Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - Page 7 - SexBaba
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Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

हॉस्पिटल पहुच के देखा के रमण की हालत बहुत खराब है – एक लावारिस की तरहा --- रमण सच बोल नही सकता था के बाप ने ही मारा है – इसलिए सब बर्दाश्त कर रहा था – जो भी उसके साथ हो रहा था—

जैसे ही रमण ने सुनील को देखा उसकी मुरझाई आँखों में चमक आ गयी एक ज़रिया मिल गया था उसे रूबी तक पहुँचने का…. लेकिन सुनील की पथरीली आँखों से डर भी गया था.

क्या बात हुई होगी दोनो के बीच ?????


जब इंसान के पास सब कुछ होता है, वो ग़लतियों पे ग़लतियाँ करता चला जाता है. आज हॉस्पिटल में एक लावारिस की तरहा पड़े हुए – जिसके पास उसका कोई अपना नही था – सामने खड़े सुनील की जहर भुजी आँखों को देख – रमण को अहसास होने लगा – रिश्ते क्या होते हैं – उन रिश्तों को कैसे निभाया जाता है – रूबी की ही उम्र का – उसका छोटा – भाई – कैसे ज़िम्मेदारियाँ उठा रहा था – और खुद उसने क्या किया – ये अहसास मौत से कम नही था – रमण के लिए …. सीखा ---- पर बहुत देर बाद सीखा---- आगे क्या होगा – कॉन सा – रास्ता उसे चुनना है – ये उन आँखों की चकाचोंध--- के आगे वो सोच नही पा रहा था --- बस एक अहसास बाकी रह गया था --- दिल से रूबी का साथ देने का…… वो बड़ा था… आज महसूस कर रहा था …. सच्चे दिल से …. उसने क्या गुनाह किया था….छोटी बहन को प्यार के सपने दिखाए…. और उन सपनो में खुद ही आग लगा दी …. ये गुनाह ऐसा था… जिसकी सज़ा मोत भी कम थी …. एक ऐसी मोत…जो दूसरों को सबक दे….


रमण की आँखें कुछ कह रही थी --- उन आँखों में गुनाह का अहसास था --- एक ऐसा अहसास जिसे खुद सुनील पहली बार देख रहा था --- अभी सुनील ने जिंदगी के रंग देखे ही कहाँ थे ---- वो तो बस --- सागर की छाँव – में पनपता रहा --- आज दुनिया उसे वो रंग दिखा रही थी – जिनसे वो अंजान था --- एक भाई उसके सामने --- अपने आप से लड़ता हुआ दिख रहा था --- एक भाई जिसने अपनी ही बहन का दिल तोड़ा था --- आज उस गुनाह के बोझ तले दबा हुआ…..अपनी डूबती आँखों से … माफी माँगता हुआ दिख रहा था…. कोई और पल होता तो शायद सुनील उसके मुँह पे थूक के चला जाता…..लेकिन सागर ने उसे कुछ और ही सीखाया था….उसे उस टूटी हुई बहन की आस फिर से बनती हुई नज़र आ रही थी …. हालाँकि ये उसे पसंद नही था… पर उसने रूबी की आँखों में बसे दर्द को देखा था… उसे बिना कुछ कहे समझा था…. प्यूबर्टी --- दा ज़ोन ऑफ एरर्स…. ये उसे सागर ने समझाया था….इसीलिए तो वो सोनल का प्यार कबूल नही कर पा रहा था --- इसीलिए तो सुमन उसे सिड्यूस नही कर पाई थी (जब वो समर के नशे में थी--- जब वो समर को सही समझती थी)

तुम दिल की धड़कन में रहते हो, तुम रहते हो
तुम दिल की धड़कन में रहते हो, रहते हो -
मेरी इन साँसों से कहते हो, कहते हो
बाहों में आजाओ, सपनों में खोजाओ
तुम दिल की धड़कन में रहते हो, रहते हो

ह्म ह्म ह्म..
दीवानो सा हाल हुआ, हम को उनसे प्यार हुआ
दीवानो सा हाल हुआ, हम को तो उनसे प्यार हुआ
धीरे से वो पास आए, चुपके से इज़हार हुआ
अब ना किसीसे डरना है, संग जीना मरना है
बाहों में आजाओ, सपनों में खोजाओ
तुम दिल की धड़कन में रहते हो, रहते हो


ये अहसास रमण को रूबी को खोने के बाद हुआ...... और अब उस अहसास के तले उसकी जान निकल रही थी.

उसकी आँखें सुनील से भी माफी माँग रही थी.

सुनील ने विक्की को अकेला छोड़ने को कहा.

'कुछ कहना है ....' सुनील बस इतना ही बोला.

एक ठंडी सांस भरते हुए रमण बस इतना बोला ' उससे कहना मेरी एक ग़लती माफ़ कर दे'

'बहुत प्यार करते हो रूबी से?????'

'जान से ज़यादा.....'

'क्या करोगे उसके लिए' सुनील खुद नही जानता था वो क्या बोल रहा है - उसका क्या मतलब है - इस वक़्त बस उस बहन की आँखों में बसे दर्द को दूर करना चाहता था'

'जो तुम कहो'

'जब तक उसकी डिग्री पूरी नही हो जाती --- तुम उससे दूर रहो गे ---- उस के बाद --- उस के बाद अगर उसके दिल में तुम्हारे लिए कुछ भी हुआ..... तो मैं खुद उसे ले के तुम्हारे पास आउन्गा' सुनील ये कैसे बोल गया ---- कैसे उसने इन्सेस्ट कबूल कर लिया....... ये शायद वो बाद में सोचेगा.... पर अभी उसके दिमाग़ में रूबी और उसका दर्द था.

रमण को यूँ लगा उसे फिर से जिंदगी मिल गयी..... वो बिलख बिलख के रोने लगा.

सुनील जो अब तक उस से दूर खड़ा था.... उसके पास जा के बैठ गया.

'क्यूँ किया था ऐसा....... कोई और लड़की नही मिली थी ....... मैं इतना बड़ा नही.... ये सब समझ सकूँ...... पर मैने उसकी आँखों में दर्द देखा है.... एक ऐसा दर्द.... जिसे देख मैं सो नही पाता हूँ....... मैं नही जानता.....तुमने क्या ग़लती करी.... लेकिन जो भी किया... उसकी सज़ा मौत से कम नही होनी चाहिए.... पर तुम मर गये .... तो वो भी मर जाएगी... वो रोज पल पल मर रही है.....'

रमण उसे कोई जवाब नही दे पाया.
 
'हम सब सोचते थे - तुमने उसका शोसन किया....उसकी हालत ही ऐसी बना दी थी तुमने'

ये सुन रमण की जान निकल गयी..... एक ग़लती...एक ग़लती... और ये अंजाम .... सिवाए आँसू बहाने के ....अब और कर भी क्या सकता था.

'एक बात याद रखना --- 3 साल तक ... अगर उसके पास जाने की कोशिश करी --- किसी भी तरहा से---- तो जान से मार दूँगा' ------- ये आवाज़ एक छोटे भाई की नही हो सकती थी - इतना सर्द पना था उसमे --- कि रमण को बर्फ़ीली सूइयां अपने पूरे जिस्म और दिल-ओ-दिमाग़ में चुभती हुई महसूस हुई ........एक खोफ़ समा गया ...उसके अंदर ......शायद ......सुनील....सागर बन गया था......ज़िम्मेदारियों का पुतला.

सुनील बाहर निकल गया और विक्की को रमण की पूरी देखभाल करने को बोल दिया.... थोड़ी देर में रमण को एक रूम में शिफ्ट कर दिया गया ----जहाँ हर सहूलियत थी--- और अच्छे ---से अच्छा डॉक्टर उसका इलाज़ करता.

सुनील घर के लिए निकल पड़ा और सारा रास्ता - ये सोचता रहा --- उसने ठीक किया ---या ग़लत.

शाम को सुनील घर पहुँचा तो सामने सुमन खड़ी थी - जिंदगी से हार मानी हुई ---आँखों में उदासी भरी हुई..... एक आस के साथ सुनील को देखती हुई....... क्या कहना चाहती थी वो आँखें..... ये सुनील समझ नही पा रहा था..... बस उसे ये महसूस हो रहा था ... कि सागर के जाने के बाद उसकी माँ बहुत ही दुखी है..... इसका कोई इलाज़ उसके पास कहाँ था.

सुनील ने रूबी को बस इतना बताया ....... कि उसका माइग्रेशन हो गया है .... रमण से हुई मुलाकात वो छुपा गया...... शायद ये 3 साल रूबी के लिए भी एक इम्तिहान थे.... क्या वो वाक़यी में रमण से प्यार करती थी या ये सिर्फ़ एक वासनात्मक संबंध था...... सुनील को ये नही मालूम था... कि रूबी के पास ... जो आखरी फोटो रमण की आई थी वो क्या थी और उसका क्या असर पड़ा था उसपे.... और उस फोटो में कितनी सच्चाई थी.

क्या कभी दोनो इस बारे में बात करेंगे.... अगर करेंगे तो कब....पता नही....

6 महीने बीत गये --- यादें धुंधली पड़ने लगी --- जिंदगी रफ़्तार पकड़ने लगी – दर्द अपना रूप बदलने लगा

3 महीने बाद ही सुनील और रूबी को कॉलेज के रूल्स के हिसाब से हॉस्टिल में जाना पड़ा – दोनो हर हफ्ते वीकेंड पे आया करते थे.
सुमन ने खुद को हॉस्पिटल में बिज़ी कर लिया और सविता को भी साथ लगा लिया,
सोनल जी जान से एमडी की तैयारी में जुट गयी और साथ ही साथ हॉस्पिटल में ट्रैनिंग लेती रही.

वक़्त तेज़ी से गुजर रहा था ऐसे ही एक वीकेंड को जब सुनील और रूबी घर पहुँचे ---- सोनल उसके साथ ऐसे चिपकी जैसे किसी भूत से पीछा छुड़ा के आ रही हो.

सुनील ने उसके माथे का चुंबन लिया और जब उसे अपने से हटाया और उसकी आँखों में देखा तो हिल के रह गया – वो आँखें कह रही थी – मैं इंतेज़ार कर रही हूँ – एक दर्द था उन आँखों में – एक आस थी उन आँखों में – एक बेबसी थी उन आँखों में.

सुनील ज़यादा देर तक उन आँखों को देख ना सका और घबरा के अपने रूम में भाग गया और दीवार से सट के हाँफने लगा.

‘डॅड ये क्या हो रहा है --- इसे रोक लो प्लीज़ –‘ वो सागर को आवाज़ लगा रहा था सोनल को समझाने के लिए – पर सागर होता तो उसकी कोई मदद करता – जो दर्द उसने सोनल की आँखों में देखा था – वो उसे बुरी तरहा से हिला गया था.

सागर के जाने के बाद सुनील सभी ज़िम्मेदारियाँ उठा रहा था बखूबी – पर वो अकेला पड़ गया था – उसकी जिंदगी से रोशनी जा चुकी थी – एक मशीन बन के रह गया था. पूरे परिवार का दर्द बाँटता था वो – हर मुश्किल का सामना करता था वो – पर अपना दर्द अपना अकेलापन जो सागर के जाने के बाद उसे मिला – वो उसके सीने में दब के रह गया. हॉस्टिल में भी कभी कभी रातों को खूब रोता था. पर कभी भी उसने अपने दर्द का अहसास घर में किसी को भी नही होने दिया.

शाम को जब सुमन और सविता हॉस्पिटल से घर पहुँची ---- तो सॉफ सॉफ दिख रहा था – दोनो अपने आप से लड़ रही थी – सविता पे तो सुनील ने खास नज़र नही डाली पर सुमन – जब उसके गले मिली – तो ---तो…. सुमन बिना बोले उस से कुछ कहने की कोशिश कर रही थी---- ये कोशिश फिर सुनील को दर्द के सागर में ले गयी – वो सागर जो सागर ही उसके लिए छोड़ गया था – जिससे वो दूर भाग रहा था.

रात को सब एक साथ मिल के खाना खा रहे थे – सॅटर्डे की रात – स्पेशल हुआ करती थी – क्यूंकी सुनील घर पे होता था. रूबी ने खुद को नयी जिंदगी में ढाल लिया था.

खाना ख़तम होने के बाद सब एक साथ बैठे थे ----- रूबी जिसका चुलबुलापन लॉट आया था - सोनल के पीछे पड़ गयी -

'दीदी बहुत दिन हो गये आपकी मधुर आवाज़ सुने हुए --- प्लीज़ आज तो कुछ गा के सुना दो - प्लीज़ दीदी प्लीज़'

सोनल उदासी भरी नज़रों से उसे देखने लगी पर कुछ बोली नही.

सुमन यही समझती थी - कि सागर के जाने के बाद ही उदास रहने लगी है --- उसने भी बढ़ावा दिया --- सुना दे बेटी आज कुछ.

शायद अपने दिल की बात सुनील तक पहुँचाने का उसे ये मोका मिल गया-- उसने ये गाना गया

वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन

जब हँसेगी कली रंग वाली कोई
जब हँसेगी कली रंग वाली कोई
और झुक जाएगी तुमपे डाली कोई
सर झुकाए हुए तुम मुझे पाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन

चल रहे हो जहाँ इस नज़र से परे
चल रहे हो जहाँ इस नज़र से परे
वो डगर तो गुजरती है दिल से मेरे
डगमगाते हुए तुम यही आओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन रास्ते मेरी बाहें
जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे
वादियाँ मेरा दामन


जब गाना ख़तम हुआ उसकी आँखों में आँसू थे और वो गाते हुए भी बस सुनील को देख रही थी - जो नज़रें झुकाए बैठा था.

'वाह दीदी वा मज़ा आ गया - क्या सुरीली आवाज़ है आपकी' रूबी बोली.
 
जिसे कुछ बोलना चाहा था वो तो पत्थर की तरहा बैठा रहा - सोनल से सहा नही गया और अपने कमरे में भाग गयी. बिस्तर पे लेटी बिस्तर पे मुक्के बरसाती फुट फुट के रोने लगी.

सविता - अरे क्या हुआ सोनल को --- सुनील तू कुछ सुना देख कैसे दौड़ी हुई चली आएगी.

सुनील ने नज़रें उपर उठाई तो सुमन की आँखों में आग्रह देखा .......शायद सुमन तरस रही थी - सुनील के बोलों के लिए - पहले बहुत गाता था.

मुझको इस रात की तन्हाई मे आवाज़ ना दो
आवाज़ ना दो, आवाज़ ना दो
जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ ना दो
वो साज़ ना दो आवाज़ ना दो

रोशनी हो ना सकी दिल भी जलाया मैने
तुमको भुला भी नही लाख भुलाया मैने
मैं परेशा हूँ मुझे और परेशा ना करो
आवाज़ ना दो

इसके आगे सुनील गा ना सका.... उसकी आवाज़ रुंध गयी.... सुमन लपक के उसके पास पहुँची और अपने सीने से लगा लिया.
शायद सुनील - सोनल को ये कहना चाहता था - कि वो उस से बहुत प्यार करता है पर अपनी मर्यादा नही तोड़ सकता. ये तड़प शायद अब दोनो तरफ हो चुकी थी - बस सुनील था जो खुद को मर्यादा की दीवारों में क़ैद कर के रखा हुआ था. उसकी परवरिश उसे आगे नही बढ़ने दे रही थी.

सुनील भी अपने कमरे में चला गया --- और बाकी लोग भी सोने चले गये.

सुमन ने खाली बिस्तर को देखा और एक ठंडी साँस भर के लेट गयी और सोने की कोशिश करने लगी - हर सॅटर्डे - जब भी सुनील आता - सुमन की आँखों से नींद गायब हो जाती - वो कुछ कहना चाहती थी - पर कह नही पाती थी. मर्यादा --- मर्यादा... मर्यादा - उसकी ज़ुबान को ताला लग जाता था - आँखों से कुछ कहने की कोशिश करती - पर जिसे कहना चाहती थी - वो सुनने को तयार कहाँ था.

सागर के वो एसएमएस - रीप्लेस मी ---- अब बार बार सुमन को तड़पाने लगा था.

‘सुनील------सुनील…..सुनील’ बहुत दूर से कोई दर्द भरी आवाज़ में उसे पुकार रहा था.
‘डॅड…. डॅड……. कहाँ हो डॅड’

‘मेरा आखरी हुकुम नही माना तूने……क्यूँ?’

बहुत दर्द था इस आवाज़ में जैसे सागर रो के बोल रहा था.

‘मैं…. मैं कैसे…. वो माँ है मेरी…..ये ये क्या कह रहे हो डॅड----- ये कैसा हुकुम दे रहे हो’

‘देख मेरी सूमी को ….. क्या हाल हो गया है उसका…. देख उसे…. क्या तू उसे प्यार नही करता…. क्या तू उसे खुश नही देखना चाहता…..’

‘डॅड मत लो ये इम्तिहान….. मर जाउन्गा मैं…’

‘कुछ नही होगा तुझे….. प्यार से कोई मरता नही – प्यार से जीवन मिलता है….. तुझे मेरी सूमी को नया जीवन देना होगा ---- देना होगा….देना होगा…. ये मेरा हुकुम है तुझे मेरे प्यार को नया जीवन देना होगा’

‘डाआााद्द्द्द्द्दद्ड’

हूँ ……. सुनील की नींद खुल जाती है ----- ये ये कैसा सपना था.

‘डॅड!!!!!!’ सुनील की आँखों में आँसू आ गये.

नाश्ते की टेबल पे सुनील की नज़रें सुमन से टकराई --- वो नज़रें कुछ कह रही थी ….. वो उदासी कुछ कह रही थी….. सुनील उन नज़रों की ताब ना ले सका और सर झुका लिया.
सुमन के होंठों पे फीकी हँसी आ गयी.
 
वक़्त और गुजरा अब सुनील को ये सपना बार बार आने लगा ---- बीच में खुद से लड़ते हुए वो दो हफ्ते घर नही गया --- काम के लोड का बहाना कर दिया.

महीना गुजर गया और फिर वीक एंड आ गया...... और इस वीकेंड को........

सोनल एक कान्फरेन्स के लिए बाहर गयी हुई थी - उसे हॉस्पिटल की आडमिन ने नॉमिनेट किया था उसके काम को देख कर.

सविता और रूबी दो दिन के लिए बाहर चले गये - शायद जिंदगी की नीरसता को कुछ कम करने. सुमन घर रह कर बड़ी बेसब्री से सुनील का इंतेज़ार कर रही थी.

वो जितना सागर को भूलने की कोशिश करती उतना ही वो उसके करीब होता जा रहा था रोज रात उसे तड़पाता था - सागर अब सुनील का रूप ले चुका था. सुनील के हाव भाव, उसकी चल, उसका बात करने का तरीका - सारी ज़िम्मेदारी उठाने का सबब - सब एक दम सागर की तरहा था.

सुनील जब घर आया तो कोई नही था बस सुमन थी जो उसका इंतेज़ार कर रही थी. एक फीकी मुस्कान के साथ उसने सुनील को गले लगाया - आज उस गले लगने का अंदाज़ कुछ और था. सुनील ने भी अपनी माँ को अपनी बाँहों में बाँध लिया. लेकिन उसके चेरे पे कोई भाव नही थे. बस इतनी ख़ुसी थी कि वो अपनी माँ के हाथों से बना स्वादिष्ट भोजन आज करने वाला था -- जिसके लिए वो पूरा हफ़्ता तरसता था.

खाना खाने के बाद दोनो टीवी देखने बैठ गये. सुमन सुनील के कंधे पे सर रख उसके साथ बैठ गयी.

अहह तड़पति हुई रूह को कितना सकुन मिला. उसकी आँखें बंद हो गयी.


टीवी में ये गाना आ रहा था.

दिल ने यह कहा है दिल से
मोहब्बत हो गई है तुमसे
दिल ने यह कहा है दिल से
मोहब्बत हो गई है तुमसे
मेरी जान मेरे दिलबर,
मेरा ऐतबार कर लो
जितना बेक़रार हूँ मैं,
खुदको बेक़रार कर लो
मेरी धड़कनो को समझो,
तुम भी मुझसे प्यार कर लो
दिल ने यह कहा है दिल से


ये गाना भी शायद आज मोका ढूढ़ के बज रहा था - सुमन के दिल का हाल बता रहा था.

बहुत धीरे से सुमन बोली ' मेरा दोस्त मुझे भूल गया' बहुत दर्द था इस आवाज़ में

सुनील ने सुमन की तरफ देखा. दोनो ही एक दूसरे से कुछ कह रहे थे. आज सुनील टूट रहा था - वो सुमन का दर्द बर्दाश्त नही कर पा रहा था. खुद को गुनहगार समझने लगा था - उसके होते हुए सुमन दर्द में तड़प रही थी.

सुनील ने सुमन के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. दोनो की नज़रें बस एक तक एक दूसरे से भिड़ी हुई थी.

सुमन के होंठ थरथरा रहे थे .

एक बिजली सी कोंधी और..... और दोनो के होंठ आपस में जुड़ गये.

शायद आज सुमन को उसका सागर वापस मिल गया था.....या ...या अब भी मर्यादा की दीवार का कुछ हिस्सा रह गया था --- जो टूटना चाहता था......पर टूट नही पा रहा था.

लबों का एक जोड़ा सवाल कर रहा था और दूसरा जवाब देने की कोशिश कर रहा था.

दोनो की आँखें बंद हो चुकी थी - ये लम्हा ---- रिश्ते बदल रहा था ---- या लम्हा एक यादगार बनने वाला था.

थर थर काँपते हुए सुमन के लब – कब से इंतेज़ार कर रहे थे – आज महीनो बाद उसे उसका सागर मिल गया था सुनील के रूप में- बंद आँखों से जैसे सागर को मुस्कुराते हुए देख रही थी – जो कह रहा था – मैं हूँ ना – उफ़फ्फ़ – इतनी मोहब्बत – आँखों में आँसू जमा होने लगे – लेकिन वो टपकना नही चाहते थे.

सुनील के लब आगे तो बढ़ गये थे पर अब भी उनमें एक डर था – वो डर था अपनी सीमा के अतिक्रमण का – वो डर था – मर्यादा की उस दीवार का जो टूटना चाह के भी टूटना नही चाहती थी.

वो सेक्स लेसन जो अधूरे रह गये थे शायद अब वक़्त आ गया था उन्हें धीरे धीरे पूरा करने के लिए. लेकिन क्या वाक़ई में सेक्स लेसन्स की ज़रूरत रह गयी – अब तो प्रेम के अंकुर ने फूटना था जो होंठों के ज़रिए दिलों में अंकुरित होने का निर्णय ले चुका था.

सुनील के डरते हुए लब सुमन के थरथराते लबों की लाली को चुराने लगे – वो लाली जो कुदरत ने खुद सुमन के होंठों में बसा रखी थी.

सुमन के दोनो हाथ सुनील के सर पे जा उसके बालों से खेलने लगा – बीच बीच में थोड़ा सा दबाव डाल देते – जैसे संकेत दे रहे हों – इन होंठों का पूरा रस चूस लो – ये तुम्हारे लिए ही हैं – भूल जाओ सब कुछ – उतर जाओ प्रेम की उस नदी में जो बल खाती हुई तुम्हें सराबोर करने को आतुर हैं.
 
सुमन ने अपनी ज़ुबान से सुनील के होंठों को तड़पाना शुरू कर दिया – जैसे कह रही हो आने दो मुझे अपने अंदर – बहुत महीनो से रस जमा कर रखा है तुम्हें पिलाने को और सुनील के डरते हुए होंठ खुल गये – समा गयी सुमन की ज़ुबान सुनील के मुँह के अंदर और उसकी ज़ुबान से बोलने लगी डरो मत अब तो हमे साथ साथ रहना है और दोनो की ज़ुबाने एक दूसरे से चोंच लड़ाने लगी जैसे हँसो का जोड़ा मधुर प्रेम मिलन में खोते हुए अपने चोंच लड़ाने लगता है.

सुनील के सर से सरकते हुए सुमन के हाथ उसकी गर्देन को सहलाते हुए उसकी पीठ को सहलाने लगे – और सुनील ने सुमन का निचला होंठ चूसना शुरू कर दिया जैसे धीरे धीरे उसमे से शहद चूस रहा हो.

डरते डरते सुनील के हूँठ चूसने की शिद्दत बढ़ती चली गयी और सुमन के जिस्म में वो तरंगे उठने लगी जो कभी सागर उठाया करता था.

अहह उम्म्म्ममम

छोटी छोटी सिसकियाँ सुमन के लबों से निकलती और सुनील के अंदर समाने लगी.

ये सिसकियाँ दोनो में जनुन पैदा करने लगी और दोनो पागलों की तरहा एक दूसरे में खो गये – लब थे कि एक दूसरे को छोड़ने का नाम ही नही ले रहे थे और साँसे थी कि थमने का नाम नही ले रही थी.

कितनी देर तक दोनो के होंठ एक दूसरे को छोड़ने को राज़ी ना हुए.
जब साँस लेना दूभर हो गया मजबूरन अलग होना पड़ा और उफ्फनति हुई सांसो को संभालने के लिए सुमन अपना चेहरा सुनील की चाहती से रगड़ने लगी –

‘उफफफफफफफफ्फ़ ये ये मैने क्या कर डाला – सुनील कांप उठा’

उसके जिस्म में फैलते हुए तनाव को सुमन ने महसूस कर लिया और उसके चेहरे को हाथों में थामते हुए उसकी आँखों में झाँकते हुए ---- तुमने कुछ ग़लत नही किया ----- कहते हुए अपने होंठ फिर सुनील के होंठों से जोड़ दिए.

दोनो के होंठ जुड़े हुए थे – दोनो एक दूसरे की आँखों में झाँक रहे थे – सुनील का डगमगाता हुआ आतमविश्वास लॉट रहा था – और उसने सुमन को अपनी बाँहों के घेरे में जाकड़ लिया .

अहह आनंद की लहर ने सुमन को पुलकित कर दिया.

जब प्रेम का अंकुर फूटने लगता है तो शब्दों की ज़रूरत नही पड़ती. निशब्द – एक नयी भाषा का जनम हो जाता है – हर अंग एक दूसरे के अंग से अपनी ही भाषा में बात करने लगता – जो एक अहसास को जनम देता है – एक ऐसा अहसास जो अतुलनीय होता है.

इस समय वही हो रहा था सुमन और सुनील की आँखें आपस में बात कर रही थी – होंठ आपस में ज़ुबान तो जैसे एक दूसरे को छोड़ना ही नही चाहती थी – और एक दूसरे के जिस्म को सहलाते हुए हाथ उन तरंगों को जनम दे रहे थे जिससे दोनो अंजान थे पर जो अपने अंदर आनंद को समेटे हुए दोनो की रूह को सकुन पहुँचा रहे थे.

सुमन ने तो ख्वाब में भी नही सोचा था कि सुनील केवल किस में ही उसे इतना आनंद देगा जब कि वो डर रहा था अभी इतना खुला नही था. ये आनंद तो उसे सागर और समर के साथ भी नही मिला था – क्या था कारण इस बात का ---- क्या ये सिर्फ़ इसलिए हुआ क्यूंकी वो माँ और बेटा हैं --- या इसकी कोई और वजह थी –

मा बेटे के बीच ये संबंध समाज के अनुसार वर्जित हैं – तो क्या उस लक्ष्मण रेखा को पार करना इतना आनंदमय होता है – या इसका कारण ये था कि सुनील अब पूरी तरहा सागर बन चुका है – जैसे सागर की आत्मा ने नया रूप धारण कर लिया हो और वो सुनील के अंदर समा गया हो .

आनंद की लहरें जो सुमन के जिस्म में उठ रही थी उनका जनम सुनील के होंठों से हो रहा था – जिस्म में एक नयी उर्जा का संचार हो रहा था – सुमन को यूँ लग रहा था जैसे वो अब तक कली थी और आज ही ये आनंद की लहरें उसे एक सुंदर महकते हुए फूल में परिवर्तित कर रही हूँ.

सुनील के स्मूच में अब गर्मी समाती जा रही थी – जिसका असर दोनो के जिस्म के तापमान को बढ़ा रहा था.

सुमन ने अपनी बंद आँखें खोली और सुनील की आँखों में झाँका – दर्द के साए बार बार उठ रहे थे – जिस्म तो बेकाबू हो रहा था पर दिमाग़ – उसे बार बार तंग कर रहा था – मर्यादा की दीवार जो टूट चुकी थी अब भी उसकी नींव बाकी थी.

सुमन ने खुद को उस से अलग कर लिया, अब सुमन का चेहरा दमक रहा था इतना की अंधेरे में भी उजाला हो जाता – मत कर परेशान खुद को – कोई जल्दी नही है – आज मुझे मेरा सागर वापस मिल चुका है.

‘मोम मैं…मैं..’

‘बस अब कुछ मत सोच रिलॅक्स कर और मुझे इन सुनहरे पलों को समेटने दे.’ सुमन ने सुनील की गोद में सर रख लिया --- उसे सुनील के आकड़े हुए लंड का उभार महसूस हुआ – होंठों पे मुस्कान आ गयी – दिल की बेचैनी दूर हो गयी.
 
थोड़ी देर वो ऐसे ही उसकी गोद में लेटी रही और फिर अचानक उठ के बोली – ‘यार आज तो सेलेब्रेशन डे है – लेट्स चियर्स – मैं वाइन ले के आती हूँ’

सुनील समझ गया कि सुमन – उसकी रही सही शरम और मर्यादा को आज जड़ से मिटा देगी -

सुनील आँखें बंद कर सोफे पे अढ़लेटा हो गया

'थॅंक्स सन, डॉन'ट फील शाइ ' सागर का मुस्कुराता चेहरा उसकी आँखों में समा गया.

'डॅड'

'देख आज सूमी कितनी खुश है - कैसे दमकने लगा है उसका चेहरा - मेरी ये अमानत अब तेरे हवाले - खूब प्यार करना इसे --- अब मुझे मुक्ति मिल जाएगी....'

'डॅड......'

सागर का मुस्कुराता चेहरा धीरे धीरे शुन्य में विलीन होने लगा.

थोड़ी देर में सुमन बिल्कुल किसी अल्हड़ जवान 20-22 साल की लड़की की तरहा चहकति हुई आई - उसने वही लाइनाये पहनी हुई थी जो उसने खजुराहो में पहनी थी.

बिकुल दमकता हुआ शोला लग रही थी जो आज ऐसी आग लगाने वाली थी कि सुनील की बची कुचि शर्म स्वाहा होनी ही थी.

'हे हॅंडसम - कैसी लग रही हूँ मैं'

सुनील ने आँखें खोल उसे देखा तो यूँ लगा कि आँखें ही जल जाएँगी - वो तो बस देखता ही रहा.

'अरे बोल ना कैसी लग रही हूँ मैं'

'ब...ब...ब्यूटिफुल.....' काँपता हुआ सुनील बोला.

हहा हहा वो खिलखिला के हँस पड़ी ---- फिर झुक के सुनील के कान में बोली......'क्यूँ सेक्सी बोलने में शर्म आ रही है...... ग्रो अप जानू ' और उसने सुनील के होंठों पे अपनी ज़ुबान फेर डाली.

अहह सुनील सिसक उठा ---- उसे यूँ लगा जैसे उसे सातवें आसमान की उँचाइयों का अहसास हो गया हो.

इस वक़्त सुमन बिल्कुल ऐसे तयार हो के आई थी जैसी उस दिन हुई थी - जैसे अभी अभी ब्यूटी पार्लर से हो के आई हो.

सुमन उसके साथ चिपक के बैठ गयी ---- फिर वाइन की बॉटल खोल दो पेग बनाए - अपनी नशीली आँखों से सुनील को देखते हुए - एक ग्लास उसकी तरफ बढ़ाया जिसे सुनील ने थाम लिया और ग्लास पकड़ते हुए जब सुमन की कोमल उंगलियों से उसकी उंगलियों का स्पर्श हुआ - तो यूँ लगा जैसे कुछ उंगलियों से निकल उसके जिस्म में समा गया हो - सुनील सिहर उठा.

सुमन ग्लास को लिक्क करने लगी - और जिस तरीके से लिक्क कर रही थी - सुनील की जान निकली जा रही थी.

'चियर्स डार्लिंग' अपना ग्लास आगे करते हुए सुमन बोली.

सुनील ने भी ग्लास आगे करते हुए टकराया और 'चियर्स' किया.

'आज मैं बहुत खुश हूँ - कहते हुए सुमन ने एक घूँट भरा और सुनील तो बॉटम्स अप कर गया.

'वाउ माइ मॅन हॅज़ डेफीनितली ग्रोन अप - लेट मी फॉलो हिम' और सुमन ने भी ग्लास खाली कर दिया --- फिर सुमन ने उठ के एक बहुत ही सॉफ्ट म्यूज़िक लगा दिया और जानलेवा थिरकन के साथ चलती और लहराती हुई सुनील को हाथ बड़ा के बोली ' मे आइ हॅव दा प्लेषर टू डॅन्स विद दा यंग मॅन'

एक के बाद एक प्रहार हो रहा था सुनील पे.

वो भी उठ खड़ा हुआ और दोनो डॅन्स करने लगे - बिल्कुल धीमे धीमे सांसो से साँसे टकरा रही थी - जिस्म आपस में रगड़ खा रहे थे और भावनाओं में उफ्फान आने लगा था.

सुनील ने खुद अब अपने लब सुमन के लबों से सटा दिए......अहह

सुमन के सांसो की महक सुनील को मदहोश कर रही थी.

सुनील ने अपने होंठ अलग किए.

'मोम'

'ना अब मोम नही - सिर्फ़ सूमी'

'म म मैं ककककक'

'अब तुम मेरा प्यार हो और मैं तुम्हारा ---- जब तुम सागर की जगह ले चुके हो - तो वैसे ही बुलाओगे - जैसे सागर मुझे बुलाता था ' सुमन सुनील की आँखों में देखते हुए बोली.

'किस मी !!!!'

' उफफफफफफ्फ़ मैं कैसे बाकी लोग क्या सोचेंगे'
 
'बुद्धू - अकेले में तो बुला ही सकते हो अभी --- जब तक कोई पर्मनेंट इलाज नही निकलता - अब मेरा मूड ऑफ मत करो - मुझे इस खुशी को एंजाय करने दो ---- आज यूँ लग रहा है जैसे तुम मुझे बादलों में उड़ा रहे हो' और सुमन ने अपने होंठ आगे बढ़ा दिए.

'ह्म चलो आज अपनी बुलबुल को सच में बादलों की सैर करवाता हूँ'

'ओए होए - जानू - लव युवर कॉन्फिडेन्स'

सुनील अब ऐसे स्मूच करता है कि सुमन थिरकना भूल जाती है और और अपने जिस्म को सुनील के जिस्म में घुसने की कोशिश करने लगती है
.

उसके जिस्म का रोया रोया प्रेम जवाला में जलने लग गया ---- चूत में गीला पन बढ़ने लग गया - सांसो की महक कामुक होने लगी.


सुनील उसके होंठ ऐसे चूस रहा था जैसे जन्मो के भूखे को आज पहली बार कुछ पीने को मिला हो और सुमन को यूँ लग रहा था जैसे सुनील आज उसके होंठों का रस चूस्ते हुए खा ही जाएगा --- ये दर्द ---- बहुत समय बाद उसे नसीब हो रहा था ----- एक नशा था इस दर्द में ...... ये दर्द सुमन के जिस्म में कामुक अग्नि को तीव्रता से प्रज्वलित करने लगा.

सुमन की बाहों का घेरा सुनील के इर्द गिर्द सख़्त होने लगा - जैसे उसके जिस्म को खोल उसके अंदर समा जाना चाहती हो.

खिड़की से आती चाँद की किरने महॉल को और भी कामुक बना रही थी.
 
सुनील ने जब सुमन की जीब को शिद्दत के साथ चूसना शुरू किया तो सुमन के नाख़ून सुनील की पीठ में गाढ़ने लगे --- अभी तक सुनील ने उसके उरोजो को हाथ नही लगाया था जो इंतेज़ार कर रहे थे एक मर्द के हाथों का अहसास पाने के लिए .

सुमन खुद अपने उरोज़ उसकी छाती में दबाने लगी और सिसकने लगी ---- उसकी आँखें नशे के मारे बंद हो गयी - जिस्म ढीला पड़ने लगा - उस से अब खड़ा रहना कतई भी मुमकिन नही था ----- वो गिरने को हुई तो सुनील ने उसे बाहों में जाकड़ लिया और वहीं सोफे पे उसे ले के बैठ गया ----- अब सुमन सुनील की गोद में थी और तेज तेज साँस ले रही थी.

'ठीक तो हो' सुनील पूछ बैठा

'हाँफती हुई सुमन बोली ' जालिम तूने तो स्वर्ग की सैर करवा दी - कब से तड़प रही थी --- आज मेरी रूह को उसका मोहसिन मिल गया --- म्म्म्माममम कैसे ब्यान करूँ जो लज़्ज़त --- जो आनंद --- जो सकुन आज मिला है .... मेरे सोए हुए अहसास जाग गये---- मेरा जिस्म का रोया रोया कर्ज़दार हो गया----- उम्म्म्म लव यू ---- लव यू--- लव यू' और सुमन पागलों की तरहा सुनील के चेहरे को चुंबनो से भरने लगी.

अब सुनील खुल चुका था मर्यादा की बेड़ियों से आज़ाद हो चुका था वो अब पूरा का पूरा सुमन का सागर बन चुका था..... उसे इतना आता तो नही था पर अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा था के सुमन को आज ऐसा आनंद मिले उसकी रूह को ऐसा सकुन मिले - जो आज तक ना मिला हो.

सुनील का दिल तो नही कर रहा था सुमन को गोद से हटाने का -- पर अब उसे ड्रिंक की तलब होने लगी --- उसने सुमन को साइड करने की कोशिश करी तो सुमन उसका इरादा समझ गयी.

'जब साक़ी गोद में बैठी हो तो तकलीफ़ क्यूँ कर रहे हो जानू' ये कहते हुए सुमन ने वाइन की बॉटल उठा एक घूँट भरा और सुनील के होंठों से होंठ जोड़ उसके मुँह में वाइन उडेल दी - सुनील ने भी वो घूँट गले के नीचे नही उतरा --- उसे फिर से सुमन के मुँह में डाल दिया.

ये वाइन का घूँट दोनो के मुँह में इधर से उधर होने लगा और चन्द कतरे गले तक जाने लगे --- प्यास बढ़ती जा रही थी लेकिन पीने को कोई भी तयार नही था --- आँखों में लाल डोरे तैरने लगे थे--- धीरे धीरे ये वाइन का घूँट ख़तम हो गया तो दोनो एक दूसरे की ज़ुबान पे टूट पड़े और बड़ी लगन से एक दूसरे को चूसने लगे - ज़ुबान की अपनी मिठास उपर से वाइन की खटास - क्या कॉकटेल थी--- नशा और बढ़ने लगा----- अब तो हद हो गयी थी सुनील के सयम की ---- सुमन ने तो कभी सोचा ही ना था कि जवान खून भी इतना सयम रख सकता है - अब तक तो उसे रोन्द दिया होता अगर सागर खुद भी होता तो........ सुमन के बर्दाश्त की सीमा ख़तम हो चुकी थी - लेकिन सुनील था कि होंठों तक ही रुका हुआ था . सुमन की आँखों ने संदेश देना शुरू कर दिया पर सुनील उसको समझते हुए भी ना समझने का ढोंग करते हुए फिर से सुमन के होंठों पे टूट पड़ा ....

आज लगता था सुमन की खैर नही .... इतनी मासूमियत और इतना नशा तो सागर के प्यार में भी नही था.

अब सुनील ने सुमन से वाइन की बॉटल ले ली गट गट दो घूँट पी गया और फिर एक घूँट अपने मुँह में रख वही खेल फिर से शुरू कर दिया. आग बढ़ती जा रही थी --- सुमन की चूत पिघलने लगी थी और जैसे ही सुनील ने हिम्मत करते हुए सुमन के उरोज़ पे हाथ रखा सुमन की बस हो गयी - वो हाँफती हुई लगभग चीखती हुई सुनील से चिपक गयी - उसकी चूत ने नदियों के बाँध खोल दिए थे - जिस्म अकड़ के काँपने लगा था और सुमन एक जोंक की तरहा सुनील से चिपक गयी - और अपने अतुलनीय ओर्गसम का सुख भोगने लगी ----- ऐसा तो कभी नही हुआ था उसके साथ जो आज हो रहा था.


मचलती हुई फ़िज़ाओं से सुमन जब वापस लॉटी तो उसका जिस्म ढीला पड़ चुका था. एक खुशी थी उसके चेहरे पे --- एक अदभुत अहसास को उसने आज अनुभव किया था --- अधरों पे मुस्कान ने अपना डेरा डाल लिया था.

मन था कि बस अब उड़ते ही रहना चाहता था.

आज पहली बार सुनील ने एक औरत को ऑर्गॅज़म को अनुभव करते हुए देखा था - उसके लिए ये एक नया अध्याय था जीवन के छुपे रहस्यों को जानने का.

'आर यू ओके' जब सुनील ने ये पूछा

सुमन हँसने लगी ' ओह माइ स्वीटू लगता है सेक्स लेसन्स पूरे करने पड़ेंगे - आइ जस्ट हॅड दा बेस्ट ऑर्गॅज़म ऑफ माइ लाइफ इन युवर आर्म्स डार्लिंग..... उम्म्म्म लव यू ' सुनील के होंठों को चूम लिया -- चूमा क्या थोड़ा काट भी लिया

अहह सुनील सिसक पड़ा अपने होंठ काटे जाने पर.

'जंगली बिल्ली' सुनील बुदबुदा उठा जिसे सुमन ने सुन लिया

'अब देखना ये जंगली बिल्ली कहाँ कहाँ काटती है'

'काटती है या कटवाती है'

'धत्त!!'

कुछ देर यूँ ही चप्पी रही - सुमन प्यार भरी नज़रों से सुनील को देख रही थी---आँखों से बोलना शुरू कर दिया - पर अभी कहाँ सुनील उसकी आँखों को पढ़ना सीखा था.

तंग आ के सुमन को बोलना ही पड़ा ' उफ़फ्फ़ अब सारी रात यहीं बैठना है क्या'

सुनील को हिचकी आ गयी --- वक़्त आ चुका था आगे बढ़ने का --- सुमन खड़ी हो गयी और अपना हाथ आगे बढ़ाया ---- पर सुनील ने कुछ और ही किया - उसने सुमन के हाथ को थाम उसे फिरकी की तरहा घुमाया और फिर अपनी गोद में उठा कर बेड रूम की तरफ बढ़ गया.

आह्ह्ह्ह क्या सजावट थी अंदर सुमन के बेडरूम की - हर चीज़ अपनी जगह --- एक भीनी भीनी सुगंध कमरे में फैली हुई थी.

सुनील ने सुमन को बिस्तर पे लिटा दिया और उसके पास बैठ उसे देखने लगा.

अब ये नज़रें बदल चुकी थी -- दोनो एक दूसरे को - प्यास भरी नज़रों से देख रहे थे सुनील के मन में थोड़ी झीजक थी - पहली बार किसी औरत के साथ प्रेम मिलन की राह पे चल रहा था - पर उसकी आँखें सुमन के कामुक बदन का रास्पान करने लगी थी.

सुमन ने अपनी बाँहें फैला दी और सुनील उन बाहों में समा गया 'अहह सुनील - मेरी जान' सुमन सिसक पड़ी जब सुनील की चौड़ी छाती ने सुमन के मम्मो को दबा डाला.
 
सुमन की बाजू पे हाथ फेरते हुए सुनील उसके बालों में अपने चेहरे को घुसा उस भीनी भीनी सुगंध से मदहोश होते हुए उसके कान की लो चाटने लगा और चूसने लगा ---- ये सुमन का वीक पॉइंट था - वो तड़प उठी - जिस्म में ज़ोर की हलचल मची और वो अपनी टाँगें पटाकने लगी उसके दोनो हाथ सुनील के कपड़े खींचने लगे. कुछ देर उसकी कान की लो को चूसने के बाद सुनील ने सर उठा सुमन के चेहरे की तरफ देखा और झुक के उसके गाल चाटने लगा......सुमन से अब रहा नही गया और सुनील के हाथ को अपने उरोज़ का रास्ता दिखा दिया.

कड़े निपल पे जब सुनील के सख़्त मर्दाने हाथ का स्पर्श हुआ - दोनो के जिस्म कंपकपा गये --- और सुनील ने तड़प के सुमन के होंठों को अपने होंठों के क़ब्ज़े में ले लिया.

सुनील के हाथ हरकत में आ गये और सुमन के उरोज़ से खिलवाड़ करने लगे - कभी दबाते कभी सहलाते कभी इतनी ज़ोर से दबाते की सुमन चीख पड़ती पर वो चीख सुनील के मुँह में दब के रह जाती.

सुनील का दूसरा हाथ भी हरकत में आ गया और दूसरे उरोज़ को मसल्ने लगा. रात धीरे धीरे सरक रही थी और दो बदन - दो दिल - दो रूहें प्रेम राह पे धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे.

सुमन के बरदाश्त की सीमा ख़तम हो चुकी थी - उसका दिल चाहने लगा कि सुनील अब उसे निचोड़ डाले और समा जाए उसके अंदर पर सुनील तो धीरे धीरे एक एक बूँद कर सुमन के योवन का रस पान कर रहा था - वो किसी और दुनिया में पहुँच चुका था .

सुनील की सारी झीजक हवा में उड़ चुकी थी इस वक़्त उस जिस्म जल रहा था उसका लंड लोहे की रोड की तरहा सख़्त हो चुका था जो शॉर्ट में फसा उसे दर्द दे रहा था - अब समय आ गया था वस्त्रों से मुक्त होने का.

सुनील ने उठ के अपनी शर्ट और बनियान उतार फेंकी - ये इशारा था सुमन को लिंगेरी को अपने जिस्म से अलग करने का. सुमन उसके करीब हुई और उसके हाथ अपनी लाइनाये की दूरी पे रख दिए जिसे सुनील ने खोल दिया और फट से उसकी लाइनाये उतार दी. सामने हुस्न को बड़ी बारीकी से तराश कर बना हुआ कामुक बदन था जिससे सुनील पहली बार देख रहा था - उसकी आँखें फट पड़ी . अब सुमन के जिस्म पे बस एक पैंटी रह गयी थी - जो उसकी दशा का बखान कर रही थी इतनी गीली हो चुकी थी.

सुनील के इस तरहा देखने से - सुमन शरमा गयी - लाज ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया - उसका चेहरा लाल सुर्ख हो गया अपना चेहरा अपने हाथों से ढक - छुई मुई की तरहा बिस्तर पे गिरने को हुई तो सुनील ने उसे थाम खुद से चिपका लिया.

'तुम बहुत सुंदर हो......' पहली बार सुनील के मुँह से सुमन के लिए तुम निकला था ---- दोनो की नंगी छातियाँ एक दूसरे में समाने की कोशिश करने लगी और अब सुमन आक्रामक हो गयी उसने सुनील के निपल चूसने शुरू कर दिए - मानो सुनील को बताने की कोशिश कर रही हो आगे उसने क्या करना है.

सुमन के गुलाबी निपल देख सुनील का मुँह सुख चुका था ------ कुदाऱाट का नायाब कारनामा उसकी बाँहों में था . सुनील ने सुमन को बिस्तर पे लिटा दिया और भूखे बच्चे की तरहा उसके निपल को चूसने लग गया.

अहह म्म्म्मीमममाआआअ सुमन सिसक पड़ी और उसके सर को अपने उरोज़ पे दबाने लगी - सुनील मुँह खोलता गया और जितना हो सकता था उसके उरोज़ को अपने मुँह में भर लिया.

कमरे में सुमन की सिसकियाँ गूंजने लगी - बदन किसी नागिन की तरहा मचलने लगा .

ओह्ह्ह्ह सुनील.....अहह ..... उम्म्म्मम

हज़ारों चीटियाँ जैसे एक साथ सुमन की चूत में रेंगने लगी अब तो सुमन का हाथ खुद सुनील के लंड पे चला गया जो बाहर आने के लिए तड़प रहा था. जैसे ही सुमन के हाथ ने उसे अपने गिरिफ्त में लेने की कोशिश करी सुनील तड़प के रह गया - उसे लगा अभी फट जाएगा ---- उसे इतना बड़ा झटका लगा कि उसने सुमन के उरोज़ पे दाँत गढ़ा दिए जिसका असर ये हुआ कि सुमन ने चीखते हुए उसका लंड सख्ती से दबा दिया.

महीनो से सुमन इस पल का इंतेज़ार कर रही थी - जिसको बचपन में दूध पिला उसे बड़ा किया आज वही उस उरोज़ को मसल रहा था फिर से उसके निपल से दूध निकालने की कोशिश कर रहा था. ये अहसास और अपने निपल से उठती कामुक तरंगों को सुमन और ना झेल पाई - उसका जिस्म अकड़ने लगा उसकी चूत में खलबली मच गयी सुनील के सर को अपने उरोज़ पे दबा उसका जिस्म एक कमान की तरहा उठ गया...........श्श्श्श्श्श्श्श्शुउउउउउउउउउउन्न्न्न्न्न्न्नीईईईल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल एक ज़ोर दार चीख के साथ सुनील को पुकारते हुए वो झड़ने लगी.

सुनील तो एक पल के लिए घबरा गया था पर थोड़ी देर पहले उसने सुमन को ऑर्गॅज़म के वक़्त देखा था ----- इस बार तो कुछ ज़यादा ही था - वो समझ गया की क्या हो रहा है --- उसने खुद को सुमन से अलग कर लिया और उसके चेहरे के बदलते रंगों को देखने लगा - उसके तड़प्ते मचलते जिस्म को देखने लगा.
 
जैसे ही सुमन निढाल हो बिस्तर पे गिरी सुनील उसकी बगल में लेट उसके पेट पे हाथ फेरने लगा. आनंद की अधिकरेक के कारण सुमन की आँखें बंद हो चुकी थी...... सुनील बस उसके जिस्म को सहलाते हुए उसके चेहरे को निहार रहा था.

सुमन के पेट पे हाथ फेरते हुए - सुनील का दिमाग़ फिर खराब होने लगा - उसका हाथ काँपने लगा - वो खुद से सवाल करने लगा - जो किया क्या वो ठीक था.

सुमन आँखें बंद कर मज़े ले रही थी सुनील की हरकतों से - जब उसे महसूस हुआ कि सुनील का हाथ काँपने लगा है उसकी आँखें खुल गयी. कुछ भी हो मर्यादा की दीवार कितनी भी टूट जाए - वो फिर से अपना सर उठाने लगती है - यही हाल सुनील का हो रहा था.

सुमन ने सुनील को खुद पे खींच लिया . उसका कड़क लंड जो कुछ देर पहले सुमन को अपनी जाँघो में चुभता हुआ महसूस हो रहा था - जिसे कुछ देर पहले उसने पकड़ा था --- वो अब अपना आकर खो ढीला पड़ चुका था.

सुमन उसकी आँखों में देखते हुए बोली - जब एक सेक्सी औरत पहलू में हो - तो ज़यादा सोचा नही करते मेरी जान.

'अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर रहा हूँ - इसलिए डर लगने लगता है'

अब सुमन ने फ़ैसला कर लिया इस डर को हमेशा हमेशा के लिए ख़तम करने के लिए.

वो उसी हालत में बिस्तर से उठी अपनी ड्रेसिंग टेबल तक गयी एक ड्रॉयर खोला और उसमे से एक डिबिया निकाल ली जो महीनो से बंद पड़ी थी कभी खोली नही गयी थी.

'उस डिबिया को हाथ में जब उसने पकड़ा तो उसकी आँखे बंद हो गयी - उन आँखो में सागर का हँसता हुआ चेहरा आ गया जैसे कह रहा हो ' गो अहेड'

सुमन की सोच को बल मिला और वो सुनील की तरफ पलटी ' इधर आओ'

जब तक सुनील उसके करीब पहुँचता उसने डिबिया खोल ली अंदर सिंदूर था.

सुनील हैरत से सुमन को देखने लगा. 'ऐसे क्यूँ देख रहे हो - ग़लती मुझ से ही हुई - पहले ये काम ही करना चाहिए था - पर मैं तुम्हारे प्यार में सब भूल गयी थी - आज तुम्हें पूरी तरहा सागर की जगह लेनी है - जिसकी शुरुआत हो चुकी है उसे अब अंजाम तक लाना है- भर दो मेरी माँग - तरस रही है कब से '

'दुनिया को क्या जवाब दोगि ?' सुमन की इज़्ज़त पे कोई प्रश्न उठे ये तो सुनील कभी बर्दाश्त नही कर सकता था.

'वो सब मुझ पे छोड़ो - मैं सब संभाल लूँगी - अब वक़्त मत बर्बाद करो - पूरा करो अपने डॅड का हुकुम'

काँपते हाथों से सुनील ने सुमन की माँग भर दी ------ रात के इस पहर में दूर कहीं से शहनाई का वादन गूँज उठा जो इस वक़्त दोनो के दिलों में बज रहा था.

सुमन आगे बढ़ी और सुनील के सीने से लग गयी --- फिर से सुहागन बनने का एक सुंदर अहसास उसके चेहरे की शोभा बड़ा रहा था.

क्या अजीब समा था - आज इनकी सुहाग रात थी -- पर सुहाग बिस्तर पे स्वागत का कोई नामो निशान ना था.

'सुनील मैं हमारे मिलन को एक यादगार रूप देना चाहती हूँ --- आज तो कोई तायारी भी नही करी हमने - बस अपना प्यार उडेल दिया --- अपनी फर्स्ट नाइट कल मनाएँ'

बॅंड बजा ना बारात ना यार दोस्तो का साथ - बंद कमरे में हो गयी शादी - वाह री किस्मत - सुनील अपनी किस्मत पे अंदर ही अंदर हँसने लगा - उसने अभी तक सुमन को कोई जवाब नही दिया था जो सवालिया नज़रों से उसे देख रही थी - एक पल को तो सुमन भी सोचने लगी - ये कैसा बंधन है - जो एक जवान लड़का अपने पिता के हुकुम को मानते हुए अपनी सभी इच्छाओं का गला घोंट बैठा था --- क्या सुनील खुश रहेगा इस बंधन से ?? एक डर समा गया सुमन के अंदर और उसका खिला हुआ चेहरा मुरझाने लगा.

अपने सागर को वापस पाने के चक्कर में मैने अपने ही बेटे की खुशियों का बलिदान ले डाला - कैसी माँ हूँ मैं ? क्या ज़रूरत थी सागर के इस आखरी हुकुम को मानने की? एक माँ अपना सर उठाने लगी और पश्चाताप के आँसू बहाने लगी. चेहरे पे ग्लानि और दुखों के बादल छा गये - अपनी लाइनाये पहन बिस्तर पे गिर बिलखने लगी.

उसका रोना जब सुनील के कानो में पड़ा तो अपने ख़यालों से बाहर निकला. अरे एक सवाल के जवाब में देरी हो गयी तो ये हाल. वो कहाँ जानता था कि सुमन अब खुद मर्यादा की दीवार के नीचे पिस गयी है.

'क्या हुआ मेरी जान को ? यार तुम औरतें भी --- एक सवाल के जवाब की देरी से ये हाल --- आए स्वीटी --- अब ये रोना धोना बंद करो --- और एक मीठा सा किस दो' उसने सुमन को पलटा और उसके आँसू पोंछते हुए बोला ' जैसे तुम्हारा दिल करे वैसे करना ---- इन आँखों में मुझे कभी आँसू ना दिखाई दें'

लेकिन सुमन का रोना जारी था......... सुनील अब इस रास्ते पे आगे निकल पड़ा था - अब उसके लिए लोटना नामुमकिन था.

उसे अब गुस्सा चढ़ने लगा --- आख़िर सुमन को हो क्या गया है.

अपने गुस्से को रोकते हुए सुनील ने सुमन के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया.

‘क्या हुआ है ? अभी तुम इतना खुस थी – ये अचानक कॉन सा दौड़ा चढ़ गया तुम पे --- अब एक भी आँसू बहा तो मेरा मरा मुँह देखो गी –‘

स्टॉप – एक दम स्टॉप – जादू की तरहा सुमन के आँसू रुक गये.

‘अब बताओ क्या बात है’

सुमन बहुत सीरीयस हो गयी ‘ ये सिंदूर जो अभी तुमने मेरी माँग में भरा है इसे पोंछ दो – मैं बहक गयी थी – अपने ही बेटे की खुशियों का गला घोटने चली थी ---- आइ आम सॉरी --- प्लीज़ हो सके तो मुझे माफ़ कर देना’

अब सुनील की समझ में आया क़ी असली बात क्या थी. उसे और भी प्यार आ गया सुमन पे --- कितना सोचती है वो मेरे बारे में.

‘कुछ और बोलना है तो बोल लो अब भी वक़्त है – जब मैं बोलूँगा तो बीच में मत बोलना’ सुनील की आवाज़ में थोड़ा गुस्सा था.
 
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