hotaks444
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लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था। अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया। मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा। सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे। ***************************************************** मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया। मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी। मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी। सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था। मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया। "नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे। "चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा। चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।" सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।
मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे। मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे। मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहित कर दिया। मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी। मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी। सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था। मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया। "नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे। "चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा। चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।" सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।