम्बिक-व्यभिचार के दूसरी किश्त ले कर आये थे. हम सब चलचित्र-गृह की तरफ चल दिए. बड़े मामा ने नम्रता आंटी का हाथ खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया. आंटी ने भी अपनी बाहें बड़े मामा की गर्दन पर दाल दीं मैं बड़े मामा और आंटी के बीच खुली संभोग पूर्व क्रीड़ा से प्रभावित हो गयी. जब अंकल ने मेरा हाथ पकड़ा तो मै स्वतः उनकी गोद में समा गयी. अंकल ने रिमोट से फिल्म शुरू कर दी.


सुधा अपने ससुर की हिंसक चुदाई के बाद थोड़ी देर आराम करने के लिए लेट गयी थी. बेचारी सुधा तीन परिवार के लंड से चुदवा कर बहुत थक गयी थी और वो देर तक सोती रही. नीचे एक करीब ६० साल का एक हृष्ट-पुष्ट पुरुष सूटकेस के साथ हॉल में खड़ा था. उसकी शक्ल काफी सुधा से मिलती-जुलती थी. उसने सूटकेस फर्श पर रख कर सुधा को ढूँढने लगा. अपनी बेटी को नीचे ना पा कर सुधा के पिताजी ऊपर चल पड़े. विश्राम-गृह में उनकी प्यारी बेटी नग्न बिस्तर में सो रही थी. पिता ने प्यार भरी निगाह से अपनी सोती बेटी को निहारा. सुधा के विशाल नर्म उरोज़ उसकी गहरी सांसों से ऊपर-नीचे हो रहे थे. उसकी गोल कमर और फूले हुए बड़े नितिम्ब अत्यंत सुंदर थे. सुधा की खुली जांघों के बीच घनी झांटों से ढका योनिद्वार मानो उसके पिता को निमंत्रित कर रहा था. सुधा के पिता ने अपने कपडे जल्दी से उतार दिए. सुधा के पिता का लंड कुछ ही क्षणों में तन कर खड़ा हो गया. उनका लंड दस इंच लम्बा और बहुत मोटा था. सुधा की आँख अचानक खुल गयी. अपने पिता को कमरे में देख कर सुधा का चेहरा खुशी से खिल उठा," सॉरी, पापा में आपके लिए पूरी तैयार होना चाहती थी पर मेरी आँख ही नहीं खुली." सुधा के पिता लपक कर बिस्तर पर चढ़ गए और अपनी नग्न बेटी को बाँहों में भर लिया, "बेटा, आप इस से और अच्छी तरह मेरे लिए तैयार नहीं हो सकते थे." सुधा ने अपना आधा खुला मुंह अपने पिता को अर्पण कर दिया. सुधा के पिता अपनी बेटी के खुले मुंह से अपना भूखा मुंह लगा कर सुधा के मुंह का रसास्वादन करने लगे. उनके दोनों हाथ अपनी बेटी के उरोज़ों को मसलने में व्यस्त हो गए. सुधा ने सिसकारी मार कर अपने पिता के मूसल लंड को अपने छोटे-छोटे हाथों से सहलाना शुरू कर दिया. सुधा ने अपने पिता का विशाल शरीर को प्यार से धक्का दे कर बिस्तर पर चित लिटा दिया। सुधा ने अपना खुला मुंह अपने पिता के लोहे जसे सख्त विशाल लंड के सुपाड़े के ऊपर रख दिया। सुधा का हृदय अपने पिता की मीठी सिसकारी सुन कर प्रसन्न हो गया। उसने प्यार से धीरे-धीरे अपने जीभ से अपने पिता के पूरे सुपाड़े को चाटना शुरू कर दिया। अपनी बेटी की जीभ की मीठी यातना से उसके पिता का लंड थरथरा उठा। सुधा के पिताजी को वो दिन साफ़ साफ़ याद था जब उन्होंने अपनी बेटी की कुंवारी चूत पहली बार चोदी थी। इतने सालों के बाद भी उन्हें अपनी बेटी की चूत की भूख बिलकुल भी कम नहीं हुई थी। सुधा ने अपने पिता के लंड के सुपाड़े को चाट कर अपने जीभ की नोक उसके पेशाब-छिद्र में डाल दी। उसके पिता ने अपना भारी हाथ सुधा के सर के पीछे रख कर अपने लंड के ऊपर दबाने लगे। सुधा ने आज्ञाकारी बेटी की तरह अपना मुंह पूरा खोल कर अपने पिताजी का मोटा लंड अपने मुंह में ले लिया। पिताजी ने सिकारते हुए सुधा को और भी उत्साहित किया, "सुधा बेटी, मेरा लंड चूसो। मेरा लंड और भी अपने मुंह के भीतर डालो। सुधा ने अपने पिता का जितना हो सकता था उतना भारी-भरकम मूसल जैसा लंड अपने मुंह में ले कर अपने थूक से गीला कर दिया। उसने अपना मुंह पिता के लंड से उठा कर अपने मुंह को थूक से भर कर उनके लंड के ऊपर उलेढ़ दिया। सुधा के पिताजी का सारा वृहत लंड अपनी बेटी के मीठी लार से सराबोर हो गया। सुधा ने अपने पिताजी का भीमकाय लंड एक बार फिर से अपने मुंह में ले लिया और अपना मुंह ऊपर नीच कर उनके लंड को चूसने लगी। उसके नाज़ुक छोटे छोटे हाथ हाथ अपने पिता के थूक से गीले मोटे लंड के ऊपर नीचे फिरकने लगे। सुधा के पिता जी के मुंह से सिकारियां फूटने लगीं। उन्होंने बेसब्री से अपनी बेटी की भारी गुदगुदी गांड को अपने मजबूत हाथों से खींच कर उसकी चूत अपने मुंह के ऊपर लागा ली। जैसे ही सुधा के पिताजी की जीभ ने उसकी झांटों को फैला कर उसकी चूत की दरार को अपनी जीभ से खोल कर चाटना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से निकली सिसकारी अपने पिताजी के लंड के ऊपर घुट कर रह गयी। दोनों पिता और बेटी एक दुसरे को अपने मुंह से सुख देने लगे। सुधा के पिताजी ने अपनी बेटी की मीठी चूत हज़ारों बार चाट रखी थी फिर भी उसकी महक और स्वाद ने उन्हें बिलकुल पागल कर दिया। सुधा भी अपने पिताजी के मीठे लंड को मुंह में ले लालची भूखी स्त्री की तरह चूसने लगी। उसके पिता का लंड उसकी वासना को कुछ ही क्षण में भड़काने में अभ्यस्त था। पिता और बेटी बड़ी देर तक एक दुसरे के लंड और चूत को अपने मुंह से चाट और चूस कर एक दुसरे के शरीर में कामुकता के तूफ़ान को जगाने लगे। ~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दोनों पिता-पुत्री अगम्यागमन के अनाचार में लिप्त प्रेमी शीघ्र अत्यंत उत्तेजित हो गए, "पापा मुझे आपका लंड अपनी चूत में चाहिए. मुझे अपने घोड़े जैसे लंड से चोदिये," सुधा ने कामंग्नी में मस्त वासना भरी आवाज़ से अपने पिताजी को उसे चोदने के लिए उत्साहित किया. सुधा के पिता बेसब्री से अपनी बेटी के फ़ैली जांघों के बीच में बैठ कर अपना लंड का मोटा सुपाड़ा अपनी बेटी की योनी के दरार पर रगड़ने लगे. सुधा की सिस्कारियों ने उन्हें अपनी बेटी की चुदाई के लिए और भी उत्साहित कर दिया. आखिर में सुधा के पिता ने अपने लंड के सुपाड़े को अपनी बेटी की योनी द्वार में घुसेड़ दिया. पिता ने सुधा के दोनों उरोज़ों को कस कर अपने शक्तिशाली हाथों में भर कर तीन भयंकर धक्कों से अपना लम्बा मोटा लंड जड़ तक अपनी बेटी की चूत में दाल दिया. सुधा के वासना भरी चीख से कमरा गूँज उठा, “आह, पिताजी .. ई .. धीरे चोद ...ई आह दर्द मत कीजिये," सुधा की चूत बिलबिला उठी अपने पिताजी के मूसल को अंदर लेने से।
 
सुधा के पिता शीघ्र अपने मोटे लंड से अपनी बेटी को किसी वहशी की तरह चोदने लगे. सुधा के मुंह से अविरत सिस्कारियां निकलने लगी. **************~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सुधा की चूचियां का मर्दन और उसकी भयंकर चुदाई ने मेरी चूत भी गीली कर दी. मेरे गांड में अंकल का सख्त लंड चुभ रहा था. अंकल के दोनों हाथ मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे. *********************~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ फिल्म में सुधा की चुदाई की रफ़्तार और भी तेज़ हो गयी. सुधा के सिस्कारियां और चीखें उसके पिता को और भी उत्साहित कर रहीं थी. सुधा थोड़ी देर में चरमोत्कर्ष के प्रभाव में चीख कर अपने रति-विसर्जन से कांपने लगी. सुधा के पिता अपनी बेटी के ऊपर लेट गए और उसके कांपते हुए शरीर को अपनी बाँहों में भर कर उसके भरी भरी सांस लेते आधे खुले मुंह को अपने होंठो से चूमने लगे। कुछ देर में सुधा के थोड़ा संतुलित होते ही उसके पिता ने अपनी बेटी को घोड़ी बना कर पीछे से उसकी चूत मारना शुरू कर दिया. सुधा के पिताजी ने अपने सेब जैसे सुपाड़े को एक ही झटके में अपनी बेटी की मादक रेशम से मुलायम चूत में घुसेड़ कर भयंकर धक्कों से अपना सारा लंड अपनी सिसकती हुई बेटी की चूत में डाल दिया। सुधा कराह उठी, "आह, पिताजी, आपका लंड आह ... कितना आह ... मोटा आह ... है ...आन्न्न्न्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मार डाला आपने अपनी बेटी को आआह ....ऊन्न्नग्ग।" सुधा के विशाल उरोज़ पिता के लंड के भीषण धक्कों से बड़े-बड़े गुब्बारों जैसे हिल रहे थे. सुधा के पिताजी अपनी बेटी की वासना की परिधियों से पूरी तरह परिचित थे। उन्हें पता था कि वो चाहें जितनी ज़ोर से अपनी बेटी की चूत मार कर उसे दर्द करें उनकी बेटी अपनी चूत मरवाने से कभी भी पीछे नहीं हटेगी। सुधा के पिताजी ने अपनी बेटी के भारी, मुलायम विशाल मटकते हुए स्तनों को अपने हाथों में भर लिया और उसकी मादक चूचियों को ज़ोर से मसलने लगे। उनके अन्गुंठे और तर्जनी ने अपनी बेटी के सख्त तनतनाये हुए निप्पलों को कस कर भींच कर मड़ोड़ दिया। उन्हें अपनी बेटी के गले से दर्द और आनंद की मिली जुली चीख ने और भी उत्तेजित कर दिया। उन्होंने अपनी बेटी की कोमल चूचियों का मर्दन और भी बेदर्दी से करना आरंभ कर दिया। उनके पहले से ही भीषण लंड के धक्के और भी विध्वंसक हो चले। सुधा की सांस अब अटक अटक कर आ रही थी। वो अपने पिताजी की निर्मम वासनामयी चुदाई के कारण फिर से झड़ने वाली थी। सुधा एक घुटी घुटी चीख मार कर झड़ने लगी। उसका मीठा सुगन्धित चूतरस उसके पिता के रेल के पिस्टन के जैसे मोटे लंड को नहलाने लगा। सुधा के पिताजी अपनी बेटी को झड़ते देख कर और भी तेजी से उसकी चूत में अपना भयंकर लंड मूसल की तरह पेलने लगे। सुधा दस मिनट में फिर से स्खलित हो गयी. इस बार उसके पिता ने भी अपना लंड अपनी बेटी की चूत में खोल दिया. सुधा निढाल बिस्तर में पसर गयी.पर उसके पिता अभी पूरे संतुष्ट नहीं हुए थे. उनका लंड अभी भी खड़ा था. उन्होंने अपनी बेटी को पलट कर एक बार फिर उसकी कमर पर लिटा दिया। उन्होंने अपनी निढाल बेटी की दोनों टांगें ऊपर उठा कर अपना विशाल लंड उसकी छोटी से गांड के छिद्र पर लगा दिया. जैसे ही उसके पिता का मोटा अमानवीय लंड उसकी गांड के छल्ले के अंडर गया सुधा के गले से हल्की चीख उबल पड़ी. सुधा के पिता ने तीन-चार धक्कों में पूरा लंड बेटी की गांड में डाल दिया. सुधा की गांड की चुदाई पहले धीरे-धीरे शुरू की और थोड़ी देर में ही उसके पिता का विशाल लंड सटासट सुधा की गांड मार रहा था.


इस दौरान सुधा के दोनों बेटे वापस आ गए. दोनों तभी खेल कर वापस आ रहे थे। उहोने नीचे हाल में अपने नानाजी का सूटकेस देख के बिना देर लगाए अपनी माँ के शयनकक्ष की और दौड़ लगा दी। दोनों पसीने से भीगे हुए थे। रोज़मर्रा वाले दिन दोनों पहले नहाने जाते पर उस दिन अनिल और सुनील नानाजी को अपने मां की चुदाई करते देख कर जल्दी से नंगे हो कर बिस्तर पर कूद पड़े. नाना ने दोनों का मुस्करा कर स्वागत किया. दोनों ने जल्दी से नानजी को चूम कर नमस्ते की। अपने बेटों के पसीने की महक ने सुधा की वासना को और भी बुलंद कर दिया। दोनों भी अपनी माँ के मुंह के दोनों तरफ घुटनों पर बैठ गए। दोनों बड़ी एकाग्रता से नानाजी को अपनी माँ की गांड मारते हुए देख रहे थे। दोनों अपनी माँ की तंग गुदा को नानाजी के मोटे मूसल पर चौड़ी होते देख कर उत्तेजित हो गए। सुधा के पिताजी लम्बे जोरदार धक्कों से अपनी बेटी की गांड बड़ी तन्मयता से चोद रहे थे। उन्होंने अपने धेवतों की वासना का भी अहसास था। सुधा ने सिसकते हुए अपने बेटों के लंड को चूस कर पूरा सख्त कर दिया. सुधा के पिता ने अपना मल-लिप्त लंड अपनी बेटी की गांड से निकाल कर उसकी चूत में ढूंस दिया. सुधा के बेटे अपने माँ की चूचियों का मर्दन कर रहे थे. सुधा के पिता ने दस-बीस भयंकर धक्कों से अपने बेटी की चूत को चोदा और फिर सुधा की चूत से अपना लंड निकाल कर सुधा की गांड में हिंसक ताकत से डाल दिया. सुधा के पिता ने अपनी बेटी को जकड़ कर अपनी कमर पर पलट गए. अब सुधा की चूत उसके बेटों के लिए प्रस्तुत थी. अनिल ने अपना ८इन्च का मोटा लंड अपनी माँ की चूत में बेदर्दी से ढूंस दिया. सुधा की सिस्कारियां और चीखें अविरत कमरे में गूँज रही थी. सुनील ने अपने दोनों टाँगे अपनी माँ के सीने के दोनों तरफ रखी कर उसकी चूचियों पर बैठ गया. सुनील ने अपना मोटा लंड अपनी बिलखती माँ के खुले मुंह में डाल दिया. सुधा के तीन जान से भी प्यारे मर्द उसकी चूत और गांड को विध्वंस रूप से चोद रहे थे. सुधा का अपने परिवार के पुरुषों से प्यार का इस से अच्छा और कोई प्रमाण नहीं हो सकता था. तीनो ने सुधा को चार बार झाड़ कर अपने लंड का वीर्य-स्खलन कर दिया. चारों अनाचारी प्रेमी बिस्तर पर थोड़ी देर आराम करने को लेट गए. पर कुछ ही क्षणों में सुधा के बेटों का लंड फिर से तन गया. सुधा मुसकराई और अपने बेटों को अपनी बाँहों में भर लिया. तभी सुधा के पति और ससुर ने कमरे में प्रवेश किया. दोनों बिस्तर के दृश्य से प्रसन्न हो गए. दोनों ने अपने कपडे उतार कर अपने मोटे लम्बे लंड को तैयार करने लगे. सुधा के पिता अपनी बेटी को बाँहों में उठा कर कालीन पर ले आये, जिस से पाँचों मर्दों को सुधा को चोदने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके. *******************************
 
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थोड़ी देर बाद लम्बी चुदाई की थकान गायब हो गयी और सुधा अपने पांच पुरुषों को प्यार से अपनी हल्की भूरी आँखों से देख कर उन्हें चुदाई का निमंत्रण देने लगी। सुधा के ससुर कालीन पर लेट गए और उन्होंने अपनी बहु को अपने खड़े मोटे लम्बे लंड के ऊपर खींच लिया। सुधा ने जल्दी से अपनी गीली छूट को अपने ससुर के खम्बे जैसे लंड के ऊपर लगाकर अपनी गांड नीचे दबाने लगी। उसकी मीठी सिसकारी के साथ उसकी मीठी सुगन्धित चूत इंच-इंच कर के ससुरजी के विशाल लंड को निगलने लगी। जैसे ही उसकी चूत के मुलायम भगोष्ट अपने ससुर के वृहत लंड की जड़ पर पहुंचे सुधा ने उनके लंड को अपने संकरी चूत की मांसपेशियों से जकड़ लिया। ससुर जी की हल्की सिसकारी ने सुधा के अत्यंत वासना से लिप्त सुंदर चेरे पर मुस्कान ला दी। सुधा को थोड़ा अहसास था कि पीछे खड़े उसके परिवार के पुरुष क्या प्लान बना रहे थे। जैसा सुधा ने सोचा था, उसके पति, उमेश, ने अपना मोटा लम्बा लंड अपनी पत्नी की छोटी सी गांड के छल्ले पर लगा कर अंडर डालने के लिए दबाने लगे। सुधा की सिसकारी ने उसके गांड में उपजे दर्द की घोषणा कर दी। सुधा अभी अपने को अपने पति के जानदार धक्के के लिए तैयार कर रहे थी कि उसका छोटा बेटा, अनिल, उसके मुंह के सामने आ गया। सुधा ने बिना देर लगाए अपने बेटे का खड़ा मोटा लंड अपने मुंह में ले लिया। उमेश ने पूरी ताकत से अपने पत्नी की कोमल गांड को फाड़ने के काबिल भयंकर धक्के से अपनी लंड उसकी गांड में बेदर्दी से घुसेड़ दिया। अनिल के लंड ने अपनी माँ की चीख को दबा दिया अनिल ने भी अपनी माँ के चेहरे को कास कर पकड़ कर अपने लंड से सुधा के कोमल मुंह को चोदना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से सिर्फ 'गोंगों ' की आवाज़ें निकल पा रहीं थी। सुधा के पति का लंड अपने पिता जैसे ही लम्बा और मोटा था। सुधा को दोनों भीमकाय लंड एक साथ लेते हुए शुरू की चुदाई में बहुत दर्द होता था। पर जब उसकी गांड और चूत मोटे लंदों के इर्द-गिर्द फ़ैल जाती थी तो उसके आनंद की कोई सीमा नहीं थी। थोड़ी देर बाद लम्बी चुदाई की थकान गायब हो गयी और सुधा अपने पांच पुरुषों को प्यार से देख कर उन्हें चुदाई का निमंत्रण अपनी हल्की भूरी आँखों से देने लगी। सुधा के ससुर कालीन पर लेट गए और उन्होंने अपनी बहु को अपने खड़े मोटे लम्बे लंड के ऊपर खींच लिया। सुधा ने जल्दी से अपनी गीली छूट को अपने ससुर के खम्बे जैसे लंड के ऊपर लगाकर अपनी गांड नीचे दबाने लगी। उसकी मीठी सिसकारी के साथ उसकी मीठी सुगन्धित चूत इंच-इंच कर के ससुरजी के विशाल लंड को निगलने लगी। जैसे ही उसकी चूत के मुलायम भगोष्ट अपने ससुर के वृहत लंड की जड़ पर पहुंचे सुधा ने उनके लंड को अपने संकरी चूत की मांसपेशियों से जकड़ लिया। ससुर जी की हल्की सिसकारी ने सुधा के अत्यंत वासना से लिप्त सुंदर चेरे पर मुस्कान ला दी। सुधा को थोड़ा अहसास था कि पीछे खड़े उसके परिवार के पुरुष क्या प्लान बना रहे थे। जैसा सुधा ने सोचा था, उसके पति, उमेश, ने अपना मोटा लम्बा लंड अपनी पत्नी की छोटी सी गांड के छल्ले पर लगा कर अंडर डालने के लिए दबाने लगे। सुधा की सिसकारी ने उसके गांड में उपजे दर्द की घोषणा कर दी। सुधा अभी अपने को अपने पति के जानदार धक्के के लिए तैयार कर रहे थी कि उसका छोटा बेटा, अनिल, उसके मुंह के सामने आ गया। सुधा ने बिना देर लगाए अपने बेटे का खड़ा मोटा लंड अपने मुंह में ले लिया। उमेश ने पूरी ताकत से अपने पत्नी की कोमल गांड को फाड़ने के काबिल भयंकर धक्के से अपनी लंड उसकी गांड में बेदर्दी से घुसेड़ दिया। अनिल के लंड ने अपनी माँ की चीख को दबा दिया अनिल ने भी अपनी माँ के चेहरे को कास कर पकड़ कर अपने लंड से सुधा के कोमल मुंह को चोदना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से सिर्फ 'गोंगों ' की आवाज़ें निकल पा रहीं थी। सुधा के पति का लंड अपने पिता जैसे ही लम्बा और मोटा था। सुधा को दोनों भीमकाय लंड एक साथ लेते हुए शुरू की चुदाई में बहुत दर्द होता था। पर जब उसकी गांड और चूत मोटे लंदों के इर्द-गिर्द फ़ैल जाती थी तो उसके आनंद की कोई सीमा नहीं थी। ************* पांच दस मिनट में सुधा की बेदर्दी से चुदती गांड और चूत का दर्द बिलकुल गायब सा हो गया और वो अपनी कमर और चूतड़ को हिला-हिला कर दोनों लंदों की अपनी चूत और गांड मारने के लिए पूरी सहायता कर रही थी। सुनील और सुधा के पिताजी अपने लोहे जैसे सख्त लंडो से सुधा के कोमल हाथों को भर दिया। सुधा अपने सारे परिवार के पाँचों पुरुषों के लंडों को सुख देने लगी। सुधा अगले दस मिनट में फिर से झड़ गयी। उमेश ने अपना लंड अपनी पत्नी की गांड में से निकाल लिया और अपनी जगह अपने ससुर को दे दी। अनिल ने अपना लंड अपनी माँ के मुंह से निकाल कर उसे अपने पितजी के माँ की गांड से निकले लंड के लिए खाली कर दिया। सुधा ने अपने पति का उसकी गांड के रस से सुगन्धित लंड को अपने मुंह में भर कर चाटने और साफ़ करने लगी। अनिल ने अपने लंड अपनी माँ के खाली हाथ में भर दिया। सुधा के परिवार के पांच पुरुष सुधा की चूत और गांड को मिल कर चेन बना कर अपने विशाल लंडों से चोदने लगे। सुधा की चूत बार बार झड़ रही थी। क्योंकि हर लंड को चूत और गांड के बाहर शांत होने का अवसर मिल रहा था इसकी वजह से पाँचों लंड बिना झड़े
 
अगले दो घंटों तक सुधा की गांड और चूत को रगड़-रगड़ कर निर्ममता से चोदते रहे। सुधा का शरीर अनगिनत रति-विसर्जन से थकने लगा। सुधा का मुंह भी अपनी मलाशय से निकले मोटे लंडों को चूस चूस कर थक गया था। पांच मर्द अपने खड़े मोटे लंड को सहला कर और भी सख्त करनी का प्रयास कर रहे थे। सुनील ने सबको अपनी माँ की आगे की चुदाई के लिए कोई बहुत ही अच्छा सुझाव दिया। सबने उसकी पीठ थपकी। सुधा की उन दस मिनटों में साँसे काबू में होने लगीं। सुधा को पता था कि जब उसका सारा परिवार इकट्ठे हो कर चोदता था तो वो कई बार कामानंद से अभिभूत हो बेहोश हो जाते थी। इस बार सुनील और अनिल दोनों कालीन पर विपरीत दिशा में लेट गए. सुनील ने अपनी जांघें अपने भाई की जांघों पर फैला दी. इस तरह दोनों के लंड बिलकुल करीब थे. सुधा ने मुस्करा कर सिसकी भरी और अपनी चूत को अपने दोनों बेटों के लंड पर टिका कर उनके मोटे लंड को इकट्ठे अपनी यौन-द्वार में फंसा लिया. सुधा के मुंह से जोर की दर्द भरी सिसकारी निकल गयी. उसका सुंदर चेहरा दर्द से पीला पड़ गया था. सुधा के पति ने अपने बेटों के लंड को पकड़ कर सुधा की चूत में फिट करने लगे. सुधा के ससुर और पिता ने उसकी दोनों बाहें संभाल कर उसके शरीर को नीचे दबाने लगे जिस से उसके बेटों के लंड सुधा की चूत में समा जाएँ. सुनील और अनिल अपने नितिम्बो को ऊपर उठा कर अपनी माँ की चूत में दो मोटे लंड को धकेलने में मदद कर रहे थे. सुधा ने अपने होठों को दातों में दबा कर दर्द बर्दाश्त करने का प्रयास करते हुए अपने बेटों के आधे लंड इकट्ठे अपनी चूत में ले लिए. सुनील और अनिल के लंड आधार की तरफ और भी मोटे थे. सुधा का माथा पसीने की बूंदों से भर गया. सुधा के पिता ने सुधा की पीठ के पीछे खड़े हो कर अपनी बेटी की जांघों को अपने मज़बूत हाथों में भर कर उसके पैर कालीन से ऊपर उठा लिए. अब सुधा का पूरा वज़न उसके पिता के हाथों में था. उसकी चूत अपने बेटों के लंड पर स्थिर थी. सुधा के पिता ने अपने समधी और दामाद को संकेत दिया. सुधा के पति ने अपने बेटों के लंड को अपने हाथों से संभल लिया. सुधा के ससुर ने दोनों हाथ अपने बहू के कन्धों पर रख दिए. सुधा के पिता ने अचानक अपनी बेटी का पूरा वज़न अपने हाथों से मुक्त कर दिया, उसी समय सुधा के ससुर अपना पूरा वज़न अपनी बहू के कन्धों पर डाल कर उसे नीचे धकेलने लगे. सुधा के हलक से निकली दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा. एक भयंकर धक्के में सुधा की चूत में उसके बेटों के लंड जड़ तक अंदर चले गए. सुधा सुबकते हुए अपने छोटे बेटे सुनील के ऊपर गिर पड़ी. सुनील ने अपने माँ को अपनी बाँहों में भर कर उसके मुंह पर अपना मुंह लगा दिया. सब मर्दों ने सुधा को कुछ मिनट दो मोटे लंड को अपनी चूत में समायोजित करने के लिए दिए. सुधा के पति ने सुबकती पत्नी का मुंह अपने मूसल लंड से भर दिया. सुधा के ससुर ने अपना तना हुआ मोटा लंड अपने बहू की गांड में बेदर्दी से जड़ तक अंदर डाल दिया. अगले एक घंटे पांचो मर्दों ने सुधा की बेदर्दी से चुदाई की. सुधा के पति, ससुर और पिता ने बारी बारी से सुधा की गांड की अविरत चुदाई की. सुधा के दोनों बेटे उसकी चूत में अपने मोटे लंड को तीन चार इंच अंदर बहर कर रहे थे. सुधा की दर्द भरी चीखें शीघ्र वासना की सिस्कारियों में बदल गयीं. जब एक मर्द सुधा की गांड में स्खलित हो जाता था तो उसकी जगह दूसरा मर्द ले लेता था. सुधा पहले मर्द का मल-लिप्त लंड चूस कर साफ़ और फिर से सख्त कर देती थी. उसके दोनों बेटे तीन बार अपनी माँ की चूत में स्खलित हो गए थे. उनके लंड एक बार भी शिथिल नहीं हुए. सुधा अनगिनत बार चरमोत्कर्ष के आनंद में डूब चुकी थी. लेकिन उसके लम्बे आनन्द की पराकाष्ठा और अनगिनत रति-विसर्जन ने उसे बिलकुल थका दिया. अंत में सुधा निढाल हो कालीन पर पसर गयी. जैसे ही उसके बेटों के मोटे लंड उसकी चूत से बाहर निकले उसकी चीख निकल गयी. उसके ऊपर जान छिड़कने को तैयार उसके पाँचों कौटुम्बिक अनाचारी प्रेमियों ने अपना आखिर बार का वीर्य स्खलन सुधा के सुंदर मुंह पर किया. सुधा का पूरा मुंह वीर्य से ढक गया. उसके ससुर और बेटों ने अपने लंड के प्रचंड वीर्य के स्फुरण से सुधा के दोनों नथुनों को वीर्य से भर दिया. सुधा थकी-मांदी सिर्फ कुनमुना ही सकी. उसके ससुर ने प्यार से अपनी बहू को अपनी बाँहों में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. पांचों मर्द, सुधा को कुछ देर आराम करने के लिए अकेला छोड़, आगे की चुदाई की योजना बनाते हुए नीचे मदिरापान के लिए चल पड़े.


हम चारो बहुत गरम हो गये थे। बड़े मामा ने नम्रता चाची को अपनी शक्तिशाली बाँहों में उठा लिया और तेजी से शुभ्ररात्री बोल कर अपने शयनकक्ष की और चल दिए। नम्रता चाची की खिलखिलाने की आवाज़ बहुत देर तक तक गूंजती रही। मेरा तप्ता हुआ शरीर सुरेश चाचा से और भी बुरी तरह से लिपट गया। सुरेश चाचा ने मेरे थिरकते जलते हुए होंठों पर अपने गरम मर्दाने मोटे होंठ लगा दिए। मेरी दोनों गुदाज़ बाहें स्वतः उनकी मोटी मज़बूत गर्दन के इर्द-गिर्द हों गयीं। मेरा मुंह अपने आप से खुल कर सुरेश चाचा की मीठी ज़ुबान का स्वागत करने के लिए तैयार हो गया। सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और चुम्बन तोड़े बिना अपने कमरे की तरफ चल दिए। कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उनकी ज़ुबान ने मेरे मुंह की पूरी तलाशी ले ली थी। उनका मीठा थूक मेरे मुंह में इकठा हो गया। मैंने लालचीपने से सारा का सारा गर्म मीठा थूक गटक लिया। कमरे में पहुँच कर चाचाजी ने मुझे पलंग पर खड़ा कर दिया और अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने भी जल्दी से अपने को निवस्त्र कर दिया। मैं भारी सासों से सुरेश चाचा को अपने कपड़े उतारते हुए एकटक देख रही थी। चाचाजी का भारीभरकम बदन घने बालों से भरा हुआ था। उनके सीने के बालों में काफी बाल सफ़ेद होने लगे थे।
 
मेरी आँखें उनके नीचे गिरते हुए कच्छे पर टिकी हुई थी। मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी जब चाचाजी का अमानवीय मोटा लंड स्पात की तरह सख्त बाहर आया। मेरी डर के मारे हालत खराब हो गयी। सुरेश चाचा का लंड बड़े मामा से भी मोटा था। हालांकी उनका लंड बड़े मामा से कुछ इंच छोटा था पर उसकी मोटाई ने मुझे डरा दिया। मैंने अपना दिल पक्का कर लिया और अपने से वायदा किया की मैं जैसे भी होगा सुरेश चाचा को अपने साथ आनंद लेने से नहीं रोकूंगी। आखिर नम्रता चाची मेरे बड़े मामा को सारी रात अपने शरीर से आनंद देंगी। मैं कैसे पीछे हट सकती थी। सुरेश चाचा मेरे पास आये और अपना लंड मेरे हवाले कर दिया। मेरे दोनों नाज़ुक छोटे हाथ मुश्किल से उनके मोटे स्थूल लंड के इर्द-गिर्द भी नहीं जा पाए। मैंने तुरंत समझ लिया की चाचाजी का लंड बड़े मामा जितना ही मोटा था पर कुछ इंच छोटा होने की वजह से मुझे ज़्यादा ही मोटा लगा। फिर भी चाचाजी का अमानवीय लंड किसी भी लड़की की चूत और गांड आसानी से फाड़ सकता था। मैंने अपना पूरा खुला हुआ मुंह चाचाजी के सेब जितने बड़े सुपाड़े के ऊपर रख दिया। मेरी जीभ ने उनके सुपाड़े को सब तरफ से चाटना शुरू कर दिया। मेरी झीभ की नोक उनके पेशाब के छेद को चिड़ाने लगी। चाचाजी की सिसकारी ने मुझे भी उत्तेजित कर दिया। मेरे कोमल नाज़ुक कमसिन हाथ बड़ी मुश्किल से उनके दानवीय लंड को काबू में रख पा रहे थे। मेरा छोटा सा मुंह उनके लंड को अंदर लेने के लए पूरा चौड़ा हो कर खुल गया था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया। सुरेश चाचा मेरे सर के उपर हाथ रख कर मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाने लगे। मेरे दोनों हाथ बड़ी मुश्किल से चाचाजी के लंड के तने को पूरी तरह से पकड़ पा रहे थे फिर भी मैंने उनके लंड को सड़का मारने के अंदाज़ में अपने हाथ उपर नीचे करना शुरू कर दिया। मेरे गर्म मुंह उनके सुपाड़े को मेरी अवयस्क अप्रवीणता के बावजूद उनको काफी मज़ा दे रहा था। सुरेश चाचा ने थोड़ी ही देर में मुझे अपने लंड से उठा कर पलंग पर फ़ेंक दिया। सुरेश चाचा बिजली की तेजी से मेरी पूरी फैली गुदाज़ झांघों के बीच में कूद पड़े। उनका लालची मुंह शीघ्र ही मेरी गीले थरकती हुई चूत के उपर चिपक गया। मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, "आआह चाचाजी ऊउन्न्न्न्न मेरी चूत, चाचाजी…..ई……ई…..ई….।” सुरेश चाचा ने अपने मज़बूत बड़े हाथ मेरे भरे-पूरे गोल गुदाज़ नितिम्बों के नीचे रख कर मेरी चूत को अपने मुंह के करीब ले आये। सुरेश चाचा अपने पूरे खुले मुंह को मेरी चूत से भर कर जोर से चूम रहे थे। मेरे गले से जोर की सिसकारी निकल पड़ी। चाचाजी के बड़े मज़बूत हाथ मेरे दोनों चूतडों को मसलने लगे। मैंने अपनी चूत को अपने नितिन्ब उठा कर चाचाजी के मुंह मे दबोचने लगी। चाचाजी ने अपने लम्बे मर्दाने हाथ मेरी भारी झांगों के बाहर कर मेरे दोनों उबलते हुए उरोजों के उपर रख दिए। उनके स्पर्श मात्र से मेरी सिसकारी निकल गयी। चाचाजी ने मेरे दोनों चूचियों को अपने मज़बूत मुट्ठी में जकड़ लिया। चाचाजी ने बेदर्दी से मेरी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर दिया, "ऊउम्म्म चाआआ चाआआ जीईईईइ ............धीरे धीरे पप्लीईईईईईईइ .........ज़ज़ज़ज़ज़ज़। आअह मेरी चूत .......ऊउम्म्म।" चाचाजी ने मेरे कच्चे किशोर बदन का वासनामय मर्दन कर के कमरे को मेरी सिस्कारियों से भर दिया। चाचाजी अब अपने मुंह में मेरी चूत ले कर उसे ज़ोरों से चूस रहे थे। मेरी चूत में एक अजीब सा दर्द और आनंद की लहर दौड़ रही थी। मेरे हाथ चाचाजी के घने बालों को सहलाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी चूत के तंग कोमल द्वार को चाटना शुरू कर दिया। मेरी आँखें वासनामय आनंद से आधी बंद हो गयीं। चाचाजी ने मेरी चूत के बाहरी छेद को चाटने के बाद अपनी जीभ से मेरी चूत मारने लगे। उन्होंने अपनी जीभ को मोड़ कर लंड की शक्ल में कर लिया था। सुरेश चाचा ने अपनी गोल लंड की शक्ल में उमेठी जीभ से मेरी चूत की दरार को खोल कर उसे मेरी तंग, कमसिन, मखमली चूत की सुरंग में घुसेड़ दिया। मेरी सांस अब अटक-अटक कर आ रही थी। मेरे दोनों हाथों ने चाचाजी के घने बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर जोर से उनका सर अपनी चूत के ऊपर दबाना शुरू कर दिया। चाचाजी मेरी गीली चूत को अपनी मोटी गरम जीभ से चोदने लगे। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं। "आह चाचजी ई ..... ई ......ई ...... ई .....अम्म्म ....ऒऒन्न्न्न्ह्ह्ह," मेरे मुंह से अनर्गल आवाजें निकलने लगीं। चाचजी के दोनों हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। चाचाजी बीच-बीच में मेरे निप्पल को बेरहमी से उमेठ देते थे। मेरे नाजुक उरोजों और निप्पल के मर्दन से मेरी सिसकारी कभी-कभी छोटी सी चीख में बदल जाती थी। मेरी चूत अब चूतरस से लबालब भर गयी थी। सुरेश चाचा अब मेरे घुण्डी को चूस रहे थे। जितनी बेदर्दी से चाचाजी मेरी चूचियां मसल रहे थे उन्होंने उतनी ही निर्ममता से मेरी घुंडी को चूसना और काटना शुरू कर दिया। मैं कमसिन उम्र में बड़े मामा की*एक दिन की चुदाई में ही में सीख गयी थी की सुरेश चाचा मेरी बेदर्दी से चुदाई करेंगे। मेरे रोम-रोम में बिजली सी दौड़ गयी। मेरे दोनों स्तनों में एक मीठा-मीठा दर्द होना शुरू हो गया। मेरे मुंह से जोर की सीत्कार निकल पड़ी। चाचाजी ने मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में दबा कर झंझोड़ दिया। मेरे गले से घुटी-घुटी चीख उबल कर कमरे में गूँज उठी। मेरे चूचियों का दर्द अब मेरे निचले पेट में उतर गया। चाचजी ने मेरी सिसकारी और चीखों से समझ लिया की मेरा रति-स्खलन होने वाला था। सुरेश चाचा मेरे दोनों उरोजों को और भी निर्ममता से मसलने लगे। उन्होंने ने मेरे क्लीटोरिस को अपने होंठों के बीच में ले कर मेरी चूत से दूर खींच लिया। मेरी घुटी-घुटी चीख और वासना में डूबी कराहट ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया था।
 
मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी। "चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ। सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया। मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया। मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे। "आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई। मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था। चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया। सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी। "चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई। "नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा। मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"


सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं। मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो चाचू आन्न्न्ह्ह ...." सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक जा कर ही दम लेगा। सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे। उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी। चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं थीं। सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी। सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे रहीं थीं। मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था। चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।" मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी। चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे। कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं। "आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए कसमसा रही थी। मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी मार कर झड़ने लगी। चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं। "चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई। “ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी। सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी। सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।" मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।" मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे। चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया। मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं। मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया। सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा। सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे। *********************************************************
 
12


सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से थोड़ा सा शिथिल हुआ था। मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया। मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी। मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया। मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था। मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए। मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था। मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे। मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे। सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए। मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड की दरार को चाटने लगी। मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए। उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी। सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और उंगलियाँ थी। मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी। मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की। मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।


सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।
 
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