Hindi Porn Kahani गीता चाची - Page 3 - SexBaba
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Hindi Porn Kahani गीता चाची

दोस्तो आप सब ने बचपन में दादी नानी से कहानियाँ ज़रूर सुनी होंगी आपको कहानी सुनने के लिए हुंकारा भरना पड़ता था तभी वो आपको कहानियाँ सुनाती थी . मेरा मतलब भी इसी से है जब कोई बंदा स्टोरी पोस्ट करता है चाहे वो उसने खुद लिखी हो या उस कहानी का अनुवाद किया हो या कहीं से कॉपी करके पोस्ट की हो दोस्तो इन तीनों ही सूरतेहाल मे वो बंदा आप सब पढ़ने वालों के लिए ही मेहनत कर रहा है ना दोस्तो इसमें कहानी पोस्ट करने वाले को कोई पैसा तो मिल नही रहा वो बस अपने काम की मज़दूरी के रूप में आपसे अपने लिए या कहानी के बारे में दो शब्द ही तो माँगता है तो इसमें ग़लत क्या है मैं बस ये चाहता हूँ कि हम सब यहाँ मनोरंजन के लिए आते हैं अगर हम सभी कहानी पोस्ट करने वालों के योगदान को याद करते हुए उनकी प्रशंसा भी करें तो इसमे बुराई क्या है . दोस्तो जब कोई नया यूज़र अपनी कहानी शुरू करता है तो हम उसका साथ ही नही देते तो वो बिचारा कुछ दिन बाद ही अपनी कहानी अधूरी छोड़ कर गायब हो जाता है . अगर हम स्टोरी पोस्ट करने वालों का साथ देते रहें तो वो भी दिल से और मेहनत से अच्छी कहानियाँ पोस्ट करेंगे इसमे हम सबका ही तो फ़ायदा है 

और सबसे ख़ास बात आपने देखा ही है कहानी पोस्ट करने वाले जितना टाइम एक दूसरे की कहानियों मे कमेंट पोस्ट करने में टाइम लगाते हैं उतना टाइम अगर और कहानी पोस्ट करने में लगाएँ तो बताइए फ़ायदा किसका होगा .

मैं यानी आपका दोस्त राजशर्मा आपसे लास्ट बार ये रिक्वेस्ट कर रहा हूँ नही तो वो दिन दूर नही जब ये साइट भी बंद हो जाएगी क्योंकि कोई भी नया बंदा यहाँ अपनी कहानी शुरू करने से पहले सोचता है कि क्या कोई उसका साथ देगा . दोस्तो ऐसा तो है ही नही कि इस साइट के चाहने वाले और पढ़ने वाले कम हैं दोस्तो आप सब की वजह से ये साइट पिछले चार साल में अपना एक अच्छा मुकाम बना चुकी है . और ज़्यादा क्या कहूँ आप सब समझदार हैं आगे जैसी आपकी मर्ज़ी 
 
चाची जैसी सधी और एक्सपर्ट चुदैल के सामने उस बच्ची की क्या चलती. इतना झड़ी कि किलकारियां मारने लगी. बाद में तो असहनीय सुख से रोने ही लगी. चाची भी कच्ची रसीली चूत पाकर खुश थी. ऐसे चूसती रही कि जनम जनम की प्यासी हो. बीच में बहुत देर सिक्सटी नाइन भी हुआ.

बाद में प्रीति को गोद में बिठाकर स्तनपान कराते हुए हस्तमैथुन के तरीके सिखलाये. अपनी भांजी की तीन उंगलियों से अपनी मुट्ठ मरवायी. अपने दाने को रगड़ना सिखाया और खुद भी उस किशोरी बालिका के जरा से दाने को उंगली से घिस कर एक मिनिट में झड़ाया, प्रीति तो बस सिसक सिसक कर रह गयी क्योंकि उसके मुंह में चाची की चूची आधी से ज्यादा ठुसी हुई थी.

बीच बीच में चाची मुझे डांट लगाती जाती थी अगर मुझे हस्तमैथुन करते देख लेतीं. मैंने बड़ी देर सब्र किया पर जब चाची ने एक उंगली प्रीति की कसी बुर में घुसेड़ी और वह दर्द से चिहुक उठी तो मुझसे न रहा गया. इतनी कसी कच्ची बुर, उसमें लंड डालकर कैसा लगेगा यह विचार मुझे पागल करने लगा. और वह किशोर गांड? उसे चोदने में क्या स्वर्ग का मजा नहीं आयेगा? मैं सिसककर सड़का लगाने लगा.

चाची को उठकर मेरे हाथ पैर कुर्सी से बांधना पड़े तब मैं रुका. मुझे वैसा ही प्यासा रखकर फ़िर वह अपनी लाड़ली भांजी से रति में जुट गयी.

आखिर दो घंटे बाद मुझे छुटकारा मिला जब चाची ने मेरे हाथ पैर खोले. मैंने तो तुरंत उन्हें वहीं जमीन पर पटककर चोद डाला. वे "अरे रुक, क्या करता है, ऐसे नहीं" कहती रहीं पर मैं न माना. झड़ कर ही रुका. बीच में प्रीति जो पास आकर बैठ गयी थी, उसे भी मैंने खूब चूमा. जब चाची ने देख लिया कि मैं बिना चोदे उन्हें नहीं छोडूंगा तो उन्होंने भी हार मान ली. पर प्रीति को अपने मुंह पर बिठा लिया और सारे समय उसकी बुर चूसती रहीं.

जब झड़ कर एक अपूर्व तृप्ति के बाद मैं अपना झड़ा लंड उनकी बहती चूत से निकाल कर लुढ़क गया तब प्रीति ने अपनी मौसी के कहने पर मेरा लंड चूस कर साफ़ किया और फ़िर उनकी बुर चाट चाट कर साफ़ की. चाची ने उससे कहा कि ऐसा मस्त मिश्रण, वीर्य और चूत के पानी का उसने कभी नहीं पिया होगा.

अगले कुछ दिन तो ऐसे गये जैसे स्वर्ग की सैर चल रही हो. दिन रात हम तीनों संभोग करते. दिन में चाची के कमरे में और रात को छत पर मच्छरदानी के अंदर, बस एक बात को मैं तरस गया. उस खुबसुरत लड़की की चुत मैंने खब चूसी. चूसते समय उसकी मखमली सकरी म्यान के कल्पना अपने लंड के ऊपर कर के मचल उठता. पर चोदने को तरस गया. कई बार चाची से अकेले में कहने पर भी प्रीति को उन्होंने नहीं चोदने दिया. बोलतीं कि यह इनाम तो तभी मिलेगा जब मैं उनका एक कोई बड़ा काम कर दूंगा.

अपनी गांड भी उस एक रात के बाद उन्होंने कई दिन नहीं मारने दी. मैं तरसता रह गया. मिन्नतें करता पर वे मुझे हाथ तक न लगाने देतीं. आखिर एक दिन दोनों ने खूब फुसफुसा कर बातें कीं और मेरी तरफ़ देख कर हंसती रहीं. मेरे खिलाफ़ साजिश हो रही थी. क्या मीठी साजिश थी वह मुझे बात में पता चला.

हुआ यह कि रोज रात की तरह घमासान रति के बाद हम तीनों छत के कोने में नाली में मूतने बैठे. मैं जल्दी से पिशाब करके उठ गया पर चाची और प्रीति बिना मूते बैठी रहीं और एक दूसरे की ओर देख कर हंसते रहीं. असल में मुझे उनका मूतना देखने में बड़ा मजा आता था इसलिये झल्लाकर बोला. "अरे बैठी क्यों हो दोनों मौसी भांजी छिनाल जैसी, मूतो जल्दी और चलो वापस चोदने."

प्रीति बोली. "अनिल भैया, असल में मुझे मालूम है कि चाची आप को गांड क्यों नहीं मारने देतीं." मैंने उत्सुकता से पूछा कि क्यों. "आप उन्हें सच में प्यार नहीं करते." वह बोली. मैंने दुहाई दी कि मैं उन्हें जी जान से चाहता हूं और उनके लिये कुछ भी कर सकता हूं. "उन्हें रात को ऐसे उठ कर मूतने आना पड़ता है, बिस्तर के बाहर खुले में. अच्छा नहीं लगता. कोई उपाय क्यों नहीं करते कि उन्हें उठना ही न पड़े? और यह मत कहना कि कोई बर्तन वर्तन ले आओगे कि उसमें वे मूत दें" वह नटखट आंखें मटकाकर बोली. फ़िर दोनों जोर जोर से हमसने लगीं.

मैं एक क्षण को तो कुछ समझा नहीं पर फ़िर सहसा जैसे दिमाग में बिजली कौंध गयी. लंड अभी अभी झड़ा था पर तुरंत सिर उठाने लगा. उसे देख कर चाची ने कहा, "देख समझ गया मेरा लल्ला, मैं कहती थी ना कि मुझे बहुत प्यार करता है, मेरे लिये कुछ भी करेगा"

मैं जाकर उनके पास नीचे बैठ गया. उनकी आंखों में आंखें डालकर बोला "हां गीता चाची, आप तो मेरी जान हो. आज से आप छत पर नहीं मूतेंगी." फ़िर रुक कर बोला. "इस शरबत के लिये तो मैं कब से मरा जा रहा हूं. पर डरता था कि आप बुरा न मान जायें. मेरे मुंह में मूतिये गीता चाची, एक बूंद नहीं छलकने दूंगा. चलिये बिस्तर पर."

चाची खिल उठीं. "सच कहते हो लल्ला? मेरे दिल की बात कह दी. मैंने भी बहुत किताबों में पढ़ा है और एक दो तस्वीरें भी देखी हैं. मन करता था कि किसी अपने प्यारे के साथ ऐसा करू. इसी बच्ची ने आखिर कहा कि अनिल भैया से कहती क्यों नहीं. बड़ी बदमाश है. कहती है कि उसकी सहेली की बहन तो रोज अपने पति के मुंह में मूतती है. इन दोनों ने कई बार छुपकर देखा है."
 
प्रीति ने चाची को चिढ़ाकर कहा. "अब अनिल भैया तो मान गये, अब मारने दोगी गांड?" चाची ने हंस कर कहा. "बिलकुल, पर एक शर्त है अनिल." मैंने धड़कते दिल से पूछा "क्या शर्त है चाची? बोल कर तो देखो?"


वे सीरियस होकर बोलीं. "सिर्फ मेरा ही नहीं, इस बच्ची का भी मूत पीना पड़ेगा. इसने राह दिखायी है, इसे भी इनाम मिलना चाहिये." प्रीति टेन्शन में मेरी ओर कुछ शरमा कर देख रही थी कि मैं क्या कहता हूं. जवाब में प्रीति की चूत को चूम कर मैं बोला. "यह तो ऐसा हो गया चाची कि अंधा मांगे एक आंख और मिल जायें दोनों. तुम्हारे बुर के शरबत के साथ इस कन्या की चूत की शराब भी मिल जाये तो क्या कहने."

दोनों खुशी से उछल पड़ीं. मैं नीचे लेट गया. "आज यहीं खुली छत पर मेरे मुंह में मूत लो चाची. कल से बिस्तर पर ही कर लेना." चाची उठ कर मेरे सिर के दोनों और पांव जमाकर घुटनों के बल बैठ गयी. "देख लल्ला, अब रोज की बात है, दिन में भी यही होगा! मना तो नहीं करेगा." जवाब में मैंने उन्हें नीचे खींच कर उनकी बुर चूम ली. "अब करो भी चाची, प्यास लगी है." प्रीति भी बिलकुल पास आकर बैठ गयी कि ठीक से इस क्रीड़ा को देख सके.

चाची ने मेरा सिर पकडकर स्थिर किया और निशाना लगाकर मेरे मुंह में मुतने लगीं. उस खारे गरमागरम शरबत को मैं गटागट निगलने लगा. मुझे अपना मूत पीते देख चाची ऐसी गरमाई कि बिना रुके और जोर से मूतने लगी. मैं चुपचाप पीता रहा पर प्रीति ही मेरे मन की बात समझ कर बोली. "क्या मौसी तुम भी? धीरे धीरे मूतो ना! आखिर भैया को भी आराम से पीने दो, स्वाद तो लगे, अभी तो बस गटागट निगले जा रहा है बेचारा."

चाची थोड़ा शरमायीं और फ़िर रुक रुक कर मूतने लगी जिससे मुंह में भरे मूत को मैं ठीक से चख सकें. जब तक उनका मूतना समाप्त हुआ, वे ऐसी गरम हो गयीं कि सीधे मेरे मुंह पर बैठ कर अपनी चूत मेरे होंठों पर रगड़ रगड़ कर एक मिनिट में स्खलित हो गयी. मुझे बोनस में शरबत के साथ शहद भी मिल गया. झड़ते हुए मेरे बाल प्यार से सहला कर बोलीं. "मजा आ गया लल्ला. तू नहीं समझेगा. असल में अपने किसी को अपने शरीर का रस पिलाना

औरतों को बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि अपना कर्तव्य पूरा कर रही हूं तेरी प्यास बुझा कर. मेरा बस चले तो अपने शरीर का हर रस तुझे दे दूं."

अब प्रीति की बारी थी. उसकी आंखें भी कामुकता से चमक रही थीं. "भैया, मैं तो खड़े खड़े ही मूतुंगी, हम लड़कियां स्कूल में अक्सर ऐसे ही करती हैं, नीचे बैठा नहीं जाता, इतनी गंदगी होती है इसलिये." और वह अपनी टांगें फैलाकर खड़ी हो गयी.

उसकी बात मान कर मैं उसकी टांगों के बीच मुंह खोल कर सिर ऊपर करके बैठ गया. उसने मेरा सिर पकड़कर निशाना लगाया और रुपहली धार मेरे मुंह में गिरने लगी. प्रीति ने बड़े प्यार से अपना मूत मुझे पिलाया. मुंह भरते ही रुक जाते थी जिससे मैं स्वाद ले सकें. उधर चाची पास आकर प्रीति से लिपटकर खड़ी हो गई और उस कन्या चुंबन लेते हुए और उसके कच्चे उरोज दबाते हुए पास से इस अनूठे काम को देखने का मजा लेने लगीं.

चाची की धार जहां मोटी और धीमी थी, प्रीति की एकदम पतली और तेज थी, पिचकारी जैसी. स्वाद दोनों का एकदम मस्त था, बुर की सौंधी खुशबू से भिना हुआ. आखिर प्रीति का पूरा मूत पीकर मैं उठा और उसे उठा कर बिस्तर पर ले गया. वहां पटककर पहले उसकी बुर चुसी और फ़िर चाची पर चढ़ कर उन्हें चोद डाला.

चाची कहती ही रह गयीं. "अरे गांड नहीं मारेगा क्या, मैंने वायदा किया है तुझ से." मैंने कहा, "ऐसे सस्ते में थोड़े छोडूंगा चाची! आज तो झड़ झड़ कर लंड मुरझा गया है, तुम तो आराम से ले लोगी गांड में कल दोपहर को मारूंगा, मस्त खड़ा कर के. आप को भी तो पता चले कि जब मस्त सूजा लंड गांड में जाता है तो कैसा लगता है. उस रात को खड़ा किया था, उससे भी मोटा होगा कल."

दूसरे दिन सुबह से बड़ा सस्पेंस का माहौल था. चाची और प्रीति में रोज की तरह नौकरानी की आंख बचाकर एक दो बार चूमा चाटी हुई पर मैं अलग से मन शांत कर के बैठा था. लंड को जितना हो सकता था उतना आराम दे रहा था. मेरी ओर कनखियों से देख कर प्रीति हंस रही थी, उसे मालूम था कि मैं क्यों चुप बैठा हूं. ।

आखिर दोपहर हुई और हम हमेशा की तरह चाची के कमरे में इकठे हुए. कपड़े निकालने के बाद पहला काम मैंने यह किया कि दोनों का मूत पिया. वहीं कमरे के फ़र्श पर लेटकर और उन दोनों चुदैलों को अपने मुंह पर बिठाकर. दोनों को यह अपेक्षित नहीं था, उन्होंने सोचा था कि कल रात वाली बात तो मौके पर वासना के अतिरेक में हो गयी थी. पर जब मैंने खुद ही उनका मूत पीने में पहल की, यह कहते हुए कि मैंने कल ही कहा था कि आज से मेरी दोनों खूबसूरत साथिने मेरे मुंह के सिवाय कहीं नहीं मूतेंगी, तो प्रीति मेरे मुंह में मूतते हुए शैतानी से बोली.

"भैया, हाय पहले मालूम होता तो आपका चार पांच गिलास शरबत बेकार नहीं जाता. मैं और मौसी सुबह से दो बार बाथरूम जा चुके हैं." चाची ने उसे हटाकर मेरे मुंह पर बैठते हुए उसे डांट लगायी. "चुप कर शैतान, नौकरानी के आगे आखिर क्या करते? बोतल में मूत कर अनिल लल्ला के लिये रखते?"
 
चाची का मूत पीने के बाद होंठ पोंछते हुए मैंने जवाब दिया. "हां चाची, प्लीज़, कल से चार पांच बड़ी पेप्सी की बोतलें धो कर रख दो. जब मेरे मुंह में मूतना संभव न हो, तो दोनों इन बोतलों का इस्तेमाल करके उन्हें फ़िज़ में रख दिया करो. मैं बाद में पी लूंगा. इस अमृत की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाना चाहिये."

खैर! उसके बाद चाची और प्रीति का बाथरूम जाना ही बंद हो गया. मेरे होते उन दोनों को कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. बोतलों की जरूरत भी नहीं पड़ी क्योंकि जब भी पिशाब लगती, वे चुपचाप मुझे कहीं अकेले में ले जातीं, अपने साड़ी या स्कर्ट ऊपर करतीं और मेरे मुंह में मूत देतीं. मेरा मुंह उनका यह अमृत पीने के लिये सदा हाजिर होता. मैंने कभी एक बूंद नहीं छलकायी इसलिये आराम से बिस्तर में लेटे लेटे भी यह काम दोनों कर लेती थीं. मुझे भी उन दोनों चुदैलों के मूत का ऐसा चसका लगा कि आदत ही लग गयी. आज भी अपने सेक्स पार्टनर का मूत पीने में मुझे बड़ा मजा आता है.

अब तक उन दोनों मद भरी बुरों के शरबत ने मेरा लंड खड़ा कर दिया था. सोलह घंटे के आराम के बाद वह अब मस्त तन्ना रहा था. "अब देखिये चाची, अब यह इस अवस्था में है कि आप की गांड की प्यास बुझा सके." चाची थोड़ा घबरा कर उसकी ओर देख रही थीं. पर नजर में बड़ी मादक प्यास भी थी. "नहीं लल्ला, अभी माफ़ करो, रात में मार लेना."

"जब फ़िर मुरझा जाये? नहीं मौसी तुमने वायदा किया था भैया से, चलो गांड मराओ." प्रीति मेरा साथ देती हुई अपनी बर रगड़ती हुई बोली. उसे बड़ा मजा आ रहा था. अपने लंड को और कस कर खड़ा करने का मुझे अचानक एक उपाय सूझा. आज मैं जरा दुष्ट मूड में था और यही सोच रहा था कि जितना हो सके लंड को मस्त करू ताकि गीता चाची कुछ और जोर से बिलबिलाये गांड मराते समय. आखिर मुझे भी तो इतने दिन का हिसाब वसूलना था. बस मुझे अपने आप पर पूरा कंट्रोल रखना जरूरी था.

"गीता चाची, चलो एक काम करते हैं. आप दोनों मिलकर मेरे लंड से खेलो, चूसो, कुछ भी करो. बीस मिनिट का समय देता हूं. अगर मुझे झड़ा लिया तो आपकी गांड बच जायेगी. नहीं तो फ़िर बिना तेल लगाये ही मारूंगा, आपको तड़पा तड़पा कर और मजा लेने के लिये. बोलो है मंजूर?"

चाची ने कुछ देर सोचा और एक शर्त अपनी भी रख दी. आखिर पक्की छिनाल जो थीं. "ठीक है लल्ला, पर भले तेल न लगाना, चूसना जरूर पड़ेगी. मेरी गांड का छेद मुंह से और जीभ से गीला करना पड़ेगा, बोलो है मंजूर?" उन्हें लगा कि शायद मुझे गंदा लगे इसलिये मैं न मानू पर मैं तुरंत तैयार हो गया. मेरी प्यारी मतवाली चाची की गांड चूसना तो मेरे लिये मानों एक और उपहार था.

घड़ी में बीस मिनिट का अलार्म लगाया गया और फ़िर दोनों मिलकर मेरे लंड पर टूट पड़ीं. बारी बारी से चूमने और चूसने लगीं. चाची बीच बीच में उसे अपने गोल मटोल स्तनों के बीच पकड़ कर बेलन जैसे रगड़ने लगतीं. कभी अपने घने बालों में लपेट लेतीं. प्रीति भी बड़े चाव से चाची का साथ दे रही थी.

दस मिनिट में भी जब मैं न झड़ा तो चाची थोड़ा घबरायीं. प्रीति को बोलीं. "बेटी तू इसके मुंह पर चढ़ जा, इसे अपनी चूत चुसवा. मैं इसे चोदती हूं, देखें कैसे नहीं झड़ता."
प्रीति मेरे मुंह पर बैठ गयी और मैं जीभ डालकर उस कोमल मखमली कच्ची बुर का रस पीने लगा. उधर चाची मुझ पर चढ़ कर मुझे चोदने लगीं.
 
प्रीति मेरे मुंह पर बैठ गयी और मैं जीभ डालकर उस कोमल मखमली कच्ची बुर का रस पीने लगा. उधर चाची मुझ पर चढ़ कर मुझे चोदने लगीं.

अगले दस मिनिट मेरी परीक्षा के थे पर मैं खरा उतरा. किसी तरह अपने सुख से मचलते लंड पर काबू किये रहा. प्रीति की चूत के रस ने और चाची की बुर के घर्षण ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि मेरा लंड घोड़े के लंड जैसा खड़ा हो गया. आखिर अलार्म बजा तो प्रीति उठ कर खड़ी हो गयी. कई बार मेरे मुंह में झड़ कर तृप्त हो गयी थी. हंस कर चाची को बोली. "चलो मौसी तुम शर्त हार गईं, अब तो गांड मराना ही पड़ेगी."

चाची भी कई बार झड़ चुकी थीं. हांफ़ते हुए लस्त होकर किसी तरह मेरे लंड को अपनी गीली बुर में से खींच कर निकाला तो लौड़े की साइज़ देखकर उनकी आंखें पथरा गईं. "हाय लल्ला, यह तो और मुस्टंडा हो गया. लगता है। मैंने अपनी कब्र खुद बना ली, तू मार डालेगा मुझे बेटे, दया कर, चोद ले अभी, गांड बाद में मारना." पर डरने का सिर्फ बहाना था, उनकी आंखों में गजब की कामुकता थी. गांड चुदाने को वे भी मरी जा रही थीं.

उनकी एक न मान कर मैंने उन्हें उठा कर बिस्तर पर ओंधे लिटा दिया. वे बोलीं. "प्रीति बिटिया, गांड तो मुझे मरवाना ही है तो ऐसा कर, तू मेरे नीचे उलटी तरफ़ से आ जा रानी. सिक्सटी नाइन करते हुए मरवाऊंगी तो दर्द थोड़ा कम हो जायेगा." प्रीति तपाक से उनके नीचे घुस गयी. अपनी टांगें खोलती हुई बोली. "लो चूसो मौसी" फ़िर मौसी के चूतड़ पकड़कर उनकी बुर चाटती हुई मुझसे बोली. "अनिल भैया, मुझे तो बिलकुल बाल्कनी की सीट मिल गयी शो देखने को. दो इंच दूर से मौसी की गांड में तुम्हारा लौड़ा घुसते देखेंगी."

मैं झुक कर अपनी जीभ और होंठों से चाची के नितंबों की पूजा करने लगा. जब उनके गुदा में जीभ डाली तो वे सिहर उठीं. उनकी गांड का छेद पकपकाने लगा और मेरी जीभ को पकड़ने लगा. गांड का सौंधा खटमिठा स्वाद लेते हुए मैंने खूब गांड चूसी और फ़िर आखिर बिस्तर पर चढ़ कर उनके गुदा पर लंड जमाता हुआ बोला. "प्रीति जरा हेल्प कर, अपनी हाथों से तेरी मौसी की गांड चौड़ी कर." मेरी सुपाड़ा फूल कर टमाटर सा हो गया था और मौसी की गांड में उसका घुसना असंभव सा लग रहा था.

मौसी की बुर में जीभ डालकर प्रीति ने अपनी पूरी शक्ति से उनके गोरे नितंब फैलाये. मैंने कस के लंड पेला और सुपाड़ा अंदर घुसेड़ दिया. मौसी के मुंह से एक चीख निकल गयी. "मार डाला रे मुझे तूने बेदर्दी, फ़ाड़ दी मेरी." मैं हंसते हुए बोला. "नहीं चाची, ऐसे थोड़े फ़टेगी आपकी गांड, आखिर मारने के लिये ही बनाई है कामदेव ने तो फ़टेगी कैसे. हां, आप भी गुदा ढीला कीजिये नहीं तो दर्द होगा ही."

चाची अपना दर्द कम करने को प्रीति की चूत चूसने लगी. प्रीति ने भी अपनी गोरी कमसिन जांघे उसके सिर के इर्द गिर्द जकड़ लीं. चाची का दर्द कुछ कम हुआ तो मैंने लंड और पेलना शुरू किया. जब वे दर्द से कराह उठतीं तो मैं फ़िर रुक जाता. इस तरह आखिर मैंने जड़ तक लंड उनके चूतड़ों के बीच उतार ही दिया.
 
कुछ देर में मजा लेता हुआ पड़ा रहा. चाची की गांड कस के मेरे लंड को पकड़े हुए थी. मैं बस झड़ने ही वाला था. आखिर न रहकर मैने उनकी गांड मारना शुरू कर दी. अब तक सब थूक सूख जाने से मेरा लंड और उनकी गांड का छेद सूख गये थे और इसलिये लंड फ़िसल नहीं रहा था, बस फंसा हुआ था उनकी गांड में. मुझे तो इस घर्षण से बड़ा मजा आया. पर चाची बिलबिला उठीं. गांड में फंसे लौड़े के आगे पीछे होने से उन्हें बहुत तकलीफ़ हो रही थी. पर मै अब इतना उत्तेजित हो गया था कि उनके सिसकने की परवाह न करके कस के दस बारा धक्के लगाये और झड़ गया.


"मजा आ गया चाची, आपकी गांड बड़ी कसी हुई है." मैंने उन्हें चूमते हुए कहा. वे कराह कर बोलीं. "लल्ला, मुझे तो बहुत दर्द हुआ. ऐसी सूखी गांड मारता है कोई भला? गांड मराने का, लंड अंदर बाहर होने का तो मजा आया ही नहीं." फ़िर प्रीति से बोलीं. "जा लाकर तेल ले आ, मैं कहती हूं वैसा कर अब."


चाची की हिदायत के अनुसार मैंने अपना झड़ा लंड आधे से ज्यादा बाहर निकाला. "अरे पूरा मत निकाल नहीं तो फ़िर घुसाते समय मुझे दुखेगा." उस पर प्रीति ने तेल लगाया. फ़िर चम्मच से लंड के आजू बाजू से चाची के गुदा मे तेल छोड़ा. मेरा लंड आधा खड़ा था इसलिये मैंने उसे दो तीन बार अंदर बाहर किया और चाची का गुदा और मेरा लंड तेल से बिलकुल चिकने हो गये.


चाची ने राहत की सांस ली. मेरे लंड को खड़ा होने का समय देने के लिये दस पंद्रह मिनिट हमने मिलकर बारी बारी से प्रीति की चूत चूसी. जब मेरा फ़िर तन्ना कर खड़ा हो गया तो चाची मुझे ललकार कर बोलीं. "अब आ मैदान में लल्ला, अब मार, देखें कितना दम है तुझमें."


अगले आधे घंटे हम दोनों ने असली गांड चुदाई का मजा लिया. लंड मस्त सटक सटक कर गीता चाची की गांड में अंदर बाहर हो रहा था. उधर मैं उनके स्तन अपने हाथों में लेकर उन्हें दबा और मसल रहा था. मैंने खूब हचक हचक कर गांड मारी. चाची भी अब एकदम गरम हो गयी थीं. मुझे उकसा उकसा कर और जोर से पेलने को कह रही थीं और चूतड़ उछाल उछाल कर मरवा रही थीं. मैंने भी आखिर उनकी चुदैल प्रवृत्ति का लोहा मान लिया और आधे घंटे बाद आखिर कसमसा कर झड़ गया. वे अब भी तैश में थीं. "बस हथियार डाल दिये राजा बेटा? अब तेरी जीभ को मेरी चूत की प्यास बुझानी पड़ेगी."


उन्होंने आखिर जब मेरी जीभ से चुदवाया तब जाकर वे झड़ीं. रस की ऐसी धार लगी कि मेरा और प्रीति का पेट भर गया उसे पीकर.


रोज चाची की गांड मारने का एक कार्यक्रम हमारी रति क्रीड़ा में जुड़ गया. अक्सर यह दोपहर को ही होता. हमने बहुत से तरीके भी आजमाये, खड़े खड़े, लेटकर, गोदी में बिठाकर इत्यादि. दीवार से चाची को टिकाकर खड़े खड़े उनकी गांड मारने में काफ़ी मजा आता था. गोद में बिठाने का आसन बहुत देर मजा लेने को सबसे अच्छा था. इस आसन में मैं एक कुर्सी में बैठता था और चाची मेरे लंड को अपने गुदा में लेकर मेरी गोद में बैठ जाती थीं. प्रीति सामने जमीन पर बैठकर चाची की चूत चूसती और मैं उनके मम्मे दबाता हुआ उनसे चूमाचाटी करत हुआ हौले हौले ऊपर नीचे अपना लंड उनकी गांड में मुठियाता.
 
कभी कभी हम घंटे दो घंटे इसी तरह मजा करते. सवाल सिर्फ मेरा था कि मैं कितनी देर इस मीठे दर्द को सह सकता हूं. चाची तो खूब झड़ती इसलिये उन्हें बहुत मजा आता था. प्रीति भी खुश रहती थी क्योंकि उसे मनमानी अपनी मौसी की बुर से घंटों खेलने का मौका मिलता. जब वह ज्यादा गरम हो जाती तो हमारे सामने आकर खड़ी हो जाती और हम दोनों में से एक झुककर उसकी बुर चूस देते.

मुट्ठ मारने की सब कलायें मौसी ने उसे सिखा दी थीं इसलिये इस आसन में प्रीति कई बार चाची की चूत चूसने के साथ साथ केले या ककड़ी से उन्हें हस्तमैथुन भी करा देती.

बीच मे एक दिन मैं पास के शहर में जाकर कुछ सचित्र चुदाई की किताबें ले आया. कुछ मेगेज़ीन चाची ने अपनी अलमारी में से निकालीं. उन्हें देख देख कर सबको और तैश चढ़ता था. मैं हर तरह के चित्रों की किताबें लाया था, स्त्री-स्त्री, स्त्री-पुरुष पुरुष-पुरुष इत्यादि. चाची की किताबों में सब पुरुषों के आपसी संभोग के ही चित्र थे. उनमें से कई मॉडल तो बड़े हैंडसम थे. चुन चुन कर मोटे लंबे लंडों वाले जवानों के फ़ोटो उनमें थे.

चाची को और प्रीति को यह पुरुष संभोग के चित्र देखने में बड़ा मजा आता था, शायद उन मस्त लंडों की वजह से. धीरे धीरे मुझे भी वे भाने लगे. उनमें से एक दो लंड तो इतने बड़े थे कि उन्हें किसी पुरुष की गांड में घुसे चित्रों को देखकर मैं सोच पड़ता था कि आखिर कैसे ये लोग इतने बड़े लंड ले लेते हैं. अपने आप को उस परिस्थिति में होने की कल्पना करने से मुझे एक अजीब भय भरी चाहत गुदगुदा जाती थी. मुझे क्या मालूम था कि एक दिन मैं सच में इस परिस्थिति में आ जाऊंगा और वह भी किसी बिलकुल करीबी पुरुष के साथ!
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हुआ यह कि एक दिन प्रीति के सो जाने के बाद मैंने चाची की गांड मारते हुए पूछा कि आखिर चाचाजी का क्या प्राब्लम है जो खुद इतने हैंडसम हैं और फ़िर भी अपनी खूबसूरत चुदैल बीबी को हाथ तक नहीं लगाते! चाची ने उस दिन मुझे पूरी बात बतायी.

"तेरे राजीव चाचा असल में बेटे गे हैं. औरतों में कतई दिलचस्पी नहीं है उन्हें. शादी के दूसरे दिन ही उन्होंने मुझे बता दिया था. उनके शायद यार दोस्त हैं बाहर इसीलिये महने में बीस पचीस दिन गायब रहते हैं, नौकरी का तो बहाना है. यह सब जो मर्द मर्द वाले चित्रों की किताबें हैं ना, सब उनकी अल्मारी में मिली थीं मुझे"



मैं सुनकर चकरा गया. जब मैंने चाचाजी की कल्पना दूसरे किसी मर्द के साथ संभोग करते हुए की तो न जाने क्यों मेरा तन्ना कर खड़ा हो गया और मैं आपे के बाहर होकर कस के चाची की गांड मारने लगा. झड़ कर ही दम लिया. वे कहती ही रह गयीं कि अरे मजा ले लेकर धीरे धीरे मार.

फ़िर उन्होंने मुझे चूमते हुए पूछा कि क्या मैं चाचाजी की बात सुनकर उत्तेजित हो गया था. मैंने शरमाते हुए बात मान ली. चाची ने फ़िर हौले से मुझे पूछा कि वे चित्र मुझे कैसे लगते हैं. उनकी बात के पीछ कुछ छुपा अर्थ था. मैंने फ़िर उनसे कहा कि मुझे भी ऐसे चित्र अच्छे लगते हैं अगर पुरुष सुंदर और हैंडसम हों.

फ़िर चाची ने मेरी आंखों में आंखें डालीं और पूछा. "सच बता लल्ला, तेरे चाचाजी तुझे कैसे लगते हैं? मेरा मतलब है ऐसे समलिंग यौन कर्म करने के लिये" मैं चुप रहा. यह बात उन्होंने महना भर पहले पूछी होती तो मेरा जवाब और कुछ होता. पर दो हफ़्ते की निरंतर काम क्रीड़ा ने मानों मेरे मन की सब दीवालों को तोड़ डाला था.

थोड़ा शरमाते हुए मैंने स्वीकार किया कि मेरे सजीले चाचाजी के साथ ऐसा कुछ करने का मौका मिले तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा. चाची ने खुश होकर मुझे चूम लिया. "बस मेरा काम बन गया लल्ला. तू ही उन्हें फ़िर मेरी ओर मोड़ सकता है." मैं समझा नहीं और चाची से साफ़ साफ़ कहने को कहा.

वे बोलीं. "अरे, वे चिकने जवानों पर और खास कर किशोरों पर फ़िदा रहते हैं. मुझे मालूम है, उनके देखने के अंदाज से. जब भी कोई कमसिन चिकना लड़का नजर में आता है, उनकी नजर ही बदल जाती है. तू भी बड़ा सुंदर चिकना है पर सगा भतीजा होने के कारण वे अपने आप को काबू में रखते हैं और तेरे बारे में सोचते भी नहीं. तू एक बार उन्हें इशारा कर दे तो तेरे तो दीवाने हो जायेंगे. और एक बार तेरे इस प्यारे चिकने जवान शरीर के गुलाम हुए कि फ़िर उनका बाहर जाना कम हो जायेगा और हो सकता है कि धीरे धीरे वे मुझे चोदना भी शुरू कर दें. मेरा यह काम करेगा लल्ला? ऐसा इनाम दूंगी कि तू खुश हो जायेगा."
 
मैंने कांपते स्वर में पूछा कि क्या इनाम देंगी. मेरे हैंडसम चाचाजी से संभोग की कल्पना ही इतनी नाजायज़ पर मधुर थी कि मैं उत्तेजित होने लगा था. मेरे खड़े होते लंड को सहलती हुई चाची बोलीं. "प्रीति को तुझसे चुदवा दूंगी. उसकी कच्ची बुर को तू जितना चाहे भोगना. और उस छोकरी की कसी गांड भी मारने में सहायता करूंगी. वह जरूर रोयेगी चिल्लायेगी पर हाथ पैर मुंह बांध देंगे उसके. भागेगी कहां? कचाकच चोद डालना छोरी को आगे और पीछे से. बाद में मैं समझा दूंगी कि तमाशा न करे. आखिर उसकी मौसी हूं. बोल है मंजूर?"

बड़ा मधुर और उत्तेजना भरा सवाल था. हाथ पैर बंधी प्रीति की कमसिन चूत और गांड में लंड घुसेड़ने की कल्पना ही इतनी मदहोश करने वाली थी कि मैंने तुरंत हां कर दिया. वैसे मुझ लगता है कि चाची ने यह लालच न भी दिया होता तो भी शायद मैं मान जाता, अब तो मुझे बस चाचाजी का गठा चिकना बदन दिख रहा था.

"एक बात बता देती हूं लल्ला, बाद में न कहना कि चाची ने खतरे की सूचना नहीं दी. तेरे चाचाजी का लंड एकदम हलब्बी है, घोड़े जैसा, मेरे खयाल से आठ नौ इंच का जरूर होगा, ज्यादा भी हो सकता है. एक बार छुप कर बाथरूम में मुठू मार रहे थे तब देखा था. सोच ले, तेरी क्या हालत होगी अगर वे तुझ पर चढ़ गये." चाची ने। हंसते हुए मेरा तन्नाया लंड रगड़ते हुए कहा.
वे महा चालू थीं. मुझे डराने और उत्तेजित करने को जान बूझ कर चाचाजी के महाकाय लौड़े का वर्णन कर रही थीं. "कोई बात नहीं चाची, मैं सब झेल लूंगा." मैंने वासना से हांफ़ते हुए कहा. अब मैं इतना उतेजित हो गया था कि फ़िर चाची को चोदने के सिवाय कोई चारा नहीं था. आज मैंने उन्हें ऐसे चोदा कि उनकी पूरी खुमारी उतार दी.

जब मैं उनपर पड़ा पड़ा सुस्ता रहा था तब अचानक उन्होंने अपनी एक उंगली अपनी चूत के रस से गीली करके मेरी गांड में डाल दी. मैं चिहुंक उठा. वे दूसरी उंगली भी डालने लगीं. बड़ा दर्द हुआ तो मैं कसमसा कर उठ बैठा. "क्या करती हैं चाची?'

"वा लल्ला, मेरी दो उंगली तो गुदा में ली जातीं नहीं, और चला है चाचाजी का मोटा सोंटा अंदर लेने!" बात सच थी. वे उठीं और अंदर जाकर एक छोटा गाजर ले आईं. "चलो लाला, उलटे सो जाओ." 

मैंने डरते हुए पूछा. "क्या कर रही हैं चाची?" 

वे बोलीं. "अरे बेटे, मेरी बात मान, यह गाजर मैं तेरी गांड में डाल देती हूं, इसे दिन भर अंदर रख, कल थोड़ा और बड़ा वाला डाल देंगी. ऐसे तीन चार दिन में तेरी गांड थोड़ी ढीली हो जायेगी. फ़िर इनका लौड़ा लेने में इतना दर्द नहीं होगा मेरे लल्ला को."

मैं कुछ देर सोचता रहा, फ़िर मना कर दिया. बोला. "नहीं चाची, मैं तो अपनी कुंवारी गांड ही मरवाऊंगा, भले ही कितना दर्द हो. मजा तो उसी में है. और फ़िर राजीव चाचा मुझे कितना प्यार करते हैं. उनको भी मैं एक कसी मस्त गांड उपहार में देना चाहता हूं."

चाची ने मुझे चूम कर कहा. "ठीक कहता है तू, बहुत बहादुर है. पर तेरी इतनी मस्त गांड में इन्हें फ्री में नहीं लेने दूंगी. इन्हें शुरुवात में ही उसकी भरपूर कीमत देनी पड़ेगी." जरूर उनके मन में कोई प्लान था पर मेरे बहुत पूछने पर भी चाचीजी ने अपने प्लान के बारे में नहीं बताया.

मैंने चाची से मिल कर यह प्लान बनाना शुरू कर दिया कि कैसे चाचाजी को रिझाया जाय. चाची के कहने पर मैंने मालिश करना सीखना शुरू कर दिया. चाचाजी को मालिश बहुत पसंद थी. हमारे बूढ़े नाई से मैंने दो तीन दिन मालिश करवाई और फ़िर चाची के शरीर का इस्तेमाल सीखने के लिये किया. चाची की मालिश करने में बहुत मजा आया.
 
एक तो उनपर प्रेक्टिस करके मेरा हाथ एकदम सध गया. दूसरे उनके मुलायम शरीर को गूंधने में उन्हें और मुझे जो मजा आता था वह मानों बोनस था. खास कर जांघों की मालिश करते करते तो मैं ऐसे अपनी उंगलियों से उनके भगोष्ठ हल्के हल्के रगड़ कर उनकी चूत को तड़पाता कि वे चूतड़ उचकाने लगती थीं. "बस ऐसे ही चाचाजी के साथ करना लल्ला, न तुझ पर चढ़ जायें तो फ़िर कहना." अपनी जांघों को मसलवाते हुई वे मुझे कहतीं.
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हमने प्रीति से शुरू में सब छुपा कर रखने का निश्चय किया इसलिये चाचाजी लौटने वाले थे उस दिन उसे हफ़्ते भर के लिये पास के गांव में उसकी दूर की बुआ के यहां भेज दिया. जब चाचाजी वापस आये तो चाची को खुश देखकर बहुत प्रसन्न हुए. समझ गये कि उनके किशोर भतीजे ने उनकी पत्नी की चूत को खूब तृप्त रखा है. मुझे आंख भी मारी कि बहुत अच्छा किया बेटे.

मेरा अब उनकी ओर देखने का ढंग ही बदल गया था इसलिये उनके आंख मारने से मुझे अजीब गुदगुदी सी हुई. उन्होंने भी मेरी आंखों में और ही कुछ देख होगा क्योंकि वे जरा चकरा से गये. जब कपड़े बदलते हुए मैंने उनके सुडौल शरीर और मजबूत बदन पर गौर किया तो मेरा खड़ा होना शुरू हो गया, ठीक वैसे ही जैसे किसी सुंदर स्त्री को देखकर होता है.

मैंने भी उनके सामने सिर्फ जांघिये में घूमने का कोई मौका नहीं छोड़ा, गर्मी का बहाना लेकर या फ़िर जान बूझकर उनके कमरे में कोई चीज़ ढूंढने का बहाना कर के. उनकी आंखें मेरे किशोर शरीर पर बार बार पड़तीं और वे बड़ी मुश्किल से अपनी निगाहें फ़ेरते कि आखिर मैं उनका सगा भतीजा हूं. पर वे मेरी तरफ़ बहुत आकर्षित होने लगे थे यह मैं समझ गया.


दूसरे ही दिन शाम को मैंने अपना प्लान आजमाने का निश्चय कर लिया. चाचाजी को अटपटा न लगे इसलिये हमें अकेले छोड़ कर चाची तीन चार घंटे के लिये पड़ोस में चली गयीं. उधर चाचाजी ने नहाने के लिये अपने सारे कपड़े निकाले और सिर्फ जांघिया पहनकर बाथरूम जाने लगे. उनके कसे जांघिये में से उनके बड़े लंड का आकार साफ़ दिख रहा था. मैं देख कर घबरा भी गया और उत्तेजित भी हुआ. बाप रे, बैठी हालत में इतना बड़ा है तो खड़ा कैसा होगा?

मैंने कहा. "चाचाजी मालिश कर दूं?" वे रुक कर बोले "अरे अनिल बेटे, तुझे आती है क्या?" मैंने बताया कि चाची की तो रोज करता हूं. इस जवाब पर वे मुस्कराने लगे. उनकी आंखें मेरे बदन पर जमी थीं. मैंने भी सिर्फ एक जांघिया पहना था. मुझे मालूम था कि उन्हें अब अपना भतीजा नहीं बल्कि एक चिकना गोरा छरहरे बदन का खूबसूरत लड़का दिख रहा था. पर उनका सगा भतीजा था इसलिये वे अब भी अपने आप पर काबू किये हुए थे. मैंने फ़िर आग्रह किया तो वे तैयार हो गये.

वे जमीन पर एक चटाई पर लेट गये. मैंने दरवाजा लगा लिया और फ़िर हाथ में तेल लेकर उनके पास नीचे बैठकर उनकी मालिश करने लगा.

पहले तो मैंने उनके हाथों और पैरों पर मालिश की. फ़िर सीने और पेट पर उतर आया. चाचाजी का बदन एकदम चिकना था. छाती पर बाल नहीं थे. उनका शरीर अब मुझे उत्तेजित कर रहा था. उन्हें मैंने पलट जाने को कहा. फ़िर उनकी चौड़ी पीठ और कमर पर तेल लगाकर रगड़ने लगा.

चाचाजी के मोटे मजबूत चूतड़ों का आकार जांघिये में से साफ़ दिख रहा था. मैंने अपने हाथ उनके जांघिये की इलास्टिक के नीचे से अंदर डाले और उनके नितंबों की मालिश करने लगा. वे थोड़ा कसमसाये. मैं समझ गया कि उनका लंड अब खड़ा होने लगा होगा. मैने जान बूझ कर बड़े प्यार से नितंबों की खूब मालिश की, एक दो बार मेरी उंगली उनके गुदा पर से भी गयी. उस समय वे सिहर से जाते.

मैंने उन्हें फ़िर पलटने को कहा. वे आनाकानी करने लगे. मैं समझ गया कि लंड खड़ा है. मेरा भी अब तक जोर से खड़ा हो गया था. मौका अब करीब था. मैने जिद करके अपनी मनवा ही ली. वे पलटे तो उनके जांघिये में ये बड़ा तंबू बना था. चाचाजी के चेहरे पर थोड़ी शर्मिंदगी थी पर फ़िर उन्होंने मेरे जांघिये में भी तना हुआ लंड का आकार देखा. मैं चुपचाप उनकी ओर बिना देखे उनकी छाती और फ़िर जांघों की मालिश करता रहा.
 
आखिर मुझ से न रहा गया. मैंने झुक कर उनकी छाती चूम ली और एक हाथ जांघिये में डाल कर लंड पकड़ लिया. मजा आ गया. ऐसा लगता था कि मोटी ककड़ी या लौकी हाथ में आ गयी हो. राजीव चाचा ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे पास खींच लिया. फ़िर दूसरा हाथ मेरी गर्दन में डाल कर मेरे सिर को नीचे खींचकर अपने होंठ मेरे होंठों पर लगा दिये. एक दूसरे की आंखों में देखते हुए हम बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे. अब कुछ कहने की भी जरूरत नेहीं थी.

मुझे खींचकर राजीव चाचा ने बाहों में भर लिया और मुझे नीचे चटाई पर पटक कर मेरे ऊपर चढ़ बैठे. ऐसे चूमने लगे जैसे अपनी प्रेमिका को चूम रहे हों. उनके थोड़े खुरदरे होंठ और उनमें भिनी सिगरेट की भीनी खुशबू मुझे बहुत अच्छी लगी. अपनी लंबी जीभ उन्होंने मेरे गले तक उतार दी जिसे मैं जोर से चूसने लगा. अब तक उन्होंने अपने हाथों से मेरी चड्डी खींच कर उतार दी थी. उनका हाथ कभी मेरा लंड सहलाता और कभी नितंब.

बीच में ही वे उठकर बैठ गये और मेरे नग्न शरीर को अलट पलट कर देखने लगे. मेरा गुलाबी किशोर शिश्न और चिकने नितंब देखकर वे सिसक उठे. "मेरे राजा, मेरे बेटे, तू तो बिलकुल स्वर्ग का टुकड़ा है रे, अब तक कहां था रे, अपने चाचाजी से जुदा क्यों था?" कहकर वे झुककर मेरे नितंब चूमने लगे. प्यार से उन्हें सहलाते हुए वासना के आवेश में राजीव चाचा मेरे गुदा को चूसने लगे. जल्द ही उनकी जीभ मेरे गुदा में घुस गयी. सारे समय मेरे लंड को वे अपनी हथेली में पकड़कर प्यार से मुठिया रहे थे.

मैं सुख से सिहर उठा. पहले वार किसी ने मेरी गांड चूसी थी. मैं कराह कर बोला. "राजीव चाचा, मैं झड़ जाऊंगा."

"झड़ जा मेरे लाल पर अपने चाचा के मुंह में झड़, पिला दे मुझे तेरा अमृत" कहकर उन्होंने अपना मुंह खोला और एक ही निवाले में पूरा लंड निगल कर गन्ने जैसा चूसने लगे. उनकी जीभ इस तरह से मेरे सुपाड़े पर थिरक रही थी कि मुझसे न रहा गया और मैंने उनके सिर को पकड़कर कस कर अपने पेट पर सटा लिया. फ़िर मैं हचक हचक कर उनके मुंह को चोदने लगा.
एक हिचकी के साथ जब मैं झड़ा तो उनकी आंखें चमकने लगीं. चूस चूस कर ऐसे उन्होंने मेरा वीर्य पिया कि कोई कैंडी हो. आखिर जब मैं मुरझा कर लस्त पड़ गया तो फ़िर मुझे पलटकर मेरी गांड चूसने लगे.


मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था. झड़ गया था पर वासना शांत नहीं हुई थी. मैं उठ बैठा और जिद करने लगा. "चाचाजी, अब मैं आपका लंड चूसूंगा. निकालिये बाहर." मुझे और कुछ कहने का समय न देकर उन्होंने मेरा मुंह फ़िर अपने होंठों से बंद कर दिया और मुझे बांहों में लेकर प्यार करने लगे. "बेटे, मैं तो निहाल हो गया. अब तुझसे जुदा होना मुश्किल है पर तेरी चाची के सामने कुछ कर भी नहीं सकता. उसे बुरा लगेगा."

"नहीं चाचाजी, चाची को सब पता है. वह भी कह रही थी कि जैसे आपने उनका खयाल रखा वैसे ही वे भी
आपका खयाल रखना चहती हैं. जैसे उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी, वैसे ही वे मुझे कह रही थीं कि घर में मेरे जैसा माल है आपके काम का तो क्यों न उसका उपयोग किया जाय." फ़िर मैंने पिछले दो हफ्तों में हुए सब कर्मों की कहानी उन्हें सुनाई.

अपनी पत्नी, भतीजे और पत्नी की भांजी की कहानी सुन वे इस जोर से उत्तेजित हुए कि उनकी सांसें जोर से चलने लगीं. मैंने टटोल कर देखा तो उनका शिश्न लोहे जैसा कड़ा था. मैं उसे देखने की और चूसने की जिद कर बैठा तो वे आखिर बड़ी अनिच्छा से नीचे लेट गये. शायद इस दुविधा में थे कि मैं उनकी साइज़ देखकर घबरा न जाऊ.

उनका लंड अब इस बुरी तरह से जांघिये में तंबू बना कर खड़ा था कि जांघिया निकल ही नहीं रहा था, फंस गया था. आखिर जब बड़ी मुश्किल से मैने उसे निकाला तो टन्न से वह खड़ा होकर झूमने लगा. मैं उसकी तरफ़ देखता ही रह गया. जरूर आठ नौ इंच का होगा. कम से कम ढाई इंच मोटा. किसी आधे किलो के गोरे गोरे गाजर की तरह लग रहा था. सूजी हुई नसें और ऊपर पाव भर के टमाटर जैसा सुपाड़ा ! लंड की जड़ में घनी काली झांटें थी. राजीव चाचा के पूरे चिकने शरीर पर बालों की कमी उन झांटों ने पूरी कर दी थी. नीचे दो बड़ी बड़ी भरी हुई गोटियां लटक रही थीं. मैं तो निहाल हो गया.
 
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